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ततक्षण लागे संगति नीचनी, जो करी रहीयें को डी यतन्न ॥ मा० ॥ १३ ॥ सवृक्षपुष्पसौरज्य, दान दानैकतत्परः ॥ शबेन मिलितो वायुदौर्गंध्यं किमु ना श्रुते ॥ हुइ मिथ्यातणी पियुना प्रसंगथी, मानव जो जो कर्मनां काम ॥ मा० ॥ पीयूष केरुं गरल थई गयुं, ऐ ऐ मोह महाबलधाम ॥ मा० ॥ १४ ॥ आग ल होशे सवि वातो जली, दर्षशुं निसुणो बाल गो पाल || मा० ॥ मोहन विजयें जांखी हेजशुं, अनि नव जांखी नवमी ढाल ॥ मा० ॥ १५ ॥ सर्व गाथा. ॥ दोहा ॥
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सुख जोगवतां विविहपरें रूषिदत्ताने एक पुत्र रत्न हूर्ज जलो, सुंदररूपविवेक ॥ १ ॥ कीधा उ त्सव नवनवा, दीघां जाचक दान ॥ नात संतोषी आपणी, वर्हेच्या फोफल पान ॥ २ ॥ नाम ठव्युं वरमुहूरतें, तास महेश्वरदत्त ॥ रूपवंत विद्यानिलो निरुपम गुणसंसत्त ॥ ३ ॥ दुर्ज तेह अनुक्रमें, यौवनवय उन्मत्त ॥ सहू वखाणे नयरमें, धन्य महे श्वरदत्त ॥ ४ ॥ नमया सुंदरीनो हवे, सांजलजो अधिकार ॥ श्रति रसीली बे कथा, शीलोपरि सु विचार ॥ ५ ॥
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