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( হए) हाथ || महारो धर्म हुं के परे करूं, अहो हो श्री जिनवर जगनाथ ॥ मा० ॥ ६ ॥ केम करी रा खी शकीयें जालवी, एकण म्यानमें बे करवाल ॥ मा० ॥ प्रीतम हवे अवसर श्रावियो, नीरखी स चिंते ते सुकुमाल ॥ मा० ॥ केम तमें वनिता श्रा मण दूमणां, वो बो माहरे नयरों आज || मा० ॥ कीजी निहेजें तुमने दूहव्यां, मुफ जणी तुमे दा खो तेह समाज || मा० ॥ ८ ॥ श्रापणे खामी बे कहो केहनी, पहेरीने भूषण नव नव रंग ॥ मा० ॥ कपूरकेरा तूमें करो कोगला, खेलो साहेली केरे सं ग ॥ मा० ॥ ए ॥ हिडो मेलोरी पीहरतणो, म त तुमें श्राणो यतमराम ॥ मा० ॥ निवहो आपण लें करे लेइने, आपणा मंदिर केरुं काम ॥ मा० ॥ १० ॥ यौवनलटको दहाडा चारनो, अवसर केहो धर्मनो आज ॥ मा० ॥ श्रागलें सुख दुःख केणें दी
डुं, केणे वली दीठो धर्मसमाज ॥ मा० ॥ ११ ॥ के मकरी कीजे दोहिलो श्रतमा, पामीने मानवनो अवतार ॥ मा० ॥ मूरख जे कोई कांई लेहेता नथी, ते नव लेवे सरस आहार ॥ मा० ॥ १२ ॥ एहवा सांजलीने पीयुना बोलडा, हारीने बेठी धर्म रतन्न ॥
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