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( ३१ ) ॥ ढाल दशमी ॥
नानो नाहलोरे ॥ ए देशी ॥ पीयर ऋषिदत्ता तणे रे जाइ बे सहदेव, साजन सांजलो रे ॥ ए यांकणी ॥ तस दयिता बे सुंदरी रे, जेहवी सिंधुसुता स्वयमेव ॥१॥ अनुक्रमें गर्भ धरयो तिणे रे, सूचित सुपनाहार ॥ सा० ॥ जेम जेम गर्न वधे जलो रे तेम तेम हर्ष - पार ॥ सा० ॥ २ ॥ यति न इसे प्रति नवि सुवे रे, अति चपल न चाले चाल ॥ सा० ॥ श्रति बरकी बोले नहीं रे, प्रति घणुं न करे ख्याल ॥ सा० ॥ ३ ॥ वात जो मुंजे गर्जिणीरे सुत होय कुब्ज के अंध ॥ ॥ सा० ॥ कफवत जोजने पांकुरोरे, पीतवंत पांशु प्र बंध ॥ सा० ॥ ४ ॥ श्रति लवणें प्रगवल हरे रे, अति शीतलें होय वाय ॥ सा० अति ऊनुं हरे वीर्यने रे, अतिकामें गर्ज हाय ॥ सा० ॥ ५ ॥ दिवसे जो सूवे गर्जिणीरे, निद्रालु होय जात ॥ सा० ॥ नयनांजन श्री ची पडो रे, रुदने गलित गवात ॥ सा० ॥ ३ ॥ . स्नान लेपन दुःशीलियोरे, कुष्टि तेलायाम ॥ सा० ॥ इसवार्थी रसना तालकुं रे, दंतोष्ठादिक श्याम ॥ सा० ॥ ७ ॥ चपलगतें चंचल हुवेरे, शुष्काहारें मूढ ॥ सा० ॥ होवे प्रलापें अतिबके रे, अति निसुये नि
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