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नी रे लाल, कोपनो नहिं संसर्ग ॥ गु० ॥ गुणमणि खाणी गोरडी रे लाल, रूपकला अपवर्ग ॥गु०॥ सांग ॥६॥ विलसे विविध ते दंपती रे लाल, सां सारिक सुखनोग ॥ गु० ॥ रामा राम नीरोगता रे लाल, लहीयें पुण्य संयोग ॥ गुण ॥ सांग ॥ ७॥ बे अंगज नेतेहने रे लाल, वीरसेन सहदेव ॥ गु०॥ दिनकर हिमकर सारिखा रे लाल, जोडे परम गुण मेव ॥ गु० ॥ सां० ॥७॥ज्ञषिदत्ता बेटी सहजयी रे लाल, किन्नरी सुंदरी अणुहार ॥ गु० ॥ बालपणे सघली कला रे लाल, शीखी पूर्वसंस्कार ॥ गु० ॥ सांग ॥ ए॥ ऋषिदत्ता बिहु सहजथीरे लाल, हसेय रमेय अतिप्रेम ॥ गु०॥ सोहे बे मोती वच्चे रे लाल, राती चूनी जेम ॥ गु० ॥ सांग ॥ १० ॥ वीरमती निजपुत्रीने रेलाल, बेसाडे उत्संग ॥ गु० ॥ नित्य श्रानूषण नव नवा रे लाल, स्थापे नेहें अंग ॥ गुण ॥सांग ॥ ११॥ बाबुडां जस थांगणे रे लाल, धूल धूसर न रमंत ॥ गु०॥ कारागार आगार ते रे लाल, जाणीयें अहो पुण्यवंत ॥ गु० ॥ सांग ॥ १५ ॥ हवे अनुक्रमे वधती थई रे लाल, बाला मायारूप ॥ गुण टाले नहिं निज देहथी रे लाल, लजादौम अनूप॥
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