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________________ (१४) जलथी ते मीन वियोगीउ, तेहनी शी गति थाय हे ॥ र ॥ मी० ॥ १६ ॥ कुबेरदत्त हवे बोलशे, वाणी श्रतिहिं रसाल हे ॥र॥ मोहनविजये सोहा मणी, जांखी चोथी ढालरे ॥ र ॥ मी० ॥ १७ ॥ सर्वगाथा. ॥ दोहा॥ कुबेरदत्त हवे मित्रने, जाखे वचन सुरंग ॥ रे जाई ए शो कस्यो, खोटो चित्त उमंग ॥१॥ वृषनसे ननी पुत्रिका, ए ऋषिदत्ता नाम, आज लगण पर णी नथी, सुकलीणी गुणधाम ॥२॥ जैनधर्म सम कित धरो, कन्यानो तात ॥ तेणें करी करतो न थी, मिथ्यात्वी जामात ॥३॥ समकितधारी एह वो, जो वर मलशे कोय ॥ तो ए तस परणावशे, दुधे पयतल धोय ॥४॥ तुमने अमने त्रेवडे, मि थ्यात्वीनुं रूप ॥ तो तस पुत्री उपरे, खोटी न करो चूंप ॥५॥ काम ए मुजथी नवि होये, रे सूरिजन महाराज ॥ लालच खोटी नहि दी, लाजें विणसे काज ॥६॥ ॥ ढाल पांचमी॥ नदी यमुनाके तीर, उडे दोय पंखीयां ॥ ए दे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003683
Book TitleNarmada Sundarino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages198
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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