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( एस ) दुःख केम करे विचारी ॥ प्र० ॥ २ ॥ इण द्वीपें इण वनमें तुं केम बे, कहे मुजने जेहवुं जेम बे ॥ ॥ प्र०॥ पासे नहीं कोइ संग सहेली, किहां गयो वा लम तुक महेली ॥ प्र० ॥ ३ ॥ में तुज उत्तमने परणार, तिहांथी तुं इहां किए विध श्राइ ॥ प्र० ॥ कहे तव नमया तातने वाणी, केती कहुं हुं कर्म क ढाणी ॥ प्र० ॥ ४ ॥ जव हुं परणी पीयु गुण जोती, राखतो तव पी र धोती ॥ प्र० ॥ ते इहां बेह देश गयो वनमें, करुणा किमपि न आणी मनमें ॥ प्र० ॥ ५ ॥ में एम पीयुडानुं कूड न जाएयुं, जोले जा वें साधुं पिछायुं ॥ प्र० ॥ इहां एकलडी दिहडा गालुं, वनफलथी ए पिंने पालुं ॥ प्र० ॥ ६ ॥ तमे शुं करो वली शुं करे पीयुडो, पूर्व कीधां जोगवे जीवडो ॥ प्र० ॥ जालमें जेह लख्युं ते लहीए, अंत र्गतनी केहने कहीए ॥ प्र० ॥ तुमे जाएयुं हशे मा हरी बाला, परण्या पढे सुख लदेशे ते वाला ॥ प्र०॥ पण जो माहरा वखतमें न लिखियो, वांक नहीं में कोश्नो परखियो ॥ प्र० ॥ ८ ॥ तातें निसूषी पुत्री वाणी, सांजलतां तिहां बाती जराणी ॥ प्र० ॥ ऐ ऐ महारी पुत्री एवां, दुःख जोगवे बे वनमांदे
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