________________
(१७) त ॥ मा० ॥ गाम वसे नहिं बांध्ये कणबी, जिहां तिहां एह डे रीत ॥ मा ॥ ए ॥ जो तुमें नहीं था वो तो तुमने, चालवा नहिं दे राय ॥ मा० ॥ नाने महोढे तुमची आगल, शी कहुं वात बनाय ॥माण ॥ १० ॥ शाहें आलोचीने जोयु, एतो गणिका जा ति ॥ मा० ॥ नर सुर असुर ते पार न पामे, जे ए हना श्रवदात ॥ मा० ॥ ११॥ जे को नारी थकी हठ ताणे, ते सम मूढ न कोय ॥मा॥ अपर क्ली तस गायुं गाये, ते पण तेहवो होय ॥ मा० ॥१॥ करीए आपणा मननुं जाएयु, ताणीयें नहिं को साथे ॥ मा ॥ शुं करे कामिनी जो होय आपणुं, मनर्वा श्रापणे हाथे ॥ मा० ॥ १३॥ दासी क्यों जनक नमयानो, लेश तुरत दीनार ॥
माया व्यो दासी साथे सुंदर, गणिकाने आगार ॥ मा०॥ ॥ १४ ॥ गणिकायें श्रासन बेसण दीधुं, घणी करी मनुहार ॥ मा० ॥ नले तुमें स्वामी महेल पधास्या, मोहोटी करी किरतार मा॥१५॥ एवडी शी करी खांचा ताणी, कनडीथी महाराज ॥ मा० ॥ नृपनो हुकुम श्रने हुं चाटुं, तो तुमने शी लाज ॥ मा० ॥ ॥ १६ ॥ साकर घोले मुखथी गणिका, सारया
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainenbrary.org