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( १३७ )
॥ ३ ॥ चौहटे गलीयें चाचरें जी, ते अति करे तो फान || बीहाडी बीहती नयी जी, फरती करती तोफान ॥ गु० ॥ ४ ॥ नयर क इस नारीयें जी, वानर वनह समान ॥ कोइ श्राडो नवि उतरे जी, ए नमो तान || To ||२|| ते माटे तुमे एहने जी, घाली पोतमकार ॥ कोइ परदेशे मूकजो जी, साप परें निरधार || गुं० ॥ ६ ॥ बे परदेशी प्राहु णी जी, थइ वली एहवे वेश ॥ एहनी कुंए करे चाकरी जी, लेइ चालो परदेश | गु० ॥ ७ ॥ कहे जिनदास इसी करी जी, वारु जी महाराज ॥ परवश नमया नारीने जी, प्रवहण ठावुं आज ॥ गु० ॥८॥ करी प्रणाम नररायने जी, ऊठ्यो ते जिनदास ॥ धसमसतो हेजे जरयो जी, आव्यो नर्मदा पास ॥ ॥ एए ॥ ऊव्य पुत्री मुंऊ प्रवहणे जी, आवी बेसो देव ॥ नमया निसुणी दोडती जी, जइ बेठी तत खेव ॥ ० ॥ १० ॥ नवरावी नमया जणी जी, प्रग ट्युं रुप यत् ॥ जेम कचरो धोया पढी जी, ऊलहले जेवुं रत्न ॥ ० ॥ ११ ॥ बेसाडी महोत्सवें जी, पेहराव्या शणगार ॥ मुंहगा जांड तणी परें जी, राखी तेणीवार ॥ १२ ॥ प्रवहण ताम हंकारियांजी,
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