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( ११ ) आहार जो, किहि परे पर करीने नवी लह्यो रे लो ॥ १४ ॥ हांरे ते बेठो रुद्रदत्त एक दिन गोखम कार जो, जूए पुरकेरी शोजा नयणथी रे लो ॥ एतो मोहन विजयें जांखी त्रीजी ढाल जो, स्नेहाली हितकारी मीठी वाणियेंरे लो ॥ १६ ॥ सर्व गाथा ।। ॥ दोहा ॥
दीवी रुत्तदत्तें एहवे, ऋषिदत्ता सोत्साह || स खीयां संगें परवरे, घालिने गले बांहि ॥ १ ॥ बाला सघली विविदपरें, हसती रमती त्यांहि ॥ एक एकने ताली दीये, चाले चढूटा मांहि ॥ २ ॥ जाणे शा वक हंसना मानसरोवर पंति ॥ खेले मुख करी के सरा, तिम बाला शोनंति ॥ ३ ॥ सा देखी परदेशी यो, चिंते चित्तथी एम ॥ खेचरपुत्री नगरमां रमवा आवी केम ॥ ४ ॥ के शुं प्रगटी पन्नगी, पुहवीतल थी एह ॥ एतो कौतुक सारिखुं, दीसे वे ससनेह ॥ ॥ ५ ॥ एट्वे तिहिज अवसरे, मूर्छागत थयो तेह || धडहडीने धरणी ढल्यो, जिम गिरिवर शि खरेह ॥ ६ ॥ मूति देख्यो मित्रने, श्राव्यो कुबेर वरवीरं ॥ कीध सचेतन ततखिऐं ढोली मंद
समीर ॥ ७ ॥
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