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( १९७) कीजें काज मारो ॥रा ॥ कि० ॥ पुत्री कुःख के म सहीयें ॥ रा० ॥ अंतर गतिनी केहने कहीयें ॥रा ॥ १४ ॥ कही जिनदास सनेही ॥ रा॥ श्रमे कारज करशुं एही ॥ रा० ॥ कि०॥ एम शुं वे ण वढावो ॥ रा ॥ फोगट शुं पाड चढावो ॥रा॥ कि० ॥ १५ ॥ जाश्श बब्बर कूलें ॥ रा॥ तिहां रहीश वेष अनुकूलें ॥रा ॥ कि० ॥ उलवी नमया जिहांथी ॥राणा श्रावीश तेहने तिहाथी राम ॥ कि० ॥ १६ ॥ जो नमया खेई आवें ॥रा०॥ तो मित्रनो मुजरो पावें ॥ रा॥ कि० ॥ मोहने मन स्थिर राखी ॥रा० ॥ आडत्रीशमी ढाल ए नांखी ॥रा० ॥ कि० ॥ १७ ॥ सर्व गाथा.
॥दोहा॥ नमया तातें मित्रने, एम कही संदेश ॥ निज प्रवहण सऊ कस्यां, पाम्यो श्राप निवेश ॥१॥ सयल कुटुंब मिल्यां तिहां, नमया जनकै ताम ॥ ब ब्बर कूलतणी कही, वीतक वातो ताम ॥ ५॥ कहे कुटुंब न करो कीसी, फीकर तुमे मनमांद ॥ जलूं हशे मिलशे सुता, करो हेज सोगंहि ॥ ३॥ एह वे जरुयच नयरथी, पोत नरी सुविलास ॥ बब्बर
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