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( १९७) कूल दिशाजणी, चाट्यो ते जिनदास ॥४॥ सायर लहर ऊकोलथी, चाले प्रवण अनुकूल ॥ ते अनु क्रमें श्रावीया, तरतां बब्बर कूल ॥५॥ जिनदास खेई नेटएं, नेव्यो बब्बर राय ॥ पाम्यो मान महो त्सवें, तिम पंचांग पसाय ॥६॥
॥ ढाल उंगणचालीशमी ॥ हरीयामन लाग्यो, ए देशी ॥ नृप आदेशे नग रमां, वणिज करे जिनदास रे॥नेही केम वीसरे ॥ वचन संजाखु मित्रनु, हियडामां सुविलास रे ॥ ने॥ १॥ सहदेवें मूऊने हां, पुत्री जोवा काज रे ने ॥ मूक्यो पोतानो गणी, हेतु जाणी श्राज ॥ ने ॥२॥ में पण मित्रने कडं अडे, आणीश पुत्री तूफरे ॥ ने ॥ ते तोहूं जूली गयो, मांड्यो व्यापार अबऊ रे ॥ ने ॥३॥ जाणतो हशे मित्र माहरो, जे एह मुफ जिनदास रे ॥ ने ॥ बब्बरमांक रतो हशे, मुफ पुत्रीनी तलास रे ॥ ने० ॥४॥ ते मुझने नवि सांजरे, गाजे ने रोहिण मांहिरे, ॥ ने० ॥ ए मुझने जुगतुं नहिं, केलq प्रपंच काई रे॥ ने ॥ ५॥ जिहां मनमेलो आपणो तेहथी केम हुवे कूड, रे ॥ ने ॥ लोक उखाणो एम कहे,
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