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( ११५ )
जिदांकूड तिहां धूड रे ॥ ने० ॥ ६ ॥ उतारे कूप कविचें जो सूरिजन सिरदार रे ॥ ने० ॥ नेह वि लूधां मानवी, ते केम करे नाकार रे || ने० ॥ ७ ॥ नेह महाधन जगतमां, जो करी जाणे कोय रे ॥ ने० || फोगटीयांनो नेहलो, निर्वाहो नवि होय रे || ने० ॥ ८ ॥ हिये जूदा होवे जूदा, तेहथी केम पति प्राय || ने० ॥ साचा स्नेहि सजन तणी, ले बे लोक बलाइ रे || ने० ॥ ए ॥ शापुरुषनी प्रीतडी, जेवी पहाणें रेह रे ॥ ने० ॥ श्रोबा प्रीतडी जे हवी, पावशें जीरण गेहरे ॥ ने० ॥ १० ॥ करिय जसो आपणो, खोले दीधुं शीषरे ॥ ने० ॥ कूड जो करीयें तेहथी, तो केम सदे जगदीशरे ॥ ने० ॥ ११ ॥ नेह त वरों हलधरे, कंधे राख्यो मुकुंद रे ॥ ने० ॥ नाद तो नेहकरी, हरिण पडे बे फं दरे ॥ ने० ॥ १२ ॥ कहेवायें न एकना, फरीदें जे गेह गेह रे, ॥ ने० ॥ ते जूठा माणसथकी, केम निवहाये, नेह रे || ने० ॥ १३ ॥ चंच पडे पीडाय बहु, गयो जो उमड़े नहि मेह रे, ॥ ने० ॥ गंगा जल नवि पीये, जूवो चातकनो नेह रे ॥ ने० ॥ १४ ॥ जो पंकज नवि संपजे, जिहां सरवर अवतंसरे ॥
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