________________
( १६७ )
॥ हो० ॥ यो० ॥ तेथे मुऊने रत्न देखी, कयुं एहवं ॥ हो० ॥ क० ॥ माने माहरो बोल, तो हुं तुजने कहुं ॥ हो० ॥ तो० ॥ १२॥ ए वन गहन मज़ार, एह यह रूयडो ॥ हो० ॥ ए० ॥ सुंदर सलिल गंजीर, पद्म वह जेवडो ॥ हो० ॥ प० ॥ तास तणे उपकंठ, प्रह रयण लेइ नावियें ॥ हो० ॥ २० ॥ अंजलि नरी जरी कोटिश, तेहमें वाविये ॥ हो० ॥ ते० ॥ १३ ॥ एक वरस मर्यादि, लगए तिहां स्थिर करी ॥ हो० ॥ ल० ॥ प्रगटे हथी ताम, रयपनी डुंगरी ॥ हो० ॥ २० ॥ मित्र वचनथी आज, इहां हुं श्रावियो ॥ हो० ॥ ५० ॥ सयल रयणनो पुंज, इहांतरे वावियो ॥ हो० ॥ ८० ॥ १४ ॥ होशे रयणनो शैल, प्रजा कर रूयडो ॥ हो० ॥ प्र० ॥ साचो माहरो मित्र, कहे केम कूडो ॥ हो० ॥ क० ॥ बोल्यो धनदत्त ताम, घणो पुलकित थइ || हो० ॥ घ० ॥ ताही सारथ वाह, करूं केम बुद्धि किहां गइ ॥ हो० ॥ क० ॥ १५ ॥ कहिं प्रहमां रत्न, उग्यां तैं साजल्यां ॥ हो० ॥ उ० ॥ फेरी शी तस यश के, जे गांगें ग यां ॥ हो० ॥ जे० ॥ ते मूल्यो ताहरो मित्र, जे तु ऊ जंजेरी ॥ हो० ॥ जे० ॥ तुं जोलो जे तास, व
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org