________________
( १६४ )
महोदय पण तुरत, श्राव्यो सरोवर पाल ॥ मुकाव्यो बंधन थकी, धनदत्तने सुविशाल ॥ ३ ॥ तिहांथी बिदु नेही निगुण, पाम्या एक कांतार ॥ विण संबल विलखा नमे, धन विण कवण आधार ॥ ४ ॥ वन फुल फल सुवृक्षनां, तेह तणो आहार ॥ धनदत्त तात तो हवे, सांजलजो अधिकार ॥ ५ ॥ प्रथम स्वर्गे थयो देवता, थयुं जे अवधिज्ञान || पूरवजव दीठो तिणे, प्रगट त्रिदश विज्ञान ॥ ६ ॥
॥ ढाल पंचावनमी ॥
थारा मोहला उपर मेह, ऊरूखे वीजली ॥ ए देशी ॥ देखी विलोकें ताम, अवधि ज्ञाने करी ॥ दो लाल ॥ ० ॥ दीगे धनदत्त पुत्र, पूरव जव अनुस री ॥ हो० ॥ पू० ॥ ऐ ऐ माहरुं वेण, निवाही नवि शक्यो । हो० नि० ॥ दानांगणवड वीर थश्ने, नवि टक्यो । हो० ॥ ० ॥ १ ॥ वाडव वय एह, नोला यो बापडो ॥ हो० ॥ जो० ॥ वनचर परें वनमांहि, फरे वे उफाफलो ॥ हो० ॥ फ० ॥ मूढ पराइ बुझें, लहे प बाजना ॥ हो० ॥ ल० ॥ हजीय नयी कर तो ए, हृदय आलोचना ॥ हो० ॥ हृ० ॥ २ ॥ सम जावुं धनदत्त, उपाय कोइक रची ॥ हो० ॥ ० ॥
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org