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________________ ( १६५) ए पण उर्जन संग, रह्यो ने अति पची ॥ हो ॥ र०॥ एम थालोची देव, विमान तजी करी ॥ हो ॥ वि० ॥ आव्यो वनह मकार, प्रबोध रसें नरी हो॥प्र॥३॥ फोरवी शक्ति सुरंग, थयो व्यवहारि यो ॥ हो थ० ॥ दिव्य वसन द्युतिमंत, श्रृंगारें शृं गारि ॥ हो ॥ शृं० ॥ पोठ जरी तिहां रयण, त णि तेणे सांमटी ॥ होत॥ पहेस्यां ढलतां वस्त्र, सुरंग सूधां हठी ॥ हो ॥ सु० ॥ ४॥ रुप अनो पम ताम, इस्यो देवे कस्यो ॥ हो० ॥ ३० ॥ बेगे जह उपकंग, सुजरनीरें नस्यो। हो ॥ सु॥ ह रि नव पद्धव गुब, तणा कुंजांकुरा ॥ हो० ॥ तम् ॥ परिमल मुखरित नूरि, सलूणा मधुकरा होणासन ॥५॥ सुर जोवे धनदत्त, तणी तिहां वाटडी ॥ होण ॥ त० ॥ हजीय न आव्यो मूढ, कुसंगी प्रीतडी ॥ हो ॥ कु० ॥ हू ते धनदत्त, तृषातुर एहवे ॥ हो ॥ तृ॥ दीगे दूरथी तेह, नस्यो उह तेहवे ॥ हो ॥ ज० ॥६॥दोडी आव्यो नीरहेते, ते प्रह ऊपरे॥ हो ॥ ते ॥ जेम कीधुं जलपान, बोलाव्यो ते सुरें ॥ हो० ॥ बो० ॥ रे रे वटाउ पंथ, नुल्यो धावियो ॥ हो ॥॥ दीसे तुं कुलवंत, तो कां Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003683
Book TitleNarmada Sundarino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages198
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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