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________________ (१५४) लव्यु, ते करी कूड प्रपंच ॥ म० ॥ लकी डे पापानु बंधनी, एहमां नहीं खलखंच ॥ म ॥सु ॥१५॥ में लही नवि वावरी, सातें क्षेत्र मकार ॥ म ॥ ते लडी शा कामनी, जो नवि हुवे उपगार ॥म॥ सु॥ १६ ॥ विलसी हिज लबी जली, जाणे बाल गोपाल ॥ म ॥ मोहनविजयें वर्णवी, एकावनमी ढाल ॥ म ॥ सु० ॥ १७ ॥ सर्व गाथा. ॥ दोहा ॥ बोदी जगं मोटकां. में ए मेच्या दाम ॥ पण ए साथे कोश्ने, नवि आया विरजाम ॥१॥ सोवन मुंगरियो करी, लोजीजने अनंत ॥ पण एक कटको हेमनो, वेश न गयो को संत ॥२॥ कूपक जलने जव्य ए, नित नित जेम ववराय ॥ तेम तेम बिहु खूटे नही, शास्त्रे एम कहाय ॥३॥ ते कारण अं गज तमे, धन जे आपणे गेह ॥ सुकृतने वासें सदा, वावरजो धरि नेह ॥ ४ ॥ जो धन वावरशो तमे, तो गति लहेशे जीव ॥ नहिं तो तुमने सांज लो, परितापीश सदैव ॥५॥ धनदत्त नाम कहे पिता, मनमां हु प्रसन्न ॥ धर्म गम तुम मेल, वा वरशुं ए धन्न ॥६॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003683
Book TitleNarmada Sundarino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages198
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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