SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 6
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (४) जेहवु नवनीत, हरिचंड नृप सरसी अप्रतीत ॥१३॥ उनाइंसुकिरण सारिखा, निर्धन धनद जिस्या पार ख्या ॥वांका कमलनालिके तीर, निःस्नेही जिम ज ल ने खीर ॥ १४ ॥ निरुपकार जेम रंजाखंज, अनि य तो जेम देवी नंन ॥ दुःखीयां जेम दो गुंदक दे व, विरुयां कामदेव अनिनेव ॥ १५ ॥ व्यवहारी व्यापारी वसे, धर्म कारजें सवि धस मसे ॥ परउप कारी परम प्रवीण, जिनवर वचन थकी लयलीन ॥१६॥पजणी प्रथम ढाल रस मणी, नर्मदा सुंदरी सुचरित्र तणी ॥ आगल वात रसाल विशेष, कहे हवे मोहन तिहां नरेश ॥ १७ ॥ ॥दोहा॥ ॥प्रतिपाले पुरजन जणी, संप्रति नामें जूप ॥ रह्यो दर्प तजी काम नृप, देखी सुंदर रूप ॥॥हरवा उर्जनमहिघटा, अतुलीबल शार्दूल ॥ परिजन हंस रमाडवा, अभिनव गंगाकूल ॥२॥ अरियण सहिं ता नूप बल, सेवे गिरिदरी नूप ॥ जेम जल बिह तो ग्रीष्मथी, वसे रहे जई कूप ॥३॥ ख्याग त्याग वाचा अचल, न्यायें निपुण नरिंद ॥ धवलीकृत दि ग दश जिणे, करी उदय जस चंद ॥४॥ रति रू Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003683
Book TitleNarmada Sundarino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages198
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy