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(४०)
॥ ढाल तेरमी॥ सनेही वाला लागो नेह न तोडो॥ ए देशी ॥ हवे ते कृषिदत्तानारी, सुणी ते नमया सुंदरी सारी रे॥ सनेही क्यारें मलशे मुज जिनधर्मी ॥ करे या लोच एम गुण वरमी रे॥सा में एहवं एम शुं कीg, जे जैनधर्म तजी दी● रे ॥ स ॥१॥ निज कुलमार गथी ए चूकी, जिननक्ति में करवी मूकी रे॥ स॥ वली नाहने वचने नूली, तजी कल्पमंजरी ग्रही मली रे ॥ सम्॥२॥ वर समकित रतन में खोयु, जुट मिथ्या काच वलोऊं रे ॥ स ॥ तजी अमीय महामद पीवू, वड बेदी श्रोहीपण कीबूं रे ॥ स॥ ॥३॥ उन्मूली सूरतरु ओप्यो, तिण स्थानक विष तरु रोप्यो रे ॥ स ॥ शुनकुंनि कुंजस्थल बेसी, थश् चरणचारी हवे एसी रे ॥ स० ॥ ४ ॥ तजी संगति हंस सुरंग।कस्यो काक कुटिल प्रसंग रे ॥ स० ॥ जयुं मानसरोवर बांकी। जल निबर क्रीडा मांमी रे ॥ स० ॥५॥जलो मोतीनो हार निवारी, गले गुंजमाला दिलधारी रे ॥ स० ॥ सहि मृगमद पुंज विपोही, हवे अविकर निकरें मोही रे ॥ स० ॥ ॥६॥ वर श्रावक कुलमें श्रावी, तो एसी कुबुद्धि
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