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(१२४) तुं माहरूं, जोगव्य सुंदर लोग ॥ सु० ॥ ए टाएं रखे चूकती, करीश सनेही संयोग ॥ सु० मा॥२॥ बनना कुसुमतणीपरें, जोबन एले म खोय ॥ ए श्रव सर कुण निर्गमे, एहवो ने मूरख कोय ॥ सु० ॥ मा० ॥३॥ एक जोबनने प्राणो, केतादिन विलं बाय ॥ सु० ॥ एह कपूरतणी परे, हणमें उमीजाय ॥सु॥ मा० ॥ ४ ॥ चंपक वरणी देहडी, फरी फरी किहां पामीश ॥ सु०॥ ले लाहो जोबनतो, जो बुकि दे जगदीश ॥ सु०॥ मा० ॥५॥ जोबन एद गया पबी, कहे मुजने तुं हुं करीश ॥ सु०॥ तुंतो मांखीनी परें, बेठी हाथ घसीश ॥ सु०॥ मा०॥६॥ चतुराश तुऊ जेहवी, तेहवोज पुरुष अमूल ॥सु॥ गणिकाकुल मारगतणां, कारज कस्य तु कबूल ॥सु॥ मा० ॥ ७॥ आशा अमें तुऊ ऊपरे, राखी ने मेरु समान ॥ सुम् ॥ श्राशाए इंडां अनल तणां, महोटां होवे निदान ॥ सु० ॥ मा० ॥ ॥ श्राशा प्रथम देई करी, जे तो करे निराश ॥ सु० ॥धिक धिक जीवित तेहy, जे नवि पूरे श्राश ॥ सु० ॥ मा० ॥ ॥ ए॥ जे श्रमें लीधी तुऊने, ते तो एहज माट । नाकारो जो कहिश तुं, केम पोसाशे घाट ॥ सु०॥
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