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( SG ) बोली वनमां एम ॥ बाना जे रहो बो बूपी, ढूंढी का ढीश तेम ॥ ४ ॥ एम कही कदलीवन विषे, पेठी नमया नारी ॥ श्रालें कहे में दीवडा, उजा नी र्धार ॥ ५ ॥ कपट न जाएयुं कंतनुं, जोली नमया नाम ॥ केह ए कंतार में, करी गयो बे काम ॥ ५ ॥ ॥ ढाल वीशमी ॥
चंदली या धूतारडा रे ॥ ए देशी ॥ नाहलीया निःस्नेही एम कां बूपी रह्यो रे, नारीयें धीर न धराय रे ॥ रामतनी वेलाए रामत कीजीए रे, विण अवसर केम थाय रे ॥ ना० ॥ १ ॥ अबलानी धीर जनुं शुं जू पारखुं रे, अबला बल कुण मात्र रे ॥ श्रावोने वालमीया तुमची वाटडी रे, जोतां दशे संयात्र रे ॥ ना० ॥ २ ॥ हांसीथी वीखासी प्रीत मजी हूवे रे, मानो प्राण आधार रे || इस वनमें हांसीनी वेला शी अबे रे, हांसी एहवी निवार रे ॥ ना० ॥ ३ ॥ एम करतां तिहां पीयुडो के मही बोल्यो नहींरे, चिंते नमया नारी रे ॥ सहीतो वन मांहें बेह देश गयो रे, ए कपटी जरतार रे ॥ ना०॥४ वालमना पाय जोती सायरने तटें रे, आवी जोवें जामरे ॥ एके कोइ नावडलूं तिहां दीव्रं नहीं रे, य
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