SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 86
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ८४ ) निंदे पुरातन कर्म, दृढ धारे जिनवरधर्म ॥ लहियें जे हथी संपत्ति शर्म ॥ वि० ॥ २८ ॥ ए सत्यावीशमी ढाल, कही मोहन विजयें विशाल ॥ कहुं यागल वा त रसाल ॥ वि० ॥ २५ ॥ सर्व गाथा ॥ ॥ दोहा ॥ चार प्रहर दिन वन जमी, पियु विष वि साहि त्य ॥ महासती दुःख देखीने, प्राथमियो श्रादित्य ॥१॥ थई रजनी उदयो शशी, विहंग करे विश्राम ॥ पसरी दशदिश चंद्रिका, उज्ज्वल शीतल दा म ॥ २ ॥ लता गुठमांदे वसी, नमया सुंदरी ता म ॥ नय नावे नींद्रडी, मध्यरयणी थइ जाम ॥३॥ पियु विरहे तलपे घणुं, जल विण जेवुं मीन ॥ जिम जिम नेही सांजरे, तेम तेम जंपे दीन ॥४॥ रे रे चं द कलंकीया, लाज न आवे तुक || अबला जाणी ए कली, शुं संतापे मुऊ ॥ ५ ॥ जो पीयुमेलो तुं करे, तो तुऊमानुं पाड़ ॥ नित देउं आशीष तुज, करी रा खुं मनवाड ॥ ६ ॥ यावीशमी ॥ ॥ ढाल गोकुल गामने गोंदरे रे, या शी लूंटा लूंट मारा वाहला रे ॥ ए देशी ॥ एकलडी सायरतढें Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003683
Book TitleNarmada Sundarino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages198
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy