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(१००) बहुला हेज नंमार ॥ ५ ॥ नमया मेरामा रहे, ता त करे संजाल ॥ वालमने संजारती, निगमे दिवस विशाल ॥६॥
॥ ढाल तेत्रीशमी ॥ ' सलूणी जोगण रूडी बे ॥ ए देशी ॥ बब्बर कू लमांहिं वसे बे,हारिणी गणिका एक ॥ जेहथी पुरंद र अप्सरा,रही हारी तेहथी विवेक ॥ कर्मनी गति न्यारी बे, अरे हां जूठ विचारी बे ॥१॥ ए श्रां कणी ॥ हारिणी जन मन हारिणी साची, कारिणी मोह प्रपंच ॥ प्रगट कपटनी तेह सारिणी, वधा रिणी प्रीति रोमंच ॥ कम्॥२॥ मधुर वयण वली नयण अनोपम, सयण करे क्षणमांहि ॥ प्रगटी मयणतणी जली, ए तो रयणि उद्योत विनाहि ॥ क० ॥३॥ गणिका रयण तणी कणिका, ला वण्य श्रणिका समान ॥ अमृतनी बे वेलडी, स्नेह यंत्रनी क्षणिका निदान ॥ क० ॥ ४ ॥ नारी नृत्य कारीयो हारी, एहवी अटारी तेह ॥ विषय कटा री विनावरी, शील शूरने ऊंपावे तेह ॥ क० ॥५॥ कामि जनने मनमें सरखी, विषय जननी संसार ॥ एहवी गणिका रूयडी, जस हाये घडी किरतार
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