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________________ ( १०१ ) ॥ क० ॥ ६ ॥ बब्बर रायें तेही दीधी, बत्र धारिनी सेव ॥ धरणीधव माने घणुं, एह विषयी जननी देव ॥ क० ॥ ७ ॥ एक दिन नृप कहे ते म णिकाने, माग्य कांइक मुक पास ॥ तुज गुणें रीज्यो हुं घणो, हुं पूरुं ताहरी आश ॥ ० ॥ ८ ॥ गणिका कहे सुपो नयर नरेश्वर, जो बे करुणा तुक || तो उणती वे केहनी, महाराज मंदिरें मूज ॥ क० ॥ ५ ॥ पण एक मागुं पसाय तुमारो, सारो मोरुं काम ॥ जे सारथवाद प्रापणे, इहां घडवा वे दाम ॥ ० ॥ १० ॥ तेह श्रोत्तर सहस सो वनना, आपे मुऊ दीनार ॥ थावे मंदिर माहरे, सुख जोगवे जेह सार ॥ क० ॥ ११ ॥ ते मुत मंदिर जो नवि श्रावे, तो देवं तस अपमान ॥ जो मुकने माग्युं दीयो, तो देर्ज एह दिवान ॥ क ॥ १२ ॥ नृप कहे जोली ए शुं मागे, जो मागे ते प्रमाण ॥ जे कयुं ते लेजें सुखे, कुंण रंक ने कुंण राण क० ॥ १३ ॥ नृपना वयणथकी ते गणिका, आवे जे सारथवाह ॥ लेवे धन ते पासथी करे, केलि अनंत उत्साह ॥ क० ॥ १४ ॥ हारिणी गणिकायें श्राव्यो जाणी, नर्मदासुंदरी तात ॥ जे किरतारें जला क For Personal and Private Use Only Jain Educationa International www.jainelibrary.org
SR No.003683
Book TitleNarmada Sundarino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages198
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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