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________________ (४३) नमयासुंदरी नाम ॥ तेपण थ नवयौवना, अप्सरा जेम अनिराम ॥ ५ ॥ आपण श्रावक होत तो, तो ते नमया बाल ॥ परणावत पीयु आपणा, पुत्र जणी ततकाल ॥६॥ ॥ ढाल चौदमी॥ ___ गाढा मारुजीहो जनक उडे लाठी चगें, श्रम ली पीवे कलाल रे। गाढामारु अति उन्मादी माह रो साहिबो॥ ए देशी॥ मोरा पियुजी आपण मि थ्यात्वी वाणीया, ए सावय लोक रे॥ मो० ॥ लेख लख्यो ते लाजीयें, एहमां न को संदेह रे॥ मो०॥ ले ॥ मोरा ॥ पुत्रने ते पुत्रीनणी वरवानो नहिं योग रे ॥ मो० ॥१॥ ते नमया आपण घरे, श्रावे तो पूरण नाग्य रे ॥ मो०॥ हुँ पण जाई नवि शकुं, लाधतो कोइ नयी लाग रे॥ मो०॥ ले०॥ मो॥ २॥ तुमने तिहां जो मोकलुं, तो पण सरे नहिं का म रे ॥ मो॥ते तुमने धारे नहीं, जाणो बो गु णधाम रे ॥ मो० ॥ ले० ॥ मो० ॥३॥ तुमें बो मा णस मोटिका, तुमची केही वात रे॥ मो० ॥ तुम गुण जाणी बालिका, किम नवि परणे जात रे॥मो० ॥ ले० ॥ मो० ॥४॥ तुम जेहवा धूरत तणो नाणे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003683
Book TitleNarmada Sundarino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages198
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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