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( ५६ )
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हांजी शी कटकी कीडी परें, हांजी राखो धर्मसने ह ॥ तो० ॥ ६ ॥ हांजी में तुमने वेद्या नहीं, हांजी लागो दृश्ये पीक ॥ तो० ॥ हांजी माहरा अवगुण साहमुं, हांजी न जूर्ज समता नीक | तो० ॥ ७ ॥ हांजी वचन सूणीने एहवां, हांजी बोल्यो मुनिवर तेह || तो० ॥ हांजी रे वत्से रे जावुके, हांजी सां जय वाणी एह ॥ तो० ॥ ८ ॥ हांजी साधु न दीये पीडियो, हांजी कोईने दुःसह शाप ॥ तो० ॥ हांजी तेहना जो मुखथी नीकले, हांजी साधुने नहीं तोय पाप ॥ तो० ॥ ए ॥ हांजी जे में जाख्युं विजो गणी, हांजी तुमने आणी रोष ॥ तो० ॥ हांजी ते तुक पूरव जन्मना, हांजी दीसे सबला दोष ॥ तो० ॥ १० ॥ हांजी ताहरी जावीयें मुऊने, हांजी एह वो बोलाव्यो बोल ॥ तो० ॥ हांजी नहिं तो माहरा वक्रथी, हांजी नीसरे केम तोल ॥ तो० ॥ ११ ॥ हांजी तेमाटे तुं ताहरा, हांजी जोगव्य पूरव कर्म ॥ तो० ॥ हांजी जोगव्य तुं ताहरां कस्यां, हांजी ह एक कुए दी ये शर्म ॥ तो० ॥ १२ ॥ हांजी जोग वीश तुं ताहरूं कयुं, हांजी तेहमां कां दिलगीर ॥ तो० ॥ हांजी जोगवाये कृत्य पारकूं, हांजी तो
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