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________________ ( ६३ ) हे, हे होजो मंगल माल है, ॥ पि० पि० ॥ मोहन विजयें एम है, हे पजणी सलुणी वीशमीढाल हे ॥ पि० ॥ पि० ॥ १५ ॥ सर्वगाथा ॥ ॥ दोहा ॥ शीख लही साजन तणी, परिकर रूडा प्रसंग ॥ चाल्यो जलवट ऊपरे, महेश्वरदत्त सुरंग ॥ १ ॥ यान हकायां जलधिमा, खेंच्या सढ ने दोर ॥ मा र्ग मालमी मालम करे, कूवा थंना जोर ॥ २ ॥ प रव्यां पोत पयोधिमें, गति अति चंचल धीर ॥ ता यो जेम कोदंडथी, बूटे जेहवो तीर ॥ ३ ॥ नीर मय दीसे धरा, ऊपर तो आकाश ॥ गिरिवर तरु वर नगरवर, ते तो प्रवहण वास ॥ ४ ॥ श्रहो ड नर कारणें, जल मध्ये पविसंत ॥ पारत्रिलोकी प तिवसु, पण जय नवि निवत ॥ ५ ॥ पेट भ्रम ज गमां प्रसिद्ध, पेट वडो पतहीन ॥ जल यल गिरि उलंघवे, मुख जंपावे दीन ॥ ६ ॥ ॥ ढाल एकवीशमी ॥ दिल लगा रे बादल वरणी ॥ ए देशी ॥ चायाँ रे वाहण वाये हंकारयां, दोडे जेम मन चाले ॥ वे जोजोरे कौतुक याशे, सांजलतां शुं जाशे ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003683
Book TitleNarmada Sundarino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages198
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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