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________________ (३५) दी सुंदरी देखि, पामी मनमां हर्ष विशेष ॥धसमसी ने ते पेठी रे, कीलवा कारणे रे ॥ ७॥ सजनी सा हेली संगें रे किन्नरी यांटती रे, मांहोमांह जल निर्मल बांटती रे ॥ के ग्रहे करथी कैरव कोष मु ख, द्युतिये देती हो इंछने दोष॥काजलीयाली नेणे रे, नर्मदा हारथी रे ॥७॥ तरती आवडती पडती रे केश्क उठती रे, जाणीए पन्नगी जल अंगूठथी रे ॥ एम तिहां रमती रसनरी नारि ॥ त्रट त्रट बेटे मोतीहार, मोतीयडांने लोग्ने रे सफरी तरव रे रे ॥ ए ॥ रमत रमतां थाकीरे सघली सुंदरी रे, कांठे उनी जेहवी पुरंदरी रे ॥ सुंदरी नीचोवें ति हां वेण, फणिपति जीत्यो जाणीए जेण, रेसमीया ली पहेरी रे बीजी पटोलियो रे ॥१॥ उमके वमके चाली रे प्रणमे नाहने रे, खामी पूख्यो तमे ए उ त्साहने रे ॥ पण वली होंश डे मुफने एक, पूरो तो कहिये हो सुविवेक ॥ तमने जो नवि नाखु रे तो केहने कहुं रे ॥ ११॥ माहरो जोरो चाले रे पीयु तुम पागलें रे, जेणी रीते वा तेम तेमही व ले रे॥ एम कही सुंदरी करी मनोहार ॥ तव तिहां बोल्यो हो जरतार, हियडलानी वातो रे, नारी मुफ Hein Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003683
Book TitleNarmada Sundarino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages198
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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