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( ६० ) ॥ दोहा ॥
एक दिन नमया नारीने, कहे महेश्वरदत्त ॥ पर द्वीपें जाशुं प्रिये, हवे धन देतें ऊत्त ॥ १ ॥ तिहां जइ द्रव्य कमावशुं यावशुं तुरत गेह ॥ साचवजो तुमें इहां रही, जैन धर्म ससनेह ॥ २ ॥ कोइ वातें मनथी तुमें, दुःखी न होजो नारि ॥ मिलशुं तुम ने हे जणी, जो करशे किरतार ॥ ३ ॥ परदेशें ज इए अों, करशुं तिहां व्यापार || तिहांथी बहु धन श्रापशुं, राखशुं इहां व्यवहार ॥ ४ ॥ ते माटे तरु णी तुमें, हसी दीयो आदेश ॥ जेम प्रवहण सज कीजीयें, लेइयें वस्तु अशेष ॥ ५ ॥ कंत वचन नि सुणी करी, बोली नमया बाल || केम परदेशे पधा रशो, हो नाद सुविशाल ॥ ६ ॥
॥ ढाल वीशमी ॥
अम्मां मोरी अम्मां हे, अम्मां मोरी जीलण गश्ती तलाव हे ॥ हे मारुंडे मेंवासी केंरा तापीया हे ॥ ए देशी ॥ पियुडा मोरा पियुडा रे, पीयुडा मो रा जो तुमें चालो परदेश हे ॥ हे मुजने जलावो केने उलवे हे ॥ प० ॥ पि० ॥ काया जिहां तिहां बांह हे, हे तेम प्यारो ने प्यारी जोगवे हे ॥
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