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________________ ( १७३) थी, शिक्षा ग्रहेवी जिहा तिहांथी ॥४॥ दोहा॥ दीक्षा शालि विकाश तम, मल्यो दपकसंयोग ॥ परिग्रह योगक पंखीया, वारीश थई अशोक ॥५॥ हृदयदेश शोजावणुं, कर्म नटावा खेल ॥ जोशुं देखू दान पण, मोदतणा रस मेल ॥६॥ पूरवपुण्य सा दातना, कारी निश्चय व्यवहार ॥ एम करी हिम रुतु निर्गमे,जे सूधा अणगार ॥७॥ पूर्वढाल ॥तु शिशिर शीतल वा वाशे,विणवसने शी गति थाशे॥ कृष्णागर केरी अंगीति, मुनिपासे किहायेदीची ॥७॥ अति उन्हुँ लोजन जमवू,वली श्रासव पानें रम६॥ घणी दीरघ शिशिरनी रजनी, कहो जाशे केम विण सजनी ॥ ए ॥ बरतेल तंबोल विलास, अति शोनि त उचित श्रावास ॥ मुनिमुनाए किहांथी ए तु जने, मुनिमारग पूजे तुं मुऊने ॥ १० ॥ दोहा ॥ नमया कदे झतु शिशिरमें, जे जे विषया शीत ॥ निर्विकार उढीश वसन, जेहनी सबल प्रतीत ॥१९॥ ध्यान तणी अंगीठडी, जोजन तेम संतोष ॥ श्रास वसमता पी जतां, करशंकाया पोष ॥ १२॥ माया रजनी अति विपुल, शुफ वनावें दीण ॥ उदासी न तेलांग तिम, प्रमा तंबोल प्रवीण ॥ १३॥ मंदिर Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003683
Book TitleNarmada Sundarino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages198
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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