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री बांह | कंकण मोल लीजे ॥ ए देशी ॥ तात व चनयी नर्मदा रे, सूरिजन हर्षित थइ मनमांहि ॥ गोरडी गुणवंती, जेहने बे शीयल सन्नाह ॥ गो० ॥ ( जेहनेबे शील सहाय पाठांतरे ) तात संघातें ते संचरी रे ॥ सू० ॥ श्रावी प्रवहण ज्यांहि रे || गोο || जे० ॥ १ ॥ परिहयुं वन जिम तद जवें रे ॥सू०॥ उत्कट स्वर्गावास ॥ गो० ॥ बेटी तेह विछोदमें रे ॥ सू० ॥ तात संघातें उल्लास ॥ गो० ॥ जे० ॥ ॥ २ ॥ जोजन कीधां जावतां रे ॥सू०॥ पत्यो नौ तन वेष ॥ गो० ॥ जो सन्माने बोरडुं रे ॥ सू० ॥ तेहमां केहो विशेष ॥ गो० ॥ जे० ॥ ३ ॥ बेगं स घलां मानवी रे ॥ सू० ॥ प्रवहणमांदे जे वार ॥ गो० ॥ मूक्यो पोत खलासीयें रे ॥ सू० ॥ महो दधि मद्य ते वार ॥ गो० ॥ जे० ॥ ४ ॥ जेहवो वेग उतावलो रे ॥ सू० ॥ त्रूटे तंती तार ॥ गो० ॥ अ धिके वेगे तेहथी रे || सू० ॥ प्रवहण करे रे प्रचार ॥ गो० ॥ जे० ॥ ५ ॥ सिंहलद्वीपें जातां थकां रे ॥ सू० ॥ पवन थयो प्रतिकूल ॥ गो० ॥ पवने प्रेस्यां आवियों रे, अनुक्रमें बब्बर कूल ॥ गो० जे० ॥ ६ ॥ देखी बब्बर कूलने ॥ सू० ॥ बीप्यां प्रवहण तुंग
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