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( ए६ )
तुम माता ॥ प्र० ॥ १६ ॥ नमया तातें जिनस्तुति कीधी, समकित सुखडी रूडी लीधी ॥ प्र० ॥ मोह नविजयें मन स्थिर राखी, ढाल जली एकत्री शमी नांखी ॥ प्र० ॥ १७ ॥ सर्व गाथा ॥ ॥ दोहा ॥
नमयातातें जिनस्तवन, कीधूं रूडी रीत ॥ पुत्रीने एवं कदे, अंतरंग धरि प्रीत ॥ १ ॥ जो तुक पियुडे परहरी, एहवा वनह मजार ॥ तुं ते उपरे प्रीतडी, नाणीश कोईवार ॥ २ ॥ आपने चाहे घणुं, दण क्षण में सो वार ॥ आपण तेहने चाहीयें, मान्य सुता निर्धार ॥ ३ ॥ हाथ नमे जो कोइने, वर्हेत नमे तो कोय ॥ दिलजर दिल बे जिहां तिहां, एम जांखे सहु लोय ॥ ४ ॥ जावा दे जो ते गयो, म करिश फिकर लगार ॥ आव्य संघाते माहरे, बोडी परो कंतार ॥ ५ ॥ सिंहल द्वीप थई पढे, पहोच आपणे गेह ॥ तिहां बेठी तुं पालजे, शील धर्म ससनेह ॥ ६ ॥ जो मेलो लीख्यो हशे, तो तुक मलशे कंत ॥ नहिं तो बेटी मंदिरें, जजजे जिन जगवंत ॥ ७ ॥ ॥ ढाल बत्रीशमी ॥
aa टकारो कंकण रे, नणदल ठणक रह्यो मो
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