SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 29
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (२७) में खरो नेहलो जी ॥ पण हवणां तो दीजें शीख ॥ गु० ॥ सत साखें हो राज पसरजो साहिबाजी, तुमें जीवजो कोडि वरीस ॥ गुण ॥ मू ॥ १३ ॥ बेसी तव सार्थ हो राज, सोंपी निज पुत्रिका जी॥ तस शीखडी दीधी ताम ॥ गु० ॥ शुन शुकने हो राज, तदा संप्रेडिया जी, सहु साजन करे गुणग्राम ॥ गुण ॥ मू ॥ १४ ॥ बेसी रथमें हो राज, रुरुदत्त निजपुर चालियाजी ॥ कही आठमी दो राज, स खूणी सोहामणी जी ॥ ए तो मोहन विजयें ढाल ॥ गु० ॥ मू०॥ १५॥ ॥दोहा॥ ज्ञषिदत्ता रुदत्त बिहु, पंथे वहे सोत्साहि ॥ नुक्रमें पहोतां हेज नरी, रूपचंद्रपुरमांहि ॥ १॥ कुटुंब सयल हर्षित थयुं, रुजदत्त श्राव्यो जेण ॥ साथें शषिदत्ता निरखी,हरख्यो अतिहिं तेण ॥२॥ सासूने पाये पडी, सासू सुकुक्षिणी ताम ॥ वडां वडेरां श्रादिदें, सहुने कीध प्रणाम ॥ ३ ॥ बेठी मंदिर हेज नरी,कीधां नोजन सार॥रुदत्त पण कपटगृह, जम्यो हस्यो तेणीवार ॥४॥ अतिप्रीतें पति प - - Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003683
Book TitleNarmada Sundarino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages198
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy