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(१३३) सा॥ कुण विध राखे नेम ॥ जो ॥३॥श्रणबोली नमया रही। सा॥ नांखे हो मंत्री ताम ॥ रे गुण वंती गोरडी ॥ सा०॥ केम एम बेठी श्राम ॥जो ॥४॥ बेसो एणे सुखासने॥ सा ॥ खोटा म करो विचार ॥ राजाने श्रावी मलो ॥साारहो अह निश दरबार ॥जो॥५॥ अति हठ ताणी मंत्रीए॥सा॥ ततदण नमया नार, बेगडी ऊपाडीने ॥सा॥ सुंदर रथह मकार ॥ जो॥६॥ परवश ए नमया पडी ॥ सा॥ अतिही धरे मन लाज, जाणीयें पंजरमां प ड्यो । सा॥ वनवासी मृगराज ॥जो॥७॥पर म मंत्र मनमें गणे, चौद पूरवनो जे सार ॥ रथ बेठी
आवी सती, एहवे चहटा मकार ॥ जो॥॥ त व तिहां शीलने राखवा ॥सा०॥ नमयायें कीधोवि चार ॥ जो बल शहां को करूं ॥सा॥ तो रहे शील उदार ॥ जोगाए॥ दोहा॥ बुद्धि शरीरां नीपजे, जो उपजे ततकाल ॥ वानर वाघ विलोवियो, एकलडे शीयाल ॥जो॥ १०॥ बुद्धिथकी मंत्रीश्वरे ॥ सा ॥ जोलव्यो यद जमाल ॥ बुछि हरी कपि रोलिया ॥ सा॥ एकलडे शीयाल ॥ जो॥११॥नमया राख ण शीलने ॥ सा॥ मंत्रीने विप्रतार ॥ रथहुंती कूदी
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