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( १३२ )
सुंदर बे एहवी त्रिया, तेडी श्राणो तेह ॥ १ ॥ हा रिणी सरसी जोइ ए, तो ते तेहने वाम ॥ आपण तेहने राखियें, दीजे बत्री काम ||२|| सजिव नृपति यादेशथी, आव्यो गणिका गेह || दीठी नमया सुंदरी, मनोहर गौरी देह ॥ ३ ॥ कहे सचिव न मया जणी, रे सुकुलिपी नार ॥ तूठो परिपूरण खरो, तुम ऊपर किरतार ॥ ४ ॥ बब्बरकूल नरेश नी, कस्य उलग मनरंग ॥ प्राणतणीपरें राखशे, रहेजो सदा अनुषंग ॥ ५ ॥ धण कण कंचन वसन गृह, गणिकाने गेह ॥ ते सवि तुमने सोंपशे, मान्य वचन मुऊ एह ॥ ६ ॥
॥ ढाल चुम्मालीशमी ॥
काली ने पीली वादली ॥ ए देशी ॥ नमया स चिव कह्या थकी साजनां, शोचे चित्त मऊा र ॥ वि षयातुर राजा थयो साजनां, ऐ ऐ सरजणहार ॥ जोजो रे हवे नारी चरित्र, करशे नमया नार ॥१॥ ए यांकणी ॥ नृप पासें लेइ जाशे ॥ सा० ॥ मंत्री वीश वा वीश ॥ राजा मुजने प्रार्थशे ॥ सा० ॥ त्यारें हुं शुं करीश ॥ जो० ॥ २ ॥ श्यो जोरो बलातणो ॥ सा०॥ शील हुं राखीश केम ॥ परवश पडीयां मानवी ॥
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