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________________ (१) तहत्त, धन साधू उचरंत ॥ मुख मीगे धीगे हिये, रुजदत्त कपट वहंत ॥४॥पूढे वली वखाणमां, वारु गहन विचार ॥ माह्यो थई बेसे वचें, जोजो कपट प्राचार ॥ ५॥ दंनी मुख बोले दूरसुं, हिये हलाहल होय ॥ पूबसहित फणिनृत प्रत्ये, शिखी गलंतो जोय ॥६॥ रुदत्त हवे अनुक्रमें, कहे सार्थपने ताम, हवे देजो मुझ आगना, तो पोहो चुं निज गाम ॥७॥ ॥ ढाल सातमी॥ गढ बुंदीरा हाडा वहाला, चलण न देशुं ॥ ए देशी ॥ निसुणी सार्थेश रुजदत्त मुख वाणी, चा लशे सयण सयाणो हो ॥ रूपचंजपुरवासी हो मि वजी माहरा, चलण न देशं ॥ ए आंकणी ॥ एह वो सनेही वाहलो किहांथकी मलशे, धर्मी सुनग सपराणो हो ॥ रू० ॥१॥ एतो सनेही प्यारो मु ऊघरे श्राव्यो, जेम आलसुघर गंगा हो ॥ रू० ॥ बीजा घणाए मल निगुण नहेजा, कुटिल उलंक अनंगा हो ॥ रू० ॥२॥ मिथ्यामतने एणे सुहणे न दीगे, केवली वयणे रातो हो ॥ रू० ॥ एहवो विचारी जगमांहि न कोई, केणे मिषे रहे ए जा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003683
Book TitleNarmada Sundarino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages198
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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