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________________ ( 229 ) रे ॥ मु०॥ नाद वियोगे हियडामांदि, खटके खरी खरेरी रे ॥ मु०॥ ४ ॥ ए गणिकाने वशे हुं यावी, निसरी न शकुं अवेरी रे ॥ मु०॥ जेहथी शील रतन रहे माहरु, केही बुद्धि अनेरी रे ॥ मु० ॥ ५ ॥ जिहां गये रहे शील सलूएं, कोण देखाडे ते शेरी रे ॥ मु० ॥ दैव श्रटारो शीयल उदालण, गणिका किदांथी उदेरी रे ॥ मु० ॥ ६ ॥ खारो जंको जीम जवो दधि, शीलता मीठी वेरी रे ॥ मु०॥ नमया विलपे जेम मृग विलपे, देखी दूर आहेरी रे ॥ मु० ॥ ७ ॥ ए तो माहरुं कथं न माने, मांगी बेठी बखेडी रे ॥ मु० ॥ जे कोइ नारी धूतारी जगमां, तेहमां एह वडेरी रे ॥ मु० ॥ ॥ ८ ॥ जांखे नमया सांजल गणिका, मुऊथी रहेजे परेरी रे ॥ तहारुं कीधुं तुहीज पामीश, श्रावीश जो तुं खारेरीरे ॥ ए ॥ शीलरतन राखवा कारण, नाखी तास नीबेरी रे ॥ मु०॥ निसूणी गणिका घणुंए कूदी, की जेवी वढेरी रे ॥ मु० ॥ १० ॥ बोली गणिका रे रे बाला, तुं शुं श्रमथी जलेरी रे ॥ मु० ॥ तुं जो बननुं फल शुं जाणे, वे तुं हजी अलेरी रे ॥ मु०॥ ॥ ११ ॥ फूल गुलाबनी शी गति जाणे, दीवी जेणे कणेरी ॥ मु० ॥ दोहिती यावे तनुचतुराइ, मूढमति Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003683
Book TitleNarmada Sundarino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages198
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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