Book Title: Marwad Ka Itihas Part 02
Author(s): Vishweshwarnath Reu
Publisher: Archeaological Department Jodhpur
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इतिहार मारवाड़ का इतिहास द्वितीय भाग महाराजा मानसिंहजी से लेकर वि०सं० १६६५ (३० स० १६३८) तक। 142 Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रा मारवाड़ का इतिहास द्वितीय भाग [महाराजा मानसिंहजी से लेकर वि० सं० १६१५ (ई०म० ११३८) तक] Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ THE PALACE, JODHPUR, RAJPUTANA. SPECIAL SANAD. It is a source of genuine satisfaction to us to express our appreciation of the loyal, honest and scholarly services put in by PANDIT BISHESHWAR NATH REU over a period of 30 years. 2. Under Mr. Reu's vigilant care, the Museum, the Public Library and the Archael ogical Department have achieved great success. 3. Besides this, Mr. Reu has successfully completed the very difficult task of completing an impartial STATE HISTORY in a scholarly manner. This history had shown no sign of progress during the last three generations and Mr. Reu's work has been well commended by Scholars in India and abroad, for the amount of patient care and diligent research devoted to it. 4. This Special Sanad for his commendable merits is, therefore, given to Pandit Reu. 22 Cunard Leis tunaw MAHARAJA. Brightland's Hotel, Dated, Camp Murree, the 23rd July 1940.. जोधपुर-महाराजा साहब द्वारा इस इतिहास के लेखक को प्रदान की हुई खास सनद । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास द्वितीय भाग लेखक पण्डित विश्वेश्वरनाथ रेउ साहित्याचार्य सुपरिण्टैण्डैण्ट-आर्कियॉलॉजीकल डिपार्टमैपट और सुमेर पब्लिक लाइब्रेरी तथा भूतपूर्व प्रोफेसर-जसवन्त कॉलिज जोधपुर. [कॉरस्पॉण्डिा मैम्बर-इण्डियन हिस्टोरिकल रैकई कमीशन] जोधपुर प्राकियॉलॉजीकल डिपार्टमैण्ट १६४० जोधपुर गवर्नमैक्ट प्रेस में मुद्रित. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूल्य ५) सजिल्द ४॥ विना जिल्द Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राक्-कथन । पहले मारवाड़ के इस इतिहास को एक भाग में ही प्रकाशित करने का विचार था, परन्तु बाद में अनेक उपयोगी परिशिष्टों के कारण इसकी पृष्ठ-संख्या बढ़ जाने से इसे दो भागों में विभक्त करदेना उचित समझा गया । इसी से इसके प्रथम भाग में प्रारम्भ से लेकर महाराजा भीमसिंहजी तक का और द्वितीय भाग में महाराजा मानसिंहजी से लेकर वि० सं० १९९५ ( ई० स० ११३८ ) तक का इतिहास दिया गया है । साथ ही इस द्वितीय भाग में अनेक उपयोगी परिशिष्टों और समग्र इतिहास की वर्णानुक्रमणिका का समावेश भी कर दिया गया है । इसके अलावा अनुक्रमणिका में आए हुए समान नामों में मेद प्रदर्शित करने के लिये वहीं पर उनका यथा-सम्भव संक्षिप्त परिचय भी जोड़ दिया गया है । यहां पर यह प्रकट करदेना भी आवश्यक प्रतीत होता है कि इस इतिहास की उपयोगिता के विषय में देशी और विदेशी विद्वानों ने जो सुविचार प्रकट किए हैं, उनके लिये लेखक उन सब का अत्यन्त आभारी है और इसी से उनके प्रति अपनी हार्दिक कृतज्ञता प्रकट करदेना अपना कर्तव्य समझता है । ____पाठकों को यह सूचित करदेना भी अनुचित न होगा कि लेखक का लिखा राष्ट्रकूटों ( राठोड़ों) का इतिहास, जिसका अंगरेजी और हिन्दी संस्करण क्रमशः ई० स० १९३३ और १९३४ में प्रकाशित हो चुका है और जिसमें कनौज-नरेश महाराजा जयच्चन्द्र तक का इतिहाम दिया गया है, एक प्रकार से हिन्दू कालीन राष्ट्रकूटों का इतिहास है । साथ ही उसमें राष्ट्रकूटों और गाहड़वालों के वंश पर भी पूरी तौर से विचार किया गया है । ई० स० १९३८ में प्रकाशित इस मारवाड़ के इतिहास के प्रथम भाग में मुस्लिम और मरहटा-कालीन मारवाड़-नरेशों का और इसके इस द्वितीय भाग में ब्रिटिश कालीन मारवाड़-नरेशों का इतिहास प्रकाशित हुआ है । ___ इस कथन की समाप्ति के साथ ही यह निवेदन करना भी अप्रासङ्गिक न होगा कि इस इतिहास में 'स्खलनं हि मनुष्यधर्मः' इस कहावत के अनुसार रही त्रुटियों के लिये विद्वान् लोग क्षमाप्रदान की उदारता प्रदर्शित करेंगे और यदि उनकी सूचना लेखक को देने की कृपा करेंगे तो अगले संस्करण के संशोधन में उससे विशेष सहायता मिल सकेगी। आर्कियॉलॉजीकल डिपार्टमैंट - जोधपुर विश्वेश्वरनाथ रेउ आषाढ़ सुदि १४ वि० सं० १९९६. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जोधपुर-महाराजा साहब की प्रदान की हुई खास सनद । राजमहल जोधपुर, ( राजपूताना ). खास सनद । पण्डित विश्वेश्वरनाथ रेउ ने जो ३० वर्ष से भी अधिक स्वामिभक्ति, ईमानदारी और विद्वत्ता से पूर्ण सेवा की है, उसके लिए अपनी प्रसन्नता प्रकट करना हमारे लिए सच्ची खुशी का कारण है । २. श्रीयुत रेउ की सावधानतापूर्ण देख-रेख में अजायबघर, सार्वजनिक-पुस्तकालय और पुरातत्व-विभाग ने बड़ी उन्नति की है। ३. इसके अतिरिक्त श्रीयुत रेठ ने पक्षपातरहित सरकारी इतिहास के अत्यन्त कठिन कार्य को भी विद्वत्तापूर्ण रीति से समाप्त करने में सफलता प्राप्त की है । इस इतिहास के कार्य में गत तीन पीढीयों से कुछ भी प्रगति के चिह्न दिखाई नहीं देते थे, परन्तु इस कार्य में प्रदर्शित अविचल सावधानता और श्रमसाध्य खोज के लिए भारत तथा बाहर के विद्वानों ने श्रीयुत रेउ की बहुत प्रशंसा की है। ४. इसलिए यह खास सनद पण्डित रेउ को उनकी प्रशंसनीय योग्यताओं के लिए प्रदान की जाती है। ब्राइटलैंड्स होटल, कैंप मरी, २३ जुलाई १९४०. उमेदसिंह, महाराजा. १. इस 'ख़ास सनद' का चित्र इस भाग के आदि में महाराजा साहब के चित्र के सामने लगा है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जोधपुर-राज्य के पब्लिक वर्क्स मंत्री का वक्तव्य मारवाड़ के इतिहास के इस दूसरे भाग को प्रकाशित करने के साथ ही इसके लेखक पण्डित विश्वेश्वरनाथ रेउ अपने तेरह वर्षों के अथक परिश्रम को पूरा कर रहे हैं । वे अपनी सफलता के लिये बधाई के पात्र हैं—यह बधाई केवल इसीलिये नहीं है कि उन्होंने बड़ी विद्वत्ता के साथ राठोड़ों के इतिहास से सम्बन्ध रखनेवाले ऐतिहासिक तथ्यों को सिद्ध करने में परिश्रम उठाया है, किन्तु भारतीय और बाहर के अनुसन्धान करनेवाले विद्वानों और उनकी सभाओं ने उनके कार्य की जो समानरूप से प्रशंसा की है उसके लिये है। इन दीर्घकालीन ऐतिहासिक घटनाओं को इतने भिन्न-भिन्न स्थानों से लेकर क्रमबद्ध करना कोई साधारण सफलता का कार्य नहीं है । परन्तु पण्डित विश्वेश्वरनाथ इससे भी आगे बढ़ गए हैं और उन्होंने जहां-जहां से ये घटनाएं ली हैं, उन स्थानों के उल्लेख करने का भी प्रयत्न किया है। आम तौर पर ऐतिहासिक इस बात का अनुभव करते हैं कि यह कार्य अन्धकार में छिपे समय पर प्रकाश डालने का सफल उद्योग है और यह बात उनकी दी हुई सम्मतियों से सिद्ध है । वे लोग उपस्थित की हुई ऐतिहासिक बातों को और उनके लिये दिए गए प्रमाणों को भी स्वीकार करते हैं, यह भी पहले के समान ही प्रकट है । पण्डित विश्वेश्वरनाथ ने इस कार्य को, जो उनके हाथ में लेने के पहले ३६ वष से यों ही पड़ा था, पूरा कर साधारणतया इतिहास को और खासकर मारवाड़ को बड़ा आभारी किया है। एस. जी. एडगर, आइ. एस. ई., पब्लिक वर्क्स मिनिस्टर, गवर्नमैन्ट ऑफ जोधपुर. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ग ) (1) With the publication of the second volume of the History of Marwar, its author, Pandit Bisheshwar Nath Reu brings to a close the assiduous work of some 13 years. He is to be congratulated on his achievement-not only for the pains he has taken in establishing the historical facts relating to Rathor History in a most scholarly manner, but on the general appreciation of the work as voiced by research scholars and learned societies in and out of India. so many To marshal historical facts over such an extended period from diverse sources is no small achievement but Pandit Bisheshwar Nath has gone further than this in, that he has endeavoured to quote the source of the information presented. That historians generally realise that the work is an attempt to throw light on an obscure period is obvious from the opinions they have expressed. That they accept the marshalling of the facts, and the evidence laid is however equally obvious. for Pandit Bisheshwar Nath in completing a work which hung fire some 39 years prior to the commencement of his labours, has placed Marwar in particular and history in general under a debt of gratitude. Dated 15th February, 1940. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat S. G. EDGAR, 1. S. E., Public Works Minister, Government of Jodhpur. Jodhpur. www.umaragyanbhandar.com Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ग A) जोधपुर-राज्य के मिनिस्टर-इन-वेटिंग का वक्तव्य मारवाड़ के इतिहास का द्वितीय भाग मेरे सामने है । यह अपने ढंग का एक अनुपम ग्रन्थ है, और ग्रन्थकारद्वारा उस कठिन विषय को, जो कि ऐतिहासिक अन्धकार में ढका पड़ा था, सावधानी और विद्वत्ता के साथ उपयोग में लाने का पर्याप्त प्रमाण रखता है। श्रीयुत रेउ अपने १३ वर्षों के अनवरत अध्ययन और खोज के बाद एक शक्तिशाली जाति के इतिहास का, विस्मृति के गर्त से, उद्धार करने में समर्थ हुए हैं, यह कोई साधारण सफलता नहीं है, और विशेषतया उस अवस्था में, जिसमें पण्डितजी से पहले के अधिकारियों ने ५० वर्ष मे भी अधिक लंबे समय से इसे अधूरा ही छोड़ रक्खा था और राज्य भी इसके लिये * हजारों की संख्या में एक बहुत बड़ी रकम खर्च कर चुका था। इस ( ऐतिहासिक ) विषय में मुझ से अधिक योग्यता रखनेवाले विद्वानों ने इस ग्रन्थ का अच्छा स्वागत किया है । मैं पण्डित विश्वेश्वरनाथ रेउ को उनके ग्रन्थ की सफलता के लिये बधाई देता हूं और उनकी विद्वत्तापूर्ण खोज और पक्षपात-रहित निर्णय करने की चित्तवृत्ति के लिये, जो उनके ग्रन्थ में स्थान स्थान पर झलकती है, उनकी प्रशंसा करता हूं। मैं आशा करता हूं कि राठोड़ों के गौरवमय भूतकाल का यह इतिहास मारवाड़वासियों को आगे भी गौरवमय भविष्य बनाने की प्रेरणा करेगा और इसके साथ ही श्रीयुत रेउ का नाम भी जीवित रहेगा। नरपतसिंघ, (राअोबहादुर रानोराजा) २६ जून, १९४०. मिनिस्टर-इन-वेटिंग, गवर्नमैंट ऑफ जोधपुर. (१)No.c/204 Dated 29th June, 1940. The Second Volume of the History of Marwar is before me. It is a unique work and bears ample evidence of a careful and critical treatment Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ () by its author of a difficult subject which was shrouded in historical obscurity. That Mr. Reu after 13 years of hard study and research has been able to reclaim the history of a mighty people from the abyss of oblivion is no mean achievement specially when the work was left incomplete by Panditji's predecessors for a long period of over 50 years and the State had undergone huge expenditure over it in thousands. * Persons more qualihed on the subject than I am have received the book well. I congratulate Pandit Bisheshwar Nath Reu on the success of his book and compliment him on his spirit of critical inquiry and unbiased judgment which pervades his work. Let me hope this account of the glorious past of the Rathors will inspire Marwaris to build up yet a glorious future with which will go down the name of Mr. Reu. 26th June, 1940. NARPAT SINGH Minister-in-Waiting, Government of Jodhpur. * लाखों-Lacs. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विषय-सूची। पृष्ठ ४०१ ४४२ : : : : : ४६३ ५१८ : ५३३ :: ५८८ : ५६५ : ६०० ३२ महाराजा मानसिंहजी ३३ महाराजा तखतसिंहजी ३४ महाराजा जसवन्तसिंहजी ( द्वितीय ) ३५ महाराजा सरदारसिंहजी ३६ महाराजा सुमेरसिंहजी (परिशिष्ट-१) ३७ राजराजेश्वर महाराजाधिराज सर उम्मैदसिंहजी बहादुर (परिशिष्ट-२) महाराजा उम्मेदसिंहजी साहब की पूर्वी एफ्रिका-यात्राप्रथम यात्रा .. .. द्वितीय यात्रा (परिशिष्ट-३) यूरोपीय महासमर और जोधपुर का सरदार रिसाला .. (परिशिष्ट-४) मारवाड़-नरेशों के दान दिए हुए कुछ अन्य गांवों का विवरण (परिशिष्ट-५) (मारवाड़-राज्य के कुछ मुख्य–मुख्य महकमों का हाल ) प्रधान मन्त्री (चीफ मिनिस्टर ) के अधीन महकमे: महकमा खास पुलिस का महकमा जोधपुर-रेल्वे .. मुख्य जेल ( Central Jail ) .. स्टेट होटल दस्तरी का महकमा अर्थ-सचिव ( फ़ाइनेन्स मिनिस्टर ) के अधीन महकमे: ख़ज़ाने का महकमा Herthafafa ( Cooperative Dept. ) गृह-सचिव ( होम मिनिस्टर ) के अधीन महकमे: सायर ( Customs ) का महकमा चिकित्सा ( Medical ) विभाग जंगलात का महकमा राजकीय छापाखाना जवाहर-खाना और टकसाल ६०२ :: :: :: :: :: :: ६०४ :: :: ६०५ ६०६ :: :: : :: : : Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६१. रजिस्ट्रेशन . पशु-वर्धन ( Animal Husbandry ) विभाग मारवाड़-सोल्जर्स बोर्ड वाल्टर राजपूत-हितकारिणी सभा जनतोपयोगी कार्य सचिव (पब्लिक वर्क्स मिनिस्टर ) के अधीन महकमे: पब्लिक वर्क्स का महकमा ( P.W. D.) ... बिजलीघर प्राकियॉलॉजीकल डिपार्टमैंट ( पुरातत्त्व-विभाग) और सुमेर पब्लिक लाइब्रेरी खानों और कला-कौशल का महकमा ( Mines & Industries Dept.) आय-सचिव (रिवेन्यू मिनिस्टर ) के अधीन महकमे: ६१६ हवाला ६१७ ६१८ ट्रिब्यूट ( Tribute ) का महकमा आबकारी ( Excise ) का महकमा कोर्ट ऑक वा और हैसियत .. सहयोग-समिति ( Cooperative Dept.) न्याय-सचिव (जुडीशल मिनिस्टर ) के अधीन महकमे: :: :: : ६१८ ६१६ ६१६ चीफ कोर्ट .. (न्याय-विभाग) sta . ६२. ६२० ६२. इजलास-ए-खास डिस्ट्रिक्ट और सैशन कोर्ट रिवेन्यू कोर्ट ऑनररी कोर्ट्स स्मॉल कॉज़ कोर्ट जुडीशल सुपरिन्टेन्डेन्ट और हाकिम अदालतों के अधिकार कानून ६२१ : :: : : : :: :: :: :: बार ६२३ ६२३ ६२३ लॉ-रिपोर्ट्स जागीर को अदालतें शिक्षा-विभाग म्यूनिसिपल कमेटी सेना-मंत्री (मिलिटरी सैक्रेटरी) के अधीन महकमेःसेना-विभाग .. . (परिशिष्ट-६ ) जागीरदारों पर लगनेवाले राजकीय करः रेख हुक्मनामा चाकरी : ६२५ : ६२८ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ U० : :: .. सख :: :: : : (परिशिष्ट-७) मारवाड़-दरबार द्वारा दी जानेवाली ताज़ीमों और सरोपावों का विवरण (परिशिष्ट-८) मारवाड़ के सिके: इतिहास विशेष बातें ६३८ मारवाड़ की टकसालों और उनके बने सिकों का विवरण ६४० सुवर्ण के सिक्के ( मोहरें) चांदी के सिक्के ( रुपये) .. तांबे के सिक्के (पैसे) मारवाड़-राज्य के सिक्कों पर मिलनेवाले कुछ लेख: सुवर्ण के सिक्कों पर के कुछ लेख चांदी के सिकों पर के कुछ लेख ६४५ तांबे के सिक्कों पर के कुछ लेख .. कुचामन का इकतीसंदा विशेष वक्तव्य ६४८ (परिशिष्ट-६) राव अमरसिंहजी . ६४६ (परिशिष्ट-१०) मारवाड़-नरेशों की तरफ से भिन्न-भिन्न युद्धों में लड़कर मारे गए कुछ वीरों के नाम ६५७ (परिशिष्ट-११) राठोड़-नरेशों के वंशवृक्षःमारवाड़ के राठोड़-नरेशों का संक्षिप्त वंशवक्ष ६७८ बीकानेर के राठोड़-नरेशों का संक्षिप्त वंशवृक्ष ६८२ माबुबा के राठोड़-नरेशों का संक्षिप्त वंशवृक्ष अमझेरा के राठोड़-नरेशों का संक्षिप्त वंशवृक्ष ६८५ किशनगढ़ के राठोड़-नरेशों का संक्षिप्त वंशवृक्ष ६८६ रतलाम के राठोड़-नरेशों का संक्षिप्त वंशवृक्ष ६८७ सीतामऊ के राठोड़-नरेशों का संक्षिप्त वंशवृक्ष ६८८ सैलाना के राठोड़-नरेशों का संक्षिप्त वंशवृक्ष ६८९ ईडर के पहले राठोड़-नरेशों का संक्षिप्त वंशवृक्ष ईडर के दूसरे राठोड़-नरेशों का संक्षिप्त वंशवृक्ष ૬ ૨૨ वर्णानुक्रमणिका ६६३ शुद्धिपत्र नं. १ शुद्धिपत्र नं. २ मारवाड़ के राठोड़-नरेशों का विस्तृत वंशवृक्ष मारवाड़-राज्य का नक्शा : :: :: : : : : : : : : : : Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चित्र-सूची। पृष्ठ के सामने प्रारम्भ में ४४३ ४६४ ८८ : : : : : : : : : : : ४६० राजराजेश्वर महाराजाधिराज सर उम्मेदसिंहजी बहादुर महाराजा मानसिंहजी महाराजा तखतसिंहजी महाराजा जसवन्तसिंहजी (द्वितीय) ( महाराजा ) सर प्रतापसिंहजी जुबिली कोर्ट महाराजा सरदारसिंहजी .. महाराजा जसवन्तसिंहजी (द्वितीय ) का स्मारक भवन महाराजा सुमेरसिंहजी .. महाराज-कुमार हनवन्तसिंहजी महाराज अजितसिंहजी महाराज-कुमार हनवन्तसिंहजी महाराज-कुमार हिम्मतसिंहजी महाराज-कुमार हरिसिंहजी महाराज-कुमार देवीसिंहजी महाराज-कुमार दिलीपसिंहजी राव अमरसिंहजी .. पण्डित विश्वेश्वरनाथ रेउ ( इतिहास लेखक ) ५१८ ५४६ ५५४ : - -- : ५७४ -- - : : : Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२. महाराजा मानसिंहजी यह महाराजा विजयसिंहजी के पौत्र और गुमानसिंहजी के पुत्र थे । इनका जन्म वि० सं० १८३६ की माघ सुदि ११ (ई० स० १७८३ की १३ फरवरी ) को हुआ था। पहले लिखा जा चुका है कि वि० सं० १८५० के आषाढ़ ( ई० स० १७६३ की जुलाई ) में जिस समय इनके चचेरे भाई भीमसिंहजी गद्दी पर बैठे, उस समय यह जोधपुर से लौटकर, इधर-उधर के गाँवों को लूटते हुए, जालोर चले गए और वहां के दुर्ग का आश्रय लेकर महाराजा भीमसिंहजी की भेजी हुई सेना का मुकाबला करने लगे। वि० सं० १८६० के कार्तिक ( ई० स० १८०३ के अक्टोबर ) में महाराजा भीमसिंहजी का स्वर्गवास हो गया । उनके पीछे पुत्र न होने के कारण उनकी जालोर की सेना के सेनापतियों-भंडारी गंगाराम और सिंघी इन्द्रराज ने युद्ध बंद कर मानसिंहजी से जोधपुर चलने और वंशक्रमागत राज्य का अधिकार ग्रहण करने की प्रार्थना की। इसीके अनुसार जिस समय यह जालोर से रवाना होकर सालावास पहुँचे, १. महाराजा विजयसिंहजी की पासवान (उपपत्नी)-गुलाबराय ने अपने पुत्र तेजसिंह के मर जाने पर मानसिंहजी को अपने पास रखलिया था। परन्तु महाराजा विजयसिंहजी के मारवाड़ के सरदारों को समझाने के लिये जाने पर जब, वि० सं० १८४६ के वैशाख ( ई० स० १७६२ के अप्रेल) में, उनके पौत्र (फतेसिंहजी के दत्तक पुत्र ) भीमसिंहजी ने जोधपुर के किले पर अधिकार करलिया, तब शेरसिंह (जिसको पासवान के कहने से महाराज अपना उत्तराधिकारी बनाना चाहते थे) और मानसिंहजी जालोर के किले में भेज दिए गए। अगले वर्ष शेरसिंह तो लौट कर जोधपुर चला आया, परन्तु मानसिंहजी ने अपना निवास वहीं रक्खा । कुछ दिन बाद महाराजा विजयसिंहजी ने वह प्रान्त इन्हें जागीर में दे दिया। इसके बाद जब महाराजा भीमसिंहजी जोधपुर की गद्दी पर बैठे, तब उन्होंने मानसिंहजी को पकड़ने के लिये एक सेना भेज दी । इसी के घिराव से तंग आकर वि० सं० १८६० की वैशाख सुदि १ (ई० सन् १८०३ की २२ अप्रेल) को ४०१ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास उस समय मारवाड़ के बहुत से सरदार आकर इनकी सेवामें उपस्थित हो गए और जब वहां पर उनकी तरफ़ से नज़र निछावर हो गई, तब मानसिंहजी की तरफ़ से भी उन सब का यथोचित आदर-सत्कार किया गया । मँगसिर वदि ७ ( ५ नवंबर ) को यह जोधपुर के किले में प्रविष्ट हुए । इस पर पौकरन-ठाकुर सवाईसिंह ने निवेदन किया कि स्वर्गवासी महाराजा भीमसिंहजी की एक रानी ( देरावरजी ) गर्भवती है । यदि उसके गर्भ से पुत्र उत्पन्न हुआ तो उसके लिये आप क्या प्रबंध करेंगे । यह सुन मानसिंहजी ने उत्तर दिया कि ऐसा होने पर मारवाड़ का आधा राज्य उसे देदिया जायगा और हम जालोर लौट जायँगे । परंतु इसके लिये बालक का जन्म होने तक भीमसिंहजी की उस रानी को किले में रहना होगा । यह शर्त सवाईसिंह ने न मानी । इसीसे मानसिंहजी उससे नाराज हो गए। .. इन दिनों मुग़लों और मरहटों का प्रभाव नष्ट हो जाने से अंगरेज़ों की 'ईस्ट इण्डिया कंपनी' बहुत कुछ ज़ोर पकड़ चुकी थी, परन्तु फिर भी अंगरेजों और मरहटों के बीच युद्ध हो रहा था । इससे वि० सं० १८६० की पौष सुदि । मानसिंहजी ने उस सेना के अधिकारियों से कहला दिया कि हमारा विचार एक मास बाद, कार्तिक वदि ३० (दीपोत्सव) (१५ अक्टोबर ) को, जालोर का किला खाली कर देने का है, इसलिये तब तक युद्ध बंद रक्खा जाय । यह बात सेनापति सिंघी इंद्रराज ने मानली । परन्तु अन्त में प्रायस देवनाथ के कहने से मानसिंहजी ने कुछ दिन और भी किले में रहना स्थिर किया । इसी बीच, कार्तिक सुदि ४ (१६ अक्टोबर) को, महाराजा भीमसिंहजी का स्वर्गवास हो गया। इस पर भीमसिंहजी के धायभाई शंभुदान, भंडारी शिवचंद, और मुहणोत ज्ञानमल आदि ने सिंघी इंद्रराज को लिखा कि एक तो स्वर्गवासी महाराज की एक रानी गर्भवती है, दूसरा पौकरन-ठाकुर सवाईसिंह अब तक अपनी जागीर से लौट कर नहीं पाया है, इसलिये किले का घिराव न उठाया जाय । परन्तु सिंघी इंद्रराज और भंडारी गंगाराम ने इस पर कुछ ध्यान नहीं दिया और तत्काल युद्ध बंदकर मानसिंहजी से जोधपुर चलने की प्रार्थना की । इन्होंने भी उनकी प्रार्थना स्वीकार कर उनकी तसल्ली की और उन सरदारों के नाम भी, जो महाराजा भीमसिंहजी द्वारा मारवाड़ से निकाल दिए जाने से कोटे में थे, खास रुके भेज कर उन्हें लौट आने का लिखा। १. मानसिंहजी के जोधपुर पहुँचने के पूर्व ही पौकरन-ठाकुर की सलाह से स्वर्गवासी महाराजा भीमसिंहजी की रानियां (देरावरजी और सुंवरजी) (गुसांईजी की जागीर के गांव) चौपासनी चली गई थी। इसकी खबर मिलने पर मानसिंहजी ने सवाईसिंह को समझा कर उन्हें वापस बुलवा लिया । परन्तु यहां आने पर सवाईसिंह ने उनका निवास किले के बजाय नगर के बीच तलहटी के महलों में करवा दिया । ४०२ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाराजा मानसिंहजी ( ई० स० १८०३ की २२ दिसम्बर ) को मानसिंहजी के और 'ईस्ट इण्डिया कंपनी' के बीच एक सन्धि हुई । उसकी मुख्य शर्ते इस प्रकार थीं':१. इंगलिश-कंपनी के और महाराजा मानसिंहजी व उनके वंशजों के बीच स्थायी मित्रता की जाती है। २. आपस की मित्रता के कारण दोनों एक दूसरे के शत्रु और मित्र को बराबर अपना शत्रु और मित्र समझेंगे। ३. महाराज के वर्तमान राज्य-प्रबंध में कंपनी न तो किसी प्रकार का हस्ताक्षेप ही करेगी, न उनसे कर ही मांगेगी । ४. कंपनी के अाज तक के अधिकृत भारतीय प्रदेशों पर यदि कोई आक्रमण करेगा तो महाराज अपनी पूर्ण-शक्ति से कंपनी की सहायता कर मैत्री का परिचय देंगे। ५. कंपनी भी महाराज की राज्य-रक्षा का जिम्मा लेती है । यदि किसी अन्य राज्य के और महाराज के बीच किसी कारण विवाद खड़ा होगा तो पहले वह मामला आपस में निपटा देने के लिये कंपनी को सौंपा जायगा । परंतु यदि विपक्षी हट के कारण कंपनी का समझोता नहीं मानेगा तो खर्चा देने पर कंपनी की फौज महाराज की सहायता करेगी। ६. अपनी सेना के संचालन में स्वतंत्र होते हुए भी युद्ध के समय महाराज को साथ वाले अंगरेज़-सेनापति की सलाह से काम करना होगा । ७. महाराज कंपनी की समिति के विना न तो किसी 'यूरोपियन' को नौकर ही रक्खेंगे न अपने राज्य में प्रवेश ही करने देंगे । परंतु मानसिंहजी ने इस संधि को स्वीकार करने से इनकार कर दिया और इसमें कुछ काट-छाँट कर दूसरी संधि करने का प्रस्ताव किया । --- - - - १. ग्रांट डफ् की हिस्ट्री ऑफ मरहटाज़, भा. २, पृ. ३६३ और ए कलैक्शन ऑफ ट्रीटीज़ ऐंगेजमैंट्स एण्ड सनद्स भा. ३ पृ. १२६-१२७ । इस सन्धि के समय कंपनी के मरहटों के साथ के युद्ध मे फँसे होने से मारवाड़ पर किसी प्रकार का कर आदि नहीं लगाया गया था । परन्तु दूसरी सन्धि के समय अवस्था में परिवर्तन हो चुका था। ४०३ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास इसी वर्ष माघ वदि ( ई० स० १८०४ की जनवरी ) में स्वर्गवासी महाराजा भीमसिंहजी की रानी के गर्भ से पुत्र होने की सूचना प्रकट की गई और साथ ही पौकरनठाकुर सवाईसिंह ने उसे भाटी छत्रसिंह के साथ खेतड़ी (जयपुर राज्य में) मेज दिया । इस बनावटी बालक का नाम धौंकलसिंह रक्खा गया था । इस प्रकार की गुप्त कार्रवाइयों से महाराजा मानसिंहजी और भी अधिक अप्रसन्न हो गए, और माघ सुदि ५ (१७ जनवरी) को इन्होंने अपना राज्याभिषेक कर डाला । इसके बाद सवाईसिंह काम का बहाना कर पौकरन चला गया । ___ इस समय सिंधिया और कम्पनी के बीच युद्ध जारी था । इसीसे मौका देख महाराज ने अजमेरे पर अधिकार करलिया । इसके बाद शीघ्र ही जब जसवन्तराव होल्कर कम्पनी से हारकर अजमेर की तरफ़ आया, तब महाराज ने मित्रता दिखला कर उसके कुटुम्ब को अपनी रक्षा में लेलिया । इससे निश्चिन्त हो वह मालवे की तरफ़ चला गया । परन्तु इस घटना से, वि० सं० १८६१ के वैशाख (ई० स० १८०४ की मई ) में, ऊपर लिखी संधि बिलकुल रद हो गई। इन झंझटों से निपटते ही महाराज ने आयस देवनार्थं को बुलवा कर अपना गुरु बनाया, और जिन लोगों ने स्वर्गवासी महाराजा भीमसिंहजी को अपने भाइयों और चचाओं के विरुद्ध भड़काया था, उनको मरवा डाला; और जिन्होंने विपत्ति के समय इनकी सेवा की थी, उन्हें जागीरें आदि देकर सम्मानित किया । १. इसी से गद्दी पर बैठते समय इन्होंने अपने को स्वर्गवासी महाराजा भीमसिंहजी का दत्तक पुत्र प्रकट न कर अपने पिता गुमानसिंहजी का पुत्र ही घोषित किया । २. वि० सं० १८६३ (ई० स० १८०६) में इस पर फिर से मरहटों का अधिकार हो गया । ३. इसी ने महाराज से और कुछ दिन के लिये जालोर का किला न छोड़ने का आग्रह कर जोधपुर राज्य के मिलने की भविष्यवाणी की थी। ४. महाराजा मानसिंहजी के राज्य में नाथों का प्रभाव बढ़ जाने से वल्लभकुल (संप्रदाय) के वैष्णवों का प्रभाव घट गया था । महाराज की आज्ञा से नाथजी के रहने के लिये जोधपुर नगर के बाहर महामन्दिर नामक गाँव बसाया गया और वैष्णव मन्दिरों को दिए हुए अनेक गाँव जन्त करलिए गए। ५. इन्हीं लोगों ने महाराजा भीमसिंहजी को अपने कुटुम्ब वालों से नाराज़ कर उनके चचा शेरसिंह और सांवतसिंह तथा चचेरे भाई शूरसिंह को मरवा डाला था। ४०४ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाराजा मानसिंहजी वि० सं० १८६१ के ज्येष्ठ (ई० स० १८०४ के जून ) में मारोठ पर सेना भेजी गई । परन्तु अन्त में वहाँ के ठाकुर महेशदान के माफी मांग लेने से झगड़ा शान्त हो गया । ___ इसके बाद महाराज की आज्ञा से मुहणोत ज्ञानमल आदि ने सिरोही और मुहता साहिबचन्द आदि ने घाणेराव पर चढाईयाँ कर वहाँ पर अधिकार करलिया । सिरोही के राव वैरसलजी (द्वितीय ) भाग कर आबू की तराई में चले गए। वि० सं० १८६१ के आषाढ़ ( ई० स० १८०४ की जुलाई ) में भाटी छत्रसाल ने धौंकलसिंह का पक्ष लेकर, खेतड़ी, जूझणू, नवलगढ़, सीकर आदि के शेखावतों की मदद से, डीडवाने पर कब्जा कर लिया । परन्तु महाराज की आज्ञा से शीघ्र ही राजकीय सेनाने वहाँ पहुँच शत्रुओं को मार भगाया और सीकरवालों से शाहपुरा छीन कर मोहनसिंह को देदिया । इसी वर्ष की पौष वदि १ (ई० स० १८०५ की २ जनवरी ) को महाराज ने जोधपुर के किले में हस्तलिखित पुस्तकों का एक पुस्तकालय स्थापित कियाँ और उसका नाम 'पुस्तक-प्रकाश' रक्खा । उदयपुर-महाराना भीमसिंहजी की कन्या कृष्णकुँवरी का विवाह जोधपुर महाराजा भीमसिंहजी से होना निश्चित हुआ यो । परन्तु उनका स्वर्गवास हो जाने पर महाराना ने उसका विवाह जयपुर-नरेश जगतसिंहजी से करने का विचार किया । यद्यपि महाराजा मानसिंहजी ने दोनों पक्षवालों को समझाया कि जिस कन्या का विवाह १. इसकी कन्या का विवाह खेतड़ी के कुँवर बख़तावरसिंह से होने वाला था । परन्तु खेतड़ी वालों के धौंकलसिंह का पक्ष लेने के कारण महाराज को यह संबंध पसंद न था । राजकीय सेना के वहां पहुंचने पर ठाकुरने कुछ दिन के लिये यह विवाह स्थगित करदिया। २. वि० सं० १८५८ ( ई० स० १८०१ ) में मानसिंहजी ने अपने कुटुम्ब वालों को कुछ दिन के लिये सिरोही भेज देने का इरादा किया था । परन्तु वैरसलजी ने भीमसिंहजी के भय से इस में अनुमति नहीं दी । इसी का बदला लेने को यह सेना भेजी गई थी। ३. सीकरवालों ने इसीसे शाहपुरा छीना था। इसलिये यह उस समय जोधपुर में रहता था। ४. परन्तु इस संग्रहालय में महाराजा जसवन्तसिंहजी प्रथम से लेकर उस समय तक के प्रत्येक राजाओं के समय की लिखी पुस्तकें भी मौजूद हैं। ५. यह घटना वि० सं० १८५५ ( ई० स० १७६६ ) की है। ४०५ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास जोधपुर-राज-घराने में होना स्थिर होचुका है, उसका विवाह दूसरे राज-कुल में करना उचित नहीं है, तथापि उन लोगों ने इस पर कुछ ध्यान नहीं दिया। इसके बाद जब उदयपर से कृष्णकुँवरी के वाग्दान का टीका जयपुर भेजा जाने लगा, तब महाराज भी मेड़ते की तरफ़ चले और वहाँ पहुँच युद्ध की तैयारी करने लगे । महाराज ने जसवन्तराव होल्कर को भी सेना लेकर आने का लिख भेजा था । इसी से वह पहले के उपकार का स्मरण कर स्वयं नाँद नामक गांव में आकर ठहर गया । महाराज मी उस समय नाँद में थे। वहीं पर दोनों की मुलाकात हुई । इसी समय सिंघी इन्द्रराज भी सिरोही की तरफ़ से ससैन्य आ उपस्थित हुआ । ___ इस तैयारी की सूचना पा जयपुर-नरेश जगतसिंहजी भी युद्ध के लिये उद्यत होगए । परन्तु शीघ्र ही जोधपुर के बख्शी सिंघी इंद्रराज और जयपुर के दीवान रायचन्द ने मिल कर इस झगड़े को शान्त करदिया और दोनों ही नरेशों से कृष्णकुँवरी से विवाह न करने की प्रतिज्ञा कराली । इस प्रकार विरोध को दूर हुआ जान होल्कर भी वापस लौट गया। वि० सं० १८६३ के कार (आश्विन ) (ई० स० १८०६ के अक्टोबर ) में महाराज नाँद से लौट कर मेड़ते पहुँचे । उस समय देश में अकाल का इतना प्रकोप था कि सरकारी खर्च तक के लिये इधर-उधर से रुपये इकट्ठे करने की आवश्यकता होती थी। यहीं पर महाराज ने पुराने सेवकों की शिकायत से सिंघी इन्द्रराज और भंडारी गंगाराम आदि को मय उनके पुत्रों के कैद करलियो । १. यह घटना वि० सं० १८६२ की माघ वदि ३० ( ई० स० १८०६ की १६ जनवरी) की है। २. ख्यातों से प्रकट होता है कि पौकरन-ठाकुर सवाईसिंह ने ही, मारवाड़ में झगड़ा खड़ा कर धौंकलसिंह को राज्य दिलाने की इच्छा से, इन्हें ताना देकर युद्ध करने के लिये उकसाया था। उन्हीं से यह भी ज्ञात होता है कि महाराज को युद्ध के लिये तैयार देख उदयपुर से टीका लेकर जयपुर जानेवाली मेवाड़ की सेना शाहपुरे के पास से वापस लौट गई थी। परन्तु 'राजपूताने के इतिहास' में महाराना का दौलतराव सिंधिया से हार कर जयपुर के वकील को, जो शादी का पैगाम लेकर आया था, लौटा देना लिखा है । (देखो भा० ४, पृ० १००५-१००६)। ३. इस से सिरोही पर फिर राव वैरसलजी (द्वितीय) का अधिकार हो गया । ४. इसी अवसर पर जयपुर-नरेश जगतसिंहजी की बहन से महाराजा मानसिंहजी का और मानसिंहजी की कन्या से जगतसिंहजी का विवाह होना स्थिर हुआ। ५. इन कैद होने वालों में स्वर्गवासी महाराजा भीमसिंहजी का धायभाई शम्भुदान, आदि अन्य राज्य-कर्मचारी भी थे। ४०६ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाराजा मानसिंहजी अवसर की ताक में लगे ठाकुर सवाईसिंह ने मारवाड़ के कुछ सरदारों और बीकानेर-नरेश सूरतसिंहजी को अपने पक्ष में कर जोधपुर और जयपुर नरेशों के बीच की यह मित्रता शीघ्र ही भंग करवादी । साथ ही उसने जयपुर पहुँच जगतसिंहजी को मारवाड़ पर चढ़ाई करने के लिये तैयार करलिया । यह देख खेतड़ी के शेखावत धौंकलसिंह को साथ लेकर जयपुर की सेना में आ मिले और शाहपुरे वालों ने भी उनका साथ दिया । इसी समय बीकानेर नरेश सूरतसिंहजी भी जयपुर महाराज की सहायता को चले । इन बातों की सूचना मिलते ही महाराज मानसिंहजी मेड़ते से परबतसर पहुँच युद्ध की तैयारी करने लगे और साथ ही इन्होंने जसवन्तराव होल्कर को भी शीघ्र आने का सन्देश भेज दिया । इस पर उसने तिहोद (किशनगढ़ राज्य में) पहुँच महाराज को फ़ौज खर्च के लिये रुपये भेजने का लिखा । उस समय स्वयं महाराज के पास रुपये की कमी थी। फिर भी इन्होंने इधर-उधर से इकट्ठे कर कुछ रुपये उसके पास भेज दिए । परन्तु इसी बीच जयपुर-नरेश की तरफ़ से एक बड़ी रकम रिशवत में मिल जाने से वह (होल्कर ) पुराने उपकार को भूल वहीं से वापस लौट गया और अमीरखाँ ने जो उसके साथ था जयपुर वालों का साथ दिया । जयपुर महाराजा जगतसिंहजी के मारोठ पहुँचने पर बीकानेर महाराज भी उनसे आमिले । इसके बाद दोनों नरेश तो वहीं ठहर गए, परन्तु उनकी आज्ञा से १. पौकरन-ठाकुर सवाईसिंह के बहकाने में आकर जयपुर-नरेश जगतसिंहजी भी धौंकलसिंह के पक्ष में होगए । २. ग्रांट डफ़की हिस्ट्री ऑफ मरहटाज़' में लिखा है कि वि० सं० १८६३ ( ई० स० १८०७) में जिस समय होल्कर लॉर्ड लेक से सन्धि कर पंजाब से लौटा, उस समय जयपुर और जोधपुर के बीच उदयपुर की राजकुमारी के लिये लड़ाई होरही थी और दोनों ही तरफ से सिंधिया और होल्कर से सहायता मांगी जा रही थी। इस पर (ई० स० १८०८ में ) सिंधिया ने शीराजीराव घाटे और बापू सिंधिया को १५,००० सवार देकर उधर रवाना किया और होल्कर ने अमीरखाँ को पठानों के साथ जाकर जयपुर की सहायता करने की आज्ञा दी । यद्यपि एक बार तो जयपुर वाले विजयी होगए, तथापि अन्त में अमीरखाँ इधर-उधर लूट-खसोट कर जोधपुर वालों से मिल गया। इसके बाद उसने धोके से भयानक खून कर दोनों नरेशों के बीच सन्धि करवादी। (देखो भाग २, पृ० ४००)। ४०७ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चा मारवाड़ का इतिहास अमीरखाँ ने और चांपावत सवाईसिंह ने एक बड़ी सेना लेकर महाराज पर चढ़ाई की। इसकी सूचना पातेही महाराजा मानसिंहजी स्वयं दल-बल सहित आगे बढ गींगोली (परबतसर ) के पास उनका मार्ग रोकने को जा पहुंचे। इसी समय हरसोलाव, धांधियां, चवाँ, सथलाणा, सरवाड़, मारोठ, गौडावाटी आदि के बहुत से ठाकुर अपनी-अपनी सेनाओं को लेकर शत्रु-पक्ष में जामिले और आउवा, आसोप, नींबाज, रास, आहोर, लांबियां, कुचामन, बूडसू, खेजड़ला और रायपुर के ठाकुरों ने महाराज को विना लड़े ही युद्धस्थल से लौट चलने के लिये दबाया। यद्यपि महाराज की इच्छा जमकर युद्ध करने की थी, इसी से यह एकवार तो उत्तेजित होकर मना करनेवालों का वध करने तक को तैयार होगए, तथापि अन्तमें सरदारों के हठ के कारण इन्हें उनका कहना मानना पड़ा । महाराज के युद्ध-स्थल से लौटते ही उनमें से भी बहुत से सरदार इधर-उधर चले गए और बहुतसे सवाईसिंह से जा मिले । इस अवसर पर भारती-संप्रदाय के युद्ध-जीवी साधुओं ( महापुरुषों) ने पूरी तौर से स्वामि-धर्म का पालन किया । इन में से कुछ तो महाराज का पीछा करने वाले शत्रुओं को रोकने के लिये हिन्दालखाँ के बेड़े के साथ वहीं ठहर गए और कुछ महाराज के साथ मेड़ते होते हुए, फागुन सुदी १० (ई० स० १८०७ की १९ मार्च) को, जोधपुर चले आए । इसके बाद महाराज ने अधिकांश सरदारों को शत्रु से मिला देख एक वार तो जालोर की तरफ जाने का इरादा करलिया, परन्तु फिर शीघ्र ही कुचामन-ठाकुर और हिंदालखाँ के समझाने से यह विचार त्यागदिया । १. सवाईसिंह ने जयपुर-महाराज को समझाया था कि मारवाड़ के करीब-करीब सारेही सरदार धौंकलसिंह के पक्ष में हैं । इसलिये जैसेही आप जोधपुर-नरेश के मुकाबले में पहुँचेंगे, वैसे ही उनमें से कुछ तो मानसिंहजी का साथ छोड़ आपकी सेना में चले आयेंगे और कुछ, जो पीछे रेहेंगे, वे महाराज को, मारवाड़ के सरदारों के शत्रु से मिले होने का भय दिखला कर, विना लड़े ही, जालोर की तरफ ले जाने का प्रयत्न करेंगे । इस से धौंकलसिंह को अनायास जोधपुर के किले पर अधिकार करने का मौका मिल जायगा । परन्तु इतने पर भी महाराजा जगतसिंहजी के मनसे भय और सन्देह दूर न हुआ। इसीसे उन्होंने स्वयं मारोठ में ठहर सवाईसिंह आदि को आगे बढ़ने की आज्ञा दी । २. ख्यातों से ज्ञात होता है कि जिस समय महाराज युद्ध से लौटते हुए मेड़ते के बाहर ठहरे, उस समय वहाँ के बनियों ने रसद वगैरा देने से इनकार करदिया । परन्तु वहाँ के कोतवाल को सूचना मिलते ही उसने उन्हें दबाकर सारा प्रबन्ध करवा दिया ! ४०८ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाराजा मानसिंहजी महाराज के रणस्थल से लौटते ही जयपुर की सेना, सहजही मारोठ, परबतसर, सांभर, नांत्रे, डीडवाने, जैतारन, सोजत, नागोरं और मेड़ते' पर अधिकार कर, जोधपुर की तरफ़ बढ़ी | यह देख महाराज ने भी किले में युद्ध के लिये उपयोगी सामान इकट्ठा करना शुरू किया और शहर पनाह की बुर्जों पर तोपें चढ़वादीं । इसी समय जयपुर के दीवान रायचन्द ने महाराजा जगतसिंहजी को उदयपुर पहुँच कृष्ण कुँवरी से विवाह करने की सलाह दी । परन्तु सवाईसिंह ने कह सुनकर उन्हें पहले जोधपुर - विजय कर लेने के लिये उद्यत किया और स्वयं आगे बढ़, चैत्र वदि ७ (३० मार्च ) को, जोधपुर नगर को घेर लिया । इसके बाद शीघ्र ही जयपुर और बीकानेर के नरेश भी यहां आ पहुँचे और दोनों पक्षों के बीच विकट संग्राम आरम्भ होगयाँ । परंतु कुछ दिन बाद जब नगर की रक्षा करना कठिन हो गया, तब महाराज ने सिंघी जीतमल और सूरजमले को, जो किले में कैद थे, बुलवाकर दीवान बनाया । उन्हों ने किले से बाहर मा सात दिन तक तो शत्रु का सामना किया, परंतु आवें दिन वे प्रलोभन में पड़ उससे मिल गए । स्वर्गवासी महाराजा भीमसिंहजी के धाय-भाई शंभुदान ने भी क़ैद से छोड़े जाने पर धौंकलसिंह का पक्ष ग्रहण कर लिया । यह देख महाराजा मानसिंहजी ने सिंघी इन्द्रराज भंडारी गंगाराम और डेवढ़ीदार नथकरण को कैद से निकाल कर समयोचित प्रबंध करने की आज्ञा दी । इस पर वे लोग बाहर आकर पौकरन - ठाकुर सवाईसिंह से मिलें और उन्होंने उसे हर तरह से समझाने की कोशिश की । परंतु जब वह किसी तरह से न माना, तब उन्होंने प्रस्ताव किया कि यदि वह उन लोगों को और उन सरदारों ( ठाकुरों ) को जो इस समय किले में हैं विना किसी १. शत्रुओं ने नागोर पर फागुन सुदि १५ ( होली ) ( २३ मार्च) को अधिकार किया था । २. मेड़ते की शाही मसजिद में धौंकलसिंह के, वि० सं० १८६४ की सावन बदि २ मंगलवार के, दो लेख लगे हैं । इनमें का एक उर्दू में और दूसरा हिन्दी में है । ३. इस युद्ध में मारे गए कुछ वीरों की छतरियां किले के अन्दर कुछ की जयपौल के बाहर और कुछ की रानीसर तला व पर बनी हैं। ४. ये ज़ोरावरमल के पुत्र थे और इन्होंने मानसिंहजी के जालोर के किले में घिर जाने के समय से ही इनका पक्ष छोड़ महाराजा भीमसिंहजी का पक्ष ग्रहण कर लिया था । ५. यह मुलाकात जोधपुर शहर से बाहर 'कागा' नामक स्थान पर हुई थी । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ४०६ www.umaragyanbhandar.com Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास विरोध के नगर से निकल जाने दे तो वे जोधपुर का शहर उसे सौंप सकते हैं। रही किले की बात, सो वहां पर महाराज के स्वयं मौजूद होने से उस विषय में वे कुछ नहीं कर सकते । यह बात सवाईसिंह ने स्वीकार कर ली । इस प्रकार बात-चीत कर वे लोग किले में लौट आए और उन्होंने महाराज की अनुमति से, वि० सं० १८६४ की चैत्र सुदि ११ ( ई० स० १८०७ की १८ अप्रेल ) को, जोधपुर नगर शत्रुओं को सौंप दिया। इसके बाद वे आसोप, आउवा, नींबाज, कुचामन, बूडसू, लाँबियाँ आदि के ठाकुरों और थोड़े से अन्य लोगों को साथ लेकर शत्रु के घिराव से बाहर निकल गएँ । शत्रुओं ने भी नगर का अधिकार मिल जाने और उनके चले जाने से किले में घिरे हुए महाराज का बल क्षीण हो जाने के विचार से उनके इस कार्य में किसी तरह की आपत्ति नहीं की। यहाँ से चलकर वे लोग नींबाज होते हुए बाबरे पहुँचे और वहाँ से लोढा कल्याणमल को दौलतराव सिंधिया से सहायता प्राप्त करने के लिए खाना किया। ___ इसी बीच जयपुर-महाराज जगतसिंहजी के और अमीरखाँ के बीच खर्च के रुपयों के बाबत झगड़ा उठ खड़ा हुआ और वह ( अमीरखाँ ) जयपुर वालों का साथ छोड़ कर मेड़ते की तरफ़ चला गया । जैसे ही यह हाल सिंघी इन्द्रराज को मालूम हुआ, वैसे ही उसने तीस हजार रुपये देकर उसे अपनी तरफ़ कर लिया । इसके बाद इंद्रराज ने भंडारी पृथ्वीराज और अमीरखाँ को ढूंढाड़ ( जयपुर-राज्य) में लूट-खसोट मचाने के लिये भेजा और स्वयं उन सरदारों में से बहुतों को, जो महाराज का साथ छोड़कर पौकरन-ठाकुर सवाईसिंह से मिल गए थे या इधर-उधर चले गए थे, फिर से महाराज के पक्ष में लाने का प्रबंध करने लगा। चतुर्भुज उपाध्याय ने बूड़सू आदि के ठाकुरों को लेकर डीडवाना, परबतसर, मारोठ आदि पर दुबारा महाराज का अधिकार कायम किया। १. महाराज को विश्वास दिलाने के लिये इन्द्रराज ने अपने पुत्र फतैराज को और गंगाराम ने अपने पुत्र भानीराम को इन्हें सौंप दिया था। २. सम्भवतः शत्रुओं ने यह आशा भी की होगी कि इनके बाहर आजाने से हम लोग इन्हें मिलाकर किले के भीतर का भेद भी जान सकेंगे। ३. किसी किसी ख्यात में कुचामन-ठाकुर शिवनाथसिंह का भी रुपये देने में शरीक होना लिखा है । ये रुपये इन लोगों ने बलँदा वालों से दण्ड के रूप में लिए थे; क्योंकि वहाँ का ठाकुर शिवसिंह पौकरन-ठाकुर सवाईसिंह से मिल गया था । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाराजा मानसिंहजी यद्यपि सावन ( अगस्त ) में सिंधिया की तरफ़ से अंबाजी और जॉन बुतीसी मरहटों की एक बड़ी सेना लेकर जोधपुर वालों की सहायता को आए, तथापि जयपुर वालों ने रिशवत देकर उन्हें अपनी तरफ़ कर लिया । कुछ दिनों में जब जोधपुर वालों के पास रुपया जमा होगया, तब उन्होंने एक लाख रुपये देकर अमीरखाँ को जयपुर पर चढ़ाई करने के लिये साथ ले लिया । उसी समय बख़्शी शिवलाल जयपुर से नई फ़ौज लेकर जोधपुर की तरफ़ आ रहा था । उसके फागी मुकाम पर पहुँचते ही कुचामन आदि के सरदारों और अमीरखाँ ने उस पर अचानक हमला कर दिया। इससे जयपुर की फ़ौज घबराकर भाग खड़ी हुई और उसका सामान राठोड़ों और पठानों ने लूट लिया । यहाँ से आगे बढ़ उन्होंने (जोधपुर वालों ने ) जयपुर पर गोलाबारी की । उनके वहां से लौटने पर मार्ग में सिंघी इन्द्रराज भी, अन्य कुछ सरदारों और पाँच हजार सैनिकों को लेकर, उनसे मिला। इसके बाद वि० सं० १८६४ के भादों (ई० स० १८०७ के सितम्बर) में उन सब ने फिर जयपुर पर चढ़ाई कर उसे ध्वंस करना शुरू किया। इस पर वहां वाले नगर के द्वार बंद कर अपनी रक्षा करने लगे । जैसे ही यह सूचना जयपुर नरेश जगतसिंहजी को मिली, वैसे ही उनका जोधपुर - विजय का उत्साह शिथिल पड़ गया और वह सवाईसिंह के अनुनय-विनय पर ध्यान न देकर, वि० सं० १८६४ की भादों सुदि १३ ( १४ सितंबर) को, अपने देश की रक्षार्थ चलदिए । यह देख बीकानेर - नरेश सूरतसिंहजी को भी बीकानेर लौट जाना पड़ा और ठाकुर सवाईसिंह ने नागोर के किले का आश्रय लिया । जोधपुर का घिराव उठने और जगतसिंहजी के जयपुर की तरफ़ लौटने की सूचना मिलते ही मारवाड़ की और अमीरख़ाँ की सेनाओं ने जयपुर से लौटकर, मार्ग में आती हुई जयपुर नरेश की सेना पर १. ख्यातों में लिखा है कि जान बुतीसी ने मदद देकर डीडवाना, परबतसर, मारोठ आदि पर दुबारा सवाईसिंह के पक्ष वालों का अधिकार करवा दिया था । परन्तु फागी के युद्ध के बाद वहाँ पर फिर महाराज का अधिकार हो गया । २. ख्यातों के अनुसार बूडस्, आहोर और नींबाज आदि के ठाकुर भी इस युद्ध यात्रा में साथ थे । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ર www.umaragyanbhandar.com Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास आक्रमण किया । इससे जब वह तंग आगई, तब जयपुर के दीवान रायचन्द ने एक लाख रुपये दण्ड के रूप में देकर उनसे पीछा छुडवाया । इस तरह शत्रु से निपट कर जिस समय इंद्रराज, अमीरखाँ और उनके सहायक सरदार लौटकर जोधपुर पहुँचे, उस समय महाराजा मानसिंहजी ने, जागीरें आदि देकर, उन सब का यथोचित सत्कार किया और अमीरखाँ को नवाब का ख़िताब देकर अपने बराबर बिठाया । इसी समय उसे खर्च के लिये नांवे की तरफ के परगनों की आमदनी सौंप दी गई। ___ कुछ दिन बाद माघ ( ई० स० १८०८ की जनवरी ) में अमीरखाँ ने महाराज के साथ की हुई गुप्त-मंत्रणा के अनुसार खर्च के रुपयों के बाबत बनावटी झगड़ा खड़ा किया । इस अवसर पर यद्यपि प्रकट में महाराज ने उसे बहुत कुछ समझाने की कोशिश की, तथापि उसने उस पर ध्यान नहीं दिया और नाराज होजाने का बहाना कर मारवाड़ के गाँवों को लूटना शुरू किया। यह देख सवाईसिंह ने दूत द्वारा अमीरखाँ से बात-चीत चलाई और खर्च के लिये रुपये देने का वादा कर उसे अपनी तरफ़ मिलाना चाहा । नवाब अमीरखाँ भी मामला तय करने के लिये अपनी बाकी सेना को मूंडवे में छोड़ केवल पांच सौ सवारों के साथ नागोर पहुँचा । नगर के बाहर तारकीन की दरगाह में दोनों की मुलाकात हुई। कुछ बातें तो वहीं निश्चित हो गई और कुछ का निर्णय करने और फौज़ के सिपाहियों को उनकी चढ़ी हुई तनखा मिलने का भरोसा दिलवाने को नवाब ने सवाईसिंह से मुंडवे आने को कहा । साथ ही अपनी तरफ़ से दावत का निमंत्रण भी दिया । वि० सं० १८६५ की चैत्र सुदि २ ( ई० स० १८०८ की २६ मार्च ) को पौकरन-ठाकुर सवाईसिंह, मय चंडावल-ठाकुर बख्शीराम, पाली-ठाकुर ज्ञानसिंह और बगड़ी-ठाकुर केसरीसिंह के, एक हजार सैनिक साथ लेकर मूंडवे पहुँचा । अमीरखाँ ने भी उनकी बड़ी खातिर की । भोजन के उपरान्त सब लोग एक शामियाने में इकट्ठे हुए । उसके चारों तरफ़ तोपें लगी हुई थी और उसके पास ही बहुत से सिपाही १. ये रुपये अमीरखाँ को देदिए गए। २. जेम्स बजेस ने अपनी 'क्रॉनॉ लॉजी ऑफ मॉडर्न इन्डिया' में लिखा है:-- ई० स० १८०७ की फरवरी में उदयपुर की कृष्णाकुमारी के लिये जयपुर और , जोधपुर के राजाओं में युद्ध हुआ। इसमें जोधपुर-नरेश मानसिंह ने जयपुर नरेश जगतसिंह को हरा दिया। (पृ० २६०)। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाराजा मानसिंहजी इकट्ठे होकर अपनी-अपनी चढ़ी तनख्वाह के लिये हुज्जत कर रहे थे । कुछ देर बाद अमीरखाँ का नायब, इस झगड़े को मिटाने के लिये स्वयं अमीरखाँ को बुलालाने का बहाना कर, शामियाने से बाहर चला गया और थोड़ी देर बाद ही अमीरखाँ का साला भी उठ कर जाने लगा । यह देख सरदारों को सन्देह हुआ। इससे उन्होंने बात-चीत के बहाने उसे हाथ पकड़ कर वहीं बिठा लिया। इतने में पूर्व निश्चित संकेत के होते ही एकाएक शामियाने की रस्सियाँ काट दी गई और चारों तरफ़ की तोपें गोले उगलने लगीं । शामियाने के भीतर बैठे हुए शत्रु तो इस प्रकार मारडाले गएं और बाहर वालों को नवाब के सिपाहियों ने कत्ल कर डाला । फिर भी कुछ थोड़े से आदमी बचकर भाग निकले और जब उन्होंने नागोर पहुँच यह हाल सुनाया, तब हरसोलाव-ठाकुर जालिमसिंह, खींवसर-ठाकुर प्रतापसिंह, भाटी छत्रसाल और तुवर मदनसिंह किला छोड़ तत्काल बीकानेर की तरफ़ चल दिएं । इससे नागोर की सारी सेना भी बिखर गई और जिसको जिधर मौका मिला उसने उधर भाग कर प्राण-रक्षा की । इसके बाद ( चैत्र सुदि ४३१ मार्च को) अमीरखा ने नागोर पर अधिकार कर उस प्रान्त के जागीरदारों से दण्ड के रुपये वसूल करने शुरू किए। जिन-जिन सरदारों आदि ने अपने अपराधों की माफ़ी मांगली, उन-उन को महाराज ने क्षमाकर गृह-कलह को बहुत कुछ शान्त कर दिया। इसके बाद महाराज की आज्ञा से सिंघी इन्द्रराज और सरदारों ने मिलकर बीकानेर पर चढ़ाई की । ऊदासर के पास युद्ध होने पर बीकानेर की सेना को हारकर भागना पड़ा । परन्तु लौटते हुए उसने मार्ग १. यह घटना चैत्र सुदि ३ (३० मार्च) को हुई थी। इसके बाद ही नवाब ने मारे गए चारों सरदारों के सिर महाराज के पास भेज दिए । इसी से जोधपुर में उन सब का दाह कर्म किया गया। २. किसी किसी ख्यात में धौंकलसिंह का भी इनके साथ भागकर बीकानेर जाना लिखा है। ठाकुर सवाईसिंह की मृत्यु का समाचार मिलते ही उसका पुत्र सालमसिंह पौकरन की गद्दी पर बैठा और इसके बाद सिपाही इकडे कर फलोदी के आस-पास के गांवों को उजाड़ने लगा। परन्तु महाराज की सेना के पहुँच जाने पर उसे पौकरन लौट जाना पड़ा। इसी समय उसने हरियाडाणा के ठाकुर बुधसिंह को महामन्दिर में प्रायस देवनाथ के पास भेज उससे सहायता की प्रार्थना की। इस पर उस (नाथजी) ने महाराज से कहकर मजल और दूनाड़ा उसे फिर से दिलवा दिया। इसकी एवज़ में उस ( सालमसिंह ) ने भी कायदे के माफ़िक रेख और बाब नामक कर राज्य में देते रहने और चाकरी में घोड़े रखने का वादा किया। इस अवसर पर उसके भाई-बन्धुओं की जब्त की हुई जागीरें भी उन्हें लौटा दी गई। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास के तालावों और कूँओं में मारे हुए जानवरों की लाशें और सिंगीमोहरा डलवा दिया । जब मारवाड़ के सेना-नायकों को यह बात मालूम हुई, तब उन्होंने शीघ्र ही हजारडेढ़ हजार पखालें पानी से भरवा कर ऊँटों पर लदवालीं। मार्ग में जहाँ का पानी पीने लायक होता वहाँ के जलाशयों में से मृत पशुओं की हड्डियाँ आदि निकलवा कर पखालें भरवाली जातीं और जहाँ का जल विषैला पाया जाता वहाँ उन पखालों के पानी से काम लिया जाता । इस प्रकार बीकानेर-राज्य के प्रान्तों को पद-दलित करती हुई यह सेना जिस समय गजनेर के पास पहुँची, उस समय वहाँ वालों को लाचार हो संधि की प्रार्थना करनी पड़ी और उसके स्वीकृत हो जाने पर फलोदी का प्रान्त, जो धौंकलसिंह के पक्ष वालों ने अपनी सहायता करने की एवज में उन्हें दे दिया था, वापस मारवाड़ वालों को सौंपना पड़ा । इसीके साथ तीन लाख साठ हजार रुपये फौज-खर्च के देने का वादा मी करना पड़ा। ___ इसी बीच अमीरखाँ नागोर से जोधपुर आया । महाराज ने उसकी बड़ी खातिर की और कुल मिलाकर परबतसर, मारोठ, डीडवाना, सांभर, नांवा और कोलिया आदि के परगने उसके खर्च के लिये नियत किए। वि० सं० १८६६ के प्रथम आषाढ़ ( ई० स० १८०९ के जून ) में अमीरखाँ ने जयपुर-राज्य में पहुँच फिर उपद्रव शुरू किया। यह देख जयपुर-महाराज जगतसिंहजी ने महाराज से मेल करने के लिये दूत भेजे । अन्त में गीगोली की लूट में मिला सामान लौटा ने और फौज-खर्च के नाम से कुछ रुपये अमीरखाँ को देने पर महाराज ने उनसे संघि करैली । १. 'तवारीख राज श्री बीकानेर' में तीन लाख रुपया देना लिखा है । ( देखो पृ. २०३ )। २. इसमें से कुछ रुपया तो उसी समय दे दिया गया था और कुछ के लिये ज़मानत दिलवाकर, वि. स. १८६५ की मंगसिर बदि ५ (ई० स० १८०८ की ८ नवम्बर) को, बीकानेर-नरेश सूरत सिंहजी ने एक रुक्का लिख दिया था। साथ ही गींगोली के युद्ध मे हाथ लगा मारवाड़ वालों का सामान भी इस अवसर पर उन्हें वापस देना पड़ा था। ३. वैसे तो वि० सं० १८६७ (ई० सं० १८१० ) से ही मारवाड़ में अकाल था। परन्तु वि० सं० १८६६ में उसकी मीषणता और भी बढ़ गई और नाज रुपये का ३ सेर होगया। इससे बहुत से प्रादमी मर गए और बहुत से देश छोड़ कर मालवे की तरफ बले गए। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाराजा मानसिंहजी इससे निपट कर अमीरखाँ ने उदयपुर पर चढ़ाई की। महाराज के सेनापति भी उसके साथ थे । जब वहाँ पर इनका पूरा-पूरा आतंक छागया, तब महाराना भीमसिंहजी को बड़ी चिन्ता हुई और उन्होंने कृष्णकुँवरी को मरवा डालने का इरादा किया । अन्त में उस राजकन्या के विष-पान कर लेने पर यह झगड़ा शान्त हुओं । इसके साथ ही उदयपुर वालों ने गोडवाड़ की तरफ़ के चाणोद, घाणेराव और नारलाई के ठाकुरों को, जो मेवाड़ में जा बैठे थे, वहाँ से महाराज के पास भेज सुलह करली । महाराज ने भी माफ़ी माँगने वालों को कुछ दंड देकर उनकी जागीरें लौटादी । वि० सं० १८६९ ( ई० सन् १८१२ ) में शायद महाराज की आज्ञा से फिर सिरोही पर चढ़ाई की गई और इधर-उधर के गाँवों के साथ ही वहाँ की राजधानी भी लूटी गई । इसी प्रकार समय-समय पर बीकानेर के प्रदेशों पर भी आक्रमण होते रहते थे। वि० सं० १८७० के चैत्र (ई० सन् १८१३ के अप्रेल ) में जयपुर-महाराजा जगतसिंहजी ने जोधपुर और जयपुर के बीच का मनोमालिन्य दूर करने के लिये सिंघी इन्द्रराज को अपने यहाँ आने का लिखा । इस पर वह महाराज की आज्ञा लेकर वैशाख ( मई ) में वहाँ पहुँचा और सारी बातें तय होजाने पर भादों सुदि ८ (३ सितम्बर ) को जयपुर-नरेश की बहन से महाराजा मानसिंहजी का और भादों सुदि । (४ सितम्बर) को महाराज की कन्या से जयपुर-नरेश जगतसिंहजी का विवाह होना निश्चित किया । इसके अनुसार जब महाराजा मानसिंह जी विवाह करने को जाते हुए नागोर पहुँचे, तब बीकानेर-नरेश सूरतसिंहजी ने वहाँ आकर, आयस देवनाथ के द्वारा, इनसे मुलाकात की और कह-सुनकर आपस का पुराना वैमनस्य १. ख्यातों में लिखा है कि इस अवसर पर उदयपुर-नरेश ने कृष्णाकुँवरी का विवाह महाराजा मानसिंहजी से कर देने की इच्छा प्रकट की थी। परन्तु महाराज ने इसे स्वीकार नहीं किया। २. यह घटना वि० सं० १८६७ की श्रावण वदि ५ ( ई० स० १८१० की २१ जुलाई ) की है। ३. 'सिरोही का इतिहास', (पृ० २७६ )। ४. इसकी पुष्टि स्वयं बीकानेर-नरेश के, वि० सं० १८६६ की चैत्र वदि ६ ( ई० स० १८१३ ____की २३ मार्च ) के, महाराजा मानसिंहजी के नाम लिखे पत्र से होती है । ५. इन विवाहों का निश्चय पहले वि० सं० १८६३ (ई० स० १८०६) में ही हो चुका था। ४१५ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास दूर करवालिया । उनके वापिस लौट जाने पर महाराज आगे बढ़ रूपनगर ( किशनगढ़राज्य में ) पहुँचे । इसी प्रकार जयपुर-महाराजा जगतसिंहजी भी जयपुर से रवाना होकर अपने राज्य की सरहद के मरवा नामक गाँव में चले आए । यहीं पर पूर्वनिश्चयानुसार दोनों नरेशों का विवाह हुओं और दोनों राज्यों के बीच फिर से मित्रता कायम हो गई । इसके बाद उन जागीरदारों ने भी, जो धौंकलसिंह का पक्ष लेने के कारण अब तक जयपुर में थे, महाराज के सामने हाज़िर हो माफ़ी मांगली । इसलिये इन्होंने हरसोलाव-ठाकुर जालिमसिंह को छोड़ और सब की आजीविका का यथोचित प्रबन्ध कर दिया । इन कामों से निपट महारान फिर नागोर होते हुए जोधपुर लौट आए । वि० सं० १८७० (ई० स० १८१३ ) में सिरोही के राव उदयभाणजी तीर्थयात्रा से लौटते हुए पाली में ठहरे । इसकी सूचना मिलते ही महाराज ने दो सौ सिपाही भेज उन्हें पकड़वा मंगवाया । परन्तु करीब तीन मास नज़रबंद रहने पर जब उन्होंने, लाचार हो, जोधपुर की अधीनता और सवा लाख रुपये दण्ड के देना स्वीकार करलिया, तब उन्हें सिरोही जाने की आज्ञा देदी गई । इसी वर्ष सिंध के टालपुरा मुसलमानों ने उमरकोट में उपद्रव उठाकर वहाँ पर अधिकार कर लिया । वि० सं० १८७१ (ई० स० १८१४ ) में अमीरखा के नायब (मोहम्मदशाह) ने सिपाहियों की तनख्वाह वसूल करने के लिये मारवाड़ के गाँवों को लूटना शुरू किया। यह देख सिंघी इन्द्रराज ने, जो मंत्री का काम करता था, तीन लाख रुपये दिलवाने का प्रबन्ध कर उसे विदा किया। १. जयपुर-महाराज को यह भय था कि कहीं जयपुर से बाहर जाने पर अमीरखा उन्हें पकड़ न ले। यह देख जयपुर वालों की प्रार्थना पर महाराजा मानसिंहजी ने उन दोनों के बीच मैत्री करवा दी । इसकी पुष्टि बीकानेर-नरेश सूरतसिंहजी के महाराज के नाम लिखे, वि० सं० १८७० की माघ वदि १० ( ई० स० १८१४ की १६ जनवरी) के, पत्र से भी होती है। २. महाराजा मानसिंहजी का विवाह जयपुर-राज्य के मरवा गाँव में और महाराजा जगतसिंहजी का विवाह महाराज के भ्राता किशनगढ़-नरेश के राज्य के रूपनगर में हुआ। इनमें महाराज की तरफ से किशनगढ़-नरेश कल्याणसिंहजी और अजमेर-प्रान्त के सरदार मी शरीक हुए थे। ३. यह मायलाबाग नामक स्थान में रखे गए थे। ४. सिरोही का इतिहास, पृ० २७६-२८० । ४१६ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाराजा मानसिंहजी अगले वर्ष के भादों (ई० स०-१८१५ के सितम्बर) में स्वयं अमीरख़ाँ पन्द्रह हजार सैनिक लेकर मारवाड़ में आया । मौका देख मुहता अखैचंदे और आउवा, आसोप आदि के सरदारों ने उसे भड़कायों कि सिंघी इन्द्रराज और आयस देवनाथ ही उसके ख़र्च के रुपयों को रोका करते हैं, इसलिये यदि वह उन्हें मरवाडाले तो उसका आज तक का चढ़ा-चढ़ा रुपया वे देसकैते हैं । परन्तु उनके इस गुप्त - षड्यंत्र की सूचना मिलजाने से इन्द्रराज ने किले से बाहर आना छोड़ दिया । यह देख वि० सं० १८७२ की आश्विन सुदि ८ ( ई० स० १८१५ की १० अक्टोबर ) को अमीरख़ाँ की आज्ञा से उसके कुछ सैनिकों ने किले पर पहुँच खर्च के विषय में बखेड़ा उठाया और मौका पाकर ख़्वाबगाह के महल में बैठे प्रायस देवनायें और सिंघी इन्द्रराज को मारडाला । उसी समय वहाँ पर उपस्थित तीन चार आदमी और भी मारे गए । महाराज उस समय पास ही के मोतीमहल में थे । इसलिये हल्ला सुनते ही उधर को जाने लगे । परन्तु पास वालों ने इन्हें वहीं रोक कर बाहर का सारा हाल कह सुनाया । इस पर महाराज ने क्रुद्ध होकर हत्या -कारियों को प्राण- दण्ड देने की आज्ञा दी । यह देख षड्यंत्र में सम्मिलित सरदारों ने अमीरख़ाँ द्वारा शहर के लूट लिए जाने का भय दिखला कर इस आज्ञा को रुकवाना चाहा । परन्तु जब वे किसी तरह महाराज को अनुकूल न कर सके, तब उन्होंने आयस देवनाथ के छोटे भ्राता भीमनाथ को, अमीरख़ाँ द्वारा उसके मारडाले जाने और महामन्दिर के लूट लिए जाने १. यह उन दिनों सिंघी इन्द्रराज से दुश्मनी होने के कारण नाथजी के निज मन्दिर में शरण लेकर रहता था । २. किसी किसी ख्यात से ज्ञात होता है कि अमीरख़ाँ अपने लिये नियत किए गाँवों की आमदनी से सन्तुष्ट न होकर मेड़ते और नागोर पर भी अधिकार करना चाहता था । परन्तु शुरू में महाराज के लिहाज़ से चुप रहकर भी अन्त में सिंघी इन्द्रराज ने इस बात को मंजूर न किया । इसी से अमीरखाँ मनमें उससे नाराज़ था। ऊपर से खींवसी आदि ने उसे और भी भड़का दिया । ३. साथ ही उन्होंने यह वादा किया कि उन दोनों की हत्या करने वालों को भी वे सज़ा न होने देंगे। ४. महाराज ने इसकी जोधपुर का राज्य प्राप्त होने की भविष्यवाणी के सच हो जाने के कारण, राज्य का सारा कारबार इसे ही सौंप दिया था । ५. महाराज ने उसकी सेवा का ख़याल कर साधारण नियम के विरुद्ध उसकी लाश को सीधे मार्ग से किले से बाहर ले जाने की आज्ञा दी | ४१७ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास का, भय दिखला कर उसकी तरफ़ से महाराज से प्रार्थना करवाई । इस पर महाराज ने लाचार हो अपनी आज्ञा वापस लेली और हत्याकारियों को किले से कु निकल जाने दिया । इसके बाद अमीरख़ाँ ने महाराज से मिलने की इच्छा प्रकट की । परन्तु इन्होंने उसकी सूरत देखने से ही इनकार कर दिया । यस देवनाथ और सिंघी इन्द्रराज की मृत्यु से महाराज को इतना रंज हुआ कि यह उसी दिन से राजकार्य से उदासीन होकर गुम रहने लगे । इसके बाद षड्यंत्रकारियों ने साढे नौ लाख रुपये देने का प्रबन्ध कर आउवा, आसोप, नींबाज़, चंडावल और कंटालिया के सरदारों की सलाह से दीवानी का काम मुहता खैचंद को और बख्शी का काम भंडारी चतुर्भुज को सौंपा । इसी प्रकार अन्य राजकीय पदों पर भी अपने पक्षवालों को नियत किया । जब इस घटना की सूचना सिंघी इन्द्रराज के छोटे भाई गुलराजे को मिली, तब वह महाराज से गुप्त तौर पर आज्ञा लेकर दो हजार सवारों के साथ जोधपुर की तरफ़ चला । उसके वि० सं० १८७३ की माघ सुदि ३ ( ई० स० १८१७ की २० जनवरी) को राईकेबाग पहुँचने पर उपर्युक्त पाँचों सरदार और भंडारी चतुर्भुज चांदपौल दरवाज़े की तरफ़ होकर चौपासनी चले गए । इसी प्रकार मुहता अखचंद ने महात्मा आत्माराम की समाधि की शरण ली । इसके बाद जब गुलराज अपने दल-बल सहित किले पर महाराज के सामने हाज़िर हुआ, तब इन्होंने सान्त्वना देकर राज्य का सारा प्रबन्ध उसे सौंप दिया । इसके बाद महाराज की आज्ञा से गुलराज और फ़तैराज मिल कर राज्य का प्रबन्ध करने लगे । यह देख उपर्युक्त सरदार चौपासनी छोड़ अपनी-अपनी जागीरों में चले गएँ । १. उपर्युक्त सरदारों के नाम: १. बखतावरसिंह, ५ शम्भूसिंह । २. यह उस समय सोजत की सेना का सेनापति था । ३. ये दोनों चचा भतीजे थे । ४. चौपासनी से रवाना होकर ये सरदार चंडावल पहुँचे। वहां पर चंडावल - ठाकुर ने इन्हें दावत दी । परन्तु उसी समय सिंघी चैनकरण के हमला कर देने से उन्हें भोजन करने के पहले ही वहां से भाग जाना पड़ा । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat २. केसरीसिंह, ३. सुलतानसिंह, ४१८ ४. विशनसिंह और www.umaragyanbhandar.com Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाराजा मानसिंहजी इसी वर्ष मुहता साहिबचंद ने सिरोही से चढ़े हुए दण्ड के रुपये वसूल करने के लिये चढ़ाई कर वहाँ के भीतरोट प्रान्त को लूटा । इसके बाद ही महाराज ने मौनधारण कर राज्य कार्य से पूरी उदसीनता ग्रहण करली । यह देख मुहता अखैचंद ने प्रायस देवनाथ के छोटे भाई यस भीमनाथ आदि मुख्य-मुख्य पुरुषों को मिलाकर राजकुमार छत्रसिंहजी को राज्य-प्रबन्ध सौंप देने का षड्यंत्र शुरू किया । उसी की प्रेरणा से भीमनाथ ने स्वयं महाराज से भी इस बात की आज्ञा प्राप्त कर लेने की कोशिश की । परन्तु इन्होंने कुछ जवाब नहीं दिया । अन्त में पड्यंत्रकारियों ने वि० सं० १८७४ की वैशाख वदि ३ ( ई० स० १८१७ की ४ अप्रेल ) को सिंघी गुलराज को क़ैद कर मरवा डाला; और वैशाख सुदि ३ बाद में जब वि० सं० १८७४ ( ई० स० १८१७ ) में राज्य का अधिकार महाराजकुमार छत्रसिंहजी के हाथ में चला गया, तब सिंघी चैनकरण को काराणा के ठाकुर श्यामकरण की हवेली में शरण लेनी पड़ी । परन्तु फिर भी दूसरे सरदार ठाकुर को इसे ( चैनकरण को ) छत्रसिंहजी को सौंप देने के लिये दबाने लगे । अन्त में ठाकुर के सहमत होजाने पर महाराजकुमार छत्रसिंहजी स्वयं जाकर उसे काणाणा की हवेली से ले आए और मरवा डाला । इस प्रकार सरदारों ने उससे अपना बदला लिया । १. सिरोही के इतिहास में लिखा है कि जोधपुर वालों की इस लूट को देखकर महाराव उदयभाणजी ने भी मारवाड़ के गांवों को लूटने का प्रबन्ध किया । इसकी सूचना मिलते ही महाराजा मानसिंहजी ने साहित्रचन्द को फिर से सिरोही को लूटने की आज्ञा दी । उसके इसवार के हमले में, जो वि० सं० १८७४ की माघ दि ८ ( ई० स० १८१८ की ३० जनवरी) को हुआ था, महाराव को सिरोही छोड़कर पहाड़ों में शरण लेनी पड़ी । जोधपुर की फ़ौज ने वहां पहुँच १० दिनों तक नगर को लूटा और करीब ढ़ाई लाख का माल लेकर वह वहां से लौटी। इस आक्रमण में सिरोही का पुराना दफ्तर भी जला दिया गया । यह देख महाराव ने महाराजा मानसिंहजी को दण्ड के रुपये देने के लिये अपनी प्रजा से धन इकट्ठा करना प्रारम्भ किया । परन्तु प्रजा दुखी होकर गुजरात और मालवे की तरफ चली गई और सरदार अप्रसन्न होकर महाराव के भ्राता शिवसिंहजी के पास पहुँचे । अन्त में शिवसिंहजी ने महाराव उदयभाणजी को कैद कर राज्य का प्रबन्ध अपने हाथ में ले लिया । यह घटना वि० सं० १८७४ ( ई० स० १८१८ की है। यद्यपि इसके बाद महाराजा मानसिंहजी ने उदयभाणजी को क़ैद से छुड़वाने के लिये सेना भेजी, तथापि इसमें सफलता नहीं हुई ( देखो पृ० २८० - २८२ ) । परन्तु ये घटनाऐं छत्रसिंहजी की युवराज अवस्था में हुई होंगी | सिरोही पर की दूसरी चढ़ाई का उल्लेख यथास्थान मिलेगा । २. इस पर इसके कुटुम्बी भागकर कुचामन चले गए; क्योंकि वहां का ठाकुर इस षड्यंत्र में शरीक नहीं था । कुड़की का ठाकुर भी सिंधियों से मेल रखता था। इसी से विपक्षियों ४१६ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास (१९ अप्रेल) को भीमनाथ के द्वारा, महाराज की इच्छा न होते हुए मी, उनसे राजकुमार छत्रसिंहजी को युवराज-पद दिलवा दिया । राजकुमार छत्रसिंहजी का जन्म वि० सं० १८५७ की फागुन सुदि । (ई० स० १८०१ की २२ फरवरी) को दुआ था और इस समय उनकी अवस्था करीब १७ वर्ष की थी । इसलिये राज्य-कार्य की देख-भाल मुहता अखैचंद करने लगा । प्रधान का पद फिर से पौकरन-ठाकुर सालमसिंह को दिया गया । कुछ ही दिनों में मुंहलगे लोगों के कहने से महाराज-कुमार ने नाथ संप्रदाय को त्याग कर वैष्णव-संप्रदाय की दीक्षा ग्रहण करली । इसके बाद पिंडारी युद्ध के समय वि० सं० १८७४ की पौष वदि ३० (ई० स० १८१८ की ६ जनवरी) को गवर्नर-जनरल मार्किस ऑफ़ हेस्टिंग्ज के समय "ईस्ट इण्डिया कम्पनी" और जोधपुर-राज्य के बीच यह संधि हुई:१. इंगलिश ईस्ट इंडिया कम्पनी और महाराजा मानसिंहजी तथा उनके उत्तरा धिकारियों के बीच पूरी और पक्की मित्रता रहेगी। दोनों तरफ़वाले एक दूसरे के शत्रु और मित्र को अपना शत्रु और मित्र समझेंगे । २. ब्रिटिश गवर्नमैन्ट मारवाड़ राज्य की रक्षा का जिम्मा लेती है । ३. महाराजा मानसिंहजी, उनके वंशज और उत्तराधिकारी ब्रिटिश-गवर्नमैन्ट के अधिकार-युक्त सहयोग से काम करेंगे । वे लोग किसी अन्य राजा या राज्य से किसी प्रकार का (राजनैतिक ) सम्बन्ध नहीं रक्खेंगे। ४. महाराज, उनके वंशज और उत्तराधिकारी ब्रिटिश-गवर्नमैन्ट को सूचित किए विना या उसकी आज्ञा के विना किसी राजा या राज्य से किसी प्रकार की (राजनैतिक) बात-चीत नहीं करेंगे । परन्तु उनकी साधारण लिखा-पढ़ी अपने मित्रों और संबंधियों के साथ जारी रहेगी। ने पंचोनी गोपालदास को उस पर चढ़ाई करने की आज्ञा दी। उसके वहाँ पहुँचने पर एक बार तो वहाँ वालों ने उसका सामना किया, परन्तु अन्त में राजकुमार की अधीनता स्वीकार करली। १. ख्यातों से यह भी प्रकट होता है कि षड्यंत्रकारियों ने कई वार महाराजा मानसिंहजी को मार डालने तक की चेष्टाएं की। परन्तु इनकी सावधानी के कारण वे सफल मनोरथ न हो सके। २. ए कलेक्सन ऑफ ट्रीटीज़ ऐंगेजमैंट्स ऐंड सनद्स, भा० ३, पृ० १२८-१२६ । ४२० Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाराजा मानसिंहजी ५. महाराजा, उनके वंशज और उत्तराधिकारी किसी पर एकाएक हमला नहीं करेंगे । यदि कोई मामला ऐसा आ पड़ेगा तो उसे सुलझाने के लिये पहले ब्रिटिश-गनर्नमैन्ट के सामने पेश करेंगे । ६. राज्य की तरफ़ से सिंधिया को जो कर दिया जाता है वह अबसे ब्रिटिश गवर्नमैन्ट को दिया जायगा और इस राज्य के और सिंधिया के बीच कर-सम्बन्धी सम्बन्ध नहीं रहेगा । ७. महाराजा ने प्रकट किया है कि सिवाय सिंधिया के अन्य किसी राज्य को आज तक कर नहीं दिया गया है; और अब वही कर ब्रिटिश-गवर्नमैन्ट को दिया जायगा । अतः सिंधिया या और कोई दूसरा करका दावा करेगा तो ब्रिटिश-गवर्नमैन्ट उसकी उत्तरदायी होगी। जोधपुर-राज्य ब्रिटिश-गवर्नमैन्ट के कार्य के लिये १,५०० सवार रक्खेगा; और वह ज़रूरत के समय केवल राज्य-रक्षा के लिये सैनिकों की उपयुक्त संख्या देश में रख कर, राज्य की सारी शक्ति से ब्रिटिश सरकार की मदद करेगा। १. महाराजा, उनके वंशज और उत्तराधिकारी देश के कार्यों में पूरे स्वाधीन रहेंगे; और उनके देश में ब्रिटिश-गवर्नमैन्ट का किसी प्रकार का दखल नहीं रहेगा। १०. यह सन्धि दिल्ली में की गई, और इस पर मि० मैटकाफ और व्यास बिशनराम तथा व्यास अभैराम के हस्ताक्षर और मुहरें हुईं । आज से ६ सप्ताह के भीतर, इस पर गवर्नर-जनरल के और राजराजेश्वर महाराजा मानसिंहजी तथा युवराज कुंवर छत्रसिंहजी के हस्ताक्षर होकर इसकी प्रतियां एक दूसरे के पास भेजदी जायगी । १, सिंधिया ने ई० स० १८१८ की २५ जून ( वि० सं० १८७५ की आषाढ़ वदि ७) को, अजमेर अंगरेज़ों को दे दिया । इसलिये उसी वर्ष की २८ जुलाई (वि० सं० १८७५ की सावन वदि ११) को सर डेविड ऑक्टरलोनी ने वहाँ जाकर उस पर अधिकार कर लिया। गवर्नमेंट को मेरवाड़े के इलाके पर अधिकार करने में मारवाड़ की सेना ने भी मदद दी थी। यह प्रान्त अजमेर से ३२ मील पश्चिम में है। इसके जोधपुर राज्यान्तर्गत प्रदेश पर ही तत्कालीन कमिश्नर मि० डिक्सन ने नयाशहर-ब्यावर बसाया था। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास इसके अनुसार बाहरी आक्रमणों से जोधपुर की रक्षा करने का भार उक्त कम्पनी ने अपने ऊपर लेलिया और इसकी एवज में युवराज छत्रसिंहजी ने सिंधिया को जो कर दिया जाता था वह (१,०८,००० रुपये ) कम्पनी को देना अङ्गीकार करलिया । इसी सन्धि के बाद मारवाड़ के नाँवा, सांभर आदि प्रान्तों पर से अमीरखाँ का दखल उठ गया । 'सिरोही के इतिहास' से ज्ञात होता है कि महाराजा मानसिंहजी की आज्ञा से, वि० सं० १८७४ की माघ वदि ८ (ई० स० १८१८ की ३० जनवरी) को, मुहता साहिबचंद ने फिर सिरोही पर हमला किया । इस पर महाराव उदयभाणजी तो शहर छोड़ कर भाग गए और साहिबचन्द ने वहां के दफ्तर आदि जलाकर १० दिन तक नगर को लूटा । इस लूट में ढाई लाख रुपये उसके हाथ लगे । इसके बाद सिरोही के महाराव ने जोधपुर-महाराज को, उनके द्वारा मांगे गए, दण्ड के रुपये देने के लिये इधर-उधर से रुपया वसूल करना शुरू किया । वि० सं० १८७४ की चैत्र वदि ४ ( ई० स० १८१८ की २६ मार्च ) को युवराज छत्रसिंहजी का स्वर्गवास हो गया । इस पर सरदार और मुत्सद्दी मिलकर राजकार्य चलाने और किसी को ईडर से लाकर गोद बिठाने का विचार करने लगे। ऐसे समय महाराज ने और भी उदासीनता प्रदर्शित की । परन्तु इसके पूर्व गवर्नमैन्ट से सन्धि हो चुकी थी । इसलिये जैसे ही इन घटनाओं की सूचना उसे मिली, वैसे ही उसने मुंशी बरकतअली को यहां का असली हाल जानने के लिये रवाना किया । वि० सं० १८७५ के आश्विन (ई० स० १८१८ के सितम्बर ) में वह जोधपुर आया और सरदारों के साथ जाकर महाराज से मिला । सरदारों को साथ देख महाराज उदासीन ही बने रहे । परन्तु जब दूसरी वार वह इनसे अकेले में मिला, तब महाराज ने आदि से अन्त तक का सारा वृत्तान्त उसे कह सुनाया । इस पर उसने महाराज को सान्त्वना दी और लौट कर सारा हाल गवर्नर-जनरल के एजैन्ट से कहा । यह सुन उसने गवर्नमैन्ट की तरफ़ से महाराज को एक खरीता भिजवा दिया । उसमें लिखा था कि आपके, राज्य-प्रबन्ध फिर से अपने हाथ में लेलेने पर, राज्य के भीतरी मामलों में कम्पनी किसी प्रकार का हस्तक्षेप न करेगी। इससे १. पृ० २८१ । ४२२ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाराजा मानसिंहजी जब महाराज को उधर का विश्वास. हो गया, तब इन्होंने उदासीनता त्याग कर सरदारों और मुत्सदियों पर अपनी कृपा प्रकट की और कार्तिक सुदि ५ (ई० स० १८१८ की ३ नवम्बर ) को क़रीब ३ वर्ष बाद राजसी ठाट से बाहर आकर दर्बार किया । इसमें मुहता अखैचंद आदि को यथावत् कार्य करते रहने का आदेश दिया गया। जब कुछ दिनों में सबको महाराज की तरफ़ का विश्वास हो गया, तब अचंद ने राज्य की आमदनी बढ़ाने के लिये प्रत्येक सरदार से एकएक गांव राज्य को लौटा देने की प्रतिज्ञा करवाई । इसके बाद वि० सं० १८७७ को वैशाख सुदि । ( ई० स० १८२० की २१ अप्रेल ) को जिस समय अचंद मंडोर से लौट रहा था, उस समय नागोरी दरवाजे के बाहर पड़ी हुई राज्य की वेतन-भोगी विदेशी-सेना ने, अपनी तनख़्वा के न मिलने के कारण, उसे पकड़ लिया। इस पर इधर तो महाराज उसके छुड़वाने का प्रबन्ध करने लगे और उधर इन्होंने वि० सं० १८७७ की वैशाख सुदि १४ ( ई० स० १८२० की २७ अप्रेल ) को अखैचंद के ८४ अनुयायियों को किले में कैद करवादिया । इसके बाद अखचंद भी लाकर किले में, झरने के पास, पहरे में रक्खा गया । प्रथम ज्येष्ठ सुदि १४ (ई० स० १८२० की २६ मई ) को उनमें के अखैचंद आदि आठ मुखियाओं को ज़बरदस्ती विष-पान करवाकर या सख़्ती करवा कर मार डाला गया । इसके बाद द्वितीय ज्येष्ठ सुदि १३ (ई० स० १८२० की २४ जून) को फिर कुछ आदमी कैद किए गए; और इसके दो दिन बाद नींबाज-ठाकुर की हवेली पर सिंघी तैराज आदि की अधीनता में सेना भेजी गई । इस पर पहले तो ठाकुर सुलतानसिंह ने मकान के अन्दर से इसका सामना किया, परन्तु अन्त में १. खीची बिहारीदास भाग कर खेजड़ले की हवेली में चला गया था, इसलिये महाराज ने उस पर सेना भेजी । वहां युद्ध होने पर वह मारा गया । २. इनमें से (१) लोडते के नथकरण, (२) मुहता अखैचन्द, (३) व्यास बिनोदीराम, (४) पंचोली जीतमल और (५) जोशी फ़तचन्द को तो ज़हर पिला कर मारा गया और (१) धांधल दाना, (२) मूला और (३) जीया को सख्ती करवा कर मारा गया । ३. जोशी श्रीकृष्णा, मुहता सूरजमल और उसके कुटुम्बी, व्यास शिवदास और पंचोली गोपालदास । इनमें के पहले दोनों भादों सुदि ४ (ई० स० १९२० की ११ सितम्बर ) को विष द्वारा मारे गए। ४२३ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास वह दरवाजे के बाहर आते हुए वीरता से लड़कर मारा गया । यह देख पौकरनठाकुर सालमसिंह भागकर पहले महामन्दिर में नाथजी की शरण में जा रहा और बाद में पौकरन चला गया । उसी समय अन्य अनेक षड्यंत्रकारी सरदारों की जागीरें जब्त करली गई और इसके बाद भादों (अगस्त) के महीने में विपक्ष के और भी बहुत से लोगों को अनेक तरह के दण्ड दिए गएं । परन्तु जिन्होंने उचित सेवाएं की थीं उन्हें पुरस्कृत कर उनकी पद-वृद्धि की गई । वि० सं० १८७८ ( ई० स० १८२१ ) में सिंघी मेघराज और धांधल गोरधन को संधि के अनुसार १,५०० सवारों के साथ अंगरेजों की सहायता के लिये दिल्ली की तरफ़ रवाना किया । करीब एक वर्ष के बाद ये लौटकर जोधपुर आए। इसी बीच देवनाय के भ्राता भीमनाथ और पुत्र लाडूनाथ के आपस में झगड़ा उठ खड़ा हुआ । इस पर महाराज ने महामन्दिर नामक गाँव लाडूनाय को सौंप दिया और भीमनाथ के लिये नगर के बाहर उदयमन्दिर नामक गाँव बसाकर उसे अलग १. इसके बाद यह लौट कर जोधपुर नहीं आया । वि० सं० १८७८ ( ई० स० १८२१) में पौकरन में ही इसका देहान्त हुआ। २. आसोप-ठाकुर केसरीसिंह इस समाचार को सुन आसोप से देसणोक (बीकानेर-राज्य में ) चला गया। वहीं पर उसका देहान्त हुआ। इससे आसोप पर राज्य का अधिकार हो गया। इसी प्रकार चंडावल, खेजड़ला, रोहट, नींबाज, साथीण आदि के ठाकुर भी भाग कर मेवाड़ चले गए और उनकी जागीरें ज़ब्त हो गई । पौकरन के मजल और दूनाडा भी जब्त किए गए। इसी प्रकार इन सरदारों के ज़िलायतों के गांव भी छीन लिए गए। खींवसर-ठाकुर कैद किया गया। यह करीब ५ वर्ष के बाद दण्ड के रुपये देकर कैद से छूटा। प्राउवे के ठाकुर की जागीर भी ज़ब्त करली गई। यति हरकचन्द, जो छत्रसिंहजी का वैद्य था । कैद किया गया। लोदा कल्याणमल का छोटा भाई तेजमल, जिसको महाराज ने राव की पदवी दी थी, महाराज-कुमार छत्रसिंहजी के मामले में मुहता अखेचन्द से मिल गया था। इससे महाराज उससे नाराज़ थे। परन्तु अन्त में सिंघी फौजराज के सम्बन्ध से उसके कुटुम्ब वालों को माफी देदी गई । ३. राजकार्य चलाने के लिये (१) सिंघी फतैराज, (२) भाटी गजसिंह, (३) छांगांणी कचरदास, (४) धांधल गोरधन और (५) नाज़िर इमरतराम की कमेटी बनाई गई । ४. वि० सं० १८८५ ( ई० स० १८२८) में लाडूनाथ का स्वर्गवास होगया । ४२४ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाराजा मानसिंहजी आजीविका दी । परन्तु फिर भी उनका झगड़ा शान्त न हुआ। उलटा उनके कारण राज-कर्मचारियों के भी दो दल होगए । सिंघी फ़तैराज और भाटी गजसिंह लाडूनाथ के पक्ष में हुए और धांधल गोरधन और नाज़िर इमरतराम भीमनाथ के पक्ष में । इस प्रकार दलबंदी होने पर एक पक्ष के कर्मचारी दूसरे पक्ष की रिशवत की शिकायतें करने लगे । इस पर जिस-जिस पर जितना-जितना रिशवत का अभियोग सिद्ध होता गया, उस-उससे महाराज ने उतने-उतने रुपये वसूल करलिए। वि० सं० १८८० के भादों (ई० स० १८२३ के सितम्बर ) में उन सरदारों के वकीलों ने, जिनको जागीरें महाराज ने जब्त करली थीं, अजमेर जाकर पोलिटिकल एजैण्ट मिस्टर एफ. विल्डर से महाराज के विरुद्ध शिकायत की । परन्तु उसने उन्हें महाराज के पास जाकर फैसला करवाने की सलाह दी । इसी के अनुसार जब वे लोग मारवाड़ के चौपड़ा गांव में पहुंचे, तब महाराज ने उन्हें पकड़वा कर जोधपुर के किले में कैद करवा दिया । परन्तु आउवे का वकील पंचोली कॉनकरण बचकर निकल गया। जब उसने अजमेर पहुँच मिस्टर विल्डर को सारा हाल कहा, तब उसने अजमेरस्थित महाराज के वकील को कहकर उन सबको छुड़वा दिया, और महाराज को उन सरदारों पर दया करने की सिफारिश लिखी। इस पर ( ई० स० १८२४ के प्रारम्भ में ) महाराज ने भी कुछ सरदारों की जागीरें लौटा देने की आज्ञा देदी । परन्तु सरदारों के जिलेवालों और छुट-भाइयों की जागीरें लौटाने का हुक्म नहीं दिया । मिस्टर विल्डर ने जब महाराज को फिर इस मामले पर विचार करने का लिखा, तब महाराज ने उसे वापस लिख भेजा कि बूडसू और चंडावल के ठाकुर तो सिफ़ारिश करवाना और दया प्राप्त करना चाहते ही नहीं हैं । हां, आउवा, आसोप, नींबाज और रास के ठाकुरों को, यद्यपि वे दया के पात्र नहीं हैं, तथापि ब्रिटिश-गवर्नमैन्ट के कहने से वे जागीरें, जो महाराजा बखतसिंहजी के समय उनके पास थीं, ६ महीने में लौटा दी जायँगी । इसके बाद यदि वे हमारी आज्ञानुसार चलेंगे तो उन पर और भी कृपा की जायगी । इनके अलावा अन्य छोटे जागीरदार भी यदि ब्रिटिश-गवर्नमैन्ट की मदद प्राप्त करने की कोशिश न कर हमैं प्रसन्न करने की कोशिश करेंगे तो उनकी जागीरें भी लौटा दी जायँगी । इस पर पोलिटिकल एजैंट एफ. विल्डर ने भी महाराज १. इनमें बासनी, आसोप, आउवा, चंडावल, नींबाज आदि के वकील थे। ४२५ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास को आगे से उनके अन्तरंग मामलों में गवर्नमैन्ट के हस्तक्षेप न करने का विश्वास देदियो । उन दिनों राज्य में नाथों का प्रभाव बढ़ा हुआ होने से नित्य नए दीवान बदले जाते थे और राज-कार्य का प्रबन्ध शिथिल हो रहा था । इससे मेरवाड़े की तरफ़ के मेर और मीणे इधर-उधर लूट-मार कर उपद्रव करने लगे । जब राज्य की तरफ़ से इसका प्रबन्ध ठीक तौर से न होसका, तब गवर्नमैन्ट ने जोधपुर की सेना की सहायता से वहां के बागियों को कैद कर इस उपद्रव को शान्त किया। वि० सं० १८८० की फागुन सुदि ५ ( ई० स० १८२४ की ५ मार्च) को उक्त प्रदेश के २१ गांव, जो चांग और कोट किराना परगने में थे, और जिन पर जोधपुर-महाराज का अधिकार था, आठ वर्ष के लिये, गवर्नमैन्ट ने अपने अधिकार में ले लिए और उनके प्रबन्ध के खर्च के लिए १५,००० रुपये सालाना भी राज्य से लेना तय किया । परन्तु इसके साथ एक शर्त यह भी की गई कि इन गांवों की आमदनी के रुपये इन रुपयों में से बाद देदिए जायेंगे। इन्हीं दिनों सिरोही की सरहद से मिलते हुए जालोर आदि के प्रदेशों के उपद्रव को दबाने का भी प्रबन्ध किया गया । वि० सं० १००१ ( ई० स० १८२४ ) में भंडारी भानीराम ने आपस की शत्रुता के कारण सिंघी तैराज के विरुद्ध एक षड्यंत्र रचा और उसकी तरफ से लिखा गया धौंकलसिंह के नाम का एक जाली पत्र बनवाकर महाराज के सामने पेश किया । इस पर महाराज ने वि० सं० १८८२ के प्रारम्भ में तैराज और उसके भाई-बन्धुओं को कैद कर उसका दीवानी का काम भानीराम को देदिया । कुछ दिन बाद ही उस (भानीराम ) ने महाराज के हस्ताक्षर की एक जाली चिट्टी बनवाकर रुपये वसूल करने की कोशिश की। परंतु इसमें वह पकड़ा गया । इससे सारा भेद १. ए कलैक्शन ऑफ ट्रीटीज़ ऐंगेजमैंट्स एण्ड सनद्स, भा० ३, पृ० १३०-१३१ । २. ए कलैक्शन ऑफ ट्रीटीज़ ऐंगेजमैट्स एण्ड सनद्स, भा० ३, पृ० १३१-१३२ । ३. परन्तु साथ ही सिंघी फौजराज को, जिसकी अवस्था केवल १४ वर्ष की थी, इस काम में उसके साथ कर दिया । वि० सं० १८८२ ( ई० स० १८२५) में जोशी शंभुदत्त को फौजराज के साथ काम करने के लिये नियत किया। इसके बाद कुछ काल तक शम्भुदत्त ने अकेले ही दीवानी का काम किया । ४२६ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाराजा मानसिंहजी खुल गया। तहकीकात के बाद जाली पत्रों के लिखनेवाले बागा जालोरी का हाथ कटवाकर उसे देश से बाहर निकाला गया और भंडारी भानीराम कैद किया गया। वि० सं० १८८४ ( ई० स० १८२७ ) में राज्य का प्रबन्ध नाथजी के मुसाहिब मुहता उत्तमचंद और मुहता जसंरूप के हाथ में था । इसी से इस वर्ष के सावन ( जुलाई ) में उन्होंने आउवे पर अधिकार करने के लिये एक सेना खाना की। यह देख इधर तो वहां के ठाकुर ने दृढ़ता से उसका सामना किया, और उधर नींबाज और रास आदि के ठाकुरों के साथ धौंकलसिंह से मिलकर डीडवाने पर उस (धौंकलसिंह ) का अधिकार करवादिया । इस पर महाराज ने सिंघी फ़ौजराज को फौज लेकर उधर जाने की आज्ञा दी । उसने वहां पहुँच नींबाज के ठाकुर सांवतसिंह और रास के ठाकुर भीमसिंह को अपनी तरफ़ मिला लिया, और आउवे पर आक्रमण करनेवाली सेना को भी वापस बुलवालिया । इस पर नींबाज और रास के ठाकुर धौंकलसिंह को छोड़ जोधपुर चले आए और ठाकुर बखतावरसिंह आउवे लौट गया। इसलिये डीडवाना फिर महाराज के अधिकार में आगया । इसी वर्ष नागपुर का राजा मधुराजदेव भोंसले अंग्रेज़ों से हारकर जोधपुर आया। महाराज ने शरणागत की रक्षा करना क्षत्रिय का धर्म समझ उसे महामन्दिर में ठहरा दिया । अन्त में जब गवर्नमैन्ट ने उसे अपने हवाले कर देने को लिखा, तब महाराज ने उसे वापस लिख दिया कि यदि आप हमें अपना मित्र समझते हैं तो भोंसले चाहे आपकी निगरानी में रहे चाहे हमारी । इसमें कुछ विशेष अन्तर नहीं है। इसके अलावा यदि यह किसी प्रकार का उपद्रव करेगा तो उसकी ज़िम्मेदारी हम पर होगी। यह उत्तर पा गवर्नमैन्ट चुप हो रही । कई वर्ष बाद यह भोंसले यहीं मर गया । इसी वर्ष फिर एकवार धौंकलसिंह के पक्षवालों ने जयपुर में सेना इकट्ठी कर जोधपुर पर चढ़ाई करने का इरादा किया । यह देख महाराज ने इस विषय में गवर्नमैन्ट से सहायता मांगी । इसकी सूचना मिलते ही उसने जयपुर-नरेश को धमका कर इस चढ़ाई को रुकवा दिया । इस पर धौंकलसिंह को फिर जज्झर की तरफ जाना १. परन्तु वि० सं० १८६७ के ज्येष्ठ ( ई० स० १८४० के जून ) में इसे, मिस्टर लडलो के लिखने से, महामन्दिर छोड़ कर, जोधपुर से बाहर चला जाना पड़ा। २. इसपर धौंकलसिंह जज्मर की तरफ चला गया । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास पड़ा । इसी के साथ गवर्नमैन्ट ने महाराजा मानसिंहजी को अपने घरका झगड़ा मिटाकर राज्य व्यवस्था को ठीक करने का भी लिखा । वि० सं० १८८५ ( ई० स० १८२८) में किशनगढ़ में भी सरदारों का उपद्रव उठ खड़ा हुआ । इस पर उस वर्ष के भादों ( सितम्बर ) में किशनगढ-नरेश कल्याणसिंहजी कुछ दिन के लिये जोधपुर चले आए । महाराज ने उनका सत्कार करने में किसी प्रकार की कसर नहीं रक्खी । वि० सं० १८८८ ( ई० स० १८३१ ) में राजपूताने के पोलिटिकल एजैन्ट ने राजस्थान के अन्य नरेशों के साथ ही महाराज को भी अजमेर आकर गवर्नर-जनरल से मिलने का लिखा । इस पर पहले तो महाराज ने वहां जाने की तैयारी की, परन्तु अन्त में यह विचार त्याग दिया । यह देख यद्यपि गवर्नमैन्ट ने प्रकट रूप से तो कुछ नहीं कहा, तथापि यह बात उसे बुरी लगी। इसी वर्ष बगड़ी के ठाकुर शिवनाथसिंह ने बगावत की और बूडसू वालों ने भी, जो वि० सं० १८८५ (ई० स० १८२८) से बागी थे, उसका साथ दिया । वि० सं० १८८६ ( ई० स० १८३२ ) में जब उन लोगों ने जैतारन को लूट लिया, तब महाराज ने सिंघी कुशलराज को उन्हें दण्ड देने की आज्ञा दी। उसने वहां पहुँच उन्हें मेवाड़ की तरफ़ भगा दिया । वि० सं० १८९० ( ई० स० १८३३ ) में पोलिटिकल एजैन्ट ने महाराज को सन्धि के अनुसार करके रुपये भेजने की ताकीद लिखी और यह भी लिखा कि यदि शीघ्र ही इसका प्रबन्ध न हुआ तो गवर्नमैन्ट को सेना भेजनी पड़ेगी। इस पर महाराज ने प्रथम भादों सुदि १४ (२६ अगस्त) को अपने कुछ कर्मचारियों को अजमेर मेज कर मामला निपटा दियो । परन्तु फिर भी नाथों के कारण राज्य-प्रबन्ध ठीक १. इसी वर्ष उससे बगड़ी छीन ली गई थी। २. इस मामले को तय करने को निम्नलिखित पुरुष भेजे गए थे:-- (१) जोशी शम्भुदत्त, (२) सिंघी फौजराज, (३) भंडारी लक्ष्मीचंद, (४) सिंघी कुशलराज,. (५) कुचामन-ठाकुर रणजीतसिंह, (६) भाद्राजन-ठाकुर बखतावरसिंह और (७) धांधल केसरीसिंह । ( उस समय सरदारों में कुचामन और भाद्राजन के ठाकुर ही महाराज के विश्वासपात्र थे।) ४२८ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हो । ख्यातों में लिखा है कि मालानी और बाहड़मेर की तरफ़ के जागीरदार और भोमिये सिंध, गुजरात, कच्छ और भुज में घुस कर चोरी डकैती किया करते थे । गवर्नमेन्ट के कईबार लिखने पर भी जब राज्य की तरफ़ से इसका प्रबन्ध न हो सका, तब उसके प्रतिनिधि ने वि० सं० १८९१ ( ई० स० १८३४ ) में जोधपुर, सिंध और गुजरात से फ़ौजें इकट्ठी कर बाहड़गेर में मुक़ाम किया; और उस प्रान्त के जागीरदारों को मिलने के लिये बुलवाया । इसके बाद जब वे मिलने को आए, तब उनमें के २६ जागीरदारों को कैद कर कच्छ भुज की तरफ़ भेज दिया । बाहड़मेर, जसोल, गुढ़ा, नगर वगैरा पर जो १२,००० रुपये का राज्य-कर लगता था वह गवर्नमैन्ट के यहां जमा होने लेगा, और मालानी का प्रबन्ध पोलिटिकल एजेन्ट ने अपने अधिकार में लेलिया । इसीके साथ वहां की राज्य-कर की आय के उपर्युक्त १२,००० रुपयों में से उक्त प्रान्त के प्रबन्ध के ख़र्च को काट कर बाकी के ( ४,००० ) रुपये जोधपुर राज्य को दिए जाने लगे । वि० सं० १८९३ ( ई० स० १८३६) में वहां का प्रबन्ध पूरी तौर से रैजीडैंट की देख-भाल में होने लगा, और वहां का राजकीय दफ़्तर उठा दिया गया । महाराजा मानसिंहजी. इन्होंने चढ़े हुए रुपयों की एवज़ में सांभर और नांवे की नमक की आमदनी गवर्नमेंट को सौंप दी । परन्तु फिर भी जब गवर्नमैन्ट के पास करके रुपये बराबर नहीं पहुँचे, तब उसने, वि० सं० १८६३ में, पहले सांभर और बाद में नांवे के नमक के दरीबों पर अधिकार कर लिया । १. वि० सं० १८६१ ( ई० स० १८३४ ) के अन्त में फ़ौजराज, कुशलराज और सुमेरमल को क़ैद करवाने के साथ दिया और उक्त स्थान पर सेना भिजवा दी परन्तु पोलिटिकल झगड़ा शान्त कर दिया । । भीमनाथ ने कह सुनकर ही भाद्राजन ज़ब्त करवा एजेन्ट ने बीच में पड़ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat २. इस प्रान्त के ४६० गांवों में से राज्य के केवल एक गांव को छोड़ कर बाकी सब जागीरमातहत हैं, और राज्य को सालाना दारों के अधिकार में हैं | ये जागीरदार जोधपुर के ( १००१३ देसी रुपयों के बदले ) ६६६३-६ ० कलदार रुपये देते हैं । मारवाड़ की ख्यातों में १२,०००) रुपया देना लिखा है । परन्तु इस में अन्य लागें भी शामिल हैं । ( ए कलैक्शन ऑफ ट्रीटीज़ एैगेजमेंटस् एण्ड सनट्स, भा० ३, पृ० ११६ ) । ४२६ www.umaragyanbhandar.com Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास वि० सं० १८१२ की कार्तिक सुदि २ (ई० स० १८३५ की २३ अक्टोबर ) को गवर्नमैन्ट ने मारवाड़ और मेरवाड़े की सरहद के उन २१ गांवों को, जिनको उसने वि० सं० १८८० ( ई० स० १८२४ ) में प्रबन्ध के लिये लिया था, उन्हीं शर्तों पर १ वर्ष के लिये फिर अपने अधिकार में रखने का प्रबन्ध किया । इसी के साथ उसने वहां के ७ गांव और भी इतनी ही अवधि के लिये लेलिए। इन्हीं दिनों मारवाड़ और सिरोही की सरहद पर भील और मीणों ने लूट मार शुरू की । इस पर नीमच से कर्नल शेक्सपीयर, जोधपुर की तरफ़ से गोडवाड़ का हाकिम जोशी सांवतराम और जालोर का हाकिम भंडारी लालचन्द, तथा सिरोही की तरफ़ से दीवान मायाचन्द और सिंघी खूबचन्द सेनाएं लेकर वहां पहुँचे । उक्त प्रदेश की दशा देख गवर्नमैन्ट ने जोधपुर महाराज को वहां के प्रबन्ध के लिये ६०० सवार नियत करने का लिखा । परन्तु राज्य की आय का अधिकांश रुपया भीमनाथ के दबा लेने से इसका कुछ भी प्रबन्ध न होसका।। पहली संधि के अनुसार जोधपुर दरबार की तरफ़ से गवर्नमैन्ट की सहायता के लिये १,५०० सवार रहते थे । परन्तु वि० सं० १८१२ की पौष वदि २ (ई० स० १८३५ की ७ दिसम्बर) को महाराजा के और गवर्नमैन्ट के बीच एक नई सन्धी हुई । इसके अनुसार महाराज ने पूर्व-स्वीकृत १,५०० सवारों की एवज में १,१५,००० रुपये सालाना गवर्नमैन्ट को देने का वादा किया । इसी रुपये से कंपनी की सरकार ने ऐरनपुर में 'जोधपुर लीजियन' नामक सेना तैयार की। १. ए कलैक्शन ऑफ ट्रीटीज़ ऐंगेजमैंट्स एण्ड सनद्स, भा० ३, पृ० १३२-१३३ । यह अवधि वि० सं० १६०० (ई० स० १८४३ ) में समाप्त हुई। उस समय पीछे से लिए हुए ७ गांव तो लौटा दिए गए, परन्तु पहले के २१ गांवों पर वि० सं० १६४२ (ई० स० १८८५) तक गवर्नमेंट का ही अधिकार रहा । उस साल जोधपुर-दरबार और गवर्नमेंट के बीच इस विषय में फिर एक नई सन्धि हुई । २. ए कलैक्शन ऑफ ट्रीटीज़ ऐंगेजमैंट्स एण्ड सनद्स, भा० ३, पृ० १३५ । वि० सं० १८८६ (ई० स० १८३२) में संधि के अनुसार नगर और पारकर के उपद्रवियों को दबाने के लिए गए हुए राज्य के १,५०० सवारों ने अपने कार्य में शिथिलता दिखलाई थी, इसी से गवर्नमेंट ने सवारों के बदले नकद रुपये लेकर नवीन रिसाला बनाना निश्चित किया। ३. वि० सं० १९१४ (ई० स० १८५७ ) में गदर के समय इस सेना ने बग़ावत की, इसी से बाद में इसे तोड़कर इसके स्थान पर ४३ वीं ऐरनपुरा रेजीमेंट कायम की गई । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इसी वर्ष पाली नगर में पहले-पहल प्लेग का आगमन हुआ । उन दिनों राज्य में नाथों का बड़ा प्रभाव था । राज्य का अधिकांश रुपया उनके हाथों में पहुँच जाने पर भी उनकी तृष्णा शान्त नहीं होती थी । इसीलिये उन्होंने राज्य में अनेक प्रकार के कर बढ़वा कर और कई जागीरदारों की जागीरें जब्त करवा कर बड़ा अंधेर मचा रक्खा था । इससे तंग आकर वि० सं० १८६५ ( ई० स० १८३८ ) में सरदारों ने अजमेर स्थित कर्नल सदरलैंड के पास अपनी शिकायतें पेश कीं । महाराजा मानसिंहजी इस पर पहले तो उसने महाराज को अपने राज्य का प्रबन्ध ठीक करने और सरदारों पर होनेवाली सख्तियों को दूर करने के लिये लिखा । परन्तु जब इस पर विशेष ध्यान नहीं दिया गया, तब वि० सं० १८६६ की चैत्र सुदि ६ ( ई० स० १८३९ की २१ मार्च) को स्वयं कर्नल सदरलैंड ( ए. जी. जी. ) और पोलिटिकल एजैंट मि० लडलो राजपूताने की अन्य रियासतों के वकीलों और मारवाड़ के सरदारों को साथ लेकर जोधपुर आए । इस पर महाराज ने उनका यथोचित सत्कार किया । अन्त में आपसकी बातचीत के बाद महाराज ने कुछ सरदारों और उनके वकीलों को बुलवाकर जागीरों के गांवों की सूची बनाने का आदेश दिया; और उसके बनजाने पर उसीके अनुसार सब सर - दारों को उनकी जागीरों के पट्टे देने का वादा कर लिया । परंतु आसोप का नया गोद का मामला मंजूर करने से इनकार करदिया । यह सब होजाने पर भी नाथों को हटाने और अंतरंग-प्रबन्ध के बारे में सदरलैण्ड और महाराज का मत नहीं मिला । १. इसी के अगले वर्ष ( वि० सं० १८६३ = ३० स० १८३६ ) में यह बीमारी जोधपुर नगर में भी पहुँच गई । २. इनमें रास, आउवा, पौकरन, नींवाज, चंडावल, बासनी और हरसोलाव के ठाकुर या उनके प्रतिनिधि थे; और साथीण का ठाकुर भाटी शक्तिदान इनका मुखिया था । ३. वि० सं० १८६६ की वैशाख सुदि ७ ( ई० स० १८३६ की २० अप्रेल ) को महाराज - कुमार सिद्धदानसिंहजी का देहान्त हो गया । इनका जन्म वि० सं० १८६५ की वैशाख सुदि ७ को हुआ था । ४. सरदारों ने शिवनाथसिंह को हटाकर करण सिंह के पुत्र को वहां पर गोद बिठा दिया था । परंतु महाराज ने उसे हटवा दिया। इसके बाद एकवार करणसिंह ने चढ़ाई कर आसोप को घेर लिया । परंतु पौकरन, आउवा और रास के ठाकुरों के तथा बड़े साहब के दबाव से वह सफल न हो सका । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ४३१ www.umaragyanbhandar.com Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास इससे नाराज़ होकर वह अजमेर लौट गया । यह देख पौकरन, आउवा, रास और नींबाज आदि के सरदार भी उसी के साथ पुष्कर चले गए। इसी वर्ष राज्य के ५०० विदेशी सैनिक तनख्वा न मिलने के कारण दो तो लेकर बागी हो गए, और साथीण के भाटी शक्तिदान और नींबाज के ऊदावत शिवनाथसिंह के साथ मिलकर बीलाड़ा और उसके आसपास के गांवों से रुपये वसूल करने लगे । इस प्रकार इधर देश में यह उपद्रव हो रहा था, और उधर नाथों के प्रभाव के कारण गवर्नमेंट को कर का रुपया भी नहीं दिया जा सका। इस पर सावन वदि २ ( २८ जुलाई ) को ए. जी. जी. ने अजमेर में दरबार कर मारवाड़ के सरदारों से पूछा कि हमारी सेना के जोधपुर पर चढ़ाई करने पर यदि युद्ध हो तो तुम किसका साथ दोगे । यह सुन भाटी शक्तिदान ने कहा कि ऐसी हालत में पहले तो महाराज आपसे युद्ध ही नहीं करेंगे । परंतु यदि युद्ध ठन गया तो स्वामिधर्म को निबाहने के लिये, संकट के समय, हमैं महाराज का ही साथ देना पड़ेगा । अन्त में श्रावण सुदि १५ ( २४ अगस्त ) को कर्नल सदरलैंड ने अजमेर से ( गवर्नमेंट की तरफ़ से १७ अगस्त का नसीराबाद में लिखा हुआ ) एक फ़रमान जारी किया । उसमें लिखा था कि:१. संधि के माफिक जो रुपया सालाना गवर्नमैंट को दिया जाना चाहिए था, वह करीब ५ वर्ष से चढ़ रहा है। २. राज्य के कुप्रबन्ध के कारण अन्य राज्यों में रहनेवालों का जो लाखों रुपयों का नुकसान हुआ है, उसकी वसूली का भी कुछ प्रबन्ध नहीं है । ३. राज्य में सर्व-साधारण की तकलीफों को दूर करने के लिये भी यथोचित प्रबंध नहीं हो सका है। १. ख्यातों में लिखा है कि राज्य की तरफ़ से इन रुपयों की एवज़ में जेवर भेजा गया था । पर सरदारों के कहने से सदरलैंड ने उसे लेने से इनकार कर दिया । २. ख्यातों में लिखा है कि साथीण के भाटी शक्तिदान ने एजेंट से साफ़-साफ़ कह दिया था कि जब तक आप महाराज को किसी प्रकार का नुकसान पहुंचाने का इरादा न कर राज्य प्रबंध ठीक करने का उद्योग करेंगे, तब तक हम आपके शामिल रहेंगे । परंतु जिस समय आप का इरादा बदल जायगा, उस समय हम महाराज के शामिल हो जायँगे । परंतु सावन वदि १० को अजमेर में ही शक्तिदान की मृत्यु हो गई । ४३२ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाराजा मानसिंहजी इसलिये गवर्नर-जनरल की आज्ञा से सरकारी सेना मारवाड़ पर तीन तरफ़ से चढ़ाई करेगी । गवर्नमेंट का यह झगड़ा महाराज और उनके मुसाहिबों से है । इसलिये जब तक मारवाड़ की प्रजा सरकारी सेना से शत्रुता नहीं करेगी, तब तक उसको किसी प्रकार की हानि नहीं पहुंचाई जायगी । इसके बाद कर्नल सदरलैंड, पोलिटिकल एजैंट मि० लडलो (Capt. J. Ludlow) और १०,००० सैनिकों को साथ लेकर अजमेर से पुष्कर और मेड़ते होता हुआ जोधपुर की तरफ़ चला । मारवाड़ के बहुत से सरदार भी उसके साथ हो लिए । यह समाचार सुन महाराज स्वयं सदरलैंड के सामने चले, और बनाड के पास पहुँच उससे मिले । दोनों में कुछ देर तक मामले की बात-चीत होती रही, इसके बाद सब लोग जोधपुर चले आएँ। दूसरे दिन महाराज ने जोधपुर का किला गवर्नमैंट को सौंप देना मंजूर कर लिया । इसपर फिर गवर्नमैंट के और महाराज के बीच एक अहदनामा लिखा गया । परंतु यह अहदनामा महाराज ने व्यक्तिगत रूप से लिखा था । इसीलिये इससे इनके उत्तराधिकारियों का संबंध नहीं रक्खा गया। अहदनामे का सारांश आगे दिया जाता है: ब्रिटिश-गवर्नमैन्ट और जोधपुर दरबार के बीच की मित्रता पुरानी चली आती है और वि० सं० १८७५ ( ई० स० १८१८) की संधि से यह और भी पक्की हो गई है। इसी से यह मित्रता आज तक बराबर चली आई है और आगे भी चलेगी। १. इस में के आधे सैनिक गोरे और आधे हिंदुस्थानी थे । इस चढ़ाई में भार-बरदारी के लिये १,००० ऊंट बीकानेर के वकील की तरफ से और १,००० मारवाड़ के सरदारों की तरफ से एकत्रित किए गए थे। २. यह समाचार सुन फौजराज भाद्राजन, कुशलराज कंटालिया और प्रायस लक्ष्मीनाथ अपने जागीर के गांव पांचू ( बीकानेर राज्य ) में चला गया; क्योंकि सरदारों के कहने से सदर लैंड ने इनको राज्य के लिये हानिकारक समम रक्खा था। ३. इसी वर्ष आश्विन बदि ६ (२८ सितम्बर ) से जोधपुर में गवर्नमेंट का डाकखाना खोला गया। ४. ए कलैक्शन् ऑफ ट्रीटीज़ एंगेजमैंट्स एण्ड सनद्स, भा० ३, पृ० १३५-१३७ । ४३३ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास इस समय कर्नल जोहन सदरलैंड के मारफ़त ब्रिटिश-गवर्नमेंट और जोधपुर के महाराजा मानसिंह बहादुर के बीच संधि के ये नियम निश्चित हुए हैं:१. देश के शासन के लिये महाराज, कर्नल सदरलैंड, जागीरदार, मुत्सद्दी, खवास और पासवान मिलकर नियम बनायँगे; और सरदारों और मुत्सदियों आदि के हकों का निश्चय पुराने रिवाजों के अनुसार करेंगे। २. राज्य के मुत्सद्दी राज्य के कार्य को पोलिटिकल एजैंट और महाराजा की आज्ञा से करेंगे। ३. सरदारों, मुत्सदियों, खवासों और पासवानों की पंचायत हमेशा की प्राचीन-शैली के अनुसार राज्य-कार्य को चलायगी । ४. महाराजा की सम्मति होने से सरकारी सेना किले में रहेगी । ५. इस प्रवन्ध से किसी की इज्जत, आबरू और काम आदि में फरक नहीं आयगा। ६. राज-कर्मचारी नये नियमों के अनुसार कार्य करेंगे, परंतु उसमें गड़बड़ करनेवाले के स्थान पर महाराज की सम्मति से दूसरा समझदार राज-कर्म चारी नियुक्त किया जायगा । ७. जिनके हक्क छिन गए हैं उनके हक वाजिब होने पर लौटाए जायेंगे, और ऐसे हक़दारों को महाराज की सेवा कर अपना हक अदा करना होगा। ८. ब्रिटिश-गवर्नमैन्ट मारवाड़ में दरबार का ही शासन चाहती है । इसलिये वह प्रतिज्ञा करती है कि न तो वह स्वयं महाराज के प्रभाव में कमी करेगी न दूसरों को ऐसा करने देगी। 1. गवर्नमैंट का एजैंट और मारवाड़ के मुत्सही मिलकर महाराज की सम्मति और नवीन नियमों के अनुसार गवर्नमैंट के चढ़े-चढ़े रुपयों के भुगतान का और आगे मी खिराज और सवार-खर्च के रुपयों के बराबर भुगताते रहने का समुचित प्रबन्ध करेंगे । साबित कर देने पर नुकसान करनेवाले से, जिसका नुकसान हुआ होगा, उसको हरजाना दिलवाया जायगा; और सिद्ध हो जाने पर मारवाड़ का नुकसान का दावा अन्य रियासतों से वसूल किया जायगा । १०. महाराज ने सरदारों की जागीरें लौटाकर उन्हें पुराने कुसूरों की माफ़ी दे दी है । इसलिये ब्रिटिश-गवर्नमैंट भी उन नाथों, सरदारों और कर्मचारियों को, जिनके खिलाफ शिकायतें हैं, माफ़ी देती है । ४३४ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाराजा मानसिंहजी ११. जोधपुर में ब्रिटिश-एजेंट के रखे जाने से अब आगे न तो किसी पर सख़्ती होने दी जायगी, न ६ धार्मिक सम्प्रदायों के मामलों में हस्ताक्षेप होगा और न मारवाड़ में पवित्र समझे जानेवाले जानवरों ( मोर, कबूतर, गाय आदि) का बध ही किया जायगा। १२. यदि राज्य का प्रबन्ध ६ महीनों, १२ महीनों या १८ महीनों में ठीक तौर से हो जायगा तो पोलिटिकल-एजेंट और सेना किले पर से हटाली जायगी । यदि यह प्रबन्ध इससे पहले ही हो जायगा तो गवर्नमैंट को बड़ी प्रसन्नता होगी और वह इसे नेकनामी का कारण समझेगी । १३. यह अहदनामा जोधपुर में २४ सितंबर १८३६ ( वि० सं० १८१६ की आश्विन वदि १) को लै फ़्टिनेंट-कर्नल सदरलैंड द्वारा निश्चित होकर गवर्नरजनरल के पास मंजूरी या रद्दोबदल के लिये भेजा जायगा, और वहां से महाराजा के नाम ( इस विषय का ) खरीता भिजवाया जायगा । इसके बाद आश्विन वदि ६ (२८ सितंबर) को जोधपुर का किला अंगरेजी सेना को सौंप दिया गया । परंतु सामान आदि की रक्षा के लिये १०० आदमी महाराज की तरफ़ के भी वहां रहे । गवर्नमेंट की सेना के करीब ३५० सैनिक तो किले में ठहरे और बाकी के मंडोर और बालसमंद के बीच ( किले से करीब ५ मील के फासले पर ) रहे। कर का रुपया वसूल हो जाने पर गवर्नमैंट ने सांभर और नांवा के नमक के दरीबे दरबार को लौटा दिए। इसके बाद पहले की सूची के अनुसार सरदारों की जागीरें १. इस संधि पर महाराज की तरफ़ से लोढा राव रिधमल और सिंघी फौजमल ने हस्ताक्षर किए थे । ( यह संधि कर्नल सदरलैंड ने, जिसको भारत के गवर्नर-जनरल लॉर्ड ऑकलैंड की तरफ से अधिकार मिला था, की थी। ) २. भटनोखा के करमसोत राठोड़ भोमसिंह ने, जो किले पर था, वहां पर अंगरेज़ों के अधि कार को होते देख पोलिटिकल-एजेंट मिस्टर लडलो पर एकाएक तलवार से हमला कर दिया। परंतु सिपाहियों ने, उस पर वार कर, उसे घायल कर डाला। इससे चार पांच दिन बाद ही उसकी मृत्यु हो गई । मि० लडलो के मामूली चोट लगी थी । महाराज के दुःख प्रकट करने पर यह मामला यहीं शांत हो गया । ३. कुछ दिन बाद ही बाहर के सैनिक जोधपुर से हटा लिए गए । ४३५ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास उन्हें लौटा दी गईं । परंतु कई गांव ऐसे थे जिन पर भिन्न-भिन्न समयों में भिन्न-भिन्न सरदारों के अधिकार रह चुके थे । कर्नल सदरलैंड ने ऐसे गांवों का निर्णय महाराज की इच्छा पर ही छोड़ दिया, और आगे राज्य कार्य चलाने के लिये एक पंचायत बनवादी । इसमें निम्नलिखित सरदार और मुत्सद्दी थे: सरदार १ पौकरन - ठाकुर चांपावत बभूतसिंह, २ आउवा - ठाकुर चांपावत कुशलसिंह, ३ नींबाज-ठाकुर ऊदावत सवाईसिंह, ४ रास-ठाकुर ऊदावत भीमसिंह, ५ रीयांठाकुर मेड़तिया शिवनाथसिंह, ६ कुचामन - ठाकुर मेड़तिया रणजीतसिंह, ७ आसोप ठाकुर कूंपावत शिवनाथ सिंह ( यह बालक था । इससे कंटालिये का ठाकुर शंभूसिंह इसका प्रतिनिधि रहा ) और ८ भाद्राजन ठाकुर जोधा बख़तावरसिंह । मुत्सद्दी १ दीवान सिंघी गंभीरमल, २ बख़्शी सिंघी फौजराज, ३ धायभाई किलेदार देवकरण, ४ वकील रावे रिधमल और ५ जोशी प्रभुलाल । इसके बाद पोलिटिकल एजैंट लडलो सूरसागर में रहने लगा और कर्नल सदरलैंड जयपुर की तरफ़ होता हुआ कलकचे चला गया । कुछ दिन बाद जब फागुन सुदि १२ ( ई० स० १८४० की १५ मार्च ) को वह वहां से लौटकर आया, तब उसने क़िला महाराज को सौंप दिया । इसके बाद चैत्र (अप्रेल) में कर्नल सदरलैंड अजमेर चला गया और राजकार्य की देखभाल मि० लडलो के ज़िम्मे रही । १. इसके स्थान पर कहीं-कहीं रायपुर-ठाकुर का उल्लेख मिलता है । किसी-किसी ख्यात में दोनों का नाम नहीं है । २. क़िला वापस मिलने पर महाराज ने रिधमल को 'रावरजा बहादुर' का ख़िताब और सरोपाव दिया था। ३. वि० सं० १८६७ के आश्विन ( ई० स० १८४० के सितम्बर) में सिवाने परगने के बागियों ने आसोतरा - ठाकुर शक्तसिंह के पुत्र रत्नसिंह को धौंकलसिंह का पुत्र बनाकर वहां पर उपद्रव खड़ा किया। परंतु सिंघी फौजराज ने जाकर उन्हें दबा दिया । ४३६ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाराजा मानसिंहजी कुछ दिन बाद पोलिटिकल-एजैंट ने महाराज को लिखा कि कुचामन और भाद्राजन के सरदारों और नाथों के पास बहुत बड़ी-बड़ी जागीरें हैं । इसलिये उनमें कमी होनी चाहिए । इस पर दोनों जागीरदारों से कुछ गांव राज्य में लेलिए गए, परन्तु नाथों का प्रबन्ध न हो सका और उनका अन्याय उसी प्रकार बना रहा । यद्यपि एजेंट ने इस विषय में कईवार महाराज को लिखा, तथापि हरवार इन्होंने इधर-उधर की बातें कर टाल दिया । अन्त में जब मि० लडलो ने बहुत दबाब डाला, तब वि० सं० १८९७ के माघ (ई० स० १८४१ की जनवरी) में महाराज कर्नल सदरलैंड से मिलने अजमेर की तरफ रवाना हुए । इस पर मि० लडलो ने समझाबुझाकर इन्हें बनाड़ से वापस बुलवा लिया । वि० सं० १८१८ (ई० स० १८४१) में कर्नल सदरलैंड ने जोधपुर आकर महाराज से नाथों के प्रभाव को कम करने के लिये बहुत कुछ कहा । परन्तु इसका भी कुछ असर न हुआ । इस पर वि० सं० १८१८ के पौष (ई० स० १८४२ की जनवरी) में मि० लडलो ने नाथों की जागीरै जन्त करली । परन्तु फिर भी महाराज की आज्ञा से उनकी आमदनी गुप्तरूप से नायों के पास भेजदी जाने लगी। यह बात मि० लडलो को बहुत बुरी लगी । इसलिये उसने महाराज पर दबाव डालकर लक्ष्मीनाथ आदि को और उनसे मेल रखनेवाले जोशी प्रभुलाल, सिंघी कुशलराज, व्यास गंगाराम, भंडारी लक्ष्मीचंद, पंचोली कालूराम आदि राज्य-कर्मचारियों को जोधपुर से हटवा कर ४०-५० कोस के फासले के भिन्न-भिन्न स्थानों में भिजवा दिया। यह देख पौकरन-ठाकुर ने लक्ष्मीनाथ से मेल मिलाया और उसे लोभ देकर महाराज से प्रधानगी प्राप्त करली । इसी प्रकार नींबाज-ठाकुर शिवनाथसिंह ने आगेवा और पाटवा तथा कुंपावत करणसिंह ने कुचेरा जागीर में लिखवा लियो । यह ढंग देख मि० लडलो ने नाथों से तीन लाख रुपया सालाना लेकर राज्य में हस्ताक्षेप न करने का प्रस्ताव किया, परन्तु उन्होंने इस पर ध्यान ही नहीं दिया और वे देश में नित्य नए उपद्रव करने लगे। इससे तंग आकर, वि० सं० १९०० -- --- -- - - १. इसी वर्ष के आश्विन ( अक्टोबर ) में पोलिटिकल-एजेंट ने फलोदी जाकर जोधपुर और जयसलमेर के बीच का सरहदी झगड़ा निपटाना चाहा । यह झगड़ा बाप नामक गांव के बारे में था। परंतु इसमें सफलता नहीं हुई । २. ये गांव वि० सं० १८९७ ( ई० स. १८४० ) में देने तय हो चुके थे। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास के वैशाख (ई० स० १८४३ के अप्रेल ) में, उसने दो उपद्रवी नाथों को पकड़ कर अजमेर भेजदिया । इस समाचार को सुन महाराज बहुत दुखी हुए । पहले तो इन्होंने मि० लडलो से मिलकर उन नाथों को छुड़वाने का विचार किया, परन्तु अन्त में वकील रिधमल के समझाने से यह विचार छोड़ दिया । इस घटना से महाराज के चित्त में इतनी ग्लानि हुई की इन्होंने दो दिनों तक भोजन नहीं किया, और फिर वैशाख वदि । (२३ अप्रेल ) को संन्यास लेकर नाज खाना छोड़ दिया । इसके बाद यह ( महाराजा) कुछ दिनों इधर-उधर घूमकर पाल पहुँचे । इनका इरादा वहां से जालोर होकर गिरनार की तरफ जाने का था । परन्तु मि० लडलो ने वहाँ पहुँच इन्हें समझाया कि यदि आप मारवाड़ छोड़ कर चले जायेंगे तो लाचार होकर हमैं दूसरा नरेश गद्दी पर बिठाना पड़ेगा; क्योंकि राज्य बिना राजा के नहीं रह सकता । ऐसी हालत में आपका जोधपुर में रहना अत्यावश्यक है । इस पर यह वहां से लौट कर, आषाढ़ सुदि ४ (१ जुलाई) को, जोधपुर चले आए और नगर के बाहर राईकेबाग में ठहरे । यहीं पर इन्होंने मि० लडलो से अपने पीछे अहमदनगर से तखतसिंहजी को लाकर गोद बिठाने की इच्छा प्रकट की' । इसके बाद सावन सुदि ३ (२६ जुलाई) को यह मंडोर चले गए। वहीं पर वि० सं० १९०० की भादों सुदि ११ (ई० स० १८४३ की ४ सितम्बर) को रात्रि में महाराज का स्वर्गवास होगया । १. ख्यातों में लिखा है कि महाराज-कुमार छत्रसिंहजी के मरने पर, सरदारों की मिलावट से, ईडर-नरेश उनके गोद बैठने को उद्यत हो गए थे। इसीसे महाराज उनसे नाराज़ थे । परंतु मोडास के ठाकुर ज़ालिमसिंह ने महाराज के जालोर का किला खाली करने का विचार करने के समय इनके कुटुम्ब को अपने यहां सुरक्षित रखने की प्रतिज्ञा की यी, इसीसे यह उससे प्रसन्न थे, और तखतसिंहजी के उनकी शाखा में होने से उन्हें अपना उत्तराधिकारी बनाना चाहते थे। २. ख्यातों में लिखा है कि उस दिन महाराज सुफ़ेद वस्त्र अोढकर लेट गए और सबसे कह दिया कि दूसरे दिन प्रातःकाल ब्राह्मण लोग भीतर आकर हमारे शरीर को संभालें, उसके पहले कोई भीतर न आए। महाराज के साथ १ रानी ४ परदायतें और १ दासी सती हुई । ४३८ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाराजा मानसिंहजी महाराजा मानसिंहजी बड़े समझदार, विद्वान् , गुणी और राजनीतिज्ञ थे' । परन्तु सरदारों से अत्यधिक मनोमालिन्य और नाथ-सम्प्रदाय से अत्यधिक प्रेम होने के कारण इनके राज्य में अव्यवस्था बनी रही । इनके राज्य के ४० वर्षों में से सायद ही कोई वर्ष ऐसा बीता हो जिसमें इन्हें चिन्ता न रही हो । परन्तु इस प्रकार संकटों का सामना रहने पर भी इनकी विद्या-रसिकता इतनी बढ़ी-चढ़ी थी कि उसे जानकर आश्चर्य हुए विना नहीं रह सकता । महाराज की सभा में अनेक कवि, गायक, योगी और पण्डित हर समय बने रहते थे । महाराज को स्वयं भी कविता करने का और खास कर मांढ़' (रागिणी ) का शौक था । इनकी बनाई पुस्तकों और फुटकर कविताओं का एक बड़ा संग्रह राजकीय पुस्तकालय (पुस्तक-प्रकाश ) में विद्यमान है । इनमें से 'कृष्णविलास' नामक पुस्तक राज्य की ओर से प्रकाशित हो चुकी है। इसमें श्रीमद्भागवत के दशमस्कन्ध के प्रथम ३२ अध्यायों का भाषा में पद्यानुवाद है । इन्होंने कई हजार हस्तलिखित पुस्तकों का संग्रह कर एक पुस्तकालय बनाया था और उसमें वेद, पुराण, स्मृति आदि अनेक विषयों के ग्रन्थों का संग्रह किया था । इन्होंने रामायण, दुर्गाचरित्र, शिवपुराण, शिवरहस्य, नाथचरित्र आदि अनेक धार्मिक ग्रंथों के आधार पर बड़े बड़े चित्र बनवाए थे । इन चित्रों का अपूर्व संग्रह इस समय राजकीय अजायबघर में रक्खा हुआ है । महाराज में एक खास गुण यह था कि इनके पास आनेवाला कोई भी नया मनुष्य खाली हाथ नहीं लौटता था । इनका सिद्धांत था कि जो कोई किसी के पास जाता है लाभ के लिये ही जाता है, इसलिये यदि उसे खाली लौटा दिया जाय तो फिर एक राजा में और साधारण पुरुष में क्या अन्तर रह जाता है । इनके विषय में मारवाड़ में यह दोहा प्रसिद्ध है: जोध बसायो जोधपुर, व्रज कीनो व्रजपाल । लखनेऊ काशी दिली, मान कियो नेपाल । १. वि० सं० १८७६ ( ई० स० १८२२ ) में मिस्टर विल्डर ने अपने पत्र में गवर्नमेंट को लिखा थाः___महाराजा मानसिंह निश्चय ही बड़े बुद्धिमान और समझदार हैं ( Raja Mansingh is undoubtedly a Man of superior sense and understanding......). Rajputana Gazetteer Vol. III-A, P. 73. २. गवर्नमेंट के ऑर्कियोलॉजिकल डिपार्टमेंट ने भी इस संग्रह की मुक्तकंठ से प्रशंसा की है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास अर्थात्-राव जोधाजी ने तो अपने नाम पर जोधपुर नगर बसाया । महाराजा विजयसिंहजी ने (वल्लभ-संप्रदाय की भक्ति के कारण ) उसे व्रज बना दिया (अर्थात् यहां पर वैष्णवमत का बड़ा प्रचार किया)। परंतु महाराजा मानसिंहजी ने इसे एक साथ ही लखनऊ, काशी, दिल्ली और नेपाल बना दिया (अर्थात् यहां पर महाराज की गुणग्राहकता के कारण अनेक कत्थक, पंडित, गवैये और योगी एकत्रित हो गए थे।) महाराज के बनाए निम्नलिखित स्थान प्रसिद्ध हैं: किले में की जैपौल, जनानी डेवढी के सामने की दीवार, आयस देवनाथ की समाधि, लोहापौल के सामने का कोट, जैपौल और दखना ( दक्षिणी) पौल के बीच का कोट, चौकेलाव से रानीसर तक का मार्ग, उसकी रक्षा के लिये बनी दीवार, भैरूँपौल, चतुर्सेवा की डेवढी पर का नाथजी का मन्दिर और भटियानीजी का महल । __ महाराज ने जुगता बणसूर को 'लाख पसाव' देने के अलावा और भी कई गांव दान किए थे। - ---- -- १. महाराज ने किले में एक सामान रखने का कोठार भी बनवाया था। २. १ खटुकड़ा २ सारंगवा ( देसूरी परगने के ), ३ पतावा ( बाली परगने का ), ४ अनावास ( बीलाड़े परगने का ), ५ चारणवाड़ा ( सिवाना परगने का ), ६ पीथोलाव, ७ दुकोसी ८ ढाढरिया खुर्द ( नागोर परगने के ). इकडाणी (पचपदरा परगने की ) का एक हिस्सा, १० पाडलाऊ, ११ पटाऊ, १२ कूड़ी, ( पचपदरा परगने के ), १३ फरासला-खुर्द ( पाली परगने का ), १४ सींगासण (जोधपुर परगने का), १५ मेडावस १६ मींडावास ( जसवन्तपुर परगने के ), १७ धांधलावास, १८ वेदावड़ी-कलां ( मेड़ता परगने के ), १६ कटारडा २० तोलेसर २१ बासणी फटारी २२ नैरवा और २३ चवां ( जोधपुर परगने के ) चारणों को; २४ हरस-आधा (बीलाड़े परगने का ), २५ चुकावास २६ पालड़ी २७ बासडा २८ फागली ( नागोर परगने के ), २६ धनेड़ी ३० राज नगरिया (सोजत परगने के ), ३१ हरावास (पाली परगने का ), ३२ केसरवाली (जसवन्तपुरा परगने का ), ३३ गोरनडी खुर्द ( मेड़ते परगने का ), ३४ सिरोड़ी ३५ हतूंडी-आधी (जोधपुर परगने के), ३६ गुणपालिया (डीडवाने परगने का ) ब्राह्मणों को; ३७ बाघला, (पचपदरे परगने का ), ३८ अरणु ( जसवन्तपुरे परगने का ), ३६ भैसेर कोटवाली ( जोधपुर परगने का ) पुरोहितों को; ४० सुतला ( जोधपुर परगने का) रामेश्वर महादेव के मन्दिर को; ४१ गांगाणा ( जोधपुर परगने का ) बैजनाथ महादेव के मन्दिर को; ४२ बदड़ा आधा (जोधपुर परगने का ) गोपीनाथजी के मन्दिर को; ४३ पूंदला ४४ लूणावास ४५ राबड़िया ( जोधपुर-परगने के ), ४६ खेतावास ( नागोर परगने का ) यतियों को; ४७ यबूकड़ा ४८ नंदवाण, ४६ तनावड़ा-बड़ा ५० तनावड़ा छोटा ( जोधपुर परगने के ), ५१ खारिया फादड़ा (सोजत परगने का ) नाथों और गुसाँइयों को; ५२ सोढास-शामपुरा ( मेड़ता परगने का ) गया गुरु को; ५३ कीतलसर (नागोर परगने का ) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाराजा मानसिंहजी इनके कई पुत्र हुए थे । परन्तु उन सबका देहान्त इनके सामने ही हो गया । इसीसे इन्होंने स्वर्गवास के कुछ दिन पूर्व ब्रिटिश-पोलिटिकल एजैंट से अहमदनगर के तखतसिंहजी को अपने गोद बिठाने की इच्छा प्रकट की थी, और इनके स्वर्गवास के बाद जब कप्तान लडलो ने इनकी रानियों और राज्य के सरदारों आदि की सम्मति ली, तब उन्होंने भी राजकुमार जसवन्तसिंहजी सहित तखतसिंहजी को अदमदनगर से बुल.. वाकर गद्दी बिठाने की राय दी । इसी से महाराजा तखतसिंहजी अहमदनगर से आकर जोधपुर की गद्दी पर बैठे । सैय्यदों को; ५४ सेढाऊ ( नागोर परगने का ) पठानों को; ५५ राहा ( जसवन्तपुरा परगने का ) साँइयों को; ५६ पालड़ी ५७ पिरथीपुरा ( मेड़ते परगने के ), ५८ रेवड़िया ( सोजत परगने का ), ५६ राणी गांव ( गोडवाड़ परगने का ), ६० बागड़की आधी (बीलाड़े परगने की ), ६१ पोलावासबिशनोइयां ६२ धोलेगव-खुर्द ( मेड़ते परगने के ), ६३ कुचीपला (परबतसर परगने का ) भाटों को; ६४ सरखेजड़ा ( बाली परगने का ) भांडों को; ६५ बीरावास ( सोजत परगने का ) नक्कारचियों को; और ६६ बासणी-जगा ( मेड़ता परगने का ) महात्माओं को। इनमें से कुछ गांव पहले गांवों की एवज में भी दिए गए थे । १. महाराज-कुमार छत्रसिंहजी और सिद्धदानसिंहजी का उल्लेख पहले हो चुका है। इनके अलावा महाराज-कुमार पृथ्वीसिंहजी का जन्म वि० सं० १८६५ ( ई० स० १८०८) में हुआ था। इनका और महाराज के अन्य राजकुमारों का देहान्त भी बचपन में ही हो गया था। महाराज के बाभाओं के नाम इस प्रकार मिलते हैं:-( १ ) शिवनाथसिंह, ( २) सोहनसिंह, ( ३ ) बभूतसिंह, (४) लालसिंह, (५) राजसिंह (कहीं-कहीं इसके स्थान पर भीमसिंह नाम मिलता है ), (६) सज्जनसिंह, (७ , स्वरूपसिंह । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास ३३. महाराजा तखतसिंहजी यह जोधपुर-महाराजा अजितसिंहजी के वंशज करणसिंहजी के पुत्र और ईडर-राज्य में के अहमदनगर के स्वामी थे । इनका जन्म वि० सं० १८७६ की जेठ सुदि १३ ( ई० स० १८१६ की ६ जून ) को हुआ था। . महाराजा मानसिंहजी के पीछे पुत्र न होने से ब्रिटिश-गवर्नमेंट (ईस्ट इन्डिया कंपनी) ने, स्वयं उन ( महाराजा) की इच्छानुसार और राज-परिवार और सरदारों आदि की सलाह से, इन्हें बुलवा कर महाराजा मानसिंह जी के गोद विटायो । वि० सं० १९०० १. ख्यातों से प्रकट होता है कि वि० सं० १६०० की कार्तिक वदि ६ (ई० स० १८४३ की १४ अक्टोबर ) को गवर्नमैन्ट और सरदारों की तरफ़ से तखतसिंहजी के नाम इस विषय के पत्र लिखे गए, और राज्य के बड़े-बड़े सरदार उनको ले आने के लिये रवाना हुए । वि० सं० १६०० की कार्तिक सुदि ७ ( ई० स० १८४३ की २६ अक्टोबर ) को यह जोधपुर के किले में पहुंचे। इसी बीच पोलिटिकल एजेंट ने उन बहुत से गज-कर्मचारियों को, जिनको महाराजा मानसिंहजी के समय आपत्तिजनक समझ जोधपुर से हटा दिया था, जोधपुर आने की आज्ञा दे दी। ऐचिसन की ‘ए कलैक्शन ऑफ ट्रीटीज़ ऐगेजमैंट्स ऐण्ड सनदूस (भा० ३, पृ० १४२) में लिखा है कि महाराजा तखतसिंहजी ने, अपने जोधपुर गोद आ जाने पर, राजकुमार जसवन्त सिंहजी का अपने भाई पृथ्वीसिंहजी के गोद जाना और अपना उनके छोटे होने के कारण केवल अभिभावक रूप से अहमदनगर का शासन करना प्रकट कर उन्हें अहमदनगर में ही छोड़ दिया, और इस प्रकार वहां पर उनका अधिकार रखना चाहा । परन्तु वि० सं० १६.४ (ई० स० १८४८) में गवर्नमैन्ट ने, यह दावा खारिज कर, अहमदनगर को ईडर-राज्य में मिला दिया । यह प्रदेश वि० सं० १८४१ (ई. स. १७०४ ) में ईडर से जुदा हुआ था। परन्तु उस समय के पत्रों से प्रकट होता है कि वास्तव में महाराजा मानसिंहजी की रानियों ने, गवर्नमैन्ट से कहकर, महाराजा तखतसिंहजी को मय महाराज-कुमार जसवन्तसिंहजी के ही जोधपुर बुलवाया था। इसलिये यह सब झगड़ा जोधपुर वालों की इच्छा के विरुद्ध उठा था ४४२ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाराजा तखतसिंहजी की मँगसिर सुदि १० ( ई० स०. १८४३ की १ दिसंबर ) को जोधपुर में इनका राज्याभिषेक हुआ। इसी वर्ष की फागुन सुदि ( ई० स० १८४४ की फ़रवरी ) में कोटे के महाराव रामसिंहजी इनसे मिलने को जोधपुर आए । इस पर महाराज ने भी उनका यथोचित सत्कार किया । यद्यपि महाराजा तखतसिंहजी ने राज्य पर बैठते ही नाथों के उपद्रव को दबा दिया, तथापि सरदारों का उपद्रव शांत न होसका । इसी वर्ष ( वि० सं० १९०० ई० स० १८४३ में ) गवर्नमेंट के सिंध विजय कर लेने पर जोधपुर की तरफ़ से उमरकोट का दावा पेश किया गया । इस पर वि० सं० १९०४ (ई० स० १८४७) में गवर्नमैन्ट ने उसकी एवज में जोधपुर-राज्य वि० सं० १६०० की कार्तिक वदि १३ को विवाह आदि में चारणों, भाटों और नक्कारचियों को दिए जाने वाले दान के नियम बनाए गए और कन्याओं को न मारने की हिदायत भी की गई । ये नियम पहले वि० सं० १८६६ में ही निश्चित कर लिए गए थे । १. इसी बीच धौंकलसिंह ने भी जोधपुर की गद्दी के लिये बहुत कुछ कोशिश की, परंतु कर्नल सदरलैंड के आगे उसकी एक न चली । महाराजा तखतसिंहजी ने अपने राजतिलक के समय पूर्व-प्रथानुसार मंदियाड़ के बारठ चैनसिंह को 'लाख-पसाव' दिया । २. वि० सं० १६०० की फागुन सुदि ३ के एक पत्र से ज्ञात होता है कि महाराज ने, देश __ में व्यापारियों पर लगने वाले 'डंड-किराड' को माफकर व्यापार को उन्नत करने का प्रबन्ध किया । ३. वि० सं० १८६६ (ई० स० १८३६ ) में महाराजा मानसिंहजी ने बग़ावत करनेवाले कई सरदारों की जागीरें शीघ्र ही लौटा देने का वादा किया था। परन्तु उनके स्वर्गवास के बाद महाराजा तखतसिंहजी ने उस पर ध्यान नहीं दिया । उलटा कुछ सरदारों को दी गई जागीरें वापिस छीन ली । इससे वे सरदार मारवाड़ में लूट-मारकर उपद्रव मचाने लगे। ४. यह प्रदेश वि० सं० १८३६ ( ई० स० १७८२ ) में जोधपुर के अधिकार में आगया था । परन्तु वि० सं० १८७० ( ई० स० १८१३ ) में इसे फिर से सिन्ध के टालपुरा अमीरों ने दबा लिया। इसलिये गवर्नमैन्ट ने पहले तो सिन्ध-विजय कर लेने पर उक्त प्रदेश महाराज को लौटा देने का वादा कर लिया था। परन्तु अन्त में उमरकोट के किले को उधर की सीमा की रक्षा के लिये उपयोगी समझ इसकी एवज़ में (जोधपुर महाराज ) को १०,००० रुपये सालाना देना निश्चित किया । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास को वार्षिक १०,००० रुपये देना निश्चित किया, और जोधपुर से मिलनेवाली करकी रकम के १,०८,००० रुपयों में से इस रकम को घटाकर आगे से वार्षिक २८,००० रुपया लेना स्वीकार किया । परन्तु महाराज ने गवर्नमैन्ट को साफ़ तौर से लिख दिया कि उमरकोट हमारा है और जिस दिन वह हमको लौटाया जायगा वह दिन हमारे लिये बड़ी ही खुशी का होगा। ___पहले लिखे अनुसार जागीरों का झगड़ा तय न होने से कुछ सरदार तो पहले से ही महाराज से नाराज हो रहे थे, परन्तु इन दिनों कुछ लोगों के कहने-सुनने से स्वर्गवासी महाराजा मानसिंहजी की रानियां भी इनसे अप्रसन्न हो गईं । इसलिये वि० सं० १९०३ की पौष सुदि १२ (ई० स० १८४६ की २६ दिसम्बर) को जब कर्नल सदरलैंड और महाराज के बीच जोधपुर में बातचीत हुई, तब उसने इन्हें इस बात की सूचना दी । इस पर महाराज ने दूसरे ही दिन कुछ सरदारों की जागीरों में वृद्धि करने का वादाकर उन्हें अपनी तरफ़ करलिया । इसके आठ दिन बाद, सदरलैंड की सलाह से, माजी साहबाओं को भड़कानेवाले लोग कैद करलिए गए । वि० सं० १६०४ की द्वितीय ज्येष्ठ सुदि ४ (ई० स० १८४७ की १७ जून) को यह समझौता पक्का हुआ था। ख्यातों से ज्ञात होता है कि सिंध-विजय के समय सहायता के लिये जोधपुर से भी सेना भेजी गई थी। परन्तु उसमें बीमारी फैल जाने से उसे मार्ग से ही लौट आना पड़ा । १. ए कलैक्शन ऑफ ट्रीटीज़ एंगेजमेंट्स ऐण्ड सनद्स, भा० ३, पृ० १३८ । २. यह पत्र वि० सं० १६०४ की प्रथम ज्येष्ठ सुदि १ (ई० स० १८४७ की १५ मई) को लिखा गया था। ३. आसोप-ठाकुर को चिमणवा, गाधेडी, गोयन्दपुरा, भाँनावास, राडोद और राणावतों की आधी पालड़ी; रास-ठाकुर को हुनावास आदि दो गांव और बासनी-ठाकुर को कुचेरे के बदले (जो ज़ब्त हो चुका था) (नागोर प्रान्त का ) माणकपुरा देना निश्चित किया । बगड़ी-ठाकुर को महाराज की सेवा में उपस्थित होने की आज्ञा दी गई। आसोप-ठाकुर को ऊपर लिखे गांव फागुन सुदि १५ ( ई० स० १८४७ की २ मार्च) को दिए गए थे। ४. कैद किए गए लोगों के नाम :-- __ आसोपा सुरतराम, उसका पुत्र महाराम, पुरोहित सैंबरीमल और थानवी पनालान । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाराजा तखतसिंहजी वि० सं० १९०३ की पौष -सुदि १४ ( ई० स० १८४६ की ३१ दिसम्बर) की रातको शेखावत डूंगसिंह और जवाहरसिंह आगरे के किले का जेलखाना तोड़कर अन्य कैदियों के साथ बाहर निकल गए । इसके बाद उन्होंने नसीराबाद की छावनी को लूट लिया । यह देख गवर्नमैन्ट ने राजस्थान की प्रत्येक रियासत से उन्हें पकड़ने में सहायता देने की प्रार्थना की । इस पर जवाहरसिंह तो बीकानेर की तरफ़ चला गया और डूंगजी को मारवाड़ की सेनाने शेखावाटी और तूंरावाटी के बीच के मेडी नामक गांव में पकड़ लिया । उस समय अंगरेजी अफ़सर भी इस सेना के साथ थे। परन्तु पकड़ते समय मारवाड़ वालों ने उसे गवर्नमैन्ट को न सौंपने का वचन देदिया था। इससे यद्यपि गवर्नमैन्ट ने संधि का हवाला देकर पहले तो उसे अजमेर बुलवालिया, तथापि अन्त में जोधपुर दरबार की बात मानकर, वि० सं० १९०५ के भादों (ई० स० १८४८ के अगस्त ) में, उसे वापस जोधपुर भेज दिया । यहां पर वह किले में विना बेड़ी के ही पहरेवालों की निगरानी में रक्खा गया । __ वि० सं० १९०५ की पौष वदि १३ (ई० स० १८४८ की २३ दिसम्बर) को राजकीय सेनाने दौलतपुरे के गांव धणकोली पर अधिकार कर लिया। वि० सं० १९०७ की ज्येष्ठ वदि ३० (ई० स० १८५० की १० जून ) के दिन महाराज ने चांदी से तुलादान किया। वि० सं० १९०६ (ई० स० १८५२ ) में महाराज जालोर होते हुए आबू की तरफ़ गए । मार्ग में पौष सुदि ७ ( ई० स० १८५३ की १६ जनवरी) को जब यह सिरोही पहुंचे, तब वहां के राव शिवसिंहजी ने, पांच सौ मनुष्यों के साथ तीन कोस सामने आकर, इनकी पेशवाई की । तीसरे दिन महाराज ने भी उनको, उनके राजकुमारों को और सरदारों आदि को यथा-योग्य सरोपाव देकर सत्कार किया । इसके बाद पौष सुदि ११ (२१ जनवरी) को यह आबूं पहुँचे । वहां से लौटते समय इनके सिरोही और मारवाड़ की सरहद पर पहुँचने पर इन ( महाराज ) का १. ये डाका डालने के कारण पकड़े गए थे। २. वि० सं० १८७४ (ई० स० १८१८) की सन्धि की धारा १ । ३. इस यात्रा में महाराज के साथ तोपें भी थीं, जो मार्ग में प्रत्येक पड़ाव से रवाना होने पर छोड़ी जाती थीं । अनादरे से आबू को रवाना होते हुए भी इनसे सलामी दागी गई थी। ४४५ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास विवाह सिरोही के राव की कन्या से हुआँ । यहां से यह घाणेराव, सादड़ी, सोजत, बीलाड़ा और मेड़ता होते हुए माघ सुदि १० ( १८ फ़रवरी) को नागोर पहुँचे और चार मास के बाद वि० सं० १९१० की ज्येष्ठ सुदि ८ (ई० स० १८५३ की १४ जून ) को वहां से रवाना होकर दूसरे दिन जोधपुर लौट आए। ___ ज्येष्ठ सुदि १३ (१६ जून ) को जयपुर-नरेश महाराजा रामसिंहजी, विवाह करने के लिये, जोधपुर पहुँचे । महाराजा तखतसिंहजी ने भी डीगाड़ी के पास तक सामने जाकर उनका अभिनन्दन किया । उसी दिन जोधपुर के किले में बड़ी धूम-धाम से उन (जयपुर-नरेश ) का विवाह हुआ । ___ वि० सं० १९१० की कार्तिक वदि ३० (१ नवम्बर ) को उदयपुर के वकील ने राजपूताने में स्थित गवर्नर जनरल के एजेंट से गोडवाड़ का प्रान्त मारवाड़ से लेकर फिर से मेवाड़ को दिलवाने की प्रार्थना की । परन्तु उसे इस मामले में निराश होना पड़ा। १. उस समय की सरकारी डायरी (रोज़नामचे ) में लिखा है कि जिस समय वि० सं० १६०६ की माघ वदि ५ (ई० स० १८५३ की २६ जनवरी) को महाराज के पालड़ी (गोडवाड़ में ) पहुँचने पर सिरोही-नरेश की तरफ से विवाह का प्रस्ताव आया, उस समय महाराज की तरफ़ से कहलाया गया कि पुरानी ख्यातों के लेखानुसार पहले सिरोही वाले अपने सरहद के गाँव पोसालिये में आकर अपनी कन्याओं का विवाह महाराजा जसवन्तसिंहजी प्रथम और अजितसिंहजी आदि के साथ कर चुके हैं। इसलिये यदि रावजी उसी प्रकार पाकर विवाह करना स्वीकार करें तो महाराज भी इसके लिये तैयार हो सकते हैं । रावजी ने यह बात मानली । इसीसे सिरोही के सरहदी गांव पोसालिया और मारवाड़ के सरहदी गांव पालडी-धनापुरा के बीच यह कार्य सम्पन्न हुआ। विवाह का सब प्रबन्ध जोधपुर की तरफ़ से किया गया था। २. फागुन सुदि ११ (ई० स० १८५३ की २१ मार्च) को सर हैनरी लॉरेंस (ए. जी. जी.) जोधपुर आने वाला था । इसलिये महाराजा फागुन सुदि ६ (१६ मार्च) को कुछ आदमियों के साथ नागोर से चलकर उसी दिन जोधपुर पहुंचे और लॉरेंस से मिलने के बाद फागुन सुदि १४ ( २४ मार्च ) को लौट कर उसी दिन नागोर पहुँच गए । ३. महाराजा रामसिंहजी का इरादा पहले रीवा विवाह करने को जाने का था । परन्तु महाराजा मानसिंहजी की कन्या का वाग्दान पहले ही हो चुका था। इसी लिये उन्हें पहले यहां आकर विवाह करना पड़ा। बरात के समय ज़ोर की वर्षा होने से सब बराती इधर उधर हो गए। इसलिये वरका हाथी भी किले का रास्ता छोड़ कर पद्मसर तालाब की तरफ मुडगया। परन्तु श्रीमाली ब्राह्मण बौरा रामा और छोगा ने हाथी के दोनों दांत पकड़ उसे किले के द्वार (फतैपौल ) पर ला खड़ा किया ! Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाराजा तनतसिंहजी मँसिर (दिसम्बर) में महाराज शिकार करते हुए सिवाना और जालोर होकर दोतीन दिन के लिये आबू गए, और वहां से लौट कर फिर जालोर होते हुए पौष ( ई० स० १८५४ की जनवरी में जोधपुर चले आए । वि० सं० १९११ की ज्येष्ठ वदि ३ ( ई० स० जालोर में महाराज - कुमार जसवन्तसिंहजी का विवाह की कन्या से हुआ । आश्विन ( सितम्बर) मास में सिंघी कुशलराज सेना लेकर बगड़ी को तरफ़ चला । इसकी सूचना पाते ही वहां का ठाकुर गांव छोड़ कर भाग गया। कुशलराज ने बगड़ी पर अधिकार कर ठाकुर के कुँवर को पकड़ लिया । १८५४ की १५ मई ) को जामनगर के जाम वीभाजी इसी वर्ष की फागुन सुदि ४ ( ई० स० १८५५ की २० फ़रवरी) को महाराज, रानियों और महाराज - कुमारों को साथ लेकर, दल-बल सहित तीर्थ-यात्रा को चले । इनके परबतसर ( उक्त नाम के मारवाड़ के प्रांत में ) पहुँचने पर ( चैत्र वदि १ = १२ मार्च को ) किशनगढ़-महाराज पृथ्वीसिंहजी वहां आकर इनसे मिले । महाराज ने सामने जाकर उनका सत्कार किया और उन्हें पालकी में सामने बिठाकर अपने निवासस्थान पर ले आए । वि० सं० १९१२ की चैत्र सुदि ३ ( ई० स० १८५५ की २० मार्च ) को महाराजा तखतसिंहजी के जयपुर पहुँचने पर महाराजा रामसिंहजी ने श्रमानीशाह के नाले तक सामने आकर इनकी अभ्यर्थना की। वहां पर चौबीस दिन रहने के बाद १. यहीं पर शिकार के समय दरख्त पर बंधे तख्तों के टूट जाने से पौष सुदि १२ ( ई० स० १८५४ की ११ जनवरी ) को महाराज की एक रानी ( भटियानीजी ) का स्वर्गवास हो गया । २. पहले महाराज - कुमार जसवन्तसिंहजी का एक खड्ड जामनगर भेजा गया और वहां पर उसके साथ विवाह की कुछ रीतियां पूरी की गई। इसके बाद विवाह का बाकी कार्य जालोर में पूरा किया गया । ३. पहले महाराजा मानसिंहजी ने भी किशनगढ़-- नरेश कल्याणसिंहजी को इसी तरह अपने सामने बिठाया था । इसी से यह रिवाज चल गया था। ४. इस यात्रा में महाराज के जयपुर पहुँचने के समय करीब २८,००० आदमी साथ होगए थे । और इस यात्रा का कुल खर्च १०,४०, ३२२ रुपये तक पहुँचा था । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ४४७ www.umaragyanbhandar.com Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास यह दिल्ली होते हुए हरद्वार पहुँचे, और वहां से मथुरा, डीग और पुष्कर होते हुए प्रथम आषाढ़ ( जून ) में जोधपुर लौट आए। इन दिनों आउवा, आसोप और गूलर के ठाकुर तथा उनके जिले के छोटे-छोटे जागीरदार बागी हो रहे थे । इसी से वि० सं० १९१४ के ज्येष्ठ ( ई० स० १८५७ की मई ) में गूलर के ठाकुर की उद्दण्डता के कारण उसके जागीर के गांव पर सेना भेजकर वहां पर अधिकार कर लिया गया। इसी वर्ष हिन्दुस्तान में सिपाई-विद्रोह की आग भड़क उठी। इसपर अंगरेजसरकार की तरफ़ से पोलिटिकल एजैंट और गवर्नर जनरल के राजपूताने के एजेंट ने महाराज से मारवाड़ में बागी सिपाहियों को न घुसने देने की प्रार्थना की । महाराज ने भी ज्येष्ठ सुदि १४ (६ जून ) को सिंधी कुशलराज को इसका प्रबन्ध करने के लिये नियुक्त कर दिया। इसी से जिस समय नसीराबाद और नीमच की छावनियों की सेनाएं, दिल्ली की तरफ़ जाती हुई, मारवाड़ में होकर निकलीं, उस समय उसने उनका पीछा कर उन्हें मारवाड़ में उपद्रव करने से रोक दिया । महाराज ने कुछ सेना अजमेर की रक्षा के लिये भी भेजी थी। इसलिये जब आषाढ वदि १ (१६ जून ) को पँवार अनाड़सिंह और महता छत्रसाल आदि उस सेना का वेतन बांटने को भेजे गए, तब वहां के अंगरेज-अफसर ने आनासागर तक सामने आकर इनका सत्कार किया। इस के बाद ये लोग ब्यावर जाकर गवर्नर जनरल के एजेन्ट से मिले । उसके सेक्रेटरी ने भी उसी प्रकार आगे आ इन्हें मान दिया । इसके ५ दिन बाद ब्यावर की तरफ से भागकर आई हुई चार अंगरेज-स्त्रियां जोधपुर पहुँची। महाराज ने उन्हें सूरसागर में स्थित पोलोटिकल एजैंट की रक्षा में मेज दिया। आषाढ़ सुदि ५ ( २६ जून ) को महाराज की आज्ञा से सिंध से जयसलमेर और १. इसके बाद सिंघी कुशलराज, कुचामन-ठाकुर केसरीसिंह, और खैरवे-ठाकुर सांवतसिंह २,... सैनिक लेकर जयपुर-राज्य के तुंगा नामक गांव में पहुँचे, और वहां से जयपुर के पोलिटिकल एजैन्ट के साथ हो लिए । परन्तु बागी-सैनिकों के मरने-मारने को उद्यत होने के कारण अंगरेज़-अफसर, युद्ध करने का विचार छोड़, एक कोस के फासले से बागियों का पीछा करते रहे । रोज़नामचे में लिखा है कि जब उन अंगरेज़ी-अफसरों के साथ की सेना बागी होगई, तब उनको जोधपुर की सेना की शरगा में आकर अपनी प्राण-रक्षा करनी पड़ी। ४४८ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाराजा तखतसिंहजी मालानी होकर, जोधपुर तक ऊंटों की डाक बिठाने का प्रबंध किया गया । भादों वदि ५ ( १० अगस्त ) की रात को जोधपुर के किले की गोपालपौल के पास के बारूद-खाने पर बीजली गिरी । इस से वहां के आस-पास का दुहेरा कोट, गोपालपौल, फतैपौल और उनके आस-पास का कोट उड़गया । उस समय वहां के बड़े-बड़े पत्थर बारूद के ज़ोर से उड़कर शहर से करीब तीन कोस (चौपासनी नामक स्थान ) तक पहुँचे थे । इस पाषाण-वृष्टि से किले के आस-पास का शहर नष्ट होगया और करीब ४०० आदमी दब कर मर गए । किले पर के चामुण्डा के मन्दिर का बहुतसा भाग भी उड़ गया था । परंतु किसी तरह मूर्ति बच गई । शीघ्र ही राज्य की तरफ से दबे हुए पुरुषों को निकालने का प्रबंध किया गया । इस घटना से शायद और भी अधिक हानि होती । परंतु तत्काल वर्षा के आरम्भ हो जाने से आस-पास की बची हुई बारूद भीग गई । इससे आग की उड़नेवाली चिनगारियों से उसके भड़कने का डर जाता रहा। ___इसके बाद ही डीसा की छावनी वाली सेना के बाग़ी होने का समाचार जोधपुर पहुँचा । इस पर पाली के लोग घबरा गए । यह देख महाराज ने उनकी रक्षा के लिये कुछ आदमी वहां भेज दिए । __भादों सुदि ६ ( २५ अगस्त ) को ऐरनपुरे की सेना के बागी हो जाने की सूचना मिली । इस पर महाराज ने किलेदार अनाड़सिंह, लोढा राव राजमल और मेहता छत्रमल को १,००० सिपाही और ४ तोपें देकर उधर जाने की आज्ञा दी । ये लोग पाली में जाकर युद्ध की तैयारी करने लगे । बागी लोग भी ऐरनपुरे से रवाना होकर सांडेराव होते हुए गूंदोज पहुँचे । वहीं पर उन्हें पाली में ठहरी हुई जोधपुर की सेना का समाचार मिला । इससे वे पाली का मार्ग छोड़ खैरवे की तरफ चले गए । इसी १. इस डाक की चौकियां तीन-तीन कोस पर रक्खी गई थीं और प्रत्येक चौकी में दो-दो ऊँटों का प्रबन्ध किया गया था । २. यह बारूद का गोदाम पहाड़ खोद कर बनवाया गया था और इसमें अस्सी हज़ार मन बारूद भरा था। ३. उस समय वहां पर महाराज की तरफ से शाह रूपचन्द लोढा वकील नियत था । ४४४ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास समय आउवे का ठाकुर बागियों से मिल गया, और उसने उन्हें अपने यहां बुलवा लिया । गूलर-ठाकुर बिशनसिंह और आलणियावास-ठाकुर अजितसिंह भी अपने आदमियों को लेकर आउवे जा पहुँचे । इसकी सूचना मिलते ही महाराज ने सिंघी कुशलराज और मेहता विजयमल को सेना लेकर उधर जाने की आज्ञा दी । आश्विन बदि ४ (७ सितम्बर ) को बीठोरा गांव के पास मारवाड़ की सेना का बागियों से युद्ध हुआ । रात होने पर किलेदार अनाड़सिंह ने खेजड़ला के ठाकुर हिम्मतसिंह और भाटी जगतसिंह को आउवे के ठाकुर कुशालसिंह को समझाने के लिये भेजा, और उसे बागियों का साथ छोड़कर महाराज की सेना में आ जाने के लिये कहलाया। इस पर कुशालसिंह ने लांबियां के ठाकुर पृथ्वीसिंह से सलाह कर दूसरे दिन प्रातःकाल महाराज की सेना में चले आने का वादा किया । परंतु ठाकुर के प्रधान कार्यकर्ता कछवाहा मानसिंह ने इस बात की सूचना गूलर-ठाकुर को, और उसने बागी-सेना के सेनापति को दे दी । इससे उस सेना का रिसालदार अब्बासअली कुछ रात रहते ही अपनी सेना को लेकर आउवा-ठाकुर के पास पहुंच गया और उसने ठाकुर से कहा कि हम लोग सूरज निकलने से पहले ही महाराज की सेना पर आक्रमण करना चाहते हैं । इसलिये या तो आप हमारा साथ दें, या हम से युद्ध करें । उस समय नगर और गढ़ में चारों तरफ़ सुसज्जित बागी सिपाहियों के फैले हुए होने से ठाकुर उसका विरोध न कर सका, और उसने लाचार होकर सिणली के ठाकुर चांपावत शक्तसिंह को अपना प्रतिनिधि बनाकर उस (रिसालदार) के साथ कर दिया। प्रातःकाल होने के पूर्व ही ये सब महाराज की सेना के मुकाबले पर जा पहुँचे । आलणियावास और गूलर के ठाकुर भी उनके साथ थे । शीघ्र ही दोनों तरफ़ से घमसान युद्ध जारी हो गया । परंतु सिंघी कुशलराज और मेहता विजयमल के झगड़ा होते ही भाग जाने और राजमल और अनाड़सिंह के युद्ध में मारे जाने से राजकीय सेना के पैर उखड़ गए । इस युद्ध में आहोर के ठाकुर ने वीरता से शत्रु का सामना कर राजकीय-तोपखाने को बागियों के हाथ में पड़ने से बचा लिया । १. हरजी गांव के ठाकुर का पुत्र कानसिंह बीठोरे गोद गया था । परन्तु प्राउवे के ठाकुर ने लांबिया-ठाकुर को सेना सहित भेज कर उसे मरवा डाला । इस से और उसकी अन्य उद्दण्डताओं से महाराज पाउवे के ठाकुर से अप्रसन्न थे । २. उसी समय का यह दोहार्ध मारवाड़ में प्रसिद्ध है: "लीला भाला फेरता भाग गया कुशलेश ।" ४५० Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाराजा तखतसिंहजी इसकी सूचना पाते ही उधर अजमेर से गवर्नर जनरल के एजेंट ने अंगरेज़ी सेना के साथ चढ़ाई की, और इधर जोधपुर से पोलिटिकल एजैंट कैपटिन मेसन आउवे को चला। अंगरेज़ी सेना ने वहां पहुँचते ही शत्रु-पक्ष से युद्ध छेड़ दिया। परंतु अभाग्य से कैपटिन मेसन अंगरेज़ी सेना के बदले बागियों की सेना में जा पहुँचा । उसे अकेला देख शीघ्र ही बागियों ने उसे मार डाला । इसके बाद एकवार तो सरकारी सेना ने बागियों को आउवे के तालाव की दीवाल के पीछे छिपने को बाध्य कर दिया, परंतु शीघ्र ही आसोप-ठाकुर शिवनाथसिंह ने हमला कर अंगरेजी सेना की बहुतसी तोपें छीन ली । इससे अंगरेज़ों की फ़ौज को मैदान छोड़ आंगदोस की तरफ़ हट जाना पड़ा । वहां से गवर्नर जनरल का एजैंट लौटकर अजमेर चला गया । यह समाचार सुन आसोज (कार) सुदि १२ (३० सितम्बर ) को महाराज ने आउवे की और उसके जिलेदारों की जागीरें जब्त कर ली और इसके बाद कुशलराज के नाम बागियों को दण्ड देने की आज्ञा भेजी । _____ कार्तिक वदि ११ (१३ अक्टोबर ) को बागी-सैनिक आउवे से रवाना होकर गंगावा, दूदोड़, लावा और रीयां होते हुए पीपाड़ के पास पहुँचे । सिंघी कुशलराज इस समय बीलाड़े में था । परन्तु उसकी हिम्मत उनका मुकाबला करने की न हुई । इसलिये महाराज ने कुचामन के ठाकुर केसरीसिंह को भी बागियों के पीछे रवाना किया । उसने कुशलराज को साथ लेकर नारनौल तक उनका पीछा किया । कुचेरे के पास उनका बागियों से सामना भी हुआ, परन्तु इसमें विशेष सफलता नहीं हुई । इस गड़बड़ में मँगसिर वदि ४ ( ५ नवंबर ) को आसोप-ठाकुर ने पाली के व्यापारियों का दस हजार का माल लूट लिया । इस पर मँगसिर सुदि ७ (२३ नवंबर ) को आसोप की जागीर जब्त करली गई । इसके बाद बडलू पर भी महाराज की सेना का अधिकार हो गया। यह देख आसोप-ठाकुर सामना करना छोड़ राजकीय सेना में चला आया । अंगरेज़ों की नई सेना ने डीसेसे आकर, माघ सुदि ५ (ई० स० १८५८ की २० जनवरी ) को, आउवे को घेर लिया। महाराज की सेना भी मय नींबाज और १. यह भी बागी-सैनिकों के साथ हो गया था । २. इसके बाद यह किले में कैद कर दिया गया था। परन्तु वि० सं० १६१६ की कार्तिक वदि ३० (दीपमालिका ई० स० १८५६ की २५ अक्टोबर) को मौका पाकर वहां से निकल भागा। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास रास के ठाकुरों के उसके साथ थी । आउवे का ठाकुर तो पहले ही बचकर निकल गया, परन्तु छठे दिन किलेवालों के भी निकल जाने पर वहां पर उनका अधिकार हो गया। इसके बाद वहां का किला, महल, कोट और मकानात नष्ट करदिए गए । इसी प्रकार आउवे के भाई-बन्धुओं के गांव भीवालिया आदि की गढियां भी सुरंगे लगा कर उड़ा दी गईं और वहां के ठाकुर भाग कर मेवाड़ की तरफ़ चले गए। वि० सं० १९१५ की प्रथम ज्येष्ठ सुदि १२ ( ई० स० १८५८ की २४ मई ) से राजपूताने की रियासतों के सिक्कों में बादशाह के नाम की जगह महारानी विक्टोरिया का नाम लिखे जाने का प्रबन्ध किया गया; क्योंकि सिपाही विद्रोह के शान्त होने पर महारानी विक्टोरिया ने भारत का शासन अपने हाथ में ले लिया था। वि० सं० १९१५ के पौष ( ई० स० १८५६ की जनवरी ) में महाराज ने शाहबाजखाँ को अपना दीवान बनाया । वि० सं० १९१६ के कार्तिक (ई० स० १८५६ के अक्टोबर ) में किशनगढ़ में झगड़ा उठ खड़ा हुआ । यह देख वहां के नरेश ने महाराज से सहायता मांगी। इस पर महाराज ने परबतसर और मारोठ के अपने हाकिमों और सरदारों को आज्ञा भेज दी कि जिस समय किशनगढ़-महाराज को सहायता की आवश्यकता हो, उसी समय ससैन्य वहां पहुँच उनकी आज्ञा का पालन किया जाय । यद्यपि वि० सं० १९१४ (ई० स० १८५७ ) से ही राजकीय सेनाएं मारवाड़ के बागी सरदारों के पीछे लगी हुई थीं, तथापि मौका मिलते ही वे इधर-उधर लूटखसोट मचादिया करते थे । अन्त में, वि० सं० १९१७ के प्रथम आश्विन (ई० स० १८६० के सितम्बर ) में, आउवे के ठाकुर ने अपने को अंगरेजी सरकार के हाथों सौंप कर इन्साफ़ की प्रार्थना की । इस पर अजमेर में एक फ़ौजी अदालत बिठाई गई, और उसने सारी बातों की छान-बीन कर उसे पोलिटिकल एजैंट कैपटिन मेसन की हत्या में सम्मिलित होने के अपराध से बरी कर दिया। इसके साथ ही गवर्नमैन्ट ने जोधपुरमहाराज से आउवा, आसोप आदि के सरदारों पर दया दिखलाने की प्रार्थना भी की। १. सरकारी रोज़नामचे में वि० सं० १६१६ की जेठ सुदि ८ (ई० स० १८५६ की ___८ जून ) को शहबाज़खाँ को दुबारा दीवानी का काम दिया जाना लिखा है। २. किशनगढ-नरेश ने, वहां के स्वर्गवासी महाराजा प्रतापसिंहजी के बाभा (परदे डाली हुई स्त्री-उपपत्नी के पुत्र ) ज़ोरावरसिंह के लड़के मोतीसिंह को कैद कर दिया था। इसीसे उसके आदमियों ने उपद्रव शुरू किया था। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाराजा तखतसिंहजी आउवा-ठाकुर कुशालसिंह बरी होकर उदयपुर चला गया । इसके कुछ काल बाद उसका पुत्र देवीसिंह, आसोप ठाकुर शिवनाथसिंह, गूलर ठाकुर बिशन सिंह आदि बीकानेर की तरफ़ चले गए, और उनके वकील उनकी जागीरें वापस दिलवाने के लिये पोलिटिकल एजैंट आदि से सहायता की प्रार्थना करने लगे । परंतु महाराज ने यह बात स्वीकार न की । गदर के समय पूरी सहायता देने के कारण इसी वर्ष ( वि० सं० १९९८ = ई० स० १८६२ में ) गवर्नमैंट ने जोधपुर दरबार को गोद लेने का अधिकार प्रदान किया । वि० सं० १९१६ की आषाढ़ वदि ३ ( ई० स० १८६२ की १४ जून ) को बाभों (परदायतों के पुत्रों ) को रावराजा की पदवी दी गई और इसके बाद भादों वदि १३ ( ई० स० १८६२ की २३ अगस्त) को महाराजा तखतसिंहजी विवाह करने को जयसलमेर की तरफ चले । रावलजी ने ६-७ कोस सामने आकर इनकी अभ्यर्थना की । विवाह हो जाने पर, आश्विन सुदि १ ( २४ सितम्बर) को, बरात जोधपुर लौट आई। वि० सं० १९२० की मात्र वदि ८ ( ई० स० १८६४ की १ फ़रवरी ) को जयपुर महाराज रामसिंहजी फिर विवाह करने को जोधपुर आए। यहां पर आपका विवाह महाराज की दूसरी कन्या और इनके भ्राता पृथ्वीसिंहजी की कन्या के साथ बड़ी धूम-धाम से किया गया । वि० सं० १९२१ की माघ वदि ७ ( ई० स० १८६५ की १९ जनवरी) को महाराजा तखतसिंहजी विवाह करने के लिये रीवां की तरफ़ रवाना हुए। जयपुर पहुँचने पर महाराजा रामसिंहजी ने, नियमानुसार आगे आकर, इनका स्वागत किया । इसके बाद रीवां पहुँचने पर, फागुन सुदि ८ (५ मार्च ) को, महाराज का विवाह रीवां १. वि० सं० १६२१ के सावन ( ई० स० १८६४ के अगस्त) में ग्राउवा - ठाकुर कुशालसिंह का उदयपुर में स्वर्गवास होगया । २. रिपोर्ट मजमूए हालात व इन्तिज़ाम राज मारवाड़ ( बाबत संवत् १६४० ) में वि० सं० १६१६ की भादों सुदि १० ( ई० स० १८६२ की ३ सितम्बर) को महाराज द्वारा जयसलमेर में इस रावराजा पदवी का दिया जाना लिखा है । ( देखो पृ० २४८)। ३. वहां पर महाराज का विवाह केसरीसिंहजी की कन्या से और महाराज - कुमार प्रतापसिंहजी का विवाह छत्रसिंहजी की कन्या से हुआ था । 'तवारीख़ जैसलमेर' में इन विवाहों का संवत् १६१८ लिखा है ( पृ० ८७) । ४५३ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास नरेश लक्ष्मणसिंहजी की कन्या से हुआ । वहां से लौटने पर, वि० सं० १९२२ (ई० स० १८६५ ) में, महाराज प्रयाग होते हुए गवर्नर जनरल से मिलने के लिये कलकत्ते गए, और लौटते समय भरतपुर और जयपुर होते हुए, वि० सं० १९२२ की भादों वदि १२ ( ई० स० १८६५ की १८ अगस्त) को, जोधपुर पहुँचे। इसी वर्ष महाराज ने पुष्कर की यात्रा भी की थी। ____ महाराज बहुधा रनवास के साथ या शिकार में रहा करते थे। इससे राज्य कार्य की देख-भाल पूरी तौर से नहीं हो सकती थी, और राज-कर्मचारियों को मनमानी करने का मौका मिल जाता था। इसपर वि० सं० १९२३ के वैशाख (ई० स० १८६६ के अप्रेल ) में महाराज ने मिस्टर टेलर नामके एक अवसर प्राप्त (रिटायर्ड) अंगरेज अधिकारी को रियासत का काम करने के लिये बुलवाया। इसके बाद प्रथम जेठ वदि ११ ( १० मई) को उसे दीवानी का काम सौंपा गया और मुंशी हाजी मोहम्मदखा उसका नायब बनाया गया। प्रथम जेठ सुदि ५ (११ मई ) को गवर्नर जनरल के एजैंट के पास नियुक्त जोधपुर राज्य के वकील ने एजैंट के हाजी मोहम्मदखा से नाराज होने की सूचना दी; और साथही उसने यह भी लिखा कि उस (एजैंट) की इच्छा उसे राज्य से बाहर भिजवा देने की है । परन्तु महाराज ने इस पर कुछ ध्यान नहीं दिया । इसी वर्ष के भादों (सितम्बर) में सिरोही से दस कोस इधर के पोसालिया नामक गांव में महाराज का विवाह सिरोही के राव शिवसिंहजी की कन्या से हुआ। राज-कर्मचारियों के षड्यंत्र से राज्य का कार्य न चला सकने के कारण, आश्विन सुदि १ (६ अक्टोबर ) को, मिस्टर टेलर तीन महीने की छुट्टी लेकर हमेशा के लिये यहां से चला गया । इस पर दीवानी का काम हाजी मोहम्मद को सौंपा गया। १. वहीं पर महाराज-कुमार मोहबतसिंहजी और किशोरसिंहजी के विवाह भी हुए थे। २. वि० सं० १९२३ की चैत्र वदि १२ (ई० स० १८६७ की १ अप्रेल) को, अंगरेज़ी शिक्षा के लिये, पहले पहल नगर में, प्रजा की तरफ से एक स्कूल खोला गया; और वि० सं० १६२४ की वैशाख सुदि २ (६ मई) को प्रजा की तरफ से ही, 'मुरधरमिन्त' नामक सप्ताहिक पत्र निकालने के लिये 'मुरधरमिन्त' नाम का प्रेस स्थापित किया गया। परन्तु वि० सं० १९२६ की आषाढ सुदि १ ( ई० स० १८६६ की १० जुलाई) को राज्य ने इन संस्थाओं को अपने तत्वावधान में लेकर इनका नाम क्रमशः "दरबार स्कूल", "मारवाड़ गज़ट" और "मारवाड़ स्टेट-प्रेस" रख दिया । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाराजा तखतसिंहजी आश्विन सुदि ६ (१८ अक्टोबर ) को महाराज आगरे के दरबार में सम्मिलित होने को रवाना हुए । इनके सांभर पहुँचने पर दीवान हाजी मोहम्मद कुछ दिन की छुट्टी लेकर अजमेर चला गया। यह आगरे का दरबार वि० सं० १९२३ की कार्तिक सुदि १२ (ई० स० १८६६ की १९ नवम्बर) को हुआ था । इसी में गवर्नर जनरल लॉर्ड लॉरसे ने अपने हाथों से महाराज को जी. सी. एस. आई. का पदक पहनाया । गवर्नर जनरल का विचार राजपूताने में शस्त्र-कानून (आर्स ऐक्ट) प्रचलित करने का था । परन्तु महाराज ने अन्य उपस्थित रईसों के साथ मिलकर बड़ी कुशलता से इसे रुकवा दिया । पौष वदि १२ (ई० स० १८६७ की २ जनवरी) को महाराज आगरे से लौट कर जोधपुर चले आए। इसके बाद हाजी मोहम्मदखाँ ने पुराने प्रबन्ध को बदलकर अंगरेज़ी ढंग पर नया प्रबन्ध करना प्रारम्भ किया । परन्तु उसके मुल्की और फौज़ी कामों पर बहुत से मुसलमानों को नियुक्त कर देने के कारण मारवाड़ के लोग उससे नाराज़ होगएँ । इसीसे वि० सं० १९२४ के कार्तिक (ई० स० १८६७ की नवम्बर) में किसी ने गुप्त रूप से उसे पुष्कर में मारडाला । वि० सं० १९२३ की आषाढ़ सुदि ७ (ई० स० १८६६ की १६ जुलाई) को गवर्नमैन्ट के और महाराज के बीच एक अहदनामा लिखा गया । इसके अनुसार महाराज ने जोधपुर राज्य में होकर निकलनेवाली रेलवे के लिये, विना किसी एवज्राने के, जमीन देना और रेल द्वारा मारवाड़ में होकर बाहर जानेवाले माल पर चुंगी न लेना निश्चित किया। १. डा० जेम्स बर्जेस की क्रॉनॉलॉजी ऑफ इन्डिया, पृ० ३८२। २. इसी समय महाराजा की सलामी की १७ तोपें नियत की गई। ३. वि० सं० १९२४ की वैशाख वदि ८ (ई० स० १८६७ की २७ अप्रेल ) को महाराज-कुमार ज़ालिमसिंहजी को कंटालिये के ठाकुर गोरधनसिंह के गोद देने का प्रबन्ध किया गया । पर इसमें सफलता नहीं हुई । इसी वर्ष के आषाढ ( जुलाई ) में मेहता विजयमल ने, पोलिटिकल-एजेंट की मारफ़त, घाणेराव के ठाकुर पर हुक्म-नामा (नाम का कर) लगाया। ४. ए कलैक्शन ऑफ ट्रीटीज़ ऐंगेजमैंट्स ऐण्ड सनद्स, भा० ३, पृ० १३८-१३६ । ५. इसी वर्ष के अन्त में कप्तान इम्पे द्वारा जोधपुर और बीकानेर की सरहद का निर्णय करवाया गया। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास वि० सं० १९२५ ( ई० स० १८६८) में गवर्नर जनरल के एजैंट ने जोधपुर आकर महाराज से सरदारों का फैसला करने और उनकी जागीरें लौटा देने के लिये कहा । इस पर महाराज ने दो महीने में उनका निर्णय कर देने का वादा करलिया । परन्तु यह झगड़ा शान्त न होसका । इससे पौकरन, कुचामन वगैरा के सरदार भी आउवा, आसोप, नींबाज, रायपुर, रास, खेजडला और चंडावल के सरदारों से मिल गए। ___ इसी वर्ष के कार्तिक ( अक्टोबर ) में महाराज ने, गवर्नमैन्ट के कहने से, व्यापार की सुविधा के लिये नाज पर की चुंगी आधी करदी। इसी बीच मौके की ताक में लगे बहुत से सरदारों ने, महाराज की आज्ञा प्राप्त किए विना ही, अपने ज़ब्त हुए गांवों और कुछ इधर-उधर के गांवों पर अधिकार करलिया । ___ वि० सं० १९२५ की पौष सुद १५ (ई० स० १८६८ की २६ दिसम्बर) को लेफ्टिनेंट कर्नल कीटिंग (राजपूताने के ए. जी. जी.) ने जोधपुर आकर महाराज के और गवर्नमेन्ट के बीच एक नया अहदनामा तैयार किया। इसके अनुसार जोशी हंसराज (दीवान ), मेहता विजयसिंह (हाकिम फ़ौजदारी अदालत ), पण्डित शिवनारायण, मेहता हरजीवन (हाकिम महकमा माल) और सिंघी समरथराज ( हाकिम दीवानी अदालत ) की एक पंचायत नियुक्त कर राज्य-कार्य के संचालन का भार उसे सौंपा, और साथ ही उसे रियासत के इन्तिजाम के खर्च के लिये १५,००,००० रुपये देना निश्चित किया । खालसे के गांवों का पूरा-पूरा प्रबन्ध करने और दीवानी और फ़ौजदारी मामलों का निर्णय करने का अधिकार भी इसी पंचायत को दिया गया । महाराज ने अपना व्यक्तिगत खर्च कम करने और महाराज-कुमारों के खर्च का प्रबन्ध करने का निश्चय किया । जागीरदारों पर लगनेवाले हुक्मनामे (नए जागीरदारों के गद्दी पर बैठने के समय लिए जानेवाले दरबार के नज़राने ) का तथा राज्य के और आउवा, आसोप, गूलर, आलणियावास और बाजावस के जागीरदारों के बीच के झगड़ों का निर्णय पोलिटिकल एजैंट पर छोड़ा गया । यह सन्धि चार वर्षों के लिये की गई थी। इससे यहां का बहुत कुछ झगड़ा शान्त होगया । १. ए कलैक्शन ऑफ़ ट्रीटीज़ ऐंगेजमैंट्स ऐण्ड सनद्स, भा० ३, पृ० १४१-१४४ । २. इस संधि के अनुसार महाराज के खर्च के लिये सालाना १,८०,००० से २,५०,००० रुपये तक नियत किए गए; और राज्य की आय का पूरा-पूरा हिसाब रखने का हुक्म दिया गया। ४५६ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाराजा तखतसिंहजी . इस वर्ष मारवाड़ और उसके आस-पास के प्रदेशों में भयंकर अकाल होने से देश में चारों तरफ़ हा-हाकार मच गया था। परन्तु स्वयं महाराजा और खास कर उनकी रानी जाडेजीजी ने जोधपुर में अन्नाभाव से पीड़ित लोगों के भोजन का प्रबन्ध कर हज़ारों प्रजाजनों के प्राणों की रक्षा की। ____ इसी वर्ष गवर्नमैन्ट के और महाराज के बीच एक दूसरे के राज्य के अपराधियों को एक दूसरे को सौंप देने के विषय में संधि' हुई । वि० सं० १९४४ (ई० स० १८८५) में इसमें संशोधन किया गया और ब्रिटिश-भारत के अपराधियों को यहां लाने का प्रबन्ध ब्रिटिश-भारत में प्रचलित कानून के अनुसार किया जाना निश्चित हुआ। उन दिनों गोडवाड़ के परगने की तरफ़ के जागीरदारों की सहायता से वहां के मीणा और भील लोग बड़ा उपद्रव किया करते थे । इसलिये वि० सं० ११२५ के फागुन (ई० स० १८६९ की फ़रवरी) में महाराज की आज्ञा से महाराज-कुमार जसवन्तसिंहजी ने वहां पहुँच बहुत से उपद्रवियों को मार डाला और बहुतों को पकड़ कर जोधपुर भेज दिया । यह देख महाराज ने एक लाख की आय का वह प्रान्त महाराजकुमार को उनके खर्च के लिये सौंप दिया । वि० सं० १९२६ के सावन (ई० स० १८६९ के अगस्त ) में महाराज, जागीरदारों द्वारा ज़बरदस्ती दबाए हुए गांवों के छुड़वाने का प्रबन्ध करने के लिये, आबू जाकर गवर्नर जनरल के एजैंट से मिले और वहां से लौट कर दीवानी का काम मरदानअली को सौंप दिया। वि० सं० १९२६ (ई० स० १८६९ ) में हुक्मनामे ( नए जागीरदारों के गद्दी पर बैटने के समय के राज्य के नज़राने ) का कानून बना, और साथही जागीरदारों १. ए कलैक्शन ऑफ़ ट्रीटीज़ ऐंगेजमैंट्स ऐण्ड सनद्स, भा० ३ पृ० १३६-१४१ । " " " " " " " भा० ३. पृ० १६१। ३. यह वि० सं० १६२६ की आश्विन सुदि ६ (ई० स० १८६६ की १४ अक्टोबर) को दीवान बनाया गया था। इसने १६२८ की कार्तिक वदि ६ (ई० स० १९७१ की ३ नवम्बर ) तक यह काम किया । इसके बाद मैहता हरजीवन को यह काम दिया गया। ४. हुक्मनामे की रकम साधारण तौर पर रेख का पौन हिस्सा नियत किया गया। साथ ही ठाकुर के पीछे उसके लड़के या पोते के गद्दी बैठने पर उस साल की रेख और चाकरी माफ करदी गई । परन्तु भाइयों या बन्धुओं में से गोद लिए जाने पर रेख लेना और Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास के झगड़ों को मिटाने के लिये एक कमेटी नियत की गई । उस समय करीब २५० गांवों के विषय में सरदारों के और राज्य के बीच झगड़ा चल रहा था । परन्तु पोलिटिकल एजेंट ने महाराजा तखतसिंहजी के गद्दी बैठने के समय, जिस गांव पर जिस जागीरदार का कब्जा था, वह गांव उसीका मानकर बहुत कुछ झगड़ा शान्त करदिया । इसी वर्ष आवागमन के सुमीते के लिये ऐरनपुरे से पाली होकर बर तक एक सड़क बनाने का निश्चय हुआ । साथ ही जोधपुर से पाली तक की सड़क के बनाने की आज्ञा भी दी गई । वि० सं० १९२७ (ई० स० १८७० ) में गवर्नमैंट ने जोधपुर दरबार को सालाना १,२५,००० रुपये और ७,००० मन नमक देने का वादा कर सांभर के नमक का वह भाग, जो जोधपुर राज्य के अधिकार में था, टेके पर लेलियाँ | इसके साथ एक शर्त यह भी रक्खी गई कि यदि सालाना सवा आठ लाख मन नमक से अधिक नमक बेचा जायगा, तो उस अधिक नमक के लाभ में से २० रुपये सैंकड़ा जोधपुर-राज्य को करके रूप में दिया जायगा । इसी संधि के अनुसार गवर्नमैंट द्वारा बनाए हुए नमक पर से राज्य की चुंगी उठा दी गई । इसी वर्ष गवर्नमैंट ने नांवा और गुढा नामक स्थानों में होनेवाली नमक की पैदावार भी सालाना ३,००,००० रुपये और ७,००० मन नमक देने का वादा कर ठेके के तौर पर लेली । इसके साथ भी यह शर्त रखी गई कि यदि सालाना नौलाख मन से अधिक नमक बिकेगा, तो उस अधिक हिस्से के मुनाफ़े में से ४० रुपये सैंकड़ा जोधपुर - राज्य को करके रूप में दिया जायगा । चाकरी माफ करना निश्चित हुआ । एकही वर्ष में दो उत्तराधिकारियों के गद्दी बैठने पर एक हुक्मनामा और दो वर्षों में दो उत्तराधिकारियों के गद्दी बैठने पर डेढ हुक्मनामा लेना तय किया । ठाकुर की इच्छा होने पर एक हुक्मनामे की एवज़ में एक वर्ष की गांव की लटाई (आमदनी ) लेने का नियम भी रक्खा गया । १. ए कलेक्शन ऑफ ट्रीटीज़ ऐंगेज़मैट्स ऐण्ड सनद्स, भा० ३, पृ० १४५-१४७ । २. यह रकम ६ - ६ महीने की दो किश्तों में देना निश्चित किया गया । ३. इसी वर्ष गवर्नमैंट ने जयपुर दरबार के साथ भी इसी प्रकार का प्रबन्ध कर उनके अधीन का सांभर का नमक का भाग भी ठेके पर ले लिया । एकलैक्शन ऑफ ट्रीटीज़ ऐंगेजमेंट्स ऐण्ड सनद्स, भा० ३, पृ० १४७-१५२ । ४. ये रुपये भी ६-६ महीने की दो किश्तों में देने तय हुए थे I ५. ए कलैक्शन ऑफ ट्रीटीज़ ऐंगेजमेंट्स ऐण्ड सनट्स, भा० ३, पृ० १५२-१५६ । ४५८ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाराजा तखतसिंहजी 1 वि० सं० १९२७ की कार्तिक वदि ( ई० स० १८७० के अक्टोबर ) में लॉर्ड मेयो ने अजमेर में एक दरबार किया और सब रईसों को उसमें उपस्थित होने के लिये बुलवाया । वहां पर महाराज के और गवर्नमैन्ट के बीच उदयपुर और जोधपुर की बैठकों के विषय में झगड़ा उठ खड़ा हुआ । इसपर यह ( महाराजा तखतसिंहजी ) लौट कर जोधपुर चले आए। यह बात गवर्नमैंट को बुरी लगी । इसी से उसने महाराज की सलामी की दो तोपें घटाकर १७ से १५ करेदीं । अपनी तरफ़ के वि० सं० १९२८ ( ई० स० १८७१ ) में महाराज ने सिरोही में घुस कर उपद्रव करने के कारण, उक्त प्रान्त का प्रबन्ध से नियुक्त सिरोही के पोलिटिकल सुपरिन्टैन्डैन्ट को सौंप दिया, और एक अफ़सर को उसका सहकारी नियत कर प्रबन्ध में मदद देने के लिये कुछ सेना भी जालोर भेजैदी । इसी वर्ष की कार्तिक सुदि १ ( २० नवम्बर ) को महाराज ने जागीरदारों का झगड़ा तय करने के लिये पोलिटिकल एजैंट के नाम एक पत्र लिखा । उसमें अपनी तरफ़ के पंचों के नाम और जागीरें लौटाने के नियम थे । 1 वि० सं० १९२६ के आषाढ ( ई० स० १८७२ की जुलाई ) में जिस समय महाराज आबू पर थे, उस समय कुछ जागीरदारों की मिलावट से द्वितीय महाराज कुमार जोरावरसिंहजी ने नागोर के किले पर अधिकार करलिया । इसकी सूचना जालोर वालों के गवर्नमेन्ट की तरफ़ १. ये सलामी की १७ तोपें वि० सं० १६२३ ( ई० स० १८६७ ) में महारानी विक्टोरिया की तरफ से नियत की गई थीं । महाराज के नाराज़ होकर अजमेर से लौट आने पर महाराज - कुमार जसवन्तसिंहजी ने गवर्नर-जनरल मिलकर यह झगड़ा शान्त कर दिया । २. इसी वर्ष तिंवरी के जागीरदार ने अन्य जागीरदारों से मिल कर बहुत अरसे से ज़ब्त था, ज़बरदस्ती कब्ज़ा कर लिया। परन्तु राज्य उसे वहां से भगा दिया । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ३ सरदारों में: १ पौकरन, २ कुचामन, ३ रायपुर, ४ नींबाज, ५ रीयां और ६ खैरवा के ठाकुरों के और मुसद्दियों में: ७ मेहता विजैमल, ८ सिंघी समरथराज, ६ हरजीवन, १० पंडित शिवनारायण, ११ मुहता कुंदनमल, और १२ राव सरदारमल के नाम थे । ४. यद्यपि यह महाराज के द्वितीय पुत्र थे, तथापि उनके जोधपुर गोद आने के बाद पहले - इसीसे यह राज्य में, अन्य भाइयों से, अपना हक़ में नागोर प्रान्त के खाटू आागोता और हरसोलाव पहल इन्हीं का जन्म हुआ था । विशेष समझते थे । इस मामले आदि के ठाकुर भी शरीक़ थे । " ४५६ अपने गांव पर, की सेना ने पहुँच www.umaragyanbhandar.com Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास पाते ही महाराज और पोलिटिकल एजैंट कप्तान इम्पे लौट कर जोधपुर आए और सावन ( अगस्त ) में यहां से नागोर गए । पहले तो जोरावर सिंहजी ने इनका सामना करने का विचार किया, परन्तु अन्त में समझाने से वह किला छोड़ कर पिता के पास चले आए। इसके बाद महाराज उन्हें लेकर भादों ( सितम्बर) में जोधपुर लौटे | नागोर-प्रान्त के जिन जागीरदारों ने महाराज - कुमार का साथ दिया था, वे भी उन ( ज़ोरावरसिंहजी ) के साथ थे । परन्तु जब उनमें से गोता के ठाकुर को पकड़ कर क़ैद करदिया गया, तब महाराज - कुमार जोरावरसिंहजी अजमेर चले गए और इसके बाद कुछ दिन तक उन्हें वहीं रहना पड़ा । इसी बीच राजकीय सेना ने जाकर खाटू पर अधिकार कर लिया । परन्तु वहां का ठाकुर बचकर निकल गया । इसी वर्ष आश्विन ( सितम्बर) में महाराज आबू गए और वहां से लौटकर कार्तिक (अक्टोबर ) में पाली पहुँचे । इन दिनों आपका स्वास्थ्य ख़राब हो रहा था । इससे गवर्नर-जनरल का एजेन्ट और पोलिटिकल एजेन्ट भी वहां गए । इसके बाद महाराज ने, कार्तिक वदि १२ ( २९ अक्टोबर ) को, उनकी सलाह से, महाराजकुमार जसवन्तसिंहजी को युवराज-पद देकर राज्य कार्य का प्रबन्ध सौंप दिया । इसके बाद महाराज और महाराज - कुमार जोधपुर चले आए। वि० सं० १९२९ की माघ सुदि १२ और १३ ( ई० स० १८७३ की ह और १० फरवरी) को महाराज ने अपने स्वास्थ्य के अधिक ख़राब होजाने के कारण एक लाख रुपये दान किए और माघ सुदि १५ ( ई० स० १८७३ की १२ फरवरी ) को महाराजा तखतसिंहजी का, राजयक्ष्मा की बीमारी से, स्वर्गवास होगया । यद्यपि महाराजा तख़तसिंहजी बड़े वीर और चतुर थे, तथापि आपके रनवास के साथ और शिकार में अधिक रहने के कारण मंत्रियों को मनमानी करने का मौका मिल जाता था । महाराज ने राजपूत जाति में होनेवाले कन्या - वध को रोकने के लिये कठोर आज्ञाएं प्रचलित की थीं, और ऐसी आज्ञाओं को पत्थरों पर खुदवाकर मारवाड़ के तमाम क़िलों और हकूमतों के द्वारों पर लगवा दिया था । आप ही के समय जागीरदारों १. कार्तिक सुदि १४ ( १४ नवम्बर ) को मेहता विजैसिंह दीवान बनाया गया, और मँसिर वदि १ ( १६ नवम्बर ) से महाराज - कुमार जसवन्तसिंहजी ने राज- कार्य करना प्रारम्भ किया । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ४६० www.umaragyanbhandar.com Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाराजा तखतसिंहजी के विवाह आदि में दी जानेवाली चारणों आदि की लागें भी नियत की गई थीं । आपने अजमेर के मेयो कॉलेज की स्थापना के समय उसके लिये एक लाख रुपये प्रदान किए थे । महाराज ने जोधपुर की गद्दी पर बैठने के बाद बाघा नामक भाट को भी 'लाख पसाव' दिया था । महाराजा तखतसिंहजी के १० पुत्र थे: १ जसवन्तसिंहजी, २ जोरावरसिंहजी, ३ प्रतापसिंहजी, ४ रणजीतसिंहजी, ५. किशोरसिंहजी, ६ बहादुरसिंहजी, ७ भोपालसिंहजी, ८ माधोसिंहजी, मोहब्बतसिंहजी और १० जालिमसिंहजी । C इनके अलावा महाराज के १० रावराजा भी थे I १. इनका जन्म वि० सं० १६०० की माघ सुदि ६ ( ई० स० १८४४ की २५ जनवरी ) हुआ था । २. इनका जन्म वि० सं० १६०२ की कार्तिक वदि ६ ( ई० स० १८४५ की २१ अक्टोबर) हुआ था । ३. इनका जन्म वि० सं० १६०३ की चैत्र वदि ३ ( ई० स० १८४७ की ५ मार्च ) हुआ था। ४. इनका जन्म वि० सं० १६०४ की भादों वदि ६ ( ई० स० १८४७ की ३ सितम्बर ) को हुआ था । ५. इनका जन्म १६१० की पौष सुदि १२ ( ई० स० १८५४ की ११ जनवरी) को हुआ था । ६. इनका जन्म वि० सं० १६११ की चैत्र सुदि ४ ( ई० स० १८५४ की १ अप्रेल ) को हुआ था । ७. इनका जन्म १६१३ की आषाढ वदि ६ ( ई० स० १८५६ की ८. इनका जन्म वि० सं० १६१४ की भादों वदि २ ( ई० स० को हुआ था । ६. इनका जन्म वि० सं० १६२२ की आषाढ वदि ६ ( ई० स० १८६५ की १५ जून ) को हुआ था । २४ जून) को हुआ था । १८५७ की ७ अगस्त ) १०. १ मोतीसिंह, २ जवाहरसिंह, ३ सुलतानसिंह, ४ सरदारसिंह, ५ जवानसिंह, ६ सांवतसिंह, ७ तेजसिंह ( प्रथम ), ८ कल्याणसिंह, ६ मूलसिंह और १० भारतसिंह | ४६१ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास महाराज को मकान आदि बनवाने का भी बड़ा शौक था। इसी से आपने अनेक नए महल, बगीचे, तालाब आदि बनवाएं थे। महाराज ने अनेक गांव भी दान किए थे। १. महाराज के बनवाए किले में के स्थान: तैमहल के पास का और अमृतबाव के ऊपर का महल, चौकेलाव के मकानात और बाग, सभामंडप के ऊपर के डेवढी पर के और आमखास के महल, चामुंडा का मंदिर और फतैपौल से अमतीपौल तक का किले का हिस्सा (यह बिजली से उड़ गया था, इसलिये पीछा बनवाया गया)। किले की पूर्व की अभयसिंहजी की बनवाई बुर्जी पर भी काम शुरू करवाया गया था, पर शीघ्र ही वह बन्द कर दिया गया। महाराज के बनवाए नगर में के स्थानः रानीसर, पद्मसर, गुलाबसागर और फतैसागर के पट्टे ( दीवारें) और उनकी नहरों का विस्तार । बाईजी के तालाव का पैदा ( पहले इसमें पानी बिलकुल ही नहीं ठहरता था)। उस तालाव की दीवारें और ( मसूरिये तक की ) नहर | गुलावसागर पर के राजमहल, मंडी की घाटी का चबूतरा, गंगश्यामजी के मन्दिर के नीचे की पूर्व की तरफ की दूकानें, मंडी में का सायर का मकान और कोतवाली के मकानात । महाराजा के बनवाए नगर के बाहर के स्थानः विद्यासाल, बालसमन्द और छैलबाग के महल, मंडोर में का मानसिंहजी का बड़ा (स्मृति-भवन ), कायलाने के महल और उधर के तखतसागर वगैरा तीन तालाव । बीजोलाई. नाडेलाव, माचिया, जालिया, रामदान का बाड़िया, तखतसागर, भींवभिड़क, मनरूप का बाड़िया, मीठी नाडी, फूलबाग आदि अनेक स्थानों पर के मकानात और मंडोर और कायलाने आदि की सड़कें। इनकी रानी जाडेजीजी ने बालसमंद के पास देरावरज़ी के तालाब पर महल और बाग बनवाया था। इनकी परदायत मगराज ने नागोरी दरवाजे के बाहर और लछराज ने जालोरी दरवाजे के बाहर अपने-अपने नाम पर बावलियां बनवाई थीं, और इनकी माता चावड़ीजी ने तबेले के सामने फतैबिहरीजी का मन्दिर बनवाया था। २. १ थबूकड़ा, २ देईजर, ३ लपा का खेड़ा ( जोधपुर परगने के ) नाथों को; ४ बुडकिया, (जोधपुर परगने का ) भाटों को और ५ पोपावास (जोधपुर परगने का) चारणों को । ૪૬૨ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४ महाराजा जसवन्तसिंहजी (द्वितीय) यह महाराजा तखतसिंहजी के बड़े पुत्र थे, और उनका स्वर्गवास होने पर, वि० सं० १९२६ की फागुन सुदी ३ ( ई० स० १८७३ की १ मार्च ) को, जोधपुर की गद्दी पर बैठे'। इनका जन्म वि० सं० १८९४ की आश्विन सुदि ८ ( ई० स० १८३७ की ७ अक्टोबर) को अहमदनगर में हुआ था। वि० सं० १९३० के वैशाख ( ई० स० १८७३ के अप्रेल ) में इन्हों ने राज्यप्रबन्ध और प्रजा के सुभीते के लिये एक 'खास महकमा कायम किया; और मुंशी फैजुल्लाखाँ को अपना मंत्री बनाया । इसी समय से दीवान और बखशी के जबानी हुक्मों से राज्य-कार्य के संचालन की प्रथा उठा दी गई और दीवानी, १. वि० सं० १६२६ की फागुन सुदि १० (ई० स० १८७३ की ८ मार्च ) को गवर्नमेंट ने महाराज की गद्दीनशीनी का ख़रीता भेजा । 'राजपूताने के गजेटियर' में ई० स० १८७३ की ८ मार्च को महाराजा जसवन्तसिंहजी का राज्याभिषेक होना लिखा है । यह ठीक नहीं है । ( राजपूताना गजेटियर, भा० ३ ए, पृ० ७४ । ) इसी वर्ष की फागुन सुदि ११ (६ मार्च ) को जयपुर-नरेश रामसिंहजी जोधपुर पाए । २. पहले इस महकमें का नाम ' महकमा भुसाहबत' रखा गया था । परंतु वि० सं० १६३३ (ई० स० १८७६ ) में इसका नाम बदलकर 'महकमा प्रालिया' और वि० सं० १९३५ (ई० स० १८७८) में ' महकमा आलिया प्राइम मिनिस्टर' कर दिया गया । कुछ वर्ष बाद यह महकमा ‘महकमा खास' कहाने लगा। ३. यह अदालत, वि० सं० १८६६ ( ई० स० १८३६ ) में रैजीडेन्सी कायम होने के समय खोली गई थी। इसके बाद वि० सं० १६०० ( ई० स० १८४३ ) तक तो इसका काम रेजीडेन्सी (सूरसागर ) में ही होता रहा, परंतु महाराजा तखतसिंहजी के गद्दी बैठने पर इसका दफतर वहां से उठा कर शहर में लाया गया । उस समय इस अदालत के इख्तियारात बढ़ाने के साथ ही अभियोगों की मियाद के नियम भी बनाए गए । इसी साल बामणों, चारणों और पुरोहितों आदि के अभियोगों का निर्णय करने के लिये 'अदालत षट्दर्शन के ४६३ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास फौजदारी और अपील की अदालतों का फिर से सुधार किया गया । नाम से एक नई अदालत कायम की गई । इस समय तक मुकद्दमों का सारा काम ज़बानी होता था। केवल मुद्दई और मुद्दायले का कुछ हाल एक बही में लिख लिया जाता था, और फैसला रोज़नामचे में दर्ज होजाता था। परन्तु इस वर्ष से लिखित काररवाई शुरू की जाकर मिसलें आदि बनाई जाने लगीं। वि० सं० १६३० ( ई० स० १८७३ ) तक अदालतों का सब काम हिन्दी में होता था, परन्तु वि० सं० १६३१ (ई० स० १८७४) से वह उर्दू में होने लगा । अन्त में वि० सं० १९३७ (ई० स० १८८०) में उ-लेखकों की लेखन-प्रणाली की शिकायतें होने से, उनके स्थान पर फिर से हिन्दी-लेखक रक्खे गए, और महकमों का काम हिन्दी में होने लगा । इससे प्रजा को भी सुभीता होगया । पहले दीवानी का काम कविराज मुरारिदान को सौंपा गया था । परन्तु वि० सं० १९३८ (ई० स. १८८१) में मेहता अमृतलाल दीवानी अदालत का हाकिम बनाया गया। वि० सं० १६४२-४३ (ई० स० १८८५-८६) में दीवानी का नया कानून प्रकाशित किया गया । इससे लेन-देन की मियाद (अवधि) और राज की रसम (फ़ीस) आदि का खुलासा होगया। १. यह महकमा भी पहले, दीवानी अदालत के साथ, रेजीडेन्सी में कायम हुअा था, और फिर उसी के साथ शहर में लाया गया। पहले अक्सर जागीरदार लोग इसके हुक्मों की परवा नहीं करते थे । परन्तु वि० सं० १६०५ (ई० स० १८४८) से पंचोली धनरूप ने इसके लिये उन पर दबाव डाला, और वि० सं० १६०६ की मँगसिर बदि ६ (ई० स० १८४६ की ६ नवम्बर) को उनसे जागीर की एक हज़ार की आमदनी पर ८० रुपये रेख' के भरते रहने का इकरारनामा लिखवा लिया । इस इकरारनामे पर पौकरन, आउवा, आसोप, नींबाज, रीयां और कुचामन के सरदारों ने दस्तखत किए थे। वि० सं० १६२५ से १६२६ (ई० स० १८६८ से १८७२) तक मारवाड़ में जागीरदारों का उपद्रव रहने के कारण इस अदालत का कार्य फिर शिथिल पड़ गया था। परन्तु महाराजा जसवन्तसिंहजी (द्वितीय) ने गद्दी पर बैठते ही इसका प्रबन्ध ठीक करने की आज्ञा दी। इस पर वि० सं० १६३८ (ई० स. १८८१) में मोहम्मद मखदूमबख्श इसका हाकिम बनाया गया, और उसी समय इसके लिये कायदे और कानून भी बना दिए गए। वि० सं० १६४२ (ई० स० १८८५) में इस महकमे की आज्ञाओं का पालन करवाने और नगर का प्रबन्ध करने के लिये पुलिस विभाग की स्थापना की गई; क्योंकि अब तक पुलिस के न होने से उस का काम फौज से ही लिया जाता था । इसके साथ ही फौजदारी के कानून में भी फिर संशोधन किया गया । २. पहले परगनों के हाकिमों के फैसलों को अपीलें दीवान के पास और उस (दीवान) के फैसलों की अपीलें महाराजा के पास होती थीं । महाराजा मानसिंहजी के समय अपील सुनने के लिये दो कर्मचारी नियुक्त थे । इसके बाद महाराजा तखतसिंहजी ने, वि० सं० १६०० (ई स० १८४३), में, राज्य-भार ग्रहण करने पर स्वयं बैठ कर अपील सुनने का नियम जारी करदिया । परन्तु फिर कुछ काल बाद इस काम के लिये लाला दौलतमन Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाराजा जसवन्तसिंहजी (द्वितीय) वि० सं० १६३० की ज्येष्ठ सुदि ६ ( ई० स० १८७३ की १ जून ) से चोरों का नियंत्रण करने के लिये रात को एक के बदले दो तोपें दागी जाने की आज्ञा हुई । इस दूसरी तोप के दगने के बाद कोई भी मनुष्य बिना रौशनी साथ में लिए बाहर नहीं निकल सकता था । महाराज के राज्य कार्य का भार सम्हालते ही देश का प्रबन्ध बहुत कुछ ठीक हो गया था । इसी से गवर्नमैन्ट की तरफ़ से नियुक्त सिरोही के पोलिटिकल सुपरिन्टैन्डैन्ट ने, वि० सं० १९३१ ( ई० स० १८७४ ) में, जालोर की तरफ़ का पुलिस का प्रबंध फिर से जोधपुर दरबार को सौंप दिया । नियुक्त किया गया । इसके बाद वि० सं० १६३० ( ई० स० १८७३ ) तक तो यह काम इसी प्रकार चलता रहा, परन्तु इस वर्ष की वैशाख वदि ५ ( ई० स० १८७३ की १७ अप्रेल ) से अपील सुनने का काम महाराजा जसवन्तसिंहजी के 'इजलास खास ' में होने लगा । अन्त में वि० सं० १६३५ के फागुन ( ई० स० १८७६ की फरवरी) में यह काम उस समय के प्रधान मंत्री महाराज प्रतापसिंहजी को सौंप दिया गया । परंतु कुछ दिन बाद उन्होंने इसके लिये ' महकमा अपील ' नाम की एक नई अदालत कायम की और महाराज भोपालसिंहजी को उसका हाकिम बनाया। इसके बाद वि० सं० १६३८ ( ई० स० १८८१ ) में यह काम कविराज मुरारिदान को सौंपा गया । वि० सं० १६३६ की फागुन सुदि ३ ( ई० स० १८८३ की ११ मार्च ) को पहले-पहल इस महकमे के लिये कानून बनाया गया । १. इनमें की पहली तोप रात के ६ बजे और दूसरी १० बजे छुटा करती थी और इसके बाद नगर के द्वार बंद हो जाते थे । २. इसी वर्ष सोभावत केसरीसिंह किलेदार बनाया गया । इसका पूर्वज कृतैसिंह अपने भाइयों के झगड़े के कारण अहमदनगर चला गया था । परंतु महाराजा तखतसिंहजी के जोधपुर आने पर उन्हीं के साथ उस ( कृतैसिंह ) का पौत्र उदैकरण जोधपुर लौट आया था । ३. यह प्रबन्ध, वि० सं० १६२८ ( ई० स० १८७१ ) में, गवर्नमेन्ट के कहने से उसे सौंपा गया था और साथ ही पोलिटिकल सुपरिन्टैन्डैन्ट की सहायता के लिये जोधपुर की तरफ का एक अफसर और कुछ सैनिक भी जालोर में रक्खे गए थे । यह प्रबन्ध जालोर और सिरोही की सरहदों के मिली होने से इधर की लुटेरी क़ौमों के उधर जाकर उपद्रव करने की प्रथा को रोकने के लिये किया गया था । वि० सं० १६३७ ( ई० स० १८७६ -८० ) में उधर की सरहद पर फिर उपद्रव उठा। इस पर महाराज ने उपद्रवियों के मुखिया रेवाड़े के ठाकुर को पकड़वा कर, वि० सं० १६३६ के भादों ( ई० स० १८८२ के सितम्बर) में फांसी दिलवा दी । ४६५ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास इसी वर्ष महाराजा जसवन्तसिंहजी ने, अपने स्वर्गवासी पिता ( महाराजा तखतसिंहजी ) की अस्थियों को गङ्गा में प्रवाहित करने के लिये दल-बल सहित, हरद्वार की यात्रा की और वहां से आप कलकत्ते जाकर, पौष वदि १३ ( ई० स० १८७५ की ५ जनवरी ) को, वायसराय से मिले । इसके बाद माघ सुदि १ (१४ फरवरी) को आप वापस जोधपुर लौट आए । इस यात्रा में आप गया भी गए थे । ___महाराजा को अपनी प्रजा और अपने सरदारों की शिक्षा का भी पूरा खयाल था । इसीसे सरदारों और राज-वंश के बालकों की शिक्षा के लिये ३६,००० रुपये खर्चकर अजमेर के मेयो कालेज में एक बोर्डिङ्ग-हाउस ( छात्रावास ) बनवाया गया, और उक्त कालेज के लिये मकराने ( संगमरमर ) का पत्थर मुफ़्त दिया गया। वि० सं० १९३२ ( ई० स० १८७५ ) में भारत के वायसराय और गवर्नर जनरल लॉर्ड नॉर्थब्रुक जोधपुर आए । उस समय महाराज ने अपने सरदारों आदि को निमंत्रित कर बड़ा उत्सव किया । इसी वर्ष सर्दारों आदि के लड़कों की तालीम के लिये जोधपुर में ठाकुरों के स्कूल की स्थापना की गई ।। इसके बाद वि० सं० १९३२ की पौष बदि ११ ( ई० स० १८७५ की २३ दिसम्बर ) को उस समय के प्रिंस ऑफ वेल्स हिन्दुस्थान में आए । इस पर महाराज भी अन्य मुख्य-मुख्य नरेशों की तरह लॉर्ड नॉर्थब्रुक के निमंत्रण पर कलकत्ते गए। वहां पर यथानियम महाराजा ने प्रिंस ऑफ़ वेल्स की और उसने इनकी अभ्यर्थना की। इसी वर्ष की पौष सुदि ५ (ई० स० १८७६ की १ जनवरी) को प्रिंस ऑफ वेल्स के भारत में आने के उपलक्ष में कलकत्ते के किले में एक दरबार किया गया । वहां पर प्रिंस ऑफ़ वेल्म ने स्वयं अपने हाथ से महाराज को जी. सी. एस. आइ. के पदक से भूषित किया, और भारत सरकार के 'वैदेशिक-सचिव' (फॉरिन सेक्रेटरी) ने खड़े होकर महाराज के 'ग्रान्ड कमान्डर ऑफ दि स्टार ऑफ़ इन्डिया' बनाए जाने की घोषणा की। १. इस यात्रा में करीब तेतीस हज़ार रुपया खर्च हुआ था। २. इसके उपलक्ष में नगर में जो रौशनी की गई थी, उसे आज भी यहां के लोग 'लाट___ दिवाली' के नाम से स्मरण किया करते हैं । इसी अवसर पर महाराज ने शहर के प्रबन्ध से प्रसन्न होकर रावराजा मोतीसिंह को 'बहादुर' का खिताब दिया । ३. यही बाद में बादशाह ऐडवर्ड सप्तम के नाम से ब्रिटिश राज-सिंहासन पर बैठे थे। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाराजा जसवन्तसिंहजी (द्वितीय) वि० सं० १८३३ की आषाढ सुदि १२ ( ई० स० १८७६ की ३ जुलाई ) को जोधपुर का राजकीय स्कूल, जोकि अंगरेज़ी भाषा की शिक्षा के लिये खोला गया था, 'हाई स्कूल' बनादिया गया। वि० सं० १९३३ के भादों ( इ० स० १८७६ के अगस्त ) में 'महकमा खास' का काम महाराज ने अपने छोटे भ्राता महाराज किशोरसिंहजी को सौंपा। इसी वर्ष की आश्विन सुदि ४ ( ई० स० १८७६ की २१ सितम्बर ) को 'स्टाम्प' का कानून बना, और कार्तिक वदि ४ (७ अक्टोबर) को 'स्टाम्प' का महकमा खोला गया ।। ये 'स्टाम्प' सर्कारी छापेखाने में तैयार किए जाते थे । वि० सं० १९३३ की माघ बदि २ ( ई० स० १८७७ की १ जनवरी ) को महारानी विक्टोरिया के भारतेश्वरी ( Empress of India ) की उपाधि ग्रहण करने के उपलक्ष में दिल्ली में एक दरबार होने वाला था। इसलिये महाराज भी गवर्नमैन्ट द्वारा निमंत्रित होकर, अपने दल-बल सहित, वहां पहुंचे और वि० सं० १६३३ की पौष सुदि १२ (ई० स० १८७६ की २८ दिसम्बर) को लॉर्ड लिटन से इनकी मुलाकात हुई। उस समय गवर्नमैन्ट की तरफ़ से इनकी सलामी में १७ तोपें दागी गईं और सेना ने सामने आकर फौजी कायदे से इनका अभिनन्दन किया। इसके साथ ही 'वैदेशिक-सचिव' १. इनकी और इनके छोटे भ्राताओं की प्रारंभिक-अंगरेज़ी-शिक्षा के लिये वि० सं० १६१६ ( ई० स० १८६२) में पंडित अयोध्यानाथ हुक्कू नियुक्त किया गया था। २. वैसे तो वि० सं० १६३० की सावन सुदि ३ ( ई० स० १८७३ की २७ जुलाई ) को ही इस विषय के कुछ नियम प्रकाशित किए गए थे, मकानों और खानों के पट्टों और अर्जियों के लिये 'स्टाम्प' के कागज़ छपवाकर कोतवाली आदि में रखवा दिए गए थे और इसकी देख-रेख का काम पंडित शिवनारायण काक को सौंपा गया था। परंतु उस | समय पट्टों के उपयोग में आने वाले काग़ज़ों के अलावा अन्य 'स्टाम्पों' पर कीमत नहीं छपी होती थी। अदालतों के हाकिम, बेचते समय, उन पर कीमत लिख दिया करते थे। पहले १०० रुपये तक के दावे पर चार पाने का ' स्टाम्प ' लिया जाता था। परंतु वि. सं. १६३१ की प्रथम आषाढ सुदि ३ (ई० स० १८७४ की १७ जून) को पचास रुपये तक के दावे पर दो आने का 'स्टाम्प' लेने का नियम कर दिया गया। वि० सं० १६३२ ( ई० स० १८७५ ) में 'स्टाम्प' का प्रबन्ध मेहता विजयमल को दिया गया । परन्तु वि० सं० १६३३ (ई० स० १८७६ ) में इसके कायदे-कानून बनाकर इस काम के लिये एक जुदा महकमा कायम किया गया और डड्ढा हरखमल और मुंशी मुबारिकहुसैन उसके अफसर बनाए गए। ४६७ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास ने पेशवाई कर इन्हें वायसराय लॉर्ड लिटन के स्थान पर उपस्थित किया । महाराज के वहां पहुँचते ही वायसराय भी तत्काल इनकी अभ्यर्थना को आगे बढ़ा, और इन्हें लेजाकर अपनी दाहिनी तरफ़ बिठाया । कुछ देर आपस में बात चीत होती रही । इसी बीच दो अंगरेज़ सैनिकों ने जोधपुर के राज - चिह्न से अंकित एक राज-पताका लाकर उपस्थित की । इसके स्वर्ण - डंड पर ब्रिटिश-राज- मुकुट बना था और ध्वजा के पीछे “ कैसरे हिन्द " लिखा था । इस पताका के लाए जाने पर वायसराय उठकर आगे बढ़ा और उसने आगे लिखा भापण कर उसे, महारानी विक्टोरिया की तरफ़ से, महाराज को अर्पण कर दिया: 1 महाराज ! आपके वंश के राज-चिह्न से अङ्कित यह पताका स्वयं महारानी की तरफ़ का उपहार है और उनके भारतेश्वरी की उपाधि ग्रहण करने के उपलक्ष में आपको अर्पण किया जाता है । इंगलैंड के सिंहासन और आपके राज-वंश के बीच जो दृढ़ संबन्ध है उसी के आधार पर ब्रिटिश गवर्नमेन्ट आपके वंश का प्रभाव, सुख, स्वच्छन्दता और स्थिरता चाहती है । महारानी विक्टोरिया का विश्वास है कि जब तक आप इस पताका को फहराते रहेंगे, तब तक अवश्य ही महारानी की स्मृति आपके मार्ग में बनी रहेगी । " 66 इस पर महाराज ने आगे बढ़ बड़े आदर और मान के साथ उस पताका को ग्रहण किया । इसके बाद लॉर्ड लिटन ने महाराज को एक सुवर्ण का पदक, जिस पर महारानी विक्टोरिया की मूर्ति बनी थी, पहना कर यह भाषण दिया: “महाराज ! मैंने महारानी और भारतेश्वरी की आज्ञानुसार इस पदक से आपको विभूषित किया है । मैं आशा करता हूं कि आप इसे दीर्घकाल तक धारण करेंगे और इसमें अङ्कित तारीख के शुभ अवसर की याद को बनी रखने के लिये आपके उत्तराधिकारी भी इसे चिरकाल तक पदक रूप से सुरक्षित रक्खेंगे ।" इसी अवसर पर वायसराय ने व्यक्तिगत रूप से महाराज की सलामी की तोपें बढ़ाकर १७ के स्थान पर १९ करदीं । दूसरे दिन ( वि० सं० १९३३ की पौष सुदि १४ = २६ दिसम्बर) को स्वयं वायसराय महाराज के स्थान पर आकर इनसे मिला । इसके बाद माघ वदि २ ( ई० स० १८७७ की १ जनवरी) को महाराज दरबार में सम्मिलित हुए । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ४६८ www.umaragyanbhandar.com Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाराजा जसवन्तसिंहजी (द्वितीय) इसी अवसर पर मुंशी फैजुल्लाखाँ को 'खाँ बहादुर' की, मेहता विजयमल को राय बहादुर' की, और कुचामन, खैरवा तथा पौकरन के ठाकुरों को 'राओ बहादुर' की उपाधियां मिलीं । इसके बाद महाराज लौटकर जोधपुर चले आए। वि० सं० १९३४ (ई० स० १८७७) में वर्षा न होने से मारवाड़ में भीषण अकाल पड़ा । ( उस समय देश में रेल के न होने से नाज का बाहर से मँगवाना कठिन था । ) परन्तु महाराज ने, प्रजा के हित के लिये, इधर-उधर का सारा नाज, जिस भाव से मिल सका उसी भाव से खरीदवा कर, राज्य की तरफ़ से एक रुपये का आठ सेर के भाव से बिकवाया । इससे प्रजा को बड़ी सुविधा हुई। वि० सं० १९३४ (ई० स० १८७७) में प्रथम महाराज-कुमार का जन्म हुओ । वि० सं० १९३५ ( ई० स० १८७८) में महाराज ने, अजमेर से आबू को जानेवाली, 'राजपूताना मालवा रेल्वे' की शाखा ( लाइन ) के लिये मारवाड़ की सरहद में की आवश्यक-भूमि विना किसी प्रकार का मूल्य लिए ही देदी। इसी वर्ष गवर्नमेंट ने महाराज की सलामी की तोपें बढ़ा कर २१ करदी । इस वर्ष के भादौं (ई० स० १८७८ के अगस्त ) में महाराज ने अपने छोटे भ्राता महाराज प्रतापसिंहजी को 'प्राइम मिनिस्टर' बनाकर राज्य-कार्य को आधुनिक ढंग पर चलाने का प्रबन्ध किया और महाराज किशोरसिंहजी को 'कमाण्डर इन चीफ़' का कार्य सौंपा। ___ इसी वर्ष महाराज की तरफ से उनके छोटे भ्राता महाराज प्रतापसिंहजी अंगरेजों की मिशन के साथ काबुल गए । उनकी वहां की कार-गुज़ारी से प्रसन्न होकर महारानी ने उन्हें सी. एस. आइ. की उपाधि से भूषित किया । वि० सं १९३६ की ज्येष्ठ बदि ३ (ई० स० १८७६ की ८ मई ) को महाराजा और अंगरेजी सरकार के बीच फिर एक अहदनामा हुआ । इसके अनुसार डीडवाना, १. कहीं-कहीं एक रुपये का दस सेर गेहूँ और जौ बिकवाना लिखा मिलता है । २. इस अवसर पर जयपुर-नरेश भी जोधपुर आकर उत्सव में सम्मिलित हुए थे । परन्तु शीघ्र ही इन महाराज-कुमार का देहान्त हो गया । ३. इसी वर्ष "इज़लाय गैर" ( Foreign Deptt.) की स्थापना की गई, और यह काम महाराजा साहब के 'प्राइवेट सेक्रेटरी' कश्मीरी पंडित शिवनारायण काक को सौंपा गया। ४. ए कलैकशन ऑफ ट्रीटीज़ ऐंगेजमैंट्स ऐण्ड सनद्स, भा० ३, पृ० १५६-१६४ । यह संधि वास्तव में वि० सं० १६३५ की माघ वदि ११ (ई० स० १८७६ की १८ जनवरी) को की गई थी। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास पचपदरा, फलोदी और लूनी के तट पर की ( भवातड़े की ) नमक की खानों का ठेका भी गवर्नमैंट ने लेलिया, पिचियाक और मालकोसनी की खारी नमक की खानों को छोड़ कर राज्य में के अन्य सारे नमक के दरीबे बंद करवा दिए और पिचियाक और मालकोसनी में सालाना बीस हजार मन से अधिक नमक न बनाने का राज्य से वादा लेलिया । परन्तु कलमीशोरा बनाने का हक़ राज्य के अधिकार में ही रहा । इसकी एवज्र में गवर्नमैंट की तरफ़ से जोधपुर - राज्य को वार्षिक ३,६१,८०० रुपये नकद, १०,००० मन उमदा नमक विना मूल्य ( पचपदरे के मुक़ाम पर ) और २,२५,००० मन अच्छा नमक आठ आने मन तक के हिसाब से दो किश्तों में पचपदरे की और अन्य स्थानों की खानों से देना निश्चित हुआ । इसके अलावा अधिक लाभ होने पर मुनाफे का आधा भाग भी राज्य को देने का तय हुआ । इसी प्रकार मारवाड़ के जागीरदारों को हुए नुकसान की एवज में १६,५६५ रुपये ५ आने ३ पाई वार्षिक और अन्य भू-स्वामियों को ३,००,००० रुपये एकवार देना निश्चित हुआ । इस संधि के अनुसार गवर्नमैंट की चुंगी दिए विना बाहर से मारवाड़ में नमक का आना या राज्य को मिलने वाले नमक का बाहर जाना बंद करदिया गया और बाहर जानेवाले नमक पर की राज्य की चुंगी भी उठा दी गई । साथ ही गवर्नमैंट ने, इन शर्तों के ठीक तौर से निर्वाह करने के कारण होने वाले अन्य कई तरह के नुकसानों की एवज में, महाराज को १,२५,००० रुपये सालाना और भी देना अङ्गीकार किया । वि० सं० १९३६ की माघ सुदि १ ( ई० स० १८८० की ११ फ़रवरी ) को महाराज-कुमार सरदारसिंहजी का जन्म हुआ । वि० सं० १९३७ की फागुन वदि ३ ( ई० स० १८८१ की १७ फरवरी ) को पहले-पहल मारवाड़ में मर्दुमशुमारी की गई और इसके अनुसार उस समय मारवाड़ की कुल आबादी करीब साढे सत्रह लाख हुई | वि० सं० १९३८ के श्रावण ( ई० स० १८८१ के अगस्त ) में महाराज प्रतापसिंहजी ने अपने कार्य से इस्तीफ़ा दे दिया । परंतु अगले वर्ष के आश्विन १. मारवाड़ में पैदा होने वाले नमक का ठेका गवर्नमेन्ट को देने के पहले नमक बनाने और बेचने का काम राज्य के कर्मचारियों की निगरानी में होता था । परन्तु उस समय पांच लाख से अधिक वार्षिक प्राय कभी नहीं हुई थी । २. इस अवसर पर भी जयपुर - नरेश महाराजा रामसिंहजी जोधपुर ए थे 1 ४७० Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाराजा जसवन्तसिंहजी (द्वितीय) ( ई० स० १८८२ के अक्टोबर) में महाराजा जसवन्तसिंहजी ने यह कार्य फिर उन्हें सौंप दिया । उस समय रियासत की आमदनी २० लाख और खर्च ३० लाख के क़रीब था । साथ ही राज्य पर ४० - ५० लाख का कर्जा भी होगया था । परन्तु महाराज प्रतापसिंहजी के सुप्रबन्ध से, राज्य की आमद और खर्च का सालाना बजट बनाया जाकर उसी के अनुसार सारा काम होने से, राज्य की प्राय में बराबर वृद्धि होती गई और कुछ ही दिनों में खर्च से आमद बढ़ गई । इससे राज्य पर का बहुतसा कर्ज उतर गया और राज्य प्रबंध के लिये कई नए महकमे भी खोले गए। वैसे तो उन दिनों मारवाड़ के प्रत्येक प्रान्त में चोरी और डकैती का ज़ोर था, परंतु जालोर गोडवाड़, शिव और साकड़ा आदि के परगनों में मीणे, भील और बावरी आदि जुरायमपेशा क़ौमों के लोग चोरी-डकैती कर बड़ा उपद्रव किया करते थे । यह देख महाराजा जसवन्तसिंहजी और महाराज प्रतापसिंहजी ने उन परगनों में दौरा कर वहां के मशहूर जुरायम- पेशा लोगों और बागियों को सजाएं देने और साधारण जुरायम- पेशा लोगों को खेती के काम पर लगाने का प्रबन्ध किया । इससे जो जुरायम- पेशा लोग पहले तीर और तलवार लिए लूट मार किया करते थे, वेही कुछ दिन बाद हल और बैल लिए खेतों में काम करते दिखाई देने लगे । मारवाड़ में पहले यदि कोई अपराधी भंयकर अपराध कर किसी ठाकुर के स्थान या महामन्दिर आदि में जाकर बैठ जाता था, तो उक्त स्थान का स्वामी, उसको शरणागत समझ, उसकी मदद पर उठ खड़ा होता था और इससे अपराधी को दण्ड देना कठिन होजाता था । परंतु इस समय तक अदालतें और क़ायदे-कानून बन जाने से यह शरणदान की हानिकारक प्रथा उठा दी गई । १. महाराजा तखतसिंहजी ने राज्य की आय बढ़ाने और प्रजा के सुभीते के लिये नगर कई सरकारी दूकानें खुलवा दी थीं। इनमें आधुनिक बैंकों की तरह देन - लेन का काम होता था । परन्तु इनका प्रबन्ध ठीक न होसकने के कारण, वि० सं० १८७३ ) में, इनका हिसाब इकट्ठा कर आगे सूद पर रुपया देना और दिया हुआ रुपया वसूल कर ख़ज़ाने में जमा करवाने का हुक्म दिया गया । १६२६ ( ई० स० बंद कर दिया गया २. उसी समय बाक़ियात के महकमें का प्रबन्ध भी ठीक किया गया । यह महकमा रेज़ीडेंसी में रहनेवाले रियासतों के वकीलों की पंचायत द्वारा की गई मारवाड़ के जागीरदारों पर की डिगरियों का रुपया वसूल करने के लिये खोला गया था । ४७१ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास वि० सं० १९३८ ( ई० स० १८८१ ) में जिस समय अजमेर से अहमदाबाद तक की रेल्वे लाइन बनाने का विचार हो रहा था, उस समय महाराज ने गवर्नमैन्ट को उसके पाली होकर निकालने का लिखा और साथ ही यह भी लिखा कि यदि यह सम्भव न हो तो कम से कम उसकी एक शाखा वहां तक अवश्य बनादी जाय; क्योंकि यह नगर व्यापार की एक अच्छी मन्डी है । परंतु रेल्वे के अफसरों ने, खर्च की बचत के लिये, महाराज का यह प्रस्ताव अङ्गीकार न किया और वह लाइन खारेची होकर निकाली । इस पर इसी वर्ष के मँगसिर ( नवंबर) में महाराज ने, राज्य और प्रजा के फ़ायदे के लिये, जोधपुर से पाली होती हुई खारची तक की अपनी निजी रेल्वे - लाइन बनाने का इरादा किया, और रैजीडैंट से सम्मति लेकर राजपूताने के गवर्नर जनरल के एजैंट ( ए. जी. जी. ) को इस बारे में लिखा । उसने महाराज के इस विचार को पसन्द कर अपने ‘पब्लिक वर्क्स' के ‘सैक्रेटरी', रॉयल इन्जीनियर कर्नल स्टील, के मारफ़त दो अंगरेजों को उस लाइन की नाप ( सर्वे ) करने के लिये नियुक्त कर दिया । इस प्रकार नाप ( सर्वे ) हो जाने पर पाली से खारची तक की रेल्वे लाइन के खर्च के लिये ५ लाख रुपये का तनमीना किया गया । अन्त में महाराज द्वारा इस ख़र्च के मंजूर कर लिये जाने पर, वि० सं० १९३९ की चैत्र सुदि १२ ( ई० स० १८८२ की ३१ मार्च ) तक, यह लाइन बनकर तैयार हो गई, और आषाढ़ सुदि ८ (२४ जून ) को, गवर्नमैन्ट के कन्सल्टिंग इंजीनियर और कर्नल स्टील के निरीक्षण कर लेने पर, आवागमन के लिये खोल दी गई । सावन वदि १ ( २ जुलाई ) को 'राजपूताना मालवा रेल्वे' के अफ़सरों से एक संधि हुई । इसके अनुसार खारची ( मारवाड़ जंकशन ) पर माल और गाड़ियों के एक लाइन से दूसरी लाइन पर लेजाने का प्रबंध हो गया । इसके बाद महाराज ने मिस्टर होमै को पाली से लूनी तक की लाइन तैयार करने की आज्ञा दी । मार्ग की नाप (पैमाइश ) होने पर इसका तखमीना ३, ५५,४८२ रुपये हुआ । इसके १. यह स्थान पाली से करीब ७ कोस पर है । २. इनमें से एक इंजीनियर के छुट्टी लेकर विलायत चले जाने पर वि० सं० १६३६ की वैशाख सुदि ३ ( ई० स० १८८२ की २० अप्रेल ) को मिस्टर होम रेल्वे का मैनेजर नियत हुआ । यह वि० सं० १६६३ की कार्तिक बदि २ ( ई० स० १६०६ की ४ अक्टोबर) तक इस पद पर रहा था । ३. बाद में तामीरात (पब्लिक वर्क्स ) का काम भी इसी को सौंपा गया था । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ४७२ www.umaragyanbhandar.com Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाराजा जसवन्तसिंहजी (द्वितीय) मंजूर होजाने पर यह लाइन भी वि० सं० १९४१ के ज्येष्ठ ( ई० स० १८८५ की मई ) तक बन कर तैयार हो गई । यद्यपि पाली से लूनी तक सीधे मार्ग से लाइन लाने में २१ मील का ही फ़ासला था, परन्तु मिस्टर होम ने भसलहत समझ इसमें ४ मील का घुमाव और देदिया । इससे बाद में पचपदरे की तरफ़ लाइन ले जाने में सुभीता होगया। इसके बाद वि० सं० १६४१ की फागुन बदि १ (ई० स० १८८५ की ३१ जनवरी ) तक २,२९,८२४ रुपये खर्च कर लूनी से जोधपुर तक की २१ मील की लाइन भी बनादी गई । पहले मारवाड़ के ही एक स्थान से दूसरे स्थान पर माल लेजाने पर महसूल (चुंगी) लग जाता था । परन्तु वि० सं० १९३६ (ई० स० १८८२) में यह झगड़ा उठा कर सरहद पर ही चुंगी लेकर रसीद देने का प्रबन्ध कर दिया गया । पहले ब्राह्मणों, चारनों, भाटों, जागीरदारों और राज-कर्मचारियों के नाम से आनेवाले माल पर चुंगी नहीं लगती थी, परन्तु इसी वर्ष से यह रियायत बंद करदी गई। १. वि० सं० १६४१ के भादों (ई० स० १८८४ के अगस्त ) में लूनी से पचपदरे तक की रेल्वे-लाइन बनाने की आज्ञा दी गई, और इसके लिये पहले १०,४६,२०० रुपयों की और बाद में फिर १,००,००० रुपयों की मंजूरी हुई। २. पहले माल पर हासिल के अलावा कुछ अन्य लागें-जैसे मापा, दलाली, चुंगी, आढत, कोतवाली, श्रीजी (दरबार की), कानूँगोई, दरबानी, और महसूल गल्ला आदि-भी लगती थीं और इनके अलावा जागीरदार भी अपनी जागीर के गांवों में निसार और पैसार के हासिल के साथ अनेक तरह की लागें लिया करते थे । परन्तु इस समय से ये सब लागें उठादी गई। पहले अक्सर यह चुंगी (सायर ) का महकमा ठेके पर दे दिया जाता था और महसूल की निर्ख कानूँगो के बतलाए ज़बानी हिसाब पर ही नियत रहती थी। इसी से महाराजा मानसिंहजी और महाराजा तखतसिंहजी के समय तक इस महकमे की आय केवल तीन लाख के करीब रही। परन्तु महाराजा जसवन्तसिंहजी के समय आय में अच्छी वृद्धि हुई । वि० सं० १६३६ (ई० स० १८८२-१८८३) में इस महकमे के नियमों में फिर सुधार किया गया। इसी प्रकार वि० सं० १९४३ (ई० स० १८८६ ) में मारवाड़ में होकर जाने वाले माल पर की कुछ चुंगी छोड़ दी गई, और वि० सं० १६४७ ( ई० स० १८६० ) में इसमें पूरी तौर से सुधार किया गया। ___ जागीरदारों को उनकी तरफ से लगने वाली चुंगी ( सायर ) के बदले कुछ रुपया दिया जाना तय हुआ। ४७३ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास इसके बाद इस ( चुंगी के ) महकमे के प्रबन्ध के लिये मिस्टर एफ. टी. हयूसन बुलवाया गया । इसने इस महकमे में अनेक सुधार किए और साथ ही मापा, कानूँगोई, आदि की लागें उठा कर प्रजा के लिये भी सुविधा करदी | वि० सं० १९३९ ( ई० स० १८८२ ) में अफीम का प्रचार रोकने के लिये उस पर का महसूल ४० रुपये से बढ़ाकर ८० रुपये करदिया गया । पहले हमेशा से इधर दावानी और फौजदारी अदालतों की शिकायत थी कि जागीरदार लोग उनकी आज्ञाओं का पालन नहीं करते और उधर जागीरदारों का कहना था कि उक्त अदालतें, उनके दरजे का कुछ भी खयाल न कर, ज़रा-ज़रासी बातों के लिये उनकी तलबी या उनके गांवों की जब्ती का हुक्म निकाल देती हैं । इस पर महाराज ने, वि० सं० १९३६ की प्रथम सावन वदि १३ ( ई० स० १८८२ की १३ जुलाई) को, 'कोर्ट- सरदारान' नामक अदालत की स्थापना कर मुंशी हीरालाल को इसका सुपरिन्टेंडेंट और पौकरन, कुचामन, नींबाज, आसोप, रायपुर, खैरवा और रीयां के ठाकुरों को उसका सलाहकार नियत किया । इससे इन सरदारों की सलाह से जागीरदारों के अभियोगों पर विचार होने लगा । इसी प्रकार पहले सरदारों की जागीर के गांवों की हदबंदी न होने के कारण, हरसाल बरसात में खेती के समय, उनके आदमियों में आपस में मारपीट और झगड़े होते रहते थे। इनको बंद करने के लिये, वि० सं० १९३६ ( ई० स० १८८२) में, ' महकमा हदबस्त' क़ायम किया गया और इसका कार्य कैप्टिन डब्ल्यू लॉके, एसिस्टेंट रेज़ीडेंट, पश्चिमी - राजपूताना को सौंपा गया । इसने दौरा कर दो वर्षों में सारे झगड़ों का निर्णय कर दिया और इसी के साथ पैमाइश का काम भी जारी किया । इसी वर्ष महाराज प्रतापसिंहजी ने बरडवा नामक गाँव पर हमला कर वहां के १. वि० सं० १६४३ के सावन ( ई० स० १८८६ के अगस्त ) में इसका देहान्त होगया । इस पर इसकी यादगार कायम रखने के लिये नए बनवाए गए राजकीय अस्पताल का नाम 'ह्यूसन अस्पताल' रक्खा गया । यह शकाखाना विना किसी करने के लिये बनाया गया था। भी खोला गया था । प्रकार की फीस के सर्व साधारण की डाक्टरी तरीके से चिकित्सा मिस्टर ह्यूसन के नाम पर लड़कियों की शिक्षा के लिये एक स्कूल २. कुछ समय बाद पंडित बधावाराम इसका नायब बनाया गया । ३. राजपूताना गज़ टियर, भा० ३ ए, पृ०७४ | Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ४७४ www.umaragyanbhandar.com Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाराजा जसवन्तसिंहजी (द्वितीय) बागियों को सजा दी। इससे जयपुर की तरफ़ की सरहद का झगड़ा मिट गया । इसी साल राजकीय सेना ने सराई जाति के मुसलमान लुटेरों पर आक्रमण कर उन्हें हराया । उनमें से बहुत से इस आक्रमण में मारे गए और उनके गांव बोयात्री पर राज्य का अधिकार हो गया । 'कोर्ट-सरदारान' में नियुक्त उपर्युक्त सरदारों के समय पर विचार में संयुक्त न होने के कारण बहुधा काम में गड़-बड़ होती थी, इससे वि० सं० १९४० के भादों ( ई० स० १८८३ के सितम्बर ) में, गवर्नमेंट से मांग कर, मुंशी हरदयाल सिंह को इस महकमे का अध्यक्ष बनाया और उसे इसके कार्य-संचालन का पूरा-पूरा अधिकार दे दिया। इसी वर्ष रावराजा तेजसिंह (प्रथम ) नायब 'मुसाहिब आला' बनाया गया। उन दिनों मारवाड़ में मीणे, भील, बावरी, आदि जुरायम-पेशा कौमों का फिर से बड़ा उपद्रव होने से उनको खेती के काम पर लगाने के लिये, वि० सं० १९४० के आषाढ (ई० स० १८८३ के जुलाई ) में, परगनों के हाकिमों और सुपरिंटैंडैटों के पास खास तौर से आज्ञाएं भेजी गईं और साकड़े और सनवाड़े के लूट खसोट करने वाले राजपूतों को मार्ग पर लाने के लिये मुंशी फैजुल्लाखाँ रवाना किया गया। उसने वहां जाकर उनके १. कहीं कहीं इसका नाम भवातड़ा लिखा मिलता है । २. यह पहले पंजाब में 'ऐकस्ट्रा ऐसिस्टैंट कमिश्नर' था । ३. कुछ समय बाद पंडित जीवानंद इस अदालत का नायब अफ़सर बनाया गया । ४. इसी वर्ष यह मुसाहिब-याला का होम सैक्रेटरी' बनाया गया । महाराजा साहब के 'प्राइवेट सैक्रेटरी का काम पंडित शिवनारायण काक करता था और पौकरन ठाकुर मंगलसिंह प्रधान तथा राय बहादुर मेहता विजयमल दीवान था । हवाले ( Land Revenue) और रेख आदि की राज्य की आमदनी का तथा जमा-खर्च का प्रबन्ध दीवान की निगरानी में होता था। ५. वि० सं० १६४० ( ई० स० १८८३-८४ ) में ६२ डकैतों को और अगले दो वर्षों में ६५ डकैतों को सजाएं दी गई। इसी प्रकार वि० सं० १६४० से १९४७ (ई० स० १८८३ और १८६० ) तक १६८ पुराने डकैतों ने अपने अपराध स्वीकार कर महाराज से क्षमा मांगी और महाराज ने भी आगे के लिये नंक-चलनी की और बुलावाने पर हाज़िर हो जाने की ज़मानतें लेकर उनका अपराध क्षमा कर दिया। साथ ही ऐसे लोगों के लिये विशेष तौर से खेती करने की सुविधा कर देने से देश में का बहुतसा उपद्रव मिट गया। ४७५ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास मुखियाओं को पकड़ लिया और उनके अनुयायियों से नेक-चलनी की जमानतें लेकर उन्हें वहीं ( अपने-अपने गावों में ) बसा दिया । इसके बाद उनकी देखभाल के लिये साकड़े में हकूमत कायम की जाकर एक हाकिम भेजा गया। वि० सं० १९३६ ( ई० स० १८८२ ) में लोयाने (भीनमाल परगने) का राना सालसिंह बागी हो गया । उसका गांव पहाड़ के पास होने से आस-पास के मीणा, भील आदि जुरायम-पेशा लोग उसे अपना मुखिया समझते थे और वह भी समय पर उनकी सहायता किया करता था । इसीसे उक्त राना पर अनेक अभियोग लगे हुए थे। परंतु जब उसने समझाने पर भी राज्य की आज्ञाओं का पालन करना स्वीकर नहीं किया, तब महाराज प्रतापसिंहजी ने, सेना लेकर, उस पर चढ़ाई की । यद्यपि इस चढ़ाई में राना पकड़ा गया, तथापि कुछ काल बाद १०,००० की जमानत देने पर ( इसमें से ५,००० हरजाने के और ५,००० जुर्माने के थे ) वह छोड़ दिया गया । परंतु इन रुपयों की वसूली के लिये लोयाने की जागीर जब्त करली गई और ठाकुर का लड़का मेश्रो कालेज, अजमेर में पढ़ने के लिये भेज दिया गया । इसीके साथ वहां के अभियुक्त भीलों को भी कैद की सजा दी गई। इस पर राना सालसिंह अपनी जागीर वापस प्राप्त करने के लिये पहले आबू जाकर रैजीडेंट से मिला, परंतु उसके इस मामले में हस्ताक्षेप करने से इनकार करने पर ( वि० सं० १९४० की श्रावन वदि - ई० स० १८८३ की २७ जुलाई ) को जोधपुर लौट आया । उसकी दशा देख महाराज प्रतापसिंहजी को दया आ गई। इसीसे उन्होंने महाराज से कह कर उसे क्षमा दिलवा दी । परंतु इस पर भी वह आश्विन सुदि १० (११ अक्टोबर) को अपनी जागीर की तरफ भाग गया और अपने भाई-बन्धुओं को एकत्रित कर उपद्रव करने का विचार करने लगा। ___ जैसे ही भीनमाल में रहनेवाले हाकिम ने इस बात की सूचना दरबार में भेजी, वैसे ही महाराज प्रतापसिंहजी सेना लेकर उसे दबाने को रवाना हुए। इसके बाद कार्तिक वदि १२ ( २७ अक्टोबर ) को स्वयं महाराज भी शिकार का विचार कर जालोर की तरफ़ चले और शीघ्र ही रैजीडेंट भी आबू से वहां पहुँच गया । महाराज प्रताप के साथ की सेना ने लोयाने के पास के पहाड़ को घेर लिया और मार्ग में की १. यह देवल राजपत था । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाराजा जसवन्तसिंहजी (द्वितीय) झाड़ियों को काटकर आगे बढ़ने के लिये सड़क तैयार कर ली । यह देख राना भाग गया और उसके साथवाले महाराज की शरण में चले आए । इस पर महाराज ने भी उनका अपराध क्षमा कर दिया। इसके बाद मँगसिर सुदि ४ ( ३ दिसम्बर ) को महाराज जोधपुर चले आए। परंतु महाराज प्रतापसिंहजी ने लोयाने को उजाड़ कर उसके पास जसवन्तपुरा नाम का दूसरा गांव बसा दिया और भीनमाल से हकूमत को उठाकर वहां पर स्थापित कर दिया । इस प्रकार वि० सं० १९४० की फागुन वदि १३ । ई० स० १८८४ की २४ फ़रवरी ) तक यह सारा प्रबन्ध कर वह (महाराज प्रतापसिंहजी) जोधपुर चले आए। इसी वर्ष नगर में आवारा फिरनेवाले कुत्तों को पकड़ने और उनको एक बाड़े में रख कर राज्य की तरफ़ से खाना देने का प्रबन्ध किया गया । इसी वर्ष जोधपुर और बीकानेर के बीच अपराधियों के लेन-देन के बाबत संधि की गई। यह संधि निजी तौर पर की गई थी । इसलिये विना किसी 'प्रीमाफ़ेसी' केस के ही अपराधियों का आदान-प्रदान होने लगा । परन्तु वि० सं० १९७९ (ई० स० १९२२) में इसमें सुधार किया जाकर 'प्रीमाफ़ेसी केस' का होना लाज़मी करार दिया गया। वि० सं० १९५७ (ई० स० १९००) में जयपुर के साथ भी ऐसी संधि हो गई और बाद में वि० सं० १९८४ (ई० स० १९२७ ) में इसमें भी सुधार किया गया। ___ महाराजा मानसिंहजी के समय से उदयपुर और जोधपुर के राज-घरानों के बीच मनोमालिन्य चला आता था । परन्तु महाराजा जसवन्तसिंहजी ने इसे दूर कर दिया। इसी से इनके निमंत्रण पर, वि० सं० १९३६ की फागुन सुदि १० (ई० स० १८०० की २१ मार्च ) को, महाराना सज्जनसिंहजी इन से मिलने के १. वि० सं० १६४१ (ई० स० १८८४ ) में उसकी मृत्यु हो गई । २. कुछ काल बाद राना सालसिंह के लड़के को सिणला, आदि तीन गांव जागीर में दिए गए। ३. हर गरमियों में अक्सर बहुत से आवारा कुत्ते बावले हो कर ६०-६५ आदमियों को काटलिया करते थे और इससे १५-२० आदमियों की मृत्यु हो जाती थी। परंतु कुत्तों के पकड़ने का प्रबन्ध हो जाने से यह आफत दूर हो गई । यद्यपि शहर के लोगों ने पहले इस कार्य पर आपत्ति कर दो-तीन दिनों तक बाज़ार की दूकानें बंद रक्खीं, तथापि इसका मर्म समझाने पर अन्त में वे शांत हो गए। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास लिये जोधपुर आए। इसके बाद वि० सं० १९४१ की फागुन बदि २ (ई० स० १८८५ की १ फरवरी) को स्वयं महाराज भी उदयपुर जाकर महाराना फतेसिंहजी से मिले । इस प्रकार दोनों राजघरानों के बीच का पुराना मनोमालिन्य दूर होजाने से उदयपुर के महाराना ने अपनी कन्या का विवाह जोधपुर के महाराज कुमार सरदारसिंहजी से करना तय किया । वि० सं० १९४१ की वैशाख सुदि ६ (ई० स० १८८४ की ३ मई ) को जोधपुर नगर की सफाई के लिये डाक्टर आर्चिबाल्ड ऐडम्स की निगरानी में म्युनिसिपैलिटी कायम की गई और नाबालिग जागीरदारों के प्रबन्ध के लिये 'महकमा नाबालिगी' खोला गया । साथही जागीरदारों को उनके दरजे के अनुसार दीवानी और फौजदारी मामले सुनने के अधिकार भी दिए गए। ___ इसी वर्ष महाराज ने कलकत्ते जाकर जाते हुए लॉर्ड रिपन से और नवागत लॉर्ड डफरिन से मुलाकात की । इस यात्रा में आप किशनगढ़ और अलवर में भी एकएक दिन ठहरे थे। इस वर्ष की रिपोर्ट से ज्ञात होता है कि, महाराज प्रतापसिंहजी को राज-कार्य में सहायता देने के लिये राजकर्मचारियों की एक सभा (काउंसिल ) बनाई गई और १. वि० सं० १६४१ की कार्तिक सुदि (ई० स० १८८४ के अक्टोबर) में महाराना सज्जनसिंहजी फिर जोधपुर पाए । २. वि० सं० १६४१ (ई० स० १८८४ ) में जोधपुर-रेल्वे और बाँबे बड़ोदा ऐण्ड सैंट्रल इण्डिया रेल्वे के बीच एक दूसरे के माल और मुसाफिरों को लेजाने के लिये सन्धि की गई (ए कलैक्शन ऑफ़ ट्रीटीज़ ऐंगेजमैंट्स ऐण्ड सनद्स, भा० ३, पृ० १६४-१६८) इसके बाद वि० सं० १६५८ (ई ० स० १६०१) में इसमें कुछ सुधार किए गए। वि० सं० १९४६ (ई० स० १८८९) में जोधपुर और बीकानेर की सम्मिलित रेल्वे बनाने के नियम बनाए गए और इसके दूसरे वर्ष इसमें कुछ संशोधन किया गया । वि० सं० १९५२ (ई० स० १८६५) में फिर इस रेल्वे के और 'बॉम्बे, बड़ोदा और सैंट्रल इण्डिया रेल्वे' के बीच दूसरी संधि हुई । वि० सं० १६६१ (ई० स० १६०४) में इसमें संशोधन किए गए और इसके बाद भी समय-समय पर इसमें उचित संशोधन होते रहे । इसी प्रकार 'नॉर्थ वैस्टर्न रेल्वे' के साथ भी मुसाफिरों आदि को आगे लेजान के विषय में संधियां की गई । ३. जागीरदारों के तीन दरजे नियत कर पहले दरजे के जागीरदारों को ६ महीने तक की जेल और ३०० रुपये तक का जुरमाना करने का, तथा १,००० रुपये तक के दीवानी मामलों के सुनने का अधिकार दिया गया । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाराजा जसवन्तसिंहजी (द्वितीय) रावराजा तेजसिंह, मेहता विजयसिंह, और पंडित शिवनारायण काक उसके मेंबर ( सभासद ) और मुंशी हरदयालसिंह उसका सेक्रेटरी ( मंत्री ) बनाया गया। पहले अक्सर राज्य की तरफ़ से सरकारी ( खालसे के ) गांवों की फसल के लगान का ठेका ( इजारा) देदिया जाता था। इससे प्रजा को बहुत असुविधा होती थी। यह देख महाराज ने इस प्रथा को उठादिया। इसी के साथ मारवाड़ की नाप (सर्वे) की जाकर 'बीघोड़ी' (प्रति बीघे के हिसाब से लगान वसूली की प्रथा ) बांधदी' गई । इससे पहले जो जमीन का लगान नाज के रूप में लिया जाता था, वह अब से रुपयों के रूप में लिया जानेलगा। पहले राज्य के आय-व्यय का सारा हिसाब सेठों के यहां रहता था । इस से हिसाब की असुविधा के साथ ही राज्य को नुकसान भी होता था । इसलिये वि० सं० १९४२ की वैशाख वदि २ ( ई० स० १८८५ की १ अप्रेल ) को राज्य के खजाने की स्थापना कर उसके नियम आदि बनाए गएँ। इससे राज्य को बहुत फायदा हुआ। इसी वर्ष गवर्नमैट ने जोधपुर दरबार के साथ फिर एक अहदनामा किया। इसके अनुसार यद्यपि मेरवाड़े के २१ गांवों पर जोधपुर-दरबार का ही स्वामित्व रक्खा गया, तथापि वहां का प्रबन्ध हमेशा के लिये गवर्नमैन्ट के अधिकार में चला गयो । १. यह कार्य वि० सं० १६६२ (ई० स० १६०५) में समाप्त हुआ था। २. पहले राज्य के रुपयों का हिसाब अजमेर के सेठ समीरमल के यहां रहता था और जब रुपयों की आवश्यकता होती थी, तब वे उसके यहां से मँगवा लिए जाते थे । इसी प्रकार जब लगान आदि के रुपये आते थे, तब वे उसके पास भेज दिए जाते थे। इस प्रबन्ध के कारण जोधपुर-राज्य को पिछले ११ वर्षों में करीब १८,५०,६३५ रुपये सूद के देने पड़े। परंतु राजकीय खज़ाने के खुल जाने से वि० सं० १६४२ ( ई० स० १८८५-१८८६) में राज्य की प्राय ३६,८२,६०४॥-)। और व्यय ३४,५१,०६३॥1॥ होकर पांच लाख से अधिक रुपयों की बचत हुई। ३. इसी साल १ दीवानी, २ गवाही, ३ स्टाम्प, ४ हलफ़, ५ जेल ६ ठगी-डकैती के अभि योगों, ७ परगनों के हाकिमों के अधिकारों, ८ हाकिमों की परीक्षाओं, ६ हाकिमों के दरजों और उनकी तरक्की और १० नायब हाकिमों आदि के कानून बनाए गए। ४. ए कलैक्शन ऑफ़ ट्रीटीज़ ऐंगेजमैटस ऐण्ड सनदस, भा० ३, पृ० १६८-१६६ । ५. गवर्नमेंट ने पहले पहल वि० सं० १८८० ( ई० स० १८२४ ) में इन गांवो को, वहां के मीणा और मेर जाति के लोगों के उपद्रव को शांत करने के लिये लिया था और उस समय से ही वहां पर गवर्नमेंट का प्रबन्ध चला आता था। ४७६ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास इसकी एवज में गवर्नमैन्ट ने जोधपुर-दरबार को सालाना ३,००० रुपये देना तय किया । इसी के साथ एक शर्त यह भी रक्खी गई कि यदि उन गांवों की आय में से वहां का सारा खर्च बाद देकर कुछ बचत होगी तो उसमें से ४० रुपया सैंकड़ा जोधपुर-दरबार को दिया जायगा। इसी वर्ष जोधपुर-दरबार ने डाकखाने के नियमों को स्वीकार कर प्रजा के लिये बाहर के समाचार पाने और अपने समाचार बाहर भेजने की सुविधा करदी । इसी वर्ष की कार्तिक सुदि ७ ( १४ नवंबर ) को जनरल हार्डिज ( बंबई का जंगी लाठ ) जोधपुर आया और इसके दो दिन बाद कार्तिक सुदि १ (१६ नवंबर ) को स्वयं वायसराय लॉर्ड डफरिन जोधपुर पहुंचा । महाराजा ने भी अपने सरदारों और मुसाहिबों के साथ स्टेशन पर जाकर उसका स्वागत किया । उस समय स्टेशन से कैंप ‘निवासस्थान ) तक की सड़क के दोनों तरफ़ पुराने ढंग के जिरह-बख़्तरों से सजे हुए सवार खड़े किए गए थे। मारवाड़ में पहले आगरे का बना बरफ काम में लाया जाता था । परन्तु इसके मँहगे होने के कारण सर्व साधारण इसके उपयोग से वंचित रहते थे। यह देख दरबार ने जोधपुर में अपना निज का बरफ़ का कारखाना खोल दिया । इससे सर्व साधारण के लिये भी सुविधा हो गई। पहले नगर के लोग अधिकतर रानीसागर, गुलाबसागर, और तैसागर नामक तलावों का पानी पिया करते थे। परन्तु गरमियों में अक्सर इनका पानी सूख जाने से जनता को बड़ा कष्ट होता था। इसलिये कुछ समय से बालसमंद नामक बांध से एक नहर बनवा कर जरूरत के समय इनमें से पिछले दो तलावों में पानी भरने का प्रबन्ध किया गया। कुछ काल से मालगुजारी ( हवाले ) के महकमे का प्रबन्ध मेजर लॉक ( Major W. Loch), ऐसिस्टैंट रैजीडेंट, की देख-भाल में होने लगा था । वि० सं० १९४३ (ई० स० १८८६) में मिस्टर ह्यसन के मर जाने पर सायर, हवाला और सैटलमैंट के काम के लिये मिस्टर ई० ए० फ्रेजर नियुक्त किया गया, और मेवाड़ की सरहद के निर्णय १. इसी वर्ष ठाकुर रणजीतसिंह कोतवाल बनाया गया । २. इसी अवसर पर (ई० स० १८८६ में) महाराज प्रतापसिंहजी को के, सी. एस. आइ. का पदक मिला । यह पहले सी. एस. आइ. हो चुके थे। ३. इसी वर्ष की रिपोर्ट से ज्ञात होता है कि राज्य की तरफ से कानून आदि सिखाने के लिये जो स्कूल खोला गया था, वह अच्छी तरक्की कर रहा था । इसी वर्ष राज्य की तरफ से ४८० Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाराजा जसवन्तसिंहजी (द्वितीय) का काम उदयपुर के रैजीडेंट कर्नल वायली को सौंपा गया। ___ इसी वर्ष राजकीय छापेवाने की, जहां पहले अधिकतर लीथो की छपाई ही होती थी, उन्नति की गई। वि० सं० १९४३ की भादों सुदि १४ ( ई० स० १८८६ की १२ सितंबर) को महाराजा जसवन्तसिंहजी घुड़-दौड़ देखने के लिये पूना गए। इनके वहां पहुंचने पर बंबई-गवर्नमेंट के चीफ सैक्रेटरी आदि ने पेशवाई में आकर इनकी अभ्यर्थना की। वहीं पर यह बंबई के गवर्नर लॉर्ड रे ( Lord Reay ) से और किरकी में डयूक ऑफ़ कनाट से मिले। ___ इसी वर्ष की फागुन वदि । ( ई० स० १८८७' की १६ फरवरी) को महारानी विक्टोरिया के ५० वर्ष राज्य कर चुकने के उपलक्ष्य में 'गोल्डन जुबली' का उत्सव मनाया गया। इसके बाद यही उत्सव लंदन में श्रावण सुदि १ (२१ जुलाई) को किया जाना तय हुआ । इस पर महाराज ने अपने छोटे भ्राता महाराज प्रतापसिंहजी को अपना प्रतिनिधि बनाकर उसमें सम्मिलित होने के लिये भेजा। ____ वि० सं० १९४४ ( ई० स० १८८७ ) में महाराज जालिमसिंहजी सहकारी मुसाहिब-आला बनाए गए; और राज-कार्य के सुभीते के लिये (१) राओ बहादुर मेहता विजयसिंह, (२) मुंशी हरदयालसिंह, (३) कविराज मुरारिदान, (४) जोशी आसकरन, सरदारों आदि के लड़कों की शिक्षा के लिये (पाउलेट) नोबल्स स्कूल की स्थापना की गई। १. इसी वर्ष गवर्नमेंट और जोधपुर-राज्य के बीच एक दूसरे के अपराधियों को एक दूसरे को सौंपने के विषय की संधि में सुधार कर जोधपुर-दरबार के अपराधियों को ब्रिटिश-भारत से लेने में ब्रिटिश-भारत में प्रचलित कानून के अनुसार कार्रवाई करना तय हुआ । ए कलैक्शन ऑफ़ ट्रीटीज़ ऐंगेजमैंट्स ऐण्ड सनद्स, भा० ३, पृ० १६६ । २. यह उत्सव जोधपुर में १७ फरवरी को मनाया गया था । ३. महाराज प्रतापसिंहजी वि० सं० १९४४ की चैत्र सुदि १ (ई० स० १८८७ की २५ मार्च) को यहां से रवाना हुए और भादों सुदि ७ ( २५ अगस्त ) को लौटकर वापस आए। इस यात्रा में राज्य के १,१०,००० रुपये खर्च हुए थे। इसी अवसर पर (वि० सं० १९४४ की प्राषाढ़ वदि ३० ई० स० १८८७ की २१ जून को) महाराज प्रतापसिंहजी को ब्रिटिश-फौज़ के 'ग्रॉनररी लेफ्टिनेंट कर्नल' का पद मिला, और साथ ही यह प्रिंस ऑफ वेल्स के ए. डी. सी. बनाए गए। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास (५) मेहता अमृतलाल, (६) भंडारी हनवतचंद, और (७) पण्डित शिवनारायण काक, 'कौंसिल' के 'मैंबर' नियुक्त हुए; तथा पंडित सुखदेवप्रसाद काक को मुसाहिब आला के 'जुडीशल-सैकेटरी' का काम सौंपा गया । इसी साल डॉक्टर ऐडम्स की निगरानी में ह्यूसन अस्पताल खोला गया, आबकारी के महकमे में सुधार किया गया, और राज्य की (१) जोधपुर, (२) पाली, (३) सोजत, (४) मेड़ता और (५) नागोर की टकसालों में से मेड़ते की टकसाल बंद करदी गई। वि० सं० १९४४ की माघ सुदि ७ (ई० स० १८८८ की २० जनवरी) को मारवाड़ राज्य का इतिहास तैयार करने के लिये 'तवारीख का महकमा' कायम किया गया। इसके बाद फागुन बदि ६ (ई० स० १८८८ की ३ फरवरी) को माइसोरनरेशं जोधपुर आकर महाराज से मिले । इसके बाद ही जंगलात का महकमा खोला गया । पानी की सुविधा के लिये बालसमंद तालाव का बांध २० फुट ऊंचा उठाया गया। इसी प्रकार मरुदेश की पानी की कमी को दूर करने के लिये अनेक बांध, और नगर के तालावों में पानी लाने के लिये नहरें बनवाई गई । रानीसागर से इंजिन द्वारा पानी चढ़ाकर किले पर जलकल लगाई । आवागमन के सुभीते के लिये नागोरी दरवाजे के मार्ग से किले पर जाने के लिये एक सड़क बनवाई गई और नगर के बाहर भी चारों तरफ़ सड़कों का प्रबन्ध किया गया । इसी वर्ष मुंशी हीरालाल 'काउन्सिल' का मैंबर बनाया गया । वि० सं० १९४५ (ई० स० १८८१) में सरदार रिसाले की स्थापना का --------- -. .- . . --.. --- १. वि० सं० १६४४ की जेठ सुदि १० (ई० स० १८८७ की १ जून) को इसके अनुसार कार्य होने लगा । और नशे की वस्तुओं की बिकरी के लिये 'लाइसेन्स (आज्ञा-पत्र ) का चलन होजाने से उनके प्रचार में थोड़ा-बहुत प्रतिबन्ध लगगया । २. आपने यहां पर जोधपुर-महाराज के सरकारी अस्तबल के घोड़ों को देख कर उनकी बड़ी प्रशंसा की थी। ३. यह महकमा वि० सं० १६४५ की द्वितीय चैत्र वदि १ (ई० स० १८८८ की २८ मार्च) __ को खोला गया था। वि० सं० १६४६ के सावन (ई० स० १८८६ की जुलाई) में मारवाड़-राज्य के अन्तर्गत प्रवली पर्वत के हिस्से पर जंगलात कायम हुई । ४. पावटे का तालाव भी इसी वर्ष बना था। ५. वि० सं० १६४६ के ग्राषाढ़ (ई. स. १८८६ की जुलाई) में अलवर-नरेश जोधपुर पाए । ६, वि० सं० १९४६ (ई० स० १EE) में ६०० सवारों का पहला रिसाला और वि० सं० १९४८ (ई० स० १८६१) में दूसग रिसाला तैयार हुआ। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाराजा जसवन्तसिंहजी (द्वितीय) निश्चय किया गया । इस वर्ष की माघ वदि १ (ई० स० १८८९ की १८ जनवरी ) को बम्बई के गवर्नर टी. ई. रे और फागुन सुदि १३ (१५ मार्च ) को जनरल सर बॅडरिक रॉबर्ट्स जोधपुर आए । यहां पर एक रोज जिस समय जनरल रॉबर्ट्स शिकार के लिये सूअर का पीछा कर रहे थे, उस समय उसने उनके घोड़े को ज़ख़्मी करदिया । इससे घोड़ा और सवार दोनों पृथ्वी पर गिर पड़े । ऐसी हालत में सूअर पलट कर जनरल रॉबर्ट्स पर हमला करने ही वाला था, परन्तु महाराज प्रतापसिंहजी ने तत्काल अपने घोड़े से कूद कर सूअर की पिछली टांगें पकड़ली और उसे पेशकब्ज से मारडाला। इसी वर्ष एक रेल्वे लाइन जोधपुर से मेड़तारोड होती हुई कुचामन-रोड तक, १. वि० सं० १६४६ के भादों (ई. स. १८८६ के अगस्त) में महाराज ने गवर्नमेंट को इस विषय में एक पत्र लिखा। उसमें जोधपुर-दरबार की तरफ से आवश्यकता के समय गवर्नमेंट को एक हज़ार सवारों से सहायता देने के विचार का उल्लेख था । वि० सं० १६५४ (ई० स० १८६७ ) में उत्तर-पश्चिमी सीमान्त-प्रदेश में काम करने के लिये जोधपुर के रिसाले में चार स्क्वॉडून और भरती किए गए। कार्तिक ( अक्टोबर ) में महाराज प्रतापसिंहजी, महाराज-कुमार सरदारसिंहजी को साथ लेकर, जयपुर गए। उस समय वहां पर मवेशियों की लेवा-बेची के लिये एक मेला लगा था और महाराज प्रतापसिंहर्जा का विचार वहां पर जोधपुर-रिसाले के लिये घोड़े खरीदने का था। २. वि० सं० १६४७ की चैत्र वदि ३० (ई० स० १८६१ की ८ अप्रेल ) को जोधपुर से मेड़तारोड तक की, क्वॉर सुदि १४ (१६ अक्टोबर ) को मेड़तारोड से नागोर तक की और मँगसिर सुदि ६ (६ दिसंबर) को नागोर से बीकानेर तक की लाइनें खुल गई । इनमें कुल मिलाकर २३,६७,७३५ रुपये खर्च हुए थे। परंतु इसमें से ८,८१,२२० रुपये बीकानेर के हिस्से में पड़े; क्योंकि बीकानेर की तरफ की लाइन में बीकानेर-दरबार का भाग था। [ इसके बाद वि० सं० १९८१ की कार्तिक सुदि ५ ( ई० स० १९२४ की १ नवम्बर) से यह जोधपुर और बीकानेर राज्यों की संयुक्त-रेल्वे जुदा-जुदा करदी गई।] इसी साल तारका प्रबन्ध भी किया गया और मेड़तारोड से कुचामनरोड तक तार की लाइन का बनाना निश्चिय हुआ । वि० सं० १६४६ ( ई० स० १८६३ ) में मारवाड़ जंकशन से मेड़तारोड नक एक के बदले दो तारों की लाइन का प्रबन्ध किया गया । वि० सं० १६५२ ( ई० स० १८६५) में बी. बी. एण्ड सी. आइ और (इस) जे. बी. रेल्वे के बीच कुचामनरोड स्टेशन पर के संयुक्त-कार्य और जोधपुर-बीकानेर रेल्वे के यात्रियों आदि को आगे ले जाने के बाबत संधि हुई । इसके बाद इसमें वि० सं० १६६०, १६७१, १६७२, १६७३, १६७४, १६७६, १६७८, १९८१ और १९८२ (ई० स० १६०३, १६१४, १६१५, १६१६, १६१७, १६१६, १६२१, १९२४ और १६२५ ) में कुछ-कुछ रद्दो-बदल होती रही। ४८३ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास और दूसरी मेड़तारोड़ से बीकानेर तक बनवाने का विचार किया गय, तथा सोजत और नागोर की टकसालें बंद करदी गई । पहले जोधपुर-दरबार की तरफ़ से रावरजा सरदारमल राजपूताने के ए. जी. जी. के इजलास का वकील था, परन्तु इस वर्ष बेड़े का कँवर शिवनाथसिंह उसके स्थान पर नियत किया गया और मेहता बखतावरमल के स्थान पर पंचोली मुकनचंद नमक के महकमे का हाकिम बनाया गया । वि० सं० १९४६ ( ई० स० १८८६ ) में पण्डित सुखदेवप्रसाद काक ‘काउंसिल' का ‘मैंबर' नियुक्त हुआ और इसी वर्ष के मँगसिर ( नवंबर) में जब महाराज प्रतापसिंहजी बंबई गए, तब राज्य का कार्य 'काउंसिल' के सुपुर्द किया गया । उसी समय पौकरन - ठाकुर मंगलसिंह, कुचामन - ठाकुर शेरसिंह, नींबाज - ठाकुर छतरसिंह, और आसोप-ठाकुर चैनसिंह भी काउंसिल के मैंबर बनाए गए । इसी मासके अन्त ( दिसंबर) में शिव की तरफ का मारवाड़ और जयसलमेर की सरहदों का झगड़ा तय करने का प्रबन्ध किया गया । वि० सं० १९४६ की फागुन सुदि ३ ( ई० स० १८६० की २२ फरवरी ) को उस समय के प्रिंस ऑफ वेल्स ( His Royal Highness Prince Albert Victor Edward of Wales ) का जोधपुर में आगमन हुआ । इस पर महाराजा ने बड़ी धूमधाम से उनका आदर-सत्कार कियौं । इसी वर्ष राजपूताने के रिसालों का इन्सपेक्टर मेजर ऐस. बीट्सन जोधपुर आया । यही अफसर था जिसने जोधपुर के रिसाले की उन्नति कर उसे एक प्रथम श्रेणी का आदर्श - रिसाला बनाने में सहायता दी थी । वि० सं० १९४७ की चैत्र सुदि ( ई० स० १८९० के अप्रेल ) में मारवाड़ की मनुष्य - गणना के लिये दुबारा 'मर्दुमशुमारी' का महकमा खोला गया । १. ए कलैक्शन ऑफ ट्रीटीज़ ऐंगेजमेंट्स ऐण्ड सनद्स, भा० ३, पृ० १७०-१७१ । २. इसी मास ( नवम्बर ) में नरसिंह - गढ़ नरेश प्रतापसिंहजी जोधपुर आए । ३. यह 'काउंसिल' 'इजलास खास' कहाती थी । ४. इनके लौट जाने पर चैत्र (मार्च) में बून्दी - नरेश जोधपुर आए और इसके बाद वि० सं० १९४७ के वैशाख ( अप्रेल ) और वि० सं० १६४८ के पौष ( ई० स० १८६१ की जनवरी ) में फिर इनका यहां आगमन हुआ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ४८४ www.umaragyanbhandar.com Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाराजा जसवन्तसिंहजी (द्वितीय) वि० सं० १९४७ की कार्तिक वदि ८ ( ई० स० १८६० की ५ नवंबर) को वायसराय मार्किस ऑफ लैन्सडाउन और पौष वदि ८ (ई० स० १८९१ की ३ जनवरी) को रूस का शाहजादा ( हिज़ इम्पीरियल हाइनैस ग्रांड ड्यूक जारविच ऑफ़ रशिया) जोधपुर आया । राज्य की तरफ़ से इन दोनों का ही यथा-योग्य आदरसत्कार किया गया । ____ मारवाड़ में इस साल कहत (अकाल ) था। इससे देश के क्षुधा-पीड़ित लोगों को मजदूरी पर लगाने के लिये नये काम ( रिलीफ़ वर्क्स ) खोले गए और रेल्वे द्वारा बाहर से नाज लाने का प्रबन्ध भी किया गया । वि० सं० १९४८ की सावन बदि ५ (ई० स० १८९१ की २६ जुलाई) को नगर के 'हाई स्कूल' में तार के काम की शिक्षा देने के लिये एक कक्षा ( क्लास) खोली गई। इसी वर्ष लैटिनेंट कर्नल लॉक ने मारवाड़ की बीकानेर की तरफ़ की सरहद का निर्णय कर दिया । वि० सं० १९४८ की सावन वदि १२ (ई० स० १८११ की १ अगस्त) को गवर्नमेंट ने मालानी परगने का सारा प्रबन्ध, कुछ शर्तों पर, जोधपुर दरबार को लौटा दिया, परन्तु फौजदारी मामलों के फैसले करने का इख़्तियार रैजीडेंट के अधीन ही रहा । इस पर राज्य की तरफ़ से मुंशी हरदयालसिंह वहां का सुपरिंटेंडेंट नियत किया गया। इसी वर्ष की भादों वदि ३ (२२ अगस्त ) को बड़ोदा-नरेश और आश्विन सुदि १ (३ अक्टोबर ) को बीकानेर-नरेश महाराजा गंगासिंहजी जोधपुर आकर महाराज से मिले । ___ फागुन वदि ७ (ई० स० १८१२ की २० फ़रवरी) को महाराज कुमार सरदारसिंहजी का विवाह बूंदी में होना निश्चित हुआ । इस अवसर पर सिरोही, पटियाला, बीकानेर, अलवर, नरसिंहगढ, धौलपुर, झाबुवा, रतलाम, सीकर और खेतड़ी के राजा, कश्मीर और टोंक के राजाओं के भाई तथा जयसलमेर रावलजी के पिता १. उस समय यह 'दरबार हाई स्कूल' तलहटी के महलों में था। २. इसी वर्ष की १ जनवरी को गवर्नमेंट की तरफ से मुन्शी हरदयालसिंह और ठगी डकेती के महकमे के सुपरिन्टैन्टैन्ट लाला किशोरीलाल को राय बहादुर' के खिताब मिले । ४८५ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास जोधपुर आकर उत्सव में सम्मिलित हुए। इनमें के कुछ नरेश बरात में भी सम्मिलित हुए थे । इसप्रकार महाराज-कुमार मरदारसिंहजी का विवाह, बूंदी-नरेश की बहन के साथ, बड़ी धूम-धाम से संपन्न हुआ । महाराजा जसवन्तसिंहजी का बरताव अन्य नरेशों के साथ पूर्ण मित्रता का रहता था। इसी से दूर-दूर के नरेश जोधपुर आकर आपका आतिथ्य ग्रहण करते रहते थे, और इसी प्रकार महाराज स्वयं भी कभी-कभी उनसे मिलने जाकर मित्रता का परिचय दिया करते थे । इसी वर्ष पंडित दीनानाथ काक और कल्ला चतुर्भुज 'काउंसिल' के 'मैंबर' बनाए गए। वि० सं० १९४६ (ई० स० १८१२) में मेहता सरदारमल 'काउंसिल' का मैंबर और दीवान नियत हुआ। इसी वर्ष की भादों सुदि १० (१ सितम्बर ) को उदयपुर-महाराना फतैसिंहजी जोधपुर आए । इस पर महाराज ने बड़े प्रेम से उनका स्वागत किया । वि० सं० १९४६ के माघ (ई० स० १८९३ की जनवरी ) में ऐसिस्टैन्ट रैजीडैन्ट लॉक ने मारवाड़ की किशनगढ़ की तरफ़ की सीमा का फैसला करदिया । इसी प्रकार मारवाड़ के कुछ गांवों को छोड़ कर बाकी के सब गांवों का मामला भी तय होगया । १. वि० सं० १९४६ के आश्विन (ई. स. १८६२ के सितम्बर ) में बीकानेर-नरेश यहां आए । ( यह महीने भर बाद मेोकॉलेज जाने को फिर इधर से निकले थे)। इसी वर्ष के आश्विन ( अक्टोबर ) में कोटे के महाराव उमेदसिंहजी और मँगसिर ( नवम्बर ) में कोल्हापुर-नरेश, भावनगर के महाराज-कुमार और बूंदी-नरेश जोधपुर आए । ये लोग महाराज-कुमार के विवाह समय उपस्थित नहीं हो सके थे, इसीसे बाद में आए थे । २. वि० सं० १९४६ के कार्तिक ( ई० स० १८९२ के अक्टोबर ) में महाराज बीकानेर गए और पौष ( दिसम्बर के अन्त में ) मातमपुर्सी करने को अलवर गए; तथा वहां से लौटते हुए आप एक रोज जयपुर भी ठहरे थे । ३. यह पण्डित शिवनारायण काक का बड़ा पुत्र था और उसके देहान्त के बाद उसके स्थान पर काउंसिल का 'मैंबर', महाराज का 'प्राइवेट सेक्रेटरी' और 'इज़लाय गैर' का हाकिम बनाया गया । ४. इसके पिता मेहता विजयमल का देहान्त होने से यह पद इसे दिया गया था। इसी वर्ष कल्ला चतुर्भुज और खाँ बहादुर फैजुलाखाँ का भी देहान्त हो गया। इस पर कल्ला शिवदत्त 'हवाले' का और मुंशी हमीदुल्लावाँ 'तामील' का सुपरिन्टेंडेंट बनाया गया । ४५६ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाराजा जसवन्तसिंहजी (द्वितीय) इसी वर्ष की फागुन सुदि १३ ( ई० स० १८६३ की २८ फ़रवरी) को ऑस्ट्रिया का शाहजादा ( His Imperial and Royal Highness the Archduke Franz Ferdinand of Austria ) जोधपुर आया । इस पर राज्य की तरफ से भी उसका उचित -सत्कार किया गया । वि० सं० १९५० के वैशाख ( ई० स० १८९३ के अप्रेल ) में लॉर्ड रॉबर्ट्स जोधपुर आया । उस समय उसके सामने सरदार रिसाले की जो परेड हुई थी, उसका संचालन ( कमांड ) स्वयं महाराज - कुमार सरदारसिंहजी ने किया था । यद्यपि आपकी अवस्था उसै समय केवल १३ वर्ष की ही थी, तथापि आपने यह कार्य इस योग्यता से किया कि स्वयं लॉर्ड राबर्ट्स को आपके कार्य की प्रशंसा करनी पड़ी । इसी वर्ष के श्रावण ( अगस्त) में उच्च शिक्षा के लिये नगर में 'जसवन्त कॉलेज' की स्थापना की गई । इससे यहां पर ' इलाहाबाद यूनीवर्सिटी' को 'एफ. ए. ' तक की परीक्षाओं का प्रबन्ध हो गया । इस वर्ष रुपये की मांग बढ़ जाने से, भादों सुदि १ (११ सितम्बर ) को, बिजेशाही रुपया बनाने के लिये नागोर की टकसाल फिर जारी की गई और कुचामन - ठाकुर को इकतीसंदा रुपया बनाने की आज्ञा दी गई। इसी वर्ष के भादों और कार ( सितम्बर और अक्टोबर) में यहां की पोलो टीम ने पूना में विजय प्राप्त की । इसी कार (अक्टोबर ) में जसवन्तपुरे परगने के देवलों ने उपद्रव उठाया । इस पर महाराज प्रताप सिंहजी ने राजकीय सेना के साथ वहां जाकर उन्हें दबा दिया । इससे उन्होंने अधीनता स्वीकार करली | इसी वर्ष के मँगसिर (नवम्बर) में बंबई के गवर्नर जॉर्ज राबर्ट्स कैनिंग बैरन हैरिस, और पौष ( ई० स० १८६४ की जनवरी) में इन्दोर के महाराज जोधपुर आए । इसके बाद वि० सं० १९५१ के वैशाख (अप्रेल) में स्त्रयं महाराज शिकार अजमेर तक की तार की १. इसी वर्ष की चैत्र वदि ( मार्च) में नांवा ( कुचामनरोड) लाइन बनवाने का निश्चय हुआ । २. इसी अवसर पर जनरल जॉर्ज व्हाइट और कर्नल ट्रेवर ( ए. जी. जी. राजपूताना ) भी जोधपुर पहुँचे । ३. इसी वर्ष पण्डित गंगाप्रसाद मिश्र सुपरिन्टेंडेंट 'दरबार हाई स्कूल' के मर जाने पर पण्डित सूरजप्रकाश वातल सुपरिन्टेंडेंट 'दरबार हाई स्कूल' और प्रिंसिपल 'जसवन्त कॉलेज' बनाया गया । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ४८७ www.umaragyanbhandar.com Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास के लिये बूँदी गए और आपके वहां से लौट आने पर इसी वर्ष और भी अनेक राजा-महाराजा श्रीमान् से मिलने जोधपुर आए । इसी वर्ष राय बहादुर मुंशी हरदयालसिंह के, जो वि० सं० १९४० ( ई० स १८८३ ) में आया था, मर जाने से उसके स्थान पर महाराज कुमार सरदारसिंहजी मुसाहत्र आला के ‘सैक्रेटरी' बनाए गए और पंडित सुखदेवप्रसाद काक को आपके कागजात की देख-भाल सौंपी गई । इसी वर्ष पंडित जीवानन्द, सिंघी बछराज, और पंडित माधोप्रसाद गुर्टू भी 'काउन्सिल' के 'मैंबर' नियत हुए । इस वर्ष मारवाड़ के परगनों के ६ विभाग किए गए और पण्डित माधोप्रसाद गुर्टू, पंडित नारायणसहाय गुर्टू ( यह पहले 'हज़ूरी दफ़्तर' का सुपरिन्टैन्डैन्ट था ), मुंशी याहाख़ाँ, मुंशी मयूर अहमद, पंडित रतनलाल अटल, और पुरोहित शिवलाल उनके सुपरिन्टैन्डैन्ट बनाए गए । इसी वर्ष ' बाउंड्री सेटलमेंट' ( हदबंदी ) का काम सहकारी मुसाहिब-आला महाराज जालिमसिंहजी को, और 'रिवेन्यू सेटलमेंट' का काम पंडित सुखदेव प्रसाद काक को सौंपा गया । उस समय 'दस्तरी' का हाकिम पंचोली मोतीलाल था । इसी वर्ष की फागुन सुदि १० ( ई० स० १८६५ की ६ मार्च) को जोधपुर में पहले-पहल ‘ट्रेवर कैटल फ़ेयर' खोला गया । इसके साथ 'पोलो' और 'पिगस्टिकिंग' १. महाराज फागुन ( ई० स० १८६५ की मार्च ) में फिर बूंदी गए थे । २. वि० सं० १६५१ के आषाढ ( ई० स० १८६४ की जुलाई ) में कोटा नरेश, कार्तिक (अक्टोबर) में अलीपुर के महाराना और अलवर के महाराज और मँगसिर ( नवम्बर ) में जयसलमेर के महारावल जोधपुर आए। इसी वर्ष बीकानेर - नरेश और सिंध का कमिश्नर मिस्टर जेम्स भी यहां आए थे । ३. इसकी मृत्यु पर इसके पुत्र मुंशी रोडामल को 'कोर्ट- सरदारान' का सुपरिन्टेंडेंट बनाया गया और ग्रासोप का ठाकुर 'जौइंट जज' नियुक्त हुआ । परंतु स्वयं उसके ठिकाने के मामले पेश होने पर उसके स्थान पर नींबाज के ठाकुर को 'जौइंट जज' का काम करने का आदेश दिया गया । इसी अवसर पर पण्डित माधोप्रसाद गुर्टू को, जो पहले जालोर और गोडवाड़ प्रान्तों का सुपरिन्टेंडेंट था मालानी का सुपरिन्टेंडेंट बनाया । ४. यह पहले 'हुक्मनामा' और ज़ब्ती के महकमे का असर था । ५. यह मेला मंडोर और बाल-समन्द के बीच, नगर से २ कोस उत्तर में, खोला गया था और ६ दिन तक रहा था । इसमें ८,००५ मनुष्य, ७८७ घोड़े, १,५४५ ऊंट, १ हाथी, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ४८८ www.umaragyanbhandar.com Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महागजा जसवन्तसिंहजी (द्वितीय) ( सूअर के शिकार ) का प्रबन्ध भी था। इस मवेशियों के मेले में दूर-दूर के जानवर बिकने के लिये आए थे। इसके अलावा बूंदी, कोटा, बीकानेर, अलवर, नरसिंहगढ़ और खेतड़ी के महाराजा; तथा कर्नल ट्रेवर, ए. जी. जी. राजपूताना; कर्नल वायली, रैजीडेंट उदयपुर और कर्नल लॉक आदि १२५ अंगरेज अफसर भी यहां पर एकत्रित हुए थे । इस मेले में लाए गए बढ़िया जानवरों पर, राज्य की तरफ से, कई सौ रुपये इनाम दिए गए थे। इन्हीं दिनों गोडवाड़ के देवड़ा राजपूतों ने बगावत शुरू की । इस पर वि० सं० १९५२ की आषाढ सुदि ४ (२६ जून) को स्वयं महाराज प्रतापसिंहजी उनको दबाने के लिये गए और कुछ दिन बाद लौट कर जोधपुर चले आए । परन्तु वहां का उपद्रव पूरी तौर से शान्त न हुआ । इस पर श्रावण वदि १ (७ जुलाई) को फिर वह ( महाराज प्रतापसिंहजी) उधर (गोडवाड़ की तरफ़ ) गए । इस अवसर पर महाराज-कुमार सरदारसिंहजी भी उनके साथ थे । यह देख बहुत से बागी महाराज की शरण में चले आए। इसके बाद भादों वदि ११ (१६ अगस्त ) को उक्त प्रान्त के ३०० गांवों का प्रबन्ध ठीक करने के लिये उनको दो हिस्सों में बांट दिया गया, और दोनों भागों में एक-एक हकूमत कायम करदी गई । अर्थात्- पहले केवल बाली में ही हकूमत थी, परन्तु इस समय से देसूरी में भी हकूमत स्थापित करदी गई। इसी साल सरदारों आदि के गोद लेने और लोगों के जान बूझकर चोरी की चीज़ खरीदने पर उन्हें सजा देने के नियम बनाए गए। वि० सं० १९५२ की कार्तिक बदि ३ ( ई० स० १८९५ की ६ अक्टोबर) को महाराजा जसवन्तसिंहजी की तबीयत खराब हो गई । इस पर आपने ५,००० रुपये दान किए । इसके बाद बहुत कुछ इलाज किए जाने पर भी कार्तिक बदि । ६,६७६ बैल, १६ भैंसे और ५२ बकरे बिकने को आए थे । उस अवसर पर मवेशी लाने वालों के लिये घास, लकड़ी, मट्टी के बरतन, और मेखों का प्रबन्ध राज्य की तरफ से बिना मूल्य किया गया था। १. उस समय आज्ञानुसार समय पर मदद न देने से प्याद बखिशयों से गुढा सुथारों का, सिंधी मुकनराज से गुढा जाटों का, और रावराजा मोतीसिंह से गुढा लासका जन्त कर लिए गए। ४८६ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास ( ११ अक्टोबर ) को महाराजा साहब का स्वर्गवास होगया । 1 महाराजा जसवन्तसिंहजी (द्वितीय) बड़े गुणी, दानी, शान्त, सरल और प्रजाप्रिय नरेश थे । आपही के समय मारवाड़ का शासन - कार्य पहले-पहल आधुनिक नवीन शैली पर परिवर्तित किया गया था । इस कार्य में महाराजा के छोटे भ्राता महाराज प्रतापसिंहजी ने भी, जो राज्य के मुसाहिब आला ( प्रधान मंत्री ) थे, बड़ा परिश्रम किया था, और उस समय के गवर्नमैन्ट की तरफ़ के रैजीडैंट कर्नल पाउलेट का भी इसमें पूरा सहयोग प्राप्त हुआ था। इस प्रकार योग्य- नरेश, कार्यकुशल-मंत्री, और प्रवीणसलाहकार के संयोग से मारवाड़ राज्य का प्रबन्ध उन्नत अवस्था को पहुँच गया । । देश में ३६४ मील रेल्वे लाइन के खुल जाने, तथा तार, डाक, सड़क और सायर ( चुंगी ) का प्रबन्ध ठीक हो जाने से आवागमन में सुविधा और व्यापार में उन्नति होने लगी । उस समय तक मारवाड़ में करीब १५ ( अंगरेज़ी ढंग के ) शफ़ाख़ानों के खुल जाने से लोगों की चिकित्सा का बहुत कुछ प्रबन्ध हो गया । इसी प्रकार चेचक के टीके और म्यूनिसिपैलिटि ( सफ़ाई ) के महकमे का प्रबन्ध हो जाने से बालकों की मृत्यु-संख्या में कमी और जनता के स्वास्थ्य में वृद्धि होने लगी | मारवाड़ की नाप (सर्वे), गांवों की हदबंदी और सरहदों का निर्णय हो जाने, तथा जुरायम- पेशा क़ौमों के खेती के कार्य में लग जाने से चोरी, डकैती और मारकाट भी कम हो गई । साथ ही पुलिस और फ़ौज के प्रबन्ध ने निरंकुश - बागियों और लुटेरों के दिल में राज्य का भय उत्पन्न कर दिया । उस समय सरकारी फौज में ४,६६० और जागीरदारों की जमीअत में २,२४६ जवान थे । देशवासियों की शिक्षा के लिये १ कॉलेज ( जिसमें 'इंटर मीजियेट' तक की पढ़ाई होती थी ) १ हाई स्कूल, १ संस्कृत स्कूल, १ हिन्दी स्कूल, १ गर्ल्स स्कूल, ६ परगनों के एंग्लो-वर्नाक्यूलर स्कूल, १५ परगनों के वर्नाक्यू १. अब तक मारवाड़ - नरेशों का दाह संस्कार जोधपुर से ६ मील पर स्थित मंडोर नामक स्थान पर होता था । परन्तु रत्थी के साथ जाने में होने वाले प्रजा के कष्ट को दूर करने के लिये आप (महाराजा जसवन्तसिंहजी ) की इच्छानुसार आपका अन्तिम संस्कार देवकुण्ड पर किया गया । प्रजाप्रिय महाराज के स्वर्गवास से प्रजा को बड़ा दुःख हुआ और १२ दिनों तक बाज़ार बंद रक्खे गए। इस घटना के कारण बूंदी, किशनगढ़, खेतड़ी, सीकर, कोटा, बीकानेर, उदयपुर, जयपुर और धौलपुर के महाराजाओं और बड़ोदा-नरेश के चचा ने जोधपुर आकर अपना शोक प्रकाशित किया । साथ ही बंबई आदि में रहने वाले मारवाड़ियों ने भी शोक सभाएं कर अपने सर्व प्रिय महाराज के स्वर्गवास पर हार्दिक दुःख प्रकट किया । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ४६० www.umaragyanbhandar.com Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाराजा जसवन्तसिंहजी (द्वितीय) लर स्कूल और ६ मालानी प्रान्त के वर्नाक्यूलर स्कूल खोले जा चुके थे । इनमें करीब १५५० लड़के विना किसी प्रकार की 'फीस' ( शुल्क ) के शिक्षा पाते थे और कुछ विद्यार्थियों को राज्य की तरफ़ से वज़ीफे ( वृत्तियां ) भी मिलते थे । इनके अलावा टेलिग्राफ़ का काम सिखलाने के लिये एक अलग क्लास ( कक्षा ) खोली गई थी। आवागमन के लिये रेल्वे और सिंचाई के लिये जसवन्तसागर आदि बड़े-बड़े बांधों के बन जाने, तथा हवाला आदि आय के महकमों के प्रबन्ध में उन्नति हो जाने से राज्य की आय भी उत्तरोत्तर बढ़ने लगी थी । वि० सं० १९५२ (ई० स० १८९५१६) की रिपोर्ट से ज्ञात होता है कि उस वर्ष, साधारण तौर पर बारिश कम होने पर भी, ५७,१०,७२५ रुपयों की आय हुई थी, जो राज्य के साधारण व्यय से ६ लाख के करीब अधिक थी । न्याय के लिये कानून बन जाने और अदालतों के प्रबंध में सुधार हो जाने से मारवाड़ की २५,२६,२६३ प्रजा को न्याय-प्राप्त करने में सुभीता हो गया था; और न्यायालयों को एक स्थान पर स्थापित करने के लिये नई 'जुबली कोर्ट' ( कचहरी ) बनवाई गई थी। महाराज को कला-कौशल, कविता और व्यायाम का भी शौक था । इसीसे दूरदूर के कलाविद् और कवि अपनी-अपनी कृतियां लेकर महाराज की सेवा में उपस्थित होते और यथोचित-पुरस्कार प्राप्त करते थे। इसी प्रकार पहलवानों का एक दल भी राज्य से वेतन पाता था। इन्हीं महाराज के समय राज्य-कवि बारहठ मुरारिदान ने 'यशवन्त यशोभूषण' नामक अलङ्कार के ग्रन्थ की रचना की थी और महाराजा ने उसे कविराजा की उपाधि के साथ ही 'लाख पसाव' दिया था। १. इस समय रेल्वे की आय १०,२०,६७२ रुपये की और व्यय ३,७०,८६१ रुपये का था। २. यह बांध वि० सं० १९४६ ( ई० स० १८६२ ) में ५,४५,८१५ रुपये की लागत से तैयार हुआ था। ३. इस ग्रन्थ में अलङ्कारों के नाम से ही उनके लक्षण सिद्ध किए हैं, और उदाहरणों में से प्रत्येक प्रथम-उदाहरण में महाराजा जसवन्तसिंहजी का यशोवर्णन किया है । इसके हिन्दी और संस्कृत के दो-दो संस्करण (विशाल और संक्षिप्त) राज्य की तरफ से प्रकाशित हुए थे और उपर्युक्त 'लाख पसाव' की आज्ञा वि० सं० १६५० की फागुन वदि १४ (ई० स० १८६४ की ६ मार्च) को दी गई थी। ४६१ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास कहते हैं कि इसी प्रकार आपने लाहोर के डी. ए. वी. कॉलेज के लिये १०,००० रुपया देने के अलावा वि० सं० १९४५ में स्वामी भास्करानन्द के यूरोप और अमेरिका में जाकर आर्यसमाज के सिद्धान्तों का प्रचार करने का सारा खर्च भी दिया था । महाराजा जसवन्तसिंहजी के महाराज - कुमार का नाम सरदारसिंहजी था । महाराज ने अनेक गांव जागीर के तौर पर देने के अलावा कुछ गांव दान में भी दिए थे । १. आर्यसमाज के प्रवर्तक स्वामी दयानन्द सरस्वती जोधपुर ग्राकर, महाराज के पास, कुछ समय तक रहे थे । २. आपके दो रावराजा थे - १ सवाईसिंह और तेजसिंह (द्वितीय) । ३. महाराजने १ खाती खेड़ा ( पाली परगने का ) राज्य के धर्म के महकमे को, २ रावलास (मेड़ते परगने का) भों को और ३ ढींकाई (जोधपुर परगने का ) चारणों को दिया था । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ४६२ www.umaragyanbhandar.com Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५. महाराजा सरदारसिंहजी यह महाराजा जसवन्तसिंहजी (द्वितीय) के पुत्र थे और उनके स्वर्गवास के बाद, वि० सं० १९५२ की कार्तिक सुदि ७ (ई० स० १८९५ की २४ अक्टोबर ) को, जोधपुर की गद्दी पर बैठे'। इनका जन्म वि० सं० १९३६ की माघ सुदि १ ( ई० स० १८८० को ११ फरवरी ) को हुआ था। राव जोधाजी के इतिहास में लिखा जा चुका है कि जिस समय उन्होंने मेवाड़ की सेना को हराकर मंडोर पर अधिकार किया था, उस समय उनके बड़े भ्राता अखैराज ने, उनकी वीरता और योग्यता को देख, तत्काल अपने अंगूठे के रक्त से, उनके ललाट पर राज-तिलक लगा दिया था । तब से राज-तिलक लगाने की वही प्रथा मारवाड़ में चली आती थी। परन्तु महाराजा सरदारसिंहजी के समय इनके चचा महाराज प्रतापसिंहजी ने वह प्रथा उठादी । इसीसे बगड़ी के ठाकुर (बैरीसाल ) ने इनका -...-..--- १. इस अवसर पर मंदियाड़ के बारहठ ने नवाभिषिक्त-महाराजा को आशीर्वाद दिया, और किले से १२५ तोपों की सलामी दागी गई । इसके बाद महाराजा सरदारसिंहजी के 'दौलतखाने में जाने पर उपस्थित नरेशों और नरेशों के प्रतिनिधियों ने क्रमशः निछावरें और नज़रें पेश कीं । अन्त में महाराज 'कँवर-पदे के महल' में जाकर गवर्नमेंट के प्रतिनिधि ऐक्टिंग रैजीडेंट मिस्टर मार्टण्डल में मिले । उस दिन समय अधिक होजाने से मारवाड़ के सरदारों और राज-कर्मचारियों आदि की नज़रें दूसरे दिन 'राईकाबाग' नामक महल में पेश की गई। माघ बदि (ई० स० १६६६ की जनवरा) में महाराजा सरदारसिंहजी अपने चचा महाराज प्रतापसिंहजी के साथ जयपुर गए और फागुन बदि (फरवरी ) में रतलाम जाकर वहां के नरेश के विवाह में सम्मिलित हुए । इस वर्ष जयसलमेर-नरेश ने अपनी अजमेर-यात्रा के सम्बन्ध में दो वार जोधपुर में ठहर कर महाराज का आतिथ्य स्वीकार किया । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास राज-तिलक कुंकुम से किया । इस उत्सव के समय मारवाड़ के सरदारों और राजकर्मचारियों आदि के सिवा किशनगढ़ और बूंदी के महाराजा, खेतड़ी और सीकर के राजा, और अलवर, जयपुर, कोटा, सिरोही और ईडर नरेशों के प्रतिनिधि आदि भी उपस्थित थे। उस समय महाराज की अवस्था १६ वर्ष की थी । इसलिये इनके चचा महाराज प्रतापसिंहजी 'मुसाहिब आला' (रीजेंट ) बनाए गए और राज्य का कार्य पुरानी 'काउन्सिलै' की सहायता से उनके तत्वावधान में होने लगा । वि० सं० १९५३ की चैत्र सुदि ११ (ई० स० १८१६ की २५ मार्च) १. पहले आसोप का ठाकुर चैनसिंह युवक महाराजा का अङ्गरक्षक नियत किया गया और उसके स्थान पर नींबाज का ठाकर छतरसिंह 'कोर्ट-सरदारान' का सहकारी 'जज' (न्यायाधीश) बनाया गया । परन्तु कुछ काल बाद आसोप-ठाकुर ने अस्वस्थता के कारण अवसर ग्रहण करलिया । इस पर रीयां का ठाकुर विजयसिंह महाराजा के पास रक्खा गया। महाराजा सरदारसिंहजी की शिक्षा का काम कैटिन ए. बी. मेन (A. B. Mayne) को सौंपा गया । यह सहकारी रैजीडेंट का काम भी करता था। २. 'मुसाहिब प्राला' के 'मिलिटरी-सैक्रेटरी' का काम महाराज दौलतसिंहजी को दिया गया। ३. उस समय 'काउन्सिल' में निम्नलिखित 'मैम्बर' थे: पौकरन-ठाकुर मंगलसिंह, आसोप-ठाकुर चैनसिंह. कुचामन-ठाकुर शेरसिंह, नींबाजठाकुर छतरसिंह, पण्डित सुखदेवप्रसाद काक, मुंशी हीरालाल, कविराजा मुरारिदान, जोशी प्रासकरन, भंडारी हनवतचन्द, सिंघी बछराज, पण्डित माधोप्रसाद गुर्टू, पण्डित दीनानाथ काक, मेहता अमृतलाल और पण्डित जीवानन्द । इसी वर्ष मुंशी हमीदुल्लाखाँ और मेहता गणेशचन्द 'काउन्सिल' के नए 'मैम्बर' बनाए गए । मेहता अमृतलाल के मरने पर उसका पुत्र मेहता पूंजालाल दीवानी का जज नियुक्त किया गया । पण्डित सुखदेवप्रसाद काक को 'रामो बहादुर' का खिताब मिला । मिस्टर टॉड के छुट्टी जाने पर बाबू छोटमल रावत रेल्वे का स्थानापन्न ऐसिस्टेंट मैनेजर' बनाया गया और भरतपुर-दरबार के मांगने पर लाला इन्दरमल, जो मेड़ते का हाकिम था, भरतपुरराज्य के 'सायर' (चुंगी) के महकमे का प्रबन्ध करने के लिये मेजा गया । ___ इसी वर्ष सिंघी सूरजमल के मरने पर उसकी जगह उसका पुत्र सुमेरमल 'सायर' (चुंगी) के महकमे का सुपरिन्टेंट नियुक्त हुआ। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाराजा सरदारसिंहजी से, प्रतिवर्ष के अनुसार, 'ट्रेवर - फेयर' ( मवेशियों का मेला) लगा । इसके साथ ही पोलो और सूअर के शिकार का प्रबन्ध होने से पटियाला, धौलपुर, कोटा, रतलाम और सैलाने के राजा और बहुत से अंगरेज अफ़सर भी यहां आएँ । इस वर्ष कुछ परगनों में अकाल होने के कारण राज्य की तरफ़ से वहां के अकाल पीड़ितों की सहायता का प्रबन्ध किया गया । कुछ काल बाद राज-कार्य का अनुभव प्राप्त करवाने के लिये 'हवाले' का सारा काम महाराजा के तत्वावधान में किया जाने लगा और सप्ताह में एक या दो वार आप 'काउंसल' में भी बैठने लगे । मँगसिर बदि ४ (२४ नवंबर) को भारत का वायसराय लॉर्ड ऐल्गिन् जोधपुर आया । महाराज की तरफ़ से उसका यथोचित सत्कार किया गया और उसी दिन सायंकाल को उसके हाथ से तलहटी के महलों में 'जसवन्त फीमेल हॉस्पिटल' नामक जनाने अस्पताल का उद्घाटन करवाया गया। दूसरे दिन स्वयं महाराजा के सेनापतित्व में सरदार रिसाले ने अपनी कवायद दिखलाई । उस समय की सवारों की फुर्ती और चतुरता को देख लॉर्ड एल्गिन बहुत प्रसन्न हुआ । इसके बाद मँगसिर बदि ६ (२६ नवंबर) को उसी के हाथ से 'ऐल्गिन् राजपूत -स्कूल' का उद्घाटन करवाया गया । १. यह मेला वि० सं० १६५३ की वैशाख बदि १ ( ई० स० १८६६ की ३० मार्च ) तक रहा । उस समय मवेशियों पर लगने वाला निसार का कर माफ करदिया गया था और उत्तम पशुओं के लिये उनके स्वामियों को इनाम भी दिया गया था । २. इस अवसर पर पोलो में विजय प्राप्त करने से उसके लिये रक्खा गया उपहार धौलपुर के महाराना को अर्पण किया गया । ३. इसी वर्ष कचहरी ( जुबली कोर्ट्स ) के बाज़ के दोनों भुज बनने प्रारम्भ हुए और स्टेशन से शहर और कचहरी तक बैलों की ट्राम का, आटा पीसने की पवन चक्की का और महाराजा साहब के बंगले पर बिजली की रौशनी का प्रबन्ध करना निश्चित हुआ । साथ ही चौपासनी का बड़ा ताल भी तैयार करवाया गया । ४. वि० सं० १६५३ की प्राश्विन सुदि ४ ( ई० स० १८६६ की १० अक्टोबर) को ऋतुओं में होने वाले दैनिक परिवर्तनों की जांच के लिये नगर के बाहर एक निरीक्षण - शाला ( ऑनज़र - वेटरी) खोली गई । ५. इसी वर्ष आपने प्रजा की हालत जानने के लिये महाराज प्रतापसिंहजी को साथ लेकर पाली परगने का दौरा किया । ६. राजपूत सरदारों के बालकों की प्राथमिक शिक्षा के लिये पहले ही 'पाउलट - नोबल्स स्कूल' स्थापित हो चुका था और यहां की शिक्षा समाप्त कर लेने पर वे, उच्च शिक्षा प्राप्त करने Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ४६५ www.umaragyanbhandar.com Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास I इसी वर्ष स्थानीय जसवंत कॉलेज में 'बी. ए. तक की पढ़ाई का प्रबन्ध होजाने से जनता को उच्च शिक्षा प्राप्त करने में सुविधा होगई । पहले चोरी गए माल के मिल जाने पर उसका चौथा हिस्सा राज्य में जमा हो जाता था । परंतु इस वर्ष से यह प्रथा उठादी जाने से प्रजा का बड़ा उपकार हुआ । इस वर्ष के 'ट्रेवर-फेयर' में बीकानेर और कोटा के महाराजा, खेतड़ी के राजा और जूनागढ़ के साहबजादा आदि कई गण्यमान्य व्यक्ति एकत्रित हुए थेरे वि० सं० १९५४ ( ई० स० १८९७) में महारानी विक्टोरिया के ६० वर्ष राज्य कर चुकने के उपलक्ष में लंदन में 'हीरक जुबली' का उत्सव मनाया गया । इस पर महाराज प्रतापसिंहजी वहां जाकर ' इम्पीरियल सर्विस-ट्रप्स ' ( देशी राज्यों की सेनाओं) की ओर से उत्सव में शरीक हुए। वहीं पर आषाढ बदि = ( २२ जून ) को आपको जी. सी. ऐस. आई. का पदक मिला । साथ ही आपकी योग्यता को देख ‘कैम्ब्रिज-यूनीवर्सिटी' ने आपको ऑनररी एल. एल. डी. की उपाधि दी । के लिये, अजमेर के मे कॉलेज में भेज दिए जाते थे । परंतु यह नया स्कूल गरीब राजपूतों के बालकों की शिक्षा के लिये खोला गया था । १. इसी वर्ष ( वि० सं० १६५३ ) के चैत्र ( ई० स० १८६७ के मार्च ) में महाराज प्रतापसिंहजी, चांदपोल दरवाज़े के बाहर शिवबाड़ी में किए गए, श्रीमाली ब्राह्मणों के उत्सव में पधारे और उनके जातीय स्कूल ( पाठशाला) के लिये राज्य की तरफ से ५,००० रुपये दिए जाने की घोषणा की । इसी प्रकार वि० सं० १६५४ के भादों ( अगस्त ) में महाराज प्रतापसिंहजी ने ओसवालों के स्कूल (विद्यालय ) का निरीक्षण कर, उसके लिये ७,००० रुपये राज्य की ओर से और २,००० रुपये अपनी तरफ से देने का हुक्म दिया । कायस्थ-स्कूल का उद्घाटन ( वि० सं० १६४४ = ई० स० १८८७ में ) आपके हाथ से होने के कारण उसका नाम 'सर प्रताप स्कूल' रक्खा गया । इसी प्रकार अन्य अनेक जातीय स्कूलों को भी राज्य से सहायता दी गई । २. यह मेला वि० सं० १९५३ के पौष ( ई० स० १८६६ के दिसम्बर) में हुआ था । परंतु इस साल मवेशी बहुत कम आए। इस अवसर के सिवा इस वर्ष दो बार बीकानेर - नरेश नं, दो बार जयसलमेर- नरेश ने और एकबार खेतड़ी-नरेश ने जोधपुर आकर महाराज का आतिथ्य ग्रहण किया । ३. आषाढ ( जून) में यह उत्सव जोधपुर में भी बड़े समारोह के साथ मनाया गया और इसकी यादगार में नगर वासियों के लिये जो पानी की सुविधा का आयोजन किया गया था, उसका नाम "विक्टोरिया- जुबिली - वॉटर वर्क्स" रक्खा गया । ४६६ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाराजा सरदारसिंहजी इस (वि० सं० १९५४) वर्ष के आश्विन (ई० स० १८९७ के सितंबर) में हिन्दुस्तान की उत्तर-पश्चिमी सीमा पर उपद्रव उठ खड़ा हुआ। इस पर स्वयं महाराज प्रतापसिंहजी, जोधपुर के रिसाले को लेकर, गहमंदों पर की चढ़ाई में शरीक हुए और वहां से लौट कर, तिराह पर चढ़ाई करनेवाली अंगरेज़ी-सेना के साथ जाने को, रावलपिंडी पहुँचे । तिराह में, एक रात को शत्रु की चलाई, एक गोली अचानक इनके हाथ में आ लगी । परंतु आपने इसे प्रकट करना आवश्यक न समझा और अपने हाथ से ही घाव पर पट्टी बांध ली। कुछ समय बाद जब यह बात प्रकट हुई, तब जनरल लॉकहार्ट ने अपने खरीते में आपके धैर्य की बड़ी प्रशंसा की । युद्ध समाप्त होने पर आप सरदाररिसाले के साथ जोधपुर लौट आए । आपकी इस सहायता से प्रसन्न होकर महारानी विक्टोरिया ने कुछ काल बाद आपको 'कंपेनियन ऑफ बाथ' और 'ऑनररी कर्नल' बना दिया। __इस वर्ष की माघ वदि ६ ( १८९८ की १४ जनवरी ) को प्रथम महाराज-कुमार सुमेरसिंहजी का जन्म हुआ । इससे राज्य भर में उत्सव मनाया गया । वि० सं० १९५४ की फागुन वदि १३ ( ई० स० १८९८ की १८ फरवरी ) को, १८ वर्ष की अवस्था हो जाने पर, राज्य का सारा अधिकार महाराजा सरदारसिंहजी को सौंप दिया गया और इसी समय गवर्नमेंट ने मालानी परगने का फ़ौजदारी अधिकार भी जोधपुर-दरबार को लौटा दिया । १. यह घटना ई० स० १८९८ की है । इस ( C. B. ) का पदक आपको लॉर्ड कर्जन ने, वि० सं० १६५६ की मँगसिर सुदि ७ ( ई० स० १८६६ की ६ दिसम्बर ) को, आगरे के दरबार में भेट किया था । २. इस अवसर पर जोधपुर के किले से १२५ तोपें दागी गई। ३. इस अवसर पर बीकानेर-नरेश गंगासिंहजी भी उत्सव में सम्मिलित हुए थे। इस समय से सारे 'सैक्रेट्रियट' की देख-भाल करने के लिये पंडित सुखदेवप्रसाद काक 'मुसाहिब आला' का 'सैक्रेटरी' नियत किया गया । ४. गवर्नमेंट ने मालानी का दीवानी अधिकार वि० सं० १६४८ (ई० स० १८६१) में ही जोधपुर दरबार को लौटा दिया था। इस समय तक पुरानी फ़ौजदारी-मिसलों के तय हो जाने और राज्य के प्रबन्ध में समुचित सुधार हो जाने से, वहां का फौजदारी अधिकार भी जोधपुर-राज्य को सौंप दिया। उन दिनों पण्डित माधोप्रसाद गुर्टू उक्त प्रान्त का सुपरिन्टेंडेंट था। ४६७ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास वि० सं० १६५५ की भादों यदि २ ( ई० स० १८९८ की ३ अगस्त) को महाराज किशोरसिंहजी का स्वर्गवास हो जाने से उनके स्थान पर उनके पुत्र महाराज अर्जुनसिंहजी जोधपुर की सेना के माडर इन चीफ' ( मुख्य सेनापति ) बनाए गए । इसी वर्ष कुछ कारणों से मुंशी हमीदुल्लाखाँ 'काउंसिल' की 'मैंबरी' और 'तामील' के महकमे के अध्यक्ष पद से हटाया गया और रावराजा तेजसिंह ( प्रथम ) तामील का अध्यक्ष और महाराज दौलतसिंहजी 'ऑनररी' (अवैतनिक) 'काउंसिल - मैंबर' बनाए गए । वि० सं० १६५५ के प्रथम आश्विन ( ई० स० १८९८ के सितम्बर ) में महाराजा सरदारसिंहजी बूंदी गए और वहां से लौट कर नसीराबाद में आपने पोलो का 'कप' जीता | इस वर्ष की द्वितीय आश्विन वदि ८ ( ८ अक्टोबर) को जोधपुर - रेल्वे की 'बालोतरा-सादीपाली' लाइन बनाने के लिये माइसोर - राज्य से, चार रुपया सालाना सूद पर, साढे पच्चीस लाख रुपया कर्ज लेना तय हुआ । इसके बाद मँगसिर (दिसम्बर) में महाराजा सरदारसिंहजी और महाराज प्रतापसिंहजी दोनों बीकानेर जाकर, महाराजा गंगासिंहजी के राज्य - भार ग्रहण करने के उपलक्ष में इस इर्ष दो बार धौलपुर के और एकवार इन्दोर के महाराजा ने जोधपुर आकर महाराजा का आतिथ्य ग्रहण किया, और स्वयं महाराजा सरदारसिंहजी किशनगढ़ जाकर वहां पर किए गए विवाह के जलमे में शरीक हुए । १. ई० स० १८१८ की १ मई को इमे, महाराजा सरदारसिंहजी को कुछ अस्वास्थ्य कर वस्तु खिलाने के संदेह में, रेज़ीडेंट की आज्ञा से, मारवाड़ के बाहर जाना पड़ा । २. इसी वर्ष मेहता गणेशचंद, जो 'काउंसिल' का 'मैंबर' और जवाहरखाना आदि अनेक महकर्मों का असर था, मर गया । वि० सं० १९५५ की भादों सुदि १३ ( ई० स० १८१८ की २६ अगस्त ) में महाराज - कुमार सुमेरसिंहजी ने मालियों की स्कूल का उद्घाटन किया । उस समय राज्य की तरफ से उक्त ( सुमेर ) स्कूल को ५०० रुपये की सहायता दी गई । ३. ए कलैक्शन ऑफ ट्रीटीज़ ऐंगेजमेंट्स ऐण्ड सनट्स ( १९०६ ), भा० ३, पृ० २०२-२०३ । भारत वि० सं० १६५७ (ई० स० १६०० ) में जोधपुर नरेश, बीकानेर -राज्य की काउन्सिल और त - गवर्नमैंट के बीच बालोतरे से हैदराबाद (सिंध) तक मीटर- गॉज रेल्वे बनाने के लिये एक संधि हुई । ए कलैक्शन ऑफ ट्रीटीज़ ऐंगेजमैंट्स ऐण्ड सनद्स, भा० ३, पृष्ठ १८१ - १८३ । इसके बाद इसमें यथा - समय उपयोगी परिवर्तन होते रहे । ४. इस वर्ष बीकानेर-नरेश ने, आबू से अपने राज्य को लौटते हुए, जोधपुर में ठहर कर महाराज का प्रातिथ्य स्वीकार किया । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ४६८ www.umaragyanbhandar.com Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाराजा सरदारसिंहजी किए गए, उत्सव में सम्मिलित हुए और वहां से लौटते हुए दोनों ने प्रजा की हालत जानने के लिये नागोर प्रांत में दौरा किया । इस वर्ष की चैत्र सुदि ( ई० स० १८६९ के अप्रेल ) में 'जसवन्त जसो भूषण' नामक ग्रंथ बनाने के उपलक्ष्य में कविराजा मुरारिदान को पांच हजार रुपये की रेख के चार गाँव दिए गएँ । वि० सं० १९५६ के वैशाख ( ई० स० १८६६ की मई ) में यहां पर 'रजिस्ट्री' के महकमे की स्थापना की गई । भादों (सितम्बर) में महाराज भोपालसिंहजी का, जो 'सरदार- इन फैंट्री' के सेनापति थे, स्वर्गवास हो जाने से उनके पुत्र महाराज रतनसिंहजी उनके उत्तराधिकारी हुए । इस वर्ष सिंघी बछराज 'काउंसिल' की मैंबरी और जागीर बख़्शी के अध्यक्ष-पद से हटाया गया, और बेड़े का ठाकुर शिवनाथसिंह जागीर - बख़्शी का सुपरिन्टेंडेंट नियत हुआ । पण्डित जीवानन्द के, जो यहां की के वज़ीर बनाए जाने पर, जोधपुर दरबार पैन्शन और पैर में सोना पहनने की इज़्ज़त दी गई । 'काउंसिल' का 'मैंबर' था, मण्डी रियासत की तरफ़ से, उसे दो सौ रुपये माहवार की इस वर्ष इधर मारवाड़ में घास की कमी होने और उधर दक्षिणीऐफ्रिका के युद्ध के छिड़ जाने से जोधपुर का रिसाला, मेजर जससिंह की अधिनायकता में, गवर्नमैंट के ( नवें लांसर्स ) रिसाले, के रिक्तस्थान की पूर्ति के लिये मथुरा भेजा गया १. इस वर्ष मारवाड़ के कई प्रान्तों में वर्षा न होने से अकाल पड़ा । परन्तु दरबार ने शीघ्र ही अकाल पीड़ितों की सहायता का प्रबन्ध कर प्रजा की रक्षा की । इस वर्ष की माघ सुदि १३ ( ई० स० १८६६ की २३ फ़रवरी) को महाराजा साहब ने, माजी जाडेजीजी की बनवाई, स्टेशन के पास की, सराय की प्रतिष्ठा कर उसे सर्व साधारण के लिये खोल दिया । २. इन गांवों के बारे में, वि० सं० १६५० में ही, स्वर्गवासी महाराजा जसवन्तसिंहजी (द्वितीय) की आज्ञा हो चुकी थी । ३. इस वर्ष सिरोही के महाराव ने जोधपुर आकर महाराजा से साक्षात्कार किया । ४. इसी वर्ष ( ई० स० १६०० की जनवरी में ) जोधपुर दरबार की तरफ से ट्रांसवाल के युद्ध में काम देने के लिये कुछ घोड़े भेजे गए । ये वहां से वि० सं० १६५६ ( ई० स० १६०२ के जून) में लौट कर वापस आए थे । ४६६ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास और गवर्नमैंट और जोधपुर-राज्य के बीच एक संधि हुई । इसके अनुसार राजकीय रिसाले के युद्ध के लिये मारवाड़ से बाहर जाने पर उसके संचालन का भार अंगरेजीसेना के अफसरों को सौंपना निश्चित हुआ । ___इस वर्ष मारवाड़ भर में वर्षा न होने से घोर अकाल पड़ा । इसलिये गांवों के लोग अपने-अपने पशुओं को लेकर मालवे की तरफ़ चले । परंतु उस साल उस तरफ़ भी दुर्भिक्ष होने से उन्हें वापस लौटना पड़ा । इस आवागमन में उनके करीबकरीब सारे ही पशु मर गए और अन्नाभाव से स्वयं उन की दशा भी शोचनीय हो गई । इस अवसर पर राज्य की तरफ़ से स्थान-स्थान पर सरकारी आदमी नियत कर उन लोगों को सुविधा के साथ मारवाड़ में लौटा लाने का प्रबन्ध किया गया। साथ ही पानी के लिये बांध बंधवाने आदि का कार्य शुरू कर, जो लोग मजदूरी कर सकते थे, उनको उस काम पर लगाया । परंतु जो कमजोर, वृद्ध या बालक थे उनके लिये नाडेलावे में भोजन का प्रबन्ध किया गया। इसके अलावा बाहर से नाज और घास मँगवा कर मारवाड़ भर में जगह-जगह दूकानें खुलवा दी गईं और नगर-वासियों के सुभीते के लिये कुँओं और बावलियों से पानी खिंचवा कर पास के हौजों में भरवाने का प्रबंध किया गया । इस प्रकार, प्रजा को अकाल के प्रकोप से बचाने के लिये दरबार की तरफ़ से २६,३३,३५४ रुपये खर्च किए गएँ । इस वर्ष मारवाड़ में नाज और घास की उपज बिलकुल न होने से लाखों रुपयों का नाज और घास बाहर से मँगवाना पड़ा था। इसीसे यहां के चांदी के सिक्के की दर बहुत गिर गई और करीब १२४ (जोधपुर के) बिजैशाही रुपये देने पर केवल १०० कलदार रुपये का माल बाहर से आने लगा। इसलिये राज्य को अपना निजका सिक्का ढालना बंद कर मारवाड़ में कलदार रुपये का प्रचलन करना पड़ा। १. ए कलैक्शन ऑफ ट्रीटीज़ ऐंगेजमैंट्स ऐण्ड सनद्स, भा० ३, पृ० १८०-१८१ । २. इन मृत-पशुओं की संख्या १४ लाख (अर्थात्-मारवाड़ के कुल मवेशियों की आधी तादाद) तक पहुंची थी। ३. यह स्थान जोधपुर से २ कोस वायव्य-कोण में है। ४. जोधपुर-दरबार ने अकाल और उसके बाद के असर को दूर करने के लिये गवर्नमेंट से ___३६ लाख रुपये कर्ज़ लिए थे। ५. वि० सं० १६५७ की वैशाख सुदि २ (ई० स० १६०० की १ मई ) से मारवाड़ में कलदार रुपये का प्रचलन हुआ और छ महीने तक राज्य की तरफ़ से, १० रुपये सैंकड़ा बट्टा लेकर, बिजैशाही के बदले कलदार रुपया देने का प्रबन्ध किया गया । इसी के ५०० Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाराजा सरदारसिंहजी वि० सं० १६५७ के लगते ही, गरमी की अधिकता के कारण देश में हैजे का प्रकोप हो गया और दरवार की तरफ़ से हर-तरह का प्रयत्न किए जाने पर भी बहुत से लोग काल-कवलित हो गएं । इसके बाद बरसात में, वर्षा की अधिकता के कारण, घास और नाज तो बहुत हुआ, परंतु देश में चारों तरफ़ ज्वर का जोर बढ़ गया। इन्हीं दिनों 'बासर' का युद्ध छिड़जाने से, वि० सं० १९५७ के भादों (ई० स० १६०० के अगस्त ) में स्वयं महाराज प्रतापसिंहजी, जोधपुर के सरदार-रिसाले को साथ लेकर, चीन की तरफ गएँ । वहां पर इस रिसाले ने कई अच्छे वीरता के कार्य किए। इससे प्रसन्न होकर गवर्नमेंट ने, युद्ध-समाप्त होने पर, इसे अपने झंडे पर "चाइना१६००" साथ कुचामन के 'इकतीसंदे' रुपये का चलन भी बंद हो गया। इसके पहले जोधपुर, पाली, सोजत, नागोर और मेड़ते में राज्य की टकसालें थीं। परन्तु मेड़ते की टकसाल में पहले से ही सिक्का बनाना बंद करदिया गया था । इस वर्ष से जोधपुर में ही अधिकतर सोने और ताँबे के सिक्के बनाने का प्रबन्ध रह गया। इसी के साथ कुचामन की टकसाल भी बंद करदी गई। ऐचिसन् ने अपनी 'ए कलैक्शन ऑफ़ ट्रीटोज़, एंगेजमेंट्स ऐण्ड सनद्स (भा० ३ पृ०१४६) में वि० सं० १६५७ की चैत्र वदि ७ (३० स० १६०८ की २३ मार्च ) से जोधपुर में कलदार रुपये का जारी होना लिखा है । इसी वर्ष ( ई० स० १६००) में महाराज ने 'जोधपुर-बीकानेर-रेल्वे' द्वारा अधिकृत या आगे अधिकृत होने वाली भूमि का अधिकार गवर्नमेंट को सौंप दिया । परन्तु फिर भी गवर्नमेंट की सम्मति से, कुछ शर्तों पर, उस भूमि पर महाराज का ही अधिकार रहा। १. वि० सं० १६५७ की वैशाख सुदि ११ (ई० स० १६०० की १० मई ) को, ताज़ियों के मेले के समय, मुसलमानों ने अचानक आक्रमण कर पीपलिया-महादेव के मंदिर को तोड़ डाला और वहां के पीपल को भी काट डाला । सम्भव था कि वे और भी उपद्रव करते, परन्तु दरबार की प्राज्ञा से कप्तान गणेशप्रसाद ने तत्काल घटनास्थल पर पहुँच स्थिति को हाथ में लेलिया । २. जिस समय आप चीन में थे, उस समय (फागुन सुदि २ ई० स० १६०१ की २० फरवरी को) ईडर-नरेश केसरीसिंहजी का स्वर्गवास होगया । उनके पीछे पुत्र न होने से जैसे ही इस बात की सूचना महाराज प्रतापसिंहजी को मिली, वैसे ही उन्होंने, तारद्वारा, उस समय के वायसराय लॉर्ड कर्जन को उक्त राज्य के विषय में अपने हक पर विचार करने के लिये लिखा। ३. यह रिसाला उस समय मथुरा में था और वहीं से सीधा चीन की तरफ गया। ४. वि० सं० १६५८ की द्वितीय श्रावण वदि २ (ई० स० १६०१ की २ अगस्त) को महाराज प्रतापसिंहजी, इस युद्ध से लौट कर, जोधपुर आए। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास लिखने का सम्मान प्रदान किया और बाद में चीन से छीनी हुई चार तोपें भी मेट की । महाराज प्रतापसिंहजी के युद्ध में चले जाने के बाद राज्य का कार्य एक 'कमेटी' की देखभाल में होता था। इसके सभापति स्वयं महाराजा सरदारसिंहजी और सभासद् ( मैंबर ) पण्डित सुखदेवप्रसाद काक और कविराजा मुरारिदान थे । वि० सं० १९५७ की पौष सुदि १ ( ई० स० १६०० की २२ दिसम्बर ) को बालोतरा से सादीपाली तक की रेल्वे लाइन खुल गई । इससे कराची की तरफ जाने का सुभीता हो गया। पौष सुदि ७ (२८ दिसम्बर ) को महाराजा सरदारसिंहजी ने स्थानीय 'मिशनअस्पताल' का उद्घाटन किया । इस अस्पताल के लिये दरबार की तरफ से १६,००० रुपये दिए गए थे। माघ सुदि २ ( ई० स० १६०१ की २२ जनवरी ) को सम्राज्ञी विक्टोरिया का स्वर्गवास हो गया । इसपर दरबार की तरफ़ से यथोचित शोक प्रकट किया गया । इसके बाद माघ सुदि ६ ( २८ जनवरी) को उनके पुत्र सम्राट् सप्तम ऐडवर्ड के राज्याभिषेक का उत्सव मनाया गया। वि० सं० १६५७ की फागुन सुदि ११ ( ई० स० १६०१ की १ मार्च ) की रात को मारवाड़ में तीसरी मनुष्य-गणना की गई। १. ये तोप ई० स० १६०२ में दी गई थी। २. इस सादीपाली लाइन के छोर स्टेशन से उमरकोट छ कोस दक्षिण में है। ३. इस अवसर पर तीन दिनों के लिये दिन और रात में छुटनेवाली तीनों तोपें और बाज़ार बंद रहे, कचहरियों में बारह दिन की छुट्टी की गई, शोक-सूचक एक सौ एक तो (मिनट्गन) दागी गई, एक सौ एक कैदी छोड़े गए, गुलाबसागर पर अशौच-स्लान का प्रबन्ध किया गया, बारह दिनों के लिये किले पर की नौबत बंद रक्खी गई और बारह दिनों तक नगर में उत्सव करने की मनाई करदी गई । ४. इस अवसर पर किले से १०१ तोपों की सलामी दागी गई । अकाल के समय की सेवाओं के उपलक्ष में मिस्टर होम (W. Home ) और पंडित सुखदेव प्रसाद काक को कैसरेहिन्द के सोने के पदक और कैटिन ग्राण्ट (Grant), मिस्टर ब्रेमनर (Bremner), पं० ब्रह्मानन्द, मिस् सी. ऐडम्स और नागोर के सेठ रामगोपाल मालानी को चांदी के पदक मिले। ५. सम्राट् सप्तम ऐडवर्ड के राज्याधिकार की घोषणा माघ सुदि ४ (ई० स० १६०१ की २४ जनवरी) को की गई थी। ६. इस कार्य की देख-भाल मीर अहमदहुसैन के ज़िम्मे थी और इस वार मनुष्यों की संख्या १६,३५,५६५ हुई । पहली मरदुमशुमारी वि० सं० १६३७ (ई० स० १८८१) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाराजा सरदार सिंहजी इस वर्ष स्वास्थ्य ठीक न रहने से महाराजा सरदारसिंहजी जलवायु परिवर्तन के लिये नसीराबाद गए और वहां से लौटने पर, वि० सं० १९५८ की वैशाख बदि १२ ( १६ अप्रेल ) को, सीलोन होते हुए यूरोप जाने के लिये, बंबई की तरफ चले । उस समय महाराज प्रतापसिंहजी के चीन में होने से राज्य का भार मेजर किन् ( K. D. Arskine ), रैजीडेंट, 'वैस्टर्न राजपूताना' को सौंपा गया और कार्य संचालन के लिये वही पहले वाली दो मैंबरों की कमेटी बना दी गई । इस यात्रा में महाराज ने सीलोन ( लंका), स्विट्ज़रलैंड, ऑस्ट्रिया, फ्रांस और इंगलैंड का भ्रमण किया । आपके वीएना पहुँचने पर ऑस्ट्रिया के बादशाह ने आपका स्वागत किया और लंदन पहुँचने पर आप सम्राट् सप्तम ऐड्वर्ड से मिलें । अन्त में आश्विन सुदि ६ ( १८ अक्टोबर ) को आप लौट कर बंबई पहुँचे और वहां से आबू की तरफ़ होते हुए, कार्तिक बदि ३ ( ३० अक्टोबर ) को, जोधपुर चले आए। इसके बाद आपने फिर राज्यकार्य की देखभाल प्रारम्भ की । इसी समय कर्नल बीट्सन् ( C. B. Beatson ), 'इन्सपेक्टर जनरल, इम्पीरियल टूप्स', ने यहां आकर रिसाले का निरीक्षण किया । सर्विस इस वर्ष जब भारत-गवर्नमैंट ने कलकत्ते में सम्राज्ञी विक्टोरिया को संगमरमर की यादगार बनाने का निश्चय किया, तब जोधपुर दरबार ने उस विशाल भवन के लिये एक लाख रुपये देने की आज्ञा दी । इसी प्रकार सम्राज्ञी के नाम पर स्थापित संस्था को, जिसका उद्देश्य भारत की स्त्रियों को स्त्री - डाक्टरों की सहायता पहुँचाना था, जोधपुर की महारानी साहिबा ने पांच हजार रुपयों की सहायता दी । में कविराजा मुरारिदान की निगरानी में हुई थी और उस समय मनुष्यों की संख्या १७,५७,६१८ पाई गई थी। दूसरी मरदुमशुमारी वि० सं० १६४७ ( ई० स० १८६१ ) में मुंशी हरदयालसिंह की निगरानी में हुई और उस समय मनुष्यों की संख्या २५, २८, १७८ गिनी गई । इसी वर्ष कर्नल ऐडम्स ( A. Adams ) की मृत्यु हुई । इस पर महाराज ने उसके स्मारक के लिये पांच हज़ार रुपये दिए । १. उस समय तक राजपूताने के नरेशों में से पहले पहल महाराजा सरदारसिंहजी ने ही लंदन जाकर भारत - सम्राट् से मिलने का सम्मान प्राप्त किया था । इसी प्रकार वीना जाकर ऑस्ट्रिया के सम्राट् से मिलने वाले प्रथम भारतीय नरेश भी आप ही थे । २. यह यादगार जोधपुर के मकराने के पत्थर ( संगमरमर ) से बनाई गई थी । ५०३ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास पौष बदि १३ ( ई० स० १९०२ की ७ जनवरी) को वायसराय ने, तार द्वरा, महाराज प्रतापसिंहजी के ईडर की गद्दी का हक़दार गान लिये जाने की सूचना भेजी । इस पर माघ वदि ७ ( ३१ जनवरी) को वह ईडर चले गएँ । इसके बाद दरबार ने 'मुसाहिब - प्राला' का पद उठा कर पण्डित सुखदेवप्रसाद काक को 'सीनियर मैंबर' बना दिया । इसी समय पुरानी काउंसिल के स्थान में 'कन्सलटेटिव काउंसिल' ( परामर्श देने वाली सभा ) की स्थापना की गई। इसमें पौकरन, आसोप और कुचामन के ठाकुर तथा कविराजा मुरारिदान मैंबर थे । परंतु उपर्युक्त तीनों सरदारों में से प्रत्येक सरदार बारी-बारी से वर्ष में केवल चार मास काम करता था । ' ऐसिस्टैंट मुसाहिब प्राला' का पद 'ऑफिसर इनचार्ज कस्टम्स' में परिवर्तित कर दिया गया, जी. बी. गॉइडर, जो जोधपुर रेल्वे में था, राजकीय ऑडिट के महकमे का प्रबंध ठीक करने के लिये नियुक्त हुआ और कैप्टन पिन्ने (Pinney ) महाराजा का 'प्राइवेट सैक्रेटरी' बनाया गया । साथ ही राज-कर्मचारियों की काट-छाँट की जाने, कई महकमों का काम शामिल कर देने और प्यादबखशियों के दफ़्तर को उठा देने से राज्य के सालाना खर्च में ६६,००० रुपयों की बचत हो गई । माघ सुदि ७ ( १५ फ़रवरी) को महाराजा सरदारसिंहजी 'कैडेट कोर' की शिक्षा पाप्त करने के लिये मेरठ गएै । इस 'कोर' में सैनिक - शिक्षा के लिये नाम लिखवाने वाले पहले नरेश आप ही थे । आपकी अनुपस्थिति में राज्य का कार्य फिर रैजीडैंट की देखभाल में होने लगा । १. ईडर - नरेश महाराजा केसरीसिंहजी की मृत्यु के बाद उत्पन्न हुआ उनका नवजात बालक भी कुछ ही दिन बाद मरगया । इसी से वहां की गद्दी खाली थी । २. उस समय किले पर से १५ तोपों की सलामी दाग़ी गई । इसी वर्ष गवर्नमेंट ने चीन में दी हुई सहायता के उपलक्ष में महाराजा प्रतापसिंहजी को 'नाइट कमांडर ऑफ दि एकज़ॉल्टेड ऑर्डर ऑफ बाथ, कैडेट कोर का ऑनररी कमांडेंट और सम्राट् सप्तम-ऐडवर्ड का ऑनररी ए. डी. सी. बनाया । साथ ही आपको बादशाह के आगामी राज-तिलकोत्सव के अवसर के लिये 'इम्पीरियल सर्विस' सेना का संचालक नियुक्त किया। सरदार रिसाले के कमांडेंट ठाकुर जससिंघ (बहादुर) को दूसरे दरजे का 'ऑर्डर ऑफ ब्रिटिश इण्डिया' का सम्मान मिला । ३. वास्तव में आप माघ बदि ६ ( ३० जनवरी) को ही मेरठ चले गए थे, परन्तु बीच में अपना जन्मोत्सव मनाने को जोधपुर लौट आए थे । ४. इसी वर्ष रीयां - ठाकुर विजयसिंह ' कोर्ट- सरदारान' का सहकारी ( जॉइंट ) 'जज' बनाया गया । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ५०४ www.umaragyanbhandar.com Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाराजा सरदारसिंहजी वि० सं० १५५६ की चैत्र सुदि ( ई० स० १९०२ की अप्रेल ) में महाराजा सरदारसिंहजी मेरठ से देहरादून गए और वहां से लौट कर वैशाख बदि (मई) में जोधपुर आए । इसके बाद नवें दिन आप यहां से आबू होते हुए देहरादून लौट गए । इन्हीं दिनों जोधपुर में पत्थर की सड़क बनवाने का आयोजन किया गया । श्रावण सुदि १३ ( १७ अगस्त ) को महाराज फिर देहरादून से जोधपुर और विन सुदि २ (३ अक्टोबर ) को आपने अपने चचेरे भाई महाराज दौलतसिंहजी को 'राजाधिराज' की पदवी से भूषित किया । こ ( २२ नवंबर ) को जोधपुर में, उस समय के भारत के वायसराय, मँसिर द लॉर्ड कर्जन का आगमन हुआ । इस पर महाराजा की तरफ़ से भी स्वागत का यथोचित प्रबंध किया गया । एक रोज स्वयं महाराजा ने सरदार - रिसाले का संचालन कर उसकी ‘परेड' करवाई । उस समय अपने- अपने घोड़ों के नीचे बैठे सिपाहियों का गोली चलाना देख लॉर्ड कर्जन ने बड़ी प्रसन्नता प्रकट की । इसके बाद महाराजा दिल्ली जाकर, पौष सुदि २ ( ई० स० १९०३ की १ जनवरी) को, होनेवाले दरबार में 'इम्पीरियल कैडेट कोर' की तरफ़ से सम्मिलित हुएं और वहां से जोधपुर आकर कुछ दिन बाद देहरादून लौट गए । इसी वर्ष कुछ कारणों से महाराजा का 'इम्पीरियल कैडेट कोर' का शिक्षा - काल बढ़ा दिया गया और रैजीडेंट मेजर अंकन के बाद रेज़ीडेंट लैफ्टिनेंट कर्नल जैनिंग्स (R. H. Jennings ) राज्य के कार्य की देख भाल करने लगा । वैशाख बदि (अप्रेल) में साहबजादा हमीदुज़्ज़फ़रखाँ यहां पर 'जूनियर मैंबर' नियुक्त हुआ और मारवाड़ और जयसलमेर राज्यों के बीच अपराधियों के लेन-देन के विषय की संधि की गई । १. इसी वर्ष ( वि० सं० १६५६ = ई० स० १६०२ में ही ) आप अपने चचा महाराजा प्रतापसिंहजी के गोद चले गए । २. वहां पर आपसे कश्मीर, बड़ोदा, रीवां, अलवर और बूंदी के नरेशों ने भेट की । ३. इस वर्ष 'सीनियर - मैंबर' पण्डित सुखदेवप्रसाद काक सी. प्राइ. ई. और ठाकुर जससिंह, कमांडेंट, जोधपुर ' लान्सर्स' 'सरदार बहादुर' (O. B. E. ) बनाया गया । ४. यह भारत - गवर्नमेंट से मांग कर बुलवाया गया था । ५. यह संधि ई० स० १८६१ की बीकानेर और जयसलमेर के बीच की संधि के अनुसार ही थी । ( ए कलैक्शन ऑफ ट्रीटीज़ ऐंगेजमेंट्स ऐण्ड सनट्स ( १६०६ ), भा० ३, पृ० १४६ | ) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ५०५ www.umaragyanbhandar.com Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास आषाढ सुदि १४ (८ जुलाई ) को दूसरे महाराज - कुमार उम्मेदसिंहजी का जन्म हुआ । इसी वर्ष के भादों (अगस्त) में महाराजा साहब 'इम्पीरियल केडेट कोर' की शिक्षा समाप्त कर स्वास्थ्य-सुधार के लिये पचमरी चले गए। इसलिये राज्य कार्य का संचालन पश्चिमी राजपूताने के रैजीडैंट लैफ्टिनेंट कर्नल जैनिंग्स की देख भाल में ही होता रहा । इसी बर्ष रीयां-ठाकुर विजैसिंह 'कन्सलटेटिव काउंसिल' का मैंबर बनाया गया, सरदार शंशेरसिंह पुलिस के प्रबंध के लिये बुलवाया गया और कैटिन् पिन्ने के स्थान पर कैढिन् हेग (P. B. Haig) महाराजा का 'मैडिकल ऐडवाइज़र' नियुक्त हुआ । वि० सं० १९६१ के श्रावण ( ई० स० १९०४ के अगस्त ) में गाड़ियों आदि के सुभीते के लिये, फुलेलाव तालाब के पास का पहाड़ काट कर, नई सड़क बनाने १. इस खुशी में किले से १२५ तोपों की सलामी दाग़ी गई । २. उस समय महाराजा की सरलता, महाराजा के मुंह लगे लोगों की स्वार्थपरता और प्रधान मंत्री की अहम्मन्यता के कारण राज्य में षड्यंत्र चल रहा था, और यही बाद में महाराजा के पचमरी जाने का कारण हुआ । ३. वि० सं० १६६१ की चैत्र सुदि १२ ( ई० स० १६०४ की २८ मार्च) को मुसलमानों नेताजिये निकालते समय राज्य की आज्ञा का उल्लंघन करना चाहा । परन्तु समय पर सैनिक-प्रबन्ध होजाने से यद्यपि वे उपद्रव न कर सके, तथापि उन्होंने अपना हट प्रकट करने के लिये केवल एक ताज़िया ही निकाला । इस (रैज़ीडेंट) ने महाराज अर्जुनसिंहजी के कृपापात्र मच्छूखाँ की उद्दण्डता से अप्रसन्न होकर उसे मारवाड़ से चले जाने की आज्ञा दी थी । परन्तु जब उसने इसकी परवा न की, तब उसे पकड़ने का हुक्म दिया गया । इस कार्य में बाधा देने के कारण महाराज अर्जुनसिंहजी राजकीय सेना के सेनापति ( कमाण्डर इन चीफ) के पद से हटाए गए और उनकी जागीर का बीजवा नामक गांव, जो इस पद के पीछे मिला था, हमेशा के लिये और बग्गड़ नामक गांव कुछ दिन के लिये ज़ब्त कर लिए गए। इसके बाद वि० सं० १६६२ की फागुन सुदि ८ ( ई० स० १६०५ की १४ मार्च) को मच्छूखाँ, उसको पकड़ने को भेजे गए, रिसाले वालों के हाथ से मारा गया, और ठाकुर हेमसिंह की अध्यक्षता में गई सेना ने बींजवे पर, बिना रक्त-पात के ही, अधिकार कर लिया । ४. यह पुलिस का प्रबन्ध वि० सं० १६६२ की भादों बदि ५ ( ई० स० ११०५ की २० अगस्त ) से किया गया था और सरदार शशेरसिंह पंजाब गवर्नमेंट से मांगकर लिया गया था । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ५०६ www.umaragyanbhandar.com Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाराजा सरदारसिंहजी की और आश्विन ( अक्टोबर ) में शहर की सड़कों पर रौशनी का प्रबन्ध किया गया। इस वर्ष के मँगसिर (दिसम्बर) में काबुल का 'हिज हाइनेस' सरदार इनायत उल्लाखाँ भारत भ्रमण के लिये आया । इस पर कर्नल जैनिंग्स उसके साथ नियुक्त किया गया और यहां का राज्य-कार्य मिस्टर लॉयल (R. A. Lyall ) की निगरानी में होने लगा। फाल्गुन (ई० स० १६०५ के मार्च) में जोधपुर के आसपास प्लेग की बीमारी के फैलने का संदेह होने से, उसके प्रसार को रोकने के लिये, तत्काल शहर से बाहर 'कोरंटाइन' का प्रबन्ध किया गया । ___ इसी वर्ष पौकरन-ठाकुर मंगलसिंह 'रामो बहादुर' बनाया गया और पादरी डॉक्टर समरवाइल को चांदी का 'कैसरेहिन्द' पदक मिला। वि० सं० १९६२ की कार्तिक सुदि १२ (= नवम्बर ) को महाराजा सरदारसिंहजी पचमरी से आबू और नसीराबाद होते हुए ( सवा दो वर्ष बाद ) जोधपुर आए । इस पर नगर में बड़ा उत्सव मनाया गया । इसके बाद मँगसिर (दिसम्बर) के १. इसके लिये ६,००० की मंजूरी हुई । उस समय 'स्टेट-इंजीनियर' का काम बाबू बटूलाल करता था। २. उस समय ७० लालटेनों के लिये, की लालटेन ॥) माहवार के हिसाब से ६३० रुपये में सालभर का ठेका दिया गया था। ३. वि० सं० १९६२ की ज्येष्ठ सुदि १० (ई० स० १६०५ की १२ जून) को माजी जाडेजीजी के (स्टेशन के सामने ) बनवाए राजरणछोड़जी के मन्दिर की प्रतिष्ठा की गई और उसके खर्च आदि के प्रबन्ध के लिये उन्होंने, अपनी पुरानी धर्मार्थ बनवाई सराय के सामने, नवीन सराय बनवाना प्रारम्भ किया। इसके मकानात किराए पर दिए जाने के लिये तैयार करवाए जाने लगे । वि० सं० १९६२ (ई० स० १६०५) में 'नॉर्थ-वैस्टर्न-रेल्वे' और 'जे. बी. रेल्वे' के बीच हैदराबाद जंक्शन (सिंध) आदि के बाबत एक संधि हुई । इसी वर्ष के श्रावण (अगस्त) में जोधपुर दरबार ने रिवाड़ी-फुलेरा-रेल्वे लाइन के काम में आनेवाली अपनी भूमि का सारा अधिकार ब्रिटिश-गवर्नमेंट को देदिया । ए कलैक्शन ऑफ ट्रीटीज़ ऐंगेजमैंट्स ऐण्ड सनद्स ( १६०६), भा० ३, पृ० २०४ । ४. आप वि० सं० १६६२ की जेष्ठ वदि २ (ई० स० १६०५ की २० मई) को पचमरी से प्राबू लौटे थे । इसके बाद शीघ्र ही आप बंबई जाकर जाते हुए लार्ड कर्जन से और पाते हुए लॉर्ड मिंटो से मिले । ५०७ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास प्रारम्भ ) में आप 'प्रिंस ऑफ वेल्स' से मिलने रावलपि डी गए । इस वर्ष की पौष वदि ( ई० स० १६०५ के दिसम्बर) में जयसलमेर - नरेश और चैत्र वदि (ई० स० १९०६ के मार्च ) में नाभा - नरेश हीरासिंहजी जोधपुर आए । इस पर राज्य की तरफ़ से उनका यथोचित स्वागत किया गया । इसी वर्ष महाराजा ने परगनों का दौरा कर प्रजा के हित के लिये खोले गए कामों का निरीक्षण किया और ख़ाँबहादुर साहबजादा हमीदुज्ज़फ़रख़ाँ के अलवर चले जाने पर मुंशी रोड़ामल को महकमे - खास का ऐसिस्टैंट और 'जुडशल - सेक्रेटरी' बनाया । कार्तिक (अक्टोबर ) में मिस्टर होम नौकरी से अलग (रिटायर) हुआ और उसकी जगह मिस्टर टॉड ( R. Todd ) यहां की रेल्वे का मैनेजर बनाया गया । वि० सं० १९६३ की कार्तिक सुदि १४ ( ३१ अक्टोबर ) को महाराजा की आज्ञा से जोधपुर के पैसे का तोल घटाकर आधा करदिया गया । इसके बाद मँग दि १ ( १७ नवम्बर) से महाराजा सरदारसिंहजी ने फिर राज्य कार्य की देखभाल शुरू की । परन्तु राजसभा ( केबिनेट) की कार्रवाई रेज़ीडेंट की अध्यक्षता में ही होती रही । १. यही बाद में सम्राट् जॉर्ज पंचम के नाम से बादशाह हुए । २. आप मँगसिर सुदि ७ ( ३ दिसम्बर) को रावलपिंडी गए थे और मँगसिर सुदि १५ ( ११ दिसम्बर) को वहां से लौट कर आए । ३. पहले जोधपुर में दशहरे पर काग़ज़ का रावन बनाया जाता था और बाद में महाराज प्रतापसिंहजी ने उसका पत्थर का धड़ बनवा दिया था । परन्तु महाराजा सरदारसिंहजी की आज्ञा से, वि० सं० १६६३ ( ई० स० १६०६ ) के दशहरे से वह फिर पूरा का पूरा काग़ज़ का बनाया जाने लगा । माशे का माशे का ४. महाराजा भीमसिंहजी के समय २० पैसा बनता था और बाद में १८ माशे का बनने लगा । परन्तु अब से वह ६ करदिया गया। साथ ही एक आने के ४ पैसे का भाव भी नियत हो गया। पहले इसका भाव तांबे के भाव के अनुसार घटता-बढ़ता रहता था और यह एक रुपये के ४६ से ४८ पैसे ( २३ से २४ टके ) तक होजाता था । ५. एचिसन् की 'ए कलैक्शन ऑफ ट्रीटीज़ ऐंगेजमेंट्स ऐण्ड सनट्स' ( भा० ३, पृ० १२१ ) में लिखा है कि ई० स० १६०५ में महाराजा को कुछ अधिकार वापस दिए गए और इसके बाद ई० स० १६०८ में उन्हें करीब करीब पूरे अधिकार सौंप दिए गए । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ५०८ www.umaragyanbhandar.com Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाराजा सरदारसिंहजी पहले जागीरदारों को, अपनी जागीर की आमदनी की एवज़ में, राज्य की सेवा के लिये, सवार और पैदल सिपाहियों की एक नियत-संख्या रखनी पड़ती थी । परन्तु इसी वर्ष से उन सिपाहियों के खर्च का अंदाज लगा कर प्रत्येक जागीरदार से सिपाहियों की एवज़ में मासिक रुपया लेना नियत किया गया । वि० सं० १९६३ की फागुन सुदि ३ ( ई० स० १९०७ की १५ फरवरी) को मुंशी हरनामदास ( गवर्नमैंट से मांग कर ) 'जूनियर-मैंबर' बनाया गया और मुंशी रोड़ामल वापस 'कोर्ट-सरदारान' में भेज दिया गया । वि० सं० १९६४ के द्वितीय चैत्र ( अप्रेल ) में मेजर हेग छुट्टी गया और उसके स्थान पर मेजर ग्रांट ( J. W. Grant ) नियुक्त हुआ । वि० सं० १९६४ की वैशाख बदि ४ ( ई० स० १६०७ की १ मई ) को महाराजा सरदारसिंहजी के तीसरे महाराज-कुमार अजितसिंहजी का जन्म हुआ। इस वर्ष की गरमियों में महाराजा ने, आबू से लौटते हुए, जसवन्तपुरे का दौरा किया । भादों ( अगस्त ) में आप पोलो खेलने के लिये पूर्ती गए और मँगसिर (दिसम्बर ) में आपने कलकत्ते की यात्रा की । फाल्गुन ( ई० स० १६०८ की फरवरी ) में नाथद्वारे के गुसांई गोवर्धनलालजी जोधपुर आए । महाराजा ने स्टेशन पर जाकर उनका स्वागत किया । १. यह लाग चाकरी (सेवा) के नाम से प्रसिद्ध है । पुराने नियमानुसार कुल जागीरदारों को ३,६७६ घोड़े, और ४६० पैदल रखने पड़ते थे । इस वर्ष इनमें से १,३६३ सवारों और १५२ पैदलों की एवज़ नकद रुपया लिया गया। २. इस वर्ष (ई० स० १६०७ की फरवरी में) महाराजा मेरो कॉलेज की 'कॉनफ्रेंस' में सम्मिलित होने को अजमेर गए, और वि० सं० १६६४ की द्वितीय चैत्र सुदि १० ( २३ अप्रेल ) को किशनगढ़-नरेश ने जोधपुर आकर आपका आतिथ्य ग्रहण किया । ३. इस शुभ अवसर पर भी किले पर से १२५ तोपें दागी गई। ४. यहां पर आपने पोलो का 'कप' जीता। कार्तिक (१६०७ के नवम्बर) में आप अजमेर जाकर मेयो कॉलेज के उत्सव में सम्मिलित हुए। ५. वहां से लौटते हुए आप मार्ग में चार दिन जयपुर ठहरे । इसके बाद वि० सं० १६६४ के फागुन (ई० स० १६०८ की फरवरी) में और वि० सं० १९६५ के आश्विन ( सितम्बर ) में अाप बंबई गए । १६६४ के फागुन (१६०८ के मार्च) में जयसलमेरनरेश ने जोधपुर पाकर महाराजा का प्रातिथ्य स्वीकार किया। ५०६ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास वि० सं० १९६४ के चैत्र (ई० स० १६०८ के मार्च ) में सरदार शंशेरसिंह का कार्य-काल समाप्त होजाने पर, उसके स्थान पर बाबू रघुवंशनारायण नियुक्त किया गया और सरदार-रिसाले के 'कमांडिंग ऑफीसर, ठाकुर जससिंह की मृत्यु होजाने से, उसके स्थान पर, संखवाय का ठाकुर प्रतापसिंह रिसाले की पहली रैजीमैंट का सेनापति बनाया गया । वि० सं० १९६५ की वैशाख वदि १ (ई० स० १९०८ की १७ अप्रेल ) को महाराजा सरदारसिंहजी का विवाह उदयपुर के महाराना फ़तैसिंहजी की कन्या से हुआ । उस अवसर पर दोनों राज्यों में खूब उत्सव मनाया गया । आषाढ ( जून ) में सम्राट् एडवर्ड सप्तम के जन्मोत्सव पर आप (महाराजा सरदारसिंहजी) के. सी. एस. आइ. की उपाधि से भूषित किए गए। दस वर्ष बरसात में वर्षा अधिक होने से कायलाना नामक झील के बांधपर से खब पानी बहा और उस तरफ़ ( गवां और बागां में ) रहने वाले लोगों के घर पानी से घिर गए। इसकी सूचना मिलते ही दयालु-प्रकृति महाराजा स्वयं वहां जा पहुंचे और सरकारी नावें मँगवाकर पानी से घिरे लोगों और उनके सामान का उद्धार करवाया । पानी की अधिकता होने से इस वर्ष मारवाड़ में 'फ़सली-बुखार' का प्रकोप रहा। कार्तिक सुदि ८ (१ नवम्बर) को भारत का तत्कालीन गवर्नर-जनरल' और 'वायसराय' लॉर्ड मिंटो जोधपुर आया । इस पर दरबार की तरफ़ से उसका बड़ी धूमधाम से स्वागत किया गया । १. मारवाड़ दरबार की सेवा के उपलक्ष में इसे गवर्नमेंट से 'सरदार साहब' की उपाधि मिली। २. इस वर्ष ईडर के महाराजा प्रतापसिंहजी और किशनगढ़-नरेश जोधपुर आए । वि० सं० १६६५ के चैत्र शुक्ल (ई० स० १६०८ के अप्रेल) में पश्चिमी राजपूताने की रियासतों के रैजीडेंट लैटिनेंट कर्नल स्ट्रेटन (W.C.R.Stratton) के छुट्टी चले जाने पर राज्य कार्य के बड़े मामलों की देख-भाल स्थानापन्न रैजीडैट मिस्टर कौब (H.V. Cobb) करने लगा। परन्तु आश्विन वदि (सितम्बर) में उसके कश्मीर में नियुक्त होजाने पर उसके स्थान पर मिस्टर गेबील (V. Gabriel) यहां का रैजीडैट नियुक्त हुआ। भादों ( १६०८ के अगस्त ) में महाराजा ने पोलो खेलने के लिये पूना की यात्रा की। इसी वर्ष (ई० स० १६०८ में ) मारवाड़ और सिरोही के बीच एक दूसरे के अपराधियों को एक दूसरे को सौंप देने के बाबत संघि हुई । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाराजा सरदारसिंहजी उन दिनों बंगाल के षड्यंत्रकारियों का जोर होने से मार्ग के दोनों तरफ़ पुलिस और सेना के जवान नियुक्त किए गए । इसके अलावा जागीरदारों की जमीअत के ८,००० सवार भी सड़क के इधर-उधर खड़े थे । साथ ही अवसर की रोचकता को बढ़ाने के लिये इस जमीअत के कुछ सिपाही जिरह बस्तरों और कुछ विभिन्न प्रकार के पुराने शस्त्रास्त्रों से सुसज्जित किए गए थे । इन्हीं के बीच जगह-जगह यहां के खास-खास खेल-तमाशों का प्रबन्ध भी था। महाराजा के सेनापतित्व में की गई यहां के रिसाले की 'परेड' को देख वायसराय ने प्रसन्नता प्रकट की और उसी समय, भारत-गवर्नमेंट की तरफ़ से, नौ-नौ पाउण्ड का गोला फेंकने वाली ६ तोपें इस रिसाले को भेट करने की घोषणा की। इसी अवसर पर वायसराय ने महाराजा साहब को के. सी. एस. आइ. के पदक से भूषित किया और उस दिन (२ नवम्बर कार्तिक सुदि १ को ) महारानी विक्टोरिया के भारतीय-शासन-ग्रहण करने की पचासवीं बरसगांठ होने से, बादशाह का भारतीयनरेशों और भारतीय-प्रजा के नाम भेजा हुआ सन्देश पहले-पहल यहीं पढ़कर सुनाया। रात को नगर में रौशनी की गई और दरबार की तरफ़ से आतिशबाज़ी छुड़वाई जाकर उत्सव मनाया गया। पौष (दिसम्बर ) में महाराजा सरदारसिंहजी लॉर्ड मिंटो की पुत्री के विवाह में सम्मिलित होने को कलकत्ते गए। महाराजा साहब के उदयपुर वाले विवाह के समय गरमी का मौसम होने से अन्य नरेशों को निमंत्रण नहीं दिया गया था । इसीसे सरदी का मौसम आने पर, माघ बदि ३० से फागुन बदि ७ ( ई० स० १९०९ की २१ जनवरी से १२ फरवरी) तक उत्सव का समय नियत कर, तीस नरेशों को निमंत्रण भेजा गया । इनमें से जयसलमेर, धौलपुर, ईडर, सीतामउ, किशनगढ़, अलवर, जयपुर और बीकानेर के नरेश; उदयपुर के महाराज-कुमार और पटियाला, बड़ौदा, कश्मीर, झिंद और नरसिंघगढ़ के नरेशों के प्रतिनिधि यहां आकर उत्सव में सम्मिलित हुए। दरबार की तरफ़ से उनके मनोरंजन के लिये पोलो, शिकार, नाटक और बायसकोप आदि का प्रबन्ध किया गया। १. इनमें के कुछ नरेश उत्सव के समय न पा सकने के कारण बाद में आए थे। माघ सुदि १ (ई० स० १६०६ की २२ जनवरी ) को अपने जन्मोत्सव पर महाराजा साहब ने पण्डित सुखदेवप्रसाद काक को तीन गांवों की जागीर, दोहरी ताज़ीम, हाथ का कुरव और पैर में सोना पहनने का अधिकार दिया । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास वि० सं० १६६५ के फागुन ( ई० स० १९०६ की फरवरी ) से महाराजा साहब ने राज्य कार्य की देख-भाल पूरी तौर से अपने हाथ में लेली' । इसपर सहकारी रैजीडैंट का पद उठा दिया गया । वि० सं० १९६६ की वैशाख सुदि ३ (२२ अप्रेल ) को भारत का फ़ौजी-लाट लॉर्ड किच्नर जोधपुर आया । इस पर राज्य की तरफ़ से उसके योग्य ही उसके स्वागत का प्रबन्ध किया गया । उस अवसर पर की गई यहां के रिसाले की कवायद ( परेड ) का संचालन महाराज - कुमार सुमेरसिंहजी ने किया और लॉर्ड किच्नर को दिखलाने के लिये मारवाड़ की दस्तकारी का जो सामान एकत्रित किया गया था, बाद में उसी को एक स्थान पर सजा कर यहां पर इंडस्ट्रियल म्यूज़ियम (देशी वस्तुओं के अजायबघर ) की स्थापना की गई । भादों वदि ( सितम्बर ) में महाराजा सरदारसिंहजी, लॉर्ड किचनर से मिलने के लिये पूना गएँ । इस यात्रा में ईडर - नरेश महाराजा प्रतापसिंहजी भी आप के साथ थे 1 भादों सुदि २ ( १६ सितम्बर ) को ' जोधपुर - बीकानेर रेल्वे' का 'डेगाना - हिसार ' लाइन वाला सुजानगढ़ तक का हिस्सा खोला गया । १. महाराजा साहब ने प्रजा की आवश्यकताओं को जानने के लिये इस वर्ष देसूरी, बीलाड़ा, मालानी और पाली के परगनों में दौरा किया, तथा गरमियों में आप १५ दिन के लिये आबू पर्वत पर रहे | इस वर्ष मुंशी रोडामल के स्थान पर भंडारी मानचन्द ' कोर्ट- सरदारान' का, लक्ष्मणदास सपट हैसियत का, बेड़ा-ठाकुर शिवनाथसिंह तामील का और रावराजा तेजसिंह ( प्रथम ) 'रजिस्ट्रेशन' का अफसर बनाया गया । इसी वर्ष बादशाह की बरसगांठ के दिन कविराजा मुरारिदान को 'महामहोपाध्याय ' की उपाधि मिली । २. इस वर्ष महाराजा साहब ने बीकानेर, बूदी, बंबई, पूना और अजमेर की यात्राएं की और जयसलमेर-दरबार ने जोधपुर आकर आप का आतिथ्य स्वीकार किया । ३. श्रावण वदि १४ ( १६ जुलाई ) को महाराजा प्रतापसिंहजी स्वास्थ्य - -सुधारने के लिये जोधपुर आए और क़रीब ढाई महीने यहां रहे । इस यात्रा में आपके दत्तक पुत्र महाराज - कुमार दौलतसिंहजी भी आपके साथ थे । ४. इस साल फसल अच्छी होने के कारण मारवाड़ से ७,४४,४५२ मन गेहूं की रक्तनी हुई । इसके पहले साल केवल ७४,३७५ मन गेहूं ही बाहर चढ़ा था । ५१२ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाराजा सरदारसिंहजी कई दिनों से उपपुर-महागण। तसिंहजी महाराजा साब मे उगपुर आने का आग्रह कर रहे थे। इसी से मंगसिर बदि । (२ दिसंबर ) को आप को सप्ताह के लिये उदयपुर गए । वहां पर हराना साहब ने बड़े म रो का स्वागत किया । वहां से लौटने पर, मॅगसिर सुदि ७ ( १६ दिसम्बर ) को, आप कलकत्ते गए । वहीं पर पौष बदि ६ ( ई० स० १९१० की १ जनवरी ) को आप जी. सी. एस. आइ. की उपाधि से भूषित किए गए और आप की सलामी की तोपें १७ से १२ कर दी गई । इस खुशी के अवसर पर दरबार की तरफ़ मे बहुतसी वस्तुओं पर से चुंगी उठादी गई और बहुतसी वस्तुओं पर की चुंगी घटादी गई । इससे व्यापार में अच्छी सुविधा हो गई । इसी समय मुंशी हरनामदास के अपनी गवर्नमेंट की नौकरी पर लौट जाने से, पण्डित सुखदेवप्रसाद काक मिनिस्टर और राओ साहब लक्ष्मणदास सपट महकमे खास का ऐसिस्टैंट और जुडीशल-सैक्रेटरी बनाया गया । ___ पौष वदि ३० ( ११ जनवरी ) को महाराजा साहब कलकत्ते से लौटे और फागुन वदि ३० (११ मार्च ) को गिरदीकोट नामक पुरानी नाज की मंडी में "सरदार-मारकेट" और घंटाकर की इमारत का पहला पत्थर रक्खा गया। ____ वि० सं० १९६७ की वैशाख वदि १२ (६ मई ) को बादशाह ऐडवर्ड सप्तम का स्वर्गवास हो गया। इस पर दरबार की तरफ़ से समयानुसार शोक प्रकट किया गया । साथ ही महाराजा साहब ने बुड्ढे और असमर्थ नगर-वासियों की सहायता के लिये २०,००० रुपया सालाना मंजूर कर उन लोगों की 'पेन्शन्' का प्रबन्ध किया और इस मद का नाम 'ऐडवर्ड-रिलीफ़-फन्ड' रक्खा । इसके अलावा आपने अजमेर में बनाई जाने वाली बादशाह की यादगार ( ऐडवर्ड-मैमोरियल ) के लिये १०,००० रुपया और समग्र भारतीय-यादगार के लिये एक अच्छी रकम दी। १. जोधपुर दरबार की सेवा के उपलक्ष में इसी समय यह 'राप्रो बहादुर' बनाया गया था। २. उस अवसर पर फतैसागर तालाव पर आशौच स्नान (पानीवाड़ा) किया गया, शोक सूचक ६८ तोपें (मिनटगन) दागी गई, नगर में नाच और गान बंद किया गया और कचहरी में १२ दिन की छुट्टी की गई । साथ ही तीन दिन तक बाज़ार, सुबह शाम दागी जाने वाली तोपें और किले पर की नौबत बंद रही । वि० सं० १९६७ की वैशाख सुदि १२ ( २० मई ) को बादशाह ऐडवर्ड सप्तम की अन्त्येष्टि ( Funeral ) का दिन होने से उस दिन फिर कचहरी की छुट्टी की गई और शोक सूचक ६८ तोपें ( मिनटगन) चलाई गई। ५१३ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास उपर्युक्त चंदों के अलावा दरबार की तरफ़ से, लॉर्ड मिंटो की यादगार में, मेयो कॉलेज ( अजमेर ) के चारों ओर के स्थानों को सुधारने के लिये एक लाख रुपया समग्र भारत की तरफ़ से इलाहाबाद में लॉर्ड मिंटो की यादगार बनाने के लिये दस हजार रुपया और कलकत्ते में घोड़े पर सवार लॉर्ड मिंटो की मूर्ति स्थापन करने के लिये पांच हजार रुपया दिया गया। ___ वैशाख सुदि १ (१० मई) को सम्राट् जार्ज पंचम गद्दी पर बैटे । इसपर दरबार की तरफ़ से भी अवसर के अनुसार खुशी मनाई गई और किले से १०१ तोपें दागी जाने के अलावा जेल में के प्रत्येक कैदी की कैद की अवधि कम कर दी गई। वि० सं० १९६७ के ज्येष्ठ ( ई० स० १९१० के जून ) में बंगाल एशियाटिक सोसाइटी की प्रार्थना पर, राज्य की तरफ़ से 'डिंगल'-भाषा की कविता आदि का संग्रह करने के लिये, 'बार्डिक रिसर्च कमेटी' बनाई गई । पौष (ई० स० १९११ की जनवरी ) में आसोप-ठाकुर चैनसिंह को 'राओ बहादुर' की उपाधि मिली । वि० सं० १९६७ के फागुन (ई० स० १६११ की फ़रवरी) में महाराजा साहब मेरठ गएँ, परन्तु वहां से दिल्ली आते हुए मार्ग में सरदी लगजाने से आपको ज्वर आगया । इस पर आप अजमेर होते हुए जोधपुर लौट आए । यहां पर बहुत कुछ इलाज करने पर भी आपकी तबीअत बिगड़ती गई और वि० सं० १९६७ की १. इस वर्ष की गरमियों में महाराजा साहब कुछ दिनों तक आबू पहाड़ पर रहे और फिर आपने प्रजा की दशा का निरीक्षण करने के लिये जसवन्तपुरा, जालोर, सिवाना, देसूरी, पाली और मालानी आदि प्रान्तों का दौरा किया । २. इस वर्ष के मँगसिर ( नवम्बर ) में नाबालिगी के महकमे का काम पण्डित धर्मनारायण काक को सौंपा गया। वि० सं० १९६७ (ई० स० १९१० ) में महाराजा साहब बंगलोर, कलकत्ता, मेरठ, इलाहा बाद और लखनउ गए। ३. इसी वर्ष की फागुन सुदि १० (१० मार्च ) को मारवाड़ में चौथी बार मनुष्य-गणना की गई । इसवार यह काम सेठ फीरोज़शाह कोठावाला की निगरानी में हुआ और मनुष्यों की संख्या २०,५७,५५३ हुई । ५१४ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाराजा सरदारसिंहजी चैत्र वदि ५ (ई० स० १९११ की २० मार्च ) को ३१ वर्ष की अवस्था में ही महाराजा सरदारसिंहजी का स्वर्गवास होगया । आपके तीन पुत्र थेः-१ सुमेरसिंहजी, २ उम्मैदसिंहजी और ३ अजितसिंहजी। यद्यपि महाराजा सरदारसिंहजी ने केवल १३ वर्ष ही राज्य किया था, तथापि आपके राज्य-काल में मारवाड़ की बराबर उन्नति होती रही । जुरायम-पेशा कौमों के अधिकाधिक खेती का काम अपनाने और पुलिस के प्रबन्ध में उन्नति होजाने से ठगी और डकैती में कमी, कानून कायदों की पाबन्दी और न्यायालयों की उन्नति होने से न्याय की प्राप्ति में सुविधा और बहुतसी वस्तुओं पर की चुंगी उठजाने और बहुतसी पर की कम होजाने से व्यापार में उन्नति होगई। इसी प्रकार खालसे (राज्य) के गांवों की हद-बंदी होजाने और वहां पर बीघोड़ी (नियत-हासिल ) लेने की प्रथा जारी होजाने से राज्य की आय में वृद्धि और काश्तकारों को आसानी हो गई । इसी के साथ जंगलात के प्रबन्ध में भी सुधार किया गया । प्रजा की सुविधा के लिये डाकखानों, शफ़ाखानों, स्कूलों, रेल्वे और सड़कों का विस्तार हुआ । नए बांध बंधवाए १. इस अवसर पर ईडर, बूंदी, जामनगर, किशनगढ़, पालनपुर, रतलाम, अलवर, उदयपुर, बीकानेर और झालावाड़ के नरेशों आदि ने और शहापुरा और दांता के राज-कुमारों ने यहां आकर अपना शोक प्रकट किया; तथा कश्मीर, बड़ोदा, ग्वालियर, जयपुर, नाभा और मिन्द के राजाओं ने अपने प्रतिनिधि भेज समवेदना प्रकट की। २. महाराज के जी. सी. एस. आइ. होने की खुशी में २४ हज़ार रुपये सालाना की चुंगी माफ की गई थी। ३. उस समय मारवाड़ में ८६ डाकखाने थे। ४. उस समय मारवाड़ में २३ शफाखाने थे। ५. उस समय मारवाड़ में १ बी. ए. तक का कॉलेज, १ हाई स्कूल, १६ वर्नाक्यूलर मिडल स्कूल, ४४ एंग्लो वर्नाक्यूलर और वर्नाक्यूलर स्कूल, एक लड़कियों का स्कूल, १ राजपूत नोबल्स स्कूल, १ संस्कृत स्कूल, १ नौर्मल स्कूल और १ बिज़नेस क्लास था। इनके अलावा २५ ख़ानगी स्कूलों को भी राज्य से सहायता दी जाती थी । उस समय इस महकमे का सालाना खर्च ७६,६६८ रुपये था। ६. महाराजा सरदारसिंहजी के समय रेल्वे-लाइन में १३५ मील का विस्तार हुआ । इससे यहां की रेल्वे लाइन की कुल लंबाई ५२५ मील हो गई । इसी में पीपाड़ से भावी तक की २० मील लंबी एक लाइट ( छोटी ) रेल्वे लाइन भी थी । उस समय तक जोधपुर की रेल्वे पर जोधपुर दरबार का १,४८,५४,६३० रुपया लग चुका था। ७. सरदार-समंद (ई० स० १८६६), ऐडवर्ड-समंद (ई० स. १६०० ) और हेमावास (कार्य का प्रारम्भ )। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास गए । राजकीय-म्युनिसिपैलिटी की तरफ़ से नगर में पत्थर की सड़कें बंधवा कर उन पर रौशनी का प्रबन्ध किया गया । इस प्रकार प्रजा की सुविधा और राज्य की आय बढ़ाने के बहुत से उपयोगी काम हुए । इससे राज्य की वार्षिक आय ८०,७६,०१५ रुपये तक पहुँच गई और राज्य पर का सारा कैर्ज़ देदेने के बाद २,८१,६१,१३५ रुपया खजाने में जमा होगया । 1 इन महाराजा ने अपने पिता बड़े महाराजा जसवंतसिंहजी (द्वितीय) के स्मारक में जो संगमरमर का विशाल भवन बनवाना प्रारम्भ किया था, उसमें २,८४,६७८ रुपये लगे थे । आपने कलकत्ते के विक्टोरिया मेमोरियल के लिये एक लाख रुपये दिए थे और इसके अलावा उसके लिये जानेवाले मकराने के पत्थर ( संगमरमर ) पर की चुंगी भी माफ़ करदी थी। इसी प्रकार अजमेर के मेयो कॉलेज को एक लाख रुपये और 'ऐडवर्ड मैमोरियल' को दस हजार रुपये दिए थे । महाराजा सरदारसिंहजी सरल-स्वभाव, मधुरभाषी, दयालु और आडम्बर-शून्य थे । इसी से प्रत्येक व्यक्ति आपके सामने पहुँच कर अपना कष्ट सुना सकता था । परन्तु कभी-कभी आपके मुंहलगे लोग आपकी सरल - प्रकृति और दयालुता का अनुचित फायदा उठाने से भी नहीं चूकते थे । आपने वि० सं० १९५८ ( ई० स० १९०१ ) में स्वास्थ्य-सुधार के लिये यूरोप की यात्रा की थी और वि० सं० १९६३ और १९६४ ( ई० स० १९०६ और १. सड़कों पर की साधारण रौशनी के अलावा नगर के ख़ास ख़ास स्थानों पर 'क्रिट्सन लैप' लगाए गए थे । 'टैलीफोन' का प्रचार भी जोधपुर में पहले पहल आपके समय ही हुआ था । २. आपके समय रेल्वे के लिये साढे पच्चीस लाख रुपये माइसोर दरबार से और अकाल पीड़ितों की सहायता के लिये छत्तीस लाख रुपये गवर्नमेंट से कर्ज लिए गए थे । ३. आपके समय जब भारत - गवर्नमैंट के पुरातत्व विभाग ने मारवाड़ की प्राचीन राजधानी मंडोर के किले में खुदवाई शुरू की, तब उसका सारा खर्च जोधपुर दरबार की तरफ से दिया गया था । परंतु वहां पर किसी उपयोगी वस्तु के प्राप्त न होने से, अन्त खुदवाई बंद करदी गई | वह Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ५१६ www.umaragyanbhandar.com Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाराजा सरदारसिंहजी १९०७) में गले में गांठे निकल आने से कईवार शल्य-चिकित्सा भी करवाई थी। आपको घुड़दौड़, सूअर के शिकार, पोलो और क्रिकेट का बड़ा शौक था, महाराजा साहब के इस शौक के कारण ही उस समय जोधपुर पोलो का घर कहाता था। एकवार आपने पूना में 'पोलो चैलेंज कप' भी जीता था। इसी प्रकार जोधपुर की 'किकैट की टीम ने भी कई खेलों में विजय प्राप्त की थी । यहां के रिसाले ने चीन के युद्ध में गवर्नमेंट की अच्छी सहायता की थी। इसी से भारत-गवर्नमैंट ने उसे अपने झंडे पर "चाइना १९००" लिखने का सम्मान प्रदान कर चीन से छीनी हुई ४ तोपें भेट दी थीं' । १. इसके लिये आप को इन्दौर भी जाना पड़ा था। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास ३६. महाराजा सुमेरसिंहजी यह महाराजा सरदारसिंहजी के ज्येष्ठ पुत्र थे । इनका जन्म वि० सं० १९५४ की माघ वदि ६ (ई० स० १८९८ की १४ जनवरी) को हुआ था । पिता के स्वर्गवास के बाद, वि० सं० १९६८ की चैत्र सुदि ७ (ई० स० १९११ की ५ अप्रेल ) को, आप जोधपुर की गद्दी पर बैठे' । परन्तु उस समय आप की अवस्था करीब १३ वर्ष की थी। इससे राज्य-प्रबन्ध के लिये 'रीसी-काउन्सिल' स्थापित करना निश्चित हुआ । यह देख महाराजा प्रतापसिंहजी ने जोधपुर-राज्य के रीजेंट (अभिभावक ) का पद ग्रहण करने की इच्छा प्रकट की । परन्तु गवर्नमेंट ने एक ही व्यक्ति को दो रियासतों का प्रबन्ध सौंपना स्वीकार न किया । इस पर महाराजा प्रतापसिंहजी ने ईडर-राज्य का सम्पूर्ण अधिकार अपने दत्तक-पुत्र महाराजा १. इस अवसर पर मामू के रिश्ते से बूंदी-नरेश, छोटे भाई के रिश्ते से किशनगढ़-नरेश और __ अन्य कई राज्यों के प्रतिनिधि भी उपस्थित हुए थे। राज-तिलक के पूर्व बूंदी-नरेश ने, मांगलिक कार्य प्रारम्भ करने के लिये, अपने हाथों से महाराजा के मस्तक पर केसर के रंग का साफा बांधा । इसके बाद महाराजा सुमेरसिंहजी (किले में की) भंगार-चौकी पर विराजमान हुए । राज-तिलक का कार्य पूर्ण होने पर किले से १२५ तोपों की सलामी दागी गई । इसके बाद बूंदी और किशनगढ़ के नरेशों के निछावर कर लेने पर राज्य के सरदारों और मुत्सदियों ने नज़रें पेश की । इस कार्य से निपट कर जब नवाभिषिक्त महाराजा वहां से उठे, तब फिर १५ तोपों की सलामी दी गई । (प्रचलित-प्रथानुसार इनमें की १४ तोपें महाराजा के उस समय १४ वें वर्ष में होने की द्योतक और १ तोप अगले वर्ष की मंगल-कामनार्थ थी।) वहां से आप दौलतखाने में जाकर भारत-गवर्नमेंट के प्रतिनिधि ( रैजीडैन्ट ) से मिले । वहीं पर उस ने आपको भारत-गवर्नमेंट की तरफ से समयोचित बधाई दी । इसके बाद नवाभिषिक्त-नरेश ने किले में स्थित चामुण्डा आदि के मन्दिरों में जाकर, अपने पूर्वजों द्वारा स्थापित, देवी देवताओं के दर्शन किए । इस अवसर पर फिर ११ तोपों की सलामी दी गई । अन्त में प्रापने ज़नाने महलों में जाकर अपनी प्रपितामहियों, पितामहियों और माताओं के सामने नज़रें पेश कीं। ५१८ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाराजा सुमेरसिंहजी दौलतसिंहजी को देकर अपने जीतेजी ही उन्हें ईडर की गद्दी पर बिठा दिया और स्वयं जोधपुर आकर यहां के रीजेंट ( अभिभावक ) का पद ग्रहण किया । ज्येष्ठ वदि १२ (२५ मई ) को महाराजा सुमेरसिंहजी विद्याध्ययनार्थ इंगलैंड के लिये रवाना हुए । इस यात्रा में आपके साथ आपका निरीक्षक ( गार्जियन) कैप्टिन् ए. डी. स्ट्रॉंग ( A. D. Strong ) और ठाकुर धौंकलसिंह थे । आपका जहाज ज्येष्ठ वदि १४ (२७ मई) को बंबई से रवाना हुआ था । उसी जहाज़ से महाराजा सर प्रतापसिंहजी भी, जो सम्राट् जॉर्ज पंचम के ए. डी. सी. थे, उनके राज-तिलकोत्सव में सम्मिलित होने को इंगलैंड गए । यह उत्सव आषाढ वदि ११ ( २२ जून ) को हुआ था। इसके समाप्त होने पर महाराजा सुमेरसिंहजी वहीं रहकर वैलिंग्टन कॉलेज में विद्याध्ययन करने लगे और महाराजा प्रतापसिंहजी सावन वदि ३ ( १४ जुलाई) को बंबई लौट आएँ । इसके बाद उन्होंने, वहीं से ईडर जाकर, सावन वदि १० (२१ जुलाई ) को, अपने दत्तक पुत्र महाराजा दौलतसिंहजी का राज्याभिषेक किया । इस प्रकार वहां के कार्य से निपट कर आप तीसरे दिन जोधपुर चले आए और यहां के राज्य - प्रबन्ध का निरीक्षण करने लगे । १. यह पद आपने वि० सं० १६६८ की जेष्ठ वदि १० ( ई० स० १६११ की २३ मई ) को ग्रहण किया था । आपकी अध्यक्षता में जो 'रिजैंसी काउंसिल' बनाई गई थी उसके Aai ( सभासदों ) आदि के नाम आगे दिए जाते हैं । (१) महाराजा प्रतापसिंहजी - रार्जेंट और प्रेसीडेंट (२) महाराज ज़ालिमसिंहजी - सीनियर मैम्बर और वाइस प्रेसीडेंट (३) महाराज फ़तैसिंहजी - मिलिटरी-मैम्बर (४) राओ बहादुर मंगलसिंह ( पौकरन - ठाकुर ) - पब्लिक वर्क्स मैंबर (५) मिस्टर जी. बी. गॉइडर ( G B Goyder ) फाइनेन्स - मैंबर (६) राम बहादुर मुंशी हरनामदास - जुडीशल- मैंबर (७) पण्डित श्यामबिहारी मिश्र रिवैन्यू - मैम्बर, ( लक्ष्मणदास सपट सैक्रेटरी ) २. वहीं पर ऑक्सफोर्ड यूनीवर्सिटी ने महाराजा प्रतापसिंहजी को डी. सी. एल. की ( ऑनररी ) उपाधि से भूषित किया । ३. जोधपुर में भी इस अवसर पर खूब उत्सब मनाया गया और १०१ तोपों की सलामी दाग़ी गई । इसी अवसर पर महाराजा प्रतापसिंहजी को जोधपुर-राज्य के रीर्जेंट रहने तक 'महाराजा बहादुर' की उपाधि और व्यक्तिगत रूप से १७ तोपों की सलामी की इज्ज़त दी गई । ४. आपकी अनुपस्थिति में आपके कार्य की देख-भाल महाराज ज़ालिमसिंहजी करते रहे थे । ५१६ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास पौष वदि ७ ( १२ दिमाबर ) को सम्राट जॉर्ज पंचम ने सम्राज्ञी के साथ दिल्ली आकर वहां पर अपना राजतिलको सव किया । उस समय भारत-गवर्नमेंट द्वारा बुलाए जाने के कारण महाराजा सुमेरसिंहजी भी, उस। उत्सव में सम्मिलित होने को, यहां चले आए । दिल्ली पहुंचने पर गवनमैंट की तरफ़ से आपका यथोचित सत्कार किया गया और फिर सम्राट ने दरबार के समय के लिये आपको अपना 'पेज ऑफ ऑनर' (सहचर ) बनाया । पौष वदि । (१४ दिसम्बर ) को "फौजी-रिव्यू' के समय किशोरवयस्क-महाराजा समेरसिंहजी ने अपने 'इम्पीरियल-सर्विस-रिसाले' का संचालन इस खूबी से किया कि देखने वाले दंग रह गए । दिल्ली-दरबार से लौट कर कुछ दिन आप जोधपुर में रहे और फिर पौष सुदि १ (२१ दिसम्बर ) को विद्याध्ययन के लिये इंगलैंड चले गए १. इस अवसर पर भी जोधपुर में बड़ा उत्सव मनाया गया। १०१ तोपों की सलामी दागी गई, कुछ जागीरदारों की चढ़ी हुई 'चाकरी' का चौथा हिस्सा छोड़ दिया गया, आम लोगों में निकलने वाले राज्य के कर्ज में से दो लाख रुपये माफ़ किए गए, जागीरदारों को अपना कर्ज अदा करने के लिये राज्य से कम सूद पर रुपया देने की घोषणा की गई, अंधों, लंगड़ों और अपाहिजों को अन्न और वस्त्र दिए गए, ५० कैदी छोड़े गए, बहुत से कैदियों की सजाएं कम की गई और शहर और गांवों में सभाएं कर शाही फरमान सुनाया गया । इसी अवसर पर महाराजा सुमेरसिंहजी को दिल्ली दरबार के सम्बन्ध का सोने का पदक, महाराजा प्रतापसिंहजी को जी. सी. वी. प्रो. का खिताब और सोने का पदक, १६ राजकर्मचारियों और सरदारों तथा २६ सैनिकों को चांदी के पदक, दो अन्य कर्मचारियों को खास तमगे और दो कर्मचारियों को पट्टियां ( Clasps ) मिलीं । इनके अलावा बेड़े के ठाकुर शिवनाथसिंह को 'राम्रो बहादुर' का और पण्डित श्यामबिहारी मिश्र को 'राय साहब' का खिताब मिला। २. पौष बदि २ (७ दिसम्बर ) को महाराजा सुमेरसिंहजी सम्राट् से मिले और पौष वदि ६ (११ दिसम्बर ) को वायसराय ने आकर मारवाड़-राज्य के अभिभावक (रीजैट) महाराजा प्रतापसिंहजी से मुलाकात की। ३. इस विषय में माननीय ( Hon' ble ) John Fortescu ने लिखा था "बादशाह के पास पहुँचते ही महाराजा सुमेरसिंहजी का घोड़ा भड़क गया । परन्तु आपने सैनिक नियमानुसार दृष्टि को सम्राट की तरफ से विना हटाए ही उसे तत्काल काबू में कर अपना उत्तरदायित्व पूर्ण किया ।" ४. इस वार की यात्रा में ठाकुर धौंकलसिंह की एवज़ महाराज-कुमार गुमानसिंहजी आपके साथ थे । फागुन वदि ६ (ई० स० १६१२ की ८ फरवरी ) को जोधपुर में महाराजा ५२० Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाराजा सुमेरसिंहजी वि० सं० १९६९ के आश्विन (ई० स० १९१२ के अक्टोबर ) में जोधपुर में 'चीफ़ कोर्ट' की स्थापना का प्रबन्ध किया गया और इसका पहला 'चीफ़ जज' मिस्टर ए. डी. सी. बार ( A. D. C. Barr ), जो अमरावती से बुलवाया गया था, नियुक्त हुआ । इस प्रकार 'चीफ़ कोर्ट' की स्थापना होजाने से 'अपील' और 'तामील' के महकमे उठादिए गए । इसके बाद पौष (ई० स० १९१३ की जनवरी ) में अदालतों में वकालत करनेवाले वकीलों की परीक्षा का प्रबन्ध किया गया । माघ वदि १३ (३ फरवरी) को दरभंगा-नरेश और पंडित मदनमोहन मालवीय, 'हिन्दू-यूनीवर्सिटी' के लिये चंदा जमा करने को, जोधपुर आए । इस पर जोधपुरदरबार की तरफ़ से दो लाख रुपये नकद और चौबीस हजार रुपये सालाना शिल्प-कला विज्ञान की शिक्षा (Hardinge Chair of Technology) के लिये देना निश्चित किया गया। सुमेरसिंहजी के नाम पर 'सुमेर-पुष्टिकर-स्कूल' की स्थापना की गई। उस समय महाराजा साहब के इंगलैंड में होने से उसका उद्घाटन राज्य के रीजेंट महाराजा प्रतापसिंहजी ने किया। १. वि० सं० १९६६ की चैत्र सुदि १४ ( ई० स० १६१२ की ३१ मार्च ) को मुंशी हरनामदास वापस लौट गया। २. यह अमरावती में 'सैशन जज था', और गवर्नमेंट से मांग कर जोधपुर में नियत किया गया था। कुछ दिन बाद ही यह काउंसिल का विशिष्ट ( additional ) मैंबर भी बनादिया गया। 'चीफ कोर्ट' के अन्य दो जजों के स्थान पर रीयां-ठाकुर विजैसिंह और लक्ष्मणदास सपट नियुक्त किए गए । बाबू उमरावसिंह काउंसिल का सैक्रेटरी बनाया गया। ३. प्रथम श्रेणी में पास होनेवाले वकीलों को मारवाड़-राज्य की प्रत्येक अदालत में और द्वितीय श्रेणी में पास होने वालों को चीफ कोर्ट के सिवा अन्य अदालतों में वकालत करने का अधिकार दिया गया; तथा उनका मेहनताना भी तय कर दिया गया । हाकिमों के काम की देख भाल के लिये ४ सुपरिन्टेन्डेन्ट नियत किए गए और न्याय-विभाग के प्रत्येक अधिकारी के अधिकार तय कर दिए गए । इसी प्रकार 'मारवाड़-पीनलकोड' आदि की रचना का प्रबन्ध भी किया गया । इसी वर्ष सम्राट के जन्म दिन पर ठाकुर गुमानसिंह खीची को 'राओ बहादुर' की और (जोधपुर रेल्वे के) बाबू छोटमल रावत को 'राय साहब' की उपाधियां मिलीं। ४. आपका नाम रावणेश्वरजी था। ५. इसके अलावा जनता ने भी इस काम में चन्दे से अच्छी सहायता दी थी। इस वर्ष के आश्विन ( ई० स० १९१२ के अक्टोबर ) में किशनगढ़-नरेश, मैंगसिर ( दिसम्बर ) में बीकानेर-नरेश, माघ (फरवरी १९१३ ) में सैलाना-नरेश और जयसलमेर-नरेशों ने जोधपुर पाकर दरबार का आतिथ्य स्वीकार किया । ५२१ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास मिस्टर गॉइडर (G. B. Goyder ) के गवर्नमेंट की नौकरी पर लौट जाने के कारण, वि० सं० १९७० के आषाढ (ई० स० १९१३ की जुलाई ) में, मेजर एस. बी. ए. पैटर्सन (S. B. A. Patterson ) 'फाइनैंस मैंबर' नियुक्त हुआ । __पहले केवल जागीरदारों से ही 'हुक्मनामा ' लिया जाता था, परन्तु अब से महाराजा-रीजेंट ( सर प्रतापसिंहजी) की आज्ञा से राज-कर्मचारियों से भी (जिन्हें राज्य से गाँव मिले हुए थे) वह लिया जाने लगा। पौष सुदि १४ ( ई० स० १९१४ की ११ जनवरी) को महाराजा सुमेरसिंहजी इंगलैंड से लौट आए, और यहां पर राज्य कार्य का अनुभव प्राप्त करने लगे । आप जिस समय वैलिंग्टन कॉलिज में विद्याभ्यास करते थे, उस समय स्वयं सम्राट भी आपकी उन्नति में विशेष अनुराग प्रदर्शित करते रहते थे। ___माघ वदि ६ (१७ जनवरी ) को महाराजा साहब की सालगिरह के उपलक्ष्य में नमक पर का कर आधा करदिया, फौजदारी मुक़दमों की बारह वर्ष से ऊपर की बकार्यों माफ़ करदी गई और राजपूतों के सिवा अन्य जातियों पर से मृतक के पीछे वृहद्भोज ( मौसर ) आदि करने की मनाई उठादी गई । माघ सुदि १२ (७ फरवरी) को उस समय का वायसराय लॉर्ड हार्डिज जोधपुर आया । इस पर दरबार की तरफ़ से उसका यथोचित सत्कार किया गया । दूसरे दिन वायसराय के हाथ से, जोधपुर से तीन कोस पश्चिम चौपासनी नामक स्थान में बने, नए 'राजपूत-हाई स्कूल' का उद्घाटन करवाया गया । तीसरे दिन स्वयं महाराजा सुमेरसिंहजी की अधिनायकता में सरदार-रिसाले की कवायद हुई । इस अवसर पर की महाराजा की फुर्ती और कुशलता को देख वायसराय ने बड़ी प्रसन्नता प्रकट की। १. किसी जागीरदार के मरने पर जब उसका उत्तराधिकारी जागीर का मालिक होता है, तब उसकी जागीर की एक वर्ष की प्राय राज्य में ली जाती है । इसी को 'हुक्मनामा' कहते हैं। २. अंगरेज़ों के इसी नव-वर्ष के अवसर पर गोराउ-ठाकुर धौकलसिंह को 'राप्रो बहादुर' की उपाधि मिली। ३. पहले नमक पर दो रुपये फी मन कर लगता था। ४. यह रकम १,२८,२३७ रुपये की थी। ५. इस स्कूल के बनाने में साढ़े चार लाख से अधिक रुपये लगे थे और इसका पहला प्रिंसिपल पार० बी० वॉनवर्ट (R. B. Van Wart ) नियत किया गया था। ५२२ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाराजा सुमरसिंहजी वि० सं० १९७१ की वैशाख सुदि १ ( ४ मई) को गरमी की अधिकता के कारण महाराजा सुमेरसिंहजी आबू चले गए । इसी वर्ष की श्रावण सुदि १४ ( ई० स० १९१४ की ४ अगस्त) को जैसे ही जर्मनी और इंगलैंड के बीच युद्ध छिड़ने की सूचना मिली, वैसे ही नवयुवक महाराजा सुमेरसिंहजी और उनके पितामह ( महाराजा जसवंतसिंहजी के भ्राता ) वृद्ध महाराजा प्रतापसिंहजी ने, जोधपुर के रिसाले को साथ लेकर, युद्धस्थल में जाने और ब्रिटिशगवर्नमैंट की सहायता करने की इच्छा प्रकट की । इसके बाद गवर्नमैंट की स्वीकृति आजाने पर भादों वदि ९ ( १५ अगस्त) को जोधपुर में एक दरबार किया गया । इसमें राज्य के सरदार, मुत्सद्दी और कर्मचारी आदि सब ही उपस्थित हुए और इसके प्रधान का आसन स्वयं महाराजा साहब ने ग्रहण किया । इसी समय राज्य की तरफ़ से युद्ध - पीड़ितों की सहायता के लिये एक लाख रुपये दिए जाने की घोषणा की गई और अन्य लोगों से सहायता का चंदा एकत्रित करने के लिये एक ' कमेटी ' बनाई गई । जिस समय लोगों को अपने नवयुवक - महाराजा और उनके वृद्ध पितामह के युद्धस्थल में जाने की सूचना मिली, उस समय वे प्रेम से विह्वल हो गए । C भादों सुदि ९, १० र ११ (२६, ३० र ३१ अगस्त) को, ख़ास (स्पेशल ) ट्रेनों द्वारा, सरदार-रिसाला युद्ध के लिये रवाना हुआ और आश्विन वदि ८ (१२ सितंबर) को महाराजा सुमेरसिंहजी और महाराजा प्रतापसिंहजी भी रणक्षेत्र में सम्मिलित होने के लिये चल पड़े । इसके बाद लंदन पहुँचने पर आप दोनों सम्राट् जॉर्ज पंचम से मिले । सम्राट् ने नव-युवक महाराजा सुमेरसिंहजी की वीरता और उत्साह से प्रसन्न १. इंगलैंड से लौटने पर महाराजा सुमेरसिंहजी का विचार सैनिक शिक्षा प्राप्ति के लिये देहरादून जाकर 'कैडिट-कोर' में सम्मिलित होने का था, परंतु इस यूरोपीय महायुद्ध के छिड़ जाने से वह विचार स्थगित करना पड़ा । २. महाराजा प्रतापसिंहजी के युद्धस्थल में चले जाने से यहां की 'रीजेंसी काउंसिल' के अध्यक्ष का कार्य पश्चिमी राजपूताने की रियासतों के रैजीडेंट कर्नल सी. जे. विंढम ( O. J. Windham ) को सौंपा गया | इस वर्ष 'रीजेंसी काउंसिल' ने 'गांवाई खत' ( सारे गांव वालों पर लागू होने वाले कर्ज़ के दस्तावेज़ों) की प्रथा पर प्रतिबंध लगा दिया । ३. इस यात्रा में बेड़ा-कुंवर पृथ्वीसिंह, खीची गुमानसिंह, जोधा धौंकलसिंह और ठाकुर दलपतसिंह (देवली ) महाराजा साहब के साथ थे । ५२३ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास हो, कार्तिक वदि ११ (१५ अक्टोबर ) को, आपको ब्रिटिश-भारत की सेना का ऑनररी (अवैतनिक) लैटिनेंट नियत किया । पहले जागीरदार और कारतकार लोग रुपये की आवश्यकता होने पर जमीन गिरवी (भोगलावे) रख कर कर्ज लेलिया करते थे । परन्तु बाद में एक मुरत रुपया जमा न कर सकने के कारण अक्सर उनके लिये उस जमीन का छुड़वाना असंभव हो जाता था । यह देख कर राज्य ने इस प्रथा की जांच के लिये एक कमेटी नियत करदी । इसने जांच करने के बाद पुराने लेन-देन का फैसला करदिया और आगे के लिये इस प्रथा को उठाकर ऐसे कर्ज की अवधि निश्चित करेंदी । इससे नियत समय के बाद, विना रुपया लौटाए ही, ऐसी जमीन अपने असली अधिकारी के अधिकार में चली जाने लेंगी। वि० सं० १९७२ की ज्येष्ठ सुदि ५ (ई० स० १६१५ की १७ जून ) को, करीब ६ मास के बाद, महाराजा सुमेरसिंहजी युद्धस्थल से लौट कर बम्बई १. फ्रांस के युद्धस्थल में प्रदर्शित प्रापके उत्साह को देख, वि० सं० १९७१ के माघ (ई० स० १६१५ की जनवरी) में आप तीसरे स्किनर्स रिसाले के अवैतनिक अफसर बना दिए गए । इसी अंगरेज़ी वर्ष ( १९१५) के प्रारंभ में रियां-ठाकुर विजैसिंह को 'रायो बहादुर' की उपाधि मिली। २. भोगलावे में रुपया देनेवाला विना किसी एवज़ाने के गिरवी रक्खे हुए मकान या ज़मीन की आमदनी का उपभोग करता है, और कर्जदार रुपयों का सूद नहीं देता । रहन रक्खी हुई वस्तु का किराया या लगान ही सूद का एवजाना समझा जाता है ३. कर्ज देनेवाले के पास असली रुपये से दुगना रुपया पहुँच जाने पर ज़मीन पर से उसका अधिकार उठा दिए जाने का नियम बनाकर फैसला कर दिया । ४. ऐसे लेन-देन की अवधि अधिक से अधिक २४ वर्ष की करदी गई । इससे कर्ज देनेवाले के नियत समय तक जमीन की प्राय का उपभोग कर लेने पर विना अन्य किसी एवज़ाने के ही वह जमीन असली अधिकारी के अधिकार में जाने लगी। ५. इन्हीं दिनों काउंसिल के रिवेन्यू मैबर पं० श्यामविहारी मिश्र ने १०० रुपये भर के सेर के स्थान में ८० रुपये भर का सेर जारी कर सारे मारवाड़ में एकसा तोन प्रचलित करने का आयोजन किया, परंतु जोधपुर की जनता के विरोध करने के कारण यह विचार स्थगित करना पड़ा । इसीसे इस समय भी मारवाड़ के मिन्न-भिन्न स्थानों में मिन मिन्न मान के सेर प्रचलित हैं और शायद इनसे गांवों के अपढ़ किसानों को असुविधा भी होती है। ५२४ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाराजा सुमेरसिंहजी पहुंचे। उस समय वहां के मारवाड़ी-समाज ने आपके स्वागत में उत्सव करने की अनुमति मांगी । परन्तु आपने, दिखावा पसन्द न होने के कारण, यह बात अस्वीकार करदी । इसके बाद तीसरे दिन आप बम्बई से खाना होकर आबू आएं और वहां से शिमले होकर दुबारा आबू होते हुए, श्रावण बदि ३ (२९ जुलाई) को, जोधपुर पहुंचे। इसके बाद भादों सुदि ८ (१६ सितम्बर ) को आप हवा बदलने के लिये मसूरी गए और कार ( आश्विन ) सुदि ६ ( १४ अक्टोबर) को लौट कर जोधपुर आ गए। वि० सं० १९७२ की आश्विन वदि (ई० स० १९१५ की १ अक्टोबर) को जोधपुर में अजायबघर के साथ ही एक सार्वजनिक पुस्तकालय ( लाइब्रेरी)की स्थापना की गई। १. ज्येष्ठ सुदि १४ (२६ जून ) कोकर्नल सी. जे. विंढम सी. आइ. ई. बनाया गया । भादों वदि ३ (२७ अगस्त) को राज्य की तरफ से पौकरन-कँवर चैनसिंह को, मारवाड़ के सरदारों में पहला एम. ए., एल एल. बी. होने के कारण, सुवर्ण का पदक दिया गया । २. इस युद्ध में टर्की ने जर्मनी का साथ दिया था। इसलिये युद्ध में पकड़े गए कुछ तुर्क कैदी जोधपुर भेज दिए गए। यहां पर वे कुछ दिनों तक तो सेंट्रल-जेल में ही रखे गए, परंतु बाद में उनके लिये मारवाड़-राज्य के सुमेरपुर नामक गांव में स्थान तैयार किया गया और वहां के निवासियों को १,५७,०७६ रुपयों का हरजाना देकर पास ही के ऊंदरी गांव में बसाया गया। यह सुमेरपुर वि० सं० १९६८ की चैत्र वदि १२ (ई. स. १६१२ की १५ मार्च ) को, मारवाड़ और सिरोही राज्यों की सीमा पर के अंदरी गांव के निकट, बसाया गया था। उस समय सिरोही-राज्य के कुछ प्रजाजन वहां के नरेश से नाराज़ होकर मारवाड़ में बसने की आज्ञा चाहते थे । यद्यपि अन्त में सिरोही के महाराव ने उनमें से अधिकांश को समझा-बुझाकर अपने राज्य में ही रख लिया, तथापि कुछ मुखिया लोग और बहुत से कृषक आदि आकर सुमेरपुर में बस गए । परंतु कुछ दिन बाद तुर्क कैदियों के वहां पर रक्खे जाने से उन लोगों को भी वह स्थान खाली कर लौट जाना पड़ा । यद्यपि इससे राज्य की बड़ी हानि हुई, तथापि सम्राट् की सहायता का विचार कर महाराजा ने इसकी कुछ भी परवाह न की। ३. भादों सुदि ३ ( १२ सितम्बर) को दरबार की तरफ से 'सुमेर-पुष्टिकर-स्कूल' की सहा यता के लिये सात हज़ार रुपये दिए गए। ४. अगले वर्ष इसका नाम बदला जाकर महाराजा सुमेरसिंहजी के नाम पर 'सुमेर पब्लिक लाइब्रेरी' कर दिया गया। पहले जोधपुर का अजायबघर 'इंडस्ट्रियल म्यूज़ियम' कहाता या । ई० स० १६१६ में भारत-गवर्नमेंट ने इसे स्वीकृत अजायबघरों की सूची में सम्मिलित करलिया। इसके बाद अगले वर्ष इसका नाम बदला जाकर स्वर्गवासी महाराजा सरदारसिंहजी के नाम पर 'सरदार म्यूज़ियम' रक्खा गया । ५२५ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास इन्हीं दिनों ( कार्तिक बदि २=२५ अक्टोबर को) महाराजा प्रतापसिंहजी भी युद्धस्थल से लौट कर कुछ दिन के लिये जोधपुर चले आए। मँगसिर सुदि १ (७ दिसम्बर) को महाराजा सुमेरसिंहजी, विवाह करने के लिये, जामनगर गए । वहीं पर मँगसिर सुदि ३ ( 6 दिसम्बर ' को आपका विवाह वहां के जाम (नरेश ) रणजीतसिंहजी की बहन से ही । इसके बाद फागुन वदि ८ (ई० स० १९१६ की २६ फ़रवरी) को लॉर्ड हार्डिज ने जोधपुर आकर राज्य का पूर्ण-अधिकार महाराजा सुमेरसिंहजी को सौंप दिया । इस पर महाराजा साहब ने 'रीजैसी काउंसिल' के स्थान पर 'स्टेट काउंसिल' की स्थापना की, और रीजेंसी काउंसिल के मैंबरों को ही उसका मैंबर बना दिया। परंतु इसके साथ ही यह आज्ञा भी जारी कर दी कि वे लोग प्रत्येक मामले को, अपनी राय के साथ, महाराजा साहब की मंजूरी के लिये मेजते रहैं और महाराजा प्रतापसिंहजी, लौट कर युद्ध में जाने तक, इन मामलों पर महाराजा साहब की तरफ से अन्तिम आज्ञा देते हैं । इसके बाद १. उस समय यूरोपीय महा-समर के होने से विवाह के समय विशेष उत्सव नहीं मनाया गया __ था, इसीसे मँगसिर मुदि ७ ( १३ दिसम्बर ) को बरात लौट कर जोधपुर चली आई। वि० सं० १९७३ की आश्विन वदि ६ (ई० स० १६१६ की २० सितम्बर ) को इस महारानी ( जाडेजीजी) के गर्भ से एक कन्या का जन्म हुआ। २. माघ सुदि १ ( ४ फरवरी ) को लॉर्ड हार्डिज ने काशी में हिन्दू-विश्वविद्यालय ( Hindu University ) के भवन की नींव रक्खी । उस समय महाराजा सुमेरसिंहजी और महाराजा प्रतापसिंहजी भी वहां जाकर उस उत्सव में सम्मिलित हुए। ३. इस अवसर पर नगर-वासियों ने रात्रि में अपने-अपने घरों पर रौशनी कर अपना हर्ष प्रकट किया। ४. पौष वदि ११ (ई० स० १९१६ की १ जनवरी) को पण्डित श्यामबिहारी मिश्र को 'राय बहादुर' की उपाधि मिली। ५. आषाढ सुदि ३ (३ जुलाई) को महाराज ज़ालिमसिंहजी ने अपने कार्य से छुट्टी लेली। इस पर सावन सुदि २ (१ अगस्त) से काउंसिल के वाइस प्रेसीडेंट, सीनियर मैंबर, मिलिटरी मेंबर और पी डब्ल्यू. डी. मैंबर के पद उठा दिए गए। सैनिक विभाग का काम पहले महाराजा साहब के मिलिटरी सेक्रेटरी कैटिन जी. आइ. जी. हैन्सन ( G. I. G Hanson ) के ज़िम्मे हुआ और उसके जाने के बाद रोहट-ठाकुर दलपतसिंह महाराजा का मिलिटरी सैक्रेटरी बनाया गया। पी. डब्ल्यू. डी. मैम्बर का काम 'फाइनेस मैंबर' मेजर पैटर्सन ( 8. B. Patteraon ) को सौंपा गया। इसी प्रकार 'चीफ जज' ए. डी. सी. बार ( A. D. C. Barr ) के चैत्र वदि १३ (३१ मार्च ) को छुट्टी पर जाने, और बाद में गवर्नमेंट की सेवा में लौट जाने से वह कार्य नक्ष्मणदास सपट को दिया गया । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाराजा सुमेरसिंहजी जब, चैत्र वदि १३ (३१ मार्च) को, महाराजा प्रतापसिंहजी फिर युद्ध में सम्मिलित होने को चले गए, तब वि० सं० १९७३ की ज्येष्ठ वदि । (२५ मई ) को जामनगर का खान बहादुर महरबानजी पेस्टनजी मुसाहिब आला बनाया गया । कार्तिक सुदि १ (२७ अक्टोबर ) को महाराजा सुमेरसिंहजी नरेन्द्र-मण्डल की सभा ( Chiefs' Conference ) में भाग लेने को दिल्ली गएँ । १. ई० स १९१६ के मार्च में ईडर-नरेश और जुलाई में किशनगढ़-नरेश जोधपुर आए । इसी वर्ष के मार्च में जोधपुर-नरेश स्वयं शिकार के लिये जामनगर गए, परन्तु वहां पर प्रापकी तबीयत खराब होजाने और माजी हाडीजी साहबा का स्वर्गवास होजाने से आप ज्येष्ठ वदि ८ ( २४ मई) को वापस लौटे। महाराजा साहब के साथ अपनी बहन का विवाह-सम्बन्ध होने के कारण जाम साहब भी बहुधा जोधपुर आते रहते थे। २. माघ वदि ६ ( ई० स० १६१७ की १४ जनवरी) को महाराजा सुमेरसिंहजी ने, अपनी वर्ष गांठ के उत्सव पर, इसे पैर में पहनने को सोना, हाथ का कुरब और हाथी सरोपाव दिया। ३. वि० सं० १६७३ की कार्तिक वदि ६ ( ई० स० १६१६ की १७ अक्टोवर ) को महाराजा साहब जामनगर गए और कार्तिक वदि १२ ( २३ अक्टोबर ) को वहां से लौट कर जाम साहब के साथ जोधपुर पाए। उपर्युक्त दिल्ली यात्रा में भी जाम साहब आपके साथ थे। वहां से आप ( महाराजा साहब ) बंबई होते हुए मँगसिर वदि १ (१० नवम्बर ) को जोधपुर पहुँचे । मॅगसिर सुदि ७ ( १ दिसंबर ) को आप एक मास के लिये फिर बंबई गए और पौष सुदि १० ( ई. स. १९१७ की ३ जनवरी) को वहां से लौट कर अपनी राजधानी में आए । __ माघ सुदि १० ( १ फरवरी ) को आप महारानी साहबा के साथ जामनगर और बंबई गए और फागुन सुदि १३ ( ६ मार्च ) को वहां से लौट कर आए । वि० सं० १६७४ की वैशाख सुदि ६ ( २७ अप्रेल ) को श्राप ३ दिन के लिये प्राबू गए थे । कार्तिक वदि ११ (१० नवम्बर ) को आपने उस समय के बंबई के गवर्नर लॉर्ड विलिंग्डन ( Lord Willingdon ) से मारवाड़ जंकशन पर मुलाकात की। उपर्युक्त दिल्ली यात्रा के समय के सिवा पौष सुदि १३ ( ई० स० १९१७ की ६ जनवरी) और चैत्र वदि ४ ( १२ मार्च) को भी जाम साहब जोधपुर पाए थे। इसी प्रकार वि० सं० १६७४ की ज्येष्ठ सुदि ११ ( १ जून ) को अलवर-नरेश ने आकर महाराजा का प्रातिथ्य स्वीकार किया। वि० सं० १९७३ की पौष सुदि ८ ( ई० स० १६१७ की १ जनवरी ) को शाह किशनजान को 'राय साहब' की उपाधि मिली। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास वि० सं० १९७३ की माघ वदि ७ ( ई० स० १९१७ की १५ जनवरी ) को नगर में बिजली के कारखाने का उद्घाटन किया गया। वि० सं० १९७४ की पौष वदि ४ (ई० स० १९१८ की १ जनवरी ) को गवर्नमेंट ने महाराजा साहब की युद्ध में दी हुई सहायताओं के उपलक्ष में आपको के० बी० ई० की उपाधि से भूषित किया । ___ फाल्गुन ( मार्च ) में दीवान बहादुर तिवाड़ी छज्जूराम 'मुसाहिब-आला' बनाया गया। इस वर्ष वर्षा की अधिकता के कारण नगर और गांवों में प्लेग फैल गया। परंतु नये दीवान ने महाराजा की आज्ञा से शहर के बाहर के सरकारी मकानात खुलवा कर नगर-वासियों के लिये रहने का सुभीता कर दिया। इसी प्रकार नियत-भाव से नाज बेचने के लिये दूकानें खुलवा कर नगर में होने वाली मँहगाई दूर की गई और सरकारी रिसाले को नगर में गश्त लगाने की आज्ञा देकर निर्जनघरों की रक्षा का प्रबन्ध किया गया । प्लेग के शान्त होते ही नगर में युद्ध-ज्वर १. पौष सुदि १० ( ई. स. १६१७ की ३ जनवरी) को 'सरदार-इन्फैटी' के 'कमांडिंग ऑफीसर महाराज रत्नसिंहजी का स्वर्गवास होगया। वि० सं० १९७४ की वैशाख वदि ७ ( १४ अप्रेल) को मेजर पैटर्सन (फाइनैस मैंबर ) और ज्येष्ठ वदि ६ ( १५ मई ) को पं० श्यामविहारी मिश्र ( रेवेन्यू मैंबर ) लौट कर गवनमैंट की सेवा में चले गए। २. महाराजा सुमेरसिंहजी ने वि० सं० १६७४ की मँगसिर वदि ३० ( ई० स० १०१७ की १४ दिसम्बर ) और माघ सुदि ८ ( ई० स० १६१८ की १८ फरवरी ) को कलकत्ते की, माघ बदि ७ (ई. स. १६१८ की ३ फरवरी) को दिल्ली की, माघ वदि ३० (११ फरवरी) को उमरकोट की, फागुन सुदि ३ (१५ मार्च) को उटकमंड की और वि• सं० १९७५ की भादों बदि ११ (१ सितम्बर ) को पूना की यात्रा की । वि० सं० १६७४ की आश्विन वदि ३० (ई० स० १९१७ की १६ अक्टोबर ) को टोंक-नवाब के पुत्र साहबजादा फर्रुखमोहम्मद अलीखाँ जोधपुर पाए और करीब २७ दिन यहां रहे। वि० सं० १९७५ की ज्येष्ठ वदि है ( ई० स० १६१८ की ३ जून ) को सम्राट्र की सालगिरह पर बाबू देवीदयाल (सुपरिन्टेंडेंट-आबकारी), बाबू शंकरलाल ( सैक्रेटरी-जोधपुर इंपीरियललांसर्स ) और के. मंजुनाथ भटजी ( सुपरिंटेंडेंट-कस्टम्स ) को 'राय साहब' की उपाधियां मिलीं।। ३. वि. सं. १६७४ की फागुन वदि ५ ( ई. स० १९१८ की ३ मार्च) को महरवानजी पेस्टनजी लौट कर जामनगर चला गया। इस अवसर पर उसको हाथी सरोपाव और पांच हज़ार रुपये इनाम के तौर पर दिए गए। ५२८ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाराजा सुमेरसिंहजी ( इन्फ्लुएंजा ) का प्रकोप हो गया । परन्तु शीघ्र ही दरबार की तरफ़ से एक 'रिलीफ कमेटी' बनादी जाने से गरीब लोगों को हर तरह का सुभीता हो गया । यह कमेटी गरीब बीमारों के लिये दवा के साथ ही खाने-पीने का प्रबन्ध भी कर देती थी । वि० सं० १९७५ की वैशाख सुदि १३ ( ई० स० १९१८ की २३ मई ) को महाराजा सुमेरसिंहजी का दूसरा विवाह, सोहिन्तरा ( पचपदरा परगने ) के चौहानठाकुर के छोटे भाई, सूरजमल की कन्या से हुआ । इसके उपलक्ष्य में राज्य कर्मचारियों और प्रतिष्ठित नगरवासियों को निमंत्रित कर बड़ा भोज और जलसा किया गया । इन दिनों जोधपुर का सरदार - रिसाला, मिस्र ( Egypt) के रणस्थल में, तुर्कों से लड़ रहा था । वहीं पर वि० सं १९७५ के आश्विन ( सितंबर) में, हैफा के युद्ध में उक्त रिसाले का मेजर देवली - ठाकुर दलपतसिंह सम्मुख रण में मारा गय 1 १. वि० सं० १६७४ की फागुन सुदि ३ ( ई० स० १६१८ की १५ मार्च ) को जिस समय जोधपुर का रिसाला पश्चिमी युद्ध क्षेत्र से मिस्र (Egypt) भेजा गया, उस समय स्वयं सम्राट् ने उसके पश्चिमी युद्ध क्षेत्र में किए कार्यों की प्रशंसा की थी । वि० सं० १६७४ की चैत्र वदि २ ( २६ मार्च) को यह रिसाला मिस्र पहुँचा और वि० सं० १६७५ की आषाढ सुदि ६ ( ई० स० १६१८ की १४ जुलाई) को इसने जॉर्डन की घाटी ( Jordan Valley ) के हमले में भाग लेकर शत्रु को खूब क्षतिग्रस्त किया । इसके बाद वि० सं० १६७५ की आश्विन वदि ३ ( ई० स० १६१८ की २३ सितम्बर ) को इस रिसाले ने किलेबंदी से सुरक्षित हैफा नगर पर धावा कर उस पर अधिकार कर लिया । यद्यपि उक्त स्थान पर नगर और रिसाले के बीच नदी की बाधा थी और शत्रु अपने सुदृढ़ मोरचों में बैठ भीषण गोलावृष्टि कर रहा था, तथापि रिसाले के वीरों ने इन विघ्न-बाधाओं को नष्ट कर अपने भाल से बहुत 'से तुर्कों को मार डाला और ७०० तुर्क सिपाहियों को क़ैद कर लिया । इसी धावे में उपर्युक्त मेजर ठाकुर दलपतसिंह M. C. वीरता से लड़ कर मारा गया था । कार्तिक वदि ७ ( ई० स० १६१८ की २६ अक्टोबर ) को इस रिसाले ने अलप्पौ ( Aleppo ) के उत्तर-पश्चिम वाले धावे में भी भाग लिया । युद्ध में प्रदर्शित वीरता के कारण इस रिसाले के वीरों को ६३ पदक आदि मिले थे । इनके अलावा इस रिसाले के अनेक अफसरों के नाम सैनिक- खरीत ( despatches) में भी उद्धृत किए गए थे । महाराजा प्रतापसिंहजी की वीरता से प्रसन्न होकर फ्रांस के प्रेसीडेंट ने आपको 'लीजियन डी' ऑॉनर ग्रांड ऑफीसर, ( Legion d'honneur grand officer ) का और मिस्र ( Egypt ) के सुलतान ने प्रथम श्रेणी का 'ग्रांड कॉर्डन ऑफ दि ऑर्डर ऑफ़ दि नाइल' ( (irand Co rdon of the order of the vile) का खिताब दिया था । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ५२६ www.umaragyanbhandar.com Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास वि० सं० १९७५ की आश्विन वदि १४ (ई० स० १९१८ की ३ अक्टोबर ) को, २१ वर्ष की अवस्था में ही, इन्फ्लुएंजा की बीमारी से, महाराजा सुमेरसिंहजी का स्वर्गवास हो गया । इसी प्रकार गवर्नमेंट ने भी आपको जी. सी. बी. और 'लैटिनेंट जनरल' के पदों से भूषित किया था। इसी समय मिस्र के सुलतान ने महाराजा सुमेरसिंहजी को भी इसी ( ग्रांड कॉर्डन ऑफ़ दि ऑर्डर ऑफ दि नाइल ) की उपाधि से सम्मानित किया । महाराजा सुमेरसिंहजी ने, इस युद्ध में सहायता देने के लिये गवर्नमेंट से इनफैटरी की एक विशिष्ट 'बटेलियन' (Battalion of Indian Infantry ) तैयार करने की आज्ञा मांगी थी और वि० सं० १६७५ की आषाढ वदि १३ (ई० स० १६१८ की ६ जुलाई ) को भारत-गवर्नमेंट की आज्ञा मिल जाने पर सिपाहियों की भरती भी प्रारम्भ करदी थी । परंतु कार्तिक सुदि ६ ( १२ नवम्बर ) को युद्ध स्थगित ( Armistic) हो जाने से यह काम रोक दिया गया । उस समय भारतवर्ष के वायसराय की प्रार्थना पर, 'सेंट जॉन ऐंबुलेंस' और 'रैडक्रॉस सोसाइटी' की मदद के लिये जोधपुर में, वि० सं० १६७४ की मँगसिर वदि ११, १२ और १३ ( ई० स० १६१७ की १०, ११ और १२ दिसम्बर ) को 'पॉवर डे' का उत्सव (Our day fete) किया गया । इसमें खेल और तमाशों का प्रबन्ध था और इससे ४८,७८५ रुपयों की आय हुई थी । इसके अलावा जोधपुर-दरबार की तरफ से भी उन 'सोसाइटियों' की सहायता के लिये एक लाख रुपये दिए गए। इसी प्रकार वि० सं० १६७४ की द्वितीय भादों सुदि १५ ( ई० स० १६१७ की ३० सितम्बर ) तक जोधपुर-दरबार की तरफ से युद्ध से सम्बन्ध रखने वाले अन्य अनेक चन्दों में भी कुल मिलाकर ८,५१,०६८ रुपये दिए गए। इसके साथ ही जोधपुर-दरबार ने अपना रेल्वे का कारखाना भी गोले बनाने के लिये खोल दिया था और यहां पर तेरह पाउंड वाले ३५४ गोले बनाए गए थे। १. भादों वदि ११ (१ सितम्बर ) को महाराजा साहब पोलो के लिये पूना गए, परन्तु वहां पर तबीअत खराब होजाने से, भादों सुदि ११ (१६ सितम्बर) को, आप जोधपुर लौट आए । यहां पर शीघ्र ही शिमला, अजमेर, बंबई और कराची के प्रसिद्ध-प्रसिद्ध डाक्टरों को बुलवा कर आपकी चिकित्सा का प्रबन्ध किया गया । परन्तु रोगने दोनों पुफ्फुसों में फैलकर डबल निमोनिया ( double pneumonia ) का रूप धारण करलिया । आपके असमय-स्वर्गवास पर जामनगर, उदयपुर और किशनगढ़ के नरेशों ने स्वयं यहां आकर और ग्वालियर, बूंदी, सीकर और नरसिंहगढ़ के राजाओं ने अपने प्रतिनिधि मेज कर अपना हार्दिक-शोक प्रकट किया। ५३० Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाराजा सुमेरसिंहजी महाराजा सुमेरसिंहजी नवयुवक होने पर भी वीर, निर्भीक, प्रभावशाली और विचक्षण नरेश थे । प्रजा पर आपकी विशेष कृपा रहती थी । छोटी अवस्था में ही शिक्षा के लिये इंगलैंड चले जाने और यूरोपीय महासमर में भाग लेने के कारण आप पाश्चात्य जगत् से पूर्ण परिचित थे । इसी से ब्रिटिश अधिकारियों से मिलने में किसी प्रकार का संकोच नहीं करते थे । आपके राज्य - समय जोधपुर की और भी उन्नति हुई । 1 नगर में बिजली का सरकारी कारखाना खुलजाने और कुछ सड़कों पर बिजली की रौशनी लग जाने से घरों में रौशनी और उन सड़कों पर रात्रि में आवागमन का सुभीता हो गया । जल-कल का प्रबन्ध हो जाने से जनता का जल संबंधी बहुतसा कष्ट भी दूर हो गया । न्याय-विभाग में सुधार कर ' ची कोर्ट' की स्थापना कर देने, अनेक कायदे क़ानूनों के बनजाने, 'मारवाड़ पीनल कोड', 'कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसीजर ' आदि कानून की पुस्तकों के प्रकाशित हो जाने और वकीलों की परीक्षाओं के नियत हो जाने से प्रजा को न्याय - प्राप्त करने में सुभीता हो गया । साथ ही प्रजा के निजी छापाखाना खोलने और जातीय या समाज-सुधारक मासिक पत्रादि निकालने के क़ानून भी बनादिए गए । इसी प्रकार जमीन की सिंचाई के लिये अनेक नए कुँए बनवाए गए और सुमेर - समंद और सूरपुरा आदि बांधों से भी इसमें उन्नति की गई । 'पब्लिक वर्क्स' ( जनता के उपयोग ) के कामों पर पहले से कहीं अधिक रुपया खर्च किया जाने लगा । सड़कों का सुधार किया गया । सारे बड़े-बड़े राजकीय दफ़्तरों में सुभीते के लिये टैलीफोन का लगाना निश्चित हुआ ' जोधपुर - फलोदी' और 'जसवंतगढ़ - लाडनू' की लाइनों के खुल जाने से रेल्वे का विस्तार बढ़कर ५२५ मील से ६०८ मील हो गया और रेल्वे पर लगे कुल रुपयों की तादाद २, १०, १७, २६८ तक पहुँच गई । ४३ लाख रुपियों से अधिक खर्च कर चौपासनी का नया राजपूत - हाईस्कूल बनवाया गया । राज्य की आय अस्सी लाख से बढ़ कर एक करोड़ चौदह लाख के क़रीब हो गई । राज्य के रेल्वे आदि भिन्न-भिन्न सीग़ों में लगे रुपयों ( assets ) की जोड़ २- करोड़ से बढ़कर 83 करोड़ से ऊपर पहुँच गई । इसके अलावा यूरोप के महासमर में भी दरबार की तरफ़ से रुपयों और आदमियों की पूरी सहायता दी गई । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ५३१ www.umaragyanbhandar.com Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास इस काम में राज्य के क़रीब ३५ लाख रुपये खर्च हुए थे । महाराजा सुमेरसिंहजी के समय मारवाड़ के अस्पतालों में भी बहुत कुछ सुधार हुआ और उन पर लगने वाला खर्च बढ़ कर सवा लाख रुपया सालाना तक पहुँच गया। नगर में एक कॉलेज के सिवा अन्य स्कूलों की संख्या बढ़ कर ६६ से ७२ हो गई' और राज्य के विद्याविभाग का सालाना खर्च ९, ११, ८८१ रुपयों के क़रीब पहुँच गया । आपही के समय ' सुमेर-कैमल-कोर ' की स्थापना की गई थी । इसप्रकार आप के राज्य समय मारवाड़ देश उन्नति के पथ पर कई क़दम और भी आगे बढ़ गया । १. इनमें १ हाइस्कूल, १ संस्कृत स्कूल, १ बिज़नेस क्लास, १ गर्ल्स स्कूल, ३ ऐंग्लो वर्नाक्यूलर मिडल स्कूल, और १ वर्नाक्यूलर मिडल स्कूल के सिवा अन्य 'लोअर प्राइमरी ' 'प्राइमरी' और 'अपर प्राइमरी स्कूल थे 1 Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ५३२ www.umaragyanbhandar.com Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट - १ राजराजेश्वर महाराजाधिराज सर उमेदसिंहजी बहादुर जी० सी० ऐस० आइ०, जी० सी० आई० ई०, के० सी० एस० आइ०, के० सी० वी० प्रो० ३७ वर्तमान मारवाड़-नरेश. महाराजा उमेदसिंहजी याप महाराजा सरदारसिंहजी के द्वितीय महाराज - कुमार और महाराजा सुमेरसिंहजी के छोटे भ्राता हैं । आपका जन्म वि० सं० १९६० की आषाढ सुदि १४ ( ई० स० ११०३ की ८ जुलाई) को हुआ था । स्वर्गवासी महाराजा सुमेरसिंहजी के पीछे पुत्र न होने से, वि० सं० १९७५ की आश्विन ( काँर ) सुदि ६ ( ई० स० १९१८ की १४ अक्टोबर ) को, आप जोधपुर की गद्दी पर बैठे । उस समय आपकी अवस्था करीब १६ वर्ष की थी । इससे मँग सिर सुदि १ (४ दिसम्बर) को राज्य - प्रबन्ध के लिये महाराजा सर प्रतापसिंहजी की १. वि० सं० १६६७ ( ई० स० १६१० ) में आप शिक्षा प्राप्त करने के लिये अपने बड़े भ्राता महाराज कुमार सुमरसिंहजी के साथ ही अजमेर के मेओ कालिज में प्रविष्ट हुए और वि० सं० १६६८ के कार्तिक ( ई० सं० १६११ के अक्टोबर ) में आपने शारीरिक अस्वस्थता के कारण, जल-वायु परिवर्तन की। वहां पर आप करीब चार मास रहे थे । लिये, इजिप्ट ( मिस्र ) की यात्रा वि० सं० १६६६ ( ई० स० १६१३ ) में आपने काश्मीर की यात्रा की। इस यात्रा में आपके छोटे भ्राता महाराज अजितसिंहजी भी आपके साथ थे। ( ई० स० १०१५ ) में आप राजकोट के आपके छोटे भ्राता महाराज अजित सिंहजी ने इसके बाद वि० सं० १६७२ राजकुमार- कालिज में शिक्षा पाने के लिये चले गए । भी वहीं पर प्राथमिक शिक्षा प्राप्त की थी । २. इस समय, पुरानी प्रथा के अनुसार, बगड़ी के ठाकुर ने अपने हाथ के अंगूठे के रक्त से आपके ललाट पर तिलक लगाकर आपके सामने तलवार पेश की। इसके बाद राज्य के पुरोहित और व्यास आदि ने नवाभिषिक्त महाराजा की प्रारती उतारी। इस शुभ अवसर पर किले से १२५ तोपों की सलामी दागी गई और २ आजीवन और ५० साधारण कैदी छोड़े गए । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ५३३ www.umaragyanbhandar.com Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास अध्यक्षता में एक राज-प्रतिनिधि-सभा (रीजैन्सी काउंसिल ) नियत की गई। उस समय तक महाराजा प्रतापसिंहजी युद्धस्थल से लौट कर जोधपुर आगए थे, और कार्तिक ( नवम्बर) में दिल्ली जाकर वायसराय से भी मिल चुके थे। इसी से - - - इस राज-तिलकोत्सव के समय किशनगढ़-नरेश भी उपस्थित थे । इससे उनके निछावर कर लेने पर अन्य महाराजों, सरदारों और राज-कर्मचारियों ने अपनी-अपनी नज़रें पेश कीं। कुछ दिनों बाद ईडर और रतलाम के नरेशों ने जोधपुर आकर आपसे मुलाकात की। ( इसी प्रकार जामनगर-नरेश ने भी ( ई० स० १६१६ में ) दो वार आकर आपका आतिथ्य ग्रहण किया ।) वि० सं० १६७५ की आश्विन सुदि । ( ई० स० १६१८ की , अक्टोबर ) को भारत सरकार की तरफ से मित्र-राज्यों की विजय और बलगेरिया के प्रात्म-समर्पण के उपलक्ष में खुशी मनाना निश्चित हुा । परन्तु उस समय मारवाड़ में महाराजा सुमेरसिंहजी के स्वर्गवास का शोक होने से यहां पर यह उत्सव आश्विन सुदि १४ ( १८ अक्टोबर ) को मनाया गया । उस रोज़ किले से १०१ तोपों की सलामी दागी गई, सेना की कवायद हुई, मंदिरों और मस्जिदों में प्रार्थनाएँ की गई और गरीबों को अन्न-वस्त्र और विद्यार्थियों को मिठाई दी गई । कार्तिक सुदि ११ (१४ नवम्बर ) को मारवाड़ में जर्मनी के अस्थायी सन्धि स्वीकार करने की खुशी मनाई गई । उस रोज़ फिर मन्दिरों और मस्जिदों में प्रार्थनाएँ की गई और किले से १०१ तोपें चलाई गई। इसके बाद मँगसिर बदि ६ (२७ नवम्बर ) को 'ब्रिटिश-गवर्नमैन्ट' की विजय के उपलक्ष में उत्सव मनाया गया । इस अवसर पर भी किले से १०१ तोपें छोड़ी गई, मन्दिरों आदि में प्रार्थनाएँ की गई, गरीबों को अन्न-वस्त्र और विद्यार्थियों को मिठाई दी गई, सम्राट के चित्र का जुलूस निकाला गया और रात को रौशनी की गई । इसके दूसरे दिन सैनिकों को भोज दिया गया । तीसरे दिन स्कूलों के विद्यार्थियों ने खेल दिखलाए और इसके बाद खिलाड़ियों को इनाम दिए गए। वि० सं० १९७६ की आषाढ सुदि १ ( ई० स० १९१६ की २८ जून ) को स्थायी सन्धि पर हस्ताक्षर हो जाने से सावन बदि ७ (१६ जुलाई ) को फिर किले से १०१ तोपें दागी गई, ८४ कैदी छोड़े गए, विद्यार्थियों को मिठाई और गरीबों को भोजन बांटा गया । १. वि० सं० १६७५ की कार्तिक सुदि ३ (ई• स० १६१८ की ६ नवम्बर ) को, कर्नल विंढम (C. J. Windham) के कोटा जाने पर भारत सरकार ने, खास तौर से चुनकर, मिस्टर ऐल• डब्ल्यू. रेनॉल्ड्स (L. W. Reynolds, I. C. S., C. I. E., M. C.) को यहां का रैजीडैन्ट ( अपना प्रतिनिधि ) नियुक्त किया था। परन्तु उसके आने तक, करीब २० दिनों के लिये, कर्नल मैकर्सन ( A. B. Macpherson ) रैजीडैन्सी के कार्य की देख भाल करता रहा । (वि० सं० १६७८ की चैत्र सुदि ७ (ई. स. १९२१ की १४ अप्रेल ) को मिस्टर रेनॉल्ड्स के ६ महीने की छुट्टी जाने पर, उतने समय के लिये, उसका काम लेफ्टिनेंट कर्नल सेंट जौन (H. B. St. John ) को सौंपा गया ।) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाराजा उमेदसिंहजी आपकी अध्यक्षता में, जो 'रीजैन्सी- काउन्सिल ' ( राज - प्रतिनिधि सभा ) बनाई गई, उसमें निम्नलिखित पदाधिकारी नियुक्त हुए: - (क) महाराजा सर प्रतापसिंहजी - प्रेसीडेन्ट और रीजेंट ( सभापति और अभिभावक ) । ( ख ) महाराज जालिमसिंहजी - सीनियर मैंबर । ( जुडीशल और पोलिटिकल - न्याय और राजनीतिक विभाग आपके अधिकार में रहे ) । (ग) राव बहादुर ठाकुर मंगलसिंह ( पौकरन ) - पब्लिक वर्क्स मैंबर । (घ) कर्नल हैमिल्टन - फ़ाइन्स मैम्बर ( अर्थ - सचिव ) | (ङ) रात्र बहादुर पण्डित सुखदेवप्रसाद काक, सी० आई० ई० - रिवेन्यू मैम्बर (य-सचिव ) । इस प्रकार रीजै-सी- काउन्सिल की स्थापना हो जाने से मुसाहिब ला दीवान बहादुर छज्जूराम वापस चला गया । इसके साथ ही खास-खास मामलों में राय देने के लिये एक 'ऐडवाइजरी कमेटी' ( परामर्शदातृ-सभा ) बनाई गई । इसके बाद महाराजा उमेदसिंहजी साहब, कर्नल वाडिंग्टन् (C. W. Waddington) की निगरानी में रहकर, शिक्षा प्राप्त करने के लिये अजमेर के मे कालिज में चले गए । १. इस सभा के निम्नलिखित सदस्य थेः— ( क ) ठाकुर चैनसिंह ( आसोप ) । (ख) ठाकुर विजैसिंह ( रीयां ) । ( ग ) ठाकुर नाथूसिंह ( रास ) । २. स्वर्गवासी महाराजा सुमेरसिंहजी का विचार आपकी शिक्षा का प्रबन्ध जोधपुर में ही करने का था । परन्तु उनके स्वर्गवास के बाद महाराजा प्रतापसिंहजी ने आपको अजमेर के कालिज में भेज दिया। साथ ही आपके छोटे भ्राता महाराज अजित सिंहजी भी उसी कालिज में शिक्षा प्राप्त करने लगे । वि. सं. १६७५ की पौष वदि १४ ( ई० स० १६१६ की १ जनवरी) को बाबा बिहारीसिंह (हैड क्लर्क - जोधपुर इम्पीरियल लांसर्स ) को राय साहब की उपाधि मिली । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ५३५ www.umaragyanbhandar.com Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास वि० सं० १९७६ ( ई० स० १९१६) की गरमियों में महाराजा साहब ने अपने छोटे भ्राता महाराज अजित सहजी के साथ श्रीनगर (काश्मीर ) की यात्रा की। आषाढ वदि १२ ( २५ जून ) को आपकी दूसरी बहन ( स्वर्गवासी महाराजा सरदारसिंहजी की दूसरी राजकुमारी) श्री सूरजकुँवरी बाईजी साहबा का शुभ विवाह रीवां-नरेश महाराजा गुलाबसिंह जी के साथ हुआ। इस शुभ अवसर पर अनेक राजा, महाराजा और नवाव जोधपुर में इबढे हुए। वि सं १६७६ की 8 सुद ५ ( ई० स. १६१६ की ३ जून ) को बादशाह जॉर्ज-पंचम के जन्म दिन के उत्सव पर निम्नलिखित राज-कर्मचारियों को उपाधियां मिलीं: ठाकुर धौं कलसिंह ( गोराऊ)- प्रो० बी. ई० । मदनलाल, सीनियर सब ऐसिस्टैन्ट सर्जन-राय साहब । (१) इनमें जोधपुर की तरफ से किशनगढ़ और जामनगर के महाराजा तथा जावरे के नवाब थे और रोवां की तरफ से अलवर, रतलाम, डुमरानों, तरवर और शिवगढ़ के नरेश आदि और शहपुरा और लूनवाडा के राजकुमार थे । वि. १६७६ के आश्विन ( ई. स. १६१६ के अक्टोबर ) में (दशहरे पर ) महाराजा साहब जोधपुर पाए और फिर शीघ्र ही आबू होते हुए अजमेर लौट गए । - वि० सं० १६७६ की पौष सुदि ८ ( ई० स. १६१६ की ३• दिसम्बर ) को टाकुर प्रतापसिंह (संखवाय) (कमांडिग ऑफ़ोलर, फर्ट जोधपुर इम्पीरियल लांसर्स ), को सी. बी. ई. का खिताब मिला और पौष सुदि १० ( ई० स० १९२० की १ जनवरी) को आगे लिखे सज्जनों को अधियां मिलीं: कुँवर चैनसिंह (पौकग्न ) ( सुपरिंटेंडेंट-कोर्ट सरदारान )-रानो साहब । सांगीदास थानवी । बैंकर-फलोदी )-राय साहब । ठाकुर अनोपसिंह ( रोडला ) आइ. ओ. ऐम. (स्वाइन कमाण्डर-फर्स्ट जोधपुर लांसर्स )-एम. सी. । रापोराजा सगतसिंह ( सरदार रिसाला )-एम. सी. । वि सं. १९७७ की जठ बदि १० (ई० स० १६२, की १३ मई ) को सरदार साहब शमशेरसिंह के स्थान पर बंबई पुलिस का एम. पार. कोठावाला ( M. B. E.) यहां की पुलिस का इन्सपैक्टर जनरल नियुक्त किया गया। आषाढ बदि ४ (५ जून ) को बादशाह की वर्ष गांठ के उत्सव पर निम्नलिखित राज-कर्मचारियों को उपाधिया मिलीं: सी. बी. लाटूच (C. B. La Touche) (मैनेजर, जोधपुर-बीकानेर-रेलवे) सी. आइ. ई. पण्डित धर्मनारायण काक-रानो साहब । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाराजा उमेदसिंहजी इन्हीं दिनों यूरोपीय महासमर के परिणाम स्वरूप भारत में भी प्रत्येक वस्तु का भाव बहुत चढ़ गया था। इस पर वि० सं० १९७७ की द्वितीय सावन वदि ७ ( ई० स० १९२० की ६ अगस्त) को जोधपुर राज्य के अर्थ-सचिव कर्नल हैमिल्टन की सलाह से राज-कर्मचारियों के वेतन में अच्छी वृद्धि की गई। वि० सं० १९७७ की आश्विन वदि ३ ( ई० स० ११२० की ३० सितंबर) को महाराज जालिमसिंहजी ने 'रीजैंसी काउंसिल' से इस्तीफा दे दिया। इस पर कार्तिक वदि १३ ( ८ नवंबर) को महाराज फ़तैसिंहजी 'होम-मैंबर' बनाए गए । कार्तिक सुदि ३ (१३ नवंबर ) को पण्डित सुख देवप्रसाद काक 'जुडीशल' और 'पोलिटिकल-मैंबर' नियुक्त हुआ और 'रिवैन्यू-मैंबरी' का काम मिस्टर डी. ऐल. ड्रेक ब्रोकमैन ( D. L. Drake Brockman ), आइ. सी. एस. को सौंपा गया । कार्तिक सुदि ६ (१७ नवंबर ) को कर्नल हैमिल्टन ( R. E. A. Hamilton, C I. E.) के छुट्टी जाने पर चैत्र वदि ३ ( ई० स० १९२१ की २६ मार्च ) को उसके स्थान पर मेजर लॉयल (R. A. Lyall, I. A., D. S. O. ) अर्थ-सचिव नियुक्त किया गया। वि० सं० १९७७ की कार्तिक सुदि ६ ( ई० स० १९२० की १७ नवंबर) को महाराजा साहब अजमेर से जोधपुर आए और कार्तिक सुदि १ (२० नवंबर ) को भारत के 'वायसराय' और 'गवर्नर जनरल' लार्ड चैम्सफोर्ड का यहां पर आगमन । इस वर्ष की गरमियों में महाराजा साहब उटकमंड गए और वहां पर आपने माइसोर के ऐतिहासिक स्थानों का निरीक्षण किया । आश्विन ( अक्टोबर ) में (दशहरे के उत्सव पर) श्रीमान् फिर अजमेर से जोधपुर पाए । इसके बाद आप कुछ दिन यहां रहकर भरतपुर होते हुए अजमेर लौट गए । १. ई. स. १६२० के जून में जोधपुर की 'पोलोटीम' ने आबू पर के 'पोलो टूर्नामेंट' में विजय प्राप्त की। २. इस वेतन वृद्धि का हिसाब इस प्रकार रक्खा गया थाः १ से ३० रुपये तक के वेतन पाने वालों को ३५ रुपये सैंकड़ा । ३१ से ५० रुपये तक के वेतन पाने वालों को ३० रुपये सैंकड़ा। ५१ से १.० रुपये तक के वेतन पाने वालों को २५ रुपये सैंकड़ा । १.१ से २.० रुपये तक के वेतन पाने वालों को २० रुपये सैंकड़ा। २०१ से ६०० रुपये तक के वेतन पाने वालों को १५ रुपये सैंकड़ा। ३. यह 'रिवैन्यू-सैटलमैंट' के लिये यू. पी. से बुलवाया गया था। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास दुआ । इस पर दरबार की तरफ़ से अतिथि के योग्य ही उसका स्वागत किया गयां और कार्तिक सुदि ११ (२२ नवंबर) को महाराजा साहब के सेनापतित्व में रिसाले की परेड का प्रदर्शन हुआ। पौष वदि ८ (ई० स० १९२१ की १ जनवरी) को भारत सरकार ने, यूरोपीय महायुद्ध में दी गई सहायताओं के उपलक्ष में, जोधपुर-दरबार की सलामी की तो बढ़ाकर, अपने राज्य-मारवाड़ में, सदा के लिये १७ से १६ करदी। माघ सुदि १ (८ फरवरी) को जब ड्यूक ऑफ़ कनाट (Duke of Connaught ) ने दिल्ली में नरेन्द्र-मंडल (Chamber of Princes ) का उद्घाटन किया, तब महाराजा साहब भी वहां जाकर उक्त मण्डल में सम्मिलित हुए और इसके बाद वहां से अजमेर लौट आएँ। फागुन वदि १३ (७ मार्च ) को जिस समय बाली के किले के कोठार ( Magazine ) से पुराना बारूद खोदकर निकाला जा रहा था, उस समय फर्श के पत्थर और कुदाली के लोहे की रगड़ से आग पैदा होकर बारूद भड़क उठा । इस से करीब ६० मनुष्य हताहत हुए और कोठार के पत्थरों के दूर-दूर तक जाकर गिरने से आस-पास में स्थित कई लोगों को चोटें लैंगी । . .. १. इस उपलक्ष में किए गए राजकीय भोज के बाद वायसराय ने ठाकुर धौंकलसिंह, पं. धर्मनारायण काक और थानवी सांगीदास को उनको मिली उपाधियों के पदक प्रदान किए, तथा रिसालदार मेजर ठाकुर ज़ोरसिंह ( यर्ड लांसर्स ) और मेजर ठाकुर किशोरसिंह (रिटायर्ड स्क्वाड्रन कमांडर ऑफ दि फर्स्ट रैजीमैंट-सरदार रिसाला) को द्वितीय श्रेणी के प्रो. बी. आइ. के पदक दिए। 'वायसराय के लौटे जाने पर महाराजा साहब मी अजमेर चले गए। २. इसी अवसर पर रावराजा हनूतसिंह और रावराजा सगतसिंह को भारतीय सेना में अवैतनिककप्तान के पद प्राप्त हुए, और आगे लिखे सजनों को भिन्न-भिन्न उपाधियां मिलीं: शंकरनरायन पारनायक ( मैडीकल ऑफीसर, इम्पीरियल सर्विस लांसर्स )-गय साहब । ठाकुर उदैसिंह (पांचोटा ) राओ साहब । ३. वि. सं. १६७७ की माघ सुदि १३ (ई० स० १९२१ की २० फरवरी ) को जोधपुर की 'पोलोटीम' ने 'प्रिंस ऑफ वेल्स कमेमोरेशन पोलो टूर्नामेंट' जीता और इसके बाद जून में दुबारा आबू पर के 'पोलो' के 'मैच' में विजय प्राप्त की। इस वर्ष (वि. सं. १६७८) की ग्रीष्म ऋतु महाराजा साहब ने आबू में बिताई और उसकी समाप्ति पर आप अजमेर लौट गए। ४. वि० सं० १९७८ की ज्येष्ठ वदि १३ (ई. स. १९२१ की ४ जून ) को बादशाह ५३८ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाराजा उमेदसिंहजी वि० सं० १९७७ की फागुन सुदि १ (ई० स० १९२१ की २८ मार्च) को मारवाड़ में मनुष्य-गणना की गई और उसके अनुसार मारवाड़ की जन-संख्या १८,४१,६४२ सिद्ध हुई। इन दिनों नाज बराबर महँगा हो रहा था, इसलिये वि० सं० १९७८ की आश्विन वदि ५ (२२ सितंबर ) को राज्य की तरफ से नाज की दूकानें खुलवा कर गेहूं का भाव नियत करदिया गया। कार्तिक बदि ८ (२४ अक्टोबर ) को महाराजा साहब १७ वें पूना हौर्स रिसाले के अवैतनिक (ऑनररी )-कप्तान बनाए गए । इसके बाद ही महाराजा साहब पढ़ाई समाप्त कर मेरो कालिज ( अजमेर ) से जोधपुर चले आए और रीजेंसी काउंसिल' के मैंबरों से राज-कार्य संचालन का अनुभव प्राप्त करने और 'जुडीशैल' और 'रिवैन्यू' के मुकद्दमों की कार्रवाई देखने लगे। ___ कार्तिक सुदि ११ ( ११ नवंबर ) को जोधपुर-नरेश महाराजा उमेदसिंहजी साहब का विवाह, जोधपुर में ही, ओसियां के (भाटी ) ठाकुर जैसिंह की कन्या सौभाग्यवती श्रीमती बदनकुँवरीजी साहबा से हुओ । की वर्ष गांठ के उत्सव पर बाली के किले में के बारूद के उड़ने से हताहत हुए लोगों के परिवार वालों को ६,५६० रुपये की सहायता दी गई । इसी शुभ अवसर पर ठाकुर नाथूसिंह ( रास ) और लक्ष्मीदास सापट ( चीफ़ जज ) को रामो बहादुर की उपाधियां मिलीं। इसी वर्ष गवर्नमेंट ने मारवाड़ राज्य में स्थित बी. बी. एण्ड सी. आइ. रेल्वे के स्टेशनों पर के कर्मचारियों के नाम बाहर से आए सामान पर कर ( सायर की चूंगी ) वसूल करने का मारवाड़दरबार का अधिकार स्वीकार कर लिया । १. वि. सं० १६७८ की भादों सुदि ७ (८ सितंबर ) को जोधपुर की 'पोलोटीम' ने 'पूना अोपन पोलो टूर्नामैंट' में कामयाबी हासिल की। २. उस समय गेहूं का भाव एक रुपये का ३॥ सेर हो गया था। ३. इन दुकानों पर मोहल्लेवार नियत किए हुए पुरुषों की हस्ताक्षर वाली छपी हुई चिहियों से नाज खरीदा जा सकता था। यह प्रबन्ध लोगों के अनुचित लाभ उठाने के प्रयत्न को रोकने के लिये किया गया था, क्योंकि हस्ताक्षर करने वाले पुरुष नाज खरीदने वालों की आवश्यकताओं को देख कर ही चिड़ियां दिया करते थे। ४. इसके लिये आप 'चीफ-कोर्ट में बैठ कर अभियोगों की कार्य-प्रणाली देखते थे। ५. इस अवसर पर रीवां-नरेश महाराजा गुलाबसिंहजी भी जोधपुर आकर इस शुभ-कार्य में सम्मिलित हुए। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास भारत - गवर्नमैंट ने शाहजादे ऐडवर्ड ( प्रिंस ऑफ वेल्स) के भारत में आने के समय महाराजा साहब को उनके सहचरों ( स्टाफ़ ) में नियत किया था; इस से कार्तिक सुदि १४ (१४ नवंबर को आप बंबई जाकर शाहजादे से मिले और इसी सम्बन्ध में आपने अजमेर, दिल्ली और कराची की यात्राएँ भी कीं । मँगसिर बदि ३० (ई० स० १९२१ की २६ नवंबर) को स्वयं शाहजादा जोधपुर आया । इस पर दरबार की तरफ़ से जोधपुर - स्टेशन से रातानाडा वाले महल तक का मार्ग अच्छी तरह से सजाया गया और शाहजादे के जोधपुर-स्टेशन पर पदार्पण करते ही क़िले से सलामी की ३१ तोपें दागी गईं । तदुपरान्त यथा नियम सैनिक-सत्कार और उपस्थित महज्जन-परिचय हो जाने पर जब 'प्रिंस ऑफ वेल्स ' रातानाडा - महल में पहुँचा, तब फिर किले से सलामी दागी गई । इसके बाद जब महाराजा साहब शाहजादे से मिलने गए, तब इनके जाते और आते समय १२-१६ और जब शाहजादा महाराजा साहब से मिलने आया, तब उसके आते और जाते समय ३१-३१ तोपों की सलामी दी गई । मँसिर सुदि १ ( ३० नवंबर) को प्रातः काल शाहजादे के लिये शिकार का प्रबन्ध किया गया और सायंकाल में स्वयं महाराजा साहब के सेनापतित्व में जोधपुर रिसाले की ' परेड' ( कवायद ) हुई । उसे देख शाहजादे ने यहां के रिसाले की चुस्ती और चालाकी की प्रशंसा के साथ-साथ ही उसके यूरोपीय महासमर में किए वीरोचित कार्यों की भी प्रशंसा की । इसके अनन्तर शाहजादे ने, कुछ सैनिकों को पदक देकरै, अवसर ग्रहण किए ( पैन्शन पाए) हुए सैनिकों का निरीक्षण किया । १. इस सिलसिले में आप मँगसिर बदि १३ ( २६ नवंबर) को अजमेर, माघ सुदि १४ ( ई० स० १६२२ की ११ फरवरी) को दिल्ली और चैत्र बदि १ ( १४ मार्च ) को कराची गए थे । २. इसी प्रकार महाराजा प्रतापसिंहजी के भी शाहज़ाद से मिलने के लिये जाने पर उनके जाने और आने के समय १७ १७ और शाहजादे के महाराजा प्रतापसिंहजी से मिलने आने पर उसके आने और जाने के समय ३१-३१ तोपें चलाई गई । उसी दिन तीसरे पहर 'पोलो' का खेल हुआ और उसमें शाहज़ादे ने भी भाग लिया । ३. इस अवसर पर निम्नलिखित सैनिकों को पदक दिए गए: (क) लैफ्टिनैंट ठाकुर जोधा भगवंत सिंह ( यह पहले जोधपुर रिसाले में था ) - श्री. (द्वितीय श्रेणी ) । बी. (ख) रिसालदार शैतानसिंह ( सरदार रिसाला ) - आइ. प्रो. एम (द्वितीय श्रेणी ) । ५४० Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाराजा उमेदसिंहजी शाम को आतिशबाज़ी छोड़ी गई और रात को किले और रातानाडा वाले महल पर रौशनी की गई । इसके बाद रात को जो बृहद्-भोज हुआ, उसमें भी शाहजादे ने राठोड़-नरेशों और राठोड़-वीरों की बड़ी प्रशंसा की और महाराजा साहब को उन के अंगरेजी-सेना के अवैतनिक-कप्तान (Honorary Captain ) नियुक्त होने की बधाई दी। मँगसिर सुदि २ ( १ दिसंबर ) को सुबह शिकार और शाम को पोलो का खेल हुआ । इन दोनों कार्यों में शाहजादे ने भी भाग लिया। इसके बाद वह रातको अपनी खास गाडी ( Special train ) से लौट गया । इन दिनों पण्डित सुखदेवप्रसाद काक के बीमार होजाने से कुछ दिनों तक तो उसका काम लेफ्टिनेंट कर्नल लॉयल ही करता रहा । परन्तु वि० सं० १९७८ की पौष बदि १२ ( ई० स० १९२१ की २६ दिसंबर ) को दीवान बहादुर मुंशी दामोदर लाल ( I. S. O. ) अस्थायी 'जुडीशल-मैंबर' बनाया गया। इसी वर्ष के माघ ( ई० स० १९२२ की जनवरी ) से महाराजा साहब ने 'रीजैंसी-काउंसिल' की 'मीटिंगों' ( सभाओं) में भाग लेना प्रारम्भ किया । इसी अवसर पर जोधपुर रिसाले के इन सैनिकों को भी Indian meritorious service (भारतीय-प्रशंसित-सेवा ) के पदकों से भूषित किया गयाः (क) दफ़ेदार बनेसिंह । (ख) दफ़ेदार सूरजबख्शसिंह । (ग) कोत-दफ़ेदार कानसिंह । (घ) सवार बाघसिंह । (ङ) सवार बख्शूखाँ। १. इसी महीने में जोधपुर की 'पोलोटीम' ने कलकत्ते में 'इण्डियन पोलो एसोसियेशन' का 'चैंपियन कप' ( Champion Cup ) जीता । इसी प्रकार यह 'टीम' तीन वर्ष (ई० स ० १६१६, १९२० और १६.१) से अजमेर के मेग्रो कालिज के 'टूर्नामैंट' में भी बराबर जीतती रही। इसी महीने में जामनगर-नरेश रणजीतसिंहजी अपनी बहन माजी जाडेजीजी साहबा को लेने जोधपुर आए । २. ( वि० सं० १६७६ की ज्येष्ठ सुदि ५ (ई० स० १६२२ की ३१ मई ) को 'रिवैन्यू मैंबर' मिस्टर ड्रेक ब्रोकमैन के ६ मास की छुट्टी जाने पर उसका काम भी मुन्शी दामोदरलाल को सौंपा गया।) ३. पौष सुदि ३ ( ई० स० १९२२ की १ जनवरी) को चंडावल के ठाकुर गिरधारीसिंह को राम्रो बहादुर की उपाधि मिली । ५४१ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास अगले महीने (फागुन फ़रवरी) में जोधपुर की 'पोलोटीम' ने दिल्ली में होनेवाले खेल में विजय प्राप्त की। चैत्र वदि ४ ( १७ मार्च ) को शाहजादे के आगमन के उपलक्ष में महाराजा साहब के० सी० वी० ओ० की उपाधि से भूषित किए गए । वि० सं० १९७६ के श्रावण ( अगस्त ) में कुछ महकमों का काम स्वयं महाराजा साहब की निगरानी में होने लगा और उनसे संबन्ध रखनेवाले 'मैंबर' उनके कागजात आपके सामने पेश करने लगे। कुछ समय से मीरखाँ के गिरोह ने बड़ोदा, पालनपुर, राधनपुर, और अहमदाबाद में बड़ा उपद्रव मचा रक्खा था, परन्तु वहां की पुलिस उसे दमन करने में असमर्थ थी । अन्त में भादों सुदि ११ (२ सितंबर ) को मारवाड़ की पुलिस और शुतरसवारों ( Flying camel corps) ने, ठाकुर बखतावरसिंह, सुपरिंटैंडै-पुलिस की अध्यक्षता में, कोटला (गुड़ामालानी) के पास, बड़ी वीरता से उसका सामना कर उसे नष्ट कर डाला । इस कार्य में शुतर-सवार सेना के रिसालदार ठाकुर कानसिंह ने भी अच्छी वीरता दिखलाई थी। १. उस समय जोधपुर की 'पोलो-टीम' में बेड़ा का ठाकुर पृथ्वीसिंह, रोयट का ठाकुर दलप तसिंह, कुंवर हनूतसिंह और रामसिंह थे। वि० सं० १६७६ की वैशाख वदि ४ ( १५ अप्रेल ) को महाराजा साहब रीवां जाकर वहां के महाराजा की बहन के विवाह में सम्मिलित हुए । इसके बाद गरमी का मौसम आ जाने से आप आबू चले गए। वि० सं० १६७६ की ज्येष्ठ सुदि ८ ( ३ जून ) को बादशाह की वर्ष गांठ के उत्सव पर निम्नलिखित सजनों को उपाधियां मिलीं: जसनगर-ठाकुर पण्डित सुखदेवप्रसाद काक ( पोलिटिकल और जुडीशल-मैंबर )-सर (नाइट हुड)। रोयट-ठाकुर दलपतसिंह (दरबार के मिलिटरी सेक्रेटरी) राओ बहादुर । कुँवर नरपतसिंह (रैजीडेंसी के वकील ) राम्रो साहब । भंडारी फौजचन्द ( जज-सिविल कोर्ट ) राय साहब । २. वे महकमे ये थे:-रेख हुकमनामा, मरदानी डेवढी, सिलहख़ाना, अस्तबल और शिकारख़ाना। ३. इस मुठ-मेड़ में शुतर-सवार सेना के जमादार चांपावत शंभूसिंह के मी दो हलके घाव लगे थे। ५४२ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाराजा उमेदसिंहजी इस गिरोह के कुछ डाकू हत्या और लूट-मार में नाम पैदा कर चुके थे और उनकी गिरफ़्तारी के लिये बड़े बड़े इनाम घोषित हो चुके थे । इसीसे इस कार्य में सफलता प्राप्त करने पर जोधपुर-राज्य की पुलिस के लिये बड़ोदा राज्य और काठिया - बाड़ के ए० जी० जी० ने १५,५००) रुपये इनाम के तौर पर भेजे । ( इसके बाद महाराजा उमेदसिंहजी साहब के राज्याधिकार-ग्रहण करने के दरबार में स्वयं लार्ड रीडिंग ने भी मारवाड़ - पुलिस की प्रशंसा की । ) भादों सुदि १३ ( ४ सितंबर) को प्रातः काल वयोवृद्ध राठोड़-वीर महाराजा प्रतापसिंहजी का, हृदय की गति रुक जाने से, ७६ वर्ष की अवस्था में, स्वर्गवास हो गया । इस घटना पर अन्य नरेशों और मित्रों के अलावा स्वयं सम्राट्, सम्राज्ञी और राजकुमार (प्रिन्स ऑफ वेल्स ) ने भी तार द्वारा अपना हार्दिक शोक प्रकट किया । इसके बाद से ‘काउंसिल' के सभापति का कार्य पश्चिमी राजपूताने की रियासतों का 'रैजीडैंटे' करने लगा I वि० सं० १९७६ की कार्तिक वदि १२ ( ई० स० १६२२ की १७ अक्टोबर) को मुंशी दामोदरलाल लौट गया और 'जुडीशल - मैंबरी' का काम फिर पंडित सुखदेव - प्रसाद काक को सौंपा गया । वि० सं० १९७६ की माघ सुदि १० ( ई० स० १९२३ की २७ जनवरी ) को, महाराजा उमेदसिंहजी साहब के राज्याधिकार ग्रहण करने के उपलक्ष में, भारत के 'वायसराय' और 'गवर्नर जनरल' लॉर्ड रीडिंग का जोधपुर में आगमन हुआ । इस (वि० सं० १६७= के भादों के करीब ( ई० स० १९२१ की सितम्बर ) में तत्कालीन सब इन्सपैक्टर मिधा बलदेवराम ने इसी मीरख़ाँ के मुख्य सहायक जुमेख़ाँ और दत्तेख़ाँ का, भवातड़े के पास, मुक़ाबला कर उन्हें गिरफ्तार किया था। ) १. इस आकस्मिक घटना पर राज्य में तीन दिनों की छुट्टी की गई। २. (वि० सं० १९७८ की कार्तिक बदि ६ ( ई० स० १६२१ की २२ अक्टोबर ) को मिस्टर रैनॉल्ड्स छुट्टी से लौट आया था और वही इस समय यहाँ का रेज़ीडेंट था । ) ३. वि० सं० १६७६ की आश्विन वदि १ ( ई० स० १६२० की ७ सितंबर) को जयपुरनरेश महाराजा माधोसिंहजी का स्वर्गवास हो जाने से, उनकी मातमपुरसी के लिये, स्वयं महाराजा साहब ने जयपुर की यात्रा की । ४. मंगसिर वदि २ ( ६ नवंबर ) तक मिस्टर ड्रेक ब्रोकमैन के छुट्टी पर रहने से 'रिवेन्यू - मैचरी' का काम भी वही करता रहा । ५. माघ वदि ७ ( ई० स० १६२३ की ९ जनवरी) को पुलिस इन्सपैक्टर गुलाबसिंह, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ५४३ www.umaragyanbhandar.com Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास अवसर पर भी स्टेशन से 'वायसराय' के ठहरने के स्थान तक अच्छी सजावट की गई और सड़क के दोनों तरफ़ सैनिकों के अलावा सरदारों के देसी घोड़ों और ऊंटों पर चढ़े आदमी खड़े किए गए । 'वायसराय' के आने और यथा-नियम भेट-मुलाकात होजाने के बाद उस ( वायसराय ) ने दरबार में उपस्थित होकर, भारत-गवर्नमैंट की तरफ़ से, महाराजा साहब को एक खिलअत भेट किया और साथ ही श्रीमान् के पूर्णरूप से मारवाड़-राज्य का अधिकार ग्रहण करने की घोषणा की। ___ इसी समय वायसराय के राजनीतिक-विभाग के मंत्री ( Political Secretary ) ने खड़े होकर श्रीमान् महाराजा साहब का नाम मय उनकी उपाधियों के इस प्रकार उच्चारण कियाः भूरसिंह डकैत के दल का सामना कर बड़ी वीरता से मारा गया। इस पर दरबार की तरफ़ से उसकी विधवा को २५। रुपये मासिक की पैन्शन दी गई । . इस अवसर पर वायसराय ने स्वर्गवासी महाराजा प्रतापसिंहजी की प्रशंसा के बाद रीजेंसी काउंसिल' के कार्य का उल्लेख और उस पर अपनी सम्मति का प्रकाशन इस प्रकार कियाः'यद्यपि रोजेंसी-काल में वर्षा की कमी और व्यापार की मन्दी रही, तथापि उसके सुप्रबन्ध के कारण राज्य की आय ८६,००,००० रुपये से बढ़ कर १,००,००,००० हो गई । ३५,००,००० रुपये का कर्ज अदा करने के बाद ७०,००,००० रुपया रेल्वे में लगाया गया और ३१,००,००० रुपये की बचत रही । इस से बचत के खाते में कुल २, ५०, ००, ००० रुपया हो गया । वि० सं० १६३८ ( ई० स० १८८१) के बाद पहले-पहल इसी काल में लगान नियत करने ( सैटलमैंट) का काम हाथ में लिया गया, जो वि० सं० १९८१ (ई. स. १६२४) तक समाप्त हो जायगा | आशा है इसी प्रकार लगान के नियमों ( Rent Regulations ) या लगान संबन्धी अदालतों ( Revenue Courts ) आदि का प्रबन्ध हो जाने से किसानों को भी सुविधा हो जायगी । यद्यपि इस समय तक तालीम के महकमे में करीब एक लाख का व्यय बढ़ा दिया गया है तथापि यदि दरबार अपने राज्य कार्य के संचालन के लिये योग्य मारवाड़ियों को चाहते हैं तो उन्हें विद्योपार्जन में और भी सुविधाएं देने की आवश्यकता है। इन दिनों व्यापार की संसार व्यापिनी मंदी के कारण ही जोधपुर-बीकानेर रेल्वे की आय कम हो गई है। २. "Captain His Highness Raj Rajeshwar Maharaja Dhiraj Sir Umaidsingh Bahadur, Knight Commander of the Royal Victorian Order" इसी रोज़ तीसरे पहर 'पोलो' और 'ऐट होम' (उद्यान-भोज) हुआ। रात को किले और महल के बगीचे में बिजली को रौशनी की गई और दल-बादल नाप के शामियाने में, जो वि० सं० १७८७ ( ई० स० १७३०) में अहमदाबाद विजय कर लाया गया था, बृहद्भोज (State banquet) हुआ। ५४४ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाराजा उमेदसिंहजी “कैप्टिन हिज हाइनेस राजराजेश्वर महाराजाधिराज महाराजा सर उमेदसिंह बहादुर नाइट कमान्डर ऑफ़ दि रोयल विक्टोरियन ऑर्डर" । इस अवसर पर किले से १९ तोपों की सलामी दी गई। इसके बाद दरबार ने अपने भाषण में ज़मीन के लगान और रेख और चाकरी के खाते में निकलने वाले ३,००,००० रुपये माफ़ करने और स्कूलों और अन्य धार्मिक कार्यों के लिये ५०,००० रुपये की ख़ास तौर पर सहायता देने की घोषणा की। इसी दिन ' रीजेंसी काउंसिल' का कार्य-काल समाप्त हो जाने से महाराजा साहब ने उसके स्थान पर ' राज्य परिषद् ' ( काउंसिल ऑफ़ स्टेट ) की स्थापना कर पुराने 'मैंबरों' को ही उस का सभासद नियत कर दिया । परन्तु उसके सभापति का पद स्वयं आपने ग्रहण किया और इसकी सूचना आदि निकालने ( कनवीनिंग - मैंबर ) का काम पंडित सुखदेवप्रसाद काक को सौंपा। यद्यपि इस सभा के 'मैंबरों' को यथा- पूर्व ही अपनेअपने कामों की देख-भाल करने के अधिकार दिए गए थे, तथापि इसके प्रस्ताव परामर्श के तौर पर ही माने जाते थे, और जब तक उन पर महाराजा साहब की स्वीकृति नहीं हो जाती थी, तब तक वे कार्यरूप में परिणत नहीं हो सकते थे । माघ सुदि १५ (१ फरवरी) को महाराजा साहब दिल्ली जाकर नरेन्द्र - मण्डल ( चेम्बर ऑफ प्रिंसेज ) की सभा में सम्मिलित हुऐ । इस अवसर पर 'वायसराय' ने महाराजा साहब को, दिल्ली में प्रिंस ऑफ वेल्स के समक्ष खेले गए 'पोलो' में जोधपुर-टीम के विजयी होने की बधाई दी। इसके बाद लॉर्ड रीडिंग ने पण्डित सुखदेवप्रसाद काक को 'नाइट - हुड' की सनद और कैप्टन ऐवन्स (G. F. Evans ) ( डिस्ट्रिक्ट मैनेजर, जोधपुर-बीकानेर - रेलवे, पश्चिमी विभाग ) को प्रो. बी. ई. का पदक प्रदान किया । माघ सुदि ११ ( २८ जनवरी) को वायसराय के लिये शिकार का प्रबन्ध किया गया और वहां म लौटने पर उसने यहां के किले और मंडोर के बगीचे का निरीक्षण किया । इसी रोज़ लेडी रीडिंग ने जाकर माजी सीसोदनीजी साहबा और माजी जाडेजीजी साहबा तथा महारानी भटियानीजी साहबा से मुलाकात की । इस प्रकार भारत - गवर्नमैंट के उच्चतम अधिकारी की यह यात्रा समाप्त हुई और वह तीसरे पहर यहां से विदा हो गया । १. फागुन सुदि ७ (२३ फरवरी) को कराची से पोरबन्दर जाते हुए, बंबई के 'गवर्नर' मर जॉर्ज लॉयड (George Lloyed) का, मार्ग में दरबार की तरफ से भोजनादि से सत्कार किया गया। चैत्र वदि १३ ( ई. स. १६२३ की १५ मार्च ) को श्रीमती सूरज कुँवरी बाईजी साहबा के गर्भ से रीवां - महाराजकुमार मार्तण्डसिंहजी का जन्म हुआ । इस पर जोधपुर में भी हर्ष मनाया गया और किले से ५१ तोपें चलाई गई । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ५४५ www.umaragyanbhandar.com Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास वि० सं० १९८० की चैत्र सुदि २ ( १६ मार्च ) को राजकीय जमा-खर्च के तरीके की जांच के लिये मिस्टर जे० डब्ल्यू० यंग (J. W Young, O. B E.) तीन मास के लिये, गवर्नमैन्ट से मांग कर, बुलवाया गया । द्वितीय ज्येष्ठ वदि ४ ( २ जून ) को महाराजा साहब १७ वें पूना हौर्स रिसाले के 'ऑनररी-मेजर' बनाए गएं। द्वितीय ज्येष्ठ वदि १३ ( १२ जून ) को मिस्टर लॉयल ( फाइनैंस-मेम्बर ) के चले जाने से उसका काम पंडित सुखदेवप्रसाद काक और मिस्टर डेक बोकमैन में बाँट दिया गया । इसके बाद से पंडित सुखदेवप्रसाद काक ही फाइनैंस-मैंबर भी कहलाने लगा और मिस्टर यंग (J. W. Young), १ वर्ष के लिये, 'एकाउन्टैन्ट जनरल' बनाया गया। द्वितीय ज्येष्ठ सुदि २ ( ई० स० १९२३ की १६ जून ) को ज्येष्ठ महाराज कुमार श्री हनवन्तसिंहजी का जन्म हुआ। इस शुभ अवसर पर राज्य और प्रजा में आनन्द का वातावरण छा गयाँ, किले से १२५ तोपों की सलामी दागी गई, २ आजन्म और ३६ साधारण कैदी मुक्त किए गए, राज्यभर में एक सप्ताह की छुट्टी की गई और अंगरेजों, सरदारों, मुत्सदियों, राज-कर्मचारियों और सैनिकों को भोज दिए गए। इन दिनों नागोर के मंगलदास नामक साधु ने डकैती का पेशा इखतियार कर बड़ा उपद्रव मचा रक्खा था। परन्तु अन्त में वि० सं० १९८० की मंगसिर सुदि ३ १. द्वितीय ज्येष्ठ वदि ।। २ जून ) को बादशाह जॉर्ज पंचम की वर्षगांठ के अवसर पर महाराज फतेसिंहजी (होम-मैम्बर ) को सी० एस० प्राइ० की उपाधि मिली। २ इस वर्ष भी जोधपुर की 'पोलोटीम' ने 'पूना अोपन पोलो टूर्नामेंट' में विजय प्राप्त की। ३. आषाढ सुदि १४ (२६ जुलाई ) को महाराजा साहब ने अपने श्वसुर ठाकुर जैसिंह को ७.३१६ रुपये वार्षिक आय की जागीर दी । (इस जागीर के गांवों में का एक गांव पीछे से दिया गया था।) श्रावण ( अगस्त ) में महाराजा साहब 'पोलो' खेलने के लिये पूना गए। वहां पर भी जोधपुर की 'टीम' ने 'पोलो' के खेल में विजय प्राप्त की। इसके बाद क्वाँर ( अक्टोबर ) में आप वहां से लौट पाए । मैंगसिर बदि • ( ३० नवम्बर ) को महाराजा साहब अपनी 'पोलो-टीम' के साथ कलकत्ते गए और पौष सुदि २ (ई. स. १६२४ की ८ जनवरी) को लौट कर जोधपुर पहुंचे। इस यात्रा में महारानी साहबा भी आपके साथ थीं। (वि. सं० १९८. के पौष ( ई. स. १६२३ के दिसम्बर ) में महाराजा साहब के छोटे भ्राता महागज अजितसिंहजी, राज्य-प्रबन्ध की शिक्षा प्राप्त करने के लिये, मेयो कालिज से जोधपुर चले पाए थे।) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाराजा उमेदसिंहजी ( ई० स० १९२३ की १० दिसम्बर ) को राजकीय पुलिस ने, जो ठाकुर कानसिंह, इन्सपैक्टर जोधपुर-पुलिस की अध्यक्षता में, उसका पीछा कर रही थी, उसे उसके तीन अनुयायियों सहित, एक मकान में घेर कर मार डाला। इसके बाद वि० सं० १९८१ के ज्येष्ठ और आषाढ ( ई० स० १९२४ की जून और जुलाई ) तक उसके दल के बचे हुए दो डकैत मोतीसिंह और मानसिंह भी जिंदा पकड़ लिए गए । इससे सारा उपद्रव शान्त हो गया । ___ वि० सं० १९८० की माघ बदि ६ ( ई० स० १९२४ की ३० जनवरी ) को महाराजा साहब की बड़ी बहन (स्वर्गवासी महाराजा सरदारसिंहजी साहब की बड़ी राजकुमारी) श्री मरुधर कुँवरी बाईजी साहबा का शुभ विवाह जयपुर-नरेश महाराजा मानसिंहजी के साथ बड़ी धूम-धाम से हुआ। दोनों ही तरफ़ से बड़ी-बड़ी तैयारियां की गई थीं । इस अवसर पर अलवर और रीवां के नरेशों ने भी जोधपुर आकर उत्सव में भाग लिया। माघ सुदि १३ ( १८ फरवरी ) से फागुन सुदि ४ ( १ मार्च ) तक महाराजा साहब ने, प्रजाजनों की अवस्था जानने के लिये, मारवाड़ में दौरा किया। . १. इस कार्य तत्परता और वीरता के लिये ठाकुर कानसिंह सुपरिन्टैन्डैन्ट-पुलिस बना दिया गया। २. चैत्र बदि ३ (ई. स. १६२४ की २३ मार्च) को महाराजा साहब अपनी माता सीसोदनीजी साहबा की अस्वस्थता के कारण उदयपुर जाकर उनसे मिले और छठे दिन वापस लौट आए। चैत्र बदि १० (३० मार्च ) को ऐल० डब्ल्यू रैनॉल्डस की बदली हो जाने से लैफिटनेंट कर्नल मैकर्सन (A. D. Macpherson, I. A.) जोधपुर का रैजीडैन्ट नियुक्त हुआ। वि. सं. १६८१ की चैत्र सुदि ८ ( १२ अप्रेल ) को, गरमियों की मौसम आजाने से, महाराजा साहब सकुटुम्ब केटा गए और आषाढ सुदि १० (११ जुलाई ) को वहां से लौट पाए । वैशाख बदि १२ (३. अप्रेल ) को रामो बहादुर पंडित ज्वालासहाय मिश्र दो वर्ष के लिये 'चीफ-जज' बनाया गया। (पहले के 'चीफ-जज' रामओ साहब लक्ष्मीदास सपट का वि० सं० १९८० के कार्तिक (ई. स. १६२३ के नवम्बर ) में देहान्त हो गया था। इस पर दरबार ने, उसकी सेवाओं के उपलक्ष में, उसकी विधवा के लिये १५० रुपये मासिक की आजन्म पैन्शन ( तनख्वाह ) करदी।) ज्येष्ठ सुदि १ ( ३ जून ) को सम्राट् के जन्म दिवस पर जोधपुर पुलिस के इंसपैक्टर-जनरल मालकम रतनजी कोठावाला (M. B. E.) को 'खाँ बहादुर की' उपाधि और स्कॉटलैंड-मिशन के ५४७ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास वि० सं० १९८१ की श्रावण सुदि १ ( १ अगस्त ) से ३ ' डिस्ट्रिक्ट' और 'सैशन ' ' को ' ( अदालतों ) की स्थापना की गई । इन दिनों यहां की जनता मारवाड़ से मादा जानवरों का बाहर जाना रोकने के लिये आन्दोलन कर रही थी । इससे श्रावण बदि ७ ( २३ जुलाई ) को महाराजा साहब ने देश और जनता के हितार्थ मादा जानवरों (गाय, बकरी, भेड़ वगैरा ) का बाहर जाना अस्थायी रूप से रोक दिया और इसके बाद गांवों की जनता के भावों की जांच कर भादों वदि १ ( १५ अगस्त) को इस आज्ञा को स्थायी रूप देदियो । मँगसिर वदि ४ ( ई० स० १९२४ की १५ नवम्बर ) को महाराजा साहब, नरेन्द्र-मण्डल की सभा में सम्मिलित होने के लिये, दिल्ली गए और मँगसिर वदि १२ ( २३ नवम्बर ) को वहां से लौट आएँ । डाक्टर थी डोर चामर्स ( Theodore Chalmers ) को 'कैसरे - हिन्द' का ( द्वितीय श्रेणी का ) पदक मिला । आषाढ वदि ३ (१६ जून) को 'रिवैन्यू - मैम्बर' मिस्टर ड्रेक ब्रोकमैन के ८ महीने की छुट्टी जाने पर उसके विभागों का काम अन्य 'मैम्बरों' में बांट दिया गया । सावन वदि २ ( २७ जून ) को जोधपुर की 'पोलोटीम' ने " केटा अमेरिकन- हैंडीकैप' में विजय प्राप्त की । श्रावण वदि १३ ( २६ जुलाई ) को महाराजा साहब सुमेर पुष्टिकर स्कूल के 'हाई स्कूल' बनाए जाने के उपलक्ष में किए गए, उत्सव में शरीक़ हुए । "" १. इससे कोर्ट सरदारान. दीवानी और फ़ौजदारी अदालतों का काम इन अदालतों में होने लगा । 'जुडीशल-सुपरिटेन्डेन्टों' के अधिकार बढ़ाकर १,००० से २,००० रुपये तक कर दिए गए । नायत्र हाकिमों को तीसरे दरजे के मैजिस्ट्रेट के इख्तियार मिले और दो ऑनररी ( अवैतनिक ) मैजिस्ट्रेटों के कोर्ट बनाए गए । २. भादों सुदि १३ (११ सितम्बर) को जोधपुर में २४ घंटों में १७ इंच वर्षा होजाने से चारों तरफ जल ही जल दिखाई देने लगा । कार्तिक वदि ४ (२५ सितम्बर ) को ' जोधपुर- पोलो टीम' ने पूना में ' सर प्रतापसिंह कप का 'फाइनल मैच' जीता । ३. मँगसिर सुदि १ ( २७ नवम्बर) को जोधपुर में पहले-पहल हवाई जहाज़ आया । जिन लोगों को उसे पहले कहीं देखने का अवसर नहीं मिला था उन्होंने उसे बड़ी ही उत्सुकता और आश्चर्य के साथ देखा । मँसिर सुदि २ (२८ नवम्बर ) को महाराजा साहब ने कलकत्ते की यात्रा की और माघ वदि ११ (३० दिसम्बर) को वहां पर आपकी 'पोलोटीम' ने 'इंडियन पोलो एसोसियेशन' क 'चैंपियन कप' जीता | इसके बाद पौष सुदि ६ ( ई० स० १६२५ की जनवरी) को आप वहां से वापस आए । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ५४८ www.umaragyanbhandar.com Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाराजा उमेदसिंहजी वि० सं० १९८१ की पौष सुदि ७ (ई० स० ११२५ की १ जनवरी) से राज-कर्मचारियों के लिये 'प्रौवीडैन्ट फंड' की स्थापना की गई । इससे उनके रियासत की सेवा से अवसर ग्रहण करने पर गुजारे का बहुत कुछ सुभीता हो गया। ई० स० १९२५ की ६ जनवरी को 'ड्यूक ऑफ़ कनाट' के पुत्र 'हिज़ रॉयल हाइनैस' प्रिंस अर्थर ऑफ़ कनाट और उनकी पत्नी का जोधपुर में आगमन हुआ। इस पर महाराजा साहब की तरफ़ से भी उनके अनुरूप ही उनका आदर सत्कार किया गया। __ माघ सुदि ४ ( ई० स० १९२५ की २८ जनवरी ) को महाराजा साहब के छोटे भ्राता महाराज अजितसिंहजी की बरात ईसरदे' ( जयपुर राज्य ) के लिये रवाना हुई । उस समय स्वयं महाराजा साहब भी उसके साथ थे । वहां पर माघ सुदि ५ (२१ जनवरी ) को महाराज अजितसिंहजी का शुभ विवाह वहां के ठाकुर की कन्या से सकुशल संपन्न हुआ। चैत्र वदि १२ (२१ मार्च ) को महाराजा साहब ने सकुटुम्ब इंगलैंड की यात्रा की । राजपूताने के रईसों में पहले-पहल आपने ही इस प्रकार विलायत की यात्रा की पौष सुदि ७ (ई. स. १६२५ की १ जनवरी) को पौकरन-ठाकुर राप्रो बहादुर मंगलसिंह, पब्लिक वर्क्स मैम्बर जोधपुर-दरबार की उत्तम सेवाओं के उपलक्ष्य में सी. आइ० ई० और पंडित सूरजप्रकाश वातल, अध्यक्ष विद्या-विभाग, 'राय साहब' बनाए गए । फागुन वदि २ (१० फरवरी) को बून्दी-नरेश श्री रघुवीरसिंहजी जोधपुर आए और फागुन वदि ११ ( १६ फरवरी) को यह वापस लौट गए। (फागुन वदि ६ ( १४ फरवरी) को यहां पर महाराज अर्जुनसिंहजी की कन्या से आपका विवाह हुआ।) चैत्र वदि २ ( १८ फरवरी) को जोधपुर की 'पोलो टीम' ने दिल्ली में फिर प्रिंस ऑफ वेल्स कमेमोरेशन कप (Prince of Wales Commemoration Cup) जीता। (२८ फरवरी ) को मिस्टर डी० एल० ड्रेक ब्रोकमैन, रिवेन्यू मैम्बर ८ महीने की छुट्टी से लौट कर आया । १. स्वर्गवासी जयपुर-नरेश महाराजा माधोसिंहजी और वर्तमान जयपुर-नरेश महाराजा मान सिंहजी ईसरदे-ठिकाने से ही गोद आए थे। इस सबब से महाराज अजितसिंहजी की कुँवरानी साहबा वर्तमान जयपुर-नरेश की बड़ी बहन होती हैं। २. वहां से आप माघ सुदि ८ (१ फरवरी) को लौटे। ३. फागुन सुदि १४ (६ मार्च ) को महाराजा साहब ने बेड़ा ठाकुर पृथ्वीसिंह को हाथी सरोपाव, हाथ का कुरब और दुहेरी ताज़ीम आदि देकर सम्मानित किया । ४. आपका 'नरकुंडा' नामक जहाज़ वि० सं० १९८२ की चैत्र सुदि ४ (२८ मार्च) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भारवाड़ का इतिहास थी । इस यात्रा में महाराज अजितसिंहजी और जोधपुर की 'पोलो-पार्टी' भी आपके साथ थी । वहां पर सम्राट पंचम जार्ज से मिलने पर उन्होंने आपका अच्छा स्वागत किया और इस यात्रा में आपकी 'पोलो-पार्टी' ने भी कई प्रसिद्ध-प्रसिद्ध 'मैचों में विजय प्राप्त की। ___ महाराजा साहब की इंगलैंड-यात्रा के समय राजकीय 'काउंसिल' का कार्य रात्रो बहादुर सर पंडित सुखदेवप्रसाद काक की अध्यक्षता में होता था । वि० सं० १९८२ की ज्येष्ठ सुदि ११ ( ई० स० १९२५ की ३ जून ) को, बादशाह की बैरसगांठ के अवसर पर, गवर्नमैंट ने महाराजा उमेदसिंहजी साहब को के० सी० एस० आइ० की उपाधि से भूषित किया और इसके बाद आषाढ सुदि ४ (२५ जून ) को आपके बादशाह से मिलने पर उन्होंने स्वयं अपने हाथ से आपको उपर्युक्त उपाधि ( के० सी० एस० आइ० ) का पदक पहनाया। आषाढ वदि ३० ( २१ जून ) को लंदन में ही आपके द्वितीय महाराज-कुमार हिम्मतसिंहजी का जन्म हुआ। को बम्बई से रवाना हुआ था। वैशाख वदि १ (१० अप्रेल ) को आप मार्सलीज पर उतरे और वहां से वैशाख वदि ३ ( ११ अप्रेल ) को रेलद्वारा लन्दन पहुँचे । १. लन्दन से लौटने पर आप पोलिटिकल और जुडीशल मैम्बर के पास बैठकर और काउंसिल की बैठकों में भाग लेकर राज-कार्य का अनुभव प्राप्त करने लगे। २. यह मुलाकात ज्येष्ठ वदि १४ ( २१ मई ) को हुई थी और महाराजा साहब सम्राट् द्वारा निमंत्रित होकर दरबार में गए थे । इसी मास ( मई ) में जोधपुर की 'पोलोटीम' ने इंगलैंड में 'माइन हैड ओपन कप (Mine Head Open Cup) जीता। ३. ज्येष्ठ सुदि ११ (३ जून ) को बादशाह की बरसगांठ के अवसर पर राजपूत-स्कूल का प्रिंसिपल मिस्टर आर० बी० वानवर्ट ( R. B. Van Wart) ओ० बी० ई. बनाया गया। इस मास में दरबार की 'पोलोटीम' ने लन्दन में 'रोहैम्पटन चैलेंज कप' (Rohempton Challenge Cup) जीता और इसके बाद जुलाई में इसने लन्दन का 'हर्लिंगहम चैम्पियन कप' Hurlingham Champion Cup) भी जीत लिया। अगस्त में महाराजा साहब की 'पोलोटीम' ने 'रगबी ओपन कप' (Rugby Open Cup) के 'मैच में विजय प्राप्त की। ४. इस अवसर पर किले से १२५ तोपें दागी गई, दफ्तरों में ५ दिन की छुट्टी व जलसे आदि किए गए। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाराजा उमेदसिंहजी लंदन में रहने के समय आपने वहां के अनेक दर्शनीय और सार्वजनिक स्थानों का निरीक्षण किया, बादशाह द्वारा किए गए वैंबले ( Wembley) प्रदर्शनी के उद्घाटनोत्सव में योग दिया और स्कॉटलैंड की यात्रा की । इसके बाद अक्टोबर ) को आप इंगलैंड से रवाना होकर कार्तिक सुदि जोधपुर पहुँचे । कार्तिक वदि ६ (८ (२४ अक्टोबर ) को ७ माघ वदि ७ ( ई० स० १९२६ की ६ जनवरी) को महाराजा साहब ने, २,०६,८३५ रुपयों की लागत से बने, दरबार हाई स्कूल के नए भवन और जसवन्त कालिज के नए भाग का उद्घाटन किया । वि० सं० १९८३ की प्रथम चैत्र सुदि ( ई० स० १९२६ के मार्च के अन्त) में आप बंबई जाकर जाने वाले 'गवर्नर जनरल' लॉर्ड रीडिंग और आने वाले लॉर्ड इरविन से मिले और वहां से लौट कर द्वितीय चैत्र वदि १३ (१० अप्रेल ) को सकुटुम्ब १. आपका ‘रांची' नामक जहाज कार्तिक सुदि ६ ( २३ अक्टोबर ) को बम्बई पहुंचा था । अगले महीने में ( संखवाय ) ठाकुर प्रतापसिंह ने ४० वर्षों की सेवा के बाद ऑफिसर कमांडिंग सरदार रिसाला के पद अवसर ग्रहण किया । महाराजा साहब की इस वर्ष की इंगलैंड यात्रा के समय सेना - विभाग का सारा काम इसके अधिकार में रहा था। इसके अवसर ग्रहण करने पर दरबार की तरफ से इसकी उत्तम सेवाओं की यथानियम सराहना की गई और इसके रिक्तस्थान पर ( रोडला ) ठाकुर अनोपसिंह कमांडिंग ऑफिसर नियुक्त हुआ । पौष वदि ३० ( ई० स० १६२५ की १५ दिसम्बर ) को दरबार ने कृपा कर नगर के राजनीतिक आन्दोलनकारियों को माफ़ी देदी । माघ वद २ ( ई० स० १६२६ की १ जनवरी) को जसोल ठाकुर रावल जोरावरसिंह 'राम्रो बहादुर' बनाया गया और ख़ान बहादुर माल्कम कोठा वाला, (Malcolm Ratanji Kotha - wala) इंसपैक्टर जनरल पुलिस को बादशाही पुलिस का तमगा (King's Police Medal ) मिला । फागुन वदि २ ( : १ जनवरी) को जामनगर - महाराज ने जोधपुर आकर करीब १५ दिनों तक राज्य की मेहमानदारी स्वीकार की । २. वि० सं० १६८२ की द्वितीय चैत्र वदि ६ ( ४ अप्रैल) को आप बम्बई से लौटे थे । ( प्रथम चैत्र वदि ( ई० स. १६२६ की ३ मार्च ) तक यहां के रैजीडेंट का कार्य लेफ्टिनैंट कर्नल मैक्र्सन ( Lt. -Col. A. D. Macpherson) करता रहा, और फिर उसके स्थान पर मिस्टर केटर (A. N. L. Cater, I. C. S . ) नियुक्त हुआ । इसके बाद वि० सं० १९८३ की प्रथम चैत्र सुदि १० ( २३ मार्च ) को कर्नल स्ट्रौंग (Lt.. Col. H. S. Strong ) रैजीडैन्ट होकर आया । ज्येष्ठ वद C ( 3 जून) को बादशाह की बरसगांठ के अवसर पर 'राय साहब' डाक्टर कार सिंह, एसिस्टेंट सर्जन हीयूसन अस्पताल को 'राम्रो बहादुर' का ख़िताब मिला । ५५२ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास उटकमंड चले गए । वहीं पर वैशाख सुदि ७ (११ मई ) को जिस समय आप शेर के शिकार के लिये नीलगिरि के घने जंगल (आन-कुट्टी) में घूम रहे थे, उस समय आपका सामना टोले से जुदा हुए एक मस्त जंगली हाथी से हो गया । उसे देखने ही आपके साथ के लोग भाग खड़े हुए। इतने ही में उस मदान्ध हाथी ने आप पर आक्रमण कर दिया । उस समय आपके पास केवल एक भरी हुई दु-नाली बंदूक थी और कारतूस रखनेवाला अनुचर तक पहले ही भाग चुका था । ऐसे संकट के समय भी आपने धैर्य को न छोड़ा और हाथी की तरफ़ मुख किए हुए ही आप पीछे हटने लगे । परन्तु जब वह हाथी बहुत ही पास आ गया, तब आपने उसके मस्तक को लक्ष्य कर एक गोली चलाई । यद्यपि इसकी चोट से एकवार तो वह मस्त हाथी जहां का तहां ठिठक रहा तथापि उसी समय पीछे वृक्ष का तना आ जाने से महाराजा साहब के ठोकर खाकर गिर पड़ने से उसने आगे बढ़कर आप पर आक्रमण कर दिया । ऐसे समय आपके पुण्य-प्रताप ने आपकी सहायता की; जिससे आप उसके दोनों विशाल दांतों के बीच आगए । हाथी की सूंड आपकी गोली से पहले ही क्षत-विक्षत हो चुकी थी, इसलिये वह उससे काम न ले सका । इसी समय आपके छोटे भ्राता महाराज अजित सिंहजी और महाराजा सर प्रतापसिंहजी के दौहित्र ( बेड़ा-ठाकुर ) पृथ्वीसिंह ने आपके न दिखाई देने के कारण जैसे ही इधर-उधर नजर दौड़ाई वैसे ही आपको उस अवस्था में देखा । इस पर वे दोनों शीघ्र ही पलट पड़े और उन्होंने अपनी-अपनी दु-नाली बंदूकों से दो-दो गोलियां चलाकर उस हाथी के मस्तक को विदीर्ण कर दिया । इन करारी चोटों के लगने से वह मदान्ध हाथी घबरा गया और महाराजा साहब को छोड़ कर चिघाड़ता हुआ भा चला । महाराजा साहब ने इस आकस्मिक आक्रमण से सम्हलते ही अपने साथवालों को उस हाथी का पीछा करने की आज्ञा दी । इस पर तत्काल उन्होंने उसका अनुसरण किया और एक नाले के पास पड़ा पाकर उसे समाप्त कर दिया । इस प्रकार इस महान् संकट के समय ईश्वर की कृपा से आपकी रक्षा हुई। इसके बाद आप गरमी की मौसम उटकमंड में बिताकर कर वदि ९ (३० सितंबर) को जोधपुर लाट आए । वैशाख सुदि २ ( १३ मई) को मारवाड़ की पुलिस ने डकैत रणजीतसिंह और जवाहरसिंह का वीरता से सामना कर उन्हें मार डाला। कई वर्षों से सीकर-राज्य के भूरसिंह नामक डकैत ने जयपुर, जोधपुर, बीकानेर, किशनगढ़, अलवर, नाभा, १. आषाढ सुदि ३ ( १३ जुलाई ) को मिस्टर विनगेट ( R E. L. Wingate, I. C. S.) यहां का रेज़ीडेंट नियुक्त हुआ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ५५२ www.umaragyanbhandar.com Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाराजा उमेदसिंहजी पटियाला और अजमेर-मेरवाड़े में उपद्रव मचा रक्खा था। इसी से वि० सं० १९८३ की कार्तिक वदि । ( ई० स० १९२६ की ३० अक्टोबर ) को मारवाड-पुलिस के ठाकुर बख़तावरसिंह और ठाकुर कानसिंह ने सीकर-राज्य में घुस कर उसे और उसके साथियों को मार डाला । इस पर जयपुर आदि कुछ राज्यों की तरफ़ से मारवाड़ -पुलिस के लिये १३,६०० रुपये इनाम के भेजे गए । आश्विन और कार्तिक ( अक्टोबर और नवम्बर ) में महाराजा साहब ने मारवाड़ राज्य के देसूरी-प्रान्त का दौरा किया । इसके बाद ( नवम्बर में ) आप राजकीय रेल्वे के लूनी जंकशन, बाहड़मेर और गडरा-रोड़ नामक स्टेशनों, समदड़ी के नए पुल और जालोर की नई लाइन का निरीक्षण करने को गए । इस यात्रा में आपने किराडू के जीर्ण-शीर्ण परन्तु कला-पूर्ण शिव-मन्दिरों का भी निरीक्षण किया और साथ ही ऐसे स्थानों की रक्षा आदि के लिए आर्किया लॉजिकल डिपार्टमैन्ट ( पुरातत्व-विभाग ) की स्थापना की । इसी मास में आप दिल्ली जाकर नरेन्द्र-मण्डल की बैठक में सम्मिलित हुए । वि० सं० १९८३ की मँगसिर वदि ११ (ई० स० १९२६ की १ दिसम्बर) को राओ बहादुर पंडित सुखदेवप्रसाद काक, के० टी०, सी० आइ० ई०, पोलिटिकल, जुडीशल और फाइनैन्स मैम्बर ने जोधपुर-दरबार की सेवा से अवसर ग्रहण कर लिया । इस पर राओ बहादुर सरदार ज्वालासहाय मिश्रे जुडीशल-मैम्बर बनाया गया और पोलिटिकल और फाइनैन्स मैम्बर का काम अस्थायी तौर पर रिवैन्यू-मैम्बर मिस्टर डी० एल० डेक ब्रोकमैन, सी० आइ० ई०, आइ० सी० ऐस० को सौंपा गया। साथ ही पोलिटिकल डिपार्टमैन्ट का काम तो स्वयं महाराजा साहब के तत्वावधान में रहा और बाकी के महकमे, जो पंडित सुखदेवप्रसाद काक के अधीन थे, दूसरे मैम्बरों में बाँट दिए गए । ___ वि० सं० १९८३ की मँगसिर सुदि १५ ( १६ दिसम्बर को नगर की प्रजा ने और राजनीतिक आन्दोलनकारियों ने उपस्थित होकर महाराजा साहब के सामने अपनी राज-भक्ति प्रकट की। इसपर श्रीमान् ने भी अपना प्रजा-प्रेम प्रकट कर सबको सन्तुष्ट किया । १. कार्तिक वदि ११ (ई. स. १६२६ की १ नवम्बर ) से फिर कर्नल स्ट्राँग (Lt.- Col. ____H. S. Strong. I. A.) रेजीडेन्ट नियुक्त हुआ। २. इसी अवसर पर पण्डित ज्वालासहाय मिश्र को दरबार की तरफ से सोना और ताज़ीम की इज्ज़त दी गई। ५५३ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास पौष वदि ३० ( ई० स० ११२७ की ३ जनवरी को, देन लेन और व्यापार के सुभीते के लिये, जोधपुर में 'इम्पीरियल बैंक की शाखा खोली गई और राजकीय खजाने का काम भी उसको सौंप दिया गया । , पौष सुदि ५ ( ई० स० १९२७ की ८ जनवरी) को यहां पर लॉर्ड विंटरटन, अंडर-स्टेट-सैक्रेटरी फॉर इन्डिया का आगमन हुआ । वि० सं० १९८३ की माघ वदि ६ ( ई० स० १९२७ की २४ जनवरी) को कचहरी में एक दरबार किया गया । इसमें उन पुलिस अफसरों को, जिन्होंने अपनी जान को जोखम में डालकर अरटिये के रणजीतसिंह और जवाहरसिंह तथा सीकर के भूरसिंह और बलसिंह को, जो जोधपुर और आस-पास की रियासतों में डकैतियां किया करते थे, मारा था जमीन और अन्य शस्त्रादि इनाम में दिए गए और जोधपुर पुलिस के इन्सपैक्टर जनरल मिस्टर कोठावाला को एक तलवार ( Sword of Honour) मिली । C फागुन सुदि ८ ( ११ मार्च) को कर्नल विंढम ( Lt. Col. C. J. Windham, I. A., C. I. E.) जो पहले यहां पर रैजीडेंट रह चुका था, 'राजकीय- काउंसिल' का ' वाइस प्रेसीडेन्ट' बनाया गया और पोलिटिकल और फाइनैन्स मैम्बर का काम उसे सौंपा गया । वि० सं० १९८४ की वैशाख वदि ११ ( २७ अप्रेल ) को महाराजा साहब ने अपने छोटे भ्राता महाराज अजितसिंहजी को ५४,८७५ रुपये वार्षिक आमदनी के ७ गांवे जागीर में दिए और इसके कुछ मास बाद उन्हें डाइरेक्टर ऑफ़ वेटरनरी सर्विसेज (Director of Veterinary Services ) नियुक्त कर उक्त महकमे के पूरे अघिकार सौंप दिएँ । वि० सं० १९८४ की मँगसिर सुदि १४ ( ई० स० १६२७ की ७ दिसम्बर ) को महाराजा साहब फिर जोधपुर - रेल्वे का निरीक्षण करने के लिये दौरे पर निकले । १. अन्य अनेक डकैतों को नष्ट करने में भी पुलिस - सुपरिन्टेन्डेन्ट महेचा बख़तावर सिंह, और खीची कानसिंह ने अच्छी वीरता दिखलाई थी । २. उन गांवों के नाम ये हैं: १ बीसलपुर, पटवा, ३ चावंडिया, ४ आगेवा, ५ बीलावास, ६ मुसालिया, ७ नारलाई । ३. ज्येष्ठ सुदि ४ ( ३ जून ) को बादशाह की बरसगांठ के अवसर पर रिवेन्यू - मैंबर मिस्टर डी. एल • ड्रेक ब्रोकमैन को सी० आई० ई० का ख़िताब मिला । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ५५४ www.umaragyanbhandar.com Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाराजा उमेदसिंहजी इस यात्रा में आपने परबतसर-लाइन, लाडनू और मूंडवा स्टेशनों और भदवासी ( नागोर के पास ) की खड़िया ( नागोरी खड्डी=Gypsum) की खानों का निरीक्षण किया। _माघ सुदि १ ( ई० स० १९२८ की २३ जनवरी) को भारत का गवर्नर जनरल और वायसराय लॉर्ड इरविन मय अपनी पत्नी के जोधपुर आया और उसने यहां के घोड़ों, मवेशियों और व्यापारिक वस्तुओं की प्रदर्शनी को देखकर मारवाड़ के नागोरी बैलों की बहुत प्रशंसा की । दूसरे दिन महाराजा साहब के सेना-नायकत्व में सरदार रिसाले का प्रदर्शन (Review) हुआ । उस समय उसके सवारों की कार्य-दक्षता को देख वायसराय ने प्रसन्नता प्रकट की । उसी दिन रात्रि में राजकीय भोज (State banquet) के समय महाराजा साहब ने दो लाख रुपये देकर मारवाड़ी युवकों के लिये पशु-चिकित्सा (Veterinary) और कृषि-विज्ञान (Agricultural science) की ४ इरविन-छात्र-वृत्तियां (Scholarships) नियत करने और हाल ही में हिन्दू-यूनीवर्सिटी को कृषि-विद्या की शिक्षा के लिये दिए तीन लाख रुपयों से इरविन-कृषिविद्या-शिक्षक (Irwin Chair of Agriculture) नियुक्त करने की इच्छा प्रकट की। १. वि० सं० १९८४ की कार्तिक वदि ६ ( ई० स. १९२७ की १६ अक्टोबर ) को महाराजा साहब, अपने मामू (maternal uncle) बूंदी-नरेश रघुवीरसिंहजी की मातमपुरसी के लिये, बूंदी गए और वहां से लौटने पर कार्तिक वदि १४ ( २४ अक्टोबर ) को बीकानेर की 'गंगा-कैनाल' नामक नहर के उद्घाटनोत्सव में सम्मिलित हुए। वि. सं. १९८४ की मँगसिर सुदि १४ (७ दिसम्बर ) को गश्त के समय, देवीसिंह, सबइंसपेक्टर-पुलिस डकैतों द्वारा मारा गया । महाराज ने उसकी वीरता और कार्य-तत्परता से प्रसन्न होकर उसकी स्त्री के गुज़ारे के लिये 'पैनशन' नियत करदी । • यह रुपया पण्डित मदनमोहन मालवीय के, वि. सं. १९८४ के मँगसिर (ई. स. १६२७ की नवम्बर ) में, जोधपुर आने पर दिया गया था और इसी के साथ राज-परिवार और प्रजावर्ग ने भी इस कार्य के लिये एक लाख रुपया और इकट्ठा कर दिया था। ( पहले लिखे अनुसार हिन्दू-विश्वविद्यालय (Hindu University) के कायम किए जाने के समय भी जोधपुर-राज्य से दो लाख रुपये दिए गए थे और चौबीस हज़ार सालाना पर शिल्पकला-विज्ञान की शिक्षा के लिये एक शिक्षक (Jodhpur Hardinge Chair of Technology) नियुक्त किया गया था। यह उपर्युक्त रकम वि. सं. १६६६ के माघ (ई• स १९१३ की फरवरी ) में दरभंगा-नरेश और मदनमोहन मालवीय के यहां आने पर दी गई थी।) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास इस पर वायसराय ने भी शिक्षोन्नति की इन दोनों बातों को सहर्ष स्वीकार कर लिया । तीसरे दिन प्रातःकाल वायसराय ने जोधपुर के दुर्ग का निरीक्षण किया और उसी दिन तीसरे पहर वह लौट गया । फागुन वदि ११ ( १७ फरवरी ) को महाराजा साहब नरेन्द्र-मण्डल (Chamber of Princes ) की सभा में सम्मिलित होने के लिये दिल्ली गए, और वि० सं० १९८५ की चैत्र सुदि ३ ( २४ मार्च ) को आपने तिलवाड़े ( मारवाड़ के पश्चिमी-प्रान्त ) के मेले में लाए गए मारवाड़ के घोड़ों और मवेशियों का निरीक्षण किया। इसके बाद गरमी का मौसम आ जाने से वैशाख सुदि १५ ( ४ मई ) को आप सकुटुम्ब उटकमंडे चले गए और वहां से द्वितीय सावन सुदि ३ (१८ अगस्त ) को, डाक्टरों की सलाह के अनुसार, स्वास्थ्य-लाभ के लिये, बंबई होकर, इंगलैंड को रवाना हो गए । इससे आपकी अनुपस्थिति में स्टेट काउंसिल के सभापति का कार्य लैटिनेंट कर्नल विंढम करने लगा। ___जोधपुर में प्राचीन काल से रिवाज चला आता है कि यदि कोई पुरुष वध किए जाने वाले बकरों आदि को लेकर शराफ़ा-बाजार से निकलता है तो वहां के महाजन लोग उन पशुओं की कीमत देकर उन्हें धर्मपुरे के बाड़े में भेज देते हैं । इसी के अनुसार वि० सं० १९८५ की ज्येष्ठ सुदि १० (ई० स० १९२८ की २६ मई ) को जब कुछ मुसलमान कुर्बानी के एक बकरे को लेकर उस खास बाजार से निकले, तब महाजनों ने दुगनी-तिगनी कीमत देकर, प्रचलित-प्रथानुसार, उस बकरे को ले लेना चाहा । परन्तु वे मुसलमान पहले से ही जान-बूझ कर गड़-बड़ मचाने पर आमादा इसी अवसर पर वायसराय ने जोधपुर-राज्य की उन्नतिशील व्यवस्था की और अमेरिका जाने वाली भारतीय सैनिक 'पोलोटीम' को दो हुई महाराजा साहब की आर्थिक और घोड़ों की सहायता की प्रशंसा की। ___ वैशाख वदि ६ (१४ अप्रेल ) को लेफ्टिनेंट कर्नल विंढम तीन मास के लिये छुट्टी पर गया । इससे उसका काम जुडीशल और रिवेन्यू मैंबरों में बांट दिया गया । १. वैशाख सुदि १५ (४ मई) से लेफ्टिनेंट कर्नल स्ट्रांग के स्थान पर लेफ्टिनेंट कर्नल गबील (G. H. Cabriel, c. V. 0., I. A.) यहां का रैजीडेंट नियुक्त हुआ। ___ आषाढ वदि १ ( ४ जून ) को बादशाह की बरसगांठ के अवसर पर यहां की चीफ-कोर्ट के चीफ जज राम्रो साहब कुँवर चैनसिंह ( M. A., L L. B.) को 'राप्रो बहादुर' और सरदार रिसाले के कमांडेंट लेफ्टिनेंट कर्नल ठाकुर अनोपसिंह ( M. C.) को 'सरदार बहादुर' की उपाधियां मिलीं। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1 महाराजा उमेदसिंहजी थे । इसलिये उन्होंने उस बकरे को देने से इनकार कर दिया । इस पर महाजनों ने उस बकरे के कान में बाली ( कुड़की ) डाल कर उसे पास के सिटी - पुलिस के थाने में सौंप दिया । यह देख उस समय तो वे शरारती मुसलमान चुप हो रहे, परन्तु दूसरे दिन ईदगाह की नमाज़ के समय अन्य मुसलमानों को भड़का कर उनमें से करीब पांच हज़ार को पुलिस थाने पर चढ़ा लाए । यद्यपि पुलिस अफसरों ने शान्ति के साथ मामला तय कर देने की बहुत कुछ चेष्टा की, तथापि वे लोग बाहर के वातावरण से प्रेरित होने के कारण बल-प्रयोग करने पर उद्यत होगए । इसकी सूचना पाते ही जुडीशल - मिनिस्टर पण्डित ज्वालासहाय मिश्र ने सरदार रिसाले के कुछ सवारों को तत्काल घटनास्थल पर भेज दिया । इससे सारा झगड़ा शीघ्र ही शान्त हो गया । भादों सुदि ११ (२५ सितंबर) को जिस समय मकरौना नामक स्थान पर ठाकुरजी की रिवाड़ी जल-यात्रा की सवारी ), जुलूस और बाजे के साथ, वहां की एक मसजिद के सामने से निकली, उस समय कुछ मुल्लाओं के भड़काने से, मुसलमानों ने, अपने लिख कर दिए वादे को तोड़ कर, पुलिस और जुलूस के लोगों पर पत्थर फेंकने प्रारम्भ कर दिए । इस पर जैसे-जैसे उन्हें समझा कर शान्त करने की चेष्टा की गई, वैसे-वैसे वे अधिकाधिक उत्तेजना प्रकट करने लगे । इसके बाद उन्होंने उक्त मसज़िद के पीछे बने वहां के जागीरदार के बंधु रघुनाथ सिंह के बाड़े में आग लगा दी और स्वयं रघुनाथसिंह को तलवारों और लाठियों से क्षत-विक्षत कर मारडाला। उस समय वहां पर पुलिस के जवानों की संख्या कम होने से शीघ्र ही पासके परबतसर नामक स्थान से फौज बुलाई गई और इस प्रकार वह उपद्रव दबाया गया । इसके बाद उपद्रव करने वालों पर बाक़ायदा मुकद्दमे चलाए गए और अपराध सिद्ध हो जाने पर उन्हें सजाएँ दी गईं । १. मारवाड़ में प्रचलित प्रथा के अनुसार जिस बकरे के कान में बाली (कुड़की ) डाल दी जाती है वह अवध्य समझा जाता है और उसे यहां के लोग 'अमर-बकरा' कहते हैं । २. इस प्रकार के जातीय झगड़े को रोकने के लिये भादों सुदि ६ ( २० सितंबर) को फिरसे इस विषय के नियम तय किए गए और कार्तिक वदि ६ ( ३ नवंबर) को उन्हें राजकीय गजट में प्रकाशित करवा दिया गया । ३. यह स्थान जोधपुर से करीब ११८ मील ईशान कोण में स्थित है और वहां पर संगमरमर की खानें हैं । ४. यह स्थान मकराने से करीब १२ मील दक्षिण में है । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ५५७ www.umaragyanbhandar.com Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास कार्तिक ( नवंबर ) में लाला रामचन्द्र, सुपरिन्टैन्डेंट पुलिस, ने बड़ी मुस्तैदी से जामनगर के मकरानी डकैतों का पीछा किया और बाद में ठाकुर बखतावरसिंह और कानसिंह भी उसके साथ हो लिए । इसके बाद इन्होंने सिंध-प्रान्त में घुसकर इस डाकू-दल को नष्ट कर डाला। कार्तिक सुदि ४ (१६ नवंबर ) को महाराजा साहब, मय कुटुम्ब के, लंदन से रवाना होकर मंगसिर वदि ५ (१ दिसंबर ) को जोधपुर पहुँचे । इस पर राज-कर्मचारियों, नगर-वासियों और छात्र-गणों ने स्टेशन पर उपस्थित हो, बड़े आदर, प्रेम और उत्साह से आपका स्वागत किया। ___ माघ वदि १ ( ई० स० १९२६ की २६ जनवरी ) को महाराजा साहब ने एक आम दरबार कर सीकर-निवासी डकैत भूरसिंह के दल को नष्ट करने वाले मारवाड़-पुलिस के अफसरों और मुलाजिमों को १५,६०० रुपये का इनाम बांटा । इसमें का कुछ रुपया अन्य रियासतों ने, जो इस दल की लूट-मार से तंग आ गई थीं. भेजा था। इसी अवसर पर दरबार ने मालकम रतनजी कोठावाला, इन्सपैक्टर जनरल जोधपुर-पुलिस, की सेवाओं से प्रसन्न होकर उसे सोना और ताज़ीम दी । माघ वदि १४ ( ८ फरवरी ) को महाराजा साहब नरेन्द्र-मण्डल की सभा में सम्मिलित होने को दिल्ली गएं। १. इस पर जामसाहब रणजीतसिंहजी ने लाला रामचन्द्र को एक तलवार और सरोपाव दिया और उन्हीं की इच्छानुसार उनके उत्तराधिकारी ने खाँ बहादुर कोठावाला, इन्सपैक्टर जनरल-पुलिस, को एक सुवर्ण-पदक प्रदान किया । इस कार्य में चौहटन के ठाकुर सुलतानसिंह और रामसर के ठाकुर जवाहरसिंह ने भी पुलिस की अच्छी सहायता की थी। इससे प्रसन्न होकर जोधपुर-दरबार ने उन्हें एक-एक बंदूक (Rile) इनाम में दी। २. आपका ‘कैसरेहिंद' जहाज़ मँगसिर वदि ४ ( ३० नवंबर ) को बंबई पहुँचा था । ३. महाराजा साहब ने रेल से उतरते ही पहले उपस्थित लोगों का हार्दिक अभिनंदन ग्रहण किया और फिर किले पर स्थित अपनी कुल-देवी चामुण्डा के दर्शन कर अपने महल (राई के बाग ) में प्रवेश किया। इस वर्ष भी जोधपुर की 'पोलोटीम ने मेयो कालिज (अजमेर) के खेल में विजय प्राप्त की। पौष वदि ६ (ई० स० १९२६ की १ जनवरी) को ठाकुर बखतावरसिंह, सुपरिंटैंडैट-पुलिस, को बादशाही पुलिस मैडल (King's Police Medal) मिला ।। ४. यह दरबार पुराने 'पब्लिक-पार्क' में किया गया था। ५. माघ सुदि ८ (१७ फरवरी) को आप दिल्ली से वापस आए। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाराजा उमेदसिंहजी फागुन सुदि १ ( १२ मार्च) को आप फिर दिल्ली गए और वहां से हिन्दूयूनीवर्सिटी के कृषि विद्यालय ( Agricultural College ) का उद्घाटन करने को बनारस पहुँचे' । इस समय मारवाड़ में नाज महँगा हो रहा था । इसीसे दरबार ने उसका देश से बाहर जाना रोक दिया और बाहर से नाज मँगवा कर शहर में सस्ते नाज की दूकानें खुलवा दीं। इससे गरीबों को बड़ी सहायता मिली । फागुन सुदि १ (११ मार्च) को मिस्टर डी. ऐल. ड्रेक ब्रोकमैन (D. L. Drake Brockman, C. I. E., I. C. S. ) ( रिवेन्यू - मैंबर स्टेट काउंसिल ) अपनी, यहां के कार्य की अवधि समाप्त हो जाने से वापस 'युनाइटेड प्रोविंसेज' ( अवध ) में कमिश्नर होकर चला गया । इस पर मिस्टर जे. डब्ल्यू. यंग ( Mr. J. W. Young, o. B. E.), जो अब तक 'ऐकाउंटैंट जनरल' था, 'फाइनैंस - मैंबर' बनाया गया । श्रावण वदि १० (३१ जुलाई ) को महाराज फ़तैसिंहजी ने 'होम - मैंबर' के पद से अवसर ग्रहण कर लिया। इस पर उसी दिन पौकरन - ठाकुर, राम्रो बहादुर, चैनसिंह ( M. A., LL. B. ) ‘जुडीशल - मैंबर', राम बहादुर राम्रो राजा नरपतसिंह 'मैंबर-इनवेटिंग' (Member-in-Waiting ) और राम बहादुर पण्डित ज्वालासहाय मिश्र अस्थायी 'रिवैन्यू - मैंबर' बनाए गए । वि० सं० १९८६ की सावन सुदि ३ ( ७ अगस्त) को जोधपुर में स्थानापन्न ९. वहां से आप चैत्र वदि ७ १ अप्रेल ) को लौट कर आए । २. इन दूकानों पर अंगरेज़ी तोल से १ रुपये का साढ़े सात सेर गेहूं मिलता था । चैत्र वदि ४ ( २६ मार्च) को मिस्टर गैब्रील के स्थान पर मिस्टर ऐल. डब्ल्यू. रेनॉल्ड्स (L. W. Reynolds, C. S. I, C. I. E, M.C., I. C. S., ) और वि० सं० १९८६ की चैत्र सुदि ६ ( १५ अप्रैल) को उसके स्थान पर मिस्टर केटर ( A. W. L. Cater, I. C. S. ) यहां का रैज़ीडेंट नियत हुआ । ३. हाल ही में यह सर ( Knight) की उपाधि से भूषित किया जाकर ( यू. पी. की ) 'पब्लिक सर्विस कमीशन' का 'प्रेसीडेंट' बना दिया गया है । जेठ वदि ११ ( ३ जून ) को बादशाह की बरसगांठ के अवसर पर राम्रो साहब, राम्रो राजा नरपतसिंह (Household Comptroller and Private Secretary ) को 'राम्रो बहादुर' का ख़िताब मिला । आषाढ सुदि १३ (१६ जुलाई) को राम्रो बहादुर पौकरन ठाकुर मंगलसिंह, सी० आई० ई०, पब्लिक वर्क्स मैंबर का हृदय की गति रुक जाने से स्वर्गवास हो गया । यह एक सच्चा और सीधा सरदार था । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ५५६ www.umaragyanbhandar.com Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास ( Acting ) गवर्नर जनरल, लॉर्ड गोश्चनं (Lord Coschen ) और उसकी पत्नी का आगमन हुआ । नियमानुसार भेट-मुलाकात हो जाने के बाद उसने यहां का दुर्ग और पोलो का खेल देखा । इसी प्रकार दूसरे दिन सुबह चौपासनी की राजपूत-स्कूल और शाम को मंडोर और कायलाने की झील का निरीक्षण किया । रात को दरबार की तरफ़ से उसके आने की खुशी में एक बृहत् भोज दिया गया। तीसरे रोज़ सरदार समंद में शिकार हुआ और इसके बाद वह ( लॉर्ड गोश्चन ) वापस लौट गया । वि० सं० १९८६ की आश्विन वदि २ (ई० स० १९२६ की २१ सितंबर ) को तृतीय महाराज-कुमार हरिसिंहजी का जन्म हुा । ___ आश्विन सुदि ३ ( ५ अक्टोबर ) को मुंशी हिम्मतसिंह, जो यू. पी. गवर्नमैन्ट से मांग कर बुलवाया गया था, 'रिवैन्यू-मैंबर' बनाया गया और पण्डित ज्वालासहाय मिश्र में जोधपुर-दरबार की सेवा से अवसर ग्रहण कर लिया। मँगसिर वदि २ ( १८ नवंबर ) को महाराजा साहब ने जोधपुर नगर के पास की छीतर ( हिल ) नामक पहाड़ी पर बनाए जाने वाले अपने विशाल राज-भवन की १. यह पहले मद्रास का गवर्नर था और महाराजा साहब के प्रतिवर्ष की गरमियों में उटकमंड जाने के कारण इन दोनों के बीच मित्रता चली आती थी। २. इस अवसर पर पौकरन-ठाकुर चैनसिंह को 'रामो बहादुर' का, ठाकुर अनोपसिंह को 'सरदार ___ बहादुर' का और ठाकुर बखतावरसिंह को बादशाही पुलिस-मैडल का तमगा दिया गया । ३. इस अवसर पर किले से १२५ तोपें चलाई गई, और दफ्तरों में पांच रोज़ की छुट्टी हुई । कार्तिक वदि ३ ( २१ अक्टोबर ) को लेफ्टिनेंट कर्नल मैक्नब ( R. J. Macnabb, I. A.) जोधपुर का रैजीडैट नियुक्त हुआ। कार्तिक सुदि १ ( २ नवंबर ) को मिस्टर यंग (J. W. Young, O. B. E.,) छुट्टी पर गया और फागुन बदि १२ ( ई० स० १९३० की २५ फरवरी ) को लौटकर वापस आया । ई० स० १९२६ में जोधपुर की 'पोलोटीम' ने लखनऊ में 'अोपन कप' और दिल्ली में अन्य दो 'कप' जीते । इसी प्रकार इसने अन्य अनेक 'पोलो' के खेलों में भी समय-समय पर विजय प्राप्त की। इससे भारत के बाहर इंगलैंड तक में भी इसकी अच्छी धाक जम गई । इस टीम के वर्तमान दो खिलाड़ियों रावराजा हनूतसिंह और रावराजा अभयसिंह ने ( जिनके इस समय क्रमशः ! और ८ हैंडिकैप है ) इस खेल में अन्ताराष्ट्रीय ख्याति ( International fame) प्राप्त करली है । येही दोनों खिलाड़ी जयपुर-नरेश की तरफ से भी भारतीय और इंगलैंड के 'पोलो' के खलों में बराबर खेला करते हैं । इसी से उनकी 'पोलोटीम' भी मशहूर हो गई है। स्वयं जोधपुर-नरेश के भी, जिस समय आप पोलो खेला करते थे, ५ हैंडिकैप थे। ५६० Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाराजा उमेदसिंहजी नींव रखी । इस शुभ अवसर पर दरबार की तरफ़ से जिन बातों की घोषणा की गई थी वे इस प्रकार थीं: (१) पुराने जागीरदार के मरने और उसके उत्तराधिकारी के गद्दी पर बैठने के बीच होनेवाली जागीर की अस्थायी जन्ती बंद करदी गई। (२) एक हजार तक की रेखवाले जागीरदारों पर निकलनेवाला, रेख __और चाकरी का, पांच वर्ष से पहले का राज्य का कर्ज माफ कर दिया गया। ( इस घोषणा से मारवाड़-राज्य के २८० जागीरदारों को करीब ढाई लाख रुपये के कर्ज से छुट्टी मिल गई।) (३) खालसे (राज्य ) के गांवों के कृषकों और अन्यजन-साधारण को, उनके गांवों की सैटलमैंट होनेसे पहले के हासिल, खरड़ा, घास मारी आदि के कर्ज से मुक्ति दे दी गई। ( इससे ग्रामीण जनता को साढ़े आठ लाख रुपये का फायदा हुआ।) इसीके साथ ही वि० सं० १९७२ (ई० स० १९१५ ) के कहत के समय और उससे पूर्व के वर्षों में ए खोदने आदि के लिये दिए हुए एक लाख रुपये का कर्ज भी माफ़ कर दिया गया। (४) मारवाड़ के मुसलमानों के लिये, राज्य की तरफ़ से, जोधपुर में एक अच्छा स्कूल बनवा देने का वादा किया गया। (५) चालीस रुपये तक की तनखा के राज्य के मुस्तकिल मुलाज़िमों को चौथाई महीने की तनख़्वा, इनाम के तौर, पर दी जाने की आज्ञा दी गई। (६) गरीबों और बिना गुज़ारे वाले लोगों को राज्य की तरफ़ से गरम कपड़े देने का हुक्म हुआ। १. इस अवसर पर धार्मिक कृत्यों को संपादन करने के लिये काशी से भी पण्डित बुलवाए गए थे। इस महल का नक्शा लंदन के मिस्टर लैंकेस्टर (Lanchester) ने बनाया था और यह महल अभी बन रहा है । २. यह स्कूल १,३१,००० रुपये की लागत से बनकर तैयार हो गया है । इस समय इसमें सैवंथ कास तक की पढ़ाई होती है और इसका कुल खर्च राज्य से मिलता है । ५६१ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास (७) लोगों में निकलने वाली जोड़ करीब पचास राज्य की कुछ पुरानी रकमें, जिनकी लाख के थी, माफ़ करदी गईं । इसी रोज़ महाराजा साहब ने नगर के नए विशाल अस्पताल की नींव का पत्थर रक्खा । इसके बनाने के लिये दस लाख रुपयों की मंजूरी दी गई थी और इसके सामान के लिये डेढ लाख का और इसके वार्षिक ख़र्च के लिये बाईस हज़ार का अंदाज़ किया गया था । पौष सुदि १ ( ई० स० १६३० की १ जनवरी) को गवर्नमैन्ट ने महाराजा साहब को जी. सी. आई. ई. के ख़िताब भूषित किया । माघ वदि १२ ( ई० स० १९३० की २६ जनवरी) को 'फील्ड मार्शल' ऐलन्बी (Viscount Allenby, G. C. B., G. C. M. G, etc.), मय अपनी पत्नी के, जोधपुर आया और दूसरे दिन उसने, महाराजा साहब को साथ लेकर, राजकीय सेनाओं का निरीक्षण किया । यूरोपीय महायुद्ध के समय जोधपुर का सरदार रिसाला, उसकी अध्यक्षता में, पैलेस्टाइन में वीरता के अनेक कार्य कर चुका था । इसी से तीसरे दिन राजकीय भोज (State Banquet) के समय उसने जोधपुर के रिसाले की बड़ी प्रशंसा की और कहा कि - " जॉर्डन की घाटी ( Jorden Valley ), हैफा (Haifa) और अलेप्पो ( Alleppo) के युद्धों में किए कार्यों के कारण इतिहास में इस रिसाले का नाम अवश्य ही आदर का स्थान प्राप्त करेगा । १. इस अस्पताल का नक्शा मिस्टर जॉर्ज ( Walter George ) ने बनाया था और इसमें २४० बीमारों के रहने का स्थान रक्खा गया था । इससे पूर्व करीब पांच लाख की लागत से अस्पताल का एक बड़ा भवन और भी बन चुका था । परन्तु उसके नगर से दूर होने आदि अन्य अनेक कारणों से वह पुलिस के महकमे के हवाले करदिया गया । २. माघ वदि ३० ( ई० स० १६३० की २४ जनवरी) को 'फ़ील्ड मार्शल' ऐलन्बी लौट गया । माघ वदि १४ ( २८ जनवरी) को भारतीय राजस्थानी सेनाओं का मुख्य परामर्शदाता (Military Adviser in Chief of Indian State Forces.) मेजर जनरल बेटी (G. A. H. Beatty, C. B., C. S. I., C. M. G. D. SO ) भी यहां आगया था । वह भी चौथे दिन लौट गया। चैत्र वदि ३ ( १७ मार्च) को फौजी लाट 'फील्ड मार्शल,' लॉर्ड बर्डवुड ( His Excellency Field Marshall Lord Birdwood, Commander-in-Chief), हवाई जहाज़ द्वारा दिल्ली से जामनगर जाते हुए, यहां आया, और वहां से लौटते समय चैत्र वदि ६ (२० मार्च ) को भी यहां एक दिन ठहर कर दूसरे दिन दिल्ली चला गया । ५६२ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाराजा उमेदसिंहजी इसके अलावा हैफ़ा ही एक ऐसा नगर था, जिस पर बिना किसी अन्य प्रकार की सहायता के केवल रिसाले के आक्रमण से अधिकार किया गया था ।" माघ सुदि ३ ( १ फरवरी) को महाराजा साहब, 'पोलो' के लिये, लखनऊ गए और वहां से दिल्ली जाकर नरेन्द्र मंडल की सभा में सम्मिलित हुए । इसके बाद गरमी का मौसम आ जाने से, वि० सं० १९८७ की वैशाख वदि १ ( १४ अप्रेल ) को, आप उटकमंड चले गए और सावन वदि १० ( २१ जुलाई ) को वहां से लौट कर आए । कार्तिक (अक्टोबर ) में महाराजा साहब ने जालोर और जसवंतपुरे का दौरा किया । वि० सं० १९८७ की पौष वदि १ ( ई० स० १९३० की १४ दिसंबर) को महाराजा साहब के यहां महाराज - कुमारी साहबा का जन्म हुआ । वि० सं० १९८७ की फागुन सुदि १ ( ई० स० १९३१ की २६ और २७ फ़रवरी) को होनेवाली मनुष्य- गणना में मारवाड़ की जन संख्या २१,२५,६८२ गिनी गई । ० स० १९३१ की मार्च में महाराजा साहब दिल्ली जाकर नरेन्द्र - मंडल में सम्मिलित हुए । वैशाख वदि १२ ( १३ अप्रेल ) को लैफ्टिनेंट कर्नल विंढम ( C. J. Windham.) ने, जो राजकीय काउंसिल का उपाध्यक्ष ( Vice President . ) था, दरबार की सेवा से अवसर ग्रहण करेलिया । इस पर सावन सुदि २ ( १५ अगस्त) को, उसके स्थान पर कुँवर महाराजसिंह (बार- ऐट-लॉ, सी. आई. ई., कमिश्नर इलाहबाद डिविजन, युनाइटेड प्रोविंसेज ) 'काउंसिल' का उपाध्यक्ष बनाया गया । वि० सं० १९८७ की आषाढ वदि १३ ( २४ जून ) को राम्रो बहादुर रावराजा नरपतसिंह चार मास की छुट्टी पर गया और कार्तिक सुदि ६ ( २७ अक्टोबर ) को वापस लौट आया । भादों वदि ७ ( १६ अगस्त) को महाराजा साहब अपने मातामह (नाना ) महाराना फतैसिंहजी की मातमपुरसी के लिये उदयपुर गए । १. वैशाख वदि १४ ( १६ अप्रेल ) को महाराजा साहब जाते हुए वायसराय लार्ड इर्विन से औरते हुए लार्ड विलिंग्डन से मिलने बंबई गए । द्वितीय आषाढ सुदि ४ ( १६ जुलाई ) को मिस्टर मैकैज़ी (D. G. Mackenzie, I. C. S., C. I. E.,) यहां का रैज़ीडेंट नियुक्त हुआ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ५६३ www.umaragyanbhandar.com Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास वि० सं० १९८८ की सावन सुदि १४ ( २६ अगस्त) को महाराजा साहब ने जोधपुर नगर में पानी का समुचित प्रबन्ध करने के लिये गोलासनी के पास नया ( उमेदसागर ) बंद तैयार करने को, अपने निजी खर्च ( Privy Purse ) से, दो लाख रुपये देने की आज्ञा दी । सावन सुदि १५ ( २७ अगस्त) को आपने, अपनी काउंसिल के अर्थमंत्री (Finance Minister), मिस्टर यंग को अपना प्रतिनिधि बना कर 'गोल मेज' (Round Table) कॉन्फ्रेंस में सम्मिलित होने के लिये इंगलैंड भेजा । कार्तिक सुदि ७ ( ई० स० १९३१ की १६ नवंबर) को 'एअर मार्शल' सर जौन स्टील (John Steel) ने जोधपुर आकरे यहां के हवाई जहाज के 'क्लब' (Jodhpur Flying Club) का उद्घाटन किया । फागुन वदि १ ( ई० स० १९३२ की १ मार्च ) से भारत गवर्नमैंट ने, खर्चे की बचत के खयाल से, पश्चिमी राजपूताने की रियासतों की रैजीडैन्सी को उठा कर अस्थायी रूप से जयपुर की रैज़ीडेंसी में मिला दिया । फागुन सुदि १२ (१६ मार्च) को, 'फैडरेशन' से संबंध रखनेवाले आर्थिक (Financial ) प्रश्नों पर विचार करने के लिये, भारत - सरकार द्वारा नियुक्त ( Indian States Enquiry ) कमेटी का यहां पर आगमन हुआ और उसने महाराजा साहब और उनके मंत्रियों से विचार-विनिमय ( Discussion ) किया । चैत्र वदि ७ (२८ मार्च) को महाराजा साहब नरेन्द्र मण्डल की सभा में सम्मिलित होने को दिल्ली गए । आश्विन सुदि ११ (२२ अक्टोबर ) को महाराजा साहब की बढ़ी बहन श्रीमती मरुधर कुँवर बाई साहबा के गर्भ से जयपुर महाराज - कुमार का जन्म हुआ । इस पर जोधपुर में भी हर्ष मनाया गया और किले से ५१ तोपें चलाई गई । १. मँगसिर वदि ३० ( 8 दिसंबर) को यह, द्वितीय गोलमेज़ (Second Round Table) कॉन्फ्रेंस में सम्मिलित होकर, वापस आया । माघ सुदि ११ ( ई० स० १६३२ की १८ फ़रवरी) को तत्कालीन वायसराय लॉर्ड विलिंग्डन का पुत्र लॉर्ड रैंटंडन (Lord Ratendone ) जोधपुर आया और ८ दिनों तक यहां रहा । फागुन वदि ४ ( २५ फ़रवरी) को जोधपुर में लेडी विलिंग्डन का आगमन हुआ । २. तीसरे दिन यह लौट गया । ३. इस पर जयपुर, जोधपुर और राजपूताने की अन्य पश्चिमीय रियासतों का कार्य मिस्टर मैकैज़ी (D. G. Mackenzie, I. C. S.) करने लगा । ४. वहां से आप चैत्र वदि १२ ( २ अप्रेल ) को लौटे । ५६४ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाराजा उंमेदसिंहजी वि० सं० १९८६ की वैशाख वदि ४ ( २४ अप्रेल) को स्वर्गवासी महाराजा सुमेरसिंहजी साहब की कन्या श्री किशोरकुँवरी बाईजी साहबा का विवाह जयपुर-नरेश महाराजा मानसिंहजी' के साथ हुआ । इस शुभ अवसर पर काश्मीर, बीकानेर, कोटा, अलवर, डूंगरपुर, किशनगढ़, नवानगर, पन्ना, चरखारी और नरसिंहगढ़ के नरेशों और बीकानेर और कोटा के महाराज-कुमारों ने उपस्थित होकर उत्सव में भाग लिया। आषाढ सुदि ६ (६ जुलाई) को कुंवर महाराजसिंह, 'वाइस प्रेसीडैन्ट स्टेटकाउंसिल' भारत सरकार का 'एजेन्ट' (प्रतिनिधि ) नियत होकर दक्षिणी-ऐफ्रिका चला गया; इस पर मिस्टर यंग (J. W. Young) काउंसिल का अस्थायी वाइस-प्रेसीडेंट बनाया गया। आश्विन सुदि ५ (४ अक्टोबर ) को महाराजा साहब ने फिर इंगलैंड की यात्रा की और मँगसिर सुदि १ (६ दिसंबर ) को आप वहां से लौट कर आए। ___ आश्विन सुदि १५ (१४ अक्टोबर ) को लॉर्ड विलिंगडन और लेडी विलिंग्डन दोनों का, हवाई जहाज से पूना जाते हुए और कार्तिक वदि ३ (१७ अक्टोबर ) को वहां से दिल्ली लौटते हुए, जोधपुर में आगमन हुआ । कार्तिक सुदि ८ (५ नवंबर ) को मिस्टर (J. W. Young) यंग तृतीय गोलमेज सभा (3rd Round Table Conference ) में सम्मिलित होने के लिये इंगलैंड गया और माघ वदि । ( ई० स० १९३३ की २० जनवरी) को वापस लौटा । परन्तु इसवार की सभा में जोधपुर, जयपुर और उदयपुर तीनों रियासतों ने सर पण्डित सुखदेवप्रसाद | काक को अपना मुख्य प्रतिनिधि बनाकर भेजा था। १. आपकी बरात उसी दिन यहां पहुंची और वैशाख वदि ६ ( २६ अप्रेल ) को वापस लौट गई। _ वि. सं. १९८८ के आश्विन ( ई. स. १६३१ के अक्टोबर ) और वि० सं० १९८९ के आश्विन (ई. स. १६३२ के सितंबर ) के बीच महाराजा साहब ने जालोर, नागोर, सांचोर, बाली देसूरी आदि मारवाड़ के प्रान्तों का दौरा किया । २. ( इसके बाद यह सर ( Knight) की उपाधि से भूषित किया गया था।) आश्विन सुदि १ (१ अक्टोबर ) को महाराजा साहब ने सकुटुम्ब ओ.सयां की यात्रा की। पौष सुदि ७ (ई. स. १६३३ की ३ जनवरी) को आलोप-टाकुर फतेसिंह को 'रामबहादुर' का खिताब मिला। वि० सं० १६६. की चैत्र सुदि १४ ( अप्रेल ) को महाराजा साहब मातमपुरसी के लिये जामनगर गए। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास फागुन सुदि ५ (ई० स० १९३३ की १ मार्च) को जोधपुर-रेल्वे को बने ५० वर्ष हो जाने से उसकी 'जुबिली' मनाई गई । इसका उत्सव पाँच दिनों तक रहा। चैत्र वदि ७ ( १८ मार्च ) को महाराजा साहब नरेन्द्र-मंडल में सम्मिलित होने के लिये दिल्ली गएं । वैशाख सुदि । ( ४ मई ) को रामोवहादुर रावराजा नरपतसिंह ने अपने कार्य से इस्तीफ़ा देदिया। इस पर ज्येष्ठ वदि १ (१० मई ) से संखवाय-ठाकुर माधोसिंह होम मिनिस्टर बनाया गया और मिस्टर यंग (J. W. Young ) चीफ मिनिस्टर नियुक्त हुआ। ___ज्येष्ठ वदि १ ( १० मई ) से मारवाड़ की रियासत का नाम जोधपुर-स्टेट के बदले जोधपुर-गवर्नमेंट कर दिया गया और 'काउंसिल के मैंवर' 'काउंसिल के मिनिस्टर' कहाने लगे। ज्येष्ठ वदि ७ ( १६ मई) को महाराजा साहब शिकार के लिये पूर्वी ऐफ्रिका गए और भादों सुदि ७ (२७ अगस्त) को वहां से लौटे। ___ आश्विन सुदि १ (२० सितंबर ) को चौथे महाराज-कुमार देवीसिंहजी का जन्म हुआ। १. वि० सं० १९६० की वैशाख सुदि ११ ( ६ मई ) को लंदन में किशोर कुँवर बाई साहया के गर्भ से जयपुर - नरेश के द्वितीय महाराज-कुमार का जन्म हुआ । इस पर जोधपुर में मी हर्ष मनाया गया और किले से २५ तोपें चलाई गई। २. आपके वापस लौटने पर प्राश्विन वदि ८ (१२ सितंबर) को जनता ने एक विराट् सभा कर आपका अभिनंदन किया। भाषाढ सुदि ३ । २६ जून ) को मिस्टर मैकेंजी के स्थान पर मिस्टर लोदियन (A. C. Lothian, C.I. E., I. C. S.) जयपुर और पश्चिमी राजपूताने की रियासतों का रंगीडेट नियुक्त हुआ। ३. इस खुशी में किले से १२५ तोपों की सलामी दी गई और दफ्तरों में ५ दिन की छुट्टी की गई। वि० सं० १९६० के कार्तिक (ई. स. १६३३ के अक्टोबर ) में महागज विजयसिंहजी को अपनी जागीर में प्रथम श्रेणी के इखतियार दिए गए । यह १२,००० रुपये की रेख की जागीर इन्हें वि० सं० १९८८ (ई. म १९३१ ) में दी गई थी। __माघ वदि ३० (ई० स० १६३४ की १५ जनवरी) को दिन के सवा दो बजे के करीब गोषपुर में भू-कम्म हुआ, परन्तु इससे किसी प्रकार की हानि नहीं हुई। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाराजा उमेदसिंहजी याश्विन सुदि ११ ( २१ सितंबर) को मुंशी हिम्मतसिंह अपनी यू० पी० गवर्नमैंट की नौकरी पर वापस चला गया और उसके स्थान पर बंबई गवर्नमैंट से मांगकर बुलवाया हुआ, मिस्टर इर्विन ( J. B. Irwin, D. S. O, M. C., I. C. S. ) रिवेन्यू मिनिस्टर नियुक्त किया गया । वि० सं० १९९१ की प्रथम वैशाख वदि १४ ( ई० स० १९३४ की १२ अप्रेल ) को मिस्टर यंग (J. W. Young ) बीमारी के कारण छुट्टी लेकर इंग्लैंड गया और वहां पर द्वितीय वैशाख सुदि १० (२४ मई) को उसका स्वर्गवास होगया । इस पर रावहादुर ठाकुर चैनसिंह, जो अब तक 'जुडीशल मिनिस्टर' था, स्थायी रूप से 'चीफ़ - मिनिस्टर' बनाया गया । यद्यपि ज्येष्ठ सुदि ८ (२० जून ) से वह फिर 'जुडीशल मिनिस्टर' कहाने लगा, तथापि अर्थ और राजनीतिक विभाग ( Finance and Political Departments) उसी के अधिकार में रक्खे गए । इसी समय मिस्टर ऐडगर ( S. G. Edgar, I. S. E. ) अस्थायी रूप से तामीरात - विभाग का मिनिस्टर (Public Works Minister ) बनाया गया । माघ सुदि १० ( २५ जनवरी) को हवाई - फ़ौजी बेड़ों का असर सर जौन स्टील (Sir John Steel, Air Marshal) जोधपुर आया और दूसरे दिन लौट गया । वि० सं० १६६१ की प्रथम वैशाख वदि ३ ( २ अप्रेल) को मेजर बान (LE. Barton, 1. A.) जयपुर और जोधपुर का रेज़ीडेंट नियुक्त हुप्रा । १ आश्विन सुदि १२ ( ३० सितंबर) को डाक्टर निरंजननाथ गुर्टू के हैल्थ ऑफीसरी से अमर ग्रहण करने पर महाराजा साहब ने उसकी सेवाओं से प्रसन्न होकर उसे अपना 'ऑनररी फिज़ीशियन' ( अवैतनिक डाक्टर ) नियुक्त किया और बाद में उसके लिये १५० ) रुपये माहवार की पैन्शन नियत कर दी । २. वि० सं० १६६१ की द्वितीय वैशाख सुदि २ ( ई० स० १६३४ की १५ मई) को लॉड और लेडी विलिंग्डन हवाई जहाज़ से इंग्लैंड जाते हुए और श्रावण सुदि ६ ( १६ अगस्त) को वहां से लौटते हुए जोधपुर में ठहरे । श्रावण सुदि ३ ( १३ अगस्त) को पश्चिमी राजपूताने की रियासतों की रैजीडैसी फिर स्थापित की गई और कर्नल विटिक (H. M. Wightwick, I. A.) यहां का रेज़ीडेंट नियुक्त हुआ । ज्येष्ठ वदि ७ ( ४ जून ) को बादशाह की बरसगांठ के अवसर पर उंमैदनगर- टाकुर जैसिंह को रामबहादुर का ख़िताब मिला । इसी समय मीठेड़ी और खोखर के आस-पास नकली रुपयों के प्रचार के बढ़ने से लोगों में ( १ ) यह गांव सांभर परगने में है । ( २ ) यह गांव परबतसर परगने में है । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ५६७ www.umaragyanbhandar.com Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास वहां पर जाली सि बनाए जाने की अफवाह फैलने लगी। इस पर सुपरिटेट-पुलिस मिरधा बलदेवराम और ठाकर-कासिंह इस मामले की जाँच के लिये नियुक्त किए गए । उनकी जांच से वहां पर नकली सिकों के साथ ही जाली नोटों के बनाए जाने के प्रयत्न का भी पता लगा। परन्तु मीठड़ी-ठाकुर के ताज़ीमी-सरदार होने से पहले मुकद्दमे के संबन्ध के सबूतों वगैरा की जांच की गई और इसके बाद महाराजा साहब की आज्ञा प्राप्त कर इन मुकद्दमों पर विचार करने के लिये एक विचारक-सभा (Tribunal ) कायम की गई । इसमें राय साहब लाला टोपनराम ( चीफ जज़ ), पंडित नन्दलाल ( सैशन जज ) और नीबेड़ाठाकुर उमेदसिंह ( हाकिम ) विचारक नियुक्त किए गए । फागुन बदि । (ई. स. १६३५ की २७ फरवरी) से इन मुकद्दमों का विचार प्रारम्भ हुआ और वि० सं० १६६२ की भादों बदि २ (१६ अगस्त) को इस सभा (ट्रिब्यूनल) ने नकली रुपया बनाने के अपराध से मीठड़ी के ठाकुर भोमसिंह को बरी कर दिया । परन्तु जाली नोट बनाने के मामले में उसे दोषी पाया । इसके बाद पुलिस के अपील करने पर आश्विन बदि ५ ( १७ सितंबर ) को दरबार ने, अपने प्रधान मंत्री (Chief A inister ) की सलाह से उपयुक्त फैसलों को नामंजूर कर दिया और कार्तिक बदि ३ (१४ अक्टोबर ) को इन पर फिर से विचार करने के लिये दूसरी विचारक सभा (Tribunal) कायम की । इसमें रायबहादुर कुँवरसेन, ( बार ऐट-लॉ ) प्रेसीडेंट और पंडित औतारकिशन कौल, ( बार-ऐट-लॉ) और ठाकुर हेमसिंह ( सैशन जज ) मैबर थे । इस सभा ने पहले जाली नोट बनाने के मामले पर विचार किया और इसमें ठाकुर भोमसिंह आदि को दोषी पाया। इसके बाद 'इजलास खास' में अपील होने पर 'चीफ मिनिस्टर' कर्नल डी. एम. फील्ड 'होम मिनिस्टर' संखवाय ठाकुर माधोसिंह और 'रिवेन्यू मिनिस्टर' खाँबहादुर नवाब मोहम्मददीन ने मिलकर इस पर फिर विचार किया और अपनी राय लिख कर महाराजा साहब की सेवा में भेज दी । इसके बाद वि० सं० १९६३ की वैशाख सुदि १० (ई. स. १६३६ की १ मई ) को मीठड़ी-ठाकुर को मिली हुई ताज़ीम और कुरब के साथ ही जागीर के गांवों में से ८,३०० रुपये की वार्षिक आय के ४ गाँव हमेशा के लिये जस हो गए । इसके अलावा ठाकुर को और उसके साथ के अन्य अपराधियों को यथानियम दूसरी सज़ाएं भी दी गई। वि. सं. १६६१ की आश्विन सुदि १ (ई. स. १६३४ की ६ अक्टोबर ) को सर अंक नोइस (Sr Frank Noyce) वायसराय की काउंसल का ( Industries & Labour ) मेंबर जोधपुर आया और चौथे दिन लौट गया। कार्तिक सुदि ४ (१० नवंबर ) को फौजी-लाट की पत्नी लेडी चेटवुड (Lady Chetwood) जोधपुर आई और अगले दिन लौट गई । इसके बाद फागुन सुदि ८ (ई. स. १६३५ की १३ मार्च) को यह फिर आई। वि. सं. १६६१ की मैंगसिर सुदि ७ (ई. स. १६३४ की १३ दिसंबर ) को महाराज! साहब ने प्रसन्न होकर रापोराजा अभयसिंह को सोनाईमाजी और रापोराजा हनूतसिंह को मिणियारी नामक गाँव जागीर में दिए और दोनों को द्वितीय श्रेणी के जुडीशल इख़तियारात भी मिले। वि. सं. १६६१ की माघ सुदि ११ (ई. स. १६३५ को १४ फरवरी ) को हवाई सेना का अफसर सर जौन स्टील जोधपुर आया और उसी दिन लौट गया । इसके बाद फागुन वदि . (२. फरवरी) को यह फिर आया । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाराजा उमेदसिंहजी वि० सं० १९९१ की पौष वदि २ ( ई० स० ११३४ की २२ दिसंबर ) को महाराजा साहब मय अपने छोटे भ्राता अजितसिंहजी के फिर शिकार के लिये पूर्वी ऐफिका गए और चैत्र वदि १० ( ई० स० १६३५ की २१ मार्च) को वहां से लौटे । फागुन वदि ७ ( ई० स० १९३५ की २५ फरवरी को भूतपूर्व ग्रीस नरेश ने जोधपुर ाकर महाराजा साहब का आतिथ्य स्वीकार किया और अगले दिन वह लौट गया । वैशाख वदि ३० (२ मई) को लैफ्टिनैंट कर्नल डोनाल्ड फ़ील्ड (D. M. Field, C. I. E. ) चीफ मिनिस्टर बनाया गया । वि० सं० १९९२ की वैशाख सुदि ४ ( ई० स० ११३५ की ६ मई ) को बादशाह की रजत - जुबिली ( Silver Jubilee ) मनाई गई । इसके संबन्ध में महल पर सुबह जो दरबार हुआ उसमें रैजीडेंट ने महाराजा साहब के सामने वायसराय का भेजा हुआ खरीता उपस्थित किया और महाराजा साहब ने अपनी प्रजा पर का साढ़े आठ लाख रुपये का कर्ज माफ़ करने की घोषणा की। दूसरे दिन ( वैशाख सुदि ५ = ७ मई को ) क़रीब दस हजार रुपये गरीबों को बांटे गए । बादशाह की इस जुबिली के चंदे में ५०,००० रुपये दरबार ने दिए और २,२४,७३७ रुपये रियाया ने इकट्ठे किए । यह रकम इस अवसर पर राजपूताने की अन्य रियासतों में इकट्ठी की गई रकमों से अधिक सिद्ध हुई और इस रकम में से १,५७,६३३ रुपया मारवाड़ निवासियों के हितार्थ खर्च करने के लिये वापस आ गया । १. इस समय यह फिर ग्रीस के सिंहासन का अधिकारी हो गया है । वि० सं० १६६२ की वैशाख वदि ५ ( २३ अप्रेल ) को बर्मा का गवर्नर यहां आया और उसी दिन वापस चला गया । २. वैशाख बदि १४ (१ मई) को जुबिली उत्सव के संबन्ध में फराडी - दिवस (Flag day ) मनाया गया और छोटी-छोटी मंडियाँ बेचकर भारतियों के हित के कार्यों के लिये रुपया इकट्ठा किया गया । उस दिन किले से १०१ तोपों की सलामी दाग़ी गई, १२१ कैदी छोड़े गए, ३६३ कैदियों की जेल की अवधि घटाई गई, और महाराजा साहब ने अपने कुछ मुल्की, फ़ौजी और रेल्वे के अफसरों को चांदी के ६५ जुबिली - मैडल दिए । उसी अवसर पर ख़ाँबहादुर एम. आर. कोठावाला ( इन्सपैक्टर जनरल पुलिस ) को जोधपुर - राजकीय पुलिस का पहला पदक दिया गया । ३. यह रुपया निम्नलिखित कार्यों के लिये आया था: ( क ) १५,००० रुपये मारवाड़ राज्य के कुष्ट रोग की जांच ( Survey) के लिये । ५६६ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास वैशाख सुदि ४ (६ मई) को रिवैन्यू मिनिस्टर मिस्टर इर्विन (J. B. Irwin, I.C. S.) अपना यहां का कार्यकाल पूरा हो जाने के कारण, बंबई प्रेसीडेंसी में लौटने की इच्छा से. छुट्टी पर चला गया । इस पर 'स्टेट' काउंसिल का कार्य इस प्रकार बाँटा गयाः प्रेसीडेंट-महाराजा साहब चीफ़ और फाइनेंस-मिनिस्टर-कर्नल डोनाल्ड फील्ड, सी. आइ. ई. जुडीशल मिनिस्टर-राओबहादुर पौकरन-ठाकुर चैनसिंह, एम. ए., एल एल. बी. होम मिनिस्टर-संखवाय-ठाकुर माधोसिंह पबलिक वर्क्स मिनिस्टर-मिस्टर ऐडगर ( S. G. Edgar, I. S.E ) ज्येष्ठ वदि १४ ( ३१ मई ) को प्रातःकाल के समय केा और उसके आस-पास के प्रदेश में भयंकर भूकम्प हुआ । इससे धन-जन की बड़ी हानि हुई । इसकी सूचना मिलते ही वहां के पीड़ितों की सहायता के लिये १०,१०० रुपया दरबार ने दिया और ४१,४३१ रुपया अन्य लोगों ने इकट्ठा किया । इसके बाद यह ५१,५३१ रुपये की रकम वायसराय के ( दिल्ली के ) केटा भूकम्प-सहायक फंड ( Quetta Earthquake Relief Fund, Delhi) में भेज दी गई। (ख) ४५,००० रुपये पागलों की मानसिक चिकित्सा के अस्पताल के लिये । (ग) ५०,००० रुपये भारतीय बाल और मातृ हितरक्षिणी सभा (All-India Lady Chelmsford League for Maternity and Child-wellare) के लिये। (घ) ४५,००० रुपये विंढम अस्पताल में राजयक्ष्मा ( Tuberculosis) के रोगियों के वास्ते १२ मंचों (Beds) का स्थान तैयार करने के लिये। १. ज्येष्ठ सुदि ३ ( ४ जून) को, राज्य की तरफ से, लोगों से इस कार्य के लिये चन्दा इकडा करने को एक कमेटी बनादी गई थी। ज्येष्ठ सुदि २ (३ जून) को बादशाह की सालगिरह के उत्सव पर सरदार रिसाले के मेजर हेमसिंह ( Second-in-Command of the Sardar Rissala) को द्वितीय श्रेणी की प्रो. बी. आइ. की उपाधि मिली। आषाढ मुदि ६ (७ जुलाई) को 'जुडीशल मिनिस्टर' ठाकुर चैनसिंह लंदन में होनेवाली शिक्षा सभा (World Educational Con!erence) में, भारतीय प्रतिनिधि की हैसियत से, सम्मिलित होने के लिये छुट्टी पर गया और कार्तिक वदि ७ (१८ अक्टोबर ) को वहां से लौटा । वि० सं० १९६२ की मंगसिर सुदि १५ ( ई० स० १९३५ की १० दिसंबर ) को श्रीमती किशोरकुँवरी बाई साहबा के गर्भ से जयपुर-नरेश के तृतीय महाराज-कुमार का जन्म हुआ । इस अवसर पर भी जोधपुर में हर्ष मनाया गया और किले से २५ तोपें चलाई गई। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाराजा उमेदसिंहजी वि० सं० १९९२ की मंगसिर सुदि १२ ( ई० स० १९३५ की ७ दिसंबर ) को खाँबहादुर नबाब चौधरी मोहम्मददीन रिवैन्यू मिनिस्टर बनाया गया । को वि० सं० १९९२ की माघ वदि ११ ( ई० स० ११३६ की २० जनवरी ) सम्राट् जार्ज पञ्चम का स्वर्गवास हो गया । इसपर जोधपुर राज्य में भी अगले दिन से यथा नियम शोक मनाया गया । इसके बाद माघ सुदि ६ ( २६ जनवरी) को नए बादशाह एडवर्ड अष्टम के राजगद्दी पर बैठने का उत्सव मनाया गया और उस अवसर पर किए गए दरबार में रैजीडैंट द्वारा भारत के वायसराय की, नवाभिषिक्त सम्राट् की अधीनता स्वीकार करने १. यह पहले जयपुर में रिवेन्यू मिनिस्टर था । वि० सं० १६६२ की पौष सुदि ७ ( ई० स० १६३६ की १ जनवरी) को निम्नलिखित राज- कर्मचारियों को पदक और उपाधियां मिलीं : मिसेज़ टार्लेटन - कैसर-ए-हिन्द पदक मेजर गौडन (O. B. E. ) - सी. आई. ई. कर्नल टाकुर पृथ्वीसिंह ( बेड़ा ) - राम बहादुर | ठाकुर कानसिंह ( सुपरिन्टेंडेंट- पुलिस - बादशाही पुलिस पदक २. इस अवसर पर तीन दिनों की छुट्टी की गई, तीन दिनों तक क़िले पर की नौबत, रोज़मर्रा की तो और जन साधारण के यहां का नाच-गान बंद रक्खा गया । सरदारों, अंगरेज़अफसरों और मुत्सद्दियों आदि को अपनी-अपनी प्रथानुसार शोक मनाने का आदेश दिया गया | भाघ वदि १३ ( २२ जनवरी) के प्रातः काल किले से शोक-सूचक ७० तोपें (Minute guns ) दागी गई और उस दिन सारे बाज़ार बंद रहे । इसके बाद जब माघ सुदि ५ (२८ जनवरी) को स्वर्ग-गत सम्राट् की अन्त्येष्टि की गई तब फिर एक दिन के लिये उपर्युक्त विधि से शोक मनाया गया और मन्दिरों, मसजिदों और गिरजों में प्रार्थनाएं की गई । ( १ ) ई० स० १६१४ में यह अपने नाना महाराजा प्रतापसिंहजी के साथ यूग्प के महायुद्ध में गया था और दो वर्षों तक युद्धस्थल पर रहा था । वि० सं० १९२६ से १६३४ तक यह महाराजा साहब का सेना - सचिव ( मिलटरी सेक्रेटरी) रहा और इसके बाद सरदार रिसाले का कमांडर बनाया गया । वि० सं० १६६३ की दूसरी भादों सुदि २ ( ई० स० १६३६ की १७ सितंबर) को इस राजभक्त ठाकुर का स्वर्गवास हो गया और इस आकस्मिक घटना पर महाराजा साहब ने ख़ास तौर से अपना शोक प्रकट किया । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ५७१ www.umaragyanbhandar.com Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास की घोषणा पढ़ कर सुनाई गई । वि० सं० १९१२ की चैत्र वदि । ( ई० स० १९३६ की १७ मार्च ) को भारत के वायसराय और गर्नर जनरल का जोधपुर में आगमन हुआ और उसने नवीन 'पबलिक-पार्क' ( विलिंग्डन गार्डन ) और उसमें बने अजायबघर आदि का उद्घाटन किया। वि० सं० १९९३ की चैत्र सुदि ६ (ई० स० १९३६ की २८ मार्च ) को राओबहादुर ठाकुर चैनसिंह ने जुडीशल-मिनिस्टर के पद से इस्तीफा दे दिया और उसके स्थान पर, वैशाख वदि ७ ( १४ अप्रेल ) को, रायबहादुर लाला कुँवरसेन ( Bar-at-law) जुडीशल-मिनिस्टर नियुक्त हुआ। वि० सं० १९९३ की वैशाख सुदि १५ ( ई० स० १९३६ की ६ मई ) को महाराज अजितसिंहजी परामर्शदातृ-सभा ( Consultative Committee ) के सभापति (President) नियत हुए। वि० सं० १९९३ की आषाढ सुदि १ ( २३ जून ) को नवाभिषिक्त सम्राट की बरसगांठ के उत्सव पर महाराजा साहब जी. सी. एस. आइ. की उपाधि से भूषित किए गएँ। १. इसके बाद सामने के मैदान में 'यूनियनजैक' फहराया गया, रिसाले ने शाही सलामी दी, बैंडवालों ने 'जातीय गीत' (National anthem ) बजाया और किले से १०१ तोपों की सलामी दी गई। २. इस वार समयाभाव के कारण वायसराय हवाई जहाज़ से पाया था और दूसरे ही दिन लौट गया। इससे पूर्व वि० सं० १९६२ की माघ वदि ११ (ई० स० १६३६ की २० जनवरी) को मी उक्त वायसराय हवाई जहाज़ से, पोरबंदर से दिल्ली जाते हुए इधर से निकला था। ___इसी वर्ष के वैशाख ( अप्रेल ) में मिस्टर ऐडगर ( S. G. Edgar, I. S. E.) (पब्लिक वर्क्स मिनिस्टर ) छुट्टी पर गया और उसके आश्विन (अक्टोबर ) में लौटने तक उसका काम चीफ मिनिस्टर और जुडीशल मिनिस्टरों में बाँट दिया गया । इसी प्रकार वि० सं० १६१३ के वैशाख (ई. स. १६३६ की मई ) में चीफ मिनिस्टर (Lt.- Col. D. M. Field, C. I. E.) डोनाल्ड फील्ड छुट्टी पर गया और उसके श्रावण (जुलाई ) में लौटने तक उसका काम होम-मिनिस्टर को सौंपा गया ३. इसी अवसर पर बाबू घीसूलाल ( एसिस्टैट सेक्रेटरी मैनेजर जोधपुर रेल्वे ) को रायसाहब का खिताब मिला। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाराजा उम्मेदसिंहजी इस वर्ष बारिश की कमी के कारण द्वितीय भादों वदि १० ( १० सितंबर ) को बीलाड़ा, बाली, देसूरी, जालोर, पाली, जसवंतपुरा, सिवाना, सांचोर और वाड़मेर के प्रान्तों में अकाल होने की घोषणा कर उपयुक्त स्थानों पर सस्ते घास की दूकानें खुलवाई गई, रक्षित वन-स्थली की रुकावट उठाकर मवेशियों के चारे और पानी का प्रबंध किया गया । जहां-जहां आवश्यकता समझी गई वहां-वहां नाज की दूकानें और गरीबों के भोजनालय । Poor .nouses ) कायम किए गए, किसानों को तकाबी दी गई, उनसे लगान लेना या उन पर की डिगरियों की वसूली करना बंद किया गया और गरीबों की सहायता के लिये मदद के काम ( relief works ) खोले गएँ । द्वितीय भादों सुदि ६ ( २२ सितंबर ) को सम्राट् एडवर्ड अष्टम ने महाराजा साहब को अपना सहचर ( A. D. C.) नियुक्त किया और साथ ही 'ऑनररी कर्नल' के पद से भी भूषित किया। ____ वि० सं० १६६३ की कार्तिक सुदि २ ( ई० स० १९३६ की १६ नवंबर ) को यहां पर, जोधपुर-राज्य के समग्र भारतीय राज्यसंघ ( All-india Federation ) में सम्मिलित होने में उपस्थित होनेवाली कठिनाइयों पर विचार-विनिमय करने के लिये, वायसराय के प्रतिनिधियों ( Lt.-Col. Sir George Ogilvi, K. C. I. E., C. S. I., Mr. E. V. Wirie, C. 1. E. and Mr. E. G. Herbert ) का आगमन हुआ । इस वार्तालाप में यहां के रैजीडेंट लैक्टिनेंट कर्नल ऐच. ऐम. विटिक (H. M. Wightwick) ने भी भाग लिया। इसके बाद ये प्रतिनिधि कार्तिक सुदि ४ (१८ नवंबर) को लौट गए। ___ वि० सं० १९६३ की मंगसिर बदि १२ । ई० स० १९३६ की १० दिसंबर) को ( अपने विवाह के मामले में ) सत्राट् एडवर्ड अष्टम ने ब्रिटिश-साम्राज्य की गद्दी छोड़ दी। इस पर उनके छोटे भ्राता जार्ज षष्ठ के नाम से उक्त गद्दी पर बैठे । इस संबन्ध में मंगसिर सुदि ५ । १४ दिसंबर ) को जोधपुर में एक दरबार किया गया। १. इससे पहले ही नागोर प्रान्त के कृषकों के लगान में कमी करदी गई थी। २. इस अवसर पर राजपूतान का पाश्चमी रियासतों के रैजीडैट ने सम्राट् की घोषणा पढ़कर सुनाई । इसके बाद सामने के मैदान में 'यूनीयनजैक' फहराया गया, राजकीय सेना ने शाही सलामी दी, बाजे वालों ने 'नैशनल ऐन्थम' बजाया, किले से १०१ तोपें चलाई गई और सरकारी दफ्तरों और विद्यालयों में छुट्टी की गई। _ वि० सं० १६६३ की माघ बदि ६ ( ई० स० १६३७ की १ फरवरी) को लेफ्टिनेंट कर्नल डी. एम. फील्ड. ( Lt. Col. D. M. Field, C. I. E.) को सर ( Knight ) की उपाधि और टी. जी. दलाल (T.G. Dalal), पोलिटिकल सैक्रेटरी को 'खाँसाहब' की उपाधि मिली। ५७३ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास वि० सं० १९९३ की माघ सुदि १ ( ई० स० ११३७ की १२ फरवरी) को जॉर्ज ने महाराजा साहब को अपना सहचर ( A. D. C. ) नियुक्त किया । सम्राट् वि० सं० १९९४ की चैत्र सुदि १ ( ई० स० १९३७ की १९ अप्रेल ) को महाराजा साहब सम्राट् जार्ज षष्ठ के राज्याभिषेकोत्सव में सम्मिलित होने के लिये, हवाई जहाज़ से, लंदन को रवाना हुए। इस यात्रा में महारानी साहब भी आपके साथ थीं | वहां पर वि० सं० १९९४ की वैशाख सुदि २ ( १२ मई ) को नवीन सम्राट् का राज्याभिषेक हुआ । उसमें भाग लेने के कारण सम्राट् की तरफ़ से महाराजा साहब को राज्याभिषेकोत्सव - संबन्धी पदक ( Coronation medal ) से भूषित किया गया और महारानी साहबा को फीता ( ribbon ) और साड़ी पर लगाने का कांटा ( brooch ) भेट किया गया । वि० सं० १६६३ की चैत्र वदि ३० ( ई० स० १६३७ की ११ अप्रैल ) को यहां के रैज़ी - डैंट विटिक (Lt-Col,M. Wightwick, I. A. ) के छुट्टी जाने पर उसके स्थान पर लैफ्टिनेंट कर्नल गिलन ( Lt. -Col. G. V. B. Gillan, C. I. E. ) नियुक्त हुआ । वि० सं० १६६४ की चैत्र सुदि ३ ( ई० स० १६३७ की १३ अप्रैल) को चीफ मिनिस्टर सर डोनाल्ड फील्ड (LŁ. - Col. Sir Donald Field, C. I. E. ) राजकीय कार्य से लंदन गया और आषाढ सुदि ५ ( १२ जुलाई ) को वहां से लौटा । इस अवसर के बीच इसका कार्य ठाकुर माधोसिंह ( संखवाय ) गृह सचिव ( होम मिनिस्टर ) के तत्वावधान में होता रहा । १. वि० सं० १६६३ की माघ सुदि १५ ( ई० स० १६३७ की २५ फरवरी) को बंबई प्रान्त के गवर्नर लॉर्ड ब्रेबोर्न ( Lord Brabourne, G. C. I. E, M. C. ) का यहां आगमन हुआ और दूसरे दिन वह यहां से लौट गया । ३१ मार्च को खाँसाहब फ़ीरोज़शाह को जोधपुर दरबार की सेवा से अवसर ग्रहण करने पर उसकी सेवाओं के उपलक्ष्य में ३५० ) रुपये माहवार की पैनशन दी गई । २. इसी अवसर पर महाराज अजित सिंहजी, लैफ्टिनेंट कर्नल सर डोनाल्ड फील्ड (चीफ मिनिस्टर जोधपुर ), और रामराजा हनूत सिंह को भी कौरोनेशन मेडल मिले । साथ ही कैप्टिन रावराजा हनूत सिंह को 'रामबहादुर और खाँबहादुर कोठावाला (इन्स्पेक्टर जनरल पुलिस को ओ. बी. ई. (O BE ) की उपाधियां मिलीं । , उसी दिन प्रातःकाल जोधपुर में भी सम्राट् जॉर्ज षष्ठ का राज्याभिषेकोत्सव मनाया गया । इस अवसर पर जल के अलावा किले से १०१ तोपों की सलामी दागी गई, विद्यार्थियों को मिठाई और गरीबों को भोजन दिया गया । उन गरीब माताओं को जिन्होंने हाल ही में प्रसव के समय 'मातृरक्षिणी सभा' की दाइयों से सहायता ली थी रुपयों की मदद दी गई, मंदिर, मसजिद और गिरजे में एकत्रित होकर प्रार्थनाएं की गई और राज्य के दफ्तरों आदि में ३ दिनों की छुट्टी दी गई । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ५७४ www.umaragyanbhandar.com Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाराजा उम्मेदसिंहजी इसके बाद वि० सं० १९९४ की ज्येष्ठ वदि १४ ( ई० स० १९३७ की ७ जून ) को महाराजा साहब हवाई जहाज़ से लौट कर सकुशल जोधपुर पहुँचे । वि० सं० १९९४ की सावन वदि ३ ( ई० स० १९३७ की २६ जुलाई ) को महाराजा साहब ने एक दरबार किया और उसमें अपने राजकीय कर्मचारियों को सम्राट् के राज्याभिषेकोत्सव-संबन्धी पदक ( Coronation Medals ) प्रदान किएं । वि० सं० १९९४ की कार्तिक वदि १ ( ई० स० १९३७ की २० अक्टोबर ) को पाँचवे महाराज-कुमार का जन्म हुआ। पहले लिखा जा चुका है कि वि० सं० १९४२ ( ई० स० १८८५ ) में भारत सरकार ने मेरवाड़े के २१ गांवों पर जोधपुर-दरबार का अधिकार मानते हुए भी उनका प्रबन्ध हमेशा के लिये अपने अधिकार में कर लिया था। परन्तु वि० सं० १९६४ के माघ ( ई० स० ११३८ की जनवरी ) में राज्य-संघ ( Federation ) के सिलसिले में वे गाँव फिर से जोधपुर दरबार को लौटा दिए गए । इस समय तक गवर्नमैंट को जोधपुर-दरबार की तरफ़ से १,०८,००० रुपये सालाना खिराज के और १,१५,००० रुपये ( वि० सं० १८७४=ई० स० १८१८ की सन्धि के अनुसार ) फ़ौज-खर्च के दिए जाते थे । परन्तु आगे से, ऐरनपुरे की मीणा-फ़ौज ( कोर ) के तोड़ दिए जाने से, यह पिछली रकम नहीं देनी होगी । १. इस खुशी में अगले रोज़ दफ्तरों में छुट्टी की गई और स्कूलों के विद्यार्थियों को मिठाई दी गई। २. इस अवसर पर १६ पदक मुल्की ( Civil ), २६ पदक फौजी ( Military ) और १६ पदक जोधपुर-रेल्वे के अफसरों और कर्मचारियों को दिए गए। ३. इस अवसर पर भी किले से १२५ तोपें दागी गई, ५ दिनों की छुट्टी की गई, ८ कैदी __ छोड़े गए और १०३ कैदियों की मियादें घटाई गई। वि० सं० १६६४ की पौष वदि ३० (ई० स० १६३८ की १ जनवरी) को भंडारी बिल्लमचंद ( फाइनेंस-सेक्रेटरी ) को 'रायसाहब' की उपाधि मिली । ४. इन गांवों में ३ नये आबाद हुए गांवों के मिले होने से इस समय इनकी संख्या २४ हो गई है। ५७५ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास वि० सं० १९६५ की वैशाख वदि १४ ( ई० स० ११३८ की २६ अप्रेल ) को महाराजा साहब ने सुमेर - समन्द से लाई गई नहेर का उद्घाटन किया । इस समय यहां पर राज्य - प्रबन्ध के लिये एक मन्त्रियों की सभा ( काउंसिल ) नियुक्त है । उसमें पांच मन्त्री हैं और उसके सभापति का आसन स्वयं महाराजा साहब ग्रहण करते हैं । १. इस (Sumer Samand Water Supply Channel) के बनाने में करीब १८ लाख रुपये खर्च हुए | यह नहर क़रीब ६० मील लंबी है और इसमें मार्ग में चढ़ाई जाने के कारण ७ पंपिंग स्टेशन बनाए गए हैं। इसका पानी इकट्ठा करने के लिये तखतसागर का बांध बन रहा है । इसमें करीब ५३ लाख रुपये लगेंगे । इस नहर के बन जाने से जोधपुर नगर की पानी की कमी दूर होगई है । २. राजकीय काउंसिल के मन्त्रियों का और उनके विभागों का विवरण इस प्रकार है: (क) - सर डोनाल्ड फील्ड प्रधान मंत्री और अर्थ सचिव (Lt. Col. Sir Donald Field. C. I. E. ) ( Chief & Finance Minister ) (ख) - ठाकुर माधोसिंह ( संखवाय ) ( ग ) - मिस्टर एस. जी. एडगर (Mr. S. G. Edgar, I. S. E.) (घ) - नवाब खाँबहादुर चौधरी मोहम्मददीन (ङ) - रायबहादुर लाला कुँवरसेन Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ५७६ गृह-सचिव (F!ome Minister) तामीरात विभाग - सचिव (Public Works Minister ) प्राय-सचिव (Revenue Minister) न्याय - सचिव (Judicial Minister) www.umaragyanbhandar.com Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट-२. महाराजा उम्मेदसिंहजी साहब की पूर्वी एफ्रिका-यात्री। (प्रथम यात्रा) महाराजा साहब ने पहले-पहल विक्रम संवत् १९८९ ( ई० स० १९३२-३३ ) की शीतऋतु में शिकार के लिये पूर्वी एफ्रिका जाने का निश्चय किया और इसके प्रबन्ध के लिये उगंडा और सोमालीलैंड के भूतपूर्व गवर्नर और सूडान के गवर्नर-जनरल सर जॉफ़री आर्चर को लिखा । इसपर वह जोधपुर आकर आप से मिला और यहां पर यात्रा का प्रारम्भिक प्रबन्ध कर आगे के प्रबन्ध के लिये पूर्वी एफ्रिका चला गया। इसके बाद वि० सं० १९६० की ज्येष्ठ वदि ७ ( ई० स० १९३३ की १६ मई ) को आप जोधपुर से रवाना हुए और बम्बई पहुँच पूर्वी एफ़िका जानेवाले ब्रिटिश इण्डिया कम्पनी के केनिया (Kenya) नामक जहाज पर सवार हुए। ___ इस यात्रा में आपके साथ आपके छोटे भ्राता महाराज अजितसिंहजी, ओसियां के ठाकुर रामसिंह और कुँवर बिशनसिंह तथा जोधपुर का प्रिंसिपल मैडीकल ऑफीसर मिस्टर ई० डब्ल्यू० हेवर्ड थे। १. मिस्टर हेवर्ड के विवरण के आधार पर । २. सर जॉफरी और सहायक-शिकारी (Chief hunter) मरे स्मिथ ने महाराजा साहब के समान सम्माननीय व्यक्ति के हिंस्र जन्तुओं का शिकार करने को जाने के समय एक दत्त शल्य-चिकित्सक (Surgeon) का साथ रखना आवश्यक बतलाया था। इसी से मि० हेवर्ड साथ लिया गया था। इस यात्रा में शल्य-चिकित्सा में सहायता देनेवाले एक व्यक्ति के अलावा तीन अनुचर और भी साथ थे। इनके अलावा अन्य अनुचरों का प्रबन्ध केनिया में ही किया गया था। ५७७ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास भारत से सेशल्स (Seychelles ) द्वीप तक की यह सामुद्रिक यात्रा बड़ी सुहावनी रही, और वहां पर आपने अपने सहचरों सहित किनारे पर उतर उस स्नानोपयोगी सुन्दर समुद्र-तटवाले ऊर्वर द्वीप के अनेक छाया-चित्र लिए। कुछ घंटों के विश्राम के बाद आपका जहाज अवशिष्ट यात्रा के लिये फिर आगे बढ़ा और उसके मोम्बासा (Mombasa) पहुँचने पर वहां के प्रान्तीय कमिश्नर ने केनिया के गवर्नर के प्रतिनिधिरूप से आपका स्वागत किया। साथ ही सर जॉफरी आर्चर तथा मिस्टर निकोल भी वहां आकर उपस्थित हुए। इसके बाद महाराजा साहब अपने सब अनुयायियों को लेकर किलिण्डिनी (Kilindini) के बन्दरगाह के क़रीब बने मिस्टर निकोल के सुन्दर भवन में पहुँचे और उसका आतिथ्य स्वीकार किया । इससे निवृत्त होने पर मिस्टर निकोल ने सब को मोम्बासा की सैर करवाई और महाराजा साहब को अपने हवाई जहाज में बिठाकर उक्त नगर का ऊपरी दृश्य दिखलाया । अन्त में महाराजा साहब के स्थानीय गवर्नर का प्रातिथ्य ग्रहण कर लेने पर आपका दल, वहां के समुद्र तल से रवाना होकर कई हजार फीट की ऊँचाई पर स्थित नैरोबी को जानेवाली रेलगाड़ी से रवाना हुआ और शाम के बाद अपने गन्तव्य स्थान माउंगू (Maungu) पर, जो एक छोटासा स्टेशन है, पहुँच गया । यह स्थान बौई (Voi) प्रान्त में है, जो घने जंगलवाला होने से अपने हाथियों के लिये प्रसिद्ध है । यहां के जंगल में विशाल वृक्ष न होकर कांटोंवाली झाड़ियों की अधिकता है । इसी से वहां पर चलना-फिरना कठिन हो जाता है । इस स्थान पर पहले से ही सुखद ख़मों का प्रबन्ध कर दिया गया था । इसलिये रात भर विश्राम कर लेने के बाद प्रातःकाल के पूर्व ही महाराजा साहब एफ्रिका के सब से बड़े शिकार - . हाथी की खोज में रवाना हो गए । इस यात्रा में कप्तान टि० मरे स्मिथ (T. Murray Smith) सहायक - शिकारी (Chief hunter) नियुक्त किया गया था और उसकी सहायता के लिये तीन अन्य शिकारी भी रक्खे गए थे । इसी से मरे स्मिथ और एक अन्य शिकारी महाराजा साहब के साथ और दो शिकारी महाराज अजितसिंहजी के साथ रहते थे। हाथी का शिकार दलबद्ध होकर नहीं किया जा सकता । इसी से महाराजा साहब को एक दिशा में १. मिस्टर निकोल का पिता भी उन मुख्य पुरुषों में से एक था, जिन्होंने ब्रिटिश ईस्ट एफ्रिका के नाम से सम्बोधित होने वाले इस भूभाग का द्वार मुक्त किया था । ५७८ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाराजा उम्मेदसिंहजी और महाराज अजितसिहजी को दूसरी दिशा में जाना पड़ा। महाराजा साहब अपनी छोटी सी टोली के साथ सावो (Isavo) नदी के उस प्रदेश में, जिसका पूरा-पूरा वर्णन पैटर्सन की 'सावो के मनुष्य भक्षक' (Alan eaters of the T savo) नामक पुस्तक में दिया गया है, पहुँचे और महाराज अजितसिहजी आपकी अपेक्षा माउंगू से कुछ पास रहकर शिकार की खोज करने लगे। अन्त में कुछ दिनों के, प्रातःकाल से पूर्व निकल कर अंधेरा होने तक सघन झाड़ियों में घूमते रहने के, कठिन परिश्रम के बाद महाराजा साहब ने एक एफ़िकन हाथी का शिकार किया। इसका प्रत्येक दांत तोल में ५७ पाउंड था । यद्यपि यह भार अपेक्षा-कृत हलका था, तथापि ये दांत, खास तौर पर लम्बे और सुन्दर बनावट के थे। शिकार कर लेने के बाद, हाथी के दांत निकालने और पैर, कॉन व पूँछ काटने का चातुर्य-पूर्ण और श्रन-साध्य कार्य किया गया। हाथी की पूँछ पर के बालों से उसकी आयु का पता चलता है, इसी से यह भाग विशेष महत्त्व रखता है। इसके अलावा हाथी के मरकर एक पार्श्व पर गिर जाने के कारण बहुधा उसके दोनों कान शिकारी के हाथ नहीं आते, क्योंकि उस अवस्था में उसका उठाना असम्भव हो जाता है । वहां से लौटकर महाराजा साहब ने कुछ दिन माउंगू में विश्राम किया और फिर दो दिन इधर-उधर शिकार कर लेने के बाद आपने दूसरा बड़ा हाथी मारा । इसके दांतों का तोल ११७ और ११४ पाउंड था और उनकी लम्बाई ७ फुट ९ इंच और ७ फुट ३ इंच थी। इसके बाद शीघ्र ही महाराज अजितसिह जी ने भी दो सुन्दर हाथियों का शिकार किया । उनका प्रत्येक दांत औसतन १० पाउंड था। यद्यपि महाराजा साहब ने शिकार के लिये लगाए एक सप्ताह के चक्कर में ही दो हाथी मारलिए, तथापि महाराज अजितसिह जी को दो सप्ताहों तक बिना एक भी गोली चलाए निष्फल चक्कर काटने पड़े। परन्तु अन्त में चार दिनों में ही दो हाथी उनके हाथ लग गए । इसी से कहा जाता है कि हाथी के शिकार में भाग्य, धैर्य और चातुर्य की आवश्यकता होती है । ५७६ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास सिवानी (Siwani) में ( जिसका नाम मारवाड़ के सिवाना से मिलता हुआ है और जहां पर महाराजा साहब अबतक अनेक तेंदुओं (Panthers) का शिकार कर चुके हैं ) महाराजा साहब ने दो गैंडों का, जिनकी अनुमति आपके शिकार के परवाने में थी', शिकार किया । इसी बीच महाराजा साहब और महाराज अजित सिंहजी ने दो-दो भैंसों के अलावा कुछ अन्य पशुओं का शिकार भी किया । इससे डेरे पर मारे हुए कई प्रकार के सुन्दर पशुओं का संग्रह हो गया। इन्ही में एक अजगर भी था, जिसे महाराजा साहब ने जिपे (Jipe ) झील के पास मारा था । इसके बाद क़रीब एक दर्जन मोटरों और मोटर लॉरियों में अपना सामान लाद कर महाराजा साहब की सारी पार्टी माउंगू से दक्षिण टैंगानीका ( Tanganyika ) की तरफ़ चल पड़ी। मार्ग में इसने मकटाउ ( Maktau) में विश्राम किया । यह पूर्वी एफ्रिका की एक लड़ाई का स्थान है । इसी से महाराजा साहब ने बड़े शौक़ से यहां की पुरानी खाइयों ( Trenches ) का निरीक्षण किया । उस समय इस स्थान पर ज़ोरों की ठंडी हवा चल रही थी । इसलिये दूसरे दिन प्रातःकाल यहां से रवाना होने में सबको प्रसन्नता हुई । अन्त में सब लोग मोशि ( Moshi ) से होते हुए, जहां पर एफ्रिका के सबसे ऊंचे पहाड़ की सुन्दरता का नजारा है, हमेशा बरफ से ढकी रहने वाली चोटी वाले किलिमंजरू ( Kilimanjaru ) पर पहुँच गए । इसके बाद एक सड़क को, जो सड़क के समान न होने पर भी अपने सुरक्षित शिकार के लिये स्मरणीय है, पार कर यह मोटरों का काफला अरुशा ( Arusha ) ही १. पूर्वी एफ्रिका के नियमानुसार प्रत्येक शिकारी को एक परवाना लेना पड़ता है, जिस पर प्रत्येक जाति के पशुओं की संख्या लिखी रहती है । अतः शिकारी उनसे अधिक का शिकार नहीं कर सकता । यद्यपि आम तौर पर शिकारी ( hunter ) का अर्थ बड़े-बड़े पशुओं के शिकार करने वाले का होता है, तथापि पूर्वी एफ्रिका में यह शब्द कसान मरे स्मिथ के समान पेशेवर शिकारी के लिये प्रयुक्त होता है। ऐसे शिकारियों को ख़ास तौर के परवाने (licenses ) लेने पड़ते हैं परन्तु उन पर भी शिकार की तादाद लिखी रहती है । इसके अलावा अपने आसामियों को वहां के शिकार के नियमों से अवगत करने की ज़िम्मेदारी भी इन शिकारियों पर ही रहती है । परन्तु इन नियमों का ठीक तौर से पालन करवाना शिकार की निगरानी करने वालों (wardens) या गिरदावरों (rangers) का काम है । । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ५८० www.umaragyanbhandar.com Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाराजा उम्मेदसिंहजी पहुँचा । यद्यपि उस समय तक सब लोग रास्ते की गर्द से भर गए थे, तथापि मार्ग में मोशि के बाद के रक्षित वन में घूमनेवाले मृगयोपयोगी पशु-दल के सुन्दर दृश्यों को देखने के कारण प्रसन्न थे । उस स्थान के पशु मोटर गाड़ियों से परिचित हो जाने के कारण बहुधा सड़क के पास ही खड़े हो जाते हैं । इसी से इस पार्टी को निकट पहुँच उनके अनेक छाया चित्र खींचने में सफलता मिली । अरुशा में पहुँच महाराजा साहब ने दो दिन पड़ाव किया; क्योंकि उस प्रान्त के सुदीर्घ दक्षिणी भाग में खाने-पीने की सामग्री के न मिलने के कारण सर जॉफ़री और कप्तान मरे स्मिथ को, यात्रा करने के पूर्व, उसके एकत्रित करने का मौक़ा देना आवश्यक था । यहीं पर आप केनिया पहाड़ ( Mount Kenya ) के ढाल पर बने ब्रिगेडियर जनरल बोयड मौस ( Boyd Moss ) के घर पर पधारे । इस प्रान्त में यह घर सब से सुन्दर घरों में से है और इसके साथ इंगलैंड के देहाती बगीचे का सा एक बगीचा भी जुड़ा है | इसके अलावा यह सब एक ऐसे अछूते ( Virgin ) जंगल के बीच हैं, जिसमें से निकल कर आने वाले हाथी और गैंडे कभी-कभी इस बगीचे के कुछ भाग को नष्ट कर जाते हैं । इसी से यह एक आश्चर्य जनक और निराली जगह है । यहां से रवाना होकर आपका दल दिन भर दक्षिण को जानेवाली सड़क पर चलता रहा और रात को बचाटी ( Babati ) में ठहरा। यहां के होटल में पुराने ढाँचे के गारे के झौंपड़े थे, और खाने के कमरे में कुछ लकड़ी भी लगी थी । परन्तु यहां से आस-पास का दृश्य खब दिखलाई देता था । इसके अलावा इस विश्राम गृह ने सबको रात भर खुब गरन रक्वा । दूसरे दिन वरेकु ( Bereku ) पहुँचने पर एक बड़े सरदार ने, जिसका नाम सुल्तान जालिम था, और जो एक प्रादेशिक अफ़सर के साथ वहां ठहरा हुआ था, आपको अपने अनुचरों का दल दिखलाया । यह अर्धनग्न योद्धाओं का एक समूह थी 1 तीसरे पहर के जलपान के बाद, जो कोलो ( Kolo ) के बाहर सड़क के किनारे किया गया था, महाराजा साहब की पार्टी ने वहां की स्थानीय टोली के साथ फुटबॉल का मैच खेल। और इसमें सरपंच ( Raeree) की अज्ञानता के कारण बगैर एक भी १. यहीं पर मिस्टर हवडे ने ज़ालिम का एक दांत, जो उसे बहुत पीड़ा देता था, उखाड़ दिया | परन्तु डाक्टर के उस दांत को घास पर फेंकते ही उन नंगे योद्धाओं में से एक ने दौड़ कर उन उठा लिया और एक पवित्र यादगार की तरह अपने पास रख लिया । ५८१ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास गोल लिए विपक्षियों को दो गोल से हराया। इस सरपंच के 'ऑफ़-साइड' (Ofside) के नियमों से अनभिज्ञ होने के कारण ही महाराजा साहब की पार्टी को सफलता मिली थी । इसके अलावा हारी हुई टोली का निर्णायक से दलील करना और भी चित्ताकर्षक था; क्योंकि प्रातःकालीन भोजन ( B ea': ast ) के समय प्रादेशिक अफसर ने महाराजा साहब के दल को विश्वास दिला दिया था कि वहां के लोग अब विशेष जंगली और मनुष्य-भक्षक नहीं रहे हैं । इसके बाद यह दल अपनी मोटरों में बैठ कर करेमा (Karema ) नदी पर पहुँचने के लिये आगे बढ़ा और शाम होने के पूर्व ही वहां पर खेमे गाड दिए गए। दूसरे दिन प्रातःकाल महाराजा साहब अागे के पड़ाव पर चले गए और वहां पर कुछ दिन तक बिना शिकार किए ही ठहरे रहे । यद्यपि उस प्रदेश में हाथियों की बहुतायत थी, तथापि उसके अति सघन वृक्षाच्छादित होने से वहां पर अच्छे नर-हाथी का पता लगाना कठिन था । अपने अबतक के साहस-पूर्ण शिकार-सम्बन्धी कार्य के बाद वहां के डेरे पर महाराजा साहब ने क्रीकिट खेलने और अपने जन्म-दिवस के उपलक्ष्य में एका-एक नियत किए खेलों के छाया-चित्र लेने में बड़े विश्राम का अनुभव किया । महाराज अजितसिंहजी ने भी, जो करेमा के डेरे पर पहुँचने के दूसरे दिन ही शिकार के लिये एक तरफ़ चले गए थे, अबतक कोई समाचार न भेजा था और इससे यह अनुमान करलिया गया था कि वह भी हाथी के शिकार में उस समय तक सफल नहीं हो सके थे । इसके बाद महाराजा साहब सिंगीडा ( Singica ) की तरफ़ चले । यद्यपि वहां पर भी हाथी का शिकार न हो सका, तथापि आपने एक बड़ा और शानदार कूडु (Kudu ) मारा; जिसके सींग नाप में ५५६ इंच थे । महाराज अजितसिंहजी भी अबतक हाथी का शिकार करने में सफल न हो सके थे । इसलिये पहले सिंहों और अन्य पशुओं के शिकार को जाने का और वापस लौटते हुए यदि समय मिले तो हाथियों के शिकार करने का निश्चय किया गया। इसके बाद जिस समय महाराजा साहब कौंडोबा इरंगी (Kondoa Irangi) में से होकर लोट रहे थे, उस समय आपने एक विशाल वृक्ष देखा । यूरोपीय महायुद्ध के दिनों में, जिस समय यह गांव जर्मनों की सेना का केन्द्र (Head quarter) था, उस समय वे ८२ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मह राजा उम्मेदसिंहजी लोग इस वृक्ष के तने में अपना गोली-बारूद रवखा करते थे । इस वृक्ष के तने में घुसने का द्वार इतना बड़ा था कि, उ.में एक लंबा अादमी वगर र झुकाए ही घुस सकता था। इसी से पाठक उस वृक्ष के ने की विशालता का पता लगा सकते हैं। इसके बाद आपने मैन्यारा (Pi.. ) झील पर पड़ाव किया और वहां पर दो शानदार सिंह मारे । इनका नाप क्रमशः ६ फुट ६ इंच और ६ फुट ६ इंच था। वहीं पर आपने अनेक तरह के शिकारोपयोगी पशुओं के कई सुन्दर छाया-चित्र भी लिए । इस पड़ाव पर भहाराज अजितसिंहजी और मिस्टर हेवर्ड भी शिकार करने में लगे थे । इससे डेरे पर पूर्वी एफ्रिका के इ. भाग में मिलने वाले सब तरह के शिकार किए जाने वाले पशुओं का अच्छा संग्रह हो गया । महाराजा साहब ने अपने सहायक शिकारियों ( Chief hunters) को प ले ही कह रक्खा था कि शिकार करने में आपका विचार पशुओं की विशेषता ( 1 ) से है, संख्या से नहीं। इसीसे यहां पर मारे हुए पशुओं का नम्बर अधिक न हो पर भी स्मारक के तौर पर जितने भी पशु मारे गए थे, वे सब अपनी खास विशेषता रखते थे। इसके अलावा साथवालों के भोजन के लिये, जिनकी संख्या करीब ६५ ३ थी, मांस का प्रबन्ध करने में भी कम से कम पशु-वध किया जाता था । इसी तरह कभी-कभी उन घुमक्कड़ जाति के लोगों को भी जो इंडोरोबो ( Ncorobo , के नाम से पुकारे जात हैं, खिलाना आवश्यक होता था। वे लोग शिकार की खबर लेकर आते और भोजन के लिय मांस का एक कवल मिलने पर ही उसे प्रकट करने को तैयार होते थे । परन्तु वे इस मांस-कवल का अर्थ प्रत्येक के लिये आधी भेड़ प्राप्त करना जानते थे । इसी से एकवार इनमें के एक आदमी ने भोजन के लिये दी हुई भेड़ की टांग को अप परिश्रम की एवज में अत्यल्प बतला कर लेने से इनकार कर दिया था। यहां झील पर गुलाबी रंग के सारस-जाति के पक्षियों (Flamingoes ) के हजारों की संख्या में इकट्ठे होने का दृश्य भी बड़ा सुन्दर था । जिस समय ये उड़ते थे, उस समय आकाश का दिखना बिलकुल बंद हो जाता था; और इनका रंग और इनके परों की चमक लोगों का ध्यान अपनी ओर खींच लेती थी । इससे वहां पर इनके भी कुछ सुन्दर छाया-चित्र खींचे गए । ____ अगला कैंप इंगोरो-गोरो (igoro-yurc ) नामक ज्वालामुखी के मुहाने पर किया गया । यह प्रदेश कई वर्ग-मील में फैला हुआ है और इसमें करीब ३०,००० ५८३ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास शिकार के पशुओं का होना अनुमान किया जाता है । इसी से यहां पहुँच यह पार्टी अपने कैंप से, जिसकी ऊंचाई दो हजार फुट थं, कई घंटों तक उन पशुओं क झुन्डों का तमाशा देखती रही; क्योंकि यह एक हमेशा याद रहने वाला दृश्य था । यद्यपि दूरी के कारण न तो यहां छाया चित्र ही खींचे जा सकते थे न संरक्षित- प्रदेश (Game preserve ) होने से शिकार ही किया जा सकता था, तथापि जिन्होंने इसे एकबार देख लिया है, वे इसे किसी तरह नहीं भुला सकते । यहां से आगे सेरेंगेड्डी ( Serengetti) के मैदान को, जो १०० मील से भी लम्बा निर्जल प्रदेश है, पार करने के लिये पूरी खबरदारी और प्रबन्ध की आवश्यकता होती है । यह एक ऐसा निर्जल प्रदेश है कि वहां पर मनुष्यों के और मोटरों के रेडीयेटरों के लिये जल का मिलना असम्भव है । यद्यपि यह यात्रा भी इस मैदान को पारकर दूसरे किनारे के प्रसन्नता हुई। वैसे तो इस जगह का मिल जाता था । खासी भली थी, तथापि आखिरी कैंप में पहुँचने से प्रत्येक व्यक्ति को पानी भी मैला और अस्वादु था, फिर भी वह यहां पर महाराजा साहब ने ४ दिनों में ही ४६ सिंहों के चित्र खींचे । यद्यपि यहां पर सिंहों (Lions) का शिकार करना बहुत आसान था, तथापि आपने किसी पर गोली नहीं चलाई; क्योंकि यहां पर पहले के समान शिकार का पीछा करने से उत्पन्न होने वाले रोमाञ्चकारी साहस का आनन्द न था । फिर भी यहां पर खींचे हुए चल (Cinema ) और अचल चित्र इस प्रदेश की, जहां पर सभी तरह के शिकार पाए जाते हैं, स्मृति को अक्षुण बनाए रक्खेंगे । इस समय तक महाराजा साहब के जोधपुर लौटने का समय भी करीब यान पहुँचा था । इसलिये आपकी पार्टी मोटरों से सुगम पड़ावों पर ठहरती, सेरेंगेट्टी को पारकर अरुशा और मोशि होती हुई वौइ या पहुँची, और वहां से रेल द्वारा मोंबासा और फिर वहां से केनिया जहाज द्वारा बम्बई आ गई । इसके बाद भादों सुदि ७ ( ( २७ अगस्त) को सब लोग जोधपुर पहुँचे । इस यात्रा वर्णन में जिन पशुओं के शिकार का उल्लेख हो चुका है, उनके अलावा निम्नलिखित पशुओं का शिकार भी किया गया था: तेंदुआ (Panther), टोपी (Topi), गेरेनुक ( Gerenuka), छोटा कूड्डु (Lesser Kudu), इलैंड (Eland), इग्पाला (Impala), पानी की बक (Water buck), Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ५८:४ www.umaragyanbhandar.com Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बक महाराजा उम्मेदसिंहजी (Stein buck), डिक- डिक ( Dic-dic), कोंगोनी (Congoni ), न्यू (Gnu), थोपसन का चिकारा (Thompson's gazelle) और ग्रांट का चिकारा ( Grant's gazelle) । ये सब शिकार बाद में नैरोबी (Nairobi) से रवाना किए गए थे, और मसाला भरे जाने के बाद इस समय महाराजा साहब के महलों की शोभा बढ़ाते हैं । इन सब में हाथी के कान की मेजें और भी दर्शनीय हैं । वैसे तो जंगली जानवरों की आवाजें पड़ाव के निवास को मज़ेदार बनाती रहती हैं । परन्तु इस यात्रा में एक-दो घटनाएं, जिनका वर्णन आगे किया जाता है, ऐसी भी घटी थीं, जिन्हें मज़ेदार कहने के स्थान पर उत्तेजना-दायक कहना अधिक उपयुक्त होगा । एक रात को महाराजा साहब के कैम्प से क़रीब एक मील पर रहने वाले वहां के एक स्थानीय पुरुष के चौपायों पर सिहों ने आक्रमण कर दिया । ऐसे समय मोटरकार से गोली चलाना ही उचित होता है । अतः इस घटना की सूचना मिलते ही महाराजा साहब उस गहरी रात में चौपायों पर हमला करने वालों को भगाने के लिये खेमे से रवाना हुए । यह याद रखने की बात है कि सिंह को मनुष्य का मांस बहुत पसन्द होता है । परन्तु महाराजा साहब ने वहां पहुँचते ही तत्काल दो सिंहों को मार गिराया । इनमें से एक तो मरकर मोटर के इंजिन (Radiator) पर ही, जिसपर उसने याक्रमण किया था, आ गिरा । एक रात्रि को महाराज अजितसिंहजी के आगे चलनेवाले खेमे में हाथी घुस आए । यद्यपि वे हाथी इस सफ़ाई से ख़ेमे के पार हुए कि न तो खेमे की कोई रस्सी ही टूटी न मेख ही, तथापि उसे तत्काल खाली कर देना पड़ा । इस प्रकार की घटनाओं के कारण ही एफ्रिका की झाड़ियों में डेरा लगाने वाले समझदार पुरुषों के लिये भरी बंदूक पास में रखकर सोना आवश्यक होता है । ऊपर महाराजा साहब की पहली सफरी का; जिसका अर्थ एफ़्रिकावालों की बोलचाल के अनुसार शिकार के लिये यात्रा करना होता है, संक्षिप्त वर्णन दिया गया है । एक ख़ास दिन के शिकार या छाया चित्र लेने का खुलासा वर्णन इस विषय की अनेक प्रसिद्ध पुस्तकों में मिल सकता है; और जैसा उन पुस्तकों में लिखा गया है, वैसा ही प्रत्येक शिकारी को अनुभव होता है । इसलिये यहां पर उसका विशद विवरण देना अनावश्यक है । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ५८५ www.umaragyanbhandar.com Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास हां, आगे शेरों के छाया- चित्र लेने का कुछ हाल दिया जाता है । यह ऐसे स्थान पर ही ठीक तौर से लिया जा सकता है, जिस का कुछ भाग संरक्षित - शिकारगाह हो और जहां पर बहुत ही कम बंदूक दागने की इजाजत दी जाती हो। इससे उस भाग के पशु, साधारण जंगली जानवरों से, कम भड़कने वाले हो जाते हैं । ऐसे स्थान का शेर मोटरकार से बिलकुल ही नहीं डरता और मोटर के तेल की गन्ध उसमें बैठे हुए प्रादमियों का गन्ध से तेज़ होने के कारण, जब तक वह उन लोगों की बात-चीत नहीं सुन लेता या उन लोगों के अपने को अधिक प्रकट कर देने के कारण देख नहीं लेता, तब तक उस ख़तरे को नहीं समझ सकता । इसलिये यह नियम बना लिया गया है कि, तसवीर लेने वाला फोटोग्राफर लॉरी के पिछले भाग में बैठता है और वह लॉरी धीरे-धीरे चलाई जाती । जब शेर दिखाई देते हैं तब वह उनसे क़रीब पचास गज़ के फ़ासले पर ले जाकर खड़ी कर दी जाती है । एकवार लॉरी ने एक छोटे शेर के दिल में ऐसा शौक़ पैदा कर दिया कि वह उसकी वास्तविकता को जानने के लिये उससे पन्द्रह गज़ के फ़ासले तक चला आया । इससे तसवीर लेने में बड़ी सुविधा हुई, और इस प्रकार लिए हुए उस चित्र को उस छोटे सिंह की पूरी छवि कहैं तो भी प्रत्युक्ति न होगी । परन्तु सिंह इस तरह की कृपा सदा ही नहीं किया करते । इसलिये उन्हें ललचाना पड़ता है । इसका यह तरीका है। कि सिंहों वाले स्थान से एक या दो मील हटकर एक जीबरा ( Zebra ) या न्यू ( Gnu) ( जिसे विल्डबीस्ट Wilde beeste भी कहते हैं ) गोली से मार लिया जाता है और उसका पेट चाक कर दिया जाता है । इसके बाद उसकी लाश लॉरी के पीछे रस्से से इस प्रकार बांध दी जाती है कि वह लॉरी के पिछले बोर्ड से करीब पन्द्रह ग्रज्र की दूरी पर जमीन पर घसिटती चलती है । इस प्रकार पेट चाक की हुई लाश को लेकर जब लॉरी शेरों के पास लौट कर पहुँचती है, तब उसकी गन्ध उनका ध्यान अपनी ओर खींच लेती है और वे उसका पता लगाने को आगे बढ़ आते हैं । कभी-कभी वे बहुत आगे बढ़ आते हैं और लॉरी के पीछे धीरे-धीरे घसिटती हुई पशु की लाश को पकड़ने ५८६ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाराजा उम्मेदसिंहजी की चेष्टा भी करने लगते हैं । यह दृश्य चल - चित्र ( सिनेमा की तसवीर ) खींचने वाले के लिये पूर्व मौके का होता है । अक्सर ऐसा मौका भी या जाता है, जब रस्सा खोलकर लाश सिंहों के पास छोड़ देनी और लॉरी कुछ दूर हटा लेजानी पड़ती है । इसके बाद जब सिंह, मारकर नजर किए हुए अपने प्रियतर भोजन को ग्रहण करने लगते हैं, तब लॉरी फिर पास सरका ली जाती हैं, और तसवीर खींचने का कार्य पूरी तत्परता से शुरू कर दिया जाता है | परन्तु जिस समय काले बालवाले ववर शेर की नाक ज़ीबरे की लाश में गहरी घुसी होती है, उस समय उसका पूरा चहरा तसवीर में नहीं सकता । ऐसे समय उस भक्षण में तत्पर मृगराज का ध्यान भोजन से हटाने के लिये लॉरी की बगल में ज़ोर से खटखटाना पड़ता है, और इससे वह उस शब्द का कारण जानने के लिये अपना सिर ऊपर उठा लेता है । यह कार्य एक बच्चे की तसवीर खींचने के समान है; क्योंकि फोटोग्राफ़र को चित्र खींचते समय उसकी दृष्टि कैमरे की तरफ़ आकृष्ट करने के लिये उसे पुकारना पड़ता है । इस प्रकार चित्र खींचे जाने के समय सहायक शिकारी (Chief hunter ) लॉरी चलाने वाले की बगल में बैठा रहता है, क्योंकि कभी-कभी भड़कीले स्वभाव का कोई नौजवान सिंह दिए हुए भोजन से असन्तुष्ट होकर लॉरी की खोज करने के लिये अधिक निकट जाता है और ऐसे समय उसे सीसे का भोजन देकर ( गोली मारकर ) शान्त करना पड़ता है । परन्तु भाग्य से ऐसी आवश्यकता ही नहीं पड़ी । इसके अलावा आम तौर पर कोई भी शिकारी ऐसे सिंह - शावक पर गोली चलाना उचित न समझेगा, जिसका चर्म केवल अजायबघर के 'नैचुरल हिस्ट्री' - ( मृतजीव-जन्तुओं वाले ) विभाग के ही उपयोगी हो । अस्तु, महाराजा साहब के ये चल और अचल चित्र, जो कुछ उन्होंने वहां पर देखा, उसके और दोनों प्रकार के चित्र खींचने में उनकी कुशलता के चिर- स्मारक रहेंगे । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ५८७ www.umaragyanbhandar.com Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास (द्वितीय यात्रा) वि० सं० १९९१ की पौष वदि २ ( ई० स० १९३४ की २२ दिसम्बर ) को महाराजा साहब फिर केनिया जाने के लिये जोधपुर से रवाना हुए। इस वार की यात्रा में आपके छोटे भ्राता महाराज अजितसिंहजी, ओसियां का कुँवर मोहन सिंह, शामपुरा का ठाकुर करनसिंह और मिस्टर हेवर्ड ( प्रिंसिपल मेडिकल ऑफ़ीसर ) साथ थे । यह यात्रा केनिया के बदले करंजा नामक जहाज़ द्वारा की गई थी। और पहली यात्रा के समान ही इस यात्रा में भी कोई विशेष घटना नहीं घटी । मोबासा पहुँचकर महाराजा साहब ने फिर वहां के गवर्नर और निकोल (Necol) का आतिथ्य ग्रहण किया। इसके बाद सब लोग वहां से तीसरे पहर रेल द्वारा रवाना होकर दूसरे दिन पौष सुदि १ ( ई० स० ११३५ की ६ जनवरी ) की सुबह मकिण्डु (Mikindu) पहुँचे । इस वार की पार्टी पहले की पार्टी से बहुत छोटी थी और सर जॉफ़री आर्चर भी इसमें शरीक नहीं किया गया था। इसी से उसका काम कसान मरे स्मिथ और मिस्टर हेबर्ड ने बांट लिया । परन्तु मकिण्डु का यह निवास असफल ही रहा, क्योंकि एक सप्ताह तक शिकार की टोह में घूमने पर भी न तो महाराजा साहब ही और न महाराज अजितसिंह जी ही हाथी का शिकार कर सके । इसपर सब लोग कितुई (Kitui) प्रान्त की तरफ़ चले आए। यहां पर मुख्य शिविर विंगी (Nwingi) में रक्खा गया । और वहां से एक छोटी टोली हाथियों वाले प्रदेश के निकटतम समझे जानेवाले स्थान को रवाना हुई। ___अन्त में दूसरे सप्ताह में महाराजा साहब ने प्रथम हाथी का शिकार किया। यह एक बढ़िया और बुढा नर था, जिसका एक दांत तोल में १०० पाउण्ड और दूसरा १८ पाउण्ड था। यहां के शिविर में रात को हाथियों के पास वाले छोटे तालाव पर आकर पानी पीने और नहाने की आवाजें सुनाई देने से अच्छी चहल-पहल रहती थी । वे अपनी सूंड में पानी भरकर अपने शरीर पर छिड़कते और इस प्रकार फुयार १. इनके अलावा पहले की तरह ही एक शल्य-चिकित्सा में मदद देनेवाला और तीन अनुचर भी साथ लिए गए थे। ५८८ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाराजा उम्मेदसिंहजी में नहाते थे । उनके समागम से वह पानी और भी ख़राब हो जाता था और शिविर में रहनेवालों को नित्य ही उस पानी को स्नानोपयोगी बनाने के प्रयत्न में बहुतसा समय व्यतीत करना पड़ता था । परन्तु यह स्नान का कार्य अंधेरे में ही अच्छा हो सकता था, क्योंकि उस समय किसी को यह पता नहीं चलता था कि वह अपने सिर पर कैसी चीज़ डाल रहा है । यह शिविर सुन्दर प्रदेश में होने और यहां की बहवा अच्छी होने से एक मनोहर स्थान था । माघ वदि १३ ( १ फ़रवरी) को महाराजा साहब ने दूसरे हाथी का शिकार किया । इस वार ख़ासा तमाशा रहा, क्योंकि जिस समय हाथियों का एक टोला गोली की मार के भीतर होकर शिविर के पास से निकला, उस समय उनमें से बढ़िया हाथी चुनने के साथ-साथ चुने हुए शिकार पर आघात करते समय, उसके साथियों के हमले से बचने के लिये पूरी चौकसी रखने की आवश्यकता भी आ पड़ी । उन दिनों देश के उस भाग में अकाल था । इसलिये दूसरे दिन प्रातःकाल जिस समय महाराजा साहब की टोली उस मारे हुए हाथी के दांत निकालने को पहुँची, उस समय उक्त प्रान्तवासियों का एक बड़ा समूह, अनुमति मिलते ही मृत हाथी का मांस खाने के लिये, वहां पर एकत्रित हो गया । इसके बाद हाथी के दांत, पैर, पूँछ और कानों को जुदा कर लेने पर जब तक उसके शव के टुकड़े किए गए, तब तक महाराजा साहब को नाचते और गाते हुए हशियों के छाया चित्र लेने का अच्छा मौका मिल गया । करीब २०० नग्न या अर्धनग्न मनुष्यों का छुरियां ले-लेकर उस हाथी की लाश पर ( जिसके कि उन्होंने टुकड़े-टुकड़े कर दिए ) हमला करने का दृश्य देखने वालों के भुलाए नहीं भूल सकता । इस प्रकार उस बन के सब से बड़े गजराज का, जो एक रात पहले वहां पर राजा की तरह घूमता था, ५ टन ( १४० मन ) का शरीर शाम तक पूरी तौर पर समाप्त हो गया । हाथी के शिकार के लिये सुबह ४ बजे उठना आवश्यक होता है; क्योंकि इससे शिकारी प्रातःकाल होते ही पानी की तलैया पर पहुँच जाता है और फिर शीघ्र ही किसी बड़े नर हाथी के, जिसने रात में वहां आकर पानी पिया हो, पद- चिह्नों का अनुसरण करता है । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ५८६ www.umaragyanbhandar.com Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास साधारण तौर पर हाथी के पद चिह्नों से उसकी विशालता का अन्दाजा होजाता है और फिर शिकारी को होशियारी के साथ जंगल में कई घंटों तक उनका अनुसरण करना पड़ता है । यह बड़ा ही कठिन कार्य है । इसके बाद जब यह अनुमान हो जाता है कि शिकारी की टोली शिकार के पास पहुँच गई है, तब शिकारी अपनी बन्दूक, जिसे अब तक वाहक ( Gun boy ) लिये होता है, स्वयं ले लेता है । जंगल में महाराजा साहब की पार्टी के लोगों का, जो थे, क्रम साधारणतया इस प्रकार रहता था: खोज देखनेवाला, कप्तान मरे स्मिथ, बन्दूक - वाहक, बन्दूक वाहक, महाराज अजितसिंहजी ( यदि वह शिकार के गए हों ), तीसरा बन्दूक - वाहक और दो या तीन मज़दूर । एक कतार में रहकर चलते ऐसी यात्राओं में यह भी एक ध्यान देने की बात है कि, टोली जितनी ही छोटी होगी उसकी आवाज़ भी उतनी ही कम होगी । परन्तु इसकी विशेषता उस समय और भी बढ़ जाती है, जिस समय यह ज्ञात होजाता है कि एक टहनी का टूटना भी कभीकमी हाथी को आनेवाले खतरे से खबरदार कर भाग जाने को प्रेरित कर देता है । बहुधा ऐसे जंगलों में झाड़ी इतनी संघन होती है कि यदि २० गज की दूरी से हाथी का पार्श्व दिखलाई दे जाय तो भी उसके सिर और पूंछ की दिशाओं का पता लगाना असम्भव हो जाता है । इसी से ऐसे समय उसके गिर्द चक्कर लगाकर उसके मस्तक को देखना और उसके दोनों दांतों के मौजूद और उसको मारकर प्राप्त करने योग्य होने का निश्चय करना आवश्यक होता है । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat महाराजा साहब, दूसरा लिये अन्य स्थान पर न शिकारियों के २५ या ३० गज के फ़ासले पर पहुँच जाने पर उनकी आवाज सुनकर या गन्ध पाकर हाथियों का भाग खड़ा होना कोई अनोखी बात नहीं है । ऐसे देश में जहां हवा अक्सर रुख बदलती रहती है शिकारी का सफल होना उसके भाग्य पर ही निर्भर रहता है और बहुधा उसे हताश होना पड़ता है । परन्तु अन्य अनेक कारणों में से यह भी एक कारण है कि जिससे लोग हाथी का शिकार करने को लालायित रहते हैं । ५६० www.umaragyanbhandar.com Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाराजा उम्मेदसिंहजी माघ बदि १२ ( ३१ जनवरी) को महाराज अजितसिंहजी ने भी एक शानदार हाथी का शिकार किया । इसके दांत तोल में १०५ और १०० पाउण्ड थे । इसके बाद महाराजा साहब ने जंगली भैंसों और शेरों की खोज में नैरोबी में होकर दक्षिणी मासाइ (Masai) प्रदेश में जाने का निश्चय किया । जिस समय हाथी का शिकार किया जा रहा हो, उस समय अन्य पशुओं पर गोली नहीं दागी जा सकती, क्योंकि ऐसा करने से अन्य पशुओं के प्राप्त होने पर भी हाथी हाथ से निकल जाता है । यही कारण है कि कोई भी शिकारी, जो हाथी के शिकार के समय की उत्तेजना और उस समय आवश्यक होनेवाले धैर्य और चातुर्य से प्रभावित हो चुका है, इसे पसन्द नहीं करेगा | महाराजा साहब के मारा ( Mara) नदी पर जाते समय मार्ग का पहला पड़ाव नरौक (Narok) पर हुआ और वहां से आगे बढ़ने पर सब लोग सिमाना (Ciana) प्रदेश से जो मासाइ के रक्षित-वन का प्रायः एक निर्जन प्रदेश है, गुज़रे । वहां पर महाराज अजितसिंहजी ने शीघ्र ही दो जंगली भैंसों का शिकार किया । परन्तु माघ सुदि ११ ( १४ फ़रवरी) को महाराजा साहब ने जिस जंगली भैंसे का शिकार किया, उसके सींगों का घिराव ५१ इंच का था । यूरोपीय महायुद्ध के बाद मारे गए बड़े भैंसों की सूची में भी इसका स्थान खासा ऊँचा रहा । वे लोग जो वहां उपस्थित थे महाराजा साहब के खासा घेरा और बारिश शुरू हो जाने के बाद लौटने पर उत्पन्न हुई उस उत्तेजना को बहुत समय तक याद रक्खेंगे । उस दिन का सा, तीसरे पहर के भोजन में लगे आध घंटे के अलावा, बारह घंटे तक बराबर शिकार का पीछा करते रहने वा कठिन कार्य शायद ही कोई कर सकेगा या करना चाहेगा । कप्तान मरे स्मिथ ने भी, जिसे एफिका का अच्छा अनुभव था, उस दिन महाराजा साहब के जंगल में मदद देनेवाले हथकंडों और चातुर्य की मुक्तकंठ से प्रशंसा की । यद्यपि यह शिकार एक बड़ा पुरस्कार था, तथापि वहां पर उपस्थित लोगों ने इसे उस दिन के परिश्रम से अधिक नहीं समझा । इसी अवसर पर महाराजा साहब ने एक आश्चर्य जनक चल-चित्र भी खींचा। इसमें अपने एक साथी भैंसे के मारे जाने पर जंगली भैंसों के झुण्ड का श्रेणिबद्ध होकर महाराजा साहब पर आक्र मण करने का दृश्य था । जिस समय आप यह चित्र खींच रहे थे, उस समय की ५६१ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास अवस्था को देख यद्यपि साथ वालों ने आपसे बन्दूक हाथ में ले-लेने की प्रार्थना की, तथापि आप खतरे की परवाह न कर बहुत समय तक कैमरे से चित्र खींचते रहे। परन्तु आपके सौभाग्य से, एक दूसरे बड़े भैंसे के मारे जाते ही, उस आक्रमणकारी महिष दल ने अपना रुख पलट लिया । फिर भी शिविर को लौटते समय इन क्रुद्ध हुए भैंसों के झुण्ड से बचने के लिये पूरी खबरदारी रखनी पड़ी। इस दल. ने पलट कर एक वार फिर आपकी टोली पर हमला किया था; परन्तु सौभाग्य से करीब ५० गज़ की दूरी पर से ही वह फिर लौट गया। ___ इसके बाद बरसात के समय से पूर्व ही शुरू हो जाने से महाराजा साहब को इस सफलता-दायक शिविर को नियत समय के पूर्व ही छोड़ देने का निश्चय करना पड़ा । ( इसी स्थान पर महाराज अजितसिंहजी और मिस्टर हेवर्ड ने भी अपने मारे सींगों और अयालवाले पशुओं को सम्मिलित कर महाराजा साहब द्वारा किए गए शिकार की संख्या में वृद्धि की)। यद्यपि बहिया के समय नदियों को पार करना उत्तेजनादायक था, तथापि यह एक श्रम-साध्य कार्य था। कभी-कभी पार्टी के वे लोग जो लॉरियों को पीछे से धकेलते थे, कंधों तक पानी में हो जाते थे । मार्ग की गीली, काली और चिकनी (Cotton soil) मिट्टी को पार करना जब खाली लॉरियों के लिये भी एक परीक्षा का कार्य था, तब लदी हुई लॉरियों के लिये तो यह और भी अधिक संकट का काम था। इसी से आपका कैंप दो दिनों में ५ मील से भी कम आगे बढ़ सका और एक दिन तो केवल नदी के इस पार से उस पार तक की ही यात्रा हुई । इस धीमी और कठिन यात्रा में भी भाग्य ने महाराजा साहब का साथ दिया। इसी से आपने मार्ग में एक बहुत ही शानदार भूरे अयाल वाले १ फुट ६ इंच लम्बे शेर का शिकार किया। ___ यद्यपि यह सिंह करीब १५ मिनट की योडीसी दौड़-धूप के बाद ही एक सघन झाड़ी में मारा गया था, तथापि यह एक ऐसी रोमाञ्चकारी घटना हुई कि आपकी उस १२ घंटों तक भैंसे का पीछा करते रहनेवाली उत्तेजना-वर्धक घटना से किसी कदर कम न रही । जिस प्रकार वे लोग ही, जिन्हें ऐसे कार्यों का अनुभव है, उस सघन जंगल में, जहां पर कमर ऊँची करके सीधा खड़ा होना भी कहीं-कहीं ही सम्भव हो सकता है, १२ घंटे तक बराबर शिकार का पीछा करते रहने के परिश्रम की वास्तविक Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाराजा उम्मेदसिंहजी कदर कर सकते हैं, उसी प्रकार वे मुक्त-भोगी ही, जिन्होंने ऐसे सघन जंगल में शेर को मरा या जीवित जाने वगैर ही उसका पीछा किया है, उपर्युक्त १५ मिनट को उत्तेजना का अन्दाज़ लगा सकते हैं । महाराजा साहब के अपनी पार्टी के साथ नैरोबी पहुँचने पर वहां के गवर्नर ने आपका स्वागत किया। यहां से सब लोग फागुन सुदि ४ (८ मार्च) की सुबह इम्पीरियल एअर वे के, सप्ताह में दो बार चलने वाले, हवाई जहाज द्वारा खाना हुए। परन्तु इसके पूर्व महाराजा साहब ने राजधानी के निकट के रक्षित वन में घूमने वाले शिकारोपयोगी पशुओं के सुन्दर चित्र भी खींचे थे। यहां से चलने पर आपका पहला पड़ाव खारटूम (Khartoum) में हुआ और सब लोग रातभर वहां रहे । उस स्थान पर महाराजा साहब ने अपना रात्रि का भोजम वहां के गवर्नर-जनरल के साथ, उस पुराने और प्रसिद्ध महल में किया, जिसमें जनरल गौर्डन ( Gordon ) और फील्ड मार्शल लॉर्ड किचनर (Kitchener) के स्मारक रक्खे हुए हैं । वहां के चिड़िया घर में मेजर बारकर (Barker) का अपने एक चीते के पिंजरे में बिना हिचकिचाहट के घुसकर उसे खुजाना देख सबको बड़ा आश्वर्य हुआ। यहां पर भी महाराजा साहब ने दिन में पहले हवाई जहाज़ द्वारा नाइल के ऊपरी हिस्से के आई- भूभाग ( Swamps) में रहनेवाले सैकड़ों हाथियों के झुण्डों के चित्र खींचे । कारो (Cairo) पहुँचने के पूर्व एक रात लक्सोर (Luxor) में भी ठहरना पड़ा । परन्तु कारो पहुँचने पर महाराजा साहब को मिस्र (Egypt) की उस राजधानी को, जहां पर आप ई० स० १९१२ की कड़ी बीमारी के बाद स्वास्थ्य लाभ के लिये लाए गए थे, दुबारा देखकर बड़ी प्रसन्नता हुई । महाराज अजितसिंजी का इसे देखने का यह पहला ही अवसर था । यद्यपि कारो के प्रसिद्ध होने के कारण उसके विषय में कुछ लिखना अनावश्यक ही होगा, तथापि यह प्रकट करना अनुचित न होगा कि यहां पर महाराजा साहब ने एक सप्ताह के निवास में जितना कुछ देखा जा सकता आपने था, सब देख डाला । आप विशाल पिरामिड (Great Pyramid ) पर चढ़े, तुतनखामन (Tutankhaman) के समय की वस्तुओं वाला अजायबघर देखा, और आप नाइल का बांध (Dam) देखने को भी गए। आपके कारो पहुँचने पर वहां के हाई कमिश्नर (High Commissioner), सेनापति ( General Officer Commanding) और टर्फ क्लब (Turt Club) ने, जिसके कि आप ऑनरेरी सभासद बनाए गए, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ५६३ www.umaragyanbhandar.com Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ arcare का इतिहास आपका स्वागत किया । ‘टर्फ क्लब' में उन सैनिकों द्वारा, जिन्होंने यूरोपीय महायुद्ध के समय जोधपुर रिसाले के साथ रहकर कार्य किया था, वर्णन किए गए अपने रिसाले के वीरता पूर्ण कार्यों को सुनकर आपको अपार हर्ष हुआ। साथ ही आपने अप्रकट रूप से अनेक देशों के लोगों से भरे नगर के अन्य अनेक भागों को भी देख डाला । इसके अलावा कारो और मारवाड़ के लोगों के गाने में खासी - भली समानता को जानकर भी आपको प्रसन्नता हुईं । घूमकर यहां से आप रेल द्वारा सईद बन्दर (Port Said) पहुँचे और वहां से पी० एण्ड ओ० कम्पनी के मलोया (Maloya) जहाज द्वारा बम्बई आए । इसके बाद वि० सं० १९९१ की चैत वदि १० ( ई० स० १९३५ की २९ मार्च) को आप अपने अनुचरों सहित जोधपुर पहुँचे । आपके दूसरे नौकर भारी-भारी सामान और शिकार किए हुए पशुओं को लेकर मोंबासा से सीधे ही रवाना हो गए थे । अतः यथा - समय वे पशु आदि मसाले से भरे जाकर आपके महलों में सजा दिए गए हैं, और वहां पर वे बन्दूक द्वारा प्रकट की गई आपकी सफल वीरता को प्रदर्शित करते हैं । इसी प्रकार आपके खींचे हुए चलचित्र (Cinema flais) भी सिनेमावालों द्वारा जनता को दिखाए जानेवाले श्रेष्ठ चित्रों का मुक़ाबला करते हैं । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ५६४ www.umaragyanbhandar.com Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट-३ यूरोपीय महासमर और जोधपुर का सरदार रिसाला। यूरोपीय महायुद्ध के प्रारम्भ होते ही, वि० सं० १९७१ के भादों ( ई० स० १९१४ के अगस्त ) में, जोधपुर के 'सरदार-रिसाले' की पहली रैजीमैंट और उसकी दूसरी रैजीमैंट का कुछ भाग, युद्धस्थल के लिये भेजा गया। इसके कुछ दिन बाद ही जोधपुर-राज्य के उस समय के निरीक्षक ( रीसेंट ) वयोवृद्ध महाराजा सर प्रतापसिंहजी और नवयुवक-नरेश महाराजा सुमेरसिंहजी भी युद्धस्थल की तरफ़ रवाना हुए। पहले इस रिसाले को स्वेज नहर की रक्षा का भार सौंपना निश्चित हुआ था। परन्तु वहां पहुंचने पर इसे मार्सलीज़ (Marseilles) जाने की आज्ञा मिली। इसके बाद, कार्तिक वदि ८ ( १२ अक्टोबर ) को जब यह रिसाला वहां पहुंचा, तब रेल-द्वारा ओरलीन्स (Orleans) भेजा जाकर सिकन्दराबाद रिसाले के साथ कर दिया गया। मँगसिर ( नवम्बर ) के प्रारम्भ में इसने मैरविल्ले (Merville) की तरफ़ जाकर आर्मेण्टीए (Armentieres) और गिवेंची (Givenchy) के बीच की सैन्यपङ्क्ति की रक्षा के कठिन कार्य में भाग लिया । इस प्रकार उस महीने के अन्त तक यह यप्रे (Ypres) के प्रथम युद्ध में लगा रहा । परन्तु पौष ( दिसंबर ) में इसने फैस्टुबिया (Festubert) और गिवेंची (Givenchy) के आस-पास के घमसान युद्ध में योग दिया। इस वार की मुठभेड़ में अन्य हताहतों के साथ ही इस रिसाले का स्पेशल सर्विस ऑफीसर' मेजर स्ट्राँग भी घायल हुआ। इसके बाद यह रिसाला अगले दो वर्षों ( ई० स० १९१५ और १९१६ ) में अधिकतर, भारत के अन्य रिसालों के साथ मिलकर, युद्ध-स्थल के पीछे दी जानेवाली युद्ध कला की शिक्षा में, उपयुक्त भू-भागों को तारों से घेरने में, युद्धोपयोगी छोटी रेलों की लाइनें तैयार करवाने में और शत्रु की आत्म-रक्षार्थ तैयार की हुई रुकावट के टूटने पर अपनी तरफ के रिसाले के धावे के लिये मार्ग तैयार करने में लगा रहा, परन्तु साथ ही इसने कुछ खाइयों की और कुछ सोमे (Somme) के पास की छोटी-छोटी मुठभेड़ों में भी, जो इस समय के बीच हुई, भाग लिया। १. जानेवाले कुल जवानों की संख्या १३५६ थी। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास इसी बीच, वि० सं० १९७२ के प्रथम बैशाख ( ई० स० १९१५ की अप्रेल ) में, जोधपुर - नरेश नवयुवक महाराजा सुमेरसिंहजी को, अपने राज्य ( मारवाड़ ) का पूर्ण शासनाधिकार ग्रहण करने के लिये, भारत लौट आना पड़ा । वि० सं० १९७३ के ( ई० स० १९१६-१७ के ) शीतकाल में इस रिसाले ने फिर अपना समय युद्ध-शिक्षा में, सैनिक पङ्क्ति के एक भाग की रक्षा में और शत्रु के सम्मुख रुकावट खड़ी करने में बिताया । वि० सं० १९७४ ( ई० स० १९१७ ) की गरमियों में यह रिसाला, अन्य भारतीय रिसालों के साथ, मौका आते ही, जर्मनसैनिक-पङ्क्ति को भेदने के लिये खास तौर से (In reserve) नियुक्त किया गया । परन्तु ऐसा अवसर न आने से सरदियों में यह फिर खाइयों के युद्ध में भाग लेने में और सैनिक-शिक्षा के कार्य में लग गया । इसी बीच केम्ब्रे ( Cambrai) के मैदान में, जनरल - बाइंग (Byng) के हमलों के समय, इस रिसाले न ला-वैकेरी (La - Vacquerie) के पास शत्रु की हिंडन्बर्ग-पङ्क्ति को तोड़कर उसके अधिकृत भू-भाग पर अधिकार कर लिया । इस हमले में वयोवृद्ध महाराजा प्रतापसिंहजी भी इस रिसाले के साथ थे 1 परन्तु इसके बाद शीघ्र ही यह रिसाला वापस बुला लिया गया और इसे शत्रु के प्रत्याक्रमणों को दबाने में नियुक्त होना पड़ा । इस कार्य में कैप्टिन ट्रेल ( R. G. A. Trail), जो हाल ही में इस रिसाले का 'स्पेशल - सर्विस - अफ़सर' नियुक्त हुआ था, मारा गया । वि० सं० १९७४ के फागुन ( ई० स० १९१८ के मार्च ) में भारतीय रिसालों के फ्रांस से हटा लिये जाने के कारण जोधपुर का रिसाला भी फिलस्तीन ( Palestine) में, ब्रिगेडियर-जनरल हर बोर्ड (Harbord ) के अधीन के 'इम्पीरियल सर्विस-कैवैलरी ब्रिगेड' के साथ रहकर, कार्य करने को भेज दिया गया। अबतक जोधपुर - रिसाले के सेनापति का कार्य कर्नल महाराज शेरसिंहजी करते थे; परन्तु इस अवसर पर वह रिसाले को सामान आदि भेजने वाले डिपो का, जिसका कार्य इन दिनों बहुत बढ़ गया था, प्रबन्ध करने के लिये भारत लौट आए और रिसाले के सेनापतित्व का कार्य संखवाय - ठाकुर लैफ्टिनैंट कर्नल प्रतापसिंह को सौंपा गया । १. इस रिसाले की एक टुकड़ी ने विलर्स गौसलौं ( Villers Gauslaun) के धावे में बढ़ी बहादुरी से भाग लिया। इस घावे के पूर्व इसे कई घण्टे तक पानी में खड़ा रहना पड़ा था । परन्तु इसके जवानों ने सब काम बड़े धैर्य और वीरता के साथ किया । यह घटन वि० सं० १९७४ की मंगसिर वदि २ ( ई० स० १६१७ की ३० नवम्बर ) की है। ५६६ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यूरोपीय महासमर और जोधपुर का सरदार रिसाला फ्रांस से चलकर यह रिसाला जहाज-द्वारा पहले मिश्र (Egypt) पहुँचा । फिर वहां से रेल-द्वारा सिनाई (Sinai) होता हुआ गाजा (Caza) की तरफ़ भेजा गया और वहां से चलकर अस्केलन (Askelor), जेरूसलम (Jerusalem) और जेरिको (Jericho) होता हुआ घोरानिये पुल (Ghoraniyeh bridge head) के पास पहुँचा । वहां पर इसने 'न्यूजीलैंड-माउण्टैड-राइफल्स' (Newzealand mounted rifles) से जॉर्डन की रक्षा का भार लेकर शत्रु के कई छोटे-छोटे दलों को पकड़ने में सफलता प्राप्त की। वि० सं० १९७५ के ज्येष्ठ ( जून ) में यह रिसाला वहां के एक स्वास्थ्यप्रद स्थान में रक्खा गया। परन्तु आषाढ ( जुलाई ) में इसे, हेनू के पुल (Henu bridge head) पर अधिकार करने के लिये, फिर जॉर्डन की घाटी में जाना पड़ा। वहां पहुँच इसने शीघ्र ही शत्रु की सेना पर, जिसकी संख्या तीन रैजीमैन्टों' के बराबर थी और जिसके पास दस मशीनगनें थीं, आक्रमण कर उसे नष्ट कर दिया। उक्त युद्ध में इस रिसाले ने अनेक शत्रुओं को मारने के साथ ही ७४ तुर्क-योद्धा पकड़े थे । इनमें एक ग्यारहवें तुर्क-रिसाले का सेनापति (Oficer Commanding) और चार छोटे सेनापति (Squadron Commanders) थे । इसी युद्ध में चार तोपें ( मशीन गर्ने ) भी इस रिसाले के हाथ लगी । उपर्युक्त हमले में इस रिसाले के राजपूत-वीरों ने व्यक्तिगत वीरता के भी अनेक कार्य सम्पादन किए थे । उन्हीं वीरों में से मेजर ठाकुर दलपतसिंह ने अकेले ही शत्रु के तोप (Machinegun) वाले एक दल पर हमला कर उसकी तोप छीन ली। इसी प्रकार जमादार खानसिंह और आसूसिंह ने भी बड़ी वीरता के साथ अपनी-अपनी सैनिक टुकड़ियों को लेकर शत्रु पर हमला किया। इसी युद्ध में ये पिछले दोनों वीर सम्मुख-रण में जूझ कर काम आए। आश्विन ( सितम्बर ) में इस रिसाले ने हैफ़ा (Haifa) पर अधिकार करने में बड़ी ख्याति प्राप्त की। जिस समय मेजर ठाकुर दलपतसिंह के सेनापतित्व में इसने उसपर आक्रमण किया, उस समय सामने नदी के पार से शत्रु की भयंकर गोले बरसाने वाली बड़ी-बड़ी तोपें और मिनट में शत-शत गोलियों की वर्षा करने वाली मशीनगर्ने १. कहीं-कहीं वैलिंगटन माउण्टैड राइफल्स (Wellington mountedrilles) लिखा मिलता है। ५६७ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास आग उगल रहीं थी । परन्तु इस रिसाले के सवारों ने नदी और शत्रु की इन सब विघ्नबाधाओं को पार कर नगर पर अधिकार कर लिया और साथ ही ७०० तुर्कयोद्धाओं को भी पकड़ लिया । इसी युद्ध में वीर दलपतसिंह मारा गया । इसी प्रकार इस रिसाले ने तुर्कों का पीछा करते हुए आश्विन वदि ११ (३० सितम्बर ) को दमिश्क (Damascus) में, आश्विन सुदि १ (६ अक्टोबर ) को मोआलका (Moalaka) में, आश्विन सुदि ६ (११ अक्टोबर) को जहेर (Zaher) में और आश्विन सुदि १० (१५ अक्टोबर ) को होम्स (Homs) में घुसकर अनेक तुर्को को पकड़ा। आश्विन सुदि १५ (१६ अक्टोबर ) को अलप्पो (Alappo) पर अंतिम धावा किया गया । यद्यपि कार्तिक वदि ७ (२६ अक्टोबर ) के पहले मार्ग में कोई उल्लेखनीय मुठभेड़ नहीं हुई, तथापि उस रोज पंद्रहवीं घुड़ सवार सेना (15th Cavalry brigade) को, जो पहले 'इम्पीरियल-सर्विस-कैवेलरी-ब्रिगेड' कहलाती थी, नगर-रक्षक तुकों की सेना की गांते रोकने की आज्ञा दी गई। इस युद्ध में लेफ्टिनेंट कर्नल हेला होल्डन (Hyla Holden) मारा गया और कैप्टिन हौसंबी (Hornsby) ज़ख़्मी हुआ । इस प्रकार ई० स० १९१८ के १९ सितम्बर से २६ अक्टोबर तक जोधपुर रिसाले ने, पंद्रहवीं 'कैवेलरी-ब्रिगेड' के साथ रहकर ५०० मील का धावा किया और मार्ग में होनेवाले प्रत्येक युद्ध में भाग लिया। ई० स० १९१८ की ३१ अक्टोबर को अस्थायी संघि (Armistice) हो जाने से ई० स० १९११ के नवम्बर तक, यह रिसाला कब्जा रखने वाली सेना (Army of Occupation) की तरह मिश्र में रहा। इसके बाद वहां से चलकर बीरुट (Berut) होता हुआ जहाज-द्वारा स्वेज़ की राह भारत में पहुँचा और ई० स० १९२० की २ फरवरी को, पांच वर्ष की लगातार युद्ध-सेवा के बाद, जोधपुर लौट आया । इस युद्ध में इस रिसाले के २ ब्रिटिश अफ़सर, ३ देसी अफसर और २५ जवान सम्मुख युद्ध में मारे गए । १ देसी अफ़सर और ६ जवान जख्मी होकर मरे । १ देसी अफसर और ६३ जवान बीमार होकर मरे और २ ब्रिटिश अफसर, १२ देसी अफसर और ८२ जवान जख़्मी हुए। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यूरोपीय महासमर और जोधपुर का सरदार रिसाला इस रिसाले की उपर्युक्त सेवाओं के उपलक्ष्य में इसके अफसरों और सिपाहियों को कुल मिलाकर ९४ पदक और इनाम आदि मिले थे। इनमें से मुख्य-मुख्य अफ़सरों के नाम आगे दिए जाते हैं: कर्नल ठाकुर प्रतापसिंह ( संखवाय ) मेजर ठाकुर दलपतसिंह कैप्टिन ठाकुर अनोपसिंह लैफ्टिनैंट कुँवर सगतसिंह कैप्टिन अमानसिंह मेजर ठाकुर किशोरसिंह कैप्टन सिंह रिसालदार उदैसिंह रिसालदार शैतान सिंह जमादार आसूसिंह जमादार खानसिंह जमादार जवाहर सिंह जमादार बिशन सिंह कैप्टन बहादुरसिंह लैफ्टिनैंट मोहबतसिंह लैफ्टिनेंट भूरसिंह लैटिनैंट अर्जुनसिंह रिसालदार जोग सिंह जमादार अनोपसिंह .... सी० बी० ई०, ओ० बी० आई० ( सरदार बहादुर ) ( प्रथम रैजीमैंट) एम० सी० एम० सी०, ओ० बी० आई०, ( बहादुर ) आइ० ओ० ऐम० ( स्क्काडून कमाण्डर - प्रथम रैजीमेंट ) एम० सी०, ओ० बी० आइ०, आइ प्रो० एम०, ओ० बी० आई०, प्रो० बी० आई०, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ओ० बी० आई०, आइ० ओ० ऐम०, आइ० ओ० ऐम०, आइ० प्र० एम०, आइ० डी० एस० ऐम ० आइ० डी० एस० ऐम ० आइ० डी० एस० एम० आइ० डी० एस० ऐम० आइ० डी० एस० ऐम० प्राइ० एम० एस० एम० आइ० ऐम० ऐस० ऐम० Croix De Guerre ( फ्रांस का ) इनके अलावा वि० सं० १९७४ की श्रावण सुदि १३ ( ई० स० १९१७ की १ अगस्त) को महाराजा सुमेरसिंहजी साहब अवैतनिक मेजर (Honorary Major) के पद से भूषित किए गए और जोधपुर रिसाले के साथ युद्धस्थल में रहने तक कुँवर ( रावराजा ) हनूतसिंह और कुँबर सगतसिंह को अवैतनिक (द्वितीय) लैटिनैंट के पद दिए गए । १. किसी-किसी रिपोर्ट में इसके स्थान पर स्क्वाड्रन कमान्डर ( Squadron Commander) पनेसिंह को मिल्ट्री क्रॉस ( M. C. ) मिलना लिखा है । ५६६ www.umaragyanbhandar.com Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास परिशिष्ट-४ मारवाड़-नरेशों के दान दिए हुए कुछ अन्य गांवों का विवरण. ३. राव धूहड़जी राव धूहड़जी के दान किए गांवों का उल्लेख इस इतिहास के पृष्ठ ४७ के फुटनोट नंबर ६ में किया जा चुका है। परन्तु उनके इन दो गांवों के दान का उल्लेख और भी मिलता है:१. तरसींगड़ी-सोढ़ां और २. ढूंढली ( पचपदरा परगने के ) पुरोहितों को । २०. राव चन्द्रसेनजी. राव चन्द्रसेनजी के एक गांव के दान का उल्लेख इस इतिहास के पृष्ठ १६० पर किया जा चुका है। परन्तु उनके निम्नलिखित गांवों के दान का उल्लेख और मी मिलता है:-- १. चारणों का बाड़ा ( सिवाना परगने का ) और २. खाड़ा आसियां (पचपदरा परगने का ) चारणों को। २७. महाराजा अभयसिंहजी. महाराजा अभयसिंहजी के दिए गांवों के दान का विवरण इस इतिहास के पृष्ठ ३५७ के फुटनोट नं० ३ में दिया गया है। उनमें के प्रथम ६ गांव चारणों को दिए गए थे । उनमें का (१) आलावास सोजत परगने का था, (४) टाटरवी नागोर परगने का था और (५) रांणावास का शुद्ध नाम राणासर था । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़-नरेशों के दान दिए कुछ अन्य गांवों का विवरण २६. महाराजा बखतसिंहजी. महाराजा बखतसिंहजी के दिए गांवों का वर्णन इस इतिहास के पृष्ठ ३६६ के फुटनोट १ में दिया जा चुका है । परन्तु उनके अलावा निम्नलिखित गांवों का भी उनके द्वारा दान किया जाना प्रकट होता है:-- १. डेरवे की ढाणी (नागोर परगने का), २. जोरावरपुरा (उर्फ-पेमावास) (डीडवाना परगने का ), ३. साथूणी-चारणां ( पचपदरा परगने का ) चारणों को; ४. बांसड़ा (नागोर परगने का) ब्राह्मणों को और ५. रामसर की भूमि ( नागोर परगने की ) भगतों को। उपर्युक्त फुट नोट में लिखे (४) धुनाडी गांव का शुद्ध नाम दूनियाडी मिलता है। ३१. महाराजा भीमसिंहजी. महाराजा भीमसिंहजी द्वारा दान में दिए एक गांव का उल्लेख इस इतिहास के पृष्ठ ४०० के फुटनोट नं० १ में किया गया है । परन्तु उनका यथासाध्य पूरा विवरण यहां दिया जाता है: १. सीरोडी, २. गोलिया ( जोधपुर परगने के ) ब्राह्मणों को; ३ मोटूस ( मेड़ता परगने का ) रामेश्वर महादेव के मंदिर को ४. गिलावासणी (डीडवाना परगने का ) ( जोधपुर के , लोटनजी के मंदिर को; ५. समदोलाव-कलां ( मेड़ता परगने का ) स्वामियों को; ६. जोधडावास, ७ पीथासिया (नागोर परगने के), ८ जोधडावास ( मेड़ता परगने का ), २. बाणियावास ( पचपदर। परगने का ) चारणों को और १०. पांडूखां, ११. धौलेराव-खुर्द (मेड़ता परगने के) भाटों को। ३४. महाराजा सरदारसिंहजी. महाराजा सरदारसिंहजी ने निम्नलिखित गांव दान किए थे:-- १. मथाणिये का हिस्सा, २. कोटड़ा, ३. किरमसीसर-खुर्द, ४. किरमसीसर कलां ( जोधपुर परगने के ) चारण महामहोपाध्याय कविराजा मुरारिदान को। ६०१ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास परिशिष्ट-५ मारवाड़ - राज्य के कुछ मुख्य-मुख्य महकमों का हाल प्रधान मन्त्री (चीन मिनिस्टर ) के अधीन महकमें: महकमा खास. 1 यह राज्य का मुख्य महकमा ( Secretariat ) है और इसकी स्थापना आदि के विषय में इस इतिहास में यथास्थान लिखा जा चुका है । ई० स० १९२२ और १९२८ में इसे नवीन ढंग पर लाने के लिये इसके प्रबन्ध में और भी उन्नति की गई और ई० स० १९३० के सितम्बर में राजकीय काउंसिल के प्रत्येक मैम्बर के लिये एक-एक सेक्रेटरी नियुक्त किया गया । इससे मैम्बरों का काम बहुत कुछ हलका हो गया और उन्हें विशेष महत्त्व के मामलों की तरफ़ ध्यान देने का समय मिल गया । न्याय के कार्य को और भी उन्नत बनाने के लिये ई० स० १९३५ में कानूनी सलाहकार ( Leagal adviser ) का पद नियत किया गया और इस सम्बन्ध के कागजात उसकी सलाह के साथ काउंसिल में पेश होने का नियम बनाया गया । ई० स० ११३७ में महकमा खास के प्रबन्ध में फिर संशोधन किया गया । इस समय पोलिटिकल डिपार्टमैन्ट और काउंसिल के कार्य संचालन के लिये एक-एक ऐसिस्टैन्ट सेक्रेटरी भी नियत है । पुलिस का महकमा. इसमें १ इन्सपैक्टर जनरल और १ डिप्टी इन्सपैक्टर जनरल के अलावा डिस्ट्रिक्ट सुपरिन्टैन्डैन्ट, १ डिप्टी सुपरिन्टैन्डैन्ट, २२ इन्सपेक्टर, ६ पब्लिक प्रौसीक्यूटर, ११२ सब-इन्सपेक्टर, ६ सब कोर्ट इन्सपेक्टर, ४७६ हैड कॉन्स्टेबल, २०७६ कॉन्स्टेबल, ८० चौकीदार और ६७ नम्बरदार हैं । पुलिस के महकमे की कार्रवाई का हाल यथास्थान दिया जा चुका है और यह महकमा बराबर उन्नति करता जा रहा है । ६०२ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़-राज्य के कुछ मुख्य-मुख्य महकमों का हाल जोधपुर रेल्वे. इस समय तक जोधपुर-सूरसागर, परबतसर, समदड़ी-रानीवाड़ा, और मारवाड़ जंक्शन-फुलाद शाखाओं के और भी खुल जाने से जोधपुर-रेल्वे का विस्तार ७६७ मील के करीब पहुँच गया है। इसी प्रकार २६ नए स्टेशनों के खुलजाने से जोधपुर-रेल्वे के स्टेशनों की कुल संख्या ११० हो गई है। इनमें से ४८ स्टेशन ब्रिटिश-भारत के सिंध और बलूचिस्तान प्रान्त में हैं। इनके अलावा मारवाड़ में होकर निकलनेवाली बी० बी० एण्ड सी० आइ० रेल्वे के २३ स्टेशन और भी मारवाड़ राज्य में वर्तमान हैं। इस रेल्वे की कुचामन रोड से खोखरोपारवाली, लूनी जंक्शन से फुलादवाली और जोधपुर से सूरसागरवाली शाखाओं पर और राई-का-बाग तथा मण्डोर के स्टेशनों पर 'कण्ट्रोल-सिस्टम' से काम होता है । ___ इस रेल्वे की लूनी से सिंध वाली शाखा पर ५० के स्थान पर ६० पाउंड की लोहे की पटड़ी (रेल्स) लगादी गई है और डेगाना-सुजानगढ़ शाखा पर ३० के बदले ५० पाउंड की लोहे की पटड़ी (रेल्स ) काम में लाई गई है। बहुत से जंक्शनों आदि के घेरे ( Yards ) फिर से बढ़ाए या ठीक किए गए हैं और जंक्शनों और मुख्य शाखा पर 'सिग्नलिंग' का भी पूरा इन्तिजाम किया गया है । जोधपुर-रेल्वे के कारखाने में बिजली से चलनेवाली नए ढंग की मशीनें लगाई गई हैं और इस रेल्वे के अन्य विभागों में भी यथासाध्य उन्नति की गई है । आगे के लिये फलौदी-पौकरन, बीलाड़ा-जैतारन और रानीवाड़ा-पीपराला आदि शाखाओं के खोलने पर विचार हो रहा है । इस समय तक जोधपुर रेल्वे पर राज्य के ४,७४,०२,६२६ रुपये लग चुके हैं । १. इसी समय के बीच बीलाड़ा ब्रांच जो पहले छोटी पटरी ( Nerrow Guage) की थी बीच की पटरी (Meter Guage) की करदी गई और जसवन्तगढ-लाडनू शाखा ( जो करीब १ मील लम्बी थी) उठादी गई । २. पहले जोधपुर और बीकानेर की रेल्वे साथ ही काम करती थी । परन्तु वि. सं० १९८१ ___ की कार्तिक सुदि ५ (ई० स० १६२४ की १ नवम्बर) से इन दोनों का प्रबन्ध जुदा-जुदा करदिया गया और बीकानेर-रेल्वे बीकानेर-दरबार को सौंप दी गई । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास गत वर्ष इस रेल्वे की कुल आमदनी ८४, १३,७८७ और खर्च ४०,८७,५६१ रुपये हुआ था । इससे जोधपुर - दरबार को ४४,०६,११६ रुपये का मुनाफ़ा रहा । मुख्य जेल (Central Jail ). I इस महकमे के प्रबन्ध में अच्छी उन्नति की गई है। कैदियों को दिए जाने वाले भोजन और सुविधाओं में भी सुधार हुआ है । ई० स० १९२४ में खास-खास उत्सवों पर छोड़े जानेवाले कैदियों के नियम बनाए गए और ई० स० १९३२ में मारवाड़ जेल के कानून अंगीकृत हुए । अब शीघ्र ही ' जेल मैन्यूअल' भी बनकर तैयार होने वाली है । इस समय तक जेल फैक्टरी में कैदियों द्वारा बनाई जाने वाली उपयोगी वस्तुओंजैसे रेशमी व सूती कपड़ों, दरियों, निवारों, रस्सियों, तौलियों, लोइयों, बेत की कुर्सियों आदि की बनावट में भी अच्छी उन्नति हुई है, और इससे राज्य में उनकी मांग बढ़ने के साथ ही दूसरी रियासतों और ब्रिटिश भारत से भी मांग आने लगी है । स्टेट होटल. संसार में हवाई जहाज़ों की उन्नति होने और जोधपुर में हवाई जहाज का स्टेशन ( Aerodrome ) बन जाने से यहां पर ठहरनेवाले हवाई जहाज़ों की संख्या बहुत बढ़ गई है । इसी से हवाई यात्रियों की सुविधा के लिये ई० स० १६३१ में 'यूरोपियन गैस्ट हाउस' की एवज़ में आधुनिक सुविधाओं से पूर्ण 'स्टेट होटल' की स्थापना की गई है। ई० स० १९३५ के अक्टोबर से १९३६ के सितम्बर तक =६३ हवाई जहाज़ों ने यहां के हवाई स्टेशन का उपयोग किया और ३१६६ यात्री 'स्टेट- होटल' में ठहरे । दस्तरी का महकमा. इसमें राज्य सम्बन्धी ख़ास ख़ास घटनाओं का विवरण लिखा जाता है । हालही में इसकी सामग्री को ठीक तौर से जमाने के लिये इसके प्रबन्ध में परिवर्तन किया गया है । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ६०४ www.umaragyanbhandar.com Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़-राज्य के कुछ मुख्य मुख्य महकमों का हाल अर्थ-सचिव (फाइनेन्स मिनिस्टर के) अधीन महकमेः खज़ाने का महकमा. वि० सं० १९८० ( ई० स० १९२३ ) में मिस्टर जे. डब्ल्यू. यंग ने आकर इस महकमे का आधुनिक ढंग पर प्रबन्ध किया था । इसी से आजकल राजकीय महकमों के आय-व्यय के सालाना बजट चालू वर्ष के ११ महीने के असली और १ महीने के अन्दाजन आय-व्यय के आधार पर तैयार किए जाते हैं और नवीन वर्ष के आरम्भ होते ही प्रत्येक महकमे को, उसके लिये अङ्गीकृत हुए बजट (तख़मीने ) की सूचना भेज दी जाती है । इसके साथ ही हर तरह के सुप्रबन्ध के कारण इस समय मारवाड़राज्य की आमदनी १,३०,००,००० रुपये से बढ़कर १,७०,००,००० के करीब और खर्च ८५,००,००० रुपये से बढ़कर १,२७,००,००० रुपये के करीब पहुँच गया है । इसके अलावा गत १४ वर्षों में ५,००,००,००० रुपया और भी मुख्य कामों ( Capital works ) पर खर्च किया जा चुका है । इसमें का आधा रुपया जोधपुर-रेल्वे और बिजली-घर पर लगाया जाने से राज्य की आमदनी में भी अच्छी वृद्धि हुई है। इसी प्रकार राज्य के स्थायी कोष में १,२५,००,००० की वद्धि की गई है और इस समय की बाजार-दर से राज्य के स्थायी कोष ( State holdings) की रकम ४,००,००,००० तक पहुँच गई है। __राज्य का सारा हिसाब 'प्री ऑडिट' के तरीके पर होता है और राज्य के कुछ खास जिम्मेदार करार दिए हुए ( Self accounting ) महकमों को छोड़कर बाकी सबका हिसाब राजकीय हिसाब के दफ्तर (ऑडिट ऑफिस ) में और महकमा खास के 'फाइनेन्स और बजट' के विभाग में रहता है। इस समय जोधपुर के मुख्य खजाने के (जिसका सारा काम ई० स० १९२७ से यहां की 'इम्पीरियल बैंक' की शाखा करती है ) अलावा राज्य के भिन्न-भिन्न परगनों में २२ ख़जाने और भी हैं, जहां पर सरकारी रकम जमा होती है और राज्य कर्मचारियों का वेतन आदि और भारत-सरकार के फ़ौजी विभाग से पैन्शन पानेवाले मारवाड़निवासियों की पैन्शन बांटी जाती है। १. ऑडिट-विभाग में खर्च के बिल की जांच हो जाने पर ख़जाना उस बिल के रुपये देता है। २. इसके सुप्रबन्ध के कारण भारत सरकार ने प्रत्येक पेन्शन पानेवाले के पीछे ३ रुपये साल जोधपुर-राज्य को, उसके प्रबन्ध के खर्च के लिये, देना निश्चित किया है । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास प्रत्येक महकमे में होनेवाली आमदनी और खर्च की जांच के लिये 'लोकल ऑडिट स्टाफ़' नियत किया गया है । यह सालाना प्रत्येक महकमे और खजाने में होनेवाली आमदनी और खर्च की जांच कर 'ऑडीटर' के पास अपनी रिपोर्ट पेश करता है और आवश्यकता होने पर ठीक तौर से हिसाब रखने के लिये उचित सलाह भी देता है। 'ऑडिट ऑफ़िस मैन्युअल' और 'जोधपुर गवर्नमेंट सर्विस रेगूलेशन' आदि के प्रकाशित हो जाने से राज्य-कर्मचारियों को बड़ी सुविधा हो गई हैं और 'ऑडिट ऑफिस' के परिश्रम से शीघ्र ही एक बड़ी ' ऐकाउण्ट्स मैन्युअल' मी प्रकाशित होनेवाली है। राज्य के अफसरों और अहलकारों के लिये जिस 'प्रोविडेंट फंड' और छोटे दर्जे के कर्मचारियों के लिये जिस 'ग्रैच्यूटी' (Gratuity ) का प्रबन्ध किया गया है उसका हिसाब भी इसी महकमे में रहता है । इसके अलावा राज्य कर्मचारियों को मकान आदि बनवाने के लिये कम सूद पर रुपये देने का प्रबन्ध मी यहीं से होता है। ___हाल ही में इस महकमे के उद्योग से राज्य-कर्मचारियों के लिये एक सहयोग समिति ( Umaid Cooperative Credit Society ) भी बनगई है और शीघ्र ही उनके लिये एक बीमा ( Life assurance ) विभाग भी स्थापन किया जानेवाला है। इस अर्थ विभाग द्वारा राज्य के वार्षिक आय-व्यय का चिट्ठा इस खूबी से तैयार किया जाता है कि राज्य का सारा काम सुचारु रूप से चल रहा है। इस समय इस महकमे का खास दफ्तर 'इम्पीरियल बैंक' के पास बने नए 'सिलवर जुबिली ब्लॉक' में स्थित है । सहयोग-समिति (Cooperative Dept.) वि० सं० १९८३ ( ई० स० १९२६ ) में पहले-पहल मारवाड़ में 'को-ओपरेटिव कैडिट सोसाइटी' का कानून बनाकर 'जोधपुर रेल्वे-को-ओपरेटिव क्रैडिट सोसाइटी' की स्थापना की गई । इसके बाद वि० सं० १९९४ ( ई० स० १९३७ ) में राज-कर्मचारियों के सुभीते के लिये ' उम्मेद को-ओपरेटिव क्रेडिट सोसाइटी' कायम हुई । इस समय इसके मैंबरों की संख्या १,७०० तक पहुँच गई Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ - राज्य के कुछ मुख्य-मुख्य महकमों का हाल है । इसी प्रकार मारवाड़ पंचायत - कानून पर भी विचार हो रहा है। अब तक कर्ज के भीषण परिणाम से बचने के लिये केवल जागीरदार ही दिवाले के कानून ( Insolvency act. ) की शरण ले सकते थे । परन्तु गत वर्ष से दूसरों के लिये भी ऐसा ही कानून ( Insolvency act ) बना दिया गया है । गृह-सचिव (होम मिनिस्टर ) अधीन महकमे : सायर (Customs) का महकमा । जोधपुर रियासत की सायर की आमदनी इस समय बढ़कर २७,००,००० तक पहुँच गई है और हाल ही ( ई० स० ११३८ ) में जो इस विषय के नए कानून - कायदे बनाए गए हैं उनसे इसमें और भी वृद्धि होने के साथ-साथ व्यापार को भी उत्तेजना मिलने की आशा है । चिकित्सा (Medical ) विभाग । वि० सं० १९८६ की भादों सुदि १० ( ई० स० १९३२ की १ सितंबर ) को १५,१६,००० रुपयों की लागत से बने, जिस विंढम अस्पताल का उद्घाटन किया गया था, उसने इस अरसे में अच्छी उन्नति करली है । इसमें एक अच्छी 'लैबोरेटरी ' और एक ' ऐक्सरे' विभाग भी जुड़ा हुआ है । इस शफ़ाखाने में इलाज करवाने वाले रोगियों की संख्या बढ़ जाने से शीघ्र ही इसमें वर्तमान २४७ चारपाइयों ( beds ) के स्थान के बजाय २११ चारपाइयों ( beds ) के लिये स्थान बनाया जायगा, जिससे अस्पताल में रहकर इलाज करवाने वालों को और भी सुविधा हो जायगी । गत वर्ष इस अस्पताल में रहकर इलाज करवानेवालों की दैनिक संख्या २५० और बाहर रहकर इलाज करवानेवालों की दैनिक संख्या १,१५७ रही । वि० सं० १९९३ ( ई० स० १९३६ ) से यहां पर स्वास्थ्य विभाग (Public Health Dept. ) की भी स्थापना हो गई है, और अब चेचक के टीके आदि का प्रबन्ध यही महकमा करता है । इसके निरन्तर उद्योग से गत वर्ष टीका लगवाने वालों की संख्या बढ़कर १,३३,००० तक पहुँच गई । ६०७ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास स्त्रियों की चिकित्सा के लिये ११,१२,००० रुपये की लागत से एक नया जनाना ( उम्मेद फ़ीमेल ) अस्पताल भी बनाया गया है । इसमें ६६ बीमार स्त्रियों के रहने का स्थान है और करीब ५०० से १००० तक बाहर रहकर इलाज करवाने वालियों की चिकित्सा का प्रबन्ध है । इसका उद्घाटन ई० स० ११३८ की ३१ अक्टोबर को किया गया था। स्कूलों व कॉलिज के विद्यार्थियों के स्वास्थ्य की रक्षा के लिये मी समुचित प्रबन्ध किया गया है। कृतवाली बीमारियों के रोगियों के लिये चैनसुख के बेरे पर एक अच्छा अस्पताल ( Isolation Hospital ) बनाया गया है। इसी प्रकार कोढियों के इलाज के लिये, नींबे की कुष्ठ रोगियों की बस्ती ( Leper Asylum ) में, एक शफाखाना खोला गया है । बहुत समय से पागलों का इलाज जेल के अस्पताल में ही हुआ करता था। परन्तु अब उनके लिये भी एक अलग खास शफ़ाखाना (Mental Hospital) बनवाने की मंजूरी हो चुकी है । इसके बनजाने पर मारवाड़ में साधारण सरकारी शफ़ाख़ानों ( अस्पताल और डिस्पेंसरियों) की संख्या ३७ और खास रोगों के शफ़ाखानों की संख्या ३ हो जायगी। गत वर्ष इन शफ़ाखानों में रहकर इलाज करवाने वालों की संख्या ६,८१६ और बाहर रहकर इलाज करवाने वालों की संख्या ७,४२,००० थी। इनके अलावा छोटे-बड़े कुल मिलाकर ४१,००० ऑपरेशन ( अस्त्रचिकित्सा ) किए गए थे। वि० सं० १९९३-९४ ( ई० स० १९३६-३७ ) में मारवाड़ में कुष्ठ रोग की जांच ( Leprosy survey ) की गई और उससे जो परिणाम निकाला गया है उसके अनुसार शीघ्र ही इस रोग के निवारण का प्रयत्न किया जानेवाला है । पहले मारवाड़ के शफाखानों की निगरानी रैजीडेंसी-सर्जन किया करता था। परन्तु वि० सं० १९८२ (ई. स. १९२५) से दरबार ने अपना निजका प्रिंसिपल मैडीकल ऑफीसर' नियत कर दिया है । इस समय इस विभाग पर राज्य के ५,०८,००० रुपये सालाना खर्च होते हैं। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ राज्य के कुछ मुख्य-मुख्य महकमों का हाल जंगलात का महकमा । इस महकमे ने भी अच्छी उन्नति की है और इसके उद्योग से जोधपुर के चारों तरफ़ की पुरानी और नई सड़कों के दोनों किनारों पर वृक्ष लगाने का प्रयत्न किया जारहा है । गत वर्ष इस महकमे की आय १,१२,८६३ रुपये तक पहुँची थी । राजकीय छापाखाना । 'जोधपुर गवर्नमैन्ट-प्रेस ' भी बराबर उन्नति कर रहा है और जोधपुर - राज्य और जोधपुर - रेल्वे की छपाई आदि का सारा काम यहीं होने से इसकी य १,००,००० रुपये के ऊपर पहुँच गई है । जवाहर खाना और टकसाल । सरकारी जवाहरात पहले किले पर के फ़तैमहल में रक्खे हुए थे । परन्तु वहां पर जगह कम होने से आजकल इन्हें वहीं पास ही के दौलतखाने के महल में सजाकर रखा गया है और इनकी एक नवीन सूची भी तैयार की गई है । जोधपुर की टकसाल में सोने के अलावा अन्य धातु के सिक्के बनाने का काम बहुत दिनों से बंद था । परन्तु वि० सं० १९९२ ( ई० स० १९३५ ) से यहां पर फिर से तांबे के सिक्के भी बनने लगे हैं । वि० सं० १९९३ ( ई० स० १९३६ ) में तोल और नाप के प्रचार के लिये कानून बनाया जोधपुर नगर में प्रचलित कर दिया है । मारवाड़ में एक ही प्रकार के गया था और गत वर्ष से इसे हमें आशा है कि इसके बाद शीघ्र ही यह मारवाड़ के अन्य स्थानों में भी प्रचलित हो जायगा, और इससे ग्रामीण लोगों को क्रय विक्रय के मामले में सुविधा हो जायगी । (१) वि० सं० १६३६ ( ई० स० १६१४ ) में भी इसके प्रचार की कोशिश की गई थी, परन्तु उस समय जनता के विरोध के कारण इसे स्थगित कर देना ही उचित समझा गया । ६०६ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास रजिस्ट्रेशन। वि० सं० १९९१ ( ई० स० १९३४ ) में नया 'मारवाड़ रजिस्ट्रेशन कानून' पास हुआ और वि० सं० १९१२ के पौष ( ई० सं० १९३६ की जनवरी ) से उन जागीरदारों को, जिन्हें अदालती इखतियारात मिले हुए हैं जोधपुर गवर्नमेन्ट के साधारण 'स्टाम्पों' ( Non Judicial Stamps ) को लागत कीमत पर खरीद कर, अपनी जागीर की रियाया की आवश्यकताओं के लिये, पूरी कीमत ( Face Value ) पर बेचने का अधिकार दिया गया। पशुवर्धन ( Animal Husbandry ) विभाग । वि० सं० १९१२ ( ई० स० १९३५ ) से, जोधपुर-दरबार ने मारवाड़ के दूध देनेवाले और खेती के उपयोग में आनेवाले पशुओं की नसल सुधारने और उनमें होनेवाले रोगों को निवारण करने के लिये इस महकमे की स्थापना की थी। इसके द्वारा मारवाड़ जैसे कृषि-प्रधान देश के गोधन की उन्नति की पूरी आशा है । मारवाड़ सोल्जर्स बोर्ड। यह बोर्ड राजपूताना प्रोविंशियल बोर्ड से संबद्ध है । ई० सन् १९१९ में वर्तमान और भूतपूर्व सैनिकों की और उनके कुटुम्बियों की सहायता के लिये इसकी स्थापना की गई थी। इसके कार्य की प्रशंसा स्वयं राजपूताना के रेजीडेंट ने, जो 'राजपूताना इंडियन सोल्जर्स बोर्ड' का सभापति है, की थी। वॉल्टर राजपूत-हितकारिणी सभा । इस सभा की स्थापना, ई० सन् १८८८ में, उस समय के राजपूताना के ए. जी. जी.-कर्नल वॉल्टर की अध्यक्षता में अजमेर में की गई थी और इसका उद्देश्य राजपूतों और चारणों के यहां की शादी और यमी में होनेवाले खर्चों में कमी करना है । जोधपुर की वॉल्टर सभा भी उसी उपर्युक्त सभा की एक शाखा है और राजपूतों तथा चारणों की शादी-गमी के खर्चों और लड़के-लड़कियों की विवाहोचित आयु आदि का नियमन करती है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ राज्य के कुछ मुख्य-मुख्य महकमों का हाल इस स्थानीय सभा की कमेटी में ६ सरदार हैं । यह कमेटी इस सभा के नियमों का उल्लंघन करनेवालों पर जुर्माना कर सकती है और इसके हुक्म की अपील सीधी महकमा खास में होती है । इसके जुर्माने की रकम भी गरीब जागीरदारों के उपयोगी कार्यों में ही खर्च की जाती है । जनतोपयोगी कार्य सचिव (पबलिक वर्क्स मिनिस्टर ) के अधीन महकमे : पबलिक वर्क्स का महकमा (Public Works Dept.)। 1 इस महकमे द्वारा बनाए गए, स्कूल, अस्पताल, स्टेट होटल आदि का वर्णन यथास्थान दिया जा चुका है । इनके अलावा हाल ही में इसने ११,१६,००० रुपये की लागत से “उम्मेद फीमेल अस्पताल" का भवन तैयार किया है । इसकी नींव का पत्थर ई० स० १९३६ की ६ अप्रेल को रक्खा गया था । महाराजा साहब का छीतर पहाड़ी पर का विशाल - महल अभी बन रहा है और करीब ३ वर्षों में तैयार होगा । इस महकमे ने आनेजाने के सुभीते के लिये मारवाड़ में अनेक उनमें ३० मील 'टार' की, ३०३ मील कंकर कुटी हुई और सड़क है । नगर के आम रास्तों के अलावा गलियों में भी हरसाल सड़कों का विस्तार किया जाता है और ऐसी सड़कों की लंबाई करीब पहुंच चुकी है । सड़कें बनाई हैं । ६८५ मील कच्ची पत्थर की पक्की २४ मील तक सुमेर-समंद, पिचियाक, सरदारसमंद यादि के बांधों से होनेवाली सिंचाई में भी यथा-साध्य सुविधा करने का प्रयत्न हो रहा है । नगर में पानी की कमी दूर करने के लिये पहले पाताल - फोड़ कुों ( बोरिंग = boring ) के लिये उद्योग किया गया था । परन्तु उसमें विशेष सफलता न होने से हाल ही में करीब २४ लाख रुपये की लागत से जो " सुमेर-समंद वाटर सप्लाई चैनल " नामकी नहर तैयार की गई है, इससे जोधपुर-नगर में का पानी का अभाव दूर गया है और चांदपोल -जैसे पहाड़ पर बसे नगर के पुराने और ऊँचे हिस्से में भी नलों १. विशेष विवरण के लिये देखो पृष्ठ ५७६ । ६११ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास द्वारा पानी पहुंचा दिया गया है । यह सारा पानी पूरी तौर से फिल्टर करके दिया जाता है। इसी प्रकार गाँवों के जलाशयों का जीर्णोद्धार करके गाँव वालों के लिये पानी का प्रबन्ध करने में भी हर साल एक बड़ी रकम खर्च की जाती है । नगर की सफाई के लिये भूगर्भस्थ नालियों ( डैनेज=drainage ) का प्रबन्ध किया जा रहा है। जोधपुर के हवाई अड्डे ( एरोड्रोम Aerodrome ) का प्रबन्ध भी इसी महकमे के अधिकार में है । यह हवाई अड्डा भारत के सर्वोत्तम अड्डों में से एक है और इसमें सारी ही नवाविष्कृत उपयोगी बातों का पूरा-पूरा प्रबन्ध है । इसी के पास हवाई जहाजों की सुविधा के लिये गवर्नमैन्ट की तरफ से एक बेतार के तार (वायरलैस Wireless ) का स्टेशन भी बना है । यहांपर हर हफ्ते १८ के करीब आने या जानेवाले हवाई जहाज ठहरते हैं। इसके अलावा राज्य के प्रान्तों में और भी २२ ऐसे भूभाग तैयार किए गए हैं, जहां हवाई जहाज उतर सकते हैं । ____ वर्तमान महाराजा साहब के समय नगर विस्तार ( डैवलपमैंट development ) के कार्य में भी अच्छी उन्नति हुई है, और नगर के बाहर 'सरदारपुरा' आदि अनेक सुन्दर और साफ-सुथरे मोहल्ले बस गए हैं । साथ ही इस विभाग में और भी उत्तरोत्तर उन्नति होने की आशा है। बागात का महकमा भी अच्छी तरक्की कर रहा है । कुछ समय पूर्व बालसमंद और मंडोर के बगीचों को आधुनिक ढंग पर तबदील किया गया था और इसके बाद जनता के उपयोग के लिये 'पब्लिक-पार्क' या 'विलिंग्डन गार्डन' बनाया गया है । साथ ही लोगों के दिल बहलाव के लिये इसीमें चिड़ियाघर, अजायबघर और पब्लिक लाइब्रेरी भी स्थापित की गई है । इसी के पास खिलाड़ियों के खेलने के लिये एक स्टेडियम ( Stadium ) बना है और उसके निकट, जनता के मनोरञ्जन के लिये, एक सिनेमाघर मी बन रहा है । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़-राज्य के कुछ मुख्य-मुख्य महकमों का हाल बिजलीघर । यह महकमा ई० स० १९१७ में खोला गया था और उस समय इसमें दो-दो सौ किलोवॉट (K. W.) कि दो मशीनें और ४ बोयलर लगाए गए थे । ई० स० १९२६ में ४०० किलोवॉट की एक मशीन बढ़ाई गई और ई० स० १९२८ में एक हजार किलोवॉट की एक नई मशीन और एक बोयलर और जोड़ा गया । इसके बाद ई० स० १९३२ में पहले के चार बोयलरों में सुधार किया गया। इस समय १,००० किलोवॉट की एक नई मशीन और लगाने का प्रबन्ध हो रहा है। ई० स० १९१८ में केवल दो मुख्य रास्तों पर ही बिजली की रोशनी लगाई गई थी। परन्तु इस समय तक शहर के खास-खास रास्तों और इर्द-गिर्द की सड़कों आदि के अलावा बहुतसी गलियों तक में बिजली की रोशनी लग चुकी है। ___ हाल ही (ई० स० ११३८ ) में सुमेर समंद से जोधपुर नगर में पानी लाने का जो प्रबन्ध किया गया है उसके लिये मार्ग में ८ 'पंपिंग स्टेशन' बनाए गए हैं और इनके चलाने के लिये, ११ किलोवॉट की, करीब १० मील लंबी बिजली की लाइन बनाई गई है । इन 'पंपिंग स्टेशनों में से ७ में दो-दो ‘पंप' लगे हैं, जिनकी ताकत क्रमशः ६० और १५ घोड़ों की है । ८ वें स्टेशन में ४ 'पंप' हैं । इन में तीन साठ घोड़ों की ताक़त के और एक पंद्रह घोड़ों की ताकत का है। ई० स० १९१७ में बिजली के केवल ६ 'सब-स्टेशन' थे । परन्तु आजकल उपर्युक्त ८ स्टेशनों के अलावा ३१ 'सब-स्टेशनों में काम होता है। इस समय तक करीब-करीब सारे ही सरकारी दफ्तरों और स्थानों में बिजली की रोशनी लगादी गई है और यहां के हवाई जहाज़ों के उतरने के स्थान पर मी 'फ्लडलाइट' ( Hood-light ) वगैरा का अच्छा प्रबन्ध है। ई० स० १९१८ में बिजली का उपयोग करनेवालों की संख्या केवल ७८ थी। परन्तु इस समय उनकी संख्या बढ़कर ३,४५० तक पहुँच गई है । इसके अलावा जनता की पानी की सुविधा के लिये बहुत से कुँओं पर भी बिजली के सरकारी 'पंप' लगा दिए गए हैं। ई० स० १२१८ तक यहां का बरफ का सरकारी कारखाना घाटे में चलता था, परन्तु अब इससे भी राज्य को मुनाफ़ा होने लगा है। ६१३ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास पहले पहल ई० स० १९१७ में यहाँ पर टेलीफ़ोन का १०० लाइन का बोर्ड लगाया गया था । इसके बाद ई० स० १९२८ में २० लाइन का और ई० स० १६३२ में २५ लाइन का बोर्ड और बढ़ाया गया । ई० स० १९३६ में इन सब बोर्डे की एवज में ३०० लाइन का नया बोर्ड लगाया गया । इसी वर्ष एक नया 'पावटा - सब - एक्सचेंज' खोला गया और उसमें भी १०० लाइन का बोर्ड लगाया गया । ई० स० १९१८ में टेलीफोन को काम में लानेवालों की संख्या बहुत ही कम थी । परन्तु इस समय उनकी संख्या बढ़कर ३१४ हो गई है । साथही राईका बाग - राजमहल और विम अस्पताल में निजी फ़ोन ( Automatic telephone ) भी लगाए गए हैं। इनके अलावा हालही में सुमेरसमंद से नगर में पानी लाने के लिये जो नहर बनाई गई है उसके पंपिंग स्टेशनों की सुविधा के लिये टेलीफोन की १०३ मील लंबी नई लाइन तैयार की गई है । पहले शहर का मैला भैंसों द्वारा खींची जानेवाली गाड़ियों में ले जाया जाता था । परन्तु अब मैले की गाड़ियां इंजिन द्वारा लोहे की पटरी पर खींची जाती हैं । इसके लिये ४ इंजिन, २२२ मैला ले जानेवाली गाड़ियां (tip wagons ), और ३१ ब्रेक वैन्स रक्खे गए हैं । शहर के 'वाटर वर्क्स' ( नलों द्वारा पानी देने) का काम भी पहले इसी महकमे के अधिकार में था । परन्तु ई० स० १९३१ से यह पब्लिक वर्क्स महकमे को सौंप दिया गया है । आकिंयॉलॉजीकल डिपार्टमेन्ट ( पुरातत्त्व विभाग ) और सुमेर पब्लिक लाइब्रेरी । वि० सं० १९६६ ( ई० स० ११०१ ) में जब लॉर्ड किचनर जोधपुर आए, तब उन्हें दिखलाने के लिये मारवाड़ में बनने वाली वस्तुओं का एक स्थान पर संग्रह कर उसका नाम 'इण्डस्ट्रियल म्यूज़ियम' रक्खा गया था। इसके बाद वि० सं० १९७१ ( ई० स० १९१४ ) में पहले पहल इस म्यूज़ियम ( अजायबघर ) का प्रबन्ध धुनिक ढंग पर किया गया और इसमें प्राचीन और ऐतिहासिक वस्तुओं को भी स्थान दिया गया । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ६१४ www.umaragyanbhandar.com Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़-राज्य के कुछ मुख्य-मुख्य महकमों का हाल इसके बाद वि० सं० १९७२ (ई० स० १९१६) में भारत गवर्नमैन्ट ने इसका नाम स्वीकृत (recognized) अजायबघरों की सूची में दर्ज कर लिया। फिर वि० सं० १९७३ (ई० स० १९१७ ) में इसका नाम बदला जाकर स्वर्गवासी महाराजा सरदारसिंहजी के नाम पर 'सरदार-म्यूजियम' रखा गया । वि० सं० १९७२ (ई० स० १९१५ ) में इसके साथ ही एक पब्लिक लाइब्रेरी की स्थापना की गई और अगले वर्ष इसका नाम बदल कर महाराजा सुमेरसिंहजी के नाम पर सुमेर पब्लिक लाइब्रेरी कर दिया गया। पहले ये दोनों महकमे सूरसागर के बगीचे में थे । परन्तु उस स्थान के शहर से दूर होने के कारण वि० सं० १९८३ (ई० स० १९२६) में इन्हें शहर से नजदीक लाया गया । इसी वर्ष जोधपुर-दरबार ने यहां पर पुरातत्त्व-विभाग (आर्कियाँ लॉजीकल डिपार्टमैंट) की स्थापना की और (१) अजायबघर (२) इतिहास-कार्यालय (३) पुस्तक-प्रकाश ( Manuscript Library ) और (४) चण्डू-पञ्चाङ्ग के महकमे उसमें मिला दिए। वि० सं० १९१२ की चैत्र वदि १ (ई० स० १६३६ की १७ मार्च ) को तत्कालीन वायसराय लॉर्ड विलिंग्डन ने अजायबघर और 'लाइब्रेरी' (पुस्तकालय) के नए भवन का उद्घाटन किया । यह भवन 'विलिंग्डन गार्डन' में बनाया गया है और भीतर से बड़ा ही सुन्दर है । इसी से 'ऐम्पायर-म्यूज़ियम्स-ऐसोसियेशन' के सैक्रेटरी ने भी अपनी रिपोर्ट में इसकी प्रशंसा की है । गत वर्ष इस अजायबघर में आनेवाले दर्शकों की संख्या २,५०,००० के करीब पहुँच गई। इसके अलावा इसे देखने को आनेवाले स्कूलों और कॉलिज के विद्यार्थियों को समय-समय पर पुरानी मुद्राएं आदि दिखला कर उनके इतिहास ज्ञान में भी सहायता दी जाती है। वि० सं० १९८५ (ई० स० १६२६) में मिस्टर ड्रेक ब्रोकमैन के मारवाड़-दरबार की सेवा का काल समाप्तकर युनाइटेड प्रौविसेज़ में लौटने के समय दिए विदाई के भोज में स्वयं महाराजा साहब ने फरमाया थाः“We owe the inception of the state Archaeological Department, which has through his zeal and guidance I am glad to say, already justified its existence in a very short period.” अर्थात्-हमको यह प्रकट करते हुए प्रसन्नता होती है कि, उस राजकीय पुरातत्व विभाग ने, जिसको मिस्टर ड्रेक ब्रोकमैन की प्रेरणा से खोला गया था, उसके उत्साह और तत्त्वावधान में कार्य कर, बहुत थोड़े समय में ही अपनी सार्थकता सिद्ध करदी है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास 'आर्कियाँ लॉजीकल डिपार्टमैंट' की तरफ से इस समय तक अनेक लेखों और पुस्तिकाओं ( pamphlets) के अलावा (१) 'राष्ट्रकूटों ( राठोड़ों) का इतिहास', (२) History of the Rashtrakutas और ( ३ ) 'मारवाड़ का इतिहास' ( प्रथम भाग ) नामक तीन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं । साथ ही सर्व साधारण के सुमीते के लिये 'पुस्तक प्रकाश' की हस्तलिखित पुस्तकों की सूची भी तैयार करली गई है । इस समय इस संग्रहालय (पुस्तक-प्रकाश) में हस्तलिखित पुस्तकों की संख्या करीब ४,५०० है और 'सुमेरपब्लिक-लाइब्रेरी' में की अंग्रेजी, हिन्दी, संस्कृत और उर्दू पुस्तकों की संख्या १४,००० के ऊपर पहुंच चुकी है । इस 'लाइब्रेरी' के साथ एक वाचनालय (Reading Room) भी जुड़ा है, जहां आकर सर्व साधारण जनता पुस्तकों के साथ-साथ अखबार आदि भी पढ़ सकती है। खानों और कला-कौशल का महकमा (Mines and Industries Dept.) इस महकमे की तरफ़ से मारवाड़ में घरू कला-कौशल को उन्नत करने के लिये कम सूद पर कर्ज देने का प्रबंध किया गया है और समय-समय पर प्रदर्शनियों (exhibitions) के द्वारा मी उसको उत्तेजन दिया जाता है । पहले यह महकमा जंगलात के महकमे के साथ था। परन्तु प्रबन्ध की सुविधा के लिये ई० स० १९२९ में यह उससे अलग कर दिया गया। इसके बाद ई० स० १९३० में जागीर के गांवों में प्राप्त होनेवाले खनिज पदार्थों पर मी दरबार का हक मान लिया गया । इस समय यहां की खानों से संगमरमर, साधारण पत्थर, चूने और कली का पत्थर, खड़िया (Gypsum), मेट ( मुलतानी=Fuller's Earth), वुल्फ्रेम (Wolfram) और पैंटोनाइट (Pentonite) आदि निकाले जाते हैं। यहां पर रुई की करीब ३० जिनिंग और प्रैसिंग (Ginning and Pressing) फैक्टरियां हैं, जहां बिनोले से रुई निकाली जाकर उसकी गांठें बांधी जाती हैं। इसके अलावा हाल ही (ई० स० १९३८) में पाली में एक कपड़ा बनाने की नई मिल मी कायम की गई है, जो कुछ ही दिनों में बनकर तैयार हो जायगी । इस समय इस महकमे की आमदनी २,३१,००० रुपये तक पहुंच गई है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ राज्य के कुछ मुख्य-मुख्य महकमों का हाल य-सचिव (रिवेन्यू मिनिस्टर ) के अधीन महकमे : हवाला । ई० स० १९२१ से १९२६ तक जिस समय मारवाड़ के खालसे ( राज्य ) के गांवों का दुबारा 'सेटलमेंट' ( पैमाइश ) किया गया, उस समय उनके सारे ही रकबे को मुस्तकिल और गैर मुस्तकिल हिस्सों में बांट दिया गया और 'बापीदारों' और 'गैर बापीदारों' के अधिकार तथा उनके लगान का निर्णय करदिया गया । इस प्रबन्ध से लगान की आय ११,९३,०९९ रुपये से बढ़कर १६,४२, ३४७ रुपये तक पहुँच गई । इसके साथ ही बगैर लगान की, 'शासन' आदि में दी हुई, भूमि की भी जांच की गई । इसके बाद लगान वसूली का काम परगनों के हाकिमों को सौंपा गया, परन्तु उनके कागजात ( Records ) का काम हवाले के महकमे के पास ही रहा । इसके अलावा हवाले के काम की सुविधा के लिये खालसे के कुल गांव १६ 'सर्कलों' में बांट दिए गए और उनकी देख-भाल के लिये एक-एक 'दारोगा' नियुक्त किया गया । साथही हवालदारों का नम्बर बढ़ाकर १८८ के स्थान पर २७० कर दिया गया और हवाले के तमाम अफ़सरों के काम के और रेकर्डों के लिये अलग-अलग फॉर्म निश्चित कर दिए गए । पहले लिखा जा चुका है कि महाराजा ( उम्मेदसिंहजी ) साहब ने ई० स० १९२९ के नवंबर में अपने नवीन राज-महल के शिलारोपण के समय उपर्युक्त 'सैटलमेंट' के पहले की 'खरड़ा', 'घासमारी', आदि कई लागों के मद में निकलनेवाली करीब ८ लाख रुपये की रकम और वि० सं० १९७२ की कहतसाली के समय कुँ आदि बनवाने को दी हुई तकावी की करीब १ लाख की रकम माफ़ कर दी । ई० स० १९२३ की शाही 'सिलवर जुबिली' के उत्सव पर भी दरबार ने करीब ३ लाख रुपये 'ट्रिब्यूट' ( Tribute ) के और २,२३,५४८ रुपये हवाले के, लगान व तकावी ध्यादि के, माफ कर दिए । ई० स० १९३६ में दरबार की तरफ़ से जागीरों और खालसे के गांवों पर लगने वाली टीके ( Vaccination ) आदि की अनेक लागें भी, जिनकी सालाना श्रमदनी ३१,२०० रुपये थी, माफ़ कर दी गई । १. पहले-पहल राज्य की सरहद और खालसे के गांवों का लगान निश्चित करने के लिये ६० स० १८८५ से १८६५ तक मारवाड़ की पैमाइश की गई थी । ६१७ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास ई० स० १९३० से ही देश में नाज की कीमत गिर रही थी। इससे ई० स० १९३४ में उपर्युक्त नई ‘सैटलमैंट' के द्वारा निश्चित किए भूमि के लगान (बीघोड़ी) में तीन वर्ष के लिये फी रुपये तीन आने की छूट दी गई, और ई० स० १९३७ (वि० सं० १९९४ ) में एक वर्ष के लिये यह छूट और भी जारी रक्खी गई। ट्रिब्यूट (Tribute ) का महकमा । इस महकमे ने भी अच्छी उन्नति की है और जागीरदारों की जागीर की आय पर लिए जाने वाले रेख और चाकरी नामक करों का हिसाब साफ़ रखने के लिये उन्हें बकों की सी पास-बुकें' दे दी गई हैं। आजकल जागीरों से संबन्ध रखनेवाली वसूली आदि का सारा काम इसी महकमे के द्वारा होता है, क्योंकि रेख, चाकरी, हजूरी दफ्तर, हकूमतों की लाग-बाग और जन्ती का काम भी इसी के अधीन कर दिया गया है । आबकारी (Excise ) का महकमा। मारवाद के अन्य सारे ही प्रान्तों में पहले से ही आबकारी का कानून जारी था, परन्तु मल्लानी परगने के जसोल, सिंधरी, गुड़ा और नगर में इसका प्रचार वि० सं० १९७७ (ई० स. १९२०-२१) से किया गया। वि० सं० १९७६ (ई० स० १९२२ ) में इस विषय (आबकारी) का नया कानून बना । इसके बाद वि० सं० १९८० ( ई० स० १९२३ ) में नमक और आबकारी का महकमा शामिल कर दिया गया और वि० सं० १९८१ (ई० स० १९२४ ) में शराब तैयार करने के लिये एक आधुनिक ढंगका कारखाना ( Distillery ) बनाया गया । मारवाड़ में इस समय शराब की दुकानों का नम्बर घटकर २४३ के स्थान पर २३१ हो गया है और अफीम बेचने के तरीके में भी रद्दोबदल की गई है । जोधपुर-दरबार को मिलने वाला नमक पहले नीलाम के जरिये बेचा जाता था। परन्तु वि० सं० १९८७ (ई० स० १९३०) से वह ठेके (Contract) के जरिये बेचा जाने लगा है और इससे राज्य को ३०,००० रुपये का फायदा हुआ है । परन्तु ठेका लेनेवाले को प्रत्येक स्थान पर वहां के लिये नियत किए भाव पर ही नमक बेचने का अधिकार होने से जनता को इस प्रबन्ध से किसी प्रकार की असुविधा नहीं Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़-राज्य के कुछ मुख्य-मुख्य महकमों का हाल कोर्ट ऑफ़ वाईस और हैसियत ई० स० १९१८ में 'कोर्ट ऑफ़ वार्ड्स' और 'हैसियत कोर्ट' दोनों एक साथ करदी गई। इसके बाद ई० स० १९२२ में 'कोर्ट ऑफ़ वार्ड्स ऐक्ट' बनाया गया और इसी के अनुसार उपर्युक्त महकमे के प्रबन्ध में उन्नति की गई। पहले 'कोर्ट ऑफ़ वार्ड्स' के सुपरिण्टैण्डैएट और उसके सहकारी का वेतन नाबालिगों की जागीरों की आमदनी से दिया जाता था। परन्तु ई० स० १९२५-२६ से वह राज्य से दिया जाने लगा और इससे उक्त महकमे के कर्मचारियों को भी 'प्रोवीडेंट फण्ड' का लाभ मिलने लगा। ई० स० १९२६-२७ में नाबालिगों की शादी के फण्ड का प्रबन्ध किया गया और इस महकमे की और 'वाल्टर-कृत सभा' की आय से गरीब जागीरदारों के नजदीकी रिश्तेदारों की शादियों में सहायता व कर्ज देने का तरीका जारी किया गया । ई० स० १९३१-३२ में कोर्ट ऑफ़ वार्ड्स' और 'हैसियत की निगरानी के गांवों की हल्केबंदी की जाकर प्रबन्ध में और भी उन्नति की गई। पहले अक्सर छोटे-छोटे जागीरदार कर्जदारों से बचने के लिये हैसियत के महकमे की शरण ले-लेते थे और उक्त महकमा उनकी जागीर से केवल नियत वार्षिक रुपया वसूल करके कर्जदारों में बांट दिया करता था । परन्तु ई० स० १९२३ में कर्जदार जागीरदारों की जागीरों का कानून (Encumbered Jagirdars' Estate Act) बनाया गया और इसके अनुसार इस महकमे के निरीक्षण में आनेवाला जागीरदार आवश्यकतानुसार ३० वर्षों तक के लिये अपनी जागीर के प्रबन्ध से वश्चित कर दिया जाने लगा। सहयोग-समिति ( Co-operative Department)। इसकी स्थापना, मारवाड़ में सहयोग समितियों का प्रचार कर, ग्रामीण-वर्ग को आर्थिक सहायता पहुंचाने और उन्हें महाजनों के ऋण से मुक्त करने के उद्देश्य से की गई है। १. नाबालिग जागीरदारों की जागीरों का प्रबन्ध करनेवाला महकमा । २. कर्जदार जागीरदारों की जागीरों का प्रबन्ध करनेवाला महकमा । ३. यह जागीरदारों की कुरीतियों के निवारणार्थ स्थापन की गई थी। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास न्याय-सचिव (जुडीशल-मिनिस्टर) के अधीन महकमे. न्याय विभाग। चीफ़ कोर्ट इस समय मारवाड़-राज्य की चीफ़ कोर्ट में एक चीफ़ जज और दो प्यूनी ( puisne', जज हैं । इस अदालत को सिवाय जागीरदारों के जागीर या गोद के मामलों के और सब प्रकार के दीवानी मामलों पर विचार करने का अधिकार है । इसके फैसलों की अपील महाराजा साहब के सामने उसी अवस्था में हो सकती है, जिस अवस्था में यह उसके लिये अनुमति प्रदान करदे । फौजदारी मामलों में इस कोर्ट को उमर कैद-तक की सजा देने का अधिकार है, परन्तु फांसी की सजा में महाराजा साहब की अनुमति प्राप्त करना आवश्यक होता है । इजलास खास पहले अपीलें और अर्जियां महाराजा साहब के 'प्राइवेट सैक्रेटरी' के पास पेश की जाती थीं, परन्तु ई० स० १९३३ से 'इजलास-ए-खास' नाम का एक जुदा महकमा स्थापित किया गया, जो इस समय प्रधान मन्त्री के अधीन है। ई० स० १९३६ से इसके कार्य की सुविधा के लिये एक 'लीगल एडवाइजर' मी नियुक्त किया गया है। डिस्ट्रिक्ट और सैशन कोर्ट ई० स० १९२४ में दीवानी और फौजदारी अदालतों और 'कोर्ट सरदारान' के स्थान पर ब्रिटिश-भारत के तरीके पर ३ डिस्ट्रिक्ट और सैशन कोटों की स्थापना की गई । ई० स० १९३६ में इनकी संख्या ४ कर दी गई और इसके बाद जनता के सुभाने के लिये इनमें का एक कोर्ट नागोर मेज दिया गया । कुछ ही समय बाद दूसरे दो कोटी को भी क्रमशः सोजत और बालोतरा मेज देने का विचार हो रहा है । इन अदालतों के न्यायधीशों को सब तरह के दीवानी मामलों के निर्णय करने का अधिकार है । फौजदारी सीगे में ये उमर कैद तक की सजा दे सकते हैं । परन्तु उस पर चीफ कोर्ट की मंजूरी भावश्यक होती है । १२० Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़-राज्य के कुछ मुख्य मुख्य महकमों का हाल रिवेन्यू कोर्ट्स ई० स० १९२४ में लगान और लागों आदि के मामलों के फैसलों के लिये रिवेन्यू-कोर्ट स्थापन किए गए । यद्यपि वैसे तो उनका कार्य भी हाकिम और जुडीशल सुपरिण्टैण्डेण्ट ही करते हैं, तथापि उन मुकद्दमों की अपील बजाय चीफ़ कोर्ट के महकमा खास में रिवेन्यू-मिनिस्टर के पास ही होती है । ऑनररी कोर्ट ई० स० १९२४ में जोधपुर नगर में ऑनररी कोर्टी की स्थापना की गई और उन्हें फौजदारी मामलों में तीसरे दर्जे के मैजिस्ट्रेट के और दीवानी मामलों में १०० रुपये तक के मुकद्दमों के फैसले के अधिकार दिए गए । इसके बाद ई० स० ११३८ में ऑनररी मैजिस्ट्रेटों की बैंचें मुकर्रर की गई । इससे अब एक मैजिस्ट्रेट के स्थान पर तीन मैजिस्ट्रेटों का समुदाय अभियोगों का निर्णय करता है । स्मॉल कॉज़ कोर्ट ई० स० १९३६ में छोटे-छोटे नकद रुपयों के मामलों का शीघ्र फैसला करने के लिये नगर में एक 'स्मॉल कॉज़ कोर्ट' की स्थापना की गई और उसे ५०० रुपये तक के मुकद्दमों का फैसला करने का अधिकार दिया गया। परन्तु इससे ऑनररी को? के दीवानी के अधिकार रद्द होगए । जुडीशल सुपरिण्टैण्डैण्ट और हाकिम ई० स० १९२४ में जो ४ जुडीशल सुपरिण्टैण्डैएट थे, उन्हें दीवानी मामलों में २,००० रुपये तक, हाकिमों को ५०० रुपये तक और नायब-हाकिमों को २०० रुपये तक के दावे सुनने का अधिकार था और ये लोग फौजदारी मामलों के लिये क्रमशः फर्स्ट क्लास, सैकिण्ड क्लास और थर्ड क्लास मैजिस्ट्रेट समझे जाते थे । ई० स० १९३२ में जुडीशल सुपरिण्टैण्टेण्टों को ४,००० और हाकिमों को १,००० रुपयों तक के दावे सुनने के इख्तियार दिए गए । इसी प्रकार फौजदारी मामलों में ये लोग क्रमशः डिस्ट्रिक्ट मैजिस्ट्रेट और फर्स्ट क्लास मैजिस्ट्रेट कर दिए गए। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास ई० स० १९३६ में जुडीशल सुपरिण्टैण्डैण्टों को 'क्रिमिनल प्रोसीजर कोड' की ३० वीं धारा के अधिकार भी दे दिए गए। आजकल दो वर्ष काम कर लेने पर-नायब हाकिमों को सैकिण्ड-कास मैजिस्ट्रेट का दर्जा मिल जाता है । इस समय परगनों के ४ जुडीशल सुपरिण्टैण्डैण्टों के अलावा स्मॉल कॉज़ कोर्ट के जज, नगर-कोतवाल, रजिस्ट्रार-चीफ़ कोर्ट और सैक्रेटरी-म्यूनिसिपल कमेटी का दर्जा भी जुडीशल सुपरिण्टैण्डैण्टों के समान ही कर दिया गया है । इनके अलावा हाकिमों की संख्या २४ और नायब-हाकिमों की २२ है । अदालतों के अधिकार इंतिजाम के सुभीते के लिये ई० स० १९३२ से जागीरों के और जागीरदारों के गोद के मुकद्दमों का निर्णय इंतिजामी सीगे से होता है । इसी प्रकार ई० स० १९३३ से राजकीय कार्य के संपादन के कारण होने वाले राज-कर्मचारियों पर के दीवानी और फौजदारी दावों को स्वीकृत करने के पूर्व राज्य की आज्ञा ले लेना आवश्यक करदिया गया है । कानून ई. स. १९२७ में पहले-पहल कानून तैयार करने के लिये एक कमेटी बनाई गई थी। इसके बाद ई० स० १९३६ में 'लीगल रिमैंबरैन्सर' का दफ्तर कायम किया गया और १९३८ में कानून तैयार करनेवाली कमेटी में राजकर्मचारियों के अलावा बार एसोसियेशन के और जागीरदारों और व्यापारियों के प्रतिनिधि भी सम्मिलित किए गए । । बार ई० स० १९३३ से कानून-पेशा लोगों ( वकीलों के लिये बने कानून में सुधार किया गया । इस समय यहां के 'बार' के नियम ब्रिटिश-भारत से मिलते हुए ही हैं और उसके मैम्बर केवल 'लॉ-प्रैजुएट' ही हो सकते हैं । ६२२ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड-राज्य के कुछ मुख्य मुख्य महकमों का हाल लॉ रिपोर्ट ई० स० १९२६ से मारवाड़-लॉ रिपोर्ट्स का प्रकाशन प्रारम्भ किया गया था। यह पहले सालाना निकलती थी । परन्तु ई० स० १९३७ से यह मासिक निकाली जाने लगी और इसके प्रकाशन का अधिकार यहां के एक गैर-सरकारी व्यक्ति को देदिया गया । जागीर की अदालतें हाल ही में दरबार ने ठिकानों के जुडीशल इरिहतयारों के लिये ठाकुर की योग्यता और योग्य कर्मचारी रखने की ठिकाने की हैसियत की पाबन्दी लगादी है और वर्तमान में जिन ३६ ठिकानों के इख़्तियार मंजूर किए गए हैं, उनके लिये बने कानून में भी उचित संशोधन करने की आज्ञा दी है । अब से ठिकानों की अदालतों की अपीलें चीफ़ कोर्ट के बजाय डिस्ट्रिक्ट और सैशन कोर्टों में पेश हुआ करेंगी । शिक्षा-विभाग ( Education Department ) वि० सं० १९८० (ई० स० १९२३ ) में राजकीय काउंसिल ने प्राथमिक शिक्षा ( Primary education ) की वृद्धि का प्रस्ताव अङ्गीकार कर उसकी तरफ़ और भी अधिक ध्यान देना शुरू किया । वि० सं० १९८२ ( ई० स० १९२५ ) में 'मारवाड़-मिडल-स्कूल-परीक्षा" कायम की गई, और वि० सं० १९९२ ( ई० स० १९३५-३६ ) में इसे विशेष उपयोगी बनाने के लिये इसमें बैठनेवाले विद्यार्थियों के लिये बढई का काम, दरजी का काम, ड्राइंग (नक्काशी) का काम, चमड़े का काम, जिल्दसाज़ी का काम, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास खेती का काम, स्वास्थ्य-रक्षा ( hygiene ) का काम और स्वयं सेवकी ( scouting ) का काम जैसे उपयोगी विषयों में से किसी एक का जानना आवश्यक करदिया गया। हिन्दी मास्टरों के पुराने ट्रेनिंग स्कूल की उन्नति की गई और दो नए ट्रेनिंग-स्कूल; एक अंगरेजी मास्टरों की और दूसरा स्त्री-शिक्षाओं की शिक्षा के लिये कायम किए गए । साथ ही शिक्षकों के वेतन में भी वृद्धि की गई । इस समय मारवाड़ में लड़कों के १८० और लड़कियों के ३५ स्कूल हैं । लड़कों के स्कूलों में १३७ राजकीय, २२ सहायताप्राप्त ( aided ), ८ मंजूर शुदा ( recognized ) हिन्दी (vernacular) और अंगरेजी-हिन्दी (anglo-vernacular ) स्कूल, १ डिग्री-कालिज और १२ संस्कृत-पाठशालाएं हैं । इन संस्कृत-पाठशालाओं में १ सरकारी, ६ सहायता प्राप्त ( aided ) और ५ मंजूर-शुदा ( recognized ) पाठशालाएं हैं। लड़कियों के स्कूलों में २६ सरकारी, और ६ सहायता-प्राप्त (aided) हैं, तथा इनमें से १४ जोधपुर नगर में और २१ बाहर परगनों में हैं । इन बालिका विद्यालयों में इस समय कुल मिलाकर ३,२२० लड़कियां शिक्षा पाती हैं । इनके अलावा औद्योगिक और कला-कौशल की शिक्षा के लिये नगर में एक बिजनैस-क्लास (Business class) और एक टैक्निकल-क्लास (Technical class ) भी खोला गया है । इस समय कालिज के विद्यार्थियों की संख्या २३४, हाइस्कूलों के ( जिनकी संख्या ५ है ) विद्यार्थियों की संख्या २,५६२ और मारवाड़ के सब स्कूलों में शिक्षा पानेवाले छात्रों की सम्मिलित संख्या २३,१९५ है । इन स्कूलों में विद्यार्थियों की स्वास्थ्य-रक्षा पर भी पूरा ध्यान रक्खा जाता है, और इसी से उनका अपने-अपने स्कूल में होनेवाले नित्य के खेलों आदि में भाग लेना आवश्यक करदिया गया है । विद्यार्थियों में स्वयं-सेवक बनने ( Scout movement) का भी प्रचार किया जाता है और उनकी संस्था के प्रधान (Chief Scout ) का पद स्वयं जोधपुर-नरेश ने कृपाकर अङ्गीकार किया है । मारवाड़ के विद्या-विभाग पर दरबार के वार्षिक २,१३,००० रुपये खर्च होते हैं। ६२४ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़-राज्य के कुछ मुख्य-मुख्य महकमों का हाल, म्यूनिसिपल कमेटी (नागरिक प्रबन्ध का महकमा) यह महकमा पहले-पहल ई० स० १८८४ में कायम हुआ था और ई० स० १९१८ में नगर की सफाई के लिये एक 'हैल्थ ऑफ़ीसर' नियुक्त किया गया। इसके बाद ई० स० ११३७ में पहले-पहल जातियों की तरफ़ से दिए हुए कुछ नामों में से चुनकर इसके मैम्बर बनाने का नियम बनाया गया । इस समय इस म्यूनिसिपल बोर्ड के कुल ३८ मैम्बर हैं, जिन में ७ राज कर्मचारी ( ex-oficio ) और बाकी के चुने हुए या नामजद ( nominated ) मैम्बर हैं। यह महकमा नगर में सफ़ाई, पानी, रौशनी और नए बननेवाले घरों का समुचित प्रबन्ध करता है और इसके सतत परिश्रम से इन विभागों में अच्छी उन्नति हुई है । ई० स० १९२८ से नगर में बढती हुई गलियों की संकीर्णता को रोकने के लिये जमीन के नए पट्टे इस महकमे की राय लेकर दिए जाने का नियम बनादिया गया है। इसके अलावा हालही में म्यूनिसिपैलिटी के प्रबन्ध को और उन्नत करने के लिये दरबार की तरफ से एक कमेटी भी बिठाई गई है । गत वर्ष इस म्यूनिसिपैलिटी पर जोधपुर-दरबार का २,२६,६८५ रुपया खर्च हुआ था । इस नगर-म्यूनिसिपैलिटी के अलावा परगनों में भी कुछ म्यूनिसिपैलिटियां हैं । उनका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है: फलोदी, डीडवाना, बालोतरा, बाहडमेर, भीनमाल और लाडनू की म्यूनिसिपैलिटियां अपना ख़र्च आप चलाती हैं । नागोर, जालोर और पाली की म्यूनिसिपैलिटियों को राज्य से मदद दी जाती है । बाली, सोजत और मेड़ता की म्यूनिसिपैलिटियां अभी केवल सफाई का काम ही करती हैं। सेना-मंत्री (मिलिटरी सैक्रेटरी) के अधीन के महकमे: सेना-विभाग जोधपुर का सेना-विभाग भी बराबर उन्नति कर रहा है और इसने यहां के सरदार-रिसाले और सरदार इनफैंट्री (पैदल सेना ) को ब्रिटिश-भारत की सेनाओं के समान सुसज्जित और सुशिक्षित बनाने की पूरी-पूरी चेष्टा की है । इसी सिलसिले में Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास रिसाले और पलटन के सैनिकों के वेतन में वृद्धि की जाने के साथ ही उनकी पैन्शन आदि के नियमों में भी उचित परिवर्तन किए गए हैं, उनके रहने के स्थान ( barracks ) दि नए ढंग के बनवाए गए हैं और फ़ौजी पशु-चिकित्सालय ( Veterinary Hospitals ) की भी अच्छी उन्नति की गई है । राजकीय रिसाले और पैदल सेना के पैनशन प्राप्त योग्य सैनिकों की एक दुर्ग-रक्षक ( Fort guard ) टुकड़ी तैयार की गई है और इसे जोधपुर के किले पर पहरे का काम सौंपा गया है । पहले ख़ास तौर पर नियुक्त किए ब्रिटिश सेना के अफ़सर ही दौरे के समय राजकीय सैन्य-विभाग की जांच किया करते थे । परन्तु वि० सं० १९९२ के फागुन ( ई० स० ११३६ के मार्च) से जोधपुर दरबार ने अपना निजका सैनिक मंत्री (Military Secretary) नियुक्त कर लिया है और इससे सैनिक कार्य में अच्छी उन्नि हुई है। इस समय 'सरदार रिसाले' के सवारों की संख्या ६७३, 'सरदार - इनफैंट्री' के जवानों की संख्या ७७२, भारबरदारीवालों की संख्या ८०, दुर्ग-रक्षकों की संख्या १४ और सैनिक बाजे वालों की संख्या ४० है । गत वर्ष सैनिक विभाग पर राज्य के ११,६८,६८७ रुपये खर्च हुए थे । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ६२६ www.umaragyanbhandar.com Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जागीरदारों पर लगनेवाले राजकीय कर परिशिष्ट-६. जागीरदारों पर लगनेवाले राजकीय कर । रेखं. जागीरदारों से 'रेख' के रूप में रुपया वसूल करने का रिवाज पहले-पहल अकबर के समय चला था । इसी से मारवाड़ में भी पहले-पहल सवाई राजा शूरसिंहजी के समय से ही जागीरदारों के पट्टों में उनके गांवों को रेख दर्ज की जाने लगी । परन्तु उन दिनों जागीरदारों को, मारवाड़-नरेशों के साथ रहकर, बादशाही कामों के लिये होनेवाले मारवाड़ से बाहर के युद्धों में भी भाग लेना पड़ता था। इसी से उस समय उनसे उस 'चाकरी' (सेवा ) के अलावा किसी प्रकार का अन्य कर नहीं लिया जाता था । वास्तव में उस समय राजपूत-सरदारों को जागीरें देने का मुख्य प्रयोजन भी यही था कि वे महाराज की तरफ से युद्ध में भाग लेकर शत्रु को दण्ड देने में सहायता करें । परन्तु जब महाराजा विजयसिंहजी के राज्य-समय मारवाड़ का सम्बन्ध मुगल बादशाहत से टूट गया और देश में मरहटों का उपद्रव उठ खड़ा हुआ, तब उस नवीन उपद्रव को दबाने के लिये जोधपुर-दरबार को रुपयों की आवश्यकता प्रतीत हुई । इसीसे महाराजा विजयसिंहजी ने, वि० सं० १८१२ ( ई. स. १७५५ ) में, जागीरदारों पर, शाही जज़िये और मारवाड़ से बाहर के युद्धों में भाग लेने की सेवा के बदले में, एक हजार की आमदनी पर तीन सौ रुपयों के हिसाब से 'मतालबा' नामक कर लगाया। इसके बाद उन ( महाराजा विजयसिंहजी) के राज्य-काल में ही यह कर और कईवार जागीरदारों से वसूल किया गया। परन्तु इस कर की रकम हरवार आवश्यकतानुसार घटती बढ़ती रही । उस समय के लिखित प्रमाणों से प्रकट होता है कि इसकी तादाद एक हजार की रेख ( आमदनी ) पर कम से कम डेढ़ सौ और अधिक से अधिक पांच सौ रुपयों तक पहुंची थी। १. मजमूए हालात व इन्तिज़ाम मारवाड़, बाबत सन् १८८३-८४ (संवत् १६४० ) पृ० ३५३-३६१। २. इससे पूर्व भी जागीरदार लोग राज्य-रक्षा या राज्य-वृद्धि के लिये महाराज की तरफ से युद्धों में भाग लिया करते थे। ३. वि. सं० १८४७ । ई० स० १७६०) में जिस समय मरहटों को पाँच लाख रुपये दिए गए, उस समय इस हिसाब से रकम वसूल की गई थी। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास महाराजा भीमसिंहजी के समय भी प्रति हजार तीन सौ रुपयों के हिसाब से दो वार यह कर वसूल किया गया । महाराजा मानसिंह जी के समय, जयपुर की चढ़ाई के बाद, अमीरखाँ को रुपये देने के लिये प्रति-हजार तीन सौ रुपये के हिसाब से रेख ली गई और वि० सं० १८६४ ( ई० स० १८०७ ) से राज्य के विशेष खर्च के लिये हर पांचवें वर्ष प्रतिहजार दो सौ से तीन सौ रुपये तक 'रेख' वसूल करने का एक नियम-सा बना दिया गया। वि० सं० १८१६ ( ई० स० १८३६ ) में पोलिटिकल एजैंट की सलाह से हरसाल प्रति-हजार की जागीर पर अस्सी रुपये रेख के लेना निश्चित किया गया। परन्तु एक-दो बरस बाद ही जागीरदारों ने इस कर का देना बंद कर दिया। __वि० सं० १९०१ ( ई० स० १८४४ ) में महाराजा तखतसिंहजी के समय मुहता लक्ष्मीचन्द ने फिर 'रेख' वसूल करने का प्रबन्ध किया। परन्तु इसमें पूरी सफलता नहीं हुई। अन्त में वि० सं० १९०६ (ई० स० १८४६ ) में पंचोली धनरूप ने, जो उस समय 'फौजदारी-अदालत' का हाकिम था, महाराज की आज्ञानुसार जागीरदारों से प्रति-हजार अस्सी रुपये सालाना 'रेख' के देने का दस्तावेज लिखवा लिया । उसपर पौकरन, आउवा, आसोप, नींबाज, रीयां और कुचामन के सरदारों ने दस्तखत किए थे। यद्यपि रेख का रुपया मुत्सद्दियों और खवास-पासवानों आदि से भी लिया जाता है, तथापि उसकी शरह भिन्न है । हुक्मनामा। यह रिवाज भी पहले-पहल अकबर ने ही चलाया था। उस समय किसी मनसबदार के मरने पर उसका सारा माल-असबाब, जागीर और मनसब जब्त कर लिए जाते थे और फिर उसके लड़के के एक बड़ी रकम 'पेशकशी' में नज़र करने पर वे सब बादशाही इनायत के तौर पर, उसे दे दिए जाते थे । १. मजमूए हालात व इन्तिजाम राज मारवाड़, बाबत सन् १८८३-८४ ( संवत १६४०) पृ० ४४०-४४७ । ६२८ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जागीरदारों पर लगनेवाले राजकीय कर मारवाड़ में यह रिवाज पहले-पहल राजा उदयसिंहजी के समय चला था। इसके बाद सवाई राजा शूरसिंहजी ने इस (पेशकशी) की रकम जागीर की एक वर्ष की आय के बराबर नियत कर दी । महाराजा अजितसिंहजी ने राजराजेश्वर का खिताब प्राप्त करने के बाद इसका नाम बदल कर 'हुक्मनामा' करदिया । (परन्तु महाराजा अजितसिंहजी के नाबालिग होने के समय जब मारवाड़ पर बादशाह औरंगजेब का अधिकार हो गया, तब मुल्क के तागीर ( जब्त ) हो जाने पर भी यहां की प्रजा, दरबार और सरदारों को, अपना असली मालिक समझ, सालाना कुछ रुपया खर्च के लिये देने लगी और इसकी एवज में महाराजा की तरफ़ के सरदार भी अपने सैनिकों के आक्रमण आदि से उसकी रक्षा करने लगे। परन्तु महाराजा अजितसिंहजी के जोधपुर पर अधिकार कर लेने पर यह रकम 'तागीरीत' के नाम से उपर्युक्त हुक्मनामे के साथ ही वसूल की जाने लगी। ) महाराजा विजयसिंहजी के समय जब मरहटों के उपद्रव को दबाए रखने के लिये अधिक रुपयों की आवश्यकता होने लगी. तब हुक्मनामे की रकम डेवढी-दुगुनी करदी गई । महाराज भीमसिंहजी के दीवान सिंघी जोधराज ने इसके साथ 'मुत्सद्दी-खर्च' नाम की एक रकम और बढ़ा दी । इसके बाद महाराजा मानसिंहजी के समय 'हुक्मनामे' की रकम दुगुनी से भी अधिक बढ़ गई और महाराजा तखतसिंहजी के समय तिगुनी चौगुनी तक हो गई। अन्त में वि० सं० १९२६ ( ई० स० १८६६) में पोलिटिकल ऐजेन्ट की सलाह से 'हुक्मनामे' के नियम बनाए गए और साधारण तौर पर इसकी रकम जागीर की एक साल की आमदनी का पौन हिस्सा नियत किया गया। साथ ही बेटे या पोते के उत्तराधिकारी होने पर उस साल की (जिस में हुक्मनामा लिया गया हो ) रेख और चाकरी माफ़ की गई । परन्तु भाई-बन्धुओं में से किसी के गोद आने पर रेख लेने और चाकरी माफ़ करने का नियम बना । साथ ही यदि एक वर्ष में दो उत्तराधिकारी गद्दी पर बैठे, तो केवल एक 'हुक्मनामा' और दो वर्ष में दो उत्तराधिकारी गद्दी बैठे, तो डेढ 'हुक्मनामा' लेने का नियम रहा । इसके अलावा यदि जागीरदार 'हुक्मनामे' की रकम को ज़्यादा समझे, तो जागीर की जन्ती कर उसकी एक साल की आमदनी लेलेने का कायदा भी बना दिया गया । परन्तु साथ ही ऐसी हालत में उससे रेख और चाकरी नहीं लेना भी तय किया गया। १. अन्त में महाराजा तस्तसिंहजी के समय यह रकम माफ कर दी गई। ६२६ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास उपर्युक्त नियमों के अलावा यदि किसी व्यक्ति के लिये दरबार की तरफ़ का कोई खास हुक्म होता है तो उसका पालन करना भी आवश्यक समझा जाता है। चाकरी पहले किसी शक्तिशाली नियामक सत्ता के न होने से छोटे-बड़े सब प्रकार के भू-स्वामी अपने अधिकारों की रक्षार्थ अथवा उनके प्रसार के लिये बहुधा युद्धों में लगे रहते थे। इसी से अन्य प्रदेशों की तरह मारवाड़ में भी जागीरदारी की प्रथा प्रचलित थी । राजा लोग अपने भाइयों, बन्धुओं, सम्बन्धियों और अनुयायियों को कुछ भू-भाग देकर जागीरदार बना लिया करते थे और वे लोग अपने नरेशों की आज्ञा मिलते ही दल-बल सहित सेवा में प्रा-उपस्थित होते थे । इसी प्रकार ये जागीरदार भी अपना जन-बल दृढ रखने के लिये अपने भाइयों और बन्धुओं को अपने अधीन के प्रदेश का कुछ भू-भाग दे दिया करते थे और समय आने पर उन्हें अपनी अयत्रा अपने स्वामी की सेवा के लिये बुला लिया करते थे। इस प्रकार के प्रबन्ध के कारण ही उस समय राजाओं को युद्ध के लिये अपने निज के वेतन-भोगी सैनिक रखने की अधिक आवश्यकता नहीं होती थी । परन्तु महाराजा विजयसिंहजी के समय जागीरदारों के बागी हो जाने से राज्य की रक्षा के लिये विदेशी वेतन-भोगी सेना का रखना आवश्यक हो गया और इसके द्वारा उद्धत जागीरदारों और उनके अनुयायियों को दबाने में मिली सफलता को देख महाराजा मानसिंहजी ने इसकी संख्या बढ़ा कर २२,००० तक पहुँचा दी । अन्त में वि० सं० १८१६ (ई० स० १८३१ ) में यहां पर अजंटी के कायम हो जाने से जब भीतरी फसाद दब गया, तब इस सेना की संख्या घटा कर करीब सवा हजार सवार और पौने चार हजार पैदल कर दी गई और इसके बाद आगे भी उसकी संख्या बराबर घटती रही । इसके बाद वि० सं० १९४५ (ई० स० १८८१ ) में, महाराजा जसवन्तसिंहजी ( द्वितीय ) के समय, आधुनिक ढंग पर सरदार-रिसाले की स्थापना की गई और वि० सं० १९७९ (६० स० १९२२) में सरदार इन्फैटी कायम हुई। १. उस समय आधी 'इन्फंट्री' तैयार की गई थी और वि० सं० १९८३ (ई० स० १६२६) में यह पूरी कर दी गई । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जागीरदारों पर लगनेवाले राजकीय कर इसी बीच उपर्युक्त चाकरी के भी नियम बना दिए गए। इनके अनुसार जागी. रदारों के लिये जागीर की एक हज़ार की वार्षिक आय पर एक घुड़-सवार, साढे सात सौ की आय पर एक शुतर-सवार और पाँच सौ की आय पर एक पैदल रखना निश्चित हुआ । परन्तु कुछ ही काल में जागीरदारों द्वारा नियत की जानेवाली जमैयत के आदमियों और वाहनों की दशा ऐसी शोचनीय हो गई कि वे केवल समाचार लाने-लेजाने या ऐसे ही अन्य छोटे-छोटे काम करने लायक रह गएं । इसके अलावा जहां ३९,६३,००० की आय की जागीरों पर करीब ३,९६३ सवार आदि होने चाहिए थे। वहां वे इस संख्या के आधे से भी कम रह गए। यह देख दरबार ने इन सवारों आदि के स्थान में नकद रुपया लेना तय किया और इसके अनुसार घुड़-सवार के १७, शुतर-सवार के १५ और पैदल के ८ रुपये निश्चित हुए। वि. सं० १९०१ में यहां पर अंगरेज़ी रुपये का चलन हो जाने से यह रकम घटाकर एक हज़ार के पीछे १५ रुपये करदी गई। परन्तु फिर भी बहुत कम जागीरदारों ने नकद रुपया देना स्वीकार किया । अन्त में वि० सं० १९६६ ( ई० स० १९१२) में यह रकम घटा कर एक हजार पीछे १२ रुपये कर दी गई। इस पर सारे ही जागीरदारों ने इसे स्वीकार कर लिया । इसके अलावा जो जागीरदार अपनी जागीर की असली आमदनी पर चाकरी देना चाहते हैं, उनकी जागीर की आमदनी की जांच की जाकर उसके अनुसार चाकरी लेने का भी नियम है । परन्तु ऐसे जागीरदारों की आमदनी की जांच हर दसवें साल नए सिरे से होती है । जागीरदारों पर लगनेवाले इस करको ही 'चाकरी' कहते हैं । १. इसका मुख्य कारण जागीरदारों का कम वेतन पर आदमियों को भरती करना था । २. बहुधा बड़े-बड़े जागीरदार और उनके पक्ष के जागीरदार न तो पूरे मनुष्य रखते थे न पूरे घोड़े आदि ही। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट-७ मारवाड़ - दरबार- द्वारा दी जानेवाली ताज़ीमों और सरोपावों का विवरण । मारवाड़ दरबार-द्वारा दी जानेवाली ताज़ीमें दो प्रकार की हैं। इकहरी ( इकेवड़ी ) और दोहरी (दोवड़ी ) । जिसे इकहरी ताज़ीम मिलती है, उसके महाराजा साहब के सामने हाज़िर होते समय और जिसे दोहरी ताज़ीम मिलती है, उसके हाज़िर होते और लौटते- दोनों समय महाराजा साहब खड़े होकर उसका अभिवादन ग्रहण करते हैं । बाँह-पसाब—जिनको यह ताज़ीम मिलती है, उसके महाराजा साहब के सामने उपस्थित होकर ( और अपनी तलवार को उनके पैरों के पास रखकर ) उनके घुटने या अचकन के पल्ले को छूने पर महाराजा साहब उसके कंधे पर हाथ रख देते हैं । हाथ का कुरब - जिसको यह ताज़ीम मिलती है, उसके बाँह पसाव वाले की तरह महाराजा साहब का घुटना या दामन छूने पर महाराजा साहब उसके कंधे पर हाथ लगा कर अपने हाथ को अपनी छाती तक लेजाते हैं । ये ताज़ीमें भी इकहरी और दोहरी दोनों प्रकार की होती हैं और उन्हीं के अनुसार महाराजा साहब खड़े होकर आदर देते हैं । सिरे का कुरब-यह कुछ चुने हुए सरदारों को मिला हुआ है, जो दरबार के समय अन्य सरदारों से ऊपर बैठते हैं । इनके भी दो भेद हैं। दांई मिसल के सिरायत महाराजा साहब के दांई तरफ़ और बांई मिसल के बांई तरफ बैठते हैं । परन्तु आजकल आपस के झगड़ों को दूर करने के लिये सरदारों के बैठने के तरीके में सुधार किए जा रहे हैं । सोना - मारवाड़ में जिस व्यक्ति को सोना पहनने का अधिकार मिलता है, वही पैर में सोना पहन सकता है । पहले इस अधिकार के लिये दरबार की तरफ़ से पैर में पहनने का सुवर्ण का आभूषण मिलता था । परन्तु अब ३०० रुपये दिए जाते हैं 1 हाथी - सरोपाव - जिसको यह सरोपाव मिलता है उसे राज्य से कपड़ों वगैरा के सब मिलाकर ७८० रुपये दिए जाते हैं । ६३२ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़-दरबार-द्वार दी जानेवाली ताज़ीमों और सरोपावों का विवरण परन्तु विवाह के मौके पर ( चोगे और कमरबंद की कीमत मिलाकर ) ८४६ रुपये मिलते हैं । इसके अलावा महाराजा साहब के नजदीकी भाई-बन्धुओं को, जो मारवाड़ में 'महाराज' कहलाते हैं, विशेष कृपा और मान प्रदर्शित करने के लिए, १,००० रुपये दिए जाते हैं । पालकी-सरोपाव-जिसको महाराजा साहब की तरफ़ से यह सरोपाव मिलता है उसे ४७२ रुपये दिए जाते हैं । परन्तु विवाह के मौके पर इसकी रकम ५५३ रुपये कर दी जाती है । घोड़ा-सरोपाव-इसके लिये साधारण तौर पर २४० रुपये और विवाह के मौके पर ३४० रुपये मिलते हैं। सादा-सरोपाव-इसके प्रथम दरजे में मामूली समय पर १४० रुपये और विवाह के समय २४० रुपये दिए जाते हैं । परन्तु इसके दूसरे दर्जे में १०० रुपये और तीसरे दर्जे में ७१ रुपये मिलते हैं । कंठी दुपट्टा-सरोपाव-इसकी प्रथम श्रेणी में ७५ रुपये, द्वितीय श्रेणी में ६० रुपये और तृतीय श्रेणी में ४५ रुपये दिए जाते हैं। कड़ा, मोती, दुशाला और मदील (ज़रीदार पगड़ी)-सरोपाव-इसमें प्रथम श्रेणीवाले को १२१ रुपये, द्वितीय श्रेणीवाले को ८५ रुपये और तृतीय श्रेणीवाले को ६५ रुपये मिलते हैं। कड़ा और दुशाला-सरोपाव-इसमें ३७ रुपये दिए जाते हैं । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट-८ मारवाड़ के सिक्के इतिहास अनुमान होता है कि मारवाड़ में भी पहले ठप्पे लगे हुए ( पंच मार्क्ड) सिक्कों का प्रचार रहा होगा । इन सिक्कों पर किसी राजा का नाम न होकर मनुष्यों, पशुओंों, वृक्षों, शस्त्रों, स्तूपों अथवा अन्य पवित्र समझी जानेवाली वस्तुओं के चिह्न बने होते हैं। इन चिह्नों के जुदा-जुदा ठप्पों द्वारा धातु के बने मोटे पत्रपर छापे जाने के कारण इनके बीच के व्यवधान का कोई नियम नहीं होता । किसी सिक्केपर दो चिह्न पास-पास बने मिलते हैं, तो किसी पर दूर-दूर । इसी प्रकार इन सिक्कों के आकार का भी नियम न होने से ये भिन्न-भिन्न आकार के देखने में आते हैं । इसके बाद यहां पर क्षत्रपों के सिक्कों (द्रम्मों) का व्यवहार हुआ होगा । ये सिक्के आकार में गोल होते हैं और इनपर एक तरफ़ राजा का गर्दन तक का चित्र और सम्वत्, तथा दूसरी तरफ़ राजा का और उसके पिता का नाम मय उनकी उपाघियों के लिखा होता है । क्षत्रपों के बाद गुप्तों की मुद्राओं का प्रचलन हुआ होगा । परन्तु मारवाड़ में अभी तक इन मुद्राओं के न मिलने से इस विषय में निश्चितरूप से कुछ नहीं कहा जा सकता । फिर मी परिस्थितियां उपर्युक्त बातों का ही समर्थन करती हैं । यहां पर गघिया या गधैया शैली के सिक्के अधिकता से मिलते हैं । इससे अनुमान होता है कि गुप्तों के बाद अथवा हूण- नरेश तोरमाण के समय ( विक्रम की छठी शताब्दी के उत्तरार्ध ) से ही यहां पर इन सिक्कों का प्रचार होने लगा होगा । मारवाड़ में इन सिक्कों की तीन किस्में मिलती हैं: १. किसी-किसी पर ग्रीक अक्षरों के-से अक्षर भी बने होते हैं । ૬૪ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ के सिक पहली किस्म के चांदी के सिक्के आकार में ब्रिटिश-भारत की अंगरेजी अठन्नी के बराबर होनेपर भी मुटाई में उससे बहुत पतले होते हैं । इनकी एक तरफ़ राजा का छाती तक का चित्र और दूसरी तरफ अग्निकुण्ड बना होता है। ये सिक्के ईरानी सिक्कों की नकलपर बनाए गए थे। परन्तु कारीगरी में उनसे भद्दे होते हैं। दूसरी किस्म के सिक्के पहले प्रकार के सिक्कों से आकार में कुछ छोटे, परन्तु मुटाई में कुछ अधिक होते हैं और इनपर के चित्र आदि और भी भद्दे और अस्पष्ट मिलते हैं। तीसरी किस्म के सिक्कों का आकार ब्रिटिश-भारत की चांदी की दुअन्नी का-सा होता है । परन्तु इनकी मुटाई अधिक होती है। साथ ही इनपर का राजा का चित्र गधे के खुर का-सा दिखाई देता है। इसी से इनका नाम 'गघिया' या 'गधैया' हो गया है । इनपर का दूसरी तरफ का अग्निकुण्ड भी आड़ी-तिरछी लकीरों और बिन्दुओं का समुदाय-सा ही प्रतीत होता है। इन सिक्कों में यह परिवर्तन सम्भवतः विक्रम की दशवीं शताब्दी के करीब हुआ होगा। इस प्रकार के सिक्के ग्यारहवीं शताब्दी तक गुजरात, राजपूताना और मालवा में प्रचलित थे। इसी बीच यहां पर कुछ समय के लिये प्रतिहार-नरेश भोजदेवे की मुद्राओं का भी प्रचार रहा था। इनपर एक तरफ़ नर-वराह की मूर्ति बनी होती है और दूसरी तरफ़ 'श्रीमदादिवराहः' लिखा रहता है । ऐसी कुछ मुद्राएं र वर्ष पूर्व सांभर-प्रान्त से मिली थीं। १. वि० सं० ५.१ (ई. स. ४८४) के करीब जब हूणों ने ईरान (पर्शिया ) पर प्राक्रमण किया. तब वे वहां का खजाना लूटकर वहां के ससेनियन शैली के सिक्के भारत में ले पाए । ये सिक्के आकार में ब्रिटिश-भारत के रुपये के बराबर होने पर भी मुटाई में उससे कम होते हैं । इनकी एक तरफ राजा का चेहरा और पहलवी अक्षरों में लेख, तथा दूसरी तरफ अमि-कुण्ड और उसके दोनों तरफ दो खड़े पुरुष बने होते हैं । २. इस भोजदेव की वि० सं० ६०० से ६३८ (ई० स० ८४३ से ८८१) तक की प्रशस्तियां मिली हैं। ६३५ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास इसी प्रकार यहां पर चौहानों के सिक्कों का प्रचार रहना मी अनुमान किया जाता है । इस ( चौहान ) वंश के राजाओं में से अजयदेव, उसकी रानी सोमलेदेवी, सोमेश्वर और उसके पुत्र प्रसिद्ध चौहान-नरेश पृथ्वीराज के सिक्के मिलते हैं । इनके साथ ही यहांपर फदिया नाम के सिक्के के प्रचलन का भी पता चलता है । वि० सं० १५१७ के एक लेख में, जिस बावड़ी के बनवाने में १,२१,१११ फदिये खर्च होना लिखा है, ख्यातों में उसी के लिये १५,००० रुपये खर्च होना दर्ज है । इस से अनुमान होता है कि उस समय एक रुपये के करीब - फदिये मिलते थे। परन्तु यह सिक्का अबतक देखने में नहीं आया है । हमारा अनुमान है कि फदिया से गघिया-शैली के सिक्के का ही तात्पर्य होगा। इनके अलावा विक्रम की नवीं शताब्दी में सिंधपर शासन करने वाले अरब-हाकिमों के चलाए सिक्कों के मिलने से उनका भी यहां पर प्रचार रहना पाया जाता है । ये सिक्के आकार में ब्रिटिश-भारत की चांदी की दुअन्नी से आधे और बहुत पतले होते हैं और इनपर हाकिमों के नाम लिखे रहते हैं । इस प्रकार के सिक्के मारवाड़ के अनेक स्थानों से मिले हैं । चौहान-नरेश पृथ्वीराज के मरने के बाद यहां पर दिल्ली के सुलतान-नरेशों के सिक्कों का प्रचार हुआ होगा। इसी सिलसिले में फीरोजशाह (द्वितीय) के समय १. यह अजयदेव वि० सं० ११६५ ( ई० स० ११०८) के आस-पास विद्यमान था। इसके सिकों पर एक तरफ भद्दी-सी लक्ष्मी की मूर्ति बनी होती है और दूसरी तरफ 'श्री अजयदेव' लिखा होता है। २. सोमलदेवी के सिक्कों पर एक तरफ गघिये सिके कासा राजा का चेहरा और दूसरी तरफ 'श्रीसोमलदेवी' लिखा होता है। ३. यह वि० सं० १२३० (ई. स. ११७३ ) के करीब विद्यमान था। इसके सिक्कों पर एक तरफ सवार की भद्दी मूर्ति और 'श्री सोमेश्वरदेव' और दूसरी तरफ नन्दी का चित्र और 'पासावरी श्री सामन्तदेव' लिखा होता है । ४. यह (पृथ्वीराज ) वि० सं० १२४६ (ई. स. ११९२) में शहाबुद्दीन के साथ के युद्ध में मारा गया था। इसके सिकों पर भी एक तरफ सवार की भद्दी मूर्ति और 'श्री पृथ्वीराजदेव' और दूसरी तरफ नन्दी का चित्र और 'आसावरी श्री सामन्तदेव' लिखा रहता है। इसके कुछ सिक्के ऐसे भी मिले हैं, जिन पर एक तरफ पृथ्वीराज का और दूसरी तरफ सुलतान मुहम्मदसाम का नाम लिखा होता है । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ के सिक्के १२१३ के करीब ) से मारवाड़ में फ़ीरोज़ी सिक्कों का, १६०० = ई० स० १५४३ ) से शेरशाही सिक्कों का और १६२२ = ई० स० १५६५ ) से मुगल बादशाहों के ( वि० सं० १३५१ = ई० स० शेरशाह के समय ( वि० अकबर के समय ( वि० सं० सं० सिक्कों का प्रचार हुआ । इसके अलावा जौनपुर, मालवा और गुजरात के मुसलमान - शासकों के तांबे के सिक्कों के मिलने से उनका भी यहां पर किसी हद तक प्रचलित होना अनुमान किया जा सकता है' । कर्नल जेम्स टॉड ने अपने 'ऐनाल्स एण्ड ऐण्टिविटीज ऑफ राजस्थाने' में मारवाड़ - नरेश महाराजा अजितसिंहजी का वि० सं० १७७७ ( ई० स० १७२० ) में अजमेर से अपने नाम का सिक्का चलाना लिखा है । परन्तु न तो अबतक उस समय का सिक्का ही मिला है, न अन्यत्र कहीं इसका उल्लेख ही । अबतक के मिले प्रमाणों से प्रकट होता है कि मारवाड़ - नरेश महाराजा विजयसिंहजी ने ही पहले-पहल, वि० सं० १८३७ ( ई० स० १७८० ) में बादशाह शाहआलम (द्वितीय) से आज्ञा प्राप्त कर अपना निज का विजयशाही सिक्का चलाया था । इसपर फ़ारसी लिपि में एक तरफ़ शाह आलम का नाम और दूसरी तरफ़ ( जोधपुर की ) टकसाल का नाम लिखा रहता था । यह सिक्का महाराजा विजयसिंहजी का चलाया होने से ' विजयशाही' और इसपर बादशाह शाह आलम द्वितीय का सनेजलूस ( राज्यवर्ष ) २२ लिखा होने से 'बाइसंदा' मी कहाता था । वि० सं० १८६३ ( ई० स० १८०६ ) में शाह आलम की मृत्यु हो जाने से इसपर मुहम्मद अकबरशाह द्वितीय का नाम लिखा जाने लगा और वि० सं० १८६४ १. कहीं कहीं अजमेर, नागोर और अहमदाबाद की बादशाही टकसालों के बने रुपयों का भी यहां पर विशेष तौर से चलन होना लिखा मिलता है । २. ऐनाल्स एण्ड ऐटिक्विटीज़ ऑफ राजस्थान, ( क्रुक सम्पादित ) भा० २, पृ० १०२६ ३. यह नाम अब तक केवल तांबे के सिक्कों पर ही मिला है। फिर भी इससे अनुमान होता है कि इसी प्रकार का परिवर्तन चाँदी सिक्कों पर भी हुआ होगा । परन्तु विलियम विल्फर्ड वैब ने विजयशाही सिक्कों पर ई० स० १८५८ तक शाह आलम के नाम का लिखा जाना ही माना है । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ६३७ www.umaragyanbhandar.com Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास ( ई० स० १८३७) में उसकी मृत्यु के कारण उसके नाम के स्थान पर बहादुरशाह द्वितीय का नाम लिखा गया । परन्तु वि० सं० १९९६ ( ई० स० १८५६ ) से इसपर एक तरफ़ मुग्गल बादशाह के नाम के स्थान पर महारानी विक्टोरिया का और दूसरी तरफ़ मारवाड़ - नरेश महाराजा तखतसिंहजी का नाम जोड़ दिया गया । यथा- समय यही परिवर्तन नागोर, सोजत, पाली और मेड़ता की टकसालों में मी किया गया । इन टकसालों के सिक्कों पर जोधपुर के स्थान पर उन-उन नगरों का नाम लिखा जाता था । वि० सं० १९२६ ( ई० स० १८६९) में उपर्युक्त सारी ही टकसालों के सिक्कों पर ( जोधपुर-नरेशों की इष्ट देवी का सूचक ) नागरी अक्षरों में " श्रीमाताजी " और जोड़ दिया गया । इसके बाद वि० सं० १९२९ ( ई० स० १ =७३ ) में मारवाड़ - नरेश महाराजा जसवन्तसिंहजी (द्वितीय) का, वि० सं० १९५२ ( ई० स० १८६५ ) में महाराजा सरदारसिंहजी का, वि० सं० १९६८ ( ई० स० १९११ ) में महाराजा सुमेरसिंहजी का और वि० सं० १९७५ ( ई० स० १९१८) में वर्तमान- नरेश महाराजा उम्मेदसिंहजी साहब का नाम लिखा गया । इसी प्रकार महारानी विक्टोरिया के स्वर्गवास पर वि० सं० १९५७ ( ई० स० १९०१ ) में बादशाह एडवर्ड सप्तम का, वि० सं० १९६७ (ई० स० १११०) में बादशाह जॉर्ज पञ्चम का, वि० सं० १९६२ ( ई० स० १९३६ ) में बादशाह एडवर्ड अष्टम का और उनके राज्यसिंहासन छोड़ने पर वि० सं० १९९३ ( ई० स० १९३६) में बादशाह जॉर्ज षष्ठ का नाम दर्ज किया गया । विशेष बातें । पहले प्रतिवर्ष नए ठप्पे तैयार कर सिक्के बनाने का रिवाज न होने से एक ही ठप्पा कई वर्षों तक काम में आता रहता था और आवश्यकता होने पर ही नया ठप्पा बनाया जाता था ! इसके अलावा ठप्पा बनाने वाला बहुधा पुराने ठप्पे को देख कर ही नया ठप्पा बनाया करता था । इससे कमी-कभी गलती भी हो जाती थी । इसी से महारानी ( विक्टोरिया ) के नामवाले कुछ सिक्कों पर मी २२ का अ ( जो शाहआलम द्वितीय का सन - ए - जलूस था ) लिखा मिलता है । महाराजा तखतसिंहजी के १. यहां पर यह परिवर्तन वि० सं० १६१७ ( ई० स० १८६०) में हुआ । ६३८ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ के सिके समय (वि० सं० १९१८ ई० स० १८६२ ) से हरसाल सावन में सोने और चांदी के सिक्कों के लिये नए ठप्पे बनाने का रिवाज चल गया। इससे उन पर के संवत् भी बदल दिए जाने लगे। फिर भी तांबे के सिक्कों का ठप्पा तो आवश्यकता पड़ने पर ही बदला जाता था। परन्तु आजकल फिर वही आवश्यकता होने पर नया सिक्का बनाने का पुराना तरीका चल पड़ा है । अपने समय में बने सिक्कों की पहचान के लिये राज्य की प्रत्येक टकसाल का दारोगा ठप्पे में अपना खास चिह्न या अक्षर जोड़ दिया करता था। इससे किसी सिक्के के तोल में या उसकी धातु की शुद्धता में गड़बड़ मिलने पर, बिना किसी झंझट के, वह उसका जिम्मेवार समझ लिया जाता था। यहां के सिक्कों पर का झाड़ और तलवार का निशान राज्य-चिह्न की तौर पर बनाया गया था। इस झाड़ में या ७ शाखाएं मिलती हैं । परन्तु १ शाखाओंवाला झाड़ असली बिजैशाही या 'लुलूलिया' रुपयों पर ही मिलता है । महाराजा तखतसिंहजी ने इस झाड़ को तुर्रे ( मस्तक पर बांधे जानेवाले आभूषण ) का रूप दिलवाया था। इसी से मारवाड़ के लोग इन चिह्नों को खाँडा (एक प्रकार की तलवार ) और तुर्रा कहते हैं। यहां के किसी-किसी सिक्के पर पाँच पत्ती के फूल, स्वस्तिक, त्रिशूल और तीर के चिह्न मी बने मिलते हैं । ये ठप्पे में की खाली जगह को भरने के लिये बना दिए जाते थे। मारवाड़ में पहले ये सोने, चांदी और तांबे के सिक्के व्यापारी लोग ही बनवाया करते थे । टकसाल का दारोगा उनके लार हुए सोने और चांदी की जाँच कर सिक्के बनवा देता था। इसके लिये व्यापारियों को मजदूरी के अलावा नियत राज्य-कर (Royalty) भी देना होता था। यह राज्य-कर राज्य की भिन्न-भिन्न टकसालों में मिन्न-भिन्न था। जोधपुर में प्रत्येक मोहर (अशर्फी) पर पौने दो आने, प्रति १०० रुपयों पर छै आने और मन भर तांबे ( या १४,००० पैसों) पर तीन रुपये थे। सोजत में १०० रुपयों पर ग्यारह आने और मेड़ता में १०० रुपयों पर तेरह आने लगते थे । वि० सं० १९५६ (ई० स० १८६९-१९००) के भीषण दुर्भिक्ष के कारण मारवाड़ में लाखों रुपयों का नाज और घास बाहर से मँगवाना पड़ा । इसी से यहां के १. इस समय प्रति १०० अशी पर ६ पाने राज्य लेता है । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास चांदी के सिक्के की दर बहुत गिर गई । इस संकट को दूर करने के लिये यहां पर भी अंगरेजी रुपया जारी करना पड़ा । यद्यपि सोने के सिक्के ( मोहरें ) अब तक व्यापारियों की तरफ़ से ही बनवाए जाते हैं, तथापि तांबे के सिक्के (पैसे) अब राज्य की तरफ से बनते हैं । मारवाड़ की टकसालों और उनके बने सिक्कों का विवरण । नागोर की टकसाल - वि० सं० १६९५ ( ई० स० १६३८ ) में बादशाह शाहजहां ने मारवाड़ - नरेश महाराजा गजसिंहजी की इच्छानुसार उनके ज्येष्ठ पुत्र अमरसिंह को राव की पदवी देकर नागोर का प्रान्त जागीर में दे दिया था । कहते हैं कि इसके बाद ही उन्होंने बादशाह की आज्ञा लेकर वहां पर अपना अमरशाही पैसा चलाया । यह तोल में २५५ ग्रेन ( १५ माशे) के करीब था और इसपर केवल एक तरफ एक चतुष्कोण में फ़ारसी अक्षरों में " दारुल बरकात जरब नागोर मैमनत मानूस सन्-ए-जलूस ११" लिखा रहता था । यह सन्-ए-जलूस शाहजहां के ११ वें राज्य - वर्ष का द्योतक था । इसके बाद वि० सं० १८३७ ( ई० स० १७८०) में यहां पर भी मारवाड़ - नरेश महाराजा विजयसिंहजी का विजयशाही सिक्का बनना प्रारम्भ हुआ । यहां के रुपयों पर अन्य लेख के अलावा जिस तरफ़ 'श्रीमाताजी' लिखा रहता है, उसी तरफ़ ऊपर को भाड़ और तलवार अथवा उसके भाग बने होते हैं । यह टकसाल वि० सं० १९४५ ( ई० स० १८८८ ) में बंद कर दी गई । जोधपुर की टकसाल - यह वि० सं० १८३७ ( ई० स० १७८०) में खोली गई थी । यहां के बने रुपयों पर अन्य लेख के अलावा एक तरफ़ दारोगा का निशान और दूसरी तरफ़ ‘श्रीमाताजी' लिखा रहता है और उसी के नीचे तलवार बनी होती है । पहले यहां पर सोने, चांदी और तांबे के सिक्के बना करते थे । परन्तु वि० सं० १९५६ ( ई० स० १६०० ) से अंगरेज़ी रुपये का प्रचलन हो जाने से मारवाड़ की १. कहीं कहीं ऐसा भी लिखा मिलता है कि, जिस समय उनगखां, जो बाद में सुलतान गयासुद्दीन बलबन के नाम से दिल्ली के तख्त पर बैठा, सूबेदार की हैसियत से नागोर में रहता था, उस समय भी वहां पर एक टकसाल थी । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ के सिक्के टकसालों में विजयशाही रुपया बनना बंद हो गया। इसके बाद वि० सं० १९७१ ( ई० स० १९१४ ) में यहां पर तांबे का सिक्का बनना भी बंद हो गया था, परन्तु वि० सं० १९९३ ( ई० स० १९३६ ) से यह फिर से बनाया जाने लगा है। 1 पाली की टकसाल - यह टकसाल वि० सं० १८४५ ( ई० स० १७८८ ) में खोली गई थी । यहां के रुपयों पर एक तरफ दारोगा का निशान और दूसरी तरफ 'श्रीमाताजी' लिखा रहता है । तथा इसी लेख के नीचे तलवार और उसके पास ही में झाड़ बना होता है । मारवाड़ - नरेश महाराजा भीमसिंहजी के समय तक पाली के बने सिक्कों पर भाले का निशान रहता था, परन्तु महाराजा मानसिंहजी ने भाले के स्थान पर तलवार का निशान बनवाना प्रारम्भ किया । यह टकसाल भी कुछ काल से बंद कर दी गई है । सोजत की टकसाल- -यह टकसाल वि० सं० १८६४ ( ई० स० १८०७ ) में खोली गई थी । यहां के बने कुछ रुपयों पर कटार का चिह्न बना होता है और कुछ पर नागरी अक्षरों में 'श्री महादेवजी ' भी लिखा रहता है । इनमें टकसाल के दारोगा का निशान झाड़ के पास बना रहता है । यह टकसाल वि० सं० १९४५ ( ई० स० १८८८ ) में बंद कर दी गई थी । मेड़ता की टकसाल — यहां की टकसाल के बने रुपये पर हिजरी सन् ११८८ का निशान होने से वह रुपया 'ट्यासिया' कहलाता था । यह टकसाल वि० सं० १८९० ( ई० स० १८३३ ) में बंद होगई थी । परन्तु वि० सं० १९२१ ( ई० स० १८६४ ) में फिर से जारी की गई । उस समय के रुपये पर चांद का चिह्न बना होने से वह ' चांदशाही' के नाम से प्रसिद्ध हुआ । वि० सं० १९२८ ( ई० स० १८७१) में यहां की टकसाल फिर बंद कर दी गई । इस टकसाल के बने कुछ पुराने पैसों पर केवल सन् १२०२ ही लिखा मिलता है । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ६४१ www.umaragyanbhandar.com Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास सुवर्ण के सिक्के (मोहरें ) जोधपुर की अशर्फी (मोहर) शुद्ध सुवर्ण की बनती है और इसका तोल १६६.६ ग्रेन ( १ मोशे और ६ रती ) होता है । यह भी कहा जाता है कि ये सिक्के पहलेपहल वि० सं० १८३८ ( ई० स० १७८१ ) में विजयशाही रुपये के वि० सं० १८१८ ( ई० स० १७६१ ) के ठप्पे से छापे गए थे । परन्तु इसके बाद मोहरों के लिये जुदा ठप्पे ( बाला और पाई ) तैयार किए जाने लगे । आवश्यकता होने पर इन्हीं ठप्पों से तोल के हिसाब से श्राघी, पाव और दो नो मोहरें भी छाप ली जाती हैं । मोहरें बनाने का काम केवल जोधपुर की टकसाल में ही होता है । 1 चांदी के सिक्के (रुपये) जोधपुर का विजयशाही रुपया तोल में १७६ ४ ग्रेन ( १० माशे ३ रती ) होता 1 था । इसमें १६१·१ ग्रेन ( १ माशे ५ रत्ती ) शुद्ध चांदी और ६.५ ग्रेन (३३ रत्ती ) तांबा (Alloy ) रहता था। जिस समय इस रुपये का चलन था, उस समय इसी के ठप्पे (वाला और पाई) से तोल के अनुसार अठन्नी, चवन्नी और दो अनी बना ली जाती थी । वि० सं० १९१६ ( ई० स० १८५६ ) में महाराजा तखतसिंहजी के समय नाजर हरकरण ने सोजत की टकसाल में करीब एक लाख विजयशाही रुपये ऐसे छापे थे, जिनका तोल १७५ प्रेन ( १० माशा ) था और इनमें खाद ( alloy ) का भाग १. वास्तव में यह ६६ टंच की होती है । २. मारवाड़ में माशा ८ रत्ती का माना जाता है । ३. परन्तु वि० सं० १६१४ ( ई० स० १८६२ ) के पूर्व का 'ग' चिह्न वाला जोधपुर की टकसाल का बना रुपया तोल में १७६ ग्रेन ( १० माशे ) था । २७ ४. कुछ लोग इसमें खाद (Alloy ) होना मानते हैं । पाली की टकसाल का बना रूपया तोल में १६० ग्रेन ( १० माशे ७ रत्ती ) होता था और उसमें १० माशे ४ रत्ती चांदी और २ रत्ती तांबा रहता था । नागोर का रुपया तोल में ६ माशे ६ रत्ती ( १६६६ ग्रेन ) होता था और उसमें ६ माशे ४ रत्ती चांदी और १३ रत्ती तांत्रा रहता था । सोजत के रुपये में प्रतिशत ६५ चांदी और ४ तांबा होता था । ર Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ के सिक्के भी कुछ अधिक मिलाया गया था। इन सिक्कों पर दारोगा का निशान 'ला' बना था, जो उसके पन्थ के आचार्य लालबाबा के नाम का पहला अक्षर था। ये सिक्के 'ला' अक्षर के कारण 'लुलूलिया' या लुलूलशाही कहाते थे । वि० सं० १९२३ (ई० स० १८६६) में महाराजा तखतसिंहजी के समय ही अनाड़सिंह ने जोधपुर की टकसाल में कुछ विजयशाही रुपये ऐसे भी बनवाए थे जिनमें खाद (Alloy) मामूली से अधिक डाला गया था। इन रुपयों पर उसने अपना निशान 'रा' रखा था, जो उसकी रावणा राजपूत जाति का पहला अक्षर था, और इसी से ये रुपये ‘रुरूरिया' के नाम से प्रसिद्ध हुए । हम पहले ही लिख चुके हैं कि पुराने विजयशाही रुपयों पर शाहआलम का २२ वां राज्यवर्ष लिखा होने से वह 'बाईसंदा' भी कहाता था और वि० सं० १९५६ ( ई० स० १९००) में यहां पर ब्रिटिश भारत के रुपये का चलन हो जाने से मारवाड़ में इस रुपये का बनना बंद हो गया। तांबे के सिक्के (पैसे) जोधपुर का विजयशाही पैसा भारी होने से ढब्बूशाही भी कहाता था । महागजा भीमसिंहजी के समय (वि० सं० १८५० से १८६० ई० स० १७९३ से १८०३ तक) इसका वजन दो माशा ओर बढ़ा दिया जाने से उस समय का पैसा 'भीमशाही' कहाने लगा । परन्तु इसके बाद जब महाराजा मानसिंहजी के समय इसका वजन वापिस घटा दिया गया, तब फिर यह ढब्बूशाही कहाने लगा । ऐसे टके १ मन तांबे में १४,००० के करीब बनते थे । इन पैसों का वजन ३१० से ३२० ग्रेन तक ( करीब १८ माशे ) मिलता है। इसके बाद वि० सं० १९६३ ( ई० स० १९०६) में यहां के पैसे का वजन करीब १५८ ग्रेन का ( या बड़े पैसे से आधा) कर दिया गया और पहले लिखे अनुसार वि० सं० १९७१ (ई० स० १९१४) तक यह हलका पैसा जोधपुर की टकसाल में बनता रहा । परन्तु उसके बाद वि० सं० १९९३ (ई० स० १९३६) तक बंद रहकर अब फिर बनना प्रारम्भ हुआ है । १. इनमें 8 के स्थान पर खाद बतलाया जाता है । २. बाद में यह बहुधा अफीम तोलने के काम में लिया जाता था। ६४३ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास मारवाड़ राज्य के सिक्कों पर मिलनेवाले कुछ लेख । सुवर्ण के सिक्कों पर के कुछ लेख । —कीन विक्टोरिया मलिका मुअज्जमा इंग्लिस्तान व हिन्दुस्तान जरब दारुल मन्सूर जोधपुर दूसरी तरफ़ - सने जलूस मैमनत मानूस महाराजाधिराज श्री तखतसिंह बहादुर एक तरफ़ एक तरफ़ - श्रीमाताजी* ( संवत् ) १९२६ जरब दारुल मनसूर जोधपुर । दूसरी तरफ़ - - ब अदे कुईन शाह हिन्दो फ़रंग ज़ेरो सीमरौ सिक्क दु तख़्त सिंघ एक तरफ़ —ब जमान मुबारिक क्कीन विक्टोरिया मलका मुअज्जमा इंगुलिस्तान व हिन्दुस्तान दूसरी तरफ़ — श्रीमाताजी * महाराजाधिराज श्रीजसवन्तसिंघ बहादुर जरब जोधपुर एक तरफ़ — बज्रमाने मुबारिक एडवर्ड हफ़्तम शाह इंग्लिस्तान एम्परर हिन्दुस्तान दूसरी तरफ़ - श्रीमाताजी * महाराजा श्रीसरदारसिंघ बहादुर जरब जोधपुर एक तरफ़ —बजमाने मुबारिक जार्ज पंचम शाह इंग्लिस्तान एम्परर हिन्दुस्तान दूसरी तरफ़ - श्रीमाताजी * महाराजाधिराज श्री सुमेरसिंघ बहादुर जोधपुर एक तरफ़ —ब जमान मुबारिक एडवर्ड अष्टम शाह इंग्लिस्तान एम्परर हिन्दुस्तान दूसरी तरफ़ — श्रीमाताजी * महाराजाधिराज श्रीउम्मेदसिंह बहादुर ज़रब जोधपुर । * ये चार अक्षर हिन्दी में हैं और बाकी का लेख फारसी अक्षरों में है । १. राज्य में, २. सोना, ३. चांदी, ४. ठप्पा लगाया । ૬૪ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ के सिक्के एक तरफ़ — जमान मुबारिक जार्ज षष्टम शाह इंग्लिस्तान एम्परर हिंदुस्तान दूसरी तरफ़ - -श्रीमाताजी * ( संवत् ) १९८६ महाराजाधिराज श्री उम्मेदसिंघ बहादुर जरब जोधपुर चांदी के सिक्कों पर के कुछ लेख । - सिक्के मुबारिक शाह आलम बादशाह गाज़ी । - जरब दारुल मनसूर जोधपुर सन् २२ जलूस मैमनत मानूस । एक तरफ़ दूसरी तरफ़ एक तरफ़ —ब जमान मुबारिक कीन विक्टोरिया मलका मुत्रप्रज्जमा इंग्लिस्तान व हिन्दुस्तान | दूसरी तरफ़ - श्रीमाताजी * महाराजाधिराज श्री तखतसिंघ बहादुर सन् २२ जरब जोधपुर । एक तरफ़ — श्रीमाताजी * ( संवत् ) १९२६ जरब दारुल मनसूर जोधपुर । दूसरी तरफ़ - ब हदे कुईन शाह हिंदो फरंग । जरो सीमरा सिक्क ज़दू तख्तसिंघ | एक तरफ़ —ब जमाने मुबारिक कीन विक्टोरिया मलका मुअज्जमा इंग्लिस्तान व हिन्दुस्तान | दूसरी तरफ़ - श्रीमाताजी * महाराजाधिराज श्री जसवन्तसिंघ बहादुर जरब जोधपुर । एक तरफ़ - ब जमाने मुबारिक कीन विक्टोरिया मलका मुअज्जमा इंग्लिस्तान व हिन्दुस्तान । दूसरी तरफ़ - - श्रीमाताजी * महाराजाधिराज श्री सरदारसिंघ बहादुर जोधपुर । * ये चार अक्षर हिन्दी में हैं । १. इसी प्रकार सब सिक्कों पर भिन्न-भिन्न संवत् भी रहता है। नए बादशाह के गद्दी बैठने पर ठप्पे का केवल एक भाग ही बदले जाने के कारण वर्तमान सुवर्ण के सिक्कों पर संवत् १६८६ लिखा मिलता है । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat * www.umaragyanbhandar.com Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास अन्य नगरों की टकसालों में बने सिकों पर जोधपुर के स्थान पर उन-उन नगरों के नाम लिखे रहते हैं और किसी-किसी सिक्के पर नगर के नाम के बाद मारवाड़ भी लिखा होता है । सोजत के कुछ सिक्कों पर पहले लिखे अनुसार हिन्दी अक्षरों में 'श्रीमहादेवजी' लिखा मिलता है । तांबे के सिक्कों पर के कुछ लेख । एक तरफ़ -सने जलूस मैमनत मानूस जरब दूसरी तरफ़-दारुल मनसूर जोधपुर १११२ एक तरफ़ -मुहम्मद अकबरशाह बादशाह ग्राज़ी दूसरी तरफ़-जरब दारुल मनसूर जोधपुर मैमनत मानूस सने जलूस २२ एक तरफ -ब जमान मुबारिक कीन विक्टोरिया मलका १९४१ (विक्रमी) दूसरी तरफ़-मोअज्जमा इंग्लिस्तान व हिन्दुस्तान ज़रब जोधपुर एक तरफ़ -ब जमान मुबारिक एडवर्ड हप्तम शाह इंग्लिस्तान एम्परर हिन्दुस्तान दूसरी तरफ़-महाराजाधिराज श्रीसरदारसिंघ बहादुर जरब जोधपुर पाव आना एक तरफ़ -ब जमान मुबारिक जॉर्ज पंचम शाह इंग्लिस्तान एम्परर हिन्दुस्तान दूसरी तरफ़-महाराजाधिराज श्रीसुमेरसिंघ बहादुर जरब जोधपुर पाव आना एक तरफ़ -ब जमान मुबारिक जार्ज षष्टम शाह इंग्लिस्तान एम्परर हिंदुस्तान दूसरी तरफ़-(सन् ) १९३६ महाराजाधिराज श्रीउम्मेदसिंघ बहादुर जरब जोधपुर पाव आना १. इसी प्रकार बादशाह एडवर्ड अष्टम के समय के सिक्कों में हफ्तम के स्थान पर ( अष्टम ) लिखा गया था। उपर्युक्त लेखों के अलावा इन सिक्कों पर संवत् ( या सन् ) भी लिखे रहते हैं। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ के सिक्के कुचामन का इकतीसंदा । कुचामन नाम का कसबा ( Town ) मारवाड़ - राज्य के सांभर परगने में है और यहां का जागीरदार मेड़तिया राठोड़ है । वि० सं० १८४६ ( ई० स० १७८९ ) में, शाहआलम (द्वितीय) के ३१ वें राज्य वर्ष से, अजमेर में चांदी का सिक्का बनाना प्रारम्भ हुआ था । परन्तु कुछ समय बाद दिल्ली की मुगल बादशाहत के अधिक शिथिल होजाने पर वहां की टकसाल का दारोगा उस सिक्के का ठप्पा ( बाला और पाई ) लेकर कुचामन चला गया । उन दिनों कुचामन में व्यापार की अच्छी थी । इसी लिये वि० स० १८६५ ( ई० स० १८३८) में वहां के महराजा मानसिंहजी से आज्ञा प्राप्त कर अपने यहां चांदी का सिक्का बनाने एक टकसाल खोल दी । यह रुपया इसी कुचामन की टकसाल में बना होने से 'कुचामनिया' और इसपर शाह आलम द्वितीय का ३१ वां राज्यवर्ष लिखा होने से इकतीसंदा (इकतीस सना ) कहाया । परन्तु इसको 'बोपूशाही' और 'बोरसी' रुपया भी कहते थे । दशा बहुत ठाकुर ने के लिये पुराना कुचामनी सिक्का तोल में १६६ ग्रेन ( १ माशे ४ रत्ती ) होता था और इसमें ६ माशे २ रत्ती चांदी और ३ माशे १ रत्ती तांबा (Alloy ) रहता था । नर कुचामनी सिक्के का, जो वि० सं० १९२० ( ई० स० १८६३) में छापा गया था, और जिसपर महारानी विक्टोरिया का नाम लिखा गया था, तोल १६८ ग्रेन ( १ माशे ५ रत्ती के करीब ) था । बिजेशाही रुपये के समान ही इसके तोल के हिसाब से इसके ठप्पे से अठन्नी, चवन्नी और दो अन्नी भी बनाई जाती थी । मारवाड़ में इसका बनना बन्द हो जाने और अंगरेजी रुपये का प्रचलन हो जाने पर भी इसके सस्ते होने के कारण मारवाड़ के लोग अब तक विवाह आदि में इसे देन-लेन के काम में लाते हैं । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat १. महाराजा मान सिंहजी के समय कुछ काल तक बूडसू ठाकुर के यहां भी टकसाल रही थी यह ठिकाना मारवाड़ के परबतसर परगने में है और यहां का जागीरदार भी मेड़तिया राठोड़ है | साथ ही बूडसू के रुपये का ठप्पा भी कुचामन के इकतीसंदे रुपये के ठप्पे के समान ही था । २. कुछ लोग इसमें ७५ प्रतिशत चांदी और २५ प्रतिशत खाद होना बतलाते हैं । ६४७ www.umaragyanbhandar.com Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास विशेष वक्तव्य । इस रुपये पर तलवार का चिह्न बना रहता है । इसपर की इबारत के कुछ नमूने आगे दिए जाते हैं: एक तरफ़ -सिक्के मुबारिक शाह आलम बादशाह गाज़ी १२०३ । दूसरी तरफ़-सने जलूस ३१ मैमनत मानूस जरब दारुल-खैर अजमेर । एक तरफ़ -कीन विक्टोरिया मलका मोअज्जमा इंग्लिस्तान व हिन्दुस्तानं । दूसरी तरफ़-जरब कुचामन इलाके जोधपुर सने ईसवी १८६३ । १. यह लेख इसपर वि० सं० १९२० (ई. स. १८६३) में लिखा गया था। ६४८ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट - राव अमरसिंहजी | यह जोधपुर-नरेश राजा गजसिंहजी के ज्येष्ठ पुत्र थे और इनका जन्म वि० सं० १६७० की पौष सुदि ११ ( ई० स० १६१३ की १२ दिसम्बर) को हुआ था । इनकी प्रकृति में, प्रारम्भ से ही, स्वतन्त्रता की मात्रा अत्यधिक होने से इनके पिता ने इनके छोटे भ्राता जसवन्तसिंहजी को अपना उत्तराधिकारी मनोनीत कर लिया था । इसपर यह जोधपुर-राज्य की आशा छोड़, वि० सं० १६८५ ( ई० स० १६२८ ) में, कुछ चुने हुए राठोड़ सरदारों के साथ, बादशाह शाहजहाँ के पास चले गए । बादशाह ने, इनकी वीर और स्वतन्त्र प्रकृति से प्रसन्न होकर, इन्हें बड़े आदर और मान के साथ अपने पास रख लिया और साथ ही सवारी के लिये एक हाथी भी दिया। इसके बाद यह शाही सेना के साथ रहकर युद्धों में बराबर भाग लेने लगे । इनकी रणाङ्गण में प्रदर्शित वीरता और निर्भीकता को देखकर, वि० सं० १६८६ की पौष सुदि १ ( ई० स० १६२१ की १४ दिसम्बर) को, बादशाह ने इन्हें दो हजारी जात और १३०० सवारों का मनसब दिया । इसके करीब चार वर्ष बाद वि० सं० १६९१ की पौष वदि ३० ( ई० स० १६३४ की १० दिसम्बर) को यह अपने अपूर्व साहस के कारण दाई-हजारी जात और डेढ़ हजार सवारों के मनसब पर पहुँच गए । इसके साथ ही बादशाह ने इन्हें एक हाथी, एक घोड़ा और एक झंडा देकर इनका मान बढ़ाय । १. कहीं कहीं वैशाख सुदि ७ भी लिखा मिलता है ( ? ) २. बादशाहनामा, भा० १, दौर १, पृ० २२७ । ३. बादशाहनामा, भा० १, दौर १, पृ० २६१ | ४. बादशाहनामा, भा० १, दौर २ पृ० ६५ । ख्यातों में इनका महाराजा गजसिंहजी के बुलाने पर वि० सं० १६०१ की पौष वदि 8 को, पहले-पहल लाहौर में बादशाह से मिलना और उसका इन्हें वहीं पर ढाई हज़ारी जात और डेढ़ हजार सवारों का मनसब तथा पाँच परगनों की जागीर देना लिखा है । परन्तु टॉडने इस घटना का वि० सं• १६६० ( ई॰ स० १६३४ ) में होना माना है । ( देखो, राजस्थान का इतिहास ( क्रुक संपादित ) मा० २, १०६७६ ) । te Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास इसके अगले वर्ष यह बुंदेले वीर घुझारसिंह को दण्ड देने के लिये सैयद खाँजहाँ के साथ रवाना हुए। जब धामुनी के किले पर शाही-सेना का अधिकार हो गया, तब यह अपनी सेना के साथ, प्रभात होने की प्रतीक्षा में, बाहर ही ठहर गए। ऐसे समय में इधर-उधर घूमते हुए लुटेरों के हाथ की मशाल से चिनगारी झड़कर किले के बारूदखाने में आग लग गई। इससे किले की एक बुर्ज के उड़ जाने के कारण बाहर की तरफ़, उसके नीचे खड़ी शाही सेना के ३०० योद्धा दबकर मर गए । इन योद्धाओं में अधिक संख्या अमरसिंहजी के सैनिकों की होने से उस समय इन्होंने, बड़ी दृढ़ता और साहस के साथ अपनी सेना के हताहतों का प्रबन्ध किया और सेना के प्रबन्ध में किसी प्रकार की गड़बड़ न होने दी । इससे प्रसन्न होकर बादशाह शाहजहाँ ने माघ सुदि १२ (ई० स० १६३५ की १९ जनवरी) को इनका मनसब बढ़ाकर तीन हजारी जात और डेढ़ हजार सवारों का कर दिया। इसके बाद जब साहू भोंसले ने, निजामुलमुल्क के कुटुम्ब के एक बालक को ग्वालियर के किले के कैदखाने से निकाल कर, बगावत का झण्डा खड़ा किया, तब स्वयं बादशाह शाहजहाँ सेना लेकर दौलताबाद पहुँचा और वहाँ से उसने भोंसले को दबाने के लिये तीन सेनाएँ रवाना की। उनमें खाँदौरां के साथ की सेना के अग्रभाग में अमरसिंहजी की सेना रक्खी गई थी। उक्त उपद्रव के शान्त हो जाने पर, वि० सं० १६१३ । ई० स० १६३७) में, यह दरबार में लौट आए । इसपर बादशाह ने इन्हें खिलअत, चाँदी के साज़ का घोड़ा और तीन हजार जात तथा दो हजार सवारों का मनसब देकर इनका सत्कार किया । अगले वर्ष जिस समय शाहजादा शुजा, शाही लश्कर के साथ, कन्धार की तरफ़ मेजा गया, उस समय बादशाह ने अमरसिंहजी को मी खिलत, रुपहरी जीनका घोड़ा और नकारा देकर उसके साथ रवाना किया । १. बादशाहनामा, मा० १, दौर २ पृ० ६६ । २. बादशाहनामा, भा॰ १, दौर २, पृ० ११० । ३. बादशाहनामा, भा• १ दौर २, पृ० १२४ । ४. बादशाहनामा, भा० १, दौर २, पृ० १३६-१३८ । ५. बादशाहनामा, भा॰ १. दौर २, पृ. २४६-२४८ । ६. बादशाहनामा, मा॰ २, पृ० ३७ । ६५० Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राव अमरसिंहजी वि० सं० १६६५ की ज्येष्ठ सुदि ३ ( ई० स० १६३८ की ६ मई) को इनके पिता राजा गजसिंहजी का स्वर्गवास हो गया । उस समय यह शाहजादे शुजा के साथ काबुल में थे । इसलिये शाहजहाँ ने इनके पिता की इच्छा के अनुसार इनके छोटे भ्राता जसवन्तसिंहजी को राजा का ख़िताब देकर जोधपुर का अधिकारी नियत कर दिया और अमरसिंहजी को राव की पदवी देकर नागौर का परगना जागीर में दिया। इसी के साथ इनका मनसब भी तीन-हजारी जात और तीन हजार सवारों का कर दिया। अगले वर्ष के प्रारम्भ (ई० स० १६३६ ) में बादशाह ने अमरसिंहजी की वीरता से प्रसन्न होकर पहले उन्हें एक सवारी का घोड़ा और फिर एक हाथी उपहार में दिया । वि० सं० १६९८ (ई० स० १६४१ के मार्च ) के प्रारम्भ में बादशाह ने राव अमरसिजी को शाहजादे मुराद के साथ फिर एक बार काबुल की तरफ़ भेजा। इस बार भी इन्हें खिलअत, रुपहरी साज़ का घोड़ा और सवारी का हाथी दिया गया। परन्तु इस घटना के पाँच मास बाद ही राजा बासू के पुत्र जगतसिंह के बागी हो जाने से बादशाह ने राव अमरसिंहजी और शाहजादे मुराद को, उसके उपद्रव को शान्त करने के लिये, काबुल से स्यालकोट होते हुए पैठन की तरफ जाने की आज्ञा दी। इसके बाद जब जगतसिंह ने, परास्त होकर, शाही अधीनता स्वीकार कर ली, तब करीब सात मास के बाद यह शाहजादे के साथ, लौटकर बादशाह के पास चले गएँ। इसी बीच ईरान के बादशाह ने कंधार-विजय का विचार कर उस पर अधिकार करने के लिये अपनी सेना खाना की । इसकी सूचना पाते ही बादशाह ने राव अमरसिंजी को, शाहजादे दाराशिकोह के साथ रहकर, ईरानी सेना को रोकने की आज्ञा दी । इस अवसर पर इनका मनसब चार-हजारी जात और तीन हजार सवारों का कर, इन्हें खिलअत के साथ ही सुनहरी साज का एक घोड़ा भी दिया । अन्त १. बादशाहनामा, भा॰ २, पृ० ६७ । २. बादशाहनामा, भा॰ २, पृ. १४५ । ३. बादशाहनामा, भा॰ २, पृ० २२८ । ४. बादशाहनामा, भा॰ २, पृ. २४० । ५. बादशाहनामा, भा॰ २, पृ० २८५ । ६. बादशाहनामा. भा॰ २, पृ० २६३-२६४ । (इस मनसब का उल्लेख बादशाहनामा, भा॰ २, पृ० ७२१ पर भी दिया गया है।) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास में शीघ्र ही ईरान के बादशाह के मर जाने से, वि० सं० १६६६ के कार्तिक ( ई० स० १६४२ के अक्टोबर ) में यह ख़ाँ दौराँ नसरतजंग के साथ वापस लौट आएं। इसके कुछ दिन बाद बीमार हो जाने के कारण राव अमरसिंहजी ने दरबार में जाना बन्द कर दिया । परन्तु स्वस्थ होने पर जब यह दरबार में उपस्थित हुए, तब बादशाह के बख़्शी सलाबतखाँ ने द्वेषवश इनसे कुछ कड़े शब्द कह दिए । बस फिर क्या था । रावजी की स्वतन्त्र प्रकृति जाग उठी । इससे इन्होंने, बादशाही दरबार का और स्वयं बादशाह की उपस्थिति का कुछ भी विचार न कर, शाही बख़्शी सलाबतख़ाँ के कलेजे में अपना कटार भोंक दिया और इनके इस प्रहार से वह, एक बार छटपटाकर, वहीं ठंडा हो गया । १. बादशाहनामा, भा० २ पृ० ३१० । २. ऊपर लिखा जा चुका है कि राव अमरसिंहजी को बादशाह की तरफ से नागौर का प्रान्त जागीर में मिला था । नागौर और बीकानेर की सरहद मिली होने से एक बार, एक तुच्छसी बात के लिये रावजी और बीकानेर- नरेश कर्णसिंहजी के आदमियों के बीच सरहदी फगड़ा उठ खड़ा हुआ । उस समय रावजी के मनुष्य निःशस्त्र और बीकानेरवाले हथियारों से लैस थे । इससे बीकानेरवालों ने उनमें से बहुतों को मार डाला । जैसे ही इस घटना की सूचना आगरे में अमरसिंहजी को मिली, वैसे ही इन्होंने अपने आदमियों को इसका बदला लेने की प्राज्ञा लिख भेजी। इसपर बीकानेर नरेश कर्णसिंहजी ने, दक्षिण से पत्र लिखकर, बादशाही बख्शी सलाबतखाँ को अपनी तरफ कर लिया । इसलिये उसने शाही अमीन द्वारा झगड़े की जाँच करवाने की आज्ञा निकाल कर रावजी के आदमियों को बीकानेरवालों से बदला लेने से रोक दिया । यही इनके आपस के द्वेष का कारण था | (देखो —' बादशाहनामा', भा० २ पृ० ३८२ ) ३. ख्यातों में लिखा है कि सलाबतखाँ ने उन्हें गँवार कहकर सम्बोधित किया था । इस विषय का यह दोहा प्रसिद्ध है: - " उया मुखतै गग्गो कह्यो, इण कर लई कटार । वार कह पायो नहीं, जमदढ हो गइ पार ॥ , अर्थात् सत्रातखाँ ने गँवार कहने के लिये मुँह से 'गँ' शब्द ही निकला था कि राव अमरसिंहजी ने कटार हाथ में ले लिया, और उसके 'वार' कहने के पहले ही रावजी का वह कटार उसके कलेजे के पार हो गया । बादशाहनामे में इनकी वीरता के विषय में लिखा है: 'अमरसिंह जैसा जवान, जोकि राजपूतों के ख़ानदानों में अपनी असालत और बहादुरी में मुमताज़ था, और जिसके हक में बादशाह गुमान रखता था कि किसी बड़ी लड़ाई में अपने रिश्तेदारों ६.५२ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राष श्रमरसिंहजी ख्यातों में लिखा है कि इन्होंने क्रोध के आवेश में, आगे बढ़, बादशाह पर भी तलवार का वार किया था, परन्तु तलवार के तहत से टकरा जाने से वह वार खाली गया और इतने में बादशाह भागकर जनाने में घुस गया। यह देख वहां पर उपस्थित अमीरों में से खलीलउल्लाखा और अर्जुन गौड़ ने रावजी पर आक्रमण किया । परन्तु जब वे दोनों इस क्रुद्ध राठोड़ वीर के सामने सफल न हो सके, तब अन्य ६-७ शाही मनसबदारों और गुर्जबरदारों ने, रावजी को घेर कर, इनपर तलवार चलाना शुरू किया । यद्यपि रावजी ने भी निर्भीक होकर इन सब से लोहा लिया, तथापि अभिमन्यु की तरह शाही महारथियों से घिर जाने के और हमकौमवालों के साथ जान देकर शौहरत हासिल करेगा।" (देखो-भा, २ पृ० ३८१) कर्नल टॉडने लिखा है-अमरसिंह अपनी वीरता के लिये विख्यात था। यह अपने पिता के किए हुए दक्षिण के युद्धों में हमेशा सब से आगे रहा करता था।" ( देखो-राजस्थान का इतिहास, भा॰ २ पृ. ६४५) १. कर्नल टॉडने अपने राजस्थान के इतिहास में लिखा है "एक बार राव अमरसिंहजी (बिना शाही आज्ञा प्राप्त किए ही) शिकार को चले गए और इसी से यह पन्द्रह दिनों तक शाही दरबार में अनुपस्थित रहे । इसके बाद जब यह लौटे, तब बादशाह ने इन्हें, इनके इस प्रकार गैरहाज़िर रहने के कारण, जुर्माने की धमकी दी । परन्तु इसके उत्तर में इन्होंने निर्भीकता से अपने शिकार में चले जाने का उल्लेख कर, जुर्माना देने से साफ इनकार कर दिया और साथ ही अपनी तलवार पर हाथ रखकर उसे ही अपना सर्वस्व बतलाया। इससे बादशाह क्रुद्ध हो गया और उसने शाही बख्शी को इनके स्थान पर जाकर जुर्माना वसूल करने की आज्ञा दी। इसी के अनुसार जब उसने वहां पहुँच कर इनसे शाही आज्ञा का पालन करने को कहा, तब इन्होंने वैसा करने से साफ इनकार कर दिया । इससे शाही बख्शी सलाबतखाँ और अमरसिंहजी के बीच मगड़ा हो गया। इसके बाद बख्शी के शिकायत करने पर बादशाह ने इन्हें तत्काल ही दरबार में उपस्थित होने की आज्ञा दी । परन्तु जिस समय यह दरबार में पहुँचे, उस समय इन्होंने बादशाह को गुस्से में बैठे और बख्शी को अपनी शिकायत करते पाया । यह देख इनका क्रोध भड़क उठा और इन्होंने आगे बढ़ सलाबतखाँ पर कटार का वार कर दिया। इसके बाद इन्होंने तलवार का एक वार बादशाह पर भी किया था, परन्तु जल्दी में इनकी तलवार खम्भे से टकरा कर टूट गई और बादशाह तहत छोड़ कर ज़नाने में भाग गया ।" (देखो-राजस्थान का इतिहास ( क्रुक संपादित ), भा॰ २, पृ० १७६-६७७) २. कर्नल टॉडने इसको रावजी का साला लिखा है। ( देखो-राजस्थान का इतिहास, भा॰ २, पृ० ६७७) ६५३ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास कारण अन्तमें यह वीर-गति को प्राप्त हो गएं । यह घटना वि० सं० १७०१ की सावन सुदि २ ( ई० स० १६४४ की २५ जुलाई ) की है । इसकी सूचना पाते ही किले में उपस्थित रावजी के पन्द्रह राजपूत वीरों ने शाही पुरुषों पर हमला कर दिया, और कुछ ही देर के युद्ध में वे भी दो शाही अफसरों और ६ गुर्जबरदारों को आहत कर रावजी का अनुसरण कर गए । जब यह संवाद रावजी के डेरे पर पहुँच कर आस-पास के लोगों को ज्ञात हुआ, तब चाँपावत बल्लू और राठोड़ बिहारसिंह आदि ने, राव अमरसिंहजी के बचे हुए आदमियों से मिल कर, अर्जुन गौड़ को मार डालने का इरादा किया । परन्तु इस विचार को कार्य में परिणत करने के पूर्व ही बादशाही सेना ने उन लोगों को घेर लिया। इस प्रकार शाही फौज से घिर जाने पर वे भी निर्भीकता के साथ उससे भिड़ गए और अन्त में अनेक शाही सेना-नायकों को मारकर वीर-गति को प्राप्त हुए । १. बादशाहनामा भा० २, पृ० ३८०-३८१ । वि० सं० १६९५ के ताम्रपत्र से ज्ञात होता है कि राव अमरसिंहजी ने इसी वर्ष फीरोज़पुर नाम का (कुचेरे परगने का) गांव एक चारण को दान दिया था। आगरे में यमुना के किनारे पर रावजी का अन्त्येष्टि-संस्कार किया गया था । इनकी दो रानियाँ तो वहीं पर इनके साथ सती हुई और तीन बाद में नागौर में और एक उदयपुर में सती हुई । रावजी पर और इनके वंशजों पर जो छतरियाँ बनाई गई थीं, वे अब तक नागौर में विद्यमान हैं। कहीं-कहीं रावजी की लाश का यमुना में बहा दिया जाना भी लिखा है । कर्नल टॉडने अपने राजस्थान के इतिहास में अमरसिंह की हाडी रानी का स्वयं आकर किले से अपने पति की लाश ले जाना और उसके साथ सती होना लिखा है। (देखो भा० २, पृ. ६७८) २. बादशाहनामे में इस घटना का हि. स. १०५४ सल्ख (चाँदरात ) जमादि उल-अव्वल 'पंजशबा' (गुरुवार ) को होना लिखा है। (देखो, भा॰ २, पृ० ३८०) ३. ये दोनों पहले रावजी के पिता की और फिर स्वयं रावजी की सेवा में रह चुके थे । परन्तु इस ममय ये बादशाही नौकरी में थे । मारवाड़ की तवारीखों में बिहारसिंह के स्थान पर भावसिंह पावत का नाम लिखा मिलता है । यह शायद नाहडसर का पुराना जागीरदार या। कर्नल टॉडने भी चाँपावत बल्लू और कुंपावत भाऊका केसर से रंगे वस्त्र पहन कर आगरे के लाल किले में मार-काट मचाना और वहीं पर वीरगति को प्राप्त होना लिखा है। ( देखो-राजस्थान का इतिहास, भा॰ २, पृ०६७७-९७८) ४. बादशाहनामा, भा० २ पृ० ३८३-३८४ । ६५४ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राव अमरसिंहजी राव अमरसिंहजी के दो पुत्र थे । रायसिंह और ईश्वरीसिंह । कर्नल टॉड ने अपने राजस्थान के इतिहास में लिखा है कि "आगरे के किले के जिस द्वार से घुसकर अमरसिंह के योद्धाओं ने अपने स्वामी का बदला लेने में प्राण दिए थे, वह 'बुखारा दरवाजा' उसी दिन से बन्द कर दिया गया था ।" इस घटना के कुछ मास बाद बादशाह ने स्वर्गवासी राव अमरसिंहजी के पुत्र रायसिंह को एक हजारी जात और सात सौ सवारों का मनसब दिया । इसके बाद रायसिंह शाही दरबार में बराबर तरक्की करता रहा, और वि० सं० १७१५ ( ई० स० १६५१ ) में जब औरंगजेब ने खजवा के निकट शुजा को हराकर भगा दिया, तब कुछ समय बाद उसने महाराजा जसवन्तसिंहजी से बदला लेने के लिये इसी रायसिंह को चार-हजारी जात, चार हजार सवारों का मनसब, राजा का ख़िताब और जोधपुर का राज्य लिख दिया था । परन्तु महाराजा जसवन्तसिंहजी के प्रभाव के आगे यह कार्य पूर्ण न हो सका । वि० सं० १७३३ में रायसिंह की मृत्यु हो गई । इसलिये बादशाह औरंगजेब ने इसके पुत्र इन्द्रसिह को अपना मनसबदार बना लिया। इसके बाद, वि० सं० १. इसका जन्म वि. सं. १६६० की आश्विन सुदि १० को हुआ था। २. इसका जन्म वि० सं० १६४८ की द्वितीय ज्येष्ठ वदि १३ को हुआ था। ३. उसके बाद यह दरवाजा पहले-पहल, वि० सं० १८६६ (ई. स. १८०६) में, कैप्टिन स्टील द्वारा खोला गया था। वहीं पर फुट नोट में कर्नल टॉड ने लिखा है कि स्वयं कैटिन स्टील ने उनसे कहा था कि, जिस समय उक्त द्वार फिर से खोला जाने लगा, उस समय वहाँ के निवासियों ने उस से कहा कि यह द्वार जब से बन्द किया गया है, तभी से इसमें एक बड़ा अजगर निवास करता है । इसलिये सम्भव है कि इसके खोलने से खोलने वाले पर कुछ संकट आ पड़े। इसके बाद वास्तव में जब दरवाजे के खोलने का कार्य समाप्ति पर प्राया, तब उसमें से एक भयंकर अजगर निकल कर कैटिन स्टील के पैरों की तरफ मपटा । परन्तु भाग्यवश वह भागकर मृत्यु-मुख से बच गया। ( टॉड्स ऐलानाल्स ऐण्ड ऐण्टिक्विटीज़-ऑफ राजस्थान ( क्रुक संपादित ), भा॰ २, पृ. ६७८-६७६ ) आगरे के किले का यही दक्खनी द्वार आजकल अमरसिंह के दरवाजे के नाम से प्रसिद्ध है। ४. बादशाहनामा, भाग २, पृ. ४.३ । वि. सं. १७०५ (६) के रायसिंहजी के ताम्रपत्र से ज्ञात होता है कि इन्होंने और इनके भाई ईश्वरीसिंह ने ईदोखली नामक ( रूण परगने का ) एक गांव चारण को दान दिया था। ५. मालमगीरनामा. पृ. २८८ । ६. इसका जन्म वि. सं. १७०७ की ज्येष्ठ सुदि १२ को हुआ था। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास १७३५ ( ई० स० १६७८ ) में, जब महाराजा जसवन्तसिंहजी का स्वर्गवास हो गया, तब कुछ काल बाद एक बार फिर बादशाह ने, महाराज के साथ के पुराने वैर को यादकर, इन्द्रसिंह को 'राजा' के ख़िताब के साथ जोधपुर का शासन-भार सौंप दिया । परन्तु इस बार भी स्वर्गवासी महाराज के स्वामि-भक्त सरदारों के आगे इन दोनों की एक न चली। इन्द्रसिंह का मनसब शायद पाँच हजारी जात और दो हजार सवारों तक पहुंचा था। _इसके बाद वि० सं० १७७३ ( ई० म० १७१६) में महाराजा अजितसिंहजी ने इन्द्रसिंह से नागौर छीन लिया, लेकिन वि० सं० १७८० ( ई० स० १७२३ ) में बादशाह मोहम्मदशाह ने महाराज से नाराज होकर नागौर का अधिकार फिर उसे लौटा दिया । अन्त में वि० सं० १७८२ (ई० स० १७२६ के मार्च) में, महाराजा अभयसिंहजी ने उक्त नगर पर अन्तिम बार अधिकार कर वह प्रान्त अपने छोटे भाता राजाधिराज बख़तसिंहजी को दे दिया। वि० सं० १७८६ (ई० स० १७३२) में जिस समय दिल्ली में इन्द्रसिंह का देहान्त हुआ, उस समय बादशाह की तरफ से सिरसा, भटनेर, पनिया और बैहणीवाल के परगने उसकी जागीर में थे। १. मासिरे आलमगीरी, पृ० १७५.१७६ । २. ये बातें नागौर के शासक बखतसिंहजी के मंत्री द्वारा, वि. सं. १७८९ की कात्तिक वदि १२ को नागौर से लिखे, महाराजा अभयसिंहजी के शाही दरबार में रहनेवाले वकील के नाम के, पत्र से प्रकट होती हैं। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विभिन्न युद्धों में लड़कर मारे गए कुछ वीरों के नाम परिशिष्ट - १०. मारवाड़ - नरेशों की तरफ़ से विभिन्न युद्धों में लड़कर मारे गए कुछ वीरों के नाम । ११. राव चंडाजी | वि० सं० १४८० ( ई० ० १४२३ ) में, नागोर के, भाटियों, सांखलों और मुसलमानों के साथ के सम्मिलित युद्ध मे मारे गए रावजी के कुछ वीरों के नाम:पूना - गहलोत ( दौला का पुत्र), हडभू-सोढा, बालू-ऊहड़ । १५. राव जोधाजी वि० सं० १४९५ ( ई० स० १४३८ ) में, मेवाड़वालों के साथ के, चीतरोड़ी के युद्ध में मारे गए राव जोधाजी के कुछ योद्धाओं के नाम: 1 चरड़ा-राठोड़ ( अड़कमाल का पुत्र और राव चूंडाजी का पौत्र ), चांदरावराठोड़ ( चरड़ा का भाई ), पूना - राठोड़ ( राव चूंडाजी का पुत्र ), शिवराज राठोड़ (राव चूंडाजी का पुत्र ), राणा पृथ्वीराज - ईंदा ( राजसिंह का पुत्र और उगमसिंह का पौत्र ) । उपर्युक्त युद्ध के बाद कपासण के युद्ध में मारे गए राव जोधाजी के कुछ वीरों के नाम: मांडण - ऊहड़ राठोड़, विजा-राठोड़ ( रावल मल्लिनाथजी का पौत्र ), कूंपाराठोड़ ( चाहडदेवोत ), पाता - राठोड़ । (१) कई ख्यातों में इन युद्धों में मारे गए योद्धाओं के नामों में कुछ भिन्नता भी पाई जाती है । उस समय मारवाड़ के नरेश अपनी निजी वेतन भोगी सेना न रखकर अपने कुटुम्बियों, सम्बन्धियों और सेवकों को युद्ध के समय, अपने योद्धाओं को लेकर, सेवा में उपस्थित होने के लिये, जागीरें दिया करते थे और युद्धों में उनमें से बहुतों के मारे जाने पर भी कुछ चुने हुए लोगों के नाम ख्यातों में लिख लिए जाते थे । इसीसे इन नामों में भिन्नता मिलती है । ऐसी दशा में इस सूची को हम पूरी नहीं कह सकते । इस सूची को पूरी तौर से तैयार करने के लिये तारीख १२ और १६ अगस्त १९३६ के जोधपुर- गवर्नमेन्ट गज़ट में सूचना भी प्रकाशित की गई थी । परन्तु लोगों ने उस पर विशेष ध्यान नहीं दिया । ख़ास ख़ास वीरों के नाम इतिहास में यथास्थान भी दिए गए हैं । अनुक्रमणिका में इस सूची के पृष्ठों का समावेश नहीं हो सका है । ६माउ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास वि० सं० १५१० ( ई० स० १४५३ ) में, चौकड़ी के, सीसोदियों के साथ के युद्ध में मारे गए राव जोधाजी के कुछ व.रों के नामः___वैरसलजी-राठोड, भैरोजी राठोड़। इसके बाद मंडोर पर अधिकार करते समय मारे गए राव जोधाजी के कुछ योद्धाओं के नामःदामा राठोड़ (रायपालोत ), माला, सोडा-गूजर । १६. राव सातलजी। वि० सं० १५४८ ( ई० स० १४११) में, कोसाने के पास, मल्लूखाँ के साथ के युद्ध में मारे गए राव सातलजी के कुछ वीरों के नामः - देवीसिंह-ऊहड़, जवानसिंह-खीची, भैरूंदास-खीची। १८. राव गांगाजी । वि० सं० १५८५ (ई० स० १५२६) में, सेवकी के, शेखा और खाँ जादे दौलतखाँ के साथ के युद्ध में मारे गए राव गांगाजी के कुछ वीरों के नामः किशनसिंह-चांपावत, अमरा-मंडलावत । वि० सं० १५८८ ( ई० स० १५३१ ) में, वीरमजी के साथ के, सोजत के युद्ध में मारे गए राव गांगाजी के कुछ योद्धाओं के नाम:वैणा-राठोड़, सहसा राठोड़ । १६. राव मालदेवजी। वि० सं० १५१८ (ई० स० १५४१) में, राव जैतसीजी पर के, सूवा के आक्रमण में मारे गए राव मालदेवजी के कुछ वीरों के नाम: रायमल राठोड़, जगतमाल राठोड़ । वि० सं० १६०० ( ई० स० १५४३) में, गिररी के पास के, शेरशाह के साथ के युद्ध में मारे गए राव मालदेवजी के कुछ वीरों के नामः जैता-राठोड़ (बगड़ी), कुंपा-राठोड़ : मेहराजोत ), वैरसी राठोड़, जैमल-राठोड़ (बीदावत ), खींवकरण-ऊदावत राठोड, जैतसी ऊदावत, पंचायण-करम ६५८ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विभिन्न युद्धों में लड़कर मार गए कुछ वीरों के नाम सोत राठोड, सुरताण-राठोड़, बीदा-बाला राठोड ( भारमलोत ), रायमलराठ ड (अखैराजोत ), भवानीदास-राठोड़, हम्मीर-राठोड़ ( सीहावत ), भोजा-राठोड़ ( पंचायणोत ), हरपाल-राठोड़, उदैसिंह-जैतावत, भदापंचायणोत, जोगा-रावलोत, भारमल-बालावत, पता-कान्हावत (अखैराजोत), कल्याण-भीवोत, भानीदास-रावलोत, हरदास ( खंगारोत ), नींबा-अणदोत, पंचायण-भाटी ( जोधावत ), गांगा भाटी ( वरजांगोत ), महेश-भाटी (अचलावत), कल्याण भाटी (आपमलोत ), नींबा-भाटी (पातावत ), सूरा-भाटी ( पर्वतोत ), हम्मीर भाटी ( लाखावत ), माधोदास-भाटी ( राघोदासोत ), वीरा-ऊहड़ ( लाखावत ), सुरजन-ऊहड़, अखैराजसोनगरा, भोजराज-सोनगरा, बीजा-सोनगरा (अखैराजोत), नाथा-सोढा ( देदावत ), डूंगरसी-सांखला ( दामावत ), धनराज-सांखला (दामावत ), हेमा-मांगलिया (नरावत ), किशना-चारण, भाना-दधवाड़िया, मला दादखा-पठान । वि० सं० १६०१ (ई० स० १५४४ ) में, शेरशाह के, जोधपुर के किले परके, आक्रमण में मारे गए राव मालदेवजी के कुछ वीरों के नाम: शंकर-ऊदावत (जैतसीहोत ), अचला-राठोड़ (शिवराजोत ), तिलोकसी राठोड (वरजांगोत), राणा-राठोड़ (वीरमोत), सिंघण-राठोड़ (खेतसीहोत), पता-चरड़ा राठोड़ (दुर्जनसालोत), जैतमाल-भाटी, शंकर-भाटी (सूरावत), माला-जैसा भाटी, भोजा-भाटी (जोधावत), बीजा-भाटी (जोधावत), नाथू-भाटी (मालावत ), भैरव-सोहड़, शेखा-ईदा (धनराजोत ), भीखूनायक, नाथा-नायक । वि० सं० १६०३ ( ई० स० १५४६) में, भांगेसर (पाली) के, शाही थाने पर आक्रमण करते समय मारे गए राव मालदेवजी के कुछ योद्धाओं के नाम: ऊंगा-राठोड़ ( वरसिंहोत ), मेहा राठोड़ ( जगन्नाथोत ), जैसा-चांपावत, अभियड-पाता ( भींवोत ), किशना-भाटी ( रामावत ), तेजसी-भाटी ( वणवीरोत ), वीसा-भाटी ( वणवीरोत ) ६५६ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास वि० सं० १६१० (ई० स० १५५३ ) में, जैमलजी के साथ के, मेड़ते के युद्ध में मारे गए राव मालदेवजी के कुछ योद्धाओं के नामः पृथ्वीराज-राठोड़ (जैतावत ), जगमाल राठोड (उदैकरणोत ), धनराज-राठोड़ (भारमलोत), सूजा-राठोड़ (तेजसिंहोत), राघवदेव-ऊदावत (वैरसलोत), नगा-बाला (भारमलोत ), रामा-चांपावत ( भैरूंदासोत ), पृथ्वीराजऊहड़ ( जोगावत ), डूंगरसी-सींधल, रामा-पीपाड़ा, हींगोला-पीपाड़ा, सादूल-चौहान, अभा-पंचोली ( मँमावत ), रतना-पंचोली, मेघा-चाकर । वि० सं० १६१- (ई० स० १५६१ ) में, बादशाह अकबर के सेनापति मिरजा शरफुद्दीन के साथ के, मड़ते के युद्ध में मारे गए राव मालदेवजी के कुछ वीरों के नामः तेजसी राठोड़ ( उरजणोत ), देवीदास राठोड़ ( जैतावत ), भाखरसी-राठोड़ ( जैतावत ;, महेश-राठोड़ (घड़सीहोत ), राजसिंह-राठोड़ (घड़सीहोत ), ईशरदास-राठोड़ (घड़सीहोत ), महेश-राठोड़ (पंचायणोत ), सहसाराठोड़ ( अर्जुनोत ), पूरणमल-राठोड़ (जैतावत ), ईशरदास-राठोड़ ( राणावत ), गोविंद-राठोड़ (राणावत ), पता-राठोड़ (कूपावत ), अमराराठोड़ ( रामावत ), सहसा-राठोड़ ( रामावत ), नेतसी-राठोड़ (सीहावत), जैमल राठोड़ (पंचायणोत ), भांण-राठोड़ ( भोजराजोत ), रामा राठोड़ (भैरूंदासोत ), जैमल-राठोड़ ( तेजसीहोत), अचला-राठोड़ (भाणोत ), सांगा-राठोड़ (रणधीरोत ), भाण-राठोड़ ( भोजराजोत ), राणा-राठोड़, पृथ्वीराज-राठोड़ ( सिंघणोत , हमीर-दूदावत, भीम-बाला ( दूदावत ). अखैराज-राठोड़ ( जगमालोत ), जगमाल राठोड़ (वीरमदेश्रोत ), अमराराठोड़ (आसावत ), भाकरसी राठोड़ (डूंगसीहोत ), रणधीर-राठोड़ ( रायमलोत ), भाखरसी राठोड़ (जैतावत ), पीथा-भाटी (अणदोत ), प्रयाग-भाटी ( भारमलोत ), तिलोकसी-भाटी (परबतोत ), देदा-मांगलिया, वीरम-मांगलिया ( देदावत ), तेजसी-सांखला ( भोजावत ), वीरम-चौहान ( दूदावत), जालप-बारठ, जीवा-बारठ, चेला-बारठ, मेवा-बीलू, भानीदासमुथार, हमजा-तुरक । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विभिन्न युद्धों में लड़कर मारे गए कुछ वीरों के नाम २०. राव चन्द्रसेनजी । वि० सं० १६२२ ( ई० स० १५६५ ) में, जोधपुर पर के आक्रमण के समय, सम्राट् अकबर के सेनापति हुसैनकुली बेग के साथ के युद्ध में मारे गए राव चन्द्रसेनजी के कुछ वीरों के नाम:-- किशनदास - राठोड़ (दुर्जनसालोत), वैरसल-पातावत, बिजा - राठोड़ ( वीरमोत ), राणा - ऊदावत ( वीरमन), गांगा-भाटी (आसावत), प्रासा - भाटी ( जोधावत ), वरणधीर - ईंदा, रासा - ईंदा ( जोगावत ), सूजा सूरा - राठोड़ ( गांगावत), ( नींबाबत ), जैमल - भाटी जोगा - भाटी (सावत), ईंदा ( वरजांगोत ) । वि० सं० १६३६ ( ई० स० १५७६ ) में, सरवाड़ के, बादशाही थाने पर अधिकार करते समय मारे गए राव चन्द्रसेनजी के कुछ वीरों के नाम:-- , सांगा- राठोड़ ( उरजनोत ), करमसी - राठोड़ ( मालावत केशोदास राठोड़ ( जोगावत ), जसवन्त -राठोड़ ( जोगावत ), रायसिंह -चांपावत (भानीदासोत ), डूंगरसी - मालावत, जैमल - ऊहड़ ( नेतसीहोत ), जैतमाल - ऊहड़ ( जैमलोत ), भगवानदास-भाटी ( वीरमदेयोत ), सुरतांग - भाटी ( दूदावत ), अचलामुंहणोत ( सूजावत ), बैणा - ईंदा, दूदा - सांखला । २१. राव रायसिंहजी | वि० सं० १६४० ( ई० स० १५८३ ) में, सिरोही के राव सुरतान के, दताणी के नैश आक्रमण में मारे गए रावजी के कुछ वीरों के नाम: --- केशोदास - राठोड़ (महेशोत ), कान्हा - भाटी ( अभावत ), पूरणमल - राठोड़ ( मांडणोत ), लूणकरण - राठोड़ ( ( कलावत ), गोपाल - राठोड़ ( बीदावत ), ऊदा - राठोड़, रतनसी - भाटी (सावत ), गोपाल - मांग लिया ( भोजावत ), जैमल - मांगलिया, किसना - मांगलिया, राजसी - मांगलिया (राघावत ), शेखा - चौहान, बाला ( सेलोत), खेतसी - धांधल, किशना - आसायच ( गोपालदासोत ), गोरा - पड़िहार ( राघावत ), खेताईंदा, देवा-भंडारी ( ऊदावत ), भांण-पंचोली (प्रभावत ) ईसर - बारठ, रामा - खवास । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat सुरताणोत ), सादूल - राठोड़ ६६१ www.umaragyanbhandar.com Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास २२. राजा उदयसिंहजी। वि० सं० १६४० (ई० स० १५८४) में, मुजफ्फर के साथ के, राजपीपला के युद्ध में मारे गए राजा उदयसिंहजी के कुछ योद्धाओं के नामः गोपालदास-भाटी (राणावत ), सादूल-भाटी . मानावत ।। वि० सं० १६४५ (ई. स० १५८८) में, राव कल्ला के साथ के, सिवाने के युद्ध में मारे गए राजा उदयसिंहजी के कुछ वीरों के नामः-- राणा-राठोड़ ( मालावत ), जगमाल-राठोड़ (बीदावत ), जैसा-राठोड़ (जगमा लोत ), कला-चांपावत, कला-रूपावत (वैरसलोत ), ईशरदास-पातावत (नेतसीहोत ), कान्हा-पीपाड़ा (दुर्जनसालोत ), कला-देवड़ा (महराजोत ) । २३. सवाई राजा शूरसिंहजी । वि० सं० १६५६ (ई० स० १६०२) में, अमरचंपू के साथ के, दक्षिण के युद्ध में मारे गए सवाई राजा शूरसिंहजी के कुछ वीरों के नामः भाण-राठोड़, ( बेठवासिया), वैरसी-जैसा भाटी (रायमलोत)। वि० सं० १६६२ ( ई० स० १६०५ ) में, मांडवी (गुजरात ) के, कोलियों के साथ के युद्ध में मारे गए सवाई राजा शूरसिंहजी के कुछ वीरों के नाम:हरीसिंह-मेड़तिया ( चांदावत ), गोपालदास राठोड़ ( मांडणोत ), जैसिंह-राठोड़ ( करमसीहोत ), गोपालदास राठोड़ (ईडरिया), ईशरदास राठोड़ (नींबावत), जसवंत राठोड़ (कलावत ) ( जाडण ), रायसिंह राठोड़ (ईशरदासोत), किशनसिंह राठोड़ ( मेहाजलोत ), तिलोकसी-राठोड़ (महेशोत ), माधोदास राठोड़ (गोपालदासोत ), कचरा-राठोड (शिवराजोत ), सूरजमल-चांपावत (जैमलोत ), रामदास-चांपावत, भोपत-राठोड (राणावत ), सांवलदास-जोधा ( राणावत ), ठाकुरसी-साहानी (रामदासोत ), पांचासाहनी (नंदावत), माधोदास-मांगलिया ( सादूलोत ), रायसिंह-भाटी (जसावत ), भांण-भाटी (कलावत), कुंभा-चौहान (गोइन्दोत), भोपत-मुहता (मानसिंहोत )। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विभिन्न युद्धों में लड़कर मारे गए कुछ वीरों के नाम वि० सं० १६७२ (ई० स० १६१५) में, अजमेर के पास, किशनगढ़-नरेश किशनसिंहजी के साथ के युद्ध में मारे गए सवाई राजा शूरसिंहजी के कुछ योद्धाओं के नामःकेशवदास राठोड़ (सांवलदासोत ), गोविंददास राठोड़ (राणावत ), तिलोकसी राठोड़ ( सूजावत ), भोपत-राठोड़ (कलावत), पृथ्वीराज-भाटी (करणोत), गोविन्ददास-भाटी ( जसावत), भदा-भाटी ( नारायणदासोत ), गोविन्ददासभाटी (मानावत ), सूजा-भाटी ( भैरवदासोत), कला-भाटी ( कान्होत ), कुंभा-भाटी ( पतावत ), मांना भाटी ( गोविंददासोत), पता-हुल ( भदावत), केशा-पंवार, केशवदास-सांखला, नरहर-चारण (प्रयागोत), साजण-चारण ( सीवावत ), मेघा-गौड़ ( धायभाई )। २४. राजा गजसिंहजी । वि० सं० १६८५ ( ई० स० १६२८ ) में, ( तैपुर-सीकरी के निकट के ) सीसोदरी के किले पर अधिकार करते समय, मारे गए राजा गजसिंहजी के कुछ वीरों के नामःभगवानदास राठोड़ (बाघोत ), गोकलदास-राठोड़ ( बिशनदासोत ), शामसिंह राठोड़ ( जसवन्तोत), नरहरदास-राठोड़ ( कलावत ), बलू-राठोड़, (मेघराजोत ), किशनसिंह राठोड़ ( किशोरदासोत ), साहबखा-राठोड़ ( केशवदासोत ), कान्हदास-राठोड़ ( माधोदासोत ), जगन्नाथ-राठोड़ (खेतसीहोत), सुंदरदास राठोड़ (नारायणदासोत), नरहरदास-राठोड़ ( भानीदासोत), आसकरण-राठोड़ (नींबावत ), दयालदास राठोड़ ( कल्याणदासोत), महेशदास-राठोड़ ( मोहनदासोत), भगवानदास-राठोड़ (सुरताणोत), बलू-भीवोत, गोयंद-खीची (रामदासोत ), तोडर-पंचोली (गोरावत)। २५. महाराजा जसवन्तसिंहजी (प्रथम)। वि० सं० १७१५ ( ई० स० १६५८ ) में, शाहजादे औरंगजेब और मुराद के साथ के, धर्मत के युद्ध में मारे गए महाराजा जसवन्तसिंहजी के कुछ वीरों के नाम: बिट्ठलदास-चांपावत ( गोपालदासोत ), गिरधरदास-चांपावत ( मनोहरदासोत ), कीरतसिंह-चांपावत ( मानसिंहोत ), दयालदास-चांपावत (सूरजमलोत ), Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास ), ( वैणीदासोत ), ( बलरामोत ), द्वारकादास-चांपावत ( बलूत ), भीम -चांपावत ( बिट्ठलदासोत ), बीजाचांपावत, ( हरिदासोत ), नरसिंहदास -चांपावत ( अमरदासोत ), लिवमी - दास-चांपावत ( जोगीदासोत ), रामचंद -चांपावत ( नरहरदासोत ), पताचांपावत (खानावत ), भोजराज -चांपावत, वैणीदास -चांपावत (राजसिंहोत), डूंगरसी-चांपावत, रामदास-चांपावत, किशनसिंह-चांपावत ( खेतसीहोत ), भावसिंह - कूंपावत ( केशोदासोत ), गोरधन - कूंपावत, कल्याणदास-कूंपावत ( वैग्सलोत ), खेतसी - कूंपावत ( बलूच्यत ), लाडख़ाँ-कूंपावत (जैसिंहदेओत), द्वारकादास-कूंपावत ( लाडखाँनोत), अमरा-कूंपावत (हरिदासोत ), दयालदास-कूंपावत ( सूरजमलोत ), सुजान सिंह - कूंपावत ( केशवदासोत ), बलराम-ऊदावत ( दयालदासोत ), वेणीदास - ऊदावत ( दयालदासोत }, वीरमदेव-ऊदावत ( मुकुन्ददासोत सूरदास - ऊदावत देवीदास-ऊदावत ( सूरदासोत ), आसकरण - ऊदावत कुंभकरण-ऊदावत ( बलरामोत ), जुगराज - जैतावत ( कुंभकरणोत ), करणसिंह-जैतावत ( सुजानसिंहोत ), उदैभांग - जैतावत ( भगवानदासोत ), कानसिंह-जैतावत ( गोयंददासोत ), साहब ख़ाँ - जैतावत ( कुंभकरणोत ), गोरधन-जैतावत ( लाडख़ाँनोत, पृथ्वीराज-करमसोत ( दलपतोत), जैतसिंहकरमसोत ( मुकुन्ददासोत ), गिरधरदास- करमसोत ( माधोदासोत ), गोरधनकरमसोत ( माधोदासोत ), इन्द्रभांण - करमसोत ( सबलसिंहोत ), सबलसिंह-मेड़तिया ( उदेसिंहोत ), गरीबदास - मेड़तिया ( सुजाणसिंहोत ), गोपीनाथ-मेड़तिया ( गोकलदासोत ), कल्याणदास -मेड़तिया ( मोहनदासोत ), प्रतापसिंह - जोधा ( करम सीहोत), ईशरदास - जोधा ( महासिंहोत), गोपीनाथ - जोधा ( केशवदासोत ), भीम-जोधा ( जगन्नाथोत ), रतनसिंह - जोधा (गोयंददासोत ), वीरमदे - जोधा ( मोहनसिंहोत ), जगतसिंह - जोधा ( देवीदासोत ), ( गोयंददासोत ), ( मांडणोत ), भगवानदास-पातावत ( छगनोत ), तोगा-पातावत (रामदासोत), सबलसिंह-रूपावत (आसकरणोत ), जसा- भीमोत राठोड़ ( रायमलोत), - भीमोत ( लक्ष्मीदासोत ), अमर सिंह - भीमोत ( सूजावत ), रूपसिंह - मेघराज - ऊहड़ ( उरजणोत ), जगन्नाथ - पातावत ( चांदोत ), नारायणदास - ऊहड़ भगवानदास - पातावत लाघा - ६६४ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विभिन्न युद्धों में लड़कर मारे गए कुछ वीरों के नाम भीमोत, सुरतांण-भीमोत, दुरजणसल-कलावत राठोड़ ( गोयंददासोत ), अमरसिंह-कलावत (सूजावत ), सुजाणसिंह-कलावत, गोयंददास-कलावत ( मानावत ), पूरणमल-कलावत (जसावत ), दुरगादास-भाटी, रत्नसिंहभाटी (लाडखानोत ), माधोदास-भाटी (केशवदासोत ), उदेसिंह-भाटी ( माधोदासोत ), महेशदास-भाटी ( अचलदासोत ), केसरीसिंह-भाटी ( अचलदासोत ), बिशनसिंह-भाटी ( रामचंद्रोत ), सबलसिंह-भाटी (बलूओत), दयालदास-भाटी ( लक्ष्मीदासोत ), जैतमाल-भाटी (जगन्नाथोत), गोकलदास-भाटी (शंकरदासोत ), कुंभा-भाटी (सुरताणोत ), नरसिंहदासभाटी ( भाणोत ), मानसिंह भाटी (गोपालदासोत ), भाण-भाटी (मनोहरदासोत ), भगवानदास-भाटी (रायमलोत ), राजसिंह-भाटी (लाखावत ), रतनसिंह-भाटी (भीमोत ), सुजानसिंह-भाटी (सुंदरदासोत ), रामचन्द्रभाटी ( सादुलोत ), लिखमीदास-भाटी ( ईशरोत ), माधोदास-सोनगरा ( केशवदासोत ), गोकलदास-सोनगरा ( भाखरसीहोत ), गोयंददास चौहान ( रामसिंहोत ), नरसिंहदास-चौहान ( लक्ष्मीदासोत ), जैतसी-चौहान ( सहसमलोत ), राघोदास-चौहान ( सादुलोत ), रामदास-चौहान, दयालदास-चौहान (लक्ष्मीदासोत ), किशनदास-चौहान ( दयालदासोत ), मना-ईंदा ( हरगुणसोत ), दयालदास-ईदा ( जगन्नाथोत ), नाथूसिंह-इंदा ( जैतावत ), चांदसिंह-ईंदा (अचलावत ), सारंग-ईदा ( नरहरदासोत ), जसवंतसिंह-धांधल (ईशरदासोत ), किशना-धांधल ( नारायणोत ), सारंगधांधल (हींगोलावत ), जगमाल-डूंगरोत राठोड़ ( सबलसिंहोत ), गोवर्धनदास-डूंगरोत ( भगवानदासोत ), विहारीदास-डूंगरोत (केशोदासोत ), महेशडूंगरोत (नाहरखाँनोत ), जोगा-डूंगरोत ( वरसिंहोत ), जैतमाल-राठोड़ (सहसमलोत ), राघा-पड़िहार ( केशावत ), सादा-पड़िहार ( भीमावत ), मनोहरदास-म्हेचा ( केशोदासोत), अमरा-पीपाड़ा ( सादूलोत ), जोगीदासखीची ( कलावत ), दलपत-पुरोहित (मनोहरदासोत ), जग्गा-प्रयागोत (फ़ौजदार ), कमा-साहानी ( अखैराजोत ), प्रयागदास (धायभाई ), जगमाल-खिड़िया चारण, रणछोड़दास-श्रीमाली, गोरधन-पंचोली, ताराचन्द (दफ्तरी)। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास (ख्यातों के अनुसार इस युद्ध में ४० चांपावत, २१ कुंपावत, १४ ऊदावत और ७ करमसोत मारे गए थे ।) वि० सं० १७३० ( ई० स० १६७४ ) में, पठानों के साथ के युद्ध में, मारे गए महाराजा जसवन्तसिंहजी के कुछ वीरों के नामः रतन-चांपावत ( बलूश्रोत ), रामसिंह-चांपावत (बलूओत), रामसिंह-चांपावत ( हरीदासोत ), श्यामसिंह-चांपावत (केशोदासोत ), सुजानसिंह-चांपावत (आईदानोत ), राजसिंह-चांपावत ( राघोदासोत ), रायमल-जोधा (केसरीसिंहोत ), प्रतापसिंह-कुंपावत ( हरचंदोत ), देवकरण-कुंपावत (द्वारकादासोत ), किशनसिंह-मेड़तिया (श्यामसिंहोत ), कान्हा-मेड़तिया (गोकलदासोत ), प्रतापसिंह-मेड़तिया ( गोपीनाथोत ), बिशनदास-मेड़तिया ( गिरधरदासोत ), कुशलसिंह-मेड़तिया ( श्यामसिंहोत ), मोहबतसिंहमेड़तिया (सबलसिंहोत ), विजैसिंह-मेड़तिया ( रामसिंहोत ), हरीसिंहकरमसोत । भीमोत ), आसकरण-राठोड़ ( जैतसिंहोत ), मुकुन्ददास-बाला ( कल्याणदासोत ), जगन्नाथ-सीधल ( उरजनोत ), भीम-भाटी (प्रयागदासोत ), श्यामसिंह-भाटी (मुकुन्ददासोत ), दयालदास-भाटी ( केशोदासोत ), राजसिंह-भाटी ( जसवन्तोत), आसकरण-भाटी (मोहनदासोत), केशवदास-भाटी (रतनसिंहोत ), चतुर्भुज-भाटी (करणोत ), पिरथीराजचौहान (रामचंदोत ), हरनाथ-चौहान (मनोहरदासोत), नरहरदासदेवड़ा (अचलदासोत ), केशोदास-कछवाहा (जगन्नाथोत ), साहबखाँकछवाहा ( जगन्नाथोत ), बछराज-पंचोली ( रामचंदोत)। २६. महाराजा अजितसिंहजी । वि० सं० १७३६ (ई० स० १६७९ ) में, बादशाही सेना के साथ के, दिल्ली के युद्ध में मारे गए बालक महाराजा अजितसिंहजी के कुछ वीरों के नामः महासिंह-कुंपावत (खीवावत ), जूंझारसिंह-कुंपावत (रजलाणी ), महेशदास कुंपावत (राजसिंहोत ), हिंदूसिंह-कुंपावत ( सुजाणसीहोत ) ( नाडसर , मोहनदास-कुंपावत (धनराजोत ), भारमल-ऊदावत ( दलपतोत ) (डेह), गोयंददास-ऊदावत ( मनोहरदासोत ) ( सारावड़ा), रघुनाथसिंह-ऊदावत Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विभिन्न युद्धों में लड़कर मारे गए कुछ वीरों के नाम (सूरजमलोत), आसकरण-ऊदावत ( बाधावत ), गोरधन-ऊदावत (रामोत ), जसू-ऊदावत ( अजबसिंहोत ), रणछोड़दास-जोधा ( खैरवा ), विट्ठलदास जोधा (रोहीसी), चन्द्रभाण-जोधा (द्वारकादासोत ) ( पांचला ), कुंभकरण-जोधा, दीपा जोधा ( केशवदासोत ), पिरथीराज-जोधा (वीरमदेप्रोत), महासिंह-जोधा ( जगन्नाथोत ), जगतसिंह-जोधा (रतनसिंहोत ), रामप्तिह-जोधा ( श्यामसिंहोत ), भीम-मेड़तिया, किशनसिंह-मेड़तिया (चांदसिंहोत ), भाकरखा-पातावत, सुन्दरदास-पातावत ( हरीदासोत ), रघुनाथसिंह-भाटी ( लवेरा), उदैभांण-भाटी (खेजड़ला ), सगतसिंहभाटी ( हरदासोत ), द्वारकादास-भाटी, धनराज-भाटी (बीकावत ), जगनाथ-भाटी (विट्ठलदासोत ), सगतसिंह-भाटी ( कल्याणदासोत ), द्वारकादास-भाटी (भाणोत ), गिरधरदास-भाटी ( कानावत), सुंदरदास-भोजराजोत ( ठाकुरसीहोत ), लिखमीदास-मंडला ( नाथावत ), भैरूंदासजैतमालोत (खेतसीहोत ), डूंगरसिंह-जैतमालोत ( लाडखाँनोत), उदयसिंहजैतमालोत ( जगन्नाथोत ), पूरणमल-जैतमालोत (सुंदरदासोत), नराणखाँन-राठोड़ (पातावत ), अखैराज चौहान (कल्याणदासोत ), जोगीदास-सोभावत, किशनदास-मुहता, हरराय-पंचोली। वि० सं० १७३६ ( ई० स० १६७६ ) में बालक महाराजा अजितसिंहजी के जोधपुर में लाए जाने के बाद से वि० सं० १७६५ (ई० स० १७०८ ) में उनके जोधपुर पर स्थायी तौर से अधिकार करने तक समय-समय पर बादशाही सेना से लड़कर मारे गए महाराज के कुछ वीरों के नाम । वि० सं० १७३६ ( ई० स० १६७६ ) के पुष्कर के युद्ध में मारे गए महाराजा अजितसिंहजी के कुछ योद्धाओं के नामः राजसिंह-मेड़तिया ( प्रतापसिंहोत ), गोकुलसिंह-मेड़तिया (प्रतापसिंहोत), रूपसिंह-मेड़तिया, ( प्रतापसिंहोत ), हिम्मतसिंह-ऊदावत, जगतसिंहऊदावत, भोजराज-ऊदावत, आनन्दसिंह ( चतुर्भुजोत ), केसरीसिंह-राठोड़, हरीसिंह-राठोड़, सादूलसिंह राठोड़, महासिंह-चांपावत (केसरीसिंहोत), किशनसिंह-चादावत, नाथूसिंह (कांधलोत), जगतसिंह, हेमसिंह-सोनगरा, हद्दा-मांगलिया। ६६७ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास जोधपुर के युद्ध में मारे गए कुछ वीरों के नामः-- रामसिंह-भाटी। वि० सं० १७३७ (ई० स० १६८०) के खेतासर के युद्ध में मारे गए महाराजा अजितसिंहजी के कुछ योद्धाओं के नामः साहबखाँ-चांपावत ( मथुरादासोत ), खंगार-बाला (द्वारकादासोत ), गोयंददास धवेचा ( वीरमोत ), भावसिंह-धवेचा ( पिरथीराजोत ), मनोहरदाप. राठोड़ ( गोयंददासोत ), अखैराज-राठोड़ ( लाड़खाँनोत ) । देसूरी के पास के युद्ध में मारे गए महाराजा अजितसिंहजी के कुछ वीरों के नामः सूरजमल-ऊदावत ( भींवोत ), इन्द्रमाण-जोधा ( मुकुन्ददासोत ), श्यामसिंह. जोधा ( माधोदासोत ), रूपसिंह-राठोड़ ( अजबसिंहोत ), कानसिंह कुंपावत ( विट्ठलदासोत )। वि० सं० १७३८ ( ई० स० १६८१ ) के महेवा ( मल्लानी ) के युद्ध में मारे गए महाराजा के कुछ वीरों के नामः अचलदास-जोधा ( जसकरणोत ), श्यामसिंह-भाटी, हरिदास-जैतमालोत (लूणोत ), भोजराज राठोड़, नारायणदास-पुरोहित, रुघनाथ-पुरोहित । जोधपुर के आक्रमण में मारे गए महाराजा के कुछ योद्धाओं के नामःलालसिंह-कुंपावत ( रणछोड़दासोत ), खेतसी राठोड, श्यामसिंह-राठोड़ ( बिहारीदासोत ), राजसिंह-राठोड़ ( सबलसिंहोत ), मुकन्ददास-धांधल ( सुन्दरदासोत ), आसा-भाटी (प्रयागदासोत ), किशनसिंह-भाटी ( महेशदासोत ), उदैभांण-भाटी ( रामचदोत ), सुन्दरदास-खीची ( रूपसिंहोत ), फतैसिंह-झाला ( भावसिंहोत ), अखा-जोशी (पुष्करणा ), धना-जोशी (पुष्करणा ), भोजराज-भण्डारी । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विभिन्न युद्धों में लड़कर मारे गए कुछ वीरों के नाम सोजन के युद्ध में मारे गए महाराजा के कुछ वीरों के नाम: कानसिंह-चांपावत ( गिरधरदासोत ), चतुर्भुज-चांपावत ( हरिदासोत ), विजा - राठोड़, किशनसिंह - सोहड़ ( बाघोत ), दला- सींधल, शम्भुपुरीसंन्यासी । पून्दलोता के युद्ध में मारे गए महाराजा के कुछ वीरों के नाम: सोनग-चांपावत ( विट्ठलदासोत ) । डीगराणा ( मेड़ता ) के युद्ध में मारे गए महाराजा के कुछ योद्धाओं के नाम: अजबसिंह-चांपावत ( विट्ठलदासोत ), ( महेशदासोत ), गोपीनाथ - मेड़तिया, अर्जुन -मेड़तिया ! गोपीनाथोत ), आसकरण - चारण । सबलसिंह - चांपावत, हरिसिंह -चांपावत सादूल - मेड़तिया, कुशलसिंह मेड़तिया, घासीराम राठोड़, अनोपसिंह राठोड़, ( ख्यातों में इस युद्ध में २ जैतावतों, ४ मेड़तियों, ४ जोधों, १ भाटी, ३ सेवड़ पुरोहितों, ३ बारठों और १०० अन्य पुरुषों का मारा जाना लिखा है । ) - वि० सं० १७४१ ( ई० स० १६८४ ) के सोजत के युद्ध में मारे गए महाराजा के कुछ वीरों के नाम: सांवतसिंह-चांपावत ( जोगीदासोत ), अनोपसिंह- सोनगरा ( जैतसिंहोत ), रामा-भाटी (मुकनसिंहोत ) । - वि० सं० १७४४ ( ई० स० १६८७ ) के मांडल के युद्ध में मारे गए महाराजा के कुछ वीरों के नाम: दुर्जनसाल-हाडा । मुहम्मदअली के साथ के युद्ध में मारे गए महाराजा के कुछ वीरों के नाम:पृथ्वीसिंह - चाँदावत ( कोसाना ), जैतसिंह - चाँदावत ( डोहा ), मोहकमसिंह - मेड़तिया, हरिरूप-मेड़तिया । ६६६ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat धनराज - राठोड ( कीरतसिंहोत ), बिहारीदास - ऊदावत ( मोहनदासोत ), www.umaragyanbhandar.com Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास वि० सं० १७४९ ( ई० स० १६६२ ) के, बवाल के पास, दुर्गादास पर के काजमबेग के हमले में मारे गए महाराजा के कुछ योद्धाओं के नाम: — राव गुमानीचन्द ( मनोहरपुर ), जैतसिंह राठोड़ ( पिरथीराजोत ), दौलतभाटी ( रघुनाथोत ), हरिचन्द - तिरवाड़ी | वि० सं० १७६२ ( ई० स० १७०६) के, जालोर के, युद्ध में मारे गए महाराजा के कुछ वीरों के नाम: नेतसी-ऊदावत ( बाघावत ), रूपसी - ऊदावत ( बाघावत ), लाडखाँ - मंडला ( अमरावत ) । दूनाड़ा के युद्ध में मारे गए महाराजा के कुछ योद्धाओं के नाम: — दलाराम - मेड़तिया, सूरजमल - भाटी ( जगन्नाथोत ), दौलत सिंह - ऊदावत । वि० सं० १७६५ ( ई० स० १७०८ ) में, सांभर पर के, जोधपुर और जयपुर की सेनाओं के सम्मिलित आक्रमण में मारे गए महाराजा अजितसिंहजी के कुछ वीरों के नाम: भीमसिंह-कूंपावत ( आसोप ), किशनसिंह भाटी (आटण), केसरीसिंह - राठोड़ ( काशीसिंहोत ) । २७. महाराजा अभयसिंहजी । वि० सं० १७८७ ( ई० स० १७३० ) में, महाराजा अभयसिंहजी के, अहमदा बाद पर आक्रमण करने के समय, मारे गए उनके कुछ वीरों के नाम: पहले (आश्विन सुदि १० = १० अक्टोबर के ) युद्ध में मारे गए महाराजा के कुछ वीरों के नाम: - करणसिंह-चांपावत (पाली ), गुलाबसिंह - मेड़तिया ( पांचवा ), मोमसिंहमेड़तिया (सीरासणा), हटीसिंह - जोधा ( जोगीदासोत ), भगवानदासधांधल (बूटेलाव ), केसरी सिंह - पुरोहित ( खैड़ापा ) । ६७० Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विभिन्न युद्धों में लड़कर मारे गए कुछ वीरों के नाम दूसरे ( आश्विन सुदि १२ = १९ अक्टोबर के ) युद्ध में मारे गए महाराजा के कुछ योद्धाओं के नाम: किशनसिंह-चांपावत ( नारनडी), रामसिंह - कूंपावत ( रामासणी), सुरतानसिंहकूंपावत ( सांवतसिंहोत ), अर्जुन सिंह - कूंपावत ( पदमसिंहोत ), भोजराज - सिंह - मेड़तिया ( सूरियावास, शुभनाथसिंह - मेड़तिया ( गोरधनोत ), सरदारसिंह मेड़तिया ( जोरावरसिंहोत ), हठीसिंह जोधा, गुमानसिंह जोधा ( हठीसिंहोत ), ज़ोरावर सिंह - जोधा ( कुशलसिंहोत ), अनोपसिंह शेखावत ( किशन सिंहोत ), सहसमल - भाटी (अखे सिंहोत ( सांवलसिंहोन ), दौलतसिंह सोनगरा ( कुरणा ), दौलतसिंह नरूका ( बखतावर सिंहोत), रणछोड़-पुरोहित ( जैदेवोन), मयाराम-गूजर ( धायभाई), नरहरदास-धांधल, केसरीसिंह खीची ( फतावत ) । ), सुर्जन सिंह चौहान उपर्युक्त युद्ध में मारे गए राजाधिराज बखत सिंहजी के कुछ वीरों के नाम:हटीसिंह-मेड़तिया ( नौख़ाँ ), पदमसिंह - मेड़तिया ( दौलत सिंहोत ), चतुरसिंह - करणोत ( फतेसिंहोत ), करण सिंह - जोधा ( हरनाथोत ), प्रतापसिंहजोधा ( राजसिंहोत ), हिम्मत सिंह भाटी ( जगमालोत ) । वि० सं० १७६८ की आषाढ सुदि ६ ( ई० स० १७४१ की ८ जून ) गंगवाना के युद्ध में मारे गए राजाधिराज बखतसिंहजी के कुछ वीरों के नाम: रूपसिंह-चांपावत ( खाटू ), कनकसिंह - चांपावत ( सूरसिंहोत ), सवाईसिंह चांपावत ( मेरवास ) बिशनदास -चांपावत ( लालावा ), रामदास - मेड़तिया ( माजी ), भवानीसिंह - मेड़तिया ( बिशनदासोत ), भारतसिंह मेड़तिया ( बिशनदासोत ), रूपसिंह जोधा ( पालड़ी ), भोपतसिंह - जोधा ( छापड़ा ), उम्मेदसिंह- मेड़तिया ( नौखां ), लखधीर-मेड़तिया ( नौखां ), संग्रामसिंह - ऊदावत ( सांडीला ), केसरीसिंह ऊदावत ( ऊचारड़ा ) 1 २८ महाराजा रामसिंहजी । वि० सं० १८०७ के कार्तिक ( ई० स० १७५० के अक्टोबर ) में, महाराजा रामसिंहजी और राजाधिराज बखतसिंहजी के बीच के, मेड़ते के युद्ध में मारे गए महाराजा रामसिंहजी के कुछ वीरों के नाम: ६७१ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास शेरसिंह-मेड़तिया ( रीयां ), सूरजमल-मेड़तिया ( भालणियावास ), डूंगरसिंह मेड़तिया ( बिखरणिया ), श्यामसिंह-मेड़तिया (बलूँदा ), सगतसिंहमेड़तिया . मीठड़ी ) सुरतानसिंह-मेड़तिया ( सेवरिया ), अनोपसिंह-जोधा ( देघांणा ), बखतसिंह-जैतावत ( सारंगवास ), सुजाणसिंह-कोठारी ( रीयां)। इसी युद्ध में मारे गए राजाधिराज बखतसिंहजी के कुछ वीरों के नामः कुशल सिंह-चांपावत ( आउवा )। वि० सं० १८०८ के वैशाख ( ई० स० १७५१ के अप्रेल ) में, राजाधिराज के साथ के, सालावास के युद्ध में मारे गए महाराजा रामसिह जी के कुछ वीरों के नामः-- जालमसिंह-मेड़तिया ( कुचामन ), चैनसिंह-मेड़तिया ( जालमसिंहोत ), सुरतांनसिंह-मेड़तिया ( जालमसिंहोत ), बखतसिंह-राठोड़ (इन्दरसिंहोत ) ( मारोठ ), बैरीसाल-राठोड़ (इन्दरसिंहोत ), देवीसिंह राठोड़ (शम्भूसिंहोत ), दुर्जनसिंह-राठोड़ (शम्भूसिंहोत ) ( पांचोता ), भवानीसिंह(सांवतसिंहोत)। ३०. महाराजा विजयसिंहजी। वि० सं० १८११ की आश्विन वदि १३ । ई० स० १७५४ की १४ सितंबर) के, जयापा के साथ के, गंगारड़े के युद्ध में मारे गए महाराजा विजयसिंहजी के कुछ वीरों के नामः-- मोतीसिंह मेड़तिया ( मारोठ ), रामसिंह-मेड़तिया (खूणवा ), सूरसिंह-मेड़तिया ( लूणवा ) जूंझारसिंह-मेड़तिया-( खारिया ), पेमसिंह-चांपावत (पाली), जैतसिंह-चांपावत ( मांडावास ), लालसिंह-चांपावत (सहसमलोत ), अर्जुनसिंह-चांपावत (सूरतसिंहोत ), मोहकमसिंह-चांपावत ( सरवाड़ ), बहादुरसिंह-चांपावत (खाटू), सवाईसिंह-चांपावत (मैसूवास ), ६७२ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विभिन्न युद्धों में लड़कर मारे गए कुछ वीरों के नाम उदैसिंह-चांपावत ( धांधियां ) लखधीर-चांपावत (वरणेल ), भोमसिंहचांपावत ( वरणेल ), कीरतसिंह-चांपावत (हबतसर ), नवलसिंह-चांपावत ( धामली), जोरावरसिंह-चांपावत, ( समाडिया ), शुभकरण-चांपावत (गंठिया), जोरावरसिंह-चांपावत ( जैतपुर ), शुभकरण-भाटी (रामपुरा ), बखतमिह-भाटी। कंटालिया ), कीरतसिंह-भाटी ( खारिया ), पेमसिंह-भाटी ( मेडावास ) महेशदास-भाटी (कीटणोद), जैतसिंह-भाटी (पांतों काबाड़ा) दौलतसिंह-भाटी, लालसिंह-चौहान, सरदारसिंह-महेचा (थोब), दौलतसिंह शेखावत ( लाडखाँनी ) ( ललासरी ) । वि० सं० १८१६ (ई० स० १७६० ) में, चांपावत सबलसिंह आदि बागी सरदारों के साथ के, बीलाड़े के युद्ध में मारे गए महाराजा के कुछ वीरों के नामः-- पृथ्वीसिंह-कूपावत ( चंडावल ), जेठमल-सिंघी । वि० सं० १८२० ( ई० स० १७६३ ) में, महाराजा विजयसिंहजी की फौज की, जालोर पर की चढ़ाई में मारे गए कुछ वीरों के नामः ___ उदैराज-जोधा (पाटोदी ) । वि० सं० १८२२ ( ई० स० १७६५ ) के खानूजी मरहटे के साथ के युद्ध में मारे गए महाराजा के कुछ वीरों के नामः-- ___ नाथूसिंह-मेड़तिया ( चांदावत ), जैतसिंह-भाटी ( बालरवा )। वि० सं० १८२४ (ई० स० १७६७ ) में, जयपुर वालों के भरतपुर-नरेश जवाहरसिंहजी पर के आक्रमण में, भरतपुर-नरेश की तरफ से लड़कर मारे गए महाराजा विजयसिंहजी के कुछ वीरों के नामः-- सूरतसिंह-मेड़तिया ( पदमसिंहोत ) । वि० सं० १८३७ ( ई० स० १७०० ) में, चौबारी नामक स्थान पर, टालपुरा बीजड़ के मारने के समय मारे गए महाराजा के कुछ वीरों के नामः-- हरनाथसिंह-मांडणोत, मोहकमसिंह-पातावत, जोगीदास-बारठ । ६७३ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास वि० सं० १८४४ ( ई० स० १७८७ ) में, जयपुर - नरेश प्रताप सिंहजी की सहायतार्थ किए, मरहटों की सेना के साथ के, तुंगा के पास के युद्ध में मारे गए महाराजा विजयसिंहजी के कुछ वीरों के नाम:-- गजा-मांगलिया, रायसिंह राठोड़ ( हिन्दूसिंहोत ), हररूप - राठोड़ ( नथावड़ी ), दलेलसिंह राठोड़ (ढावा ), उदैसिंह - राठोड़ ( इमाणी), दलेल सिंह - राटोड़ ( संगराम सिंहोत ), शिवसिंह राठोड़ (गैनसिंहोत ), नाथूसिंह - राठोड़ ( घोड़ावड़ ), नवलसिंह राठोड़ (रायण ), जीवनसिंह-मेड़तिया ( मारोठ ), बखतावरसिंह-मेड़तिया ( जवान सिंहोत ), बगता ( बलूंदे ठाकुर का धाय भाई), सुरतान सिंह (बडू ), लालसिंह (सेढाउ ), मोहब्बतसिंह ( बोड़ावड़ ), नवलसिंह चांदावत ( छापरी ), शेरसिंह - चांदावत ( सेजां की बासणी ), साहबसिंह - चांदावत ( जूंझार सिंहोत ) जवान सिंह - ऊदावत ( बनैसिहोत), मालमसिंह ( डूंमाणी ), लालसिंह शेखावत, सेवा - फिटक । उपर्युक्त युद्ध में मरहटों के भागने पर उनका पीछा करते समय सरवाड़ में मारे गए महाराजा के कुछ वीरों के नाम: --- सुंदरसिंह - चांदावत ( भोलादण ) । वि० सं० १८४७ (ई० स० १७६० ) में, माधोजी सिंधिया, तुकोजी और डी. बोइने के साथ के, मेड़ते के पास के युद्ध में मारे गए महाराजा के कुछ योद्धाओं के नाम:-- कनीराम - माधोदासोत ( चांदारूण ), नरसिंहदास ( ईडवा ), फ़कीरदास( श्रालणियावास ), बिशन सिंह - मेड़तिया ( चाणोद ), अजीत सिंह -मेड़तिया ( जवान सिंहोत ), जसवन्तसिंह ( बोयल ), जालिम सिंह - जोधा ( पाटोदी ), जालिम सिंह - शेखावत ( बलाडा ), मालमसिंह ( नाहडसर ), भारथसिंह (सुदणी ), जगतसिंह-चांपावत (पाली ), बदन सिंह ( बोरूंदा ), सूरजमल ( बोरूंदा), पहाड़सिंह भाटी ( बीकूंकोर ), सरदारसिंह- चांदावत ( चौकड़ी ), मानसिंह-चांदावत ( दुदड़ावास ), सूरजमल सिंघी, चांदखाँ । ६७४ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विभिन्न युद्धों में लड़कर मारे गए कुछ वीरों के नाम वि० सं० १८५० ( ई० स० १७९३ ) में, भंवर के युद्ध में मारे गए महाराज - कुमार भीमसिंहजी के साथ के कुछ वीरों के नाम: -- सूरजमल - मेड़तिया ( कुचामण ), हरीसिंह - कूंपावत ( चंडावल ), दानसिंह(सेवरिया ). रूपसिंह-बख्शीरामोत ( नौखां ठाकुर का भाई ) । ३१. महाराजा भीमसिंहजी | वि० सं० १८५८ ( ई० स० १८०१ ) में, साकदड़े के युद्ध में मारे गए महाराजा भीमसिंहजी के कुछ वीरों के नाम: अमरसिंह जोधा (रांमा ), अमानसिंह चांदावत ( जडोली ) । उपर्युक्त युद्ध में मारे गए श्रीमानसिंहजी के कुछ वीरों के नाम: जोध सिंह - श्रर्जुनोत : भाटी ) ( खेजड़ला ठाकुर का छोटा भाई ) । वि० सं० १८६० ( ई० स० १८०३ ) में, जालोर पर के आक्रमण में, मारे गए महराजा भीमसिंहजी के कुछ वीरों के नाम: - बनराज - सिंघी | 1 ३२. महाराजा मानसिंहजी । वि० सं० १८६३ ( ई० स० १८०७ ) में, गांगोली के युद्ध में मारे गए महाराजा मानसिंहजी के कुछ योद्धाओं के नाम: - उदैरूप-भीवांणी ( पटानवीस ) । वि० सं० १८६४ ( ई० स० १८०७) में, जयपुर-नरेश के जोधपुर पर के आक्रमण में मारे गए महाराजा मानसिंहजी के कुछ वीरों के नाम: " शेरसिंह चौहान ( राखी ), बहादुरसिंह - तुंवर, कीरतसिंह सोढ़ा ( जसोल ) | वि० सं० १८६५ ( ई० स० १८०८ ) की बीकानेर पर की चढ़ाई में, ऊदासर के युद्ध में मारे गए महाराजा मानसिंहजी के कुछ वीरों के नाम: हवंतसिंह मेड़तिया (ईडवा ), पहाड़ सिंह - चांदावत ( छापरी ) । ६७५ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास ३३. महाराजा तखतसिंहजी । वि० सं० १९१४ ( ई० स० १८५७) में, श्राउवे के बागी सैनिकों के साथ के युद्ध में मारे गए महाराजा तखतसिंहजी के कुछ वीरों के नाम:अनाड़सिंह पंवार, राजमल लोढ़ा ( राव ) । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ७६ www.umaragyanbhandar.com Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राठोड़-नरेशों के वंशवृक्ष। परिशिष्ट-११. राठोड़-नरेशों के वंशवृक्ष Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com ༴༠༢ मारवाड़ के राठोड़-नरेशों का संक्षिप्त वंशवृक्ष* जयश्चन्द्र ( कन्नौज - नरेश ) 1 ( वि० सं० १२२६- १२५० ई० स० ११७०-११६३ ) हरिश्चन्द्र - वरदायी सेन ( वि० सं० १२५०-१२५३ ई० स० ११६३-११६६ ) सेतराम १ राव सीहाजी ( मारवाड राज्य के संस्थापक ) ( वि० सं० १२६८- १३३०ई० स० १२१२-१२७३ ) २ राव प्रासधानजी (वि० सं० १३३०-१३४६ ई० स० १२७३-१२६२ ) ३ राव धूहड़जी राव सोनग ( पहलीवार ईडर का राज्य स्थापन किया । ) ( वि० सं० १३४६ १३६६ ई० स० १२६२ - १३०६ ) T ४ राव रायपालजी ( वि० सं० १३६६ और १३७० - ई० स० १३०६ और १३१३ के बीच ? ) ५ राव कनपालजी ( वि० सं० १३७० और १३५० ई० स० १३१३ और १३२३ के बीच ? ) I ६ राव जालणसीजी ( वि० सं० १३८० और १३८५ ई० स० १३२३ और १३२८ के बीच ? ) T ७ राव छाडाजी ( वि० सं० १३८५ - ९४०१० स० १३२८-१३४४ ) मारवाड़ का इतिहास Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com ६७६ रावतीडाजी ( वि० सं० १४०१-१४१४-३० स० १३४४-१३५७ ) (8 व कान्हड़देवजी ) I ( १० राघ त्रिभुवनसीजी ) १६ राव सातलजी ( वि० सं० १५४६-१५४६= ई० स० १४८६ - १४६२ ) ( ११ रावल मल्लिनाथजी ) १५ राव जोधाजी (जोधपुर के संस्थापक) वि० सं० १५१०-१५४६ ई० स० १४५३-१४८६ ) ( वि० सं० १४५१-१४८० ई० स० १३६४-१४२३) । १४ राव रिड़मल (रणमल्ल ) जी १३ राव सत्ताजी वि० सं० १४८४-१४६५ ई० स० १४२७-१४३० ) (वि सं० १४८०-१४८४ ई० स० १४२४-१४२७ ) I १७ राव सूजाजी I ६ राव सलखाजी ( वि० सं० १४९४ - १४३१-० स० १३५७-१३७४ ) ( वि० सं० १५४६-१५७२= ई० स० १४६२-१५१५ ) 1 १० राव वीरमजी ( वि० सं० १४३१-१४४० ई० स० १३७४- १३८३ ) । महाराज कुमार बाघाजी ११ राव चुंडाजी (मंडोर - नरेश ) १८ राव गाँगाजी ( वि० सं० १५७२ - १५८६ ई० स० १५१४-६५३२ १२ राव कान्हाजी (वि० सं० १४८० ई० स० १४२३-१४२४ ) राव बीकाजी ( बीकानेर का राज्य स्थापन किया) / वर सिंह ( इसके वंशजों ने झाबुआ का राज्य स्थापन किया ) राठोड़-नरेशों के वंशवृत्त Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com έτο १६ राव मालदेवजी ( वि० सं० १५८१-१६१९३० स० १५३२-१५६२ ) राव राम ( इसके वंशजों ने अमझेरा क राज्य स्थापन किया था ) दलपतसिंह 1 महेशदास राव रत्नसिंह ( रतलाम का राज्य स्थापन किया ) सीतामऊ और सैलाना के राज्य भी इनके वंशजों ने स्थापन किए थे। ) २७ महाराजा अभयसिंहजी (वि० सं० १७८१-१८०६= ६० स० १७२४ -१७४६ ) २२ राजा उदयसिंहजी ( वि० सं० १६४०-१६५२= ई० स० १५०३-१५६५ ) T २० राव चन्द्रसेनजी ( वि० सं० १६१६-६६३७६० स० १५६२-१५८१ ) T २१ राव रायसिंहजी (२१) राव उग्रसेनजी (२१) राव श्रासकरनजी ( वि० सं० १६३६ - १६४० ई० स० १५८२-१५८३ ) २३ सवाई राजा शूरसिंहजी ( वि० सं० १६५२ - २६७६ ई० स० १५६५-१६१६ ) २४ राजा गजसिंहजी (वि० सं० १६७६- १६६५० स० १६१६-१६३८ ) I २५ महाराजा जसवन्तसिंहजी ( प्रथम ) ( वि० सं० १६६५-१७३५ ई० स० १६३८-१६७८ ) २६ महाराजा ध्वजितसिंहजी ( वि० सं० १७६३ - १७८१-३० स० १७०७-१७२४ ) २६ महाराजा बखतसिंहजी (वि० सं० १८०८-१८०६= ई० स० १७५१-१७५२ ) राजः कृष्णसिंह (किशनगढ़ का राज्य स्थापन किया ) 1 राव अमरसिंहजी (नागोर ) राव श्रानन्दसिंहजी ( दूसरीवार ईडर का राज्य स्थापन किया ) मारवाड़ का इतिहास Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com ६८१ I I ३० महाराजा विजयसिंहजी २८ महाराजा रामसिंहजी (वि० सं० १८०६-१८०८० स० १७४१-१७५१ ) ( वि० सं० १८०६ - १८५०ई० स० १७१२-१७६३ ) महाराज - कुमार भोमसिंहजी ३१ महाराजा भीमसिंहजी महाराज-कुमार गुमानसिंहजी ३२ महाराजा मानसिंहजी ( वि० सं० १८६०-१६०० ई० स० १८०३-१८४३ ) ( वि० सं० १८५० १८६० ई० स० १७६३-१८०३ ) ३६ महाराजा सुमेरसिंहजी (वि० सं० १६६८- १६७५ ई० स० १६११-१६१८ ) ३३ महाराजा तखतसिंहजी ( अहमदनगर से गोद आप ) ( वि० सं० १६०० १६२६ ई० स० १८४३ - १८७३ ) ३४ महाराजा जसवन्तसिंहजी (द्वितीय) ( वि० सं० १६२६ - १६५२ ई० स० १८७३-१८६५ ) 1 ३५ महाराजा सरदारसिंहजी ( वि० सं० १९५२ - १६६७ ई० स० १८६५-१६११ ) F ३७ महाराजा उम्मेद सिंहजी 1 ( वि० सं० १९७५ ई० स० १६१८ में गद्दी बैठे ) महाराज - कुमार हनवन्तसिंहजी * मारवाड़ नरेशों का विस्तृत वंशवृक्ष इस भाग के अन्त में दिया है ! राठोड़-नरेशों के वंशवृत्त Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Ëવર बीकानेर के राठोड़ - नरेशों का संक्षिप्त वंशवृक्ष । ( १५ राव जोधाजी जोधपुर - नरेश ) १ रात्र बीकाजी ( वि० सं० १५४२-१५६१-६० स० १४८५-१५०४ ) २ राव नराजी ( वि० सं० १५६१ = ई० स० १५०४-१५०५ ) ३ राव लूणकरणजी ( वि० सं० १५६१-१५८३= ७ राजा दलपतसिंहजी (वि० सं० १६६८-१६७०= इ० स० १६१२-१६१४ ) ई० स० १५०५ - १५२६) जैतसीजी ४ राव ( वि० सं० १५८३ - २५६८० स० २५२६- १५४२ ) ५ राव कल्याणसिंहजी {वि० सं० १५६८-१६३०ई० स० १५४२-१५७३) · ६ राजा रायसिंहजी ( वि० सं० १६३० - १६६८६० स० १५७३-१६१२ ) राजा शूरसिंहजी ( वि० सं० १६७०-१६८८= ई० स० १६१४-१६३१ ) T राजा कर्णसिंहजी ( वि० सं० १६८८-१७२६-६० स० १६३१-१६६६ ) १० महाराजा अनोपसिंहजी ( वि० सं० १७२६ - १७५५-३० स० १६६६ - १६६८) मारवाड़ का इतिहास Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ११ महाराजा स्वरूपसिंहजी १२ महागजा सुजानसिंहजी श्रानन्दसिंहजी (वि० सं० १७५५-१७५७= (वि० सं० १७५७-१७६२= ई० स० १६१८-१७००) ई० म० १७००-१७३६) १३ महाराजा ज़ोरावरसिंहजी १४ महाराजा गजसिंहजी (वि० सं० १७९२-१८०३= (वि० सं० १८०३-१८४४% ई० स० १७३६-१७४६) ई० स० १७४६-१७८७) १५ महाराजा राजसिंहजी १७ महाराजा सूरतसिंहजी (वि० सं० १८४४= (वि० सं० १८४४-१८८५= ई० स० १७८७) ई० स० १७८७१८२८) १६ महाराजा प्रतापसिंहजी १८ महाराजा रत्नसिंहजी (वि० सं० १८४४ (वि० सं० १८८५-१६०८% ई० स० १७८७) ई० स० १८२८-१८५१) १६ महाराजा सरदारसिंहजी (वि० सं० १९०८-१६२६% ई० स० १८५१-१८७२) छत्रसिंह दलेलसिंह शक्तसिंह लालसिंह २० महाराजा डूंगरसिंहजी (वि० सं० १९२६-१९४४% ई० स० १८७२-१८८७) www.umaragyanbhandar.com २१ महाराजा गङ्गासिंहजी (वि० सं० १९४४= ई० स० १८८७ में गद्दी बैठे) महाराज-कुमार शार्दूलसिंहजी भंवर करणीसिंहजी राठोड़-नरेशों के वंशवृक्ष Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास झाबुआ के राठोड़-नरेशों का संक्षिप्त वंशवृक्ष। (१४ राव जोधाजी जोधपुर-नरेश) परसिंह सीहा जयसिंह रामसिंह भीमसिंह १ केशवदासजी (झाबुआ के संस्थापक ) ई० स० (१५८४-१६०७) २ करणजी ( ई० स० १६०७-१६१०) ३ महासिंहजी ( ई० स० १६१०-१६७७ ) ४ कुशालसिंहजी (ई० स० १६७७-१७२३ ) ५ अनूपसिंहजी ( ई० स० १७२३-१७२७ ) ६ शिवसिंहजी (ई० स० १७२७१७५८ ) ७ बहादुरसिंहजी ( गोद आए ) (ई० स० १७५८-१७७० ) ८ भीमसिंहजी ( ई० स० १७७०-१८२६ ) ६ प्रतापसिंहजी ( ई० स० १८२६-१८३२ ) १० रतनसिंहजी ( गोद आए ) ( ई० स० १८३२-१८४०) ११ गोपालसिंहजी (ई० स० १८४०-१८६५ ) १२ उदयसिंहजी ( गोद पाए ) (ई० स० १८६५ में गही बैठे) ४ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राठोड़-नरेशों के वंशवृक्ष अमझेरा के राठोड़-नरेशों का संक्षिप्त वंक्षवृक्ष । (१६ राव मालदेवजी जोधपुर-नरेश) १. राव राम (वि० सं० १६०४-ई० स० १५४७ ) में गूंदोज की तरफ़ चला गया २. राव कला (स्वर्गवास वि० सं० १६१) ३. राव जसवन्तसिंह (प्रथम) ४. राव जगन्नाथजी (अमझेरा मिला) राव केसरीसिंहजी (स्वर्गवास वि० सं० १७३५) राव मारसिंहजी राव जसरूपजी ( स्वर्गवास वि० सं० १७७५ ) ८. राव लालसिंहजी राव जसवन्तसिंहजी (द्वितीय) (स्वर्गवास वि० सं० १८४६) राव सवाईसिंहजी ११. राव अजितसिंहजी ( स्वर्गवास वि० सं० १८८८) १२. राव बखतावरसिंहजी (वि० सं० १६१४ ई० स० १८५७) (१) बखतावरसिंहजी के गदर में बागियों के साथ मिल जाने से अमझेरा का राज्य सिंधिया को देदिया गया । ६८५ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास किशनगढ के राठोड़-नरेशों का संक्षिप्त वंशवृक्ष (२२ राजा उदयसिंहजी जोधपुर-नरेश) १ राजा किशनसिंहजी (वि० सं० १६६६-१६७२ ई० स० १६०६-१६१५) २ राजा सहसमल्लजी ३ राजा जगमालजी भारमल्ल . ४ राजा हरिसिंहजी (वि० सं० १६७२-१६७५= (वि० सं० १६७५-१६८५= ! (वि० सं० १६८५-१७००% ई० स० १६१५-१६१८) ई० स० १६१८-१६२६) । ई० स० १६२६-१६४३) . ५ राजा रूपसिंहजी (वि० सं० १७००-१७१५ ई० स० १६४३-१६५८) राजा मानसिंहजी (वि० सं० १७१५-१७६३ ई० स० १६५८-१७०६) ७ राजा राजसिंहजी (वि० सं० १७६३-१८०५ ई० स० १७०६-१७४८) (८) सामन्तसिंहजी ८ राजा बहादुरसिंहजी (वि० सं० १८०५-१८२१= (वि० सं० १८०६-१८३८% ई० स० १७४८-१७६४) ई० स० १७४६-१७८२) (8) सरदारसिंहजी (रूपनगर) ६ राजा बिडदसिंहजी (वि० सं० १८१२-१८२३% (वि० सं० १८३८-१८४५= ई० स० १७५५-१७६६) ई० स० १७८२-१७८८) १० राजा प्रतापसिंहजी (वि० सं० १८४५-१८५४० स० १७८८-१७६८) ११ राजा कल्याणसिंहजी (वि० सं० १८५४-१८६५ ई० स० १७१८-१८३८) १२ राजा मोहकमसिंहजी (वि० सं० १८६५-१८६७ ई० स० १८३८-१८४०) १३ राजा पृथ्वीसिंहजी (फतेगढ़ की शाखा से गोद श्राए) (वि० सं० १८९७-१९३६ ई० स० १८४०-१८८०) १४ राजा शार्दूल सिंहजी (वि० सं० १९३६-१६५७० स० १८८०-१९००) १५ महाराजा मदनसिहजी (वि० सं० १९५७-१९८३ ई० स० १६००-१९२६) १६ महाराजा यक्षनारायणसिंहजी (वि० सं० १९८३-१६६५ ई० स० १९२६-१९३६) ... १७ महाराजा सुमेरसिंहजी (वि० सं० १९५० स० १९३६ में गही बैठे) ६८६ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रतलाम के राठोड़-नरेशों का संक्षिप्त वंशवृक्ष । ( २२ राजा उदयसिंहजी जोधपुर नरेश ) दलपतसिंहजी (जोलोर) महेशदासजी २ राजा रामसिंहजी (वि० सं० १७१५-१७३६= ई० स० १६५८ - १६८२) १ राजा रत्नसिंहजी ( वि० सं० १७०६-१७१५ ई० स० १६५२ - १६५८ ) ३ राजा शिवसिंहजी ( वि० सं० १७३६-१७४१= ई० स० १६८२ - १६८४ ) हाथी सिंह बैरी साल सिंह ( धामनोद ) राठोड़-नरेशों के वंशवृत्त ५ राजा छत्रसालजी ( वि० सं० १७६०-१७६२= ई० स० १७०३ - १७०६ १ ) ४ राजा केशवदासजी (वि० सं० १७४१-१७५२= ई० स० १६८४ - १६६५ ) (सीतामऊ ) ६ राजा केसरीसिंहजी ( वि० सं० १७६६ - १७७३ ई० स० १७०६ - १७१६ ) ७ राजा मानसिंहजी ( वि० सं० १७७३ - १८००=१७१६-१७४३ ) ८ राजा पृथ्वीसिंहजी ( वि० सं० १८००-१८३० ई० स० १७४३ - १७७३ ) ६ राजा पद्मसिंहजी ( वि० सं० १८३०-१८५७ ई० स० १७७३ = १८०० ) १० राजा पर्वतसिंहजी ( वि० सं० १८५७-१८६२ ई० स० १८०० - १८२५ ) ११ राजा बलवन्तसिंहजी ( वि० सं० १८८२ - १६१४ ई० स० १८२५ - १८५७ ) 1 १२ राजा भैरवसिंहजी ( गोद आए ) ( वि० सं० १६१४- १६२१-३० स० १८५७-१८६४ ) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat १३ राजा रणजीतसिंहजी ( वि० सं० १६२१-१६४६ ई० स० १८६४ - १८१३ ) १४ राजा सज्जनसिंहजी ( वि० सं० १८४६ ई० स० १८६३ में गद्दी बैठे ) राज कुमार लोकेन्द्रसिंहजी ६८७ प्रतापसिंह जयसिंहजी (सैलाना) www.umaragyanbhandar.com Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास सीतामऊ के राठोड़-नरेशों का संक्षिप्त वंशवृक्ष | ( २२ राजा उदयसिंहजी जोधपुर नरेश के वंश में ) - १. केशवदासजी 1 ( वि० सं० १७५२ की प्रथम आषाढ सुदि ६= ई० स० १६६५ की ८ जून तक रतलाम में राज्य किया ? और बाद में वि० सं० १७५८ की कार्तिक सुदि ११=३० स० १७०१ की ३१ अक्टोबर को सीतामऊ राज्य की स्थापना की ) J २. गजसिंहजी ( वि० सं० १८०५ - १८०६ ई० स० १७४८ - १७५२ ) ३. फ़तै सिंहजी ( वि० सं० १८०६ - १८५६ ई० स० १७५२-१८०२ ) ४. राजसिंहजी ( वि० सं० १८५६ - १६२४ = ई० स० १८०२ - १८६७ ) रत्नसिंहजी ' ५. भवानी सिंहजी (वि० सं० १९२४ - १६४२ = ई० स० १८६७-१८८५ ) ६. राजा बहादुरसिंहजी ( ( वि० सं० १६४२-१६५५= ई० स० १८८५ १८६६ ) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ६८८ नाहरसिंह वखत सिंह ७. राजा शार्दूल सिंहजी (वि० सं० १६५६ - १६५७ = ई० स० १८६६ - १६०० ) ७. राजा रामसिंहजी ( यह रतलाम के संस्थापक रत्नसिंहजी के द्वितीय पुत्र रायसिंह (काछी बड़ोदा वालों) के वंशज थे और वि० सं० १९५७ ई० स० १६०० में सीतामऊ गोद श्राप ) महाराज - कुमार रघुबीरसिंहजी www.umaragyanbhandar.com Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सैलाना के राठोड़-नरेशों का संक्षिप्त वंशवृक्षं । ( २२ राजा उदयसिंहजी जोधपुर नरेश के वंश में ) ( ५ छत्रसालजी रतलाम-नरेश ) १. प्रतापसिंहजी (राघटी ) ( वि० सं० १७६६ -१७७३ ई० स० १७०६-१७१६ ) २. जयसिंहजी ( सैलाना ) ( वि० सं० १७७३-१८१४ ई० स० १७१६-१७५७ ) ३. जसवन्तसिंहजी (प्रथम) ( वि० सं० १८१४-१८१६= ई० स० १७५७ - १७७२ ) राठोड़-नरेशों के वंशवृक्ष Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ४ अजबसिंहजी ( वि० सं० १८२६-१८३६ ई० स०१७७२ - १७८२ ) I ५. मोहकम सिंहजी ( वि० सं० १८३६- १८५४ = ई० स० १७८२ - १७६७ ) ६. लक्ष्मनसिंहजी (वि० सं० १८५४ १८८२ ई० स० १७६७-१८२६ ) ७. रत्नसिंहजी ( वि० सं० १८८२ - १८८४ ई० स० १८२६-१८२७ ) ८. नाहरसिंहजी ( वि० सं० १८८४- १६६८= ई० स०१८२७ - १८४२ ) ६. तख़त सिंहजी ( वि० सं० १८६८ - १६०७ =६० स० १८४२ - १८५० ) १०. राजा दुलैसिंहजी ( वि० सं० १६०७-१६५२ ई० स० १८५० -१८६५ ) ११. राजा जसवन्त सिंहजी (द्वितीय) ( वि० सं० १६५२ - १६७६ ई० स० १८६५ - १६१६ ) ( १ ) सैलाना से प्राप्त वंशवृक्ष के आधार पर । ६८६ १२. राजा दिलीपसिंहजी ( वि० सं० १९७६ = ई० स० १९१६ में गद्दी बैठे ) महाराज - कुमार दिग्विजयसिंहजी www.umaragyanbhandar.com Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास ईडर के पहले राठोड़-नरेशों का संक्षिप्त वंशवृक्ष । (१ राव सीहाजी मारवाड़-नरेश ) १ राव सोनगजी (वि० सं० १३३१-१३४०ई० स० १२७४-१२८३ ) २ राव अभमल्लजी (वि० सं० १३४०-१३४२ ई० स० १२८३-१२८५ ) ३ राव धवलमल्लजी (वि० सं० १३४२-१३६७-ई० स० १२८५-१३१०) . ४ राव लूणकरणजी (वि० सं० १३६७१३८१ई० स० १३१०-१३२४) ____५ राव केहरणजी (हरवतजी) (वि सं० १३८१-१४०२-ई० स० १३२४-१३४५) ६ राव रणमल्लजी (वि० सं० १४०२-१४६०ई० स० १३४५-१४०३) ७ राव पुंजाजी (प्रथम) (वि सं० १४६०-१४८४ ई० स० १४०३-१४२७) ८ राव नारायणदासजी (प्रथम) (वि० सं० १४८४-१५३८% ई० स० १४२७-१४८१) ६ राव भाणजी (वि० सं० १५३८-१५५८= ई० स० १४८१-१५०१) १० राव सूरजमलजी १२ राव भीमजी (रायमलजी से गद्दी छीनी) (वि० सं० १५५८-१५६०= (वि० सं० १५६६-१५७१= ई० स० १५०१.१५०३) ई० स० १५०६-१५१४) ११ राव रायमलजी १३ राव भारमलजी (वि० सं० १५६०-१५७७= (वि० सं० १५७१-१५६६ ई० स० १५०३-१५३०) ई० स० १५१४-१५४२) १४ राव पुंजाजी (द्वितीय) (वि० सं० १५६६ १६०८ ई० स० १५४२-१५५१ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६ राव वीरमदेवजी ( वि० सं० १६३५ १६५३= ई० स० १५७८ - १५६६ ) १८ राव जगन्नाथजी ( वि० सं० १७०० - १७१३= ई० स० १६४३-१६५६ ) १६ शव पुंजाजी (तृतीय ) (वि० सं० १७१३-१७१४ ई० स० १६५६ - १६५७ ) १५ राव नारायणदासजी (द्वितीय) ( वि० सं० १६०८ - १६३५ ई० स० १५५१-१५७ = ) राठोड़ - नरेशों के वंशवृक्ष Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat १७ राव कल्याणमलजी ( वि० सं० १६५३-१७०० १५६६-१६४३ ) ई० २२ राव करणसिंहजी २० राव अर्जुनदासजी ( वि० सं०.७१४-१७१५ = ई० स० १६५७-१६५८ ) ( वि० सं० १७२०-१७५२= ई० ( ० स० १६६३-१६६५ ) इन्हें राज्य का वास्तविक अधिकार प्राप्त न हो सका ) २१ राव गोपीनाथजी ( वि० सं० १७१५-१७२० ई० स० १६५८-१६६३) ६६१ २३ राव चन्द्रसिंहजी ( वि० सं० १७५८ - १७८३ ई० स० १७०१-१७२६ ) ( यह वास्तव में वि० सं० १७७४ में गद्दी बैठे थे और वि० सं० १७८३ में पौल गाँव में चले गए ) (१) यह वंश-वृक्ष अधिकांश में ईडर-राज्य से मिले वंश-वृक्ष के आधार पर तैयार किया गया है। अन्य ख्यातों में नम्बर से नम्बर ६ तक के राजाओं को भाई लिखा है । www.umaragyanbhandar.com Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास १ राव श्रानन्दसिंहजी ( वि० सं० १७८५ - ९७६६ ई० स० १७२८-१७४२ ) २ राव शिवसिंहजी ( वि० सं० १७६६ - १८४८०स० १७४२-१७६१ ) इंडर के दूसरे राठोड़-नरेशों का संक्षिप्त वंशवृक्ष | (२६ माहाराजा अजितसिंहजी जोधपुर-नरेश ) ३ राव भवानीसिंहजी ( वि० सं० १८४६ ई० स० १७६१) ४ राजा गम्भीर सिंहजी वि० सं० १८४८-१८६०= ई० स० १७६१-१८३३ ) ५ राजा जवानसिंहजी ( वि० सं० १८६०-१६२५= ई० स० १८३३-१८६८ ) J ६ राजा केसरी सिंहजी ( वि० सं० १६२५-१६५७= ई० स० १८६८ - १६०१ ) कृष्णसिंहजी { जन्म ई० स० ४-१०-१६०१ ३०-११-१६०१ मृत्यु 99 सं (१) संग्रामसिंहजी ( अहमदनगर की शाखा ) (वि० सं० १८५५ ई० स० १७६८ में स्वर्गवास ) (२) कर्णसिंह ( वि० सं० १८५५-१८६२ ई० स० १७६८-१८३५ ) (३) पृथ्वी सिंहजी ( वि० सं० १८६२ - १८६६ = (५) तखतसिंहजी (वि० सं० १८६८-१६००= ई० स० १८३५-१८३६ ) ई० स० १५४१-१८४३ ) ( इसके बाद जोधपुर गोद श्राए ) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat (४) बालक ( वि० सं० १८६६-१८६८ ई० स० १८३६-१८४१ ) ७ महाराजा प्रतापसिंहजी } [ जोधपुर के ( ३३ वै नरेश ) महाराजा तखतसिंहजी के पुत्र ईडर गोद आए ] ( वि० सं० १९५८ - १६६८ई० स० १६०२-१६११ ) - महाराजा दौलतसिंहजी ( महाराजा प्रतापसिंहजी के भतीजे उनके गोद श्राप ) ( वि० सं० १९६८ - १६८८० स०१६११-१६३१ ) ( वि० सं० १९६८ = ई० स० १६११ में महाराजा प्रतापसिंहजी के जोधपुर में रीजेंट (अभिभावक ) नियुक्त होने पर आप गद्दी बैठे ) T महाराजा हिम्मतसिंहजी (वि० ० स० १६८६ ई० स० १९३१ में गद्दी बैठे ) महाराज- कुमार दलजीतसिंहजी ર www.umaragyanbhandar.com Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वर्णानुक्रमणिका। अखैराज ( बाला ) २७५. अखैराज ( राजा उदयसिंहजी का पुत्र ) १८०. अंगरेज़ ४०२, ४२१, ४२४, ४२७, ४३५, अखैराज ( राव जोधाजी का भाई ) ७३, ८०, m८, ४५१, ४५४, ४६८, ४६६, ४७२, ८७,८८,६५. ५२२, ५७१. अखैराज ( सिंघी ) ३६ २, ३६७. अंगरेज़ी ४४५, ४५१, ४५२, ४५४, ४५५, अखैराजजी ( जयसलमेर के रावल ) ३३४. ४६७,५००, ६३५. अखैराजजी ( सिरोही के राव ) ११३. अंगरेज़ी रुपया ६३१, ६४०, ६४७.. अखैसागर (अखैराजजी का तालाब) ३६७, ३९८. अंबरचम्पू १८४, २००. २०१, २०४. अखैसिंह ( बाला ) २८३. अंबाजी इंगलिया ३८८. अखैसिंह ( म० अजितसिंहजी का पुत्र ) ३२८. अंबाली ३२६, ३६५. अगवारी २६०. अकबर ( बादशाह ) १८, १३६-१३८, १४०, | अघ्राजी कोली ३४६. १४१, १४५, १४७, १४६-१५४, १५६, | अचल गदाधर १२२. १५७, १५-१६३, १६५, १६५, १६८, | अचलसिंह ( अखैराजोत ) ११८. १७०, १७१, १४३, १७४, १७६, ७७, अचला (शिवराजोत ) १३१. १७४-१८१, १८३, १८५, १६१, ११२, अचलेश्वर ( आबू ) ११. १९४, १९७, २५१, २६१, ६२५, ६२८, अचलेश्वर ( महादेव जोधपुर ) ११५. अजंटी ६३०. अकबर ( शाहज़ादा ) २४६, २५६, अज ( राव चूडाजी का पुत्र ) ६६. २६०-२७१, २७६, २७८, २७६, २८३, अज ( जगमाल का पुत्र ) ५५. २८४, ३१७. अज ( राव सीहाजी का पुत्र ) ३४, ३६, ४१, अकबरपुर २७२. ४४. अकबराबाद २१५, २६८. अजबपुरा ३६५. अखेचन्द ( मुहता) ४१७-४२०, ४२३, ४२४. अजबसिंह ( चाँपावत ) २७४, २७५. अखराज ( चौहान ) १२४, १३१. | अजबसिंह ( पंचोली ३१२. अखैराज ( पंचायण का पुत्र) ११७, ११८. अजबसिंह ( भंडारी ) ३४४. अखैराज ( बगड़ी) ४६३. | अजमतख़ाँ १५३, १६५. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास अज़मतुल्ला ३४३. अजितसिंह ( मोहिल ) १७,६८. प्रजमाल १०७. ! अजितसिंहजी ( महाराज ) ५०६, ५१५, ५३३, अजमेर १, २, ६, ११, १३-१५, २८, ६०, ५३५, ५३६, ५४६, ५४६, ५५०, ५५२, ६२, ६३, ७०-७२, २, ५, ६, १०२, ५५४, ५६९, ५७२, ५७४, ५७७-५८०, १०५, १०६, ११६, ११८-१२०, १२८, . ५८२, ५८३, ५८५, ५८८, ५६० १३२, १३३, १३६-१३८, १४०-१४३, १४५, ५६१-५६३. १४७, १५१-१५३, १५८, १६१-१६३, : अजित सिंहजी (महाराजा) १७, २१, २२, १६५, १७०, १७६, १८०, १६०-१६३, २६, २८, ११५, २४८, २५२, २५४-२६०, २००, २०२, २०४, २०७, २१५, ! २६६, २७२, २७३, २७८, २८२, २८७, २१८, २२२, २२६, २३०, २४६, २५१, २८६, २६१,२६२, २९५-२६६, ३०१,३०२, २५२, २५६-२६३, २६५, २६६, २७०. ! ३०६-३०८, ३१३-३१६, ३१८-३२०, २७३, २७४, २७६, २८०-२८३, २८७, । ३२२, ३२३, २६-३३२, ३३५, ३४०, २८६, २६३-२६७, २६६, ३०१-३०३, ३४१, ३४६, ३५७, ३५८, ३६७, ३.६, ३१०, ३१७-३२५, ३३१, ३३६, ३७१, ३७७, ३६३, ४००, ४४२, ४४६, ३४७, ३४८, ३५१-३५३, ३५५, ३५७, ६२६, ६३७, ६५६. ३६०-३६३, ३६५, ३६७, ३७२, ३७५, अजितसिंहजी ( महाराजा ) का सिक्का ६३७. ३७६, ३८०, ३८१, ३८४, ३८८-३६०, ! अजितोदय २१. ३६८, ४०४-४१६, ४२१, ४२५, ४२८, अज़ीमुश्यान (शाहज़ादा ) २७३, २७४, २८६, ४३१-४३३, ४३६-४३८, ४४५, ४४८, २९४, २६८, ३०१, ३०२, ३०४, ३०५. ४५१, ४५२, ४५५, ४५६-४६१. ४६६, | अटक ( नदी )२४८. ४६६, ४७२, ४७६, ४७६, ४८७, ४६३, अठयासिया ६४१. ४६६,५०६, ५१२, ५१४, ५१६, ५३०, अड़कमल ६६, ६७, ७६. ५.३, ५३५-५४१, ५५३, ५५८, ६१०, अड़कोट ३७. ६३७, ६४७. अडवाल ( रा० मल्लिनाथजी का पुत्र ) ५४. अजमेर की टकसाल ६४७. अडवाल (रा. रणमलजी का पुत्र )८०. अजयदेव ६, ११, १४. अडसीजी ( महाराना) ३८२, ३८३. अजयदेव के सिक्के ६३६. । अणखला १.२. अजयदेव (चौहान ) ६३६. अणदू ( देवढ़ीदार ) ३७२. अजयपुर १०४. अदालतों के अधिकार ६२२. अजायबघर २६, ४४, ४३६, ५२५, ५७२, अनन्तवासणी ११६. ६१२, ६१४, ६१५. अनवर (शेख ) २४६. अजित-चरित (भाषा) २१.. अनहिल पाटन ( अनहिलवाड़ा) ३५, ३६. अजित चरित ( संस्कृत ) २१. अनाडसिंह ( पंवार ) ४४८-४५०, ६४३. अजितसिंह (पालणियावास ) ४५.. अनादरा ४४५. ६१४ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वर्णानुक्रमणिका अनावास.४.. ३११-३५३, ३५५-३५७, ३५६, ३६७, अनुभवप्रकाश २१, २४३. ३६९, ३७५, ६००. ६५६. अनूपसिंह २७.. अभयसिंह ( राम्रो राजा) १६०, ५६८. अनोपसिंह ५६६. अभयोदय २२. अनोपसिंह (भंडारी) ३१६, ३२१. अभयराम ( व्यास ) ४२१. अनोपसिंह ( रोडला-ठाकुर) ५३६, ५५१, अभिमन्यु ६५३. ५५६, ५६०, ५३६. अमझेरा १४४. अन्ताजी मानकेश्वर ३७५. अमर बकरा १५७. अपरोक्ष-सिद्धान्त २१, ५४५. अमरशाही पैसा ६४०. अपील ( अदालत ) ४६४, ४६५, ५५१. अमरसर १४२, ३२०. अफगान ३५६. अमरसिंह (कुँवर, मेवाड़ ) २८२, २८४. अफगानिस्तान ४. अमरसिंह ( कोशकार ) ४. अबुलफज़ल २, १६२-१६५, १८३, १८४. अमरसिंह ( गौड़ ) ३५१. अमरसिंह ( चंद्रावत ) : २३. अबुलफ़तह २३४. अब्दुन्नबी ( मियां कल्होरा) ३८४-३८५, ६७. अमरसिंह ( नींबाज-ठाकुर उदावत ) ३१२, ३२५, ३२६, ३४०, ३४१. अब्दुलरहीम १७२. अमरसिंह (सी) भंडारी ३३६, ३३७, ३४८. अब्दुलरहीम २४६. अब्दुलहमीद २८६. अमरसिंह (भाटी) ३०६. अब्दुल्लाखाँ १७०, १८७, १८८. अमरसिंह ( रूपनगर ) ३८८. अब्दुल्लाखाँ (मीर बीजड का पुत्र) ३८५. अमरसिंह का दर्वाजा ६५१. अब्दुल्लाखाँ (सैयद बागह-कुतुबुल मुन्क) २५१, । अमरसिंहजी (द्वितीय) (महाराजा) २६५, २६८, ३०६, ३०७, ३१२-३१४, ३१६, ३.२. ३१७, ३१६, ३२१. अमरसिंहजी (प्रथम ) (महाराना) १८७-१६०, ०३, २०४. अब्बास ( सानी) २३६, २३७. | अमरसिंहजी ( बीकानेर ) ३५६. अब्बास अली ४५०. प्रमरसिंहजी ( राव ) २६, २०८, २०६, २२६, प्रबिसीनिया ३८६. ___२४३, २५३, ६४०, ६४६-६१५. अभयकरण ३३२, ३३३, ३४६, ३५०. अमरावती १२१. अभयविलास २२. अमानसिंह ५६६. अभयशाही बुर्जे ३५८, ४६२. अमानीशाह का नला ४४७. अभयसागर ३५७. अमीनखाँ २२६, २३०, २३८. अभय (प्रभै) सिंहजी ( महाराजा ) २२, २६, | अमीनबेगखाँ ३३६. २८, २८८, २६५, ३०६, ३०७, ३०६, | अमीरखाँ २६७. ३२०-१२२, ३२६-३२६, ३३१, ३३४, | अमीरखा (पिंडारी) ४.७, ४०८, ४१०-४१८, ३३६, ३३६, ४१, ३४२, ३४७, । ४२२, ६२८. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भारवाड़ का इतिहास अमीरुल उमरा (जुल्फिकार) १७, ३६०-३६२. | अलाउद्दीन खिलजी ( मुहम्मदशाह ) १०, १५, अमीरुल उमरा (शाइस्ताखाँ ) २३३, २३४. १६.. अमीरुल उमरा ( हुसेनअलीखाँ) ३०६, ३१४, अलाय ८४ अलीअहमद (सैयद ) २६६. ३२८. अलीकुली १५४. अमृतबाव ४६२. अलीपुर ४८८. अमृतलाल ( मेहता ) ४६५, ४८२, ४६४. अलीबेग ( शेख ) १२६. अमृती पौल ३७८, ४६२. अलीमसजिद २१२, २४१. अमेरिका ४६२, ५५६. अलीवर्दीखाँ २२८. अयोध्यानाथ ( हुक्कू पंडित ) ४६७ अलाहयारखाँ शेख ३३१, ३४०. प्ररंठिया ( इरंडिया ) समदड़ाऊ ३२६. अवध २६७, ५५६. अरटनडी १६.. अवधविलास २५. अरटिया १४. अवधूत गीता की संस्कृत टीका २४. अशी ६४२. अरणु ४४०. अशोक ४, १४. अरब ७, १३, ३५, ६३६. अश्वत्थामा ३४. अरावली २६१. असदखा २४६, २७३, २७६, २६७-२६६. अरिसिंहजी ( महाराना ) ३८२, २८३. अशा ५८०, ५८१, ५८४. अस्केलन १६७. अस्तबल १४२. अर्जुन (गौड़) २२२, २२३, ६५३, ६५४. अस्तीखाँ २७४. अर्जुन ( माटी ) ८६. अहमद ( सैयद ) १५४. अर्जुनसिंह ५८६. अहमदखाँ ६४, ७४. अर्जुनसिंहजी ( महाराज ) ४६८, ५०६, ५४६. | अहमदनगर (ईडर) १८३, १८४, २००, अर्णोराज १२, १४. २७१, २६१, ४३८, ४४१, ४४२, ४६३, अर्थर ऑफ कनाट ( प्रिंस ) ५४६. प्रर्वती ६६, १९५, ४८२. अहमदशाह (दिल्ली) ३५६, ३६०, ३६१, ३६८. प्रसकिन् ( K. D. Arskine ) ( मेजर ) ५.३, अहमदशाह ( दुर्रानी) ३५६. ५०५. अहमदहुसैन (मीर ) ५०२. अलंकार-समुच्चय २२. | अहमदाबाद ५१, १८२, १८६, १८८, २२०, अलप्पो ५२६, ५६२, ५९८. २२७, २३१, २८१, २८६, २८८, २६०, अलवर १३६, ३०२, ३३१, ३३६, ४७८, ३०१, ३०८-३१२ ३१६, ३२४, ३२६, ४८२, ४८५, ४८६, ४८८, ४८६, ४६४, ३३६-३३६, ३४२, ३४४, ३४६, ३४७, ५.५, ५.८, ५११, ११५, ५२७, ५३६, ३४६, ३५०, ५८, ४७२, १४२, ५४४, १४७, ११२,५६६. ६३७. अलाउद्दीन ( मसऊद शाह ) १५. | अहिच्छत्रपुर ४, ६. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वर्णानुक्रमणिका ऑडिटर ६८५. प्रा माढा १७४. प्रांगदोस ४११. आत्मदीप्ति ( जलंधराष्टक की संस्कृत टीका) आंध्र प. २४. आंबा खेड़ा १४४. आत्माराम ( महात्मा ) ३७८, ४१८. आंबाजी ४११. पादपंखणी ६५. प्रानकुटी ५५२. प्राबे (मे) र ७१, १०१, १७७, २०५, २१६, अानन्दघनजी २०६. २२६, २३०, २३५, २३८, २६३. २९५-२१८, ३०१, ३०२, ३०५, अानन्दघनजी का मन्दिर ३६६. ३१४-३१८, ३२१, ३२३-३२६, ३२६, आनन्दराम १५७. अानन्दराव ३४३. ३३२, ३३४, ३५३, ३८८. प्राग्रजाबाद २२६. आनन्दविलास ( भाषा) २५, २४३. आईदास १५. आनन्दविलास (संस्कृत ) २५. पाउवा १७४, २७९, ३६१, ३६३, ३८१, प्रानन्दसिंहजी (बीकानेर ) ३५५. ३८३, ३६८, ४०८, ४१०, ४१७, ४१८, आनन्दसिंहजी ( म० अजितसिंहजी के पुत्र ) ३२५, ३२८, ३२६, ३३२-३३५, ३४६. ४२४, ४२५, ४२७, ४३१, ४३२, ४३६, ४४८, ४५०-४५३, ४५६, ४६४, ६२८. । ऑनररी कोर्ट ६२१. प्राना ४७. प्रॉकलैंड ( लॉर्ड ) ४३५. आनासागर ३१६, ४४८. प्राका ७८,८७. प्राकिलखाँ २२३. प्रापमल ६६,६७. ऑक्टरलोनी (डेविट ) ४२१. आपाजी ( जय आपा ) ३६७, ३७४. आबकारी ६१८. ऑक्सफोर्ड यूनीवर्सिटी ५१६. ऑबज़रवेटरी ४६५. प्रागरा २६, १५, १२८, १३६, १४१, १८६-१८८, २०६-२०८, २१०, २१३, आबू ११, १२, १४, ५४, ७७, १४५, १६८, २१५, २२०, २२२, २२४-२२६, २२८, २२६, १७४, १८६, २५५, २७१, ३०८, ४०५, २३६, २६८, २६७, २९८, ३१६, ३१७, ___४४५, ४४७, ४५५, ४१, ४६०, ४६९, ३२०, ३२२, ३२४, ३४१, ३५२, ३५३, ४७६, ४६८, ५०३, ५०५, ५०५, ५०६, ४४५, ४५६, ४८०, ४६७, ६५२, ६५४, ५१२, १४, ५२३, ५२५, १२७, ५३६-५३८, ५४२. ६ . प्रागेवा ४३७, ५५४. आभीर २, ३. प्रागोता ४५६, ४६.. प्रामखास महल ४६२. आजम ( खाँजादा ) ६२. आयस ४०२, ४०४, ४१३, ४१५, ४१७-४१९, आज़मशाह ( शाहजादा) १७६, २८९, २६३. ४३३, ४४ .. प्रॉडिट ५.४. आरामरोशनी २३. ऑडिट प्रॉफिस ६०५, ६०६. आर्कियोलॉजिकल डिपार्टमैन्ट (गवर्नमेन्ट) ४३९. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास आर्कियॉलॉजिकल डिपार्टमैन्ट (राजकीय) ५५३, । आसोप ७०, 28, १०६, १३१, १९४, २१८, ६१४-६१६. २२६, २७८, ३६१, ३७८, ३८१, ३६८, प्रागटीए'१६.. ४०८, ४१०, ४१७, ४१८, ४२४, ४२५, आर्य ३. ४३१, ४३६, ४४४, ४४८, ४५१-४५३, आर्यसमाज ४६०. ४१६, ४६४, ४७४, ४८४, ४८८, ४९४, आर्यावर्त १४. ५०४, ५१४, ५१६, ५३५, ५६५, ६२८. प्रालणसी ५७. आसोपा ४४४. आलणियावास ३७२, ४४०, ४५६. | ऑस्ट्रिया ४८५, ५०३. पालमखाँ २०५. आहाड़ा ८७. आलमगीर २२६-२२८, २३०, २४३. आहोर ४०८, ४११, ४५०. घालावास ३१७, ६००. पाल्हा (चारण ) ५८. ऑवरडे-उत्सव ५३०. प्रासकरण (न) ( जैतावत) १५८, १५६, इंगलिया ३८८. १६७, १६८. इंगलिश-कंपनी ४०३. प्रासकरण (जोशी) ४८१, ४६४. इंगलैंड ४६८, ५०३, ५१६-५२३, ५३१, आसकरण (ठाकुर ) २२३. ५४६-५५१, ५५६, ५६०, ५६४, ५६५, आसकरण ( मेड़तिया) २३६. ५६७,५८१. आसकरण ( रा. चन्द्रसेनजी का पुत्र ) १६०. इंगोरोगोरो ५८.. आसकरण ( रा. मालदेवजी का पुत्र ) १४४. इंडस्ट्रियल म्यूजियम ५१२, ५२५, ६१४. आसकरण ( रा. सत्ताजी का पुत्र ) १०१. इंडियन स्टेट इन्क्वायरी कमेटी ५६४. इंडोरोबो ५८३. पासणी कोट २३१. आसथानजी ३३, ३४, ३८, ३६, ४१-४४, इंदरमल ( लाला) ४६४. इंदोर ४८७, ४६८, ११७. इंद्रराज (सिंघी) ३६९, ४०१, ४०२, ४०६, प्रासफखाँ २०७. ४०६-४१३, ४१५-४१८. आसफजहाँ ३४२. आसफुद्दौला ३००. इंद्रपुरा ३६६. आसरलाई १५१. इंद्रविमान ३५८. प्रासल ४५. इंद्र सिंह ( राव ) ( रा. अमरसिंहजी का पौत्र) प्रासा (डाभी) ३५. २५३, २५७, २५४-२६३, ०६९-२७१, २७३, आसा ( बारट ) १२०. २८१, २६०, २६१, २९८, ३००, ३०३, प्रासायच ५६,६०, १५२. ३०६, ३०६, ३०६. ३२५, ३३३, ३३४, प्रासूसिंह ५६५, ५६. ६५५, ६५६. प्रासेर २.५. इकडाणी ४४०. आसोतरा ४३६. इकतीसंदा ४८७, ५०१, ६४७. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वर्णानुक्रमणिका इकतीसंदे रुपये पर के कुछ लेख ६४८. इकतीस सना ६४७. इकराणी १४४. इकहरी ( इकेवड़ी) ताजीम ६३२. ईटावा सूरपुरा ३२६. इतियारखाँ २४६. ईदा ६, ५६-६१, ६६, ८६, ३४४. ईदावाटी ८६. इख्तियारपुर २११. ईदोखनी ६५५. इजलाय गैर ४६६. ईडर १८, ३४, ३५, ४२, ४३, ६३, १११, इजलास खास ४६५, ४८४, ६२०. ११२, १६४, ३०५, ३२६, ३३५, ३४६, इजिप्ट १६, ५३३. ४२२, ४३८, ४४२, ४६४, ५०१, ५०४, इजुद्दीन १५. ५१०-५१२, ५१५, ५१८, ५१६, ५२७, इतिहास-कार्यालय ६१५. इत्तिमादखाँ २८५. ईडरिया ४३. इनायत उल्लाखाँ ३१५. ईराकी ३१०. इनायत उल्लाखाँ ( काबुल ) ५०७. इनायतखाँ २६८, २७०-२७३, २७६, २८०, ईरान ५, १३६, २१४, २३६, ३१०, ६५१, २८१. इन्फ्लु एंजा ५२६, ५३०. ईरानी २१७, २१८, ६३५. ईश्वर ( ईसरी ) दास ( इतिहासकार ) २२३, इफ्तखारखाँ २४६. इब्राहीम लोदी १११. २५२, २८६. इब्राहीम हुसेन मिर्जा १४४. ईश्वरदास ( चारण ) १२०, १२१. इमरतराम ( नाज़र ) ४२४, ४२५. | ईश्वरीसिंहजी ( जयपुर ) ३५३, ३५५-३५७, इम्पीरियल एअर वे ५६३. ३६०-३६४, ३७५, ३७६. इम्पीरियल बैंक ५५४, ६०५, ६०६. ईश्वरीसिंह ( राव अमरसिंहजी का पुत्र ) ६ ५५. इम्पीरियल सर्विस कैवैलरी ब्रिगेड ५६६, ५६८. | | इसरदा ५४६. इम्पे ( कप्तान ) ४५५, ४६०. ईस्टइंडिया कंपनी ४०२, ४०३, ४२०, ४४२. इरंडिया समदड़ाऊ ३२६. इरविन कृषिविद्या-शिनक ५५५. इरविन-छात्रवृत्तियाँ ५५५. उंचियारड़ा कलां १६७. इरविन-लॉर्ड ५५१, ५५५, ५६३. उंमा उनौवा २८६. इरादतमंदखाँ ३२५. उमैदनगर-ठाकुर ५६७. इर्विन (जे० बी० ) ५६५, ५७०. उमैदसागर ५६४. इलाहाबाद २२७, २६१, २६७, ५१४, ५६३. उमैदसिंह (नीबेड़ा) ५६८. इलाहाबाद यूनीवर्सिटी ४८७. उमैदसिंहजी । महाराजा ) २६, ५०६, ५१५, इसलामपुर २८६. ५३३, ५३५, ५३६, ५४३-५४५. ५५०, इस्माइन अलीखाँ ३६३. ५७७, ६१७, ६३८. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास उमेदसिंहजी ( महाराव -कोटा ) ४८६. उगंडा ५७७. उदयसिंहजी ( राजा ) ३०५. उदैकरण (सोभावत ) ४६ ५. उदेसिंह ५६६. उगमसी ६१. उग्रसेन ( रा ० चन्द्रसेनजी का पुत्र ) १६०, उदैसिंह ( पांचोटा-ठाकुर ) ५३८. १६७, १६८, १८७, १६५. उच्च १२६. उज्जैन २२०-२२२, ३०५. उटकमंड ५२८ ५३७, ५५२, ५५६, ५६०, ५६३. उड़ीसा २०३. उत्तमचन्द ( मुहता ४२७. उत्तर-पश्चिमी सीमान्त प्रदेश ४८३. उत्तरापथ ६. उदयपुर १, ८७, ६०, १३८, १६३, १७६, २२५, २४७, २५५, २५६, २६१ - २६३, २८२, २८५, २६६, २६६, ३०२, ३४७, ३८३, ३६७, ४०६, ४०७, ४०६, ४१२, ४१५, ४४६, ४५३, ४५६, ४७७, ४७८, ४८१, ४८३, ४८६, ४८६, ४६०, ४१०, ५११, ५१३, ५१५, ५३०, ५४७, ५६३, ५६५, ६५४. | १२३, १४२. उदयपुर ! छोटा, पँवारों का उदयभाणजी ( सिरोही ) ४१६, ४१६, ४२२. उदयभान ( जोधा ) २७५, २७७. उदयमंदिर ४२४. उदयसिंह ( कूंपावत ) १५६. उदयसिंह ( चाँपावत ) ( धीरसिंह का पुत्र ) २६३, २७५, २७६, २८२, २८४, २८८, २६०. उदयसिंह ( चौहान ) ६, १०, ३६. उदयसिंहजी (द्वितीय) (महाराना ) १८, १२४, १२५, १३२, १३३, १३५-१३८, १४१, १४६, १६१, १७०, १६०. उदयसिंहजी ( मोटा राजा ) २८, ६४० १४४, १४८, १५१, १६१, १६६, १७०-१७८, १८१, १८६, ६२६. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat उद्यान-वर्णन २३. उद्योतसिंहजी (म० अजित सिंहजी के पुत्र ) ३२८, ३३१. उपाध्याय ४१०. उमरकोट २, ४५, ५०, ५१, १२७, १२८, १४२, १४५, ३८४-३८७, ४१६, ४४३, ७०० ४४४, ५०२, ५२८. उमरावसिंह ५२१. उमादे १२०, १२१, १३२. उम्मेद कोऑपरेटिव सोसाइटी ६०६. उम्मेद फीमेल अस्पताल ६०८, ६११. उम्मेद सिंहजी ( राव बूंदी ) ३५५-३५७. उम्मेदसिंहजी ( शाहपुरा ) ३४८, ३५०. उलगखाँ ६४०. उषवदात ५. उसमानख़ाँ १००. उसेत ६६. ऊ ऊंगा ५५. ऊंचेरिया २४५. ऊंदरी ५२५. ऊदलियावास ३२६. ऊदा ( ईदा ) ६६. ऊदा ( उदयसिंह महाराणा ) ६१, ६६. ऊदा ( चारण ) ४५. ऊदा (पँवार) ३४३, ३४५. ऊदा (राठोड़ ) ७५. ऊदा ( रा ० रामजी का पुत्र ) ८०. ऊदा ( रा ० सूजाजी का पुत्र ) ११०. ऊदा ( सांखला ) ५६. www.umaragyanbhandar.com Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वर्णानुक्रमणिका ऊदावत १३१, १३८, १४२, १८५, २७५, | ऐडम्स ( प्रार्किचाल्ड ) ( डॉक्टर, कर्नल ) ४७६, २७८, २६८, ३२५, ३२६, ३३३, ३४०, ४८१, ५०३. ३५७, ३६०, ३७२, ३६०, ४३२, ४३६. ऊदासर ४१३. ऐडम्स ( सी ) ( मिस् ) ५०२. ऐडवर्ड (अष्टम ) ५७१, ५७३, ६३८. ऐडवर्ड ( शाहज़ादा ) ५४०. ऊनड़ ४८. ऊमाबाई ३४६. ऊहड़ ( खाँप ) ११३, ११४, १८३. ऊहड़ ( रा ० आसथानजी का पुत्र ) ४४. ॠ ऋषभदत्त ५. ऋषभदेव ६५. ए एकथंभा महल ३३०. एचिसन ४४२, ५०८. ए० जी० जी० ४३१, ४३२, ४७२, ४८४, ऐलगिन - राजपूत स्कूल ४६५. ऐलगिन (लॉर्ड ) ४६५. एटा ६६. एडवर्ड (अष्टम् ) ( सम्राट् ) ५७१, ५७३, ६३८. एडवर्ड ( सप्तम ) ( सम्राट् ) ४६६, ४८४, ५०२-५०४, ५१०, ५१३, ६३८. ए० डी० सी० ५७३, ५७४. एफ्रिका (पूर्वी) ५७७, ५७८, ५८०, ५८३, ५८५, ४८७, ४८६. एजैंट ४२२, ४३२, ४३४, ४३५, ४३७, ४५४. ऐलनबी ५६२. ५६१. एरोड्रोम ६१२, ऐडवर्ड - मैमोरियल ५१३, ५१६. ऐडवर्ड - रिलीफ कुंड ५१३. ऐडवर्ड ( सप्तम ) ४६६, ४८४, ऐतकादख़ाँ २७४, ३११, ३१२. ऐतमादुद्दौला ३२७. ऐडगर ( एस० जी० ) ५६७, ५७०, ५७२, ५७६, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ५१०, ५१३, ६३८. ऐडवर्ड-समंद ५१५. ऐडवाइजरी कमेटी ५३५. ऐनीमल हसबैंड्री ६१०. ऐफ्रिका (दक्षिणी ) ४६४. ऐफ्रिका (पूर्वी) ५६६, ५६६. एम्पायर म्यूज़ियम एसोसियेशा ६१५. ऐरनपुरा ४३०, ४४६, ४५८, ५७५, ऐरन पुरा-रेजीमैंट (४३ वीं) ४३०. ऐवन्स (G. F. ) ५४५. श्रो कार सिंह (डॉक्टर) ५५१. प्रखामंडन ४४. गवी ( सर जॉर्ज ) ५७३. प्रोछा १७१. प्रोडीट ६४, ६६. प्रोरलीन्स ५६५. प्रोल ३१७. ५०२-५०%, सवाल- स्कूल ४६६. ओसियाँ ५४, ५३६, ५६५, ५७७, ५८८, श्रौ तारकिशन ( कौल) ५६८. ७०१ 3 www.umaragyanbhandar.com Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास औरंगजेब बादशाह ) १७, ११५, १७६, २१७, २१८, २२०-२३०, २३२, २३५, २३६, २३८, २४२, २४३, २४६, २४७, २४६, २५१, २५२, २५५, २६१, २६७ - २६६, २८०, २८३, २८७, २८६ - २६३, ३२७, ३२८, ६२६, ६५५. औरंगाबाद २३३, २३८, २४२, २४४. क कंटालिया ४१८, ४३३, ४३६, ४५५. कंठाजी ३३८, ३४२, ३४३. कंठी - दुपट्टा सरोपाव ६३३. कंडाली ३४५० कं ( कुं) तजीकदम ३३४, ३४४, ३४६. कंधार ४, १८४, २०१, २०७, २१४, २१७, २१८, ६५०, ६५१. कंपनी ४०३, ४०४, ४२०, ४२२, ४३०. कँवरपदे का महल ४६३. कँवलियां १०३. कंस ३. कक्क ८. कक्कुक ७, ८. कचरदास ( छांगाणी ) ४२४. कच्छ ५, १२, ३५-३७, ४२६. कच्छ का रण १. कछवाहा ११६, १२१, १४२, १७४, १६८, २६८, ३५४, ३८२, ३८८, ४५०. कछवाही १३२. कछवाहीजी का महल ३४८. कजलबाश २१७. कजोई २४५. कदमखंडी २४०. कनपाल ( राव ) ३३, ४६, ५०. कनिष्क ४. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat कनीराम ( कूँपावत) ३६१. कन्नौज ८, ६, ३१, ३२, ३४, ३६, ४६, ४७, ६५, १७१. कन्सन टेटिव काउंसिल ५०४. कपासन ८०, ८३. कपूरचन्द ३१६. कप्तान ( अवैतनिक ) ५४१. कमध १६६. कमघज ६१. कमरुद्दीनखा ३२०, ३२१, ३२३, ३२७, कमजमीर २६१. कमवरखाँ ३०२, ३०६. कमालखाँ २४०. करंजा ५८८. करड़ा ३५. करण ( रा. रणमल्लजी का पुत्र ) ८०. करणमल (मोटा.रा. उदयसिंहजी का पुत्र) १८०. करणसिंह ( अहमदनगर ) ४४२. करणसिंह ( कूंपावत ) ४३१, ४३७. करगा ( ग ) सिंहजो ( र राजा - बीकानेर ) २३१, ६५२. करणी (नी) जी ६८, ६३, ६८. करणीदान २२. करणू ३८४. करनसिंह५८८. करमचन्द ( रा. रणमलजी का पुत्र ) ८०. करमचन्द्र ( सुत्रधार ) १२२. करमसी (रा. जोधाजी का पुत्र) ६५, ६६, १०३. करमसोत १३१, २७७, ३७७, ४३५, कराची ५०२, ५३०, ५४०, ५४५. कटारड़ा ४४०. कड़ा और दुशाला सरोपाव ६३३. कड़ा, मोती, दुशाला और मदील ( पगड़ी ) कराणी २४५. सरोपा व ६३३. करिज २८८, ७०२ www.umaragyanbhandar.com Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ करीमदाद ख़ाँ करीमखाँ ) ३३६, ३४१. कल्याणसागर २४४. करेमा ५८२. कल्याणसिंह ( ऊदावत ) ३५७. कर्ज़न (लॉर्ड ) ४६७, ५०१, ५०४, ५०७, ६१४. कल्याणसिंह ( नींबाज ) ३६०, ३६४, ३७७. कर्ण ( कन्नौजिया ) ६५, ६६. कल्याण सिंह ( मांगलिया ) ८७. कणं ( करण ) ( रा. किशनसिंहजी का भतीजा) कल्याणसिंह ( राव राजा ) ४६१. १६३. कल्याणसिंहजी ( राजा किशनगढ़ ) ४१६, ४२८, क (करण) सिंहजी (महाराणा ) १८८, १६१, २०३. कर्णाटक २०१. कर्नल ( ऑनरेरी ) ५७३. कर्नाट ४६. कर्मसेन ( राव आसकरण का पुत्र १५२, १६८. कर्म (करम) सेन ( राव उग्रसेन का पुत्र ) १८७, १६३, १६५. कर्माखेड़ी ३२१. कर्मावती १२०. कलकत्ता ४३६, ४५४, ४६६, ४७८, ५०३, ५०६, ५११-५१४, ५१६, ५२८, ५४१, ५४६, ५४८. कलक ८६. कलदार रुपया ५००, ५०१. कलश (कवि ) २७२, २७६. कला-कौशल और खानों का महकमा ६१६. कलात ३८५, ३८६. कलिचबेरा-फेदूनबेग ३८४. कल्याण ( बेलापुर ) १८६. कल्याण कटक ४६. कल्याणदास ( ब्राह्मण ) १८६. कल्याणदास ( रा. आसकरण का पुत्र ) १६८. कल्याणदास ( रा. महेशदास का पुत्र ) १७८. कल्याणदास ( रा. मालदेवजी का पुत्र ) १४४. कल्याणमल ( लोढा ) ४१०, ४२४. कल्याणमल ( सिंह ) जी (राव बीकानेर १२५, १३१, १३५, १३६, १३६, १५१. कल्याणरायजी १०४. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat वर्णानुक्रमणिका ४४७. कल्याणी ४६. कला ( कल्याणमल ) (रा. राम का पुत्र) १५८, १७३. कल्ला ( देवड़ा) १७५. कला ( रायमलोत ) १५२, १५३, १५५, १५६, १७५, १७६, १६२. कल्होरा ३८४, ३८६. कवलाँ २१६. कविराजा ४६१. कश्मीर ४८५, ५०४, ५१०, ५११, ५१५, ५३३, ५३६, ५६५. कश्मीरी ४६६. कसूंबी २७४. काउंसिल ऑफ स्टेट ५४५. कांचनगिरि १०. कांधल ७५, ८०, ८४, ८८-६०, ६८, १००, १०१. कांनकरण ४२५. काक ४६. काकड़खी १६२. का केलाव ३६१. कालाव व्यासों का ११६. कागा २४४, २७०, ४०६. काबली की घाटी ३६७. काज्रमखाँ २६५. का (ज़) जिमबेगखाँ २८१, २८३, २८४, २८८, २८६, २६५. काज़ी १७२, १७७. ७०३ www.umaragyanbhandar.com Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास काठियावाड़ ५, ३७, ४२, ५४३. कायलाणा (ना) ७०, ८५, ४६२, ५१०,५६०. काठी ३७. कायस्थ १५७, २५०, २५२, ३०८. काडी ३२. कायस्थ-स्कूल ४६६. काणाणा २७७, ४१६. कारतलबखाँ २८०. काणूंजा १५१. कारो ५६३, ५६४. कादिर ( सुलतान ) १२३. कारोलिया १४४. कानड़देव ( रा. छाडाजी का पुत्र ) ५२. कालयवन ३. कानसिंह ( पुलिस ) ५४२, ५४७, ५ ५३, ५५४, | कालाऊ ५८, ६६. ५५८, ५६८, ५७१. कालिंजर ६, १३२. कानसिंह (बीठोरा ) ४५०. कालिंद्री २५४, २५५. कानसिंह ( रिसाला) ५४१. काली नदी ३२. कानावास १४४. कालू ३६८. कानावासिया १७८. कालूराम ( पंचोली) ४३७. कानून ६२२. काशान २१४. कानूनी सलाहकार ( Legal Adviser ) | काशी १६, २५, ३०, ६६, २०४, २४३, ४३६, ६०२. ४४०, ५२६, ५६१. कान्ह ( रा आसकरणजी का पुत्र ) १६८. का ( क )श्मीर १७६, २०४, २१५.. कान्ह ( रा. गांगाजी का पुत्र ) ११५. कासली १२३, १४२, ३०६. कान्हड़देव ( परमार ) ११. कासिमखाँ २२०, २२२, २२४. कान्हड़देव ( राव तोडाजी का पुत्र ) ३३, । कासिमखाँ २७१, २७३. ५२...५४. कासिमखा ( नेशापुरी ) १३७, १३८. " कान्हड़देव ( सोनगरा ) १०, १५. कसिमपुर ३४०. कान्हा ( जगमाल का पुत्र ) ५५. काहुनी ८०, ८४-८६. कान्हाजी ( राव कान्ह ).६६, ६८, ६६, ७२, । किचनर ( लॉर्ड ) ५१२, ५६३.. ७३, ७५. कितुई ५८८. कापरड़ा ८०, ८५, ८८ किनसरिया १२. काबा १६५. किरकी ४८१. काबुल ४, १६७, २०५, २१३, २१६, २१७, किरमसीसर कलां ६०१. २३६-२३८, २४०, २४१, २४४, २४६, २४८ २५२, ४६६, ५०६, ६५१. किरमसीसर खुर्द ६०१. कामबख्श २६६, २६४, २६५, २६६, किरमाल की घाटी २८४. कामा (सादा का पुत्र ) १६६. किराडू १०-१२, १५३. कामासणी २४५. किलिण्डिनी ५७८. कायद्रां १४. किलिमंजरू ५८०. कायमखानी ६६. किल्याण ( मेड़तिया) २७६. .७०४ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वर्णानुक्रमणिका किशन ( कृष्ण ) गढ़ १, ४२, १८०, २४०, | कुंभा (जगमाल का पुत्र) ५५. २५७, ३०३-३०६, ३४७, ३५७, ३६१, | कुंभा ( सोलंकी) १८७. ३६४, ३६८, ३७२, ३७३, ३८३, ३८८, | कुंभाजी ( महाराना ) ७०, ७५-७६, ८१-८३, ३८६, ४०७, ४१६, ४२८, ४४७, ४५२, | ८५,८७,८६-६१,६६, १००. ४७८, ४८६, ४६०, ४६४, ४६८, ५०६-५११, | कुंभानी ३५४. ५१५,५१८,५२१,२७,५३०,५३४, | कुवरड़ा ७६. किशनदास १८५. कुँवरसेन ( लाला ) ५६८, ५७२, ५७६. किशनलाल ( शाह ) ५२७. कुचामन ३६१, ४०८, ४१०, ४११, ४१६, किशनसिंह ( भाटी) ३७१. ४२८, ४३६, ४३७, ४४८, ४५१, ४५६, ४५६, किशनसिंह ( रा. गांगाजी का पुत्र ) ११५. ४६४, ४६६, ४७४, ४८४, ४८७, ४६४, ५०१, किशन (कृष्ण) सिंहजी (केहरी) (राजा किशनगढ़) | ५०४,६२८,६४७. १७६, १८०, १६२, १६३. कुचामन की टकसाल ६४७. किशोर कुँवरी बाई साहिबा ५६५, ५६६, १७०. कुचामन रोड ४८३, ४८७, ६०३. किशोर सिंह (ठाकुर मेजर) ५३८, ५६६. कुचामनिया रुपया ६४७. किशोरसिंह (म० अजितसिंहजी का पुत्र) ३२८, कुचामनिये रुपये पर के कुछ लेख ६४८. ३२६, ३७१. कुचीपला ४४१. किशोरसिंहजी (महाराज) २५, ४४४, ४६१, कुचेरा ४३७, ४४४, ४५१, ६५४. ४६७, ४६६, ४६८. कुड़की २६७, ४१६. किशोरसिंह (राजगढ़) ३६५. कुतुब ( बुद्दीन ) खाँ ( जूनागढ़ का फौजदार ) किशोरीमान (लाला) ४८५. २३३. कीटिंग (लैफ्टिनेन्ट कर्नल ) ४५६. कुतुबुद्दीन ( ऐबक ) १०, ११, १४. कीतलसर ४४०. कुतुबुद्दीनखाँ १६४. कीरतपाल ( रा. धूहड़जी का पुत्र ) ४८. कुतुबुलमुल्क ३११-३१४, ३१६, ३१७... कीरतपुरा ३६६. कुन्दनमल ( मुहता ).४५६, कीरतसिंह (आंबेर ) २३८.. कुमारपाल १२, ३६. कीरतसिंह ( देवड़ा) १६५. कुम्भकर्ण ( जैतावत ) १६६. कीर्तिकौमुदी ३६. कुम्भकर्ण ( बारहट ) १७६. कीर्तिपाल ( चौहान ) १०. कुरमा १६५. कीर्तिसिंह ( रा. उदैसिंहजी का पुत्र) १७८, कुरुक्षेत्र ३०३. कुंजविहारीजी का मंदिर ३६४, कुलिचखाँ १७६. कुंडल ५६, १०४, १७१, २८३, २८५. कुलीचखाँ २६६. कुंडा २३६. कुशलराज ( सिंघी ) ४२८, ४२६, ४३३, ४३७. कुंतन ८७. ४४७, ४४८, ४५०, ४५१. कुंभलगढ़ ( मेर ) १२५, १३७, १४२, १८८, | कुशलसिंह ( आउवा ) ३६१, ३६३, ३८३. २६५, २६६, २८२. कुशलसिंह ( मांडा-ठाकुर ) ३५६. , ७०५ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास कुशलसिंह ( मेड़तिया ) २६०-२६२. कुशान ४. कुशालसिंह (ग्राउवा ) ४३६, ४५०, ४५३. कुष्ठरोग ६०८. कंपड़ावास ३५७. कूंपा ( रा० जोधाजी का पुत्र ) १०३. कूंपा ( रा० मल्लिनाथजी का पुत्र ) ५४. कूंपाजी ( आसोप ) ११४, ११८, ११६, १२४, १२५, १३०, १३१. कूंपावत १५८, १५६, २०१, २०२, २०४, २१०, २१२, २२६, २६३, २७५, २७७, २७८, ३३२, ३५६, ३६१, ३८०, ३६०, ३६६, ४३६, ४३७, ६५४. केशवदास ( रा० उदयसिंहजी का पुत्र ) १८०. केशवदासोत २५६. केसरख़ाँ ( खोखर ) ३७४. केसरवाली ३६५, ४४०. केसरीसिंह ( आसोप ) ४१८, ४२४. केसरीसिंह ( कायस्थ ) २५०, २५२. केसरीसिंह ( कुचामन ठाकुर ) ४४८, ४५१. केसरी सिंह ( धांधल ) ४२८. केसरी सिंह (बगड़ी ) ४१२. केसरीसिंह ( मेड़तिया ) ३५२. कृष्णकुमारी ( कुँवरी ) १७६, ४०५, ४०६, केसरीसिंह (रायपुर) ३८४. कूड़ी ४४०. कृषि-विद्यालय ५५६. कृष्ण (तृतीय) ११. ४०६, ४१२, ४१५. कृष्णाराज ( द्वितीय ) ११. कृष्णविलास २३, ४३६. कृष्णविलास २५. कृष्णा ( नदी ) ३७०. केकड़ी १४२, १८०, ३२६, ३५४, ३७५. केटर ( A, N. L ) ५५१. केटर ( A. W. L ) ५५६. केनिया ( जहाज़ ) ५७७, ५८४, ५८८. केनिया ( पहाड़ ) ५८१. केनिया (शहर) ५७७, ५७८,५८८. केम्ब्रे ५६६. केरल ३४५. केला ( रा ० रायपालजी का पुत्र ) ४६. केलकोट १४४. केलवा १२१, १३२, २५५. केल्हण ( चौहान ) १०. केल्ह (ल) ग ( भाटी ) ६७, ६४. केवाय माता १२. केशवदास (कल्ना का बंधु ) १५३. केशवदास (गाडण ) २०. केशवदास (माबुवा ) १०६. केशव (शो) दास ( मेड़तिया ) १५२, १६३. केशवदास ( रतनाम ) १७६. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat केसरी सिंह (रास ) ३६०, ३६४, ३७१, ३७७, ३७८. केसरीसिंह ( सोभावत ) ४६५. केसरीसिंहजी (ईडर ) ५०१, ५०४. केसरीसिंहजी ( रीवां ) ४५३. केस (श) व ( सूत्रधार ) १२२. के. सी. एस. आइ ५५०. के. सी. वी. ओ. ५४२ केहरजी ( महारावल ) ( भाटी ) ६७, ८६. कैबे ३४२, ३४६, ३५०. कैडैटकोर ५०४. कैम्ब्रिज यूनीवर्सिटी ४६ ६. कैरू ६२. कैसरेहिन्द जहाज ५५८. कोंकण ४६. कोचकबेग़ २५१. कोटकिराना ४२६. ७०६ www.umaragyanbhandar.com Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कोटड़ा ७६, १०७, ११६, १३४, १४२, ६०१. कोटड़ा २०६. कोटला ५४२. कोट सोलंकियान ७१. कोटा २२२, २४०, ३४७, ३५३, ३५५, ३५७, ४०२, ४४३, ४८६, ४८८ - ४६०, ४६४ - ४६६, ५३४, ५६५. कोटेचा ६०, ६२. कोठावाला ( M. R. ) ५३६, ५४७, ५५१, ५५४, ५५८, ५६६, ५७४. कोड़मदे (वी) ( सादा की स्त्री ) ६७, ६४. कोड़मदेवी ( रा० जोधाजी की माता ) ६४. कोड़मदेसर ६७, ६४. कोड़मदेसर (गाँव) ६८. कोड़ा २२७. कोड़िया पट्टी ( जाखेड़ों की ) ३२९. कोतवाल ६२२. कोतवाली ३६६. कोतवाली का मकान ४६२. ३४४, ३४६. कोलीवाड़ा ३०८. कोलू ४५, १०४, २७८. कोलू (पुरोहितों का बास ) १०३. कोलूमढ़ ३६. कोलो ५८१. कोल्हापुर ३०६, ४८६. वर्णानुक्रमणिका कोसाना ८५, ८७, १०६, १२०, १२१, २८१, ३५६. कोसी ३१७. कोसीथल १२४, १४२. कौंडोभा इरंगी ५८२. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat कौब ( मिस्टर ) ५१०. कौरव ४. क्वेटा ५४७, ५४८, ५७०. क्षत्रप ५, ६, ६३४. खंगार १०८ खंगारोत ३२३. खंडेला २४४, ३५४. खंभात १७३, ३४२, ३४६, ३५०. खजवा २२७, ६५५. कोटा ( टोंस नदी पर ) २०४. कोरना (या) १५३, १८३. कोरी ३१६. कोर्ट ऑफ वार्डस ५३६, ६१६. कोर्ट सरदारान ४७४, ४७५, ४६४, ५०४, ५०६, ५१२, ५४८, ६२०. कोलिया ४१४. खवासपुरा १२१. कोली ४३, १८५, १८६, २३१, २८९, ३०८, ख़ाँ आज़म १८२. खाँ जमां २६३. खाँ ज़हां २६४, २६७. ख़ाँ जहां ६५०. खाँ जहां बहादुर २४६ - २५२, २६०, २७३, खजवाना ३३३. खजाने का महकमा ६०५. खटूकड़ा ४४०. खमणोर १६२. खरबूजी ३४७, ३४६. खरबा १८०, २६५, ३७२, ३७५, ३७६, ३८६, ३६८. खराड़ी १०३. खलील उल्ला ख़ाँ २२५, ६५३. ख़वासख़ाँ १२१, १३२. २७६. खांडेराव ३६३. खांडेराव दाभाड़े ३४४, ३४६. ७०७ www.umaragyanbhandar.com Page #327 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास ख़ाँ दौराँ २६७, ३१०, ३१२, ३२४, ३४८. ख़ाँ दौरां ( नसरत जंग ) ६५०, ६५२. खाँनखाँना ( अब्दुलरहीम ) १७२, १८४, १८६, १८७, १६६, १६६, २००. खाँनखाँना ( बहराम ) १३८. खाँनखानाँ ( मुहब्बतख़ाँ ) ३०१. खाँनजहां २४०. खाँनजहां (लोदी ) १६४, २०५, २०६. खाँनज़ादा १४२. खाचरोद २२१, २६५. खाटावास १७८. खाटू ६३, ७६, १४२, ४५६, ४६०. खाटू (छोटी) ३७७. खाती खेड़ा ४६२. खानदेश २०१, २७२. खानपुर ३३८. खानसिंह ५६७, ५६६. खानूजी ३,८१. खानों और कला-कौशल का महकमा ६१६. खाफीख़ाँ २२३. खाबड़ १२३, १४२. खारची ६६, ४७२. खारटूम ५६३. खारड़ा ( मेवासा) ३६५. खाराबेरा १०३, ११५. खारिया १०४, ३८०. खारिया फादड़ा ४४०. खारी ६६. खारी कलां ( चारणां ) १४४. खास महकमा ४६३. खिजिरखाँ ६५, ६७. खिड़की २०१. ख़िदमत गुज़ारखाँ २४६, २५१. खिनावड़ी १४४. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat मिसेपुर ३१. खींवकर १२४, १३१. खींवसर ६६, १०, १३१, २७८, ४१३, ४२४. खींवसी ७२. खींवसी ४१७. खींवसी (भंडारी ) ३३२, ३३४. खींवा ( श्रसरलाई ) १५१. खींवा (आसोप ) १६४, खींवा ( पौकरना राठोड़ ) १०८. खींवा (राठोड़ ) १७२, १८८. खीचंद ३२६. खीची ४५, ४८, ८६, १७५, १८२, २५४, २५५, २७८, ३७८, ३६०, ४२३, ५२१, ५२३, ५५४. खीचीवाड़ा १७०. खीपसा ४४, ४५. खीमसी ५२. खुजिस्तातर ( जहांशाह ) ३१७. खुडाला १७८. खुदानंदखाँ ( हबशी ) १८४. खुदाबाद ( शिकारपुर ) ३८६. खुरासान २३६. ७०८ खुरम ( अकबर का अमीर ) १५३, १६४. खुर्रम ( मलिक ) ६३. खुर्रम ( शाहज़ादा ) १९०, १६१, १६३, १६४, १९६, २०० - २०६. खुसरो १४. खुसरो (मल्लिक ) १४. खूबचंद (सिंघी ) ४३०. खेजड़ला ३६८, ४०८, ४०३, ४२४, ४५०, ४५६. さす खेड़ १०, ३४, ३८, ३६, ४२-४४, ४६-५०, ५२-५५, ११६. खेड़कोट ३७. www.umaragyanbhandar.com Page #328 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खेड़ेचा ४३, ४६. खेतड़ी ४०४, ४०५, ४०७, ४८५, ४८६, ४६०, ४६४, ४६६. खेतपाल ४८. खेतसी (बाघाजी का पुत्र ) ११०. खेतसी ( भाटी ) ३०८. खेताजी (महाराणा ) ७५. खेतावास ४४०. खेतासर २६३. खेमकरण २६०. खेम ( खींव ) सी ३०६, ३०७, ३२४. खेड़ापा १४४, ३२६. खैबर २४०, २४१. खोड़ १८८. खोड़ेचां १०३. खोर ३२, ६५. ख्वाबगाह के महल ३२६. ग गंगदेव ६१. गंगवाना ३५२ - ३५४. गगराणा ६७, ३६४. गज़नी १४, २१४. गज़नीखाँ ( जालोरी) ११२, ३०६. गज़नीख़ाँ ( नाडोल ) १८८. गजनेर ६३, ४१४. खैरपुर ३८५. खैरवा ८०, ८८, ६०, ६१, १२४, १२५, ४४८, गजसिंह ( भाटी ) ४२४, ४२५. ४४६, ४५६, ४६६, ४७४. गजसिंह (मेवाड़) २८५. खैरागढ़ २०४. खोखर ( गांव ) ५६७. गजसिंहजी ( जोधपुर - महाराजा ) २०, २८, १८७ - १६०, १६३-१६५, १६८ - २०६, २१०, २११, २१३, २१६, ६४०, ६४६, ६५१. गजसिंहजी ( बीकानेर ) ३५५, ३६१, ३६४, खोखर (जाति) ६२, ६३, ३७४. खोखर ( राव छाडाजी का पुत्र) ५२. खोखरोपार ६०३. ३७२, ३७५, ३८३. गंगश्याम ११५. गंगश्याम का मंदिर ३६३, ३६४, ४६२. गंगा ३४, ७५, १२३, ४६६. गंगा ( कैनाल ) ५५५. गंगागुरु३२६. गंगादास १३५. गंगाप्रसाद पंडित ४८७. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat गंगारड़ा ३७२. गंगाराम ( भंडारी ) ३६६, ४०१, ४०२, ४०६. ४०६, ४१०. गंगाराम ( व्यास ) ४३७. गंगावा ४५१. गंगासिंहजी ( बीकानेर - महाराजा ) ४८५, ४६७, ४६८. गंदाबनदी २४०. गंभीरमल ४३६. वर्णानुक्रमणिका गजसिंहपुरा ३५४. गडरारोड ५५३. गडवाड़ा ६६. गढ़ पिंडारा १६६. गढ़ बटली ३२४, ३२५. गढ़मुक्तेश्वर ३३५. गणेशचंद ( मेहता ) ४६४, ४६८. गणेशदास ( खीची) १७५. गणेशप्रसाद ( कप्तान) ५०१. गदाधर १२२. गधिया ( गधैया ) ६, ६३४-६३६. गधैया ६, ६३४, ६३५. गया १६, ७५, ६५, ६६, २०४, ४६६. गया गुरु ४४०. ७०६ www.umaragyanbhandar.com Page #329 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास गयासुद्दीन बलबन ( सुलतान ) ६४०. गयूरग्रहमद ४८८. गवर्नमैंट ४२५-४३०, ४२१, ४२२, ४३२-४३५, ४३६, ४४२-४४५, ४५२, ४५३, ४५५-४५६, ४६३, ४६५, ४६७-४७०, ४७२, ४७५, ४७६-४८१, ४८३, ४८५, ४६०, ४६३, ४६७-५०१, ५०३ - ५०६, ५०७, ५०६–५११, ५१३, ५१६-५१८, ५२०-५२३, ५२५, ५२६, ५२८, ५३०, ५३६, ५४६, ५५०, ५६०, ५७५, ६१२. गवर्नर ४८१, ४८३, ४८७. गवर्नर जनरल ४२०-४२२, ४२८, ४३३, ४३५, ४५४, ४५५, ४५६, ४६६, ५१०, ५७२. गवर्नर जनरल का एजैंट ४४६, ४४८, ४५१, ४५४, ४५६, ४५७, ४६०. गवर्नर बंबई ५२७. गवां ५१०. गांगा की बावड़ी ११५. गांगाजी (राव) ११०-११६, ११८. गांगाणा ४४०. गांगाणी १४८, १७०, १८२. गांगेलाव ११५, गॉइडर ( जी. बी. ) ५०४, ५१६, ५२२. गागरू (रौ ) न७६, ८६. गाज़ा ५६७. गाज़िउद्दीन ३१४. गाडवा २६५. गाधेड़ी ४४४. गायकवाड़ ३३४, ३४२, ३४६. गिरदीकोट ३६४, ५१३. गिरधर बहादुर ( राजा ) ३२५. गिरधारी सिंह ( चंडावल ठाकुर ) ५४१. गिरनार ४३८. गिररी १२६, १३०. गिराब ३८४. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat गिलन ( G. V. B. ) ५७४. गिलावासणी ६०१. गिवेंची ५६५. गींगोली ४०८, ४१४. गींदोली ५४. गुजरात ३, ५, ६, ८, ११-१५, ३२, ३४, ३६, ३७, ४३, ५४, ५५, ६२-६४, ७७, ८०, ८६, ६०, १०२, १११, ११६, ११८, १२२, १२३, १३५, १३८, १५१, १६८, १८१-१८३, १८५- १८७, १६४, १६५, १६७, २००, २०८, २२०, २३०-२३३, २३८-२४०, २४३, २६२, २६६, २७६, २८०, २८१, २८३ - २८५, २८८, २८६, ३०४, ३०८, ३१०, ३१३, ३१५, ३१६, ३२१, ३२३, ३३२, ३३६, ३३७, ३४०-३४३, ३४६, ३४७, ३४६, ३५०, ३५६, ४१६, ४२६, ६३५, ६३७. गुजराती ३३७, ३३८. गुजरी २३८. गुड़ा (ढा) १२४. गुड़ा (ढा) ४५८. गुड़ा (ढा) ( मालानी ) १०, ४२६, ४४२, ६१८. गुड़ाल ४४. गुढ़ा -जाटों का ४८६. गुढ़ा -लास का ४८६. गुढ़ा - सुधारों का ४८६. गुणपालिया ४४०. गुणभाषा चित्र २०. गुणरूपक ( केशवदास कृत ) २०. गुणरूपक ( हेमकवि कृत ) २०. गुणसली ३६६. गुणसार २१. गुप्त ५, ६३४. गुमान २४. ७१० www.umaragyanbhandar.com Page #330 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वर्णानुक्रमणिका गुमानसिंह ( खीची ) ५२१, १२३. गोठ ५, ३०३. गुमानसिंहजी ( महाराज कुमार ) ५२०. गोड (ढ) वाड़ ११-१३, ४३, ७८-८१, ८४, गुमानसिंहजी (महा. विजयसिंहजी के पुत्र )। ८८-६०, १०२, ११४, १२४, १२५, २५६, ३६४, ४०१, ४०४. २६४, २६६, २७३, २८४, २६५, ३३३, गुर्जर ६, ७. ___३८२, ३८३, ३६४, ३६६-३६८, ४१५, गुलबदन बेगम १२६, १२८, ४३०, ४४१, ४४६, ४५७, ४७१, ४८८, गुलराज (सिंघी) ४१८, ४१६, ४८६, गुलाबराय (पासवान ) ३६०, ३६१, ३६४, गोदेलावास २४५, ३२६. गोपा ६६. गुलाबसागर ३६४, ४६२, ४८०, ५०२. गोपालदास (ऊहड़ ) १८३. गुलाबसिंह ( पुलिस-इन्सपेक्टर ) ५४३. गोपालदास (चांपावत) १७३, १७४. गुलाबसिंहजी ( रीवां-महाराजा ) ५३६-५३६. गोपालदास (पंचोली ) ४२०, ४२३. गुलाममुहम्मद ( मीर ) ३८५. गोपालदास ( भाटी) १८८. गुलामहुसैनखाँ ३६६. गोपालदास ( म. सूरसिंहजी का भतीजा ) १६२. गुसांई ३२६, ३६५, ४४०, ५०६. गोपालदास ( मेड़तिया ) २१४, २१८. गुहिल ( गोयल-गोहिल-गहलोत-गुहिलोत ) गोपालदास (राठोड़) १८६. ११, ३४, ३८, ३६, ४२, ४७, ७०. १८२, गोपालदास (रा. मालदेवजी का पुत्र) १४४. २६६, ३७४, गोपालपुरा ३४६, गूंदीसर ३२६, गोपालपौल ३२६, ४४६. गूंदोज (च) ४२, ८८, १२१, १३२, १४३, गोपीनाथ (मेड़तिया) २८२. १४८, ४४६. गोपीनाथ (राय) १८६. गूघरोट २७६. गोपीनाथ (राव सूजाजी का पुत्र) ११०. गूजर १५१, १७०. गोपीनाथजी का मन्दिर ४४०, गूलर ३८०, ४४८, ४५०, ४५३, ४५६. गोयन्द६०. गेबील (E.V.) ५१०. गोयन्ददास (सोभावत) ३७३. गेसूखाँ ३२४. गोयन्दपुरा ४४४. गैब्रील (G. H.) ५५६, ५५६, गोयन्दाणा ( गढ़) ३६, ४६. गैमावास १६७. गोरक्षसहस्र नाम की टीका २४. गैलावस ३२६, गोरधन (गोवर्धन) (खीची ) ३७८, ३६०. गैलावसिया १६७. गोरधन (धांधल ) ४२४, ४२५. गोकलघाट ३६२. | गोरधनसिंह (कंटालिया) ४५५. गोगादे (चौहान) ८६. गोरनडी ४४०. गोगादेव (राव वीरमजी का पुत्र ) २०, ५६, गोराऊ ५२२, ५३६. ५७, ६६. गोरेड़ी खुर्द ३२६. गोगुंदा १६२, १६४, १६०, १६१. | गोल ३५८. ७११ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #331 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास गोलकुंडा २०१. घनश्यामजी का मंदिर (पचदेवरियों वाला) गोलमेज़ कॉनफ्रेन्स ५६४, ५६५. ३३०. गोलासनी ५६४. घाटा ३८०. गोलिया ६०१. घाणेराव ८८, ३२६, ४०५, ४१५, ४४६, ४५५. गोल्डन जुबिली ४८१. घासमारी २३६, ३८१. गोवर्धन पर्वत २४०. घीसूलाल ५७२. गोवर्धनलालजी (गुसाँई) ५०६, घुड़ला । घडूला ) १०६. गोविन्द (कूपा) १२६. घूघरोट १२३. गोविन्ददास ( जोधा) २४१. घेवड़ा ११५. गोविन्ददास (भाटी) १८२, १८३, १८५, घोडारण ३२६. १८७-१८६, १६१-१६३, १९७. घोड़ा सरोपाव ६३३. गोविन्ददास (रा. उदयसिंहजी का पौत्र) १८६. घोरानिये पुल ५६७. गोविन्ददास (ग० सूजाजी का पौत्र) १०८, १३३. घोसूडी १६, ६६. गोविन्दराम (भट्ट) ३५३, ३५५. गोविन्दराव ३७६. चंग ४२६, गोश्चन (लॉर्ड) ५६०. चंगावड़ा ११६. गो (गु) सांईजी (गोस्वामी) २४०, ३५७, चंगावड़ा (खुर्द ) ३६६. ३८१, ३६५, ४०२, ४४०. चंडावल ३५६, ३६१, ३६८, ४१२, ४१८, गौड़ ८, १२, १३, २२२, २२३, २३८, ३५१, ४२४, ४२५, ४३१, ४५६, ५४१. ३५३, ६५३, ६५४. चंडू १२१. गौड़ावाटी १३, ३६२, ४०८. चंडू-पंचांग १२१, ६१५. गौतमी-पुत्र शातकर्णि ५. चंडूला ३४४. गौरीशंकरजी (अोमाजी ) १६६, १८७, १८६. चंद ४८. गौर्डन ( जनरल ) ५६३. चंद्रगुप्त ( द्वितीय ) ५. गौर्डन ( मेजर ) ५७१. चंद्रगुप्त ( मौर्य ) ४. ग्रहरिपु ३६. चंद्रपाल ४८, ग्रांट (G. W.Grant कर्नल ) ५०२, ५०६. चंद्रप्रबोध २१. ग्रांट डफ ३३६, ३४७, ३४६, ३७४, ४०३, | चंद्रभान जोधा २५७. ४०७. चंद्रसेनजी (प्रांबेर ) १०१. ग्रीस ५६६. चंद्रसेनजी (राव जोधपुर) १७,१३५,१३८-१४१, ग्वालियर ८, ६६, ५१५, ५३०, ६५०, । १४४, १४७-१६५, १७०, १८२, १८७, १६०, २१८, ६००. घंटाघर ५१३. नंद्रावत २२३. घटियाला ७, ८, ११५. ववालिये (ए) २७, ३८१. घटियाली ३५१. चकन दुर्ग २३६. घ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #332 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चक्रेश्वरी ४६, ४७, ६५. चतुरसाल ( बूँदेला ) ३०१. चतुर सिंह (म० अजितसिंहजी का पुत्र ) ३२८. चतुर्भुज ( उपाध्याय ) ४१०. ) ४८६. चतुर्भुज ( क चतुर्भुज ( भंडारी ) ४१८. चतुर्भुज विष्णु १६६. चनाब २१६. चनियार २८६. चरखारी ५६५. ३८८, ३६०, ३६६, ३६८. चाँदी के सिक्के ६४२. चाँदी के सिक्कों पर के कुछ लेख ६४५, ६४६. चाँदेलाव ३८०. चाँपा ८०, चाँपानेर ३३८, ३४५. ८६-८८, ६५. चवां ४०८, ४४०. चांचलवा १०३, ३५७. चांणोद १०६, ४१५. चाँदकुंवरी ६३. चांदणी ५०. चांदपौल ( दरवाज़ा ) १६८, २१६, ३५७, ४१८, ४६६, ६११. चाँदबावड़ी ( चौहान बावड़ी ) ६३. चाँदराव १०३. चाँदशाही ६४१. चाँदारूण २६०. चाँदावत २५४, २५५, २८१, ३५६, ३६७, चावंडिया ५५४. चाँपावत १३४, १७३, १७४, २१२, २१८, २५०, २५३, २५६, २६३, २७१, २७४-२७६, २७८, २८१, २८२, २८४,२८८, २६०, २६८, ३०१, ३०८, ३३४, ३६१, ३७३, ३७६-३८१, ४०८, ४३६, ४५०, ५४२, ६५४. चॉमलोद ( चाणोद ) १८८. चाकर ( मीर ) ३८५. वर्णानुक्रमणिका चाकरी ४१३, ४५७, ४५८, ५०६, ५२०, ५४५, ६१८, ६२७, ६२६-६३१. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat चाचक ४५. चाचा ६७, ७५-७६, ८१, ८२, ८७. चाचिगदेव ( खीची ) ८६. चाचिगदेव ( चौहान ) ६, ३६. चाचिगदेव ( रा ० चंडाजी का पुत्र ) ६६. चाटसू ७६, १२३, १४२, १४३. चामर्स (थोडोर ) ५४८. चामुंडा (देवी) २७, ६१, ६५, ६६, ३३०, ४४६, ४६२, ५१८, ५५८. चारण ४५, ६६, ७६, १०३, १०६, ११६, १४४, १७८, १६७, २०६, २४५, ३२६, ३६६, ३६६, ३६५, ४४०, ४४३, ४६१-४६३, ४७३, ४६२, ६००, ६०१, ६१०, ६५४, ६५५. चारणवाड़ा ( चारणों का बाड़ा ) ४४०, ६००. चारभुजा २४५. चारवास ११५, १४४. चालुक्य १३. चावंडा ( गांव ) ६१. चावड़ा ६, ७, ३५, ४४, ७४. चावड़ीजी ४६२. चिकित्सा - विभाग ६०७. चिड़ियाघर ६१२. चिड़ियानाथ ६२, १४३. चित्तौड़ ४, १८, ४६, ७५–७७, ८०, ८२, ८३, ८६, ६०, ११६, १२४, १४० - १४२, १६१, १६२, २६३, २६४. चिमणवा ४४४. चिमनाजी ३३८, ३४२, ३४३. चीतरोड़ी ८३. चीन ६, ५०१-५०३, ५१७. चीफ कोर्ट ५२१, ६२०, ६२१, ६२३. ७१३ www.umaragyanbhandar.com Page #333 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास चीफ जज ५२१, ५२६. चौबारी ३८४. चीफ मिनिस्टर ६०२. चौरासी पदार्थ नामावली २३. चुकावस ४४०. चौसल ३५१. चूटीसरा ५६. चौसा १२३. चूंडा ( रावत-मेवाड़ ) ७१, ७२, ७६, ७६, | चौहटन १४२, ५५८. ८१-८८. चौहान ८-१५, ३५, ३८, ३६, ४५, ४७, चूंडाजी ( राव जोधपुर) ६, १५, ३३, ५४-७३, ५१-५३, ६३, ६६, ६७, ७३, ७४, ८४, ८३, ८५, ६०. ८६, ६३, ६६, १००, १०४, १०५, ११३, चूंडावत ६३. ११४, १२३, १२४, १४२, १८६, २१५, चूडासर ( गांव-नागोर) ५६, ८४, ६८. २२८, २७६, २७७, २८८, २६१, २६६, चूडासर ( तालाव ) ६३. ३६५, ५२६, ६३६. चूडामन ( भरतपुर ) ३२२, ३५२, ३५३. चेचक ६०७. छज्जूराम (तिवाड़ी) ५२८, ५३५. चेटवुड (लेडी) ५६८. छतरसिंह (नींबाज-ठाकुर ) ४८४, ४६४. चेम्बर ऑफ प्रिंसेज़ ५३८, ५४५. छतारी ६३. चेराई ८, २६३. चैनकरण ( सिंघी ) ३६८, ४१८, ४१६. छत्रसाल ( भाटी ) ४०४, ४०५, ४१३. छत्रसाल ( मेहता) ४४८, ४४६. चैनसिंह ( आसोप-ठाकुर) ४८४, ४६४, ५१४, छत्रसाल ( रतलाम ) १७६. ५१६, ५३५. छत्रसिंह (आसोप) ३७८. चैनसिंह (पौकरन-ठाकुर ) ५२५, ५३६, ५५६, छत्रसिंह ( जयसलमेर) ४५३. ५५६, ५६०, ५६५, ५७०, ५७२. छत्रसिंहजी ( म० मानसिंहजी के पुत्र ) चैनसिंह ( बारठ) ४४३. ४१६-४२२, ४२४, ४३८, ४४१. चैनसुख का बेरा ६०८. छप्पन के पहाड़ ( मेवाड़ ) १६२. चैना २४. छप्पन के पहाड़ ( सिवाना) १६२. चैम्सफोर्ड ( लॉर्ड) १६, ५३७. छली १६७. चोर नराणा २२२. छांगाणी ४२४. चौकड़ी ८५, ८७. छाजड़ ४६. चौकेलाव ३५८, ४४०, ४६२. छाडाजी ( राव जोधपुर ) ३३, ५१, ५२. चौखां ३५७. छापर १०२, १४२. चौथ २८२, ३३७, ३३८, ३४४, ३४६, ३४८. | छापर (द्रोणपुर ) ६६, ६७-१०३. चौधरी २६६. छापाखाना ( राजकीय ) ६.६. चौपड़ा ४२५. छिपिया २६८. चौपासनी २४०, ३५७, ४०२, ४१८, ४४६, छीडिया १६७. ४६५, ५२२, ५३१, ५६०. | बीतर ५६०. चौपासणी चारणां १४४. | छीतर ( पहाड़ी) का महन ६११. ७१४ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #334 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छैलबाग ४६२. छोगा ( श्रीमाली ब्राह्मण ) ४४६. छोटमल ( रावत ) ४६४, ५२१. छोर ५०२. ज जंगलात ४८२, ६१६. जंगलात का महकमा ६०६. जंबूसर ३३७, ३४५. जगजीवन (भट्ट) २१, २२, २४६. जगतराय १५२, १६३. जगतसिंह ( भाटी ) ४५०. जगतसिंह ( राजा बासू का पुत्र ) ६५१. जगत सिंह ( रावराजा ) ५३६. जगतसिंहजी ( जयपुर - नरेश ) ४०५ - ४१२, __४१४-४१६. जगत सिंहजी (द्वितीय) (महाराना ) ३५४, ३५६, ३६८, ३६७. जगतसिंहजी (म० जसवन्तसिंहजी प्रथम का पुत्र ) २४१. जगन्नाथ ( धाय भाई ) ३७७ - ३८०. जगन्नाथरायजी ( ठाकुरजी ) २४५, ३६५. जगन्नाथ सिंह ( मेड़तिया ) १८५. जगपाल (रा. मल्लिनाथजी का पुत्र ) ५४. जगमाल (तेजसी का पुत्र ) २१५. जगमाल ( महारावल नगर ) ३८, ४७. जगमाल (मेड़तिया) १३७, १३६ - १४१, १४६, १५६. जगमाल (मेवाड़) १६१, १६८, १६६, १७३, १७७. जगमाल ( रा ० जोधाजी का पुत्र ) १०३. जगमाल ( रा ० रणमल्लजी का पुत्र ) ८०. जगमाल ( रावल मल्लिनाथजी का पुत्र ) ५४-५६, ५६, १०७. जगमाल ( राव - सिरोही ) ११५. जगरामसिंह ( ऊदावत ) २७५, २६०. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat वर्णानुक्रमणिका जग्गू ( जगन्नाथ ), ( पुष्करणा ब्राह्मण पुरोहित ) ३३५, ३५३. जज़िया २४७, २५१, २५६, २६१, २७२, ३१५. जज्मर ४२७. जदुनाथ सरकार २३४, २३६, २४२. जनको (कू) जी ३७४–३७६. ज़फरखाँ १५, ६२, ६३. ज़बरदस्तख़ाँ २८६. जमरूद २१२, २३६- २४२, २४८. जयच (च) न्द्र (न्द) ३१-३४, ३६, ४६. जयदेव ( पुरोहित ) २५४, २५५. जय (जै) पुर १, ७६, १०७, १२३, १६१, २०३, २०५, २२८, २६३, २६४, २६६, ३०२, ३११, ३१३, ३१५, ३२१, ३२४, ३२५, ३३२, ३३५, ३४७, ३४८, ३५१-३५६, ३६०-३६६, ३६८, ३७२, ३७५, ३७६, ३७६, ३८२, ३८३, ३८७-३८६, ३६८, ४०४–४१२, ४१४-४१६, ४२७, ४३६, ४४६–४४८, ४५३, ४५४, ४५८, ४६३, ४६६, ४७०, ४७५, ४७७, ४८३, ४८६, ४६०, ४६३, ४६४, ५०६, ५११, ५१५, ५४३, ५४७, ५४६, ५५२, ५५३, ५६०, ५६४ - ५६७, ५७०, ५७१, ६२८. जय (जै) पौल ४०६, ४४०. जयमल ( मुँहणोत ) २१५. जयमल ( मेड़तिया ) १५६, १६२. जय (जै ) सलमेर १, २, ७, ३७, ४८, ४६, ५१, ५८, ६४, ६७, ७३, ७४, ८६, १०२-१०४, १०५, १२०, १२१, १२६-१२८, १३३, १३४, १४५, १५७, १७१, १८३, २१७, २१८, २३१, ३२६, ३३४, ३६६, ४३७, ४४८, ४५३, ४८४, ४८५, ४८८, ४६३, ४६६, ५०५, ५०८, ५०६, ५११, ५१२, ५२१. जयसिंह ( जयन्तसिंह सोलंकी ) (द्वितीय) ३२, ३७. ७१५ www.umaragyanbhandar.com Page #335 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास जयसिंह (सिद्धराज सोलंकी ) १२, ३७. जवाहरसिंह ( डकैत अरटिया ) ११२, ५५४. जयसिंहजी (द्वितीय) (सवाईराजा जयपुर ) | जवाहरसिंह ( डकैत चूटीसर ) ४४५. २६३, २६५-२६८, ३०१, ३०२, ३०५, जवाहरसिंह ( रामसर ) ११८. ३११, ३१३-३१६, ३२१, ३२३-३२७, जवाहरसिंह ( रावराजा ) ४६१ ३२६, ३३२, ३३४, ३३५, ३४८, ३५१-३५६. जवाहरसिंह (रिसाला) ५६६, जयसिंहजी (प्रथम) ( जयपुर-महाराजा) २०, जवाहरसिंहजी ( भरतपुर ) ३८२. २०५, २२३, २२६-२२८, २३०, २३१, २३८, २४७. जसकरण ८. जयसिंहजी ( महाराना ) २६७, २७१, २७२, जसनगर ५४२. २८२, २८४. जसमादेवी ६३. जयसिंहजी ( सैलाना) १७६. जसरासर ६६. जया ( जय श्रा) पा ( सिंघिया ) ३६५, ३६७, जसरूप ( मुहता ) ४२७. ३७२-३७६, ३८२. जसवन्त ( कलावत) १८६. जरासंघ ३. जर्मन १८२, ५६६. जसवन्त ( रा. जोधाजी का पुत्र ) १०३. जर्मनी १२३, ५२५, १३४. जसवन्त कॉलेज ४८७. ४६६, १११. जलंघरगुणरूपक २४. जसवन्तगढ़ ५३१, ६.३. जलंधर चरित २३. जसवन्तजसोभूषण ४६६. जलंधर जसभूषण २४. जसवन्तपुरा २४४, ३२६, ३६५, ४४०, ४४१, जलंधर जसवर्णन २४. ४७७, ४८७, ५०६,५१४, १६३,५७३. जलंधर ज्ञानसागर २३. जसवन्त फीमेल हॉस्पिटल ४६५. जलंधरस्तुति २४. जलंघरस्तुति २४. जसवन्तराव होल्कर ४०४, ४०६, ४०७. जलंधरस्तोत्र २३. जसवन्तसागर (दक्षिण) २४४. जलंघरस्तोत्र २४. जसवन्तसागर (मारवाड़) ४६१. जलगांव २०४. जसवन्तसिंह (रा. उदयसिंहजी का पुत्र) १८० जलाल ( मलिक ) ६३. जसवन्तसिंह ( रा. मालदेवजी का पुत्र ) १४४. जलालखाँ ११४, १५६. जलालखा ( जलवानी ) १२६, १३०. जसवन्तसिंहजी (द्वितीय ) ( महाराजा ) २५, जलालुद्दीन फ़ीरोज़शाह खिलजी ६, ४४. २६, २४४, ४४१, ४४२, ४४७, ४५७, जवांमदखाँ ( बाबी) ३०६, ३४६. ४५६-४६१, ४६३-४६६, ४७१, ४७३, जवानसिंह ( रावराजा) ४६१. ४७७, ४८१, ४८६, ४८६-४६३, ४६६, जवानसिंह (रास ) ३६१. ११६, १२३, ६३०, ६३८. जवानसिंह (रीयां ) ३७१. जसवन्तसिंहजी (द्वितीय) ( महाराजा) का जवाहरखाना ६०६. स्मारक ५१६. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #336 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वर्णानुक्रमणिका जसवन्तसिंहजी (प्रथम ) ( महाराजा ) १५, | जाफरखा २६१. २०, २१, २६, २८, ११५, १४६, २०८-२१०, | जाफरी आर्चर ५७७, ५७८, ५८१, ५८८. २१३, २१४, २२०, २२२-२३०, २३२, २३६, । जाम ५२६. २३८-२४०, २४२, २४३, २४६-२५२, | जामतामची २४०. २५४-२५६, २५८, २६३, २७०, २८०, जामनगर ४४७, १५, १२६-५२८, ५३०, ३६६, ४०५, ४४६, ६४६, ६५१, ६५५, ५३४, ५३६, ५४१, ५५१, ५५८, ५६२. जामबेग १७४, जसवन्तसिंहजी का देवल ३३०. जाम साहब ५२७, ५५८. जससिंह ( ठाकुर-मेजर ) ४६६, १०४, ५०५, जायल ४५. ५१.. जारविच ( ग्रांड ड्यूक ऑफ रशिया ) ४८५. ज (जै) सा ( सीधल ) ६१, ६७. जॉर्ज पञ्चम ( सम्राट् ) ५०८, ५१४, ५१६, जसोल ३८, ८६, १७६, ४२६, ५५१, ६१८. ५२०, ५२३, ५३६, ५४६, ५५०, ५७१,६३८ जहाँगीर ( बादशाह ) १०६, १८०, १८५-१८८, | जॉर्ज ( मिस्टर ) ५६२. १६०, १६१, १६४, १६७, १६६, २००, जॉर्ज रॉबर्ट्स ( कैनिंग बैरन हैरिस ) ४८७. २०२-२०६, २१४. जॉर्ज लॉयड (गवर्नर ) ५४५. जहाँदारशाह ३०४. जॉर्ज षष्ठ ( सम्राट् ) ५७३, ५७४, ६३८. जहांशाह ३१७. जॉर्ज-ह्वाइट ( जनरल ) ४८७. जहाजपुर ७४, १४२, १६१, १७८. जॉर्डन १९, २०, ५६७. ज़हेर ५६८. जॉर्डन की घाटी ५२६, ५६२. जांगल ४. जालणसीजी ( राव ) ३३, ४६-५१. जांगलू ५३, ६३, ६४, ६८, ८४, ८५, ६४, जालिम (सुल्तान ) ५८१. ज़ालिमसिंह (खाटू) ३७७. जागीर की अदालतें ६२३. ज़ालिमसिंह (म० विजयसिंहजी का पुत्र ) जागीरदारों पर लगने वाले राजकीय कर ६२७. ३६४, ३९६, ३६७. जाट ६८, ३२२, ३५२, ३६१-३६३, ३८२, ज़ालिमसिंह ( मोडास ) ४३८. ३६०. ज़ालिमसिंह ( हरसोलाव ) ४१३, ४१६. जाटियावास कलां १०३. ज़ालिमसिंहजी ( महाराज ) ४५५, ४६१, जाड़ेजा ३७, २४०. ४८१, ४८८, ५१६, ५२६, ५३५, ५३७. जाडेजीजी ४५७, ४६२, जालिया ४६२. जाड़ेजीजी ( म० सुमेरसिंहजी की महारानी) १२६. जालोर १०, १५, ३६, ५१, ५३, ६३, ६५, जाडेजीजी ( माजी ) ४६६, ५०७, ५४१, ५४५. ७४, ७५, ७६, १००, १०३, ११२, ११६, जादम (न) २४८. १२२, १२३, १३२, १३५, १३८, १४१, जॉन बुतीसी ४११. १४२, १४४, १४५, १७३, १७८, १९४, जाफर कुली (खाँ) २८८, २८६, २६१. | १६५, २००, २०१, २०६, २१६, २५६, २६२, ८. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #337 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहस २६४, २६६, २७०, २७३, २७५, २८५, २८६, २८८, २६०, ३०८, ३२६, ३३१-३३४, ३३६, ३३७, ३४६, ३४६, ३५२, ३५६, ३५६, ३६०, ३६६, ३७३-३७६, ३७६, ३८०, ३६६-३६६, ४०१, ४०२, ४०४, ४०८, ४०६, ४२६, ४३०, ४३८, ४४५, ४४७, ४५६, ४६५, ४७१, ५१४, ५५३, ५६३, ५६५, जलोरो- दरवाज़ा ४६२. जावरा ५३६. जावला ३५०० जिनदत्त १०. जिनसन ८. जिपे ५८०. जींदराव ४५, ४८. जीतमल ( पंचोली ) ४२३. जीतमल ( सिंघी ) ४०६. जीय। ४२३. जीवन (दाँई) मिसल ६३२. जीवानन्द (पण्डित) ४७५, ४८८, ४६४, ४६६. जी० सी० इ० ३० ५६२, जी० सी० एस० आइ० ५७२. जुगता ४४०. जुगेल ४८. जुडील मिनिस्टर ६२०. जुडीशन सुपरिटेण्डेण्ट ६२१, ६२२. जुनैद ७, १३, १४. जुबिली को जुमाँमस्जिद २५२. मेखाँ ५४३. ४६१, ४६५. ४७६, ४८८, ५७३, ६२५. जल्फिकार जंग १७, ३६०-३६३. फार सिंह (चाँदावत ) २८१. सह (बुंदेला ) ६५०. जूनागढ़ ५, २३३, ३०८, ४६६. जूनिया १७६, ३०४. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat जेखल १४२. जेठमल ४४. जे० बी० ( जोधपुर-बीकानेर ) रेल्वे ४८३, ५०१, ५०७, ५१२, ५१५, ५३६, ५४४, ५४५. जेबुन्निसा वेग्रम २५८. जेम्स ( मिस्टर ) ४८८. जेम्स बर्जेज़ २०८, ४१२, ४५५. जेरिको ५६७. जेरूसलम ५६७. जेल ( मुख्य - सैयट्रल ) ६०४,६०८. जेलवा ३६५. जैतपुरा ३६५. जैतमाल (चाँपावत - राठोड़ ) १४८. जैतमाल ( भाटी ) १३१. जैतमाल ( रा ० रणमल्लजी का पुत्र ) ८०. जेतमाल ( रा ० सूजाजी का वंशज ) १३३. जैतमाल ( शाखा ) १२२. जैतमालजी ( रा ० सलखाजी का पुत्र ) ५३-५५. जैतमालोत ८६, १४२. ७१८ जैतसिंह ( आउवा ) २७, ३८३. जैतसिंह ( खैरवा ) १२४. जैतसिंह (चाँदावत ) २८१. जैतसिंह ( सलुंबर - रावत ) ३७४. जैतसिंहजी का थड़ा ३८३. जैतसी ( रा० उदयसिंहजी का पुत्र ) १८०. जैतसी ( रा ० सूजाजी का पौत्र ) ११०. जैतसीजी ( राजा- बीकानेर ) ६८, ११३. १२३, १२५. जेिता (बगड़ी ) ११४, ११७- ११९, १२४, १३०, १३१. जैतारणा ( न ) ७३, ७५, ६१, १०१-१०३, १०६, ११०, ११६, १३०, १३८, १४२, १४४, १४६, १७८, १८०, १८५, १६७, २०२, २११, २४५, २५०, २५४, www.umaragyanbhandar.com Page #338 -------------------------------------------------------------------------- ________________ घर्णानुक्रमणिका २६४, २७३, २७५, २७६, २८१, ३२६, | १८५, १८६, १८८, १८६, १६१, १६३, ३३३, ३३४, ३६४, ३७२, ३७६, ४०६, | १६४, १९६-१६६, २०१, २०४, २०६-२०६, ४२८, ६.३. २१२, २१५, २१६, २१८, २१६, २२५, जैतावत ११३, १३४, १३६, १३८, १५८, २२६, २३०, २३३, २४४, २४५, २४६, १६६, ३०८, ३३२. २५०, २५३-२५७, २५६-२६३.२६५, २६६, जैतियावास ३६५. २७०-२७४, २७७, २८०, २८१, २८३-२८६, जैत्र.संह ( गुहिल ) ११. २६१, २६२, २६४-२६६, २६८-३०८, ३१०, जैनगर २. ३११, ३१८, ३२३, ३२५, ३२६, ३२६, जैनिंग्ज ( कर्नल ) ५०४-५०७. ३३२-३३४, ३३६, ३४६-३४६, ३५१-३५३, जै (जय ) मल ( मेड़तिया ) १८, १३४-१३८, | ३ ५५-३५८, ३६०, ३६१, ३६४-३६६, १४०, १४१, १४६, १५२. ३७१-३७५, ३७७, ३७८, ३८१-३६७, जैमल ( ग० मालदेवजी का पुत्र ) १३७, १४४. ३६६-४०२, ४०४-४२२, ४२४-४३५, जैसा ( चांपावत राठोड़) १३३, १३४, १४८. ४३७-४४६, ४५१-४६३, ४६५-४६७, जैसा ( भाटी) ८६, १३१. ४६६, ४७०, ४७२, ४७३, ४७६-४८८, जैसा ( भाटी पूंगल ) १३३. ४६०, ४६२,४६३, ४६५-५०१, ५०३-५०५, जैसा ( सांखला ) ५८. ५०७-५१०, ५१२-५१४, ५१६-५३१, जैसिंह ( उम्मेदनगर-ठाकुर ) ५३६, ५४६. ५३३-५४३, ५४५-५४६, ५५१-५५६, जैसिंह ( रा. वोरमदेवजो का पुत्र) १६, ६४. | ५५८-५६०, ५६२, ५६४-५७६, ५७७, जोगराज (बुंदेला) २०६. ५८४, ५८८, ५६४-५६६, ५६८,५६६,६.१, जोगसिंह ५६६. ६०३-६०७, ६०६-६१५, ६१८, ६२१, जोगा (रा. जोधाजी का पुत्र) १००, १०३, १०४. ६२४-६२७, ६२६, ६३७, ६३६, ६४२, जोगा ( रा. धूहड़जी का पुत्र ) ४८. ६४३, ६४६, ६४६, ६५१, ६५५, ६५६. जोगीतालाव २०७. जोधपुर इमीरियल लांसर्स ५३५, ५३६. जोगोतीर्थ १२६. जोधपुर की टकसाल ६३८, ६४०, ६४२, ६४३. जोगीदास (बारठ) ३८४, जोधपुर-गवर्नमैन्ट ५६६. जोगीदास (रा. सूजाजी का पुत्र) ११.. | जोधपुर-दरबार ५७५. जोजावर ७०, १४२, १८८. जोधपुर-फ्लाइंग क्ला५६४. जोधड़ावास १४४, ६०१. जोधपुर-रिसाला ५६४, ५६५, ५६६. जोधड़ावास ( खुर्द ) १४४. ६०१. जोधपुर रेलवे ४७८, ५६६, ५७२, ५७५. जोधपुर २, ७, ८, १६, १८-२१, २३, २५, जोधपुर-रेल्वे कोऑपरेटिव क्रेडिट सोसाइटी ६०६. जोधपुर-रेल्वे-जुबिली ५६६. २७-३०, ४२, ४४, ४७, ६५, ६६, ७६, ८०, जोधपुर-लीजियन ४३०. ८३, ६०, ६२, ६५-६७, १००-११३, ११५, जोधपुर-स्टेट ५६६. ११६, ११८, १२०, १२१, १२३-१२७, जोधराज ( सिंघी ) ३६७, ३६८, ६२९, १३०-१३२, १३४, १३५, १३६-१५१,१५६, | १६२, १६५, १७०-१५३, १४७, १७८, १८१, । जोधसिंह (भाटी) ३६८. ७११ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #339 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास नोघा (जाति) १६२, २४१, २५७, २५८, २७५, २७७, २८१, २८२, २६०, ३०६, ३२६, ३७७, ३८७, ४३६, ५२३, ५४०. जोधा ( भाटी ) ८६. जोधाजी (राव) १६, २०, २८, ४७, ६७, ७०, ७५, ७८, ८०, ८२-१०४, १०६-१०८, ११२, ११५, १७१, १८२, ४३६, ४४०, ४६३. जोधाजी का फलसा ६३. जोधाणा ३६४. जोधावत २७६. जोधावास ( जैतारण ) १७८. जोधावास ( बीकानेर ) १०१. जोधेलाव ६२. जोपसा ( सी ) ४४, ४५. ज़ोरसिंह ( ठाकुर मेजर ) ५३८. जोशमीर ६३. जोरावरखाँ ३४६. जोरावरपुरा ६०१. जोरावरमल (सिंघी) ४०६. जोरावरसिंह ( जसोल ठाकुर ) ५५१, जोरावर सिंह ( बाभा किशनगढ़ ) ४५२. जोरावरसिंह (म० अभयसिंहजी के पुत्र ) ३३३, ३५७. जोरावरसिंहजी ( बीकानेर-राजा ) ३४७, ३४६, ३५१, ३५५. जोरावरसिंहजी ( महाराज ) ४५६ - ४६१. जोशी ३८०, ४२३, ४२६, ४२८, ४३०, ४३६, ४३७, ४५६, ४८१, ४६४. जोहिया १२, ५५-५७, ६३० जोहियावाटी ५६. जौनपुर ६६, १००, १०२, १२३, ६३७. जौनस्टील (एअर मार्शल ) ५६४. जौहर (मिप्रवेश ) १७५. जोहर ( आकृताबची ) १२६. ज्ञानप्रकाश २४ जनमन ( मुहणोत ) ४०२, ४०५० Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ज्ञानसागर २४. ज्ञानसिंह (पाली ) ४१२. ज्वालासहाय मिश्र ५४७, ५५३, ५५७, ५५६, ५६०. भँवर ३६२, ३६७. भरड़ा ४५. भरणे ( ने ) श्वर ६२. झाड़ोद ३२०. झाड़ोल ६६, ६६. बुआ ( वा ) ४२, १०३, १०६, ४८५. झाला ६६, १२४, २२२, २२३, ३१०. झालावाड़ ५१५. झाली १४३. झालीवाड़ा खुर्द २०६. झिंद ५११, ५१५. मिलाय २००, ३७५. भीलवाड़ा २६६. फुडली ३२६. मूं ( जूं ) झणू ४६, ६६, १००, ११६, १२६, १४२, ४०५. मूसी २०३. झेलम २०५. टंटोती ३७२, ३७६. टकसाल ६०६. फ टर्की १६,५२५. टर्फ क्लब, कारो ५६३, टाटरवा ३५७. टाटरवी ६००. टॉड ( जेम्स ) १, १८, ३२, ३४, ३८, ३६, ४३, ४४, ४६-४८, ६५-६७, ७०-७२, ७६, ७७,७६, ८३, १०२, १०३, १०५, १०७, २२० www.umaragyanbhandar.com Page #340 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०६, ११०, ११२, १४७, १६६, २००, २२४, २३८, २८०, ३२६, ३३०, ३५३, ३७०, ३७३, ३७७, ३७८, ३६३, ६३७, ६४६, ६५३ - ६५५. ३५४,६६, टॉड ( मिस्टर ) ४६४,५०८. टन (मिसेज़ ) ५७१. टालपुरा ३८४, ३८६, ३८७, ४१६, ४४३. टीके आदि की लाग ६१७. टीबड़ी ३२६. टीबाणिया ३२६, टेलर ( मिस्टर ) ४५४. टेला ३६६. टैगानीका ५८०. टैलीफोन ६१४. टैमीटोरी (L.P.) १०५. टोंक १२३, १४२, ३५७, ४८५, ४२८. टों (हूं ) स २०३, २०४, टोडरमल (राजा) १८६. टो ( तो ) डा १२३, १४२, २०३, २०४, २७५, ३०२, ३०४, ३१८, ३२०, ३२६, ३२६, ट्रांसवाल ४६६. ट्रिब्यूट ६१७, ६१८. ट्रेल ( कैप्टिन ) ५६६. ट्रेवर ( कर्नल ) ४८७, ४८६. ट्रेवर कैटल-फेयर ४८८, ४६५, 이 १६३ - १६५ | डभोही (ई ) ३२७, ३४३-३४५. २४२, २६२, डांगी ४६. ४६६. ठट्ठा २२७. ठाकुरसी १४४. ड डंड-किराड़ ४४३. डड्ढा ४६७ डफरिन् ( लॉर्ड ) ४७८,४८०. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat डाकखाना ४३३, ४८०. डाकोर ३४४. डाबड़ा ३६७. डाबरयाणी खुर्द ३६५. डाभी ३५, ३८, ३६, ४२, ४३. डालू ४८. डाव (बाँई) मिसल ६३२. डिंगल भाषा ५१४. वर्णानुक्रमणिका डिक्सन ( मिस्टर ) ४२१. डिस्ट्रिक्ट कोर्ट ५४८, ६१७, ६२३. डी० ए० वी० कॉलिज ४६२ . डीग ३६३, ४४८. डीगराना २७४. डीगाड़ी ४४६. डीडवाना ६, ६३, ६४, ६७, ११६, १४२, १४४, १६७, २६१, २६४, २६५, २७३, २७४, २६६, ३००, ३२०, ३२५, ३२६, ३२६, ३५६, ३६६, ३७४, ३७६, ३७७, ४०५, ४०६-४११, ४१४, ४२७, ४४०, ४६६, ६०१, ६२५. डी- बोइने ३८६. डीसा २८६, ४४६, ४५१. डुमरा ५३६. डूंग ( रा ० चूंडाजी का पुत्र ) ६६. डूंग (सिंह) जी ४४५. डूंगरपुर १५८, १६२, २७१, ५६५. डूंगर सिंह (मेवाड़) १११. डूंगरी ( ऊदावत ) १३८. डूंगरसी ( रा ० जालासीजी का पुत्र ) ५१. डूंगरसी ( रा ० मालदेवजी का पुत्र ) १४४. डूंगरसी ( रा ० रणमलजी का पुत्र ) ८०. डूंगरसी ( सिवाना ) १२२. डूमाडा ३०१. ७२१ www.umaragyanbhandar.com Page #341 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवार का इतिहास डेगाना ५१२, ६०३. तनावड़ा (छोटा) ४४०. डेरवे की दांणी ६.१. तनावड़ा (बड़ा) ४... डेयह ३८६. तम्यवखाँ १३, १६५. डेविड ऑक्टरलोनी ४२१, तन्दुदी बेग खाँ १२५. डेवलेपमैट ६१२. तरवर १३६. डोडियाली १६. तरसींगड़ी सोढां ६००. डोह ३६१. तलहटी के महल १६८, २०६, ३६१, ४०१, डोली-कांकाणी १०६. ४६५. डोहा २८१. तह वरअली ३०३, डयूक ऑफ कनाट १३८, ५४६. तहव्व (बु ) र खाँ २४६, २५६-२६१, ड्रेक ब्रोक मैन ( D. L.) १३५, ५४१, १४३, २६४-२६६, २६८, २६६, २७६. १४६, ५४८, ५४६, १५३, १४, ५५६, तांबड़िया ( खुर्द) १७८. ६१५. तांबे के सिके ६४३. तांबे के सिक्कों पर के कुछ लेख ६४६. ताउसर ३६. ढंढोरा १४४, ३२६. तागीरात ६२६. ढन्यूशाही ६४३. ताज़ीम ६३.६३२. ढाढरवा ३२६. तात ७. दादरिया खर्द ४४०. तातार ३७.. दाटी २०, ५६, ६०, ६१, ३६१. दानी ३५३. तातार खाँ ६३. ढीकाई ४६२. तापती २७२. तापी बावली २१२. बीगरिया १४४. तामील ११२, १२.. ढली ६... तारकीन ४१२. ढाड़ २००, ४१.. तारागढ़ ३२६. ताराचन्द २४. हैं (तु ) वर १०७, ३८९, ४१३. तारीख फरिश्ता १६. ते (तु) वरजी ४०२. तालका ११५. तँ ( ) वरावाटी १०७, ४t तालका १४४. तँवरों की पाटन ३८६. तालकिया १७८. तखतसागर ४६२, ५७६. ताहिरखाँ २४६, २६.. तखतसिंहजी ( महाराजा) २४, २५, ४३८, | तिंवरी १०३, ३२६, ३६, ४ke. ४४१-४४३, ६, ४४७, ४३, | तिगारिया १६७. ४५८-४६१, ४६३-४६६, ४७१, ४७३, | तिजारा ३२२, ३३१. ६२८, ६२६, ६१८, ६३६, ६४२, ६४३. तिमूर (सानी ) ३१६. ७२२ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #342 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पर्णानुक्रमणिका तिरसींगड़ी ४७. तोलेयासर १... तिराह ४६७. तोलेसर ४४०. तिलंगाना २०७. तोसीणा २७६, ३२६. ति ( त) लवाड़ा १४, ८६, १६. त्रिभुवनसीजी (राव) १३, १२-१४. तिलोकसी (रा. मालदेवजी का पुत्र ) १४४. | त्रिवेणी ३२१. तिलोकरी. (ग. सूजाजी का पुत्र) ११०. त्र्यंबकराव ३४२, ३४३, ३४५. तिलोकसी ( वरजांगोत) १३.. तिवाड़ी ५२८. तिहोद ४०७. थहा १०, १७१. तीडाजी (राव) ३३, ५२, ५३. थबूकड़ा ४०,४६२. तीतरोद १७६. थरपारकर १. तीमूरशाह ३८७. थली १६५. तुंगौ १९, २०, ३८८, ४४८. थांधी ४६. तुकोजी ३८८. थानवी ४४४. तुग़लक ६१. धान । सेवग - ३८४. तुगलकाबाद २५८. थिराद ३१, १४२, २७१, २८६, ३३५ तुतनखामन ५६३. थोब (शासन ) १०३. तुर्क ११, १२५, ५२६, ५६८. थोभ (ब) ४७. तुलछराय २४. तेजमंजरी २३. तेजमल ( लोढ़ा) ४२४. दक्षिण ( दक्खन ) १८१, १८३, १८५-१६०, तेजसिंह (गुनाबगय का पुत्र) ३६०, ४०१. १९३-१६७, २००-२०२, २०४, २०१, २०७, तेजसिंह ( चाँगवत ) २६०. २१०, २२०, २३३-२३६, २३७-१४७, २५६, तेजसिंह ( द्वितीय ) ( रावराजा ) ४६२. २७१-२७३, २७६, २७८-२८०,८०,२८, तेजसिंह ( प्रथम ) ( रावराजा) ४६१, ४७१, २८६, १६१, २९४, २६५, २६६, ३०६, ४७६, ४६८, ११२. ३१२, ३१४, ३१५, ३२३, ३२५, ३४३, तेजसी (महेवा) २१५. ३६५, ३७६, ६५२,६१३. तेजसी ( रा. मालदेवजी का पुत्र) १४४. दक्षिणी ३३२. तेजसी ( ग. रणमल्लजी का पुत्र )८०. दक्षिणी एफ्रिका ४६६. तेजसी (रीयां) ११६. दखना ( दक्षिणी ) पौल ४४०. तेजा ( वानर राठोड़) ५७. दताणी १६८. तैमूर ६२. दत्ता (तू) जी ३७१, ३७४-३७६. तोडा २७५, ३०४, ३२६, ३२६. दत्तेखाँ ५४३. तोपनियत होना ( सलामी की ) , ४६. | दधिमती १. तोरमाण ६३४. | दमा ८३. ७२३ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #343 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास दमिश्क ५६८. दयानन्द सरस्वती ( स्वामी ) ४६२ दयालदास (झाला ) २२२, २२३. दयालदास ( सिकदर ) ३०० - ३०२, ३१२, ३१४, ३१७, ३२४. दरबार (हाई ) स्कूल ४५४, ४८४, ४८७, ५५१. दरभंगा ५२१, ५५५. ३०५, दलकर २६०. दलथंभन ( उपाधि ) २००, १०८. दलथंभन ( बनावटी ) २६२,३०८, ३१०. दलथंभन ( मा० अजित सिंहजी का पुत्र ) २४८, २५४. दल- पंगुल ३१. दलपत ( रा० उदयसिंहजी का पुत्र) १७८. दलपत सिंह (देवली ) ५२३, ५२६, ५६७-५६६. दलपतसिंह ( रोहट - ठाकुर ) ५२६, ५४२. दल - बादल ३५८, ५४४. दला ( जोहिया ) ५५-५७. दला (बूंदेला ) १८६. दलाल (T. G. ) ५७३. दलसिंह (हाडा ३३४. दस्रोत ३४६. दस्तरी का महकमा ६०४. दहिया १२. दहीजर ( देईकर ) १२६, १२७, १६८, ४४०, ४६१. दाँता ५१५. दागड़ा २०६, ३२६. दाना ( धांधल ) ४२३. दानियाल ( शाहजादा ) १७६, १८३, १८४. दाभाजी ३५०. दामाजी गायकवाड़ ३४६. दामोदरजी ( गोस्वामी ) २४०. दामोदरलाल ४४१, ५४३. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat दाराशिकोह ( शाहज़ादा ) २१४, २१८, २२०, २२५-२२७, २३०, ६५१. दारोगा का चिह्न ६ ३६. दिलीपसिंहजी ( महाराज कुमार ) ५७५. दिलेर ख़ाँ २२३. दिल्ली ( देहली ) १४, १५, १७, २६, ३०, ३२, ६१, ६२, ६४, ६५, ८०, १००, १०२, १११, १२३, १३६, १४१, १४६, १७८, १८०, २०२ - २०४, २११, २१२, २२०, २२६, २२७, २३५, २३६, २३८, २५१-२५५, २५७-२५६, २६१, २७०, २७६, २८१, २८७, २६७, २६८, ३०३-३०७, ३०६, ३११, ३१२, ३१४, ३१५, ३१७, ३१६, ३२०, ३२२–३२४, ३२६, ३२८, ३२६,३३१-३३६, ३४१, ३४२, ३४६, ३४८, ३४६, ३५१, ३५६, ३६०, ३६१, ३७०, ३८७, ३६०, ३६२, ३६३, ३६७, ४२१, ४२४, ४३६, ४४०, ४४८, ४६७, ५०५, ५१४, ५२०, ५२७,५२८, ५३४, ५३८, ५४०, ५४२, ५४५, ५४८, १४९, ५५३, ५५६, ५५८, ५४६, ५६०, ४६२-५६६, ५७०, ५७२, ६३६, ६४०, ६४७, ६५६. दिवराई २६२, २६७. दीनदार ख़ाँ २८०. दीनानाथ (काक) (पंडित ) ४८६, ४६४. दीपचन्द ( व्यास ) ३०८. दीपा ६८. दीवाण १६५. दीवानी अदालत ४६३, ४६४, ५४८, ६१०. दुग्रस्पा २१३. दुकोसी ४४०. दुगोर ३६५. दुगोली १८०. दु (दू) नाड़ा १२२, १४३, १४८, १५६, १८८, २६१, ४१३, ४२४. ७२४ www.umaragyanbhandar.com Page #344 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दुरजनसाल (कछवाहा ) १७४. दुरसा ( बारठ ) १७४, १८६. दुर्गाचरित्र ( चित्रमय ) ४३६. दुर्गादास १७, ८०, २५३-२५८, २६२, २६३, २६६, २६७, २६६-२७१, २७८, २७६, २८१-२८६, २८८-२६०, ३०२, ३३२, ३३३, ३४६. दुर्गा पाठ भाषा २१. दुर्जनसाल (बूँदी ) २७८-२८०. दुर्जनसाल ( सोढा ) ५०, ५१. दुर्जनसिंह (जैतावत ) ३०८, ३१०. दुर्जनसिंह (जोधा ) ३०६. दुर्गनी ३५६. २६४-२६७, | देवल ४५. देवल (राजपूत) ४७६, ४८७. देवलिया २६६, ३४८, ३७२, ३७५, ३८२. देवा ( भदावत ) १२२. देवीदयाल ५२८. २६०, ३०५, ३०६, देवीदास ( जैतावत राठोड़ ) १८, १३५ - १४०, दूदोड़ १५६, ४५१. दूनियाड़ी ६०१. देछू ३६६. देघड़ा ४७. देपालपुर २२१. देरावर १२६. देरावरजी ४०२. देरावरजी का तालाव ४६२. देवड़ी २४४, २५४, २५५. देवनाथ ( योगी ) ( प्रायस ) ३६६, ४०२, ४०४, ४१३, ४१५, ४१७ - ४१६, ४२४, ४४०, देवराज ५६, ५८, ८६. देवराजोत ८६. देलवाड़ा ७६. देवकरण ( धाय-भाई ) ४३६. देवकरण ( रा० दुर्गादास का भतीजा ) २६०. देवकुण्ड ४०६. देवकोर १५६. वर्णानुक्रमणि बुभराज १४. दूदा ( कोली ) २३१. दूदा ( रा० जगमालजी का पुत्र ) ५५. दूदाजी ( मेड़तिया ) २०, ६५, ६६, १०१, देवीसिंह ( आवा ) ४५३. १०३, १०५, १०६, ११२, ११३. देवीसिंह ( चांदावत ) ३४६. देवीसिंह ( पुलिस इन्सपेक्टर ) ५५५. देवीसिंह (पौकरन ) ३६१ ३६६, ३७६-३७८. देवी संहजी ( महाराज कुमार ) ५६६. देवस्तुति २२. देशमुखी ३३८. देम (श) गोक ६८, ६८, ३८७.४२४. देसवाल ३६०. देसूरी १२, ८४, २५, २६६, ४४०, ४८६, ५१२, ५१४, ५५३, ५६५, ५७३. देहरादून ५०४, ५२३. दोराहा ६८. दोहरी ( दोवड़ी ) ताज़ीम ६३२. दौर ख़ाँ १६६. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat १५५, १५६, १५८, १६. देवीदास ( महारावल ) ( जैसलमेर ) १०२, १०४, १०५. देवीदास ( व चंद्रसेनजी का भृत्य ) १५३. देवीदास ( रा० सूनाजी का पुत्र ) ११०. देवीदास ( सिवाना ) ६६, ९७. देवगढ़ ३०४. देवड़ा ५१, ५२, १०१, १०४, १७५, १८६, दौलतखाँ ! सैय्यद ) १७३. १६५, २५५, ३०८, ४८६. दौलतखां (नागौर) ११२, ११३, ११७, ११८. दौलतखाँना ३२६, ३६६, ४६३, ५१८, ७२५ www.umaragyanbhandar.com Page #345 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास दौलतखाने का महल ६.६. धवल ( राठोड़) १०, ११. दौलतपुरा ४४५. धवल ( रायधवल ) ( ईदा ) ६१. दौलतमल ( लाला) ४६४. घवेचा २५६. दौलतराम ( सेवग) २४. धांधल ( जाति ) ४५, १०४, १८२, दौलतराव-( सिंधिया ) ४०६, ४१०. ४२३-४२५, ४२८. दौलतसिंह ( नींबाज ) ३७७, ३७८, धांधल (रा. प्रास्थानजी का पुत्र ) ४४, ४१, दौलतसिंह ( पंचोली ) ३३५. १०४. दौलतसिंह ( सांखलः ) ३४८. धांधल।वास ४४०. दौलतसिंहजी (महाराजा ) ४६४, ४६८, ५५०, धांधिया ४०८. ५१२, ५१६. धामुनी ६५०. दौलताबाद २०१, २०७, ६५०. घायभाई ४३६. द्रम्म ६३४. धीरजमल (भंडारी) ३६८, ३६६, दुमकुल्य २, ३. धीरदेव ५७. द्रोणपुर ६६, १००, १०१, १०३. धीरसिंह ( चाँपावत) २७५. द्वारका ३, ३५, ३६, ४४, ६६, ३१०,३११, | धुड़ासणी १११. ३२६, ३४६, ३६५. धुनाड़ी ३६६, ६०१. दयाश्रय काव्य ३६. धूनाड़ा ३८४. धूहड़जी (राव) ३३, ४४-४८, ६५, ६००. धोलेराव ११४. धोलेराव खुर्द ४४१, ६०१. पंधूका २४०, २८५. धोलेरिया १०३. धंना ( गुहिल ) २६६. घणकोली ४४५. धोलेरिया खुर्द १४४. धौं कलसिंह ४००, ४०४-४०६, ४१३, ४१४, घणला ७०, ७२. धनचंद १६३. ४१६, ४२६, ४२७, ४३६, ४४३. धौकलसिंह (गोराक) ५१६, ५२०, ५२२, घनरूप ( पचोली) ४६४, ६२८. धनापुरा ४४६. ५२३, ५३६, १३८. धनेडी ४४०. धौलका ३४६. धन्व ३,४. धौलपुर ४८५, ४६०, ४६५, ४६८, ५११. धम्माजी ३४७. ध्रुवराज ८. घरणीवराह १०, ११. घरमसर २०६. धर्मतपुर २२१, २२२. नंदवाणा २०२,४४० धर्मद्वारी ७६. नंदवाणे बोहरे २०२. धर्मनारायण ( काक ) ( पण्डित) ५१४, ५३६, नक्कारचो ४४०, ४४३. १८. | नगर ३८, ४७, २७५, ४२६, ४३०, ६१८. ७२६ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #346 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वर्णानकमणिका नगरी ४. नवलगढ़ ४०५. नगवाड़ा कलां ३६५. नवानगर २४०, ३१०, ५६५. नगवाड़ा खुर्द १७८. नसरतजंग ३१.. नगा १३३, १३५. नसरतजंग ( ख़ाँ दौरां) ६५२. नडियाद ३४४. नसीरखाँ २०५, नथकरण ( डेवढीदार ) ४०६. नसीराबाद ४३२, ४४५, ४४८, ४६८, १०३, नथकरण ( लोडता) ४२३. ०७. नन्दलाल ! पंडित ) ५६८. नहपान . नमक ६१८. नाँद ४०६ नम-कर ५२२. नाँवा ३७५, ३८६, ३६०, ३६४, ४०६, ४१२, नयाशहर ४२१. ४१४, ४२२, ४२६, ४३५, ४५८, ४८७. नरकुंडा १४६. नाइल ५६३. नरपतसिंह ( रावराजा ) ५४२, ५५६, ५६३, नाई १७५, १७६. नाग १२. नरबद (रा. सत्ताजी का पुत्र ) ६६, ७०, ७३, नागकुंड १२. ७५, ८६, ६०, १.१, १०८, नागनेचिया ( जाति ) ४६. नम्बद ( वैरसल का भाई ) १००. नागने (णे ) ची ४६, ४५, ६५. नरवर १७१. | नागपुर ४२७. नरसिह ( कल्ला का पुत्र ) १६२. नागभट (द्वितीय) ( कन्नौज) ८. नरसिंह ( सीधल ) १.१. नागभट ( मंडोर ) ७. नरसिंहगढ़ ४८४, ४८५, ४८६, ११, ५३०, नागर ब्राह्मण ४३. नागरी-प्रचारिणी सभा, काशी २४३. नरसीजी का मायरा २०, नागाणा (ना) १२, ४६, ४५, ११३. नरहरदास ( रा. उदयसिंहजी का पुत्र) १५८. | नागादरी १२. नरा (चौहान ) ८४. नागा लोक ( नागभट ) (प्रथम)८, १३. नरा (नरसिंह ) ( रा• सजाजी का पुत्र ) १०५, | नागोर २, ४, ५, ६, ११-१३, १५, २६, १०७, १०८, ११०, १३२, १३३, १४३, ४५, १४, १६, ६०, ६२-६४, ६६-६६, नराणा ७६, ११६, १४२, ३२३. ७१, ७४, VE, R६, १.३, ११२, १३, नरावत ३३४. ११६-११, १२१, १३२, १३६, १३५, नरूकी २४८. १३-१४७, १४६, ११, १५८, १६२, नरेन्द्र-मण्डल १२५, ५३८, ५४५, ५४८, ५५३, । १६३, १७०, १५८, २०६, १५३, २६४, १५६, ५५८, १६३, ५६४, ५६६. २७३, २६१, २९८, ३००, ३०१, नरौक ५६१. ३०८-३११, ३२५, ३२६, ३२६, ३३१, नर्ब (म) दा ४, २२१, २३८, २३६, २७१, । ३३३, ३३४, ३३६, ३४४, ३४७, २७२, २७६, २६५-२६७, २६६, ३४४. | ३५-३६१, ३६५, ३६८, ३६६, ७२७ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #347 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड का इतिरस १७३-३७७, ३८२, ३६, ३६५, ४०६, | नाथ-स्तुति २४. ४११-४१५, ४४०, ४४१, ४४४, ४४६, . नाथ-स्तोत्र २३. ४१६, ४६०, ४०-४८४, ४८७, ६६, नाथा (ग• रणमल्लजी का पुत्र) ८०. ५.१, ५.२,५४६, ४५, ५६५, ५७३, नाथा (व्यास ) १६४. ६००, ६०१, ६२०, ६२१, ६३५, ६४०, नाथानन्द प्रकाशिका २४. ६४२, ६५१, ६५२, ६१४, ६५६. नाथाष्टक २३. नागोर को टकसाल ६३८, ६४०, ६४२. | न थूसिंह (पिशांगण ) १७६. नागोरो खड़िया (Gypsum) ५५५. नाथूसिंह ( रास-ठाकुर ) ५३५, ५३० नागोरी दरवाना ४२३, ४८२. नादिरशाह ३५०. नागोरो बैल ५५५. नानकदेवी ११५. नाज को दूकाने ५३६. नाथा ( रणधोर का पुत्र ) ६६. नाजिर ४२४,४२५. नापा (रा० सूजाजी का पुत्र ) ११०. नाडेलाव ४६२, ५००. नापा (सांखला) ६०, ६१, ९४, ६८. नाडोल ८-१४, ३६, ६३, ७३, ७५, ८८, नापावस १८२, १६७. ६०, १४२, १४३, १४६, १८७, १८८, नायरा १२३. २६५-२६७. नाबालिगी ५१४. नाणा ११. नाभा ५०८, ५१५. नाथ ३२६, ४०४, ४२०, ४२६, ४२८, ४३१, नामदार खाँ २३५. ४३२, ४३४,४३८, ४४०, ४४३, ४६२. नायनपुर (बड़ा) ३३८. नाथ-पारतो २४. नायब-हाकिम ६२१, ६२२. नाथ-उत्सवमाला २४. नायिका-लवण २४. नाथ-कीर्तन २३. नारनौल १४२, २६६-२६८, ३२२, ३२३, नाथ-चन्द्रोदय २४. ३२५, ३३१, ३६१, ४५१. नाथ-चरित २३. नारलाई ८८, ६०, ६१, ४१५, १५४. नाथ-चरित्र ०३. नारायण ३४. नाथ-चरित्र (चित्रमय ) ४२६, नारायण दास ( कावा) १६५, नाथजी ४१३, ४१७, ४२४, ४२७. नारायणसहाय (गुर्टू ) ४८८. नाथजी की वाणी २३. नॉर्थब्रुक ( लॉर्ड ) ४६६. नाथद्वारा २४०, ३६६, ३८१-३८३, ३६५, नॉर्थ वैस्टन रेल्वे ४७८, ५०७. ५०६. नासिक १८३. नाथ-पुराण २३. नासिरुद्दीन महमूद १५. नाथ-प्रशंसा २३. नासिरुद्दीन मोहम्मदशाह ३१८. नाथ-मरिमा २३. नाहड़ (द्वितीय). नाथ-संहिता २३. नाहगव ७. नाप-रतुति २६, नाइसर ६५४. ८२९ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #348 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाहस्वामिदेव ७. नाहन ३०३. नाहने १६१. नाहरख़ाँ (सोप ) २१८, २२६. नाहरख़ाँ ( हाँसी ) ३०२, ३११, ३२१, ३२४. निकोदर ६८. निकोल ५७८,५८८. निकोसियर ३१६, ३१७. निजामुल मुल्क ( दक्षिणी ) १८४, २०५, २०६, ६५०. निजामुल मुल्क ( निज़ाम ) ३१२, ३२३, ३४३ निजामुल मुल्क ( मुबारिजुल मुल्क ) ११२. निजाबतखाँ २६४. निरंजननाथ ( गुर्टू) ५६७. निरोह २०१. निर्भयभीम व्यायोग १०. निर्वाणी दोहा २१. नींबा (भाटी ) १३१. RTI ( रा • जोधाजी का पुत्र) ६३, ६७, १००, १०३, १०४. नींचा ( स्थान ) ६०८. नींबाज १२४, ३१२, ३४०, ३४१, ३६०, ३६४, ३७७ - ३७६, ३६८, ३६६, ४०८, ४१०, ४११, ४१८, ४२३-४२५, ४२७, ४३१, ४३२, ४३६, ४३७, ४५१, ४५६. ४५६, ४६४, ४७४, ४८४, ४८८, ४६४, ६२८. नींवड़ा ५६८. नींबोड़ा ३६५. नीतोड़ा १७४. नीमच ४३०, ४४८. नीमराना ३६१. नीलकंठ महादेव १८८. नीलगिरी ५५२. नुसरतयार ख़ाँ ३१८, ३२२, ३२३, ३३१. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat नूः अली २७६. नूरगड़ २५२, २५७. नूरजहाँ २०२, २०५. नूरपुर १८८. नेतसी १४४. नेपाल २५, ३०, ४३६, ४४०. सापुर २१४. नैणसी ( मुहणोत ) ३२, ३५, ३७, ७१,७६, ११८, २१४, २१५, २३१. नैरवा १४४. नैरवा ४४०. नैरोबी ५७८, ५८५, ५९१, ५९३. नोखड़ा ३२६. नौकोटी मारवाड़ ११. नौचौकियाँ ३६८. न्याय विभाग ६२०. वर्णानुक्रमणिका न्यूजीलैन्ड - माउण्टेन्ड - राइफल्स ५६७. विंगी ५८८. प पंचमार्क सिक्के ६३४. पंचायण ( खींदसर ) १३१. पंचायण (बगड़ी ) ११७, ११८. पंचाग ( बावड़ी ) ३०८. पंचवली २३. पंचोली १५७, २०२, २१६, २६६, ३०४, ३०५, ३१२, ३३२-३३५, ३४४, ३५५, ३८०, ४२०, ४२३, ४२५, ४३७, ४६४, ४८४, ४८८, ६२८. पंजाब १३६, २२६, २२७, ३०१-३०३, ३५६, ४०७, ४७५, ५०६. पंडित ( मरहटा ) ३४३. पंडित का बाम ३२६. पंना (सेवग ) २४. ૭૨૨ www.umaragyanbhandar.com Page #349 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास पँवार (परमार ) १०-१२, ४५, ४८, ५०, | पब्लिक-वर्क्स का महकमा ६११, ६१४. ५४, ७६, ७८, ११८, १४२, ३४३, ३६५, | पब्लिक-वर्क्स-मिनिस्टर ६११. ४४८. परदायत ४५३. पचपदरा ४७, १४४, २०६, २७३, २७७, ३२६, | परब (ब) तसर १२, १३, १३२, १४०, १७८, ४४०, ४७०, ४७३,५२६, ६००, ६०१. २४५, २६१, ३२६, ३३५, ३५३, ३५४, पचमरी १०६,५०७. ३६६, ३७५, ३७६, ३८६, ३६०, ३६५, पचेटिया ६२. ३६६, ४०७-४११, ४१४, ४४१, ४४७, पटना २०३, २२०. ४५२, ५५४, १५, १५७, ५६५, ६.३, पटवा १४. पटाऊ४४०. परवेज (शाहज़ादा) २०२, २०३, २०५, २०६. पटियाला ४८५, ४६५, ५११, ५५३. | पर्शिया ५, २७६, ६३५. पटेल ३६७. पलाया २०६, पट्टन ३०५. पल्लीवाल ३७-३६. पठान १६, १२५, १२६, १३०, १३२, १३५, | पशु-वर्धन ६१०. १३६, १३८, १४२, १९४, १६५, २४०, | पहलवी ६३५, २४१, २५६, ४०७, ४१४, ४४१. पहाड़ खाँ १६४, १६५. पड़िहार ७-१०, १३, ४७, ४८, ५३, ५६-६१, पही १२५. ६६, ६५, २६.. पांचू ४३३. पतावा ४४०. पांचेटिया २०६. पचा ( राठोर ) १५३. पांचोटा २१६. पत्रिका २४. पांडू खाँ ६०१. पथारी १८४. पाई कोटड़ा ७६. पदमलसर ११५. पाउलट ४८१, ४६०. पदमशाह (पदमचन्द ) ८०,६०, ११५. पाउलट-नोबल्स स्कूल ४८१, ४६५. पदम (अ) सर ८०, ६०, ४४६, ४६२. पाटन १६, २०, ३५-३५, ३६, १३५, १८५, पद-संग्रह २३. २८८, २८६, ३०३, ३०५, ३०८, ३४२. पद्मसिंह २८७ पाटन ( तवरों की) ३८६. पद्मसी ५३. पाटवा ४३७. पद्मावती (सीसोदणी) ११५. पाटोदी २४०. पद्मावती ( हाडी ) ११५. पाडलाऊ ४४०. पनालाल ( थानवी) ४४४. पाडीव १८६. पनैसिंह (कसान ) १६६. पाता ८०, ८३, पनेसिंह ( स्क्वाड्रन-कमाण्डर ) ५EE. पातावत ३८४, ३८७. पब्लिक-पार्क ५१८, ५७२, ६१२. पाती १३२. पन्निक-लाइब्रेरी ६१२. पादशाहपुर २७३. ७३० Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #350 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वर्णानुक्रमणिका पाबू (जी) ४५, ४८, १०४, ३५८, | पिश ( सां) गण १७६, १६४, २८२, ३५३, पारकर १४२, ४३०. ३६८. पार्वती ४०, ४१. पी० एण्ड• प्रो० कम्पनी १६४. पाल ३६४, ४३८. पीछोला ६०. पालकी-सरोपाव ६३३. पीथल ४८. पालड़ी ३२६, ४४०. पीथासणी १७८. पालड़ी ४४.. पीथासिया ६०१. पालड़ी ( गोडवाड़ ) ४४६. पीथोलाव ४४०. पालड़ी ( राणावतों की ) ४४४. पीपराला ६०३. पालनपुर १, ५०, १६५, २४०, २६२, २७१, | पीपलाद ३५१. २८६, ३०८, ३०६, ३३६, ३३७, ५१५, पीपलिया महादेव ५०१. १४२. पीपलोद १४३, १५७, २८४, २८५. पालम १८४, २११, २६०. | पीपाड़ १०६, १०६, ११३, ११४, १४३, पालासनी ६२. २५०, २६४, ३६१, ३६२, ३७७, ३६६, पाली ( दक्षिण ) २५६, २७१, २७३. ४५१, ५१५. पाली (मारवाड़ ) १२, १४, ३४, ३७-४२, | पीरचंद २४. ४४, ४६, ४५, ५१, ६६, ७५, ७६, ८८, पीरज़ादे ३६६. १०, ६१,६७, १०३, १२४, १३१, १३२, | पीलाजी (पीलू ) गायकवाड़ ३३४, ३३७, १४२, १४४, १६५, २०१, २१८, २६३, | ३४२-३४७. २७३, २७६, २६२, २९८, ३२६, ३६१, | पीलूडा ३५. ३८०, ३६१, ३६८, ४१२, ४१६, ४३१, | पुंजा (ज) ६३, ६६. ४४०, ४४६, ४५१, ४५८, ४६०, ४७२, पुनपाल ६८. ४७३, ४८२, ४६२, ४६५, ५०१, ५११, पुनायतां ७६. ११४, ५७३, ६१६, ६२५, ६४१, ६४२. | पुनास ( मेड़ता ) २४५. पाली की टकसाल ६३८, ६४१, ६४२. पुनियावास ३६५. पालीताना ४२. पुर २७२, २८०, २६७. पावागढ़ ३३८. पुरदिल खाँ २७७. पासवान ३६०, ४०१. पुरमांडल १४२. पिंडारी ४२०. पुरातत्त्व विभाग ५१६, ५५३, ६१४, ६१५. पिचियाक ४७०, ६११. पुरियों का खेड़ा ३२६. पिटलाद २४०. पुरी ३२६. पिथोरा (राय) ३४. पुरोहित ६५, ७६, १०३, १०६, ११५, १४४, पिन्ने ( Capt-Pinne ) ५०४, ५०६. १७८, १६७, २०६, २५४, ३२६, ३५३, पिरथीपुग ४४१ ३६६, ३६६, ३६५, ३६६, ४४०, ४४, पिरामिड ५६३. । ४६३, ४८८, ६००. ७३१ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #351 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास पुरोहितों का बास ३२६. पुलकेशी ( सोलंकी ) ७, १३. पुल ५३६, ५४३, ५५८, ५६२. पुलिस का महकमा ( विभाग ) ४६४, ६०२. पुष्कर ५, ८, ३५, ६५, १७२, २६०, ३०२, ३०३, ३११, ३४७, ३५३, ३६२, ३७२, ३८२, ३६८, ४३२, ४३३, ४४८, ४५४, ४५५. पुष्करणा ब्राह्मण १८६, २५४, २५५, ३३५. पुष्यमित्र ४. ५४७, ५५१-५५६, पूँदला ४४०. पूँदलोता २७४. ५५२, ५७१. पृथ्वीसिंह ( मेड़तिया ) २५६. पुस्तक प्रकाश (Manuscript Library) २५, पृथ्वीसिंह ( लांबिया ) ४५०. २६, ४०५, ४३६, ६१५. पुस्तकालय ५२५. पूँगल ५७, ६४,६६, ६७, ८५, ८६, ९४, १०५, १३३. पूँजा ( डोडियाली - ठाकुर ) १६५. पूँजाल!ल (नेहता ) ४६४. पूना ६६, २३३, २३४, ४८१, ४८७, ५०६, ५१०, ५१२, ५१७, ५२८, ५३०, ५४६, ५४८, ५६५. पूनागर ८०. पूना-हौस ५३६, ५४६. पूनिया ६५६, पूर्णमल (बँदेला ) २४१ पूली- सवन्त संवाद २०. पृथ्वीदेत्र १०४. पृथ्वीराज ( चौहान ) ७, ६, १४, ६३६. पृथ्वीराज ( जैतावत ) १३३ - १३५, १७४. पृथ्वीराज ( रा० मालदेवजी का पुत्र ) १४८, १५३. पृथ्वीराज ( रा० सूजाजी का पुत्र ) ११०. पृथ्वीराज ( सांडू ) २२. पृथ्वीराज के सिक्के ६३६. पृथ्वीराज विजय पृथ्वीसिंह ( चंडावल ) ३५९. पृथ्वीसिंह ( चांदावत ) २८१. पृथ्वी सिंह (बेड़ा-ठाकुर ) ५२३, ५४२, ४, १६६.. पृथ्वीराज (भंडारी ) ४१०. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat पृथ्वीसिंहजी ( अहमदनगर ) ४४२, ४५३. पृथ्वीसिंहजी ( किशनगढ़ - राजा ) ४४७. पृथ्वीसिंहजी ( जयपुर नरेश ) ३८७. पृथ्वीसिंहजी ( महाराज - कुमार ) २३१ - २३३, २३६, २३८, २४५. पृथ्वीसिंहजी ( महाराजा मानसिंहजी के पुत्र ) ४४१. पेड़ ४८. पेमसिंह (पाली ) ३६१. पेमसी ( मेड़ता ) ३०८, ३०६. पेमावास ६०१. पेशी ३३८, ६२८, ६२६. पेशवा ३४२, ३४३, ३७६. पेशावर २१२, २१६, २४१. पृथ्वीराज ( देवड़ा ) १८६. पृथ्वीराज ( पीथल ) ( बीकानेर ) १६०, १६५, पैसे ६४३. पोपांबाई ६३. पोपावस ४६२. पैट ५७६. 1 पैटर्सन (S. B. Major ) ५२२,५२६,५२८, ५७. पैठन ६५१ पैमाइश ६१७. पैलेस्टाइन ५६२. ७३२ www.umaragyanbhandar.com Page #352 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वर्णानुक्रमणिका पोमसिंह ( भंगरी) १७३. | प्रतापसिंह ( खीवसर ) ४१३. पोरबंदर ५४५, ५७२. प्रतापसिंह ( ठाकुर संखवाय ) ५०, १३६, पोलावास ( विशनोइयां ) ४४१. १५१, ५६६, ५६६ पोलिटिकल एजैट ४२५, ४२८, ४२६, | प्रतापसिंह ( पिशंगण ) १७६. ४११, ४३३-४३५, ४४१, ४४२, ४४८, | प्रतापसिंह (प्रताप ) ( पत्ता ) ( महाराना ) १७, ४६१-५३, ४५६, ४५६, ४५८-४६०, १५६-१६६, १६८, १७७, ०६१. ६२८, ६२६. प्रतापसिंह ( म० प्रजितसिंहजी का पुत्र ) ३२८, पोलो ११७. प्रतापसिंहजी ( किशनगढ़ ) ३८८, ४५२. पोलो-चेलेंज-कप १७. | प्रतापसिंहजी (जयपुर-नरेश) ३८७, ३८९, ३६८. पोलो-रीम ४८७, ९३७-१३६, १४१, १४२, प्रतापसिंहजी ( नरसिंहगढ़-नरेश ) ४८४. १४५, ५४६, १४८-१०, १६, १५८, | प्रतापसिंहजी ( सर ), (महाराजा) १८, २५, २४४, ४१३, ४६१, ४६५, ४६६-४७१, पोसालिया ४४६,४१४. ४७४, ४४६-४७८, ४८०, ४८१, ४८३, पोहड़ ४५, ४७. ४८४, ४८७, ४८६, ४६०, ४६३-४६८, पौकरन (ण) १०, ११,८६, १०२, १०४, ५०१-५०५,५०८,५१०,११०,५१८-५२३, १०१, १०७-१०६, ११६, १३३, १४२, ५२६, ५२७. १२६, १३३-१३१, १४०, १४३, १४६, १७, २१८, २३१, २४४, ५४३, १४, १४८, ११, १७१, ५६, २७८, ३३४, ३६१, ३६६, ३७६-३७८, १६६. ३८४, ३६०-३६२, ३६६-३६८, ४०२, | प्रतिहार ६३५. ४०४, ४०६, ४०७, ४०६, ४१०, ४१२, प्रधानगी ४३७. ४१३, ४२०, ४२४, ४३१, ४३२, ४३६, | प्रबन्ध चिन्तामणि ३६. ४३५, ४५६, ४५६, ४६४, ४६८, ४७४, | प्रबोध चन्द्रोदय ( भाषा) २४३. ४७५, ४८४, ४६४, १०४, ५०७, १६, | प्रभाकरवर्धन ६. १२५, ५३५, ५३६, १४६, ५५६, ५६०, प्रभुलाल ( जोशी) ४३६, ४३५. १७०, ६०३, ६२८. प्रयाग ६६, २०४, २१४. पौकरना-राठोड़ ८६, १०४, १०८. प्रयागदास (प्रयाग) ११.. प्याद बख़्शी ४८६, १०४. प्रश्नोत्तर २३. प्रताप ( कुँ० बाधाजी का पुत्र ) ११०. प्रहस्त ३१, प्रतापकुँवरिजी (प्रताप बाला ) (जाड़ेजीजी) २४. प्रिंस ऑफ वेल्स ४६६, ४८१, ४८४, १०८, प्रतापकुँवरिजी (भटियानीजी) २४. १४०,५४३, ५४५. प्रतापकुँवरी-पदरत्नावली २४. प्रिंसिपल मैडीकल-ऑफीसर ६०८. प्रताप-पचीसी २४. प्रेमसागर २४. प्रताप-विनय २४. प्रौवीडेंट फंड ५४६. प्रतापसिंह ( अदावत) २९८, २९६. प्रतापसिंह (पावत ) २६३. प्लेग ४३१, ५०७, १२८. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #353 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास फ़रीद ( शेख ) २१५. फर्डिनेंड फ्रेंज़ (आर्चड्यूक ऑफ ऑस्ट्रिया ) फजलअली खाँ ३६७. ४८७. फतन खाँ ६६, १... फर्रुखमोहम्मद अली खाँ (टौंक ) ५२८. फतहपुर ( सीकरी ) २०६, २२६, ३१६, १७, फर्रुखसियर १७, ३०४-३०८, ३१०, ३११, फतह (तै) पौल ३२६, ३५८, ४४६, ४४६, ३१४, ३१५, ३२८. फर्रुखाबाद ३२, १६२. फतह (ते) महल ३२६, ३६८, ४६२, ६.६. फतहसिंह (पंचोली) ३०८. | फलोदी (धी ) ७, ४५, ६४, ६८, ६३, ६७, फलहाबाद २२१. १०२-१०५, १०७-१०६, ११६, १२३, फतेहखाँ २४०, २४६, २६२. १२६, १७, १३२, १३३, १४२, १३, फतेपली खाँ ( बलोच ) ३८५-३८७. १४८, १७०, १७१, १७६, १६२, १६७, कृतग्रलीवेग १२७. १६६, २०२, २०८, २१२, २१८, २६६, फौचंद ( जोशी ) ४२३. २७२, ३२६, ३६५, ३६७. ३७१, ३७३, फतेचन्द (सिंघी) ३७७, ३७८. ३७६, ३६७, ४१३, ४२७, ४७०, १३१, फतेपुर (गुजरात) ३४०. ५३६, ६०३, ६२६. फतेपुर । मम । १००, ११६, १२३, १४१, फाइनेंस-मिनिस्टर ६.५. १४२. फागली ४४०. फ़तैबिहारीजी का मंदिर ४६२, फागी ४११. फ़तराज (सिंघी ) ४१०, ४१८, ४२३, ४२४. फारस ४, ३७, २७६, ३.२. फ़तेपागर ३६४, ४६२, ४८०, ५१३. फॉस ४३. फ़तसिंह ( आसोप-ठाकुर ) १६५. फ़िदा उद्दीन खाँ ३४२, ३५०. फ़तैसिंह (गयपुर ठाकुर ) ३८४. फ़िलस्तीन ५६६. फतेसिंह ( सोभावत ) ४६१. कोगेज़ ( पर्शिया ). फतेसिंहजी ( महाराज ) ५१६, ५३७, १४६, फोरोज़ ( यद) १७७. फ़ीरोज़ खाँ ( नागोर ) ६४, ६८, ६६, ७४. फतेसिंहजी (महागजा विजयसिंहजी के पुत्र ) | फ़रोज़ ख़ाँ ( पालनपुर ) ३०८, ३७१, ३६१, ३६४, ३६६, ४०१. फीरोज़पुर ६१४. फतेसिंहजी ( महाराना ) ४८६, ५१०, ५१३, फीरोज़शाह ( तुगलक ) १४. फ़ीरोज़शाह (द्वितीय) (खिलजी) १५, ४४, फदिया ११८, १४३, ६३६. फरड़ा ४८. फ़रोज़शाह ( सेठ) (कोठावाला ) ५१४, फरहाद ( हबशी) १८४. ५७४. फरासत ( ख्वाजा ) २१५-२१७. फीरोज़ी सिक्के ६३७. फ़गसला खुर्द ४४०. फील्ड ( D. M. Col. Sir ) ५६८-१७०, फरिश्ता १६. १७२-५७४,५७६. ५६३. ७३४ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #354 -------------------------------------------------------------------------- ________________ घर्णानुक्रमणिका फुलाद ६.३. बवाल ३२६. फुलेलाव १०४, १३२, १.६. बक्सर १०१. फूल कुँवर १०४. बखतसागर ३७७. फूलबाग ४६२. वखतसिंहजी ( महाराजा ) ( गजाधिराज ) १८, फूनमहल ३५८. २०, २८, २६, २६१, २६५, ३०७-३२६, फूलिया १७८. १८०, २३६. ३३३-३३७, ३४०-३४२, ३४४, ३४६-३४६, फैजुल्ला खाँ (मुंशी) ४६३, ४६८, ४७१, ४८६. | ३५१-३५४, ३६६, ३६६-३७१, ६८३, फेडरेशन १६४. ३६२, ३६३, ४२५, ६०१, ६५६. फै टुबिया ५६५. बखतावरमल ( मेहता ) ४८४. फौज खर्च ५७५. बखतावरसिंह ( पाउवा ) ४१८, ४२७. फौजचन्द ( भंडारी) ५४२. बखतावरसिंह ( खेतड़ी) ४०५. फौजदारी-अदालत ४६४, ५४८, ६२०, ६२८. | बखतावरसिंह ( ठाकुर ) ( Supdt. Police ) फौजमल ४३६ १४२, १५३, ५५४, १५८, १६.. फौजराज (सिंधी) ४२४-४२६, ४१३, ४३६. | बखतावरसिंह ( भाद्र जून ) ४२६, ४३६. फौज-सिनगार १६१. बखतेश ३६४. फौजी-लाट ११२. बान्तसिंह ( वकील ) २६४. फोटेस्क्यू । २०. बख्शीराम (चंडावल ) ४१२, फौलाद खाँ २५५, २१८. बहशूखाँ ५४१. फ्रांस १०३, ५२४, १२६, १६६, ५६७. बगड़ी ८०, ८५, ८८, ११४, १३१, १३६, फ्रांसीसी २२३. १५५, १७४, २७८, २६०, ३०५, ४१२, फ्रेंच ३८६. ४२८, ४४४, ४४७, ४६३, ५३३. फ्रेज़र (E.A.) ४८०. बगनाना ३४, २७२. फैकनोइस ५६८. बगाड़ ५०६. बकराज (छापर ) ६७,६८. बछराज (सिंघी) ४८८, ४६४, ४६६. बंगलोर ५१४. बकवास १६७. बंगाल ३६, ११२, २०३, २०१, २२०, ५१. बटूलाल ५०६. बंगाल एशियाटिक सोसाइटी ५१४. बड़गाँव २७१. ३०८. बंबई ४८०, ४८१, ४८३, ४८४, ४८७, ४६०, बड़ लिया १०३. १०३, ५०७, ५०६, ११२, ५१६, ५२४, बड़ली ६५. १२५, ५२५, ५३०, १४०, ५४५, १५०, बड़लू ४५१. १५१, ५१६, ५५८, ५६३, १६५, ५७०, बड़ियाला १४४. ५७४, १७७.५८४, ५६४. बड़ोदा १८६, ३३७, ३४२-३४६, ४८१, बंभोर ( पुरोहितां ) ६५. ४६०, ५०५,५१,५१५, ५४२, १४३. बंवली ( बोननी) १४२. यणपूर (जुगता) ४४०. ७३५ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #355 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास बदड़ा ४.. बदन कुँवरीजी (श्रीमती महारानीजी) ५३९. बदनसिंह (जावला) ३८१. बदनोर १२४, १३७, १३८, १४२, २१६, २६२, २६३, २७२ बदायू ३२, ३३, ६६. बघड़ा ४... बघावाराम ( पण्डित) ४७४. बनराज (सिंघी) ३९६, ३९८, ३९.. बनाड़ ३६१, ३७८, ४३३, ४३७, बनारस २.३, ५६६. बनास ३.२. बनेसिंह १४.. बनैसिंह (रायण) ३११. बन्दा ३०२. बबाटी ५८.. बभूत सिंह (पौकरण ) ४३६. बभूतसिंह (म• मानसिंहजी का बाभा) ४४१. बयाज़िद (बायज़ीद ) खाँ ( मेवाती) ३२२. बयाना १२३, १४१, २४७. वर ४५८. बरकतअली (मुंशी) ४२२. बर की घाटी २६४. बरड़वा ४७४. बरफ का कारखाना ४६०,६१३. बराड़ २.१, २०४, २३६. बरेकु ५८१. बर्डपुंड (लॉर्ड) ५६२. बनियर २२३-२२१, २२५, २२८. बर्मा ५६६. बलख ४, १७८, १vt. बलगेरिया १३४. बलदेव (चौहान ) २२८. बलदेवराम ( मिरधा) ५४३, ५६८. बनसिंह (डकैत) ११४. बना १५. बलूदा २०२, २५४, २६, २७८, २०, २१२, ३६४, ३६१, ३०८,४१०. बलूचिस्तान ४, ६.३. बल्लू (चांपावत) ६१४. बल्लोच ८, १३, १४, १२२, १३५,३८५. बल्लोचपुर २०२. बसरा २१४. बसी ४७, १४७. बहराम १३८. बहरामशाह १३. बहलोल ( लोदी) ५, १.०, १.१. बहलोलखाँ २०५. बहादुर ( ढाढी) २०, ५६. बहादुर (मुज़फ्फर का पुत्र) १८२. बहादुरखाँ २१०, २५१, २७.. बहादुरशाह (द्वितीय) ६३८. बहादुरशाह (प्रथम ) २८५, २१३, २६५, ३.०-३०३, ३०६, ३१४, ३१५. बहादुरशाह (सुलतान गुजरात) ११६, ११८. बहादुरसिंह (कप्तान) ६.. बहादुरसिंह (डाबड़ा) ३६७. बहादुरसिंह ( बलंदा) ३९८, बहदुरसिंहजी (किशनगढ़) ( रूपनगर ) ३५७, ३६., ३६४, ३६८, ३७२, ३८३, ३८८. बहादुरसिंहजी (महाराज ) ४६१. बहूजी का तालाव १४३. बांकीदास २४. बांजड़ा १७८. बांजाकूड़ी ३६४, बांदर ४. बांदरवाड़ा ३.४. बाँबे बड़ोदा ऐंड सेंट्रल इंडिया रेल्वे ४७८, ४८३. बांमड़ा ६.१. बांसवाड़ा १५८, १६९, २०२. बांह-पसाव १३, ११२. ७४ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #356 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वर्णानुक्रमणिका बाइंग (जनरल ) it. बाबर १२, १२, १६२. बाइसंदा ६१५, ६४३. बावरा ४१.. बाईजी का तालाव ४६२. बामा ४१३. वाउक ७८. बार (A. D.C.) १२१, १२६. बाकरवाड़ा २११. बार (ऐसोसिएशन ) ६२२. पाकियात का महकमा ४०1. बारकर (मेजर) १६.. बागड़की ४४१. बार (ह) १८६, ३८४, ४४३, ४१, ४६१. बागां... बाराह ३२१. बागा ( जालोरी) ४२७. बाराह के सैय्यद १६. बागात ६१२. बार्टन (मेजर) १६७. बागासणी २४५. बार्डिक रिसर्च कमेटी ५१४. बाघ ६६. बालकृष्ण (दीक्षित) २१, २४०, २५७. बाघला ४४.. बालकृष्ण (पंचोनी) ३०४, १.५, ३३३-३३१, बापसिंह १४.. ३५. बाषा ( भाट) ४६.. बालकृष्णजी (मूर्ति) ३८१. बाघाजी (राजकुमार ).-1१२. बालकृष्णजी का मन्दिर ३६४, . बापावसिया ३२६. बालप्रसाद १. बाधेना ३७. बालरवा ८९. बाघेली २५४. बालसमंद ८५, ३६७, १५, ४६२, ४६., बाजबहादुर १७०. ४८८,६१२. बाजावास ४५६. बाला (गांव) ११४. बाजीराव ( पेशवा) ४९, ३४३. बाला (राठोड़-खाँप) १३, २७५, २७६, बा (6) ड़मेर १०, ५, ४८, १०७, १०८, २८३. ११६, १३३, १४, १४२, ४२६, १५३, बाना (राव रणमल्लजी का पौत्र) ८.. १७३, ६२५. बालाघाट २०५-२०७. बाड़ा खुर्द १४४. बालाघणा २४५. बाड़िया १५. बालापुर २... बाणगंगा ३. बानिया ८०. बाणियावास ६०१. बाली १४, २८६, ४, ५, ४८६, ५३५ बाथपंचायण ६५. १३६, ५६,५७, ६२५. बादशाहकुली खाँ २६८. बालू (जोशी) ३८०. बाप ४३७. बालेचा (मा) ५२, १०, ११७, १८८. बापा ( रावल ) ७१. बालोतरा २७३, २४, २७७, १८, १.२, बापू (सिंधिया) ४.७. ६२०, ६२५. बार ४१३. । बावड़ी (गांव) १४८, ३०८. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #357 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास बावड़ी कलां १.६. बावड़ी खुर्द ... बावरी ४७१, ४vt. बाड़ा ४.. बासणी १.३. बामणी (चारणां) १७८. बासणो (जगा) ४... बासणी (मूटां) ४४०. बासणी (तिरवाड़ियां) २४६. बासणी ( दधवाड़ियां ) ३२९. बासगो (नामिंघ) १०३, २४५. वासणो (बैदां ) ३९.. बासणो ( भाटियां) १४४, १८. बासणी (मनाणा) ३२६. बाणी (सेपां)१०३, १६.. बासनी ( जागीर) ४२५, ४३, ४. बामनो कासों की) १९.. बासू (राजा) ६११. बाहड़देव ३६. बिजलो का कारखाना १२८, बिजली घर:०१, ६१. विशाही २९३, ४८७, ५... बिहनदास ( भंडारी) २६६. बिड़दामिंगागार ०२. बिड़दसिंहजी (किशनगढ-राजा ) ३८८. बिनोदीराम (व्यास) १२३. बिलमचंद (भंडारी) ७५. बिशनगम (व्यास ) ४२१. बिशनसिंह ( प्रोसियां) ५७७. बिशनसिंह ( गूलर ) ४., १३. बिशनसिंह (चंडावल ) १८. विशनसिंह (रिसाना) २६. बिहार २०३. विहारसिंह ( राटोड़) ६१४. बिहारीदास ( खीची) ४२३. बिहारीदास ( पचोली ) २६.. बिहारी पठान १५, ६३, ७५, १.१, १२२, १३८, १४२, १६४, १९, २५६, २६२. बिहारी सतसई की टीका २३. विहारासिंह ( बाबा ) १३५. बिहारी सिंह ( भाद्राजण) २१०. बोजवा ५.६. बीटली ४३. बोकम rs. बीकमपुर १.१. बीकरलाई १४४. बोका ( हज़ारो ) ३९३. बोकाजी (राव)८०.६८-१.१.१.१, १०८. बीकानेर १, २, ४, १२, ३३, ६, २, ६, ६५.६८,८०,८१.६६, १.१,१.३,०५, १.८, ११३, १२., १२०, १२३, १२१, १२६, ११, १३४-१३६, १०, १३६, १४., १४३, १४५, १४७, १११, १२, ११३, ११४, १t., १६५, १७०, १७६, १७५, १८२, ११२, २०, २३१, ३१२, ३४७-३४६, ३११, ३५२, ३७६, ३६१, ३६४, ३६१, ३७२, ३७३, ३७६, १७, २६३, ३८७, १८६, ४०५, ४.६, ११, ४१३-४१६, ४२४,४३३, ४, ४५,१५, ४७७, ४७, ४८३,-४८६, ४८ ४६., vit-ras, ५.१, ०१,१११, ११, ११५, ५२, १३६, ५५२, ५५, ५६५, १.३, ६५२. बीगवी १४४, १९७. बीघोड़ी ४७६. बीजड़ ( मीर) ३८४-३८६. बीजलियावास १६७. बीजा ( देवड़ा) १८९. बोजापुर, ४३, १९६, २८०, २८४. बीजोजाई. ४१२. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #358 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वर्णानुक्रमणिका बीटणी २६१. बुद्धसिंह ( हाडा )२९४. बीटस्न ( पस.) ४८४, ५.३. बुरहानपुर ६४, १६९-२०२, १०४, २१०, बीठल ( वांपावत ) २७४. २४३, २४१, २७२. बीठोरा ४५.. | बुरहानुल्मुल्क ३४८, ३६. बीदर ३१५. बुलंदअखतर २८५, २८६. बीदा ( भारमलजी का पुत्र) १३३. बूंदी ७६, १६७, २१०, २२४, २२५, २४०, बीटा ( रा जोधाजी का पुत्र ) १.०-१.3. २४६, २७८, ३०८, ३२६, ३३०, ३५५, बीदा ( रावल ) ८६. ३५६, ४८४-४८६, १८८-४६०, ४४, बीदावाटी १.०.१.२. ४६८, ५०५, १२, ५११, ५१८, ५३., बीदासणो १४. ५१६, ५५. बी. बी. ऐण्ड सी. आइ. रेल्वे ५३६, १.३. Vध्य वाम ३०७. बीरमगांव २८६. बूड़सू ४०८, ४१०,४१, ४२१,४२८, ६४७. बीगं २५. बूडा १ बीरावास ४४१. बूला ४६. बीरुट ११८. बेगड़ ४८. बीलाड़ा ३, ८, १०, १०४, १४४, १७८, | बेटी ( जी. ए. एच.) ५६२. २०१, २२६, २३०, २१४, २६२, २६३, | बेड़ा ४८४, ११२, ५२०, ५२३, ५४२, ५४६, २७३, २७८, २८६, २६६, ३२६, ३६, | ५५२, ५.१. ११७, ३६४, ३७६, ३८०,३६५, ४३२,४४०, बेतार का तार घर. ६.२. ४४१, ४४६, ४११,११२, १७३, ६.३. वेदावड़ी ख़ई ३२६. बोलावास ५१४. बेराई १७८, २४५, ३२६. बीसलदेव ६३, ६७. बेलण ८४. बी (वी) सलपुर 1, १७, १४८, ३६१, ३७८, | बेलापुर १८६. ३६., ३९१, ५५४. बेवटा १०३. बसावास ७६. बेह १६७. बुंदेलखड १७१, १८६. बेड ४८. बुंदेला ११, १८६, २०५, २.६, २२३, २४१, बैजनाथ महादेव ४४.. ३०१, ६५.. बै (वै ) रसल (जैतावत ) १७४. बुखारा दरवाज़ा ६५५. बैरीसाल (बगड़ी-ठाकुर ) ४४. बुचकला ८. बैहणीवाल ६५६. बुड़किया ४६२. बैहरामपुर ३३८. बुध शाखा ४८. बोइने ( डी) ३८९. बुधसिंह (म. प्रजितसिंहजी का पुत्र ) ३२८. | बोइल ३६५. बुधसिंह ( हरियाडाणा) १३. बोपूशाही रुपया ६४७. बुधसिंहजी (बूंदो-नरेश ) ३१८, ३२६, ३३४. । बोयड़ मौस १८१. ७३३ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #359 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास बोयन १११, . मगवन्तसिंह ( जोधा । १४.. बोयात्रा ४vt. भगवानदास (चांपावत) ३.१. बोरसी रुपया ।४७. भगवानदास (चौधरी) २८१, २०६. ग्यावर २६४,२६८, ४२१,४८. भगवानदास ( रा. उदयसिंहजी का पुत्र) १७८, ब्रमगुप्त ६, ७. १८६, १५२. ब्रमस्फुटसिद्धान्त ६, ७. भजनपद हरिजस २४. ब्रमाण्डवर्णन २१, भटनेर ६१६. ब्रह्मानन्द ( पंडित ) ५.१. भटनोखा ४३१. ब्रामण १०, ११६, १४, १५८, १६७, | भटियानी १०४, १३२. १४५, ३२९, ३८४, ३६५, ४३८, ४४०, मटियानीजी ४४७. ४६३, ४७३,६.१. भटियानीजी ( महारानीजी) it. ब्रिटिश १०७, १२३, १२४, ५३.. भटियानीजी का महल ४४०. ब्रिटिश-इंडिया कम्पनी १७७. भट्ट ३१३, ३११. ब्रिटिश-ईस्ट ऐफ्रिका ५७८. भडोच ८, १३. ब्रिटिश-गवर्नमेन्ट ४२०, ४११, ४२५, ४२, भदवासी ५५४. ४६८, ११४. भदावत १२२. ब्रिटिश-भारत ४१७, ४८१, ६.३, ६.४, ६२., भरतपुर ३२२, २, ३८२, ४४, ४६४, ६२१,६२५, ६३५, ६३६,६४३. ब्रिटिश साम्राज्य १७३. भर्तृवड्ढ (द्वितीय)८, १. बेबोन ( लॉर्ड ) १४. भवातड़ा ४७०, ४७५, १४३. ब्रेसर १०२. भवानी सहस्रनाम २१. ब्रोही ३८६. भांगेसर १३२. भौर।.. भाँड् (चारणां)६५, ६६. भंडारी १७६, १८, १९४, २६६, ३१९, | भांण (रा. मानदेवजी का पुत्र) १४४. १२०, ३२४, ३२७, १३२, ३३४, ३३६, भांनावास .. ३४१, ३४४, ३४६, ३४८, १०, ३५२, भाकरवासणी २४५ ३५३, ३१५, ३७१, ३६८, ३६, ४.१, भाकरसिंह ( गयपुर ) ३७६. ४०२, ४०६, ४०६, ४१०, १८, ४२६, भाकरसी (रा. जालणसीजी का पुत्र) ५१. ४२७, १०, ४१७, ४८१, ८४, ११२, १४२, ५७६. भाखरसी (रा. रणमल्लजी का पुत्र ) ८०. भंसाली ३१. भागवत ३, ४, ४३६. मखरी ३१२, ३८० भागवत की मारवाड़ी टीका २३. मगत २९५, ६... भागवत के दशमस्कन्ध के ४-६१ अध्यायों का भगवन्तदास (राजा) १६४. भाषापद्यानुवाद २४. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #360 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वर्णानुक्रमणिका भाट १७८, १९७, २०१, ३२६, ४४१, ४४३, भारतेश्वरी ४६७, ४६८. ४६१, ४६२, ४७३, ४६२, ६०१. भारमल (बाला) १३३, १३५. भाटी ३५, ४८-५२, ५६-५८, ६३-६६, ७३, | भारमल (रा. जगमालजी का पुत्र) ५१. ७४, ८५, ८६, १४, ६८, १०२, १०४, १११, भारमल (रा. जोधाजी का पुत्र) १०३. ११३, १३४, १७१, १८२, १८३, १८५, | भारमलजी (ईडर) १११. १८५-१९३, १६७, २३१, २४१, २५०, | भावडा ११८, ३६५. २१२, २५७-२६०, २७२, २७१-२७७, भावनगर ४२, ४८६. ३०६, ३०८, ३६५, ३७१, ३६८, ४०४, भावविरही २१. ४०५, ४११, ४२४, ४२५, ४३१, ४३२, भावसिंह ( कुंपावत) ६५४. ४०. भावी ५१५. भाटेलाई २०६. भाषा-भूषण २०, २४३. भाटेनाई-पुरोहितों का बास ६५. भास्करानन्द (स्वामी ) ४६२. माथेड़ा ८६. भिणा (ना) य १०६, १५२, ३०४, ३२६, भादर ३४०, ३४१. ३५१, ३१३, ३७१, ३७२, ३७६, ३७६, भादरा (द्रा) जन (ण) ६६, १७, १०२, | ३६८. १६, १२३, १३२, १४१, १५०, १५१, | भिरड़कोट ५३, १५. १७२, १८८, २०४, २७५, २७७, २६०, भीया (चौहान ) २६६. ३३७, ३६७, ४२८, ४२६, ४३३, ४३६, भीवभिड़क ४६२. भीवालिया ४१२. मान ६२. भीकमसी ४४. मान का भाकर ६२. भीतर (रो) ट १६६, ४१६. भानीराम (भंडारी गंगाराम का पुत्र) ४१०, भीनमाल ६-८, १०, ११, १३, ३५, ३६, ४५६, ४२७. १०-५३, १४२, १६५, २६२, ३०८, ३३४, भारत २४०, ४३५, ४५२, ४६५, ४६८, ५०३, | ४७६, ४७७, ६२५, १०५, ५०७, ५१०, ११, ५१६-५१८, भीम (कुं० बाघाजी का पुत्र) ११०. ५२०, १२४, ५२७, ५३०, ५३५, ५४०, | भीम (बीकानेर-राजकुमार ) १२३, १२५, ५६०, ५७१, ५७२, ५७८, ५६५, ५६६, १६८, ६०३, ६१२, ६३५. भीम (म. अमरसिंहजी का पुत्र ) २०३-२०५ भारत-सरकार ( गवर्नमेंट) १८०, १६७, ३८३, | भीम (म. राजसिंहजी का पुत्र ) २६४, २६५. ३९३,५२५, ५३४, ५३८, ५४०, ५४४, भीम (रा. कनपालजी का पुत्र ) ४६, ५०. ५४१, ५६४, ५६५, १७५, ६०५, ६१५. भीम (रा. चूंडाजी का पुत्र) ६६, ८३, १०८. भारतसिंह (ऊदावत) ३७२. भीम (रावत) १३३, १३४. भारतसिंह ( रावराजा) ४६.. भारतसिंहजी (शाहपुरा) २६१. भीम (रा. सीहाजी का पुत्र) ४१. भारती १२६, ४०८. | भीमजी (ईडर) ११, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #361 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास भीमदेव (द्वितीय) ( सोलंकी) ११, १२, ! भैरूंदास (सिरोही) १८६. १४, ३२, ३७, भैरूंपौल ४४०. भीमदेव (प्रथम ) ( सोलंकी ) ११, १२. भैरूंवास ३६५. भीमनाथ (प्रायस ) ४१७, ४१६, ४२०, ४२४, । भोंसले ४२७, ६५०. ४२५, ४२६, ४३.. भोगलावा १२४. भीमरलाई २८३. भोगिशैल १२. भीमराज (सिंधी) ३८७. भोज (प्रतिहार )८. भीमराजजी ( जैसलमेर-रावल ) १८३. भोजदेव (प्रथम ) (प्रतिहार ) ६, ८, ६३५. भीमशाही पैसा ६४३. भोजराज ( चावड़ा ) ४४. भीमसिंह (रास) ४२७, ४३६. भोजराज (म. संग्रामसिंहजी का पुत्र ) २०, भीमसिंहजी ( महाराजा) २१. ३६०-३६२, १०३. ३६४, ३६६-४००, ४०१,४०२, ४.४-४०६, । भोजराज (रा. मालदेवजी का पुत्र ) १४४. ४०६, १०८,६०१, ६२८, ६२६, ६४१, ६४३. भोजा (चारण) ७४. भीमसिंहजी (महाराना) ४०५, ४१५. | भोपतसिंह ( राजा उदयसिंहजो का पुत्र) १७६, भीमा ( नदी) २८६. १७६. मील १५२, २६०, ३४४, ४३०, ४५७, ४७१, , भोपसू ४४, ४७५, ४७६. भोपालसिंहजी ( महाराज ) ४६१, ४६५, ४६६. भीलड़ा ३५. भोमसिंह ( ठा. मीठड़ी) ५६८. भीलावास १९७. भोमसिंह ( भटनोखां) ४३५. भीष्म भट्ट २४. भुज ३५, ४२६. भोमसिंह ( म. मानसिंहजी का बाभा) ४४१. भुसावर २६४. भोमसिंहजी ( म. विजयसिंहजी के पुत्र ) ३६१, vडेल ५८. ३९४, ३६६. भूकम्प ५६६. भूरसिंह ( डकैत ) ५४४, १२, ११४, ५५८. मंगलदास ( डकैत ) ५४६. भूरसिंह (रिसाला) ५. मंगलसिंह ( ठा. पौकरण ) ४७४, ४८४. ४६४, भेरुंदा २१६. १०७, ५१६, ५३५, ५४६,५५१. भैसेर ( कुतड़ी ) १४४. मंजुनाथ ( के. भटजी) ५२८. #सेर ( कोटवाली ) १४४, ३२९, ४४०. मंडला (रा. रणमल्लजी का पुत्र).. भैसेर (खुर्द) ४०६. मंडली ३२६. भैसेर (चांवडां) ६५. मंडावरा २४५. भैसोर ३२६. भंडी ४६२. भैरवों का दालान ३३.. मंडी (रियासत ) ४६६. भैरूदास (चांपावत) १३४. । मंडेश्वर २६५. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #362 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मंडी (व) र ५, ७ १०, १२, १५, २५, २६, ३६, ४४, ४७, ४८, ५३-५५, ५८-६४, ६६, ६८-७५, ७८-८०, ८२-८७, ६१-६२, ६५, ६८, १०२, १४१, १४३, २६०, २७६, ३११, ३३०, ३५७, ३५८, ४००, ४२३, ४३५, ४३८, ४६२, ४८८, ४६०, ४६३, ५१६, ५४५, ५६०, ६०३, ६१२. मंदसोर ६, ३०५, ३६५, ३६७. मकटाउ ५८०. मकराना २७४, ५०३, ५१६, ५५७. मकरानी ५५८. मडु५८८. मक्का ३१५. मगराज ( परदायत ) ४६२. मंगलाना १३. मगी पट्टन २०१. मच्छूखाँ ५०६. मजल ३८४, ४१३, ४२४. मणियारी ८०. मतालबा ६२७, मथाणिया १०३, ६०१. मथुरा ३, २१६, २२६, २६६, ३१६, ३१७, ३३२, ४४८, ४८६, ५०१. मथुरादास ( मेड़तिया ) २३६. मदनमोहन मालवीय ( पंडित ) ५२१, ५५५. मदनलाल ५३६. मदनसिंह ( तँवर ) ४१३. मदारिया ७५, १२४, १४२. मद्रास ५६०. मधुकरशाह १७१. मधुराजदेव ( भोंसले ) ४२७. मनरूप का बाड़िया ४६२. मना ( भंडारी ) १७६, १८५. मनुष्य-गणना ( मर्दुमशुमारी ) ४७०, ५०२, ५०३, ५१४, ५३६, ५६३. मनूची २२३, २४२. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ४८४, मनोहरदास ( पंचोली ) २१६. मनोहरदास ( राव ) ( शेखावत ) ३०५. मनोहरदासजी ( जयसलमेर के रावल ) २१७. मनोहरपुर ३१८, ३२१, ३२२. मयूर ७. मरदानअली ४५७. वर्णानुक्रमणिका मरवा ४१६. मरहटे ( महाराष्ट्र ) २३४, २३६, २७६, २८६, ३१६, ३३६, ३३७, ३४२, ३४४, ३४५, ३४८, ३५०, ३५६, ३६०, ३६५-३६८, ३७२-३७६, ३८१, ३८७-३६०, ३६२, ४०२ - ४०४, ४११, ६२७. ३६७-३६६, ६२६. मरु १-५, १०. मरुदेश ४८२. मरुधर कुँवरी ( बाईजी ) ५४७,५६४. मरुधरा १२३. मरेस्मिथ (टी. ) ५७७, ५७८, ५८०, ५८१, ५८८, ५०, ५६१. मर्दानी डेवढ़ी ५४२. मलकापुर २०१. मलारना (ग) ५२३, २१८, २१६. मलिक ( हाजी ) ५०. मलिक अंबर २००, २०१, २०४. मलिक ख़ाँ १३५, १३६. मलोया ५६४. मलानी ( मालानी ) ७, ४७, ४८, ५५, ८६, १२१, २७१, ४२६, ४४६, ४८५, ४८८, ४६१, ४६७, ५१२, ५१४, ६१८ मलिक (इजुद्दीन ) १५. मल्लिनाथजी ( रावल ) ३३, ५३-५६, ५८, ५६, ६१, ६३, १०७, १४२. मल्लू खाँ ( मलिक यूसुफ ) १०५, १०६. मल्हारना १४२. मल्हार राव होल्कर ३४६, ३४८, ३४९, ३५६, ३६१, ३६३. ७४३ www.umaragyanbhandar.com Page #363 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास मसूदा २००, ३०४, ३७२, ३७५, ३७६, ३६८. | महेशदास (कुंपावत) ११३, ११८. मसूरिया ६२, ४६२. | महेशदास (चौपावत) २१३, २१४, २२३, २२८. मसूरी ५२५. मस्कट २७६. महेशदास (महेचा)२११. महकमा खास ४६७, ५१३, ६०२, ६०५. | महेशदास (मारोठ) ४०५. महकमा नाबालिगी ४७८. महेशदास (राजा उदयसिंहजी का पौत्र) १७८, महकमा हदबस्त ४७४. २१९. म ( मै ) हकर १६६, १६७, १९६-२०१. | महेशदास ( राठोड़) १८३. महपा ७६-७६, ८२. महेशदास (राव मालदेवजी का पुत्र) १४४. महमंद ४६७. महेशपुरा ३२६. महमूद ग़ज़नवी १३. मांगलिया ६०, ८७, १२२, १८३. महरबानजी पेस्टनजी १२७, ५२८. मांगलोद ५, ३०३. महादजी (माधोजी पटेल (सिंधिया) ३६५, मांगा (चारण) ४८. ३७६, ३८०, ३८१, ३८८-३६०. मांजा (सीसोदिया) ८८. महापुरुष ४०८. मांडण ६६. महाबत खाँ १८७, १८८, २०२, २०५. मांडणोत ३८४. महाबत खाँ २३३. मांडल (रा. रणमल्लजी का पुत्र)८०. महाबत खाँ २६४, ३०१, ३०३. मांडन (स्थान) ८४. महाभारत ३, ४. मांडलक (रा. जगमालजी का पुत्र ) ५५. महामंदिर ४०४, ४१३, ४२४, ४२७, ४७१. मांडलगढ़ ७६, १६१. महाराज कुमार पाँचवें (दिलीपसिंहजी ) ५७५. मांडलपुर २७२, २७५, २८०, २६७ महाराजसिंह ( कुँवर ) ५६३, ५६५. मांडव १८६. महाराजा साहब की द्वितीय पूर्वी एफ्रिका-यात्रा मांडवी १८५, १८६. ५८८-५६४, मांडा ३५६. महाराजा साहब की प्रथम पूर्वी एफ्रिका-यात्रा मांडियाई खुर्द १०३, ३२६. ५७७-१८५. मांडी २३१. महाराम (आसोपा) ४४४. मांडू ६०, ६२, ७२, ७६-७८, ८०-८२, ६५, महाराष्ट्र २०१, ३८९. १२३, २००, २०१, २०४, २०१, २२१. महासिंह ( चांपावत ) (पोकरण) ३३४, ३७७. माइसोर ४८२, ४६८, ५१६, ५३७. महीरेलण ४८. माउंगू १७८-५८०. महुई ३२, ३५. माघ ६. महेचा २१५,५५४. माचिया ४६२. महेवा ३६, ४२, ४८, ४६, ११-६६,१७, | माड १. १०२, ११६, १६१, २१५. माणकपुरा ४४४. ७४४ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #364 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वर्णानुक्रमणिका माणकराव १५, ६६. मानसिंहजी ( महाराजा) के समय के चित्रों का मादड़ी ३२६. मादालया ११२ संग्रह २६, ३०. मादी ७६. मानसिंहजी (रतलाम-नरेश) १७६, ३२०, ३२१. माधवसिंह (मेड़तिया) ३३३. मान्यखेट ८. माधवसिंह (रा. उदयसिंहजी का पुत्र) १७६. मामावास ३२६. माधवसिंह (शक्तिसिंह का वंशज) १८०. मायलाबाग ३६४, ४१६. माधव (घो) सिंहजी (प्रथम) (जयपुर) ३५६, मायाचंद (दीवान) ४३०. ३५७, ३६८, ३७२, ३७५, ३८२. मारवाड़ १, ३-८, १०-१५, १६, २०, २२, माधोजी (माधव राव सिंधिया) ३६७, ३७६, २७-२६, ३२-४७, ५४, ५५, ५८, ६१, ७०, ३८०,३८१, ३८८-३६०. ७६, ७७, ८३-८५, ८८, ८६, ६७, ६८, माधोदासोत २५६, २६२. १००, १०५, ११६, १२१, १२२, १२४, १२६, माधोप्रसाद गुर्टू (पंडित) ४८८, ४६४, ४६७. १२७, १२६, १३२, १३८, १४०, १४४, माधोसिंह (ठा. संखवाय) ५६६, ५६८, ५७०, १४६-१५२, १५८, १६१, १६२, १६६-१६८, ५७४, ५७६. १७३-१७७, १७६, १८१-१८३, १८५, १८७, माधोसिहजी (द्वितीय) ( जयपुर-नरेश) ५४३, १८८, १६३, १९४, १६७, १६६, २००, २०३, माधोसिंहजी (महाराज) ४६१. २०४, २०८, २१०, २१२, २१४, २१५, २१६, मान (खिदमतगार) १८८. २२०, २२३, २२८, २२६, २३१, २३८-२४४, मानचंद (भंडारी) ५१२. २४७, २४६-२५६, २६ १, २६२, २६४, २६६, मान-जसोमंडन २४. २६८, २६६, २७१-२७३, २७५-२८१, २८२, मानविचार २३. २८३, २८५, २८६, २८८, २८६, २६२, मानसागरी महिमा २४. २९४, २६६, ३०३, ३०६, ३०७, ३१५, मानसिंह (कछवाहा ) ४५०. ३१६, ३२४, ३२८, ३३३-३३६, ३४८, मानसिंह ( डकैत ) ५४७. ३४६, ३५२, ३५४, ३५७, ३५६, ३६४-३६६, ३७१, ३७२, ३७४-३७७, ३७६-३८२, ३८४, मानसिंह (नागोर ) ३२५. ३८६, ३८८, ३६२, ३६३, ३६६-३६८, मानसिंह (राजकुमार जयपुर) ३८७, ३८८. ४०१-४०३, ४०६-४०८, ४११,४१४,४१६, मानसिंह (राव गागाजी का पुत्र) ११५. ४१७, ४१६-४२२,४२५, ४२६-४३५, ४३८, मानसिंह-जसरूपक २४. ४३६,४४३, ४४५-४४८,४५०,४५२,४५३, ४११.४१७, ४६०.४६४,४६६-४७१,४७३, मानसिंहजी (ॉ. जयपुर) १६१, १६३, १६४. | ४७५, ४७६, ४८०,४८२,४८४-४८६, ४८८, मानसिंहजी (जयपुर-नरेश) ५४७, ५४६, ५६५. ४६०,४६१,४६३,४६४,४६८-५००, ५०२, मानसिहजी (मान) (महाराजा) २२-२५, ५०५, ५०६, ५१०, ५१२, ५१४-५१६, ५२०, २९, ३०, ३६४, ३६६-३६६, ४०१-४०६, ५२१, ५२४, ५२५, ५३२, १३०, ५३६, ५४२-५४४, १४७, ५४८, ५२, ५३, ४१२, ४१५,४१६,४१६-४२२,४२८-४३४, ५५५-५५६,५६१,५६५, ५६६,५६६,५८०, ४३६, ४४०,४४२-४४४, ४४६,४४७, ४६२, ५६४, ५६६, ६००, ६०४-६११, ६१४-६२०, ४६४, ४७३, ४७७, ६२८-६३०, ६४१, ६२४, ६२७, ६२६, ६३०, ६३२, ६३३, ६३४, ६३६-६४३, ६४६, ६४७, ६५४, ७४५ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #365 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास मारवाड़ का इतिहास ६१६. मारवाड़ के सिक्के ६३४-६४८. मारवाद के सिकों पर मिलने वाले कुछ लेख ६४४-६४६. मारवाड़ - गज़ट ४५४. मारवाड़ (२) जंकशन ६६, ४७२, ४८३, ५१७, ६०३, मारवाड़ मिडिल स्कूल - परीक्षा ६२३. मारवाड़ - सोल्जर्स-बोर्ड ६१०. ४१४, ४५२. मार्किस ऑफ हेस्टिंग्ज ४२०. मांर्टण्डेल ( मिस्टर ) ४६३. मार्तण्ड सिंहजी (रीवाँ - महाराजकुमार ) ५४५. मार्सलीज़ ५५०, ५६५. मालकोट १३७, १३८, १४३. मालको सनी ३६०, ३६१, ४७०. मारवाड़ -स्टेट प्रेस ४५४. मारवाड़ी ४६०, ५२५, ५४४. मारा ५६१. मारूघरा ३५२. मारोठ १३, ३००, ३०३, ३२६, ३६६, ३७१, मिनैंडर ४. ३७५, ३८२, ३६०, ४०५, ४०७-४११, मालपुरा १४२, २८०. मालपुरिया कलां १४४. मालपुरिया खुर्द १४४. मालवा ५, ८, ५४, ५७, ७६, ८६, ६१, १०२, १०३, १४४, १७०, १७६, १८६, १६७, २०२, २१६-२२१, २४३, २७२, २७६, २६४, २६८, ३४६, ३६८, ४०४, ४१४, ४१६,५००, ६३५, ६३७. माला (रा. चूंडा जी का पुत्र) ६६. मालानी ७, ४७, ४८, ५५, ८६, १२१, २७१, ४२६, ४४६, ४८५, ४८८, ४६१, ४६७, ५१२, ५१४, ६१८. मालावास ३६५. माली ४६८. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat मालूंबा २३६. मासाई ( दक्षिणी ) ५६ १. मासुमकुली २८६. माही ३४२, ३४४. मिंटो ( लॉर्ड ) ५०७, ५१०, ५११, ५१४. मिणियारी ५६८. मिनिस्टर ( काउंसिल ) ५६६. मालगढ़ १८८, ३०८. मालदेवजी ( जयसलमेर - रावल ) १३३, १३४, मीठी नाड़ी ४६२. २१७. मालदेवजी (राव) १६-१८, २८, २६, ११२-१२८, १२६ १५२, १५८, १६२, १६५, १७०, १७३, १७५, १७७, १७८, १६०, १६७, ३६६, मियां का बाग़ २१६. मिरज़ा ख़ाँ १७२. मिरज़ा राजा २०५. मिरधा ५४३. मिलिटरी सेक्रेटरी ६२६. मिस्र १६, ५२, ५३०, ५३३, ५३, ५६७, ७४६ ५८. मींडावास ४४०. मीठड़ी ३६१, ५६७, ५६८. मीडोली (चारणां ) १७८. मीणा ३८, ३६, १७२, ४२६, ४३०, ४५७, ४७१, ४७५, ४७६, ४७६, मीणा-फ़ौज ( कोर ) ५७५. मीरक ख़ाँ २६७. मीर ख़ाँ ( डाकू ) ५४०, ५४३. मीर जुमला ३०७, ३१२. मीर मुहम्मद मासूम २२३. मीर बख्शी ३६०. मीरसिया ३६५. मीरांबाई २०, १०३. www.umaragyanbhandar.com Page #366 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वर्णानुक्रमणिका मुंगदड़ा २०२. मुनअम खाँ १२७. मुंगेर ८. मुनअम ख़ाँ ३०२. मुंशी ४६७, ४६६, ४७४, ४७५, ४७६-४८१, मुबारिक हुसेन (मुंशी) ४६७. ४८२, ४८५, ४८६, ४८८, ४६४, ४६८, मुबारिजुलमुल्क ११२. ५०३. ५०८, ५०६, ५१२, ५१३, ५१६, मुबारिजुलमुल्क ३३२, ३३७, ३३८. ५२१, ५४१, ५४३, १६०, ५६५. मुरधर-मिन्त ४५४. मुं (मु) हणोत ४६, २१४, २१५, २३१, ४०२, मुरलीमनोहर ३३०, ३५४. ४०५. मुरलीमनोहरजी ३६८. मुंहणोत नैणसी की ख्यात २१५. मुरलीमनोहरजी का मन्दिर ( किले का ) ३६४. मुइजुद्दीन २८७. । मुराद (शाहज़ादा) १८१, १८३. मुइनुद्दीन अहमद खाँ १५१. | मुरादबख़्श (शाहज़ादा) २१०, २२०, २२१, मुकनचंद (पंचोलो) ४८४. २२४-२२६, ६११, मुकनराज (सिंघी) ४८६. मुरादाबाद २६७. मुकनसिंह जी ( हाडा) २२२, २२३. मुरारिदान (कविराजा) २५, ४६४, ४६५, मुकर्रब (म) ख़ाँ २६२, २६३. ४८१, ४६१, ४६४, ४६६, ५०२-५०४, मुकुन्द (मुल्कन) ३०६. ११२, ६०१. मुकुन्ददास (खीची) २५४, २५५, २७८. मुर्तजापली १८५. मुकुन्ददास (चांपावत ) (पाली) २८१, २८४, मुलतान ३, ७, ३५, १०, ११, ६४, ६५, ६५, २८६, २६८, २६६. १०२, २२७. मुकुन्ददास (सादूल का पुत्र) (भाद्राजन) १८६, मुसलमान ६, १३-१६, ३१, ३२, ३५, २०४. मुकुन्दसिंह (वकील) २६४. ३८-४०, ४६, ४६, ५१-५४, ६०-६२, मुग़ल १४०, १४६, १५०, १६५, २००, २१४, ६५, ७१, ८२, ९, १०६, १०७, ११६, २४७, २५६, २५८, २५६, २६१, २६४-२६६, १३३, १३८, १४०, १५०-११२, १५८, १६१, १६५, १७२, २४४, २६१, २७६, २७७, २७६, २८४, २८६, ३१६, ३४३, ३५०, ३६२, ४०२, ६२७. २८३, २९२, ३१०, ३१६, ३२५, ३३१, ३३७, ३३८, ३८१, ४१६, ४५५, १०६. मुग़ल ख़ाँ २६५. मुगल बादशाहत ६४७. मुमालिया १५४. मुगल बादशाहों के सिक्के ६३७. मुसाहिब प्राला ५२५, ५३६. मुज़फ्फ़र ( गुजराती) १७२, १८२. मुहता ४०५, ४१७-४२०, ४२२-४२४, ४२७, मुज़फ्फरअली खाँ ३२१-३२३, ३३१. | ४५६, ६२८. मुज़फ्फर खाँ १५०. मुहब्बत ख़ाँ ( खाँखाँनान) ३.१. ' मुजफ्फर शाह (द्वितीय) १११. मुहम्मद ( महमूद खिलजी) ७४, ७७, ८०,८२, मुज़फ्फ़र शाह (प्रथम) (आज़म हुमायूं) ६२-६४, ११. मुज़ाहिद ख़ाँ (जालोरी) २८६. मुहम्मद अकबर (द्वितीय) ६३७. मुत्सद्दी खर्च ६२६, मुहम्मद अमीन खाँ २६७, ३४.. ७४७ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #367 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास मुहम्मदअली ख़ाँ ३४०. मुहम्मद अशरफ़ (गुरनी ) २८८. मुहम्मद कासिम ( फ़रिश्ता ) १६. मुहम्मद कासिम ख़ाँ (नेशापुरी) १३७, १३८. मुहम्मद खाँ (अहमदाबाद ) ३३७. मुहम्मद ख़ाँ ( बंगश ) ३२५. मुहम्मद ख़ाँ ( बाबी) ३४२. मुहम्मद गौस (मुक्ती) २१५. मुहम्मद नसीर (कलात ) ३८६. मुहम्मद बाहलीम १३. मुहम्मद बेदारबख्त (शाहज़ादा ) २८६. मुहम्मद मुअज्जम ( शाहज़ादा ) २२६-२२८, २३३-२३६, २४२. मुहम्मद मुनीम २८६. मुहम्मद मुशीन २८५. मुहम्मदशाह ( बादशाह ) ३३५, ३३६. मुहम्मद साम ६३६. मूंडवा २६८, ३३३, ४१२, ५५५. मूंदियाऊ ३२४, ३६५. मूँदियाड़ ४४३, ४६३. मूपा ४४. मूलचन्द्र (यति ) २४. मूलजी ३७. मूलनायक का मंदिर ३३०. मूलराल ( सोलंकी ) ४१. मूलराज (द्वितीय) ( सोलंकी ) ३७, ४१. मूलराज ( प्रथम ) ( मूलदेव) ( सोलंकी ) ११, १२, ३५-३७, ४१. मूलसिंह ( रावराजा ) ४६ १. मूला ४२३. मूला ( रा ० चूंडाजी का पुत्र ) ६६. मूलाजी (पँवार) ३४३. मूह ४६. कॉलिज ४६१, ४६६, ४७६, ४६६, ५०६, ५१४, ५१६, ५३३, ५३५, ५३६, ५४१, ५४६,५५८. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat मेरासर ३७७, मेघमाला २४. मेघराज ( रावल ) १५३. मेघराज (सिंघी ) ४२४, मेघा (कोली ) ३५. मेघा (छापर) ६८, 8. मेघा (सींघल ) १०१. मेघावस ४७. मेजर ( ऑनररी ) ५४६. मेटकाफ (मि० ) ४२१. मेड़ता ७, १८ - २०, ८८, ६५, ६६, १०२, १०६, ११२, ११३, ११६-११६, १३१, १३४ - १४३, १४४, १४५, १४७, १४६, १५४, १५५, १६१, १६३, १६७, १८५, १६७, २०२ - २०४, २०६, २२६, २३०, २४५, २४६, २५०, २५४, २५६, २६०-२६२, २६४, २६५, २७३ - २७७, २८१-१८३, २८५, २८६, २१, २२, २६४, २६७, 9&5, ३०१, ३०३, ३०६-३०८, ३११, ३१८, ३१६, ३२४, ३२६, ३२६, ३३३, ३३४, ३३६, ३४६, ३५१, ३५२, ३५७, ३६०-३६४, ३६६. ३६७, ३६६, ३७१-३७३, ३७५, ३७६, ३७६- ३८२, ३८६, ३६०, ३३२, ३३५, ४०६, ४०६-४१०, ४१७, ४३३, ४४०, ४४१, ४४६, ४५२, ४६२, ४६४, ५०१, ६०१, ६२५, ६३६. मेड़ता की टकसाल ६३८, ६४१. मेड़ता रोड ४८३, ४८४. मेड़तिया १३७, १५२, १४६, १८५, १८६, २०२, २१४, २१८, २३६, २५४, २६०, २७५-२७७, २८१, १८२, २६०-१६१, ३३३, ३३४, ३५२, ३६४, ३६०, ३६६, ४३६, ६४७. मेड़ावस ४४०. www.umaragyanbhandar.com Page #368 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेड़ी ४४५. मेड़ीवास १४४. मेन ( ए० बी० ) ( कैप्टिन ) ४९४. ५७५. मेरविल्ले ५8५. मेरा ६७, ७५- ७७, ८१, ८२. मैमा ३४५. मे १४,३८,३६,१३५, २०२, २१४, २१५, मेला खींचने की गाड़ियां ६१४. मेहमूद (बाराह ) १३८. मोनालका ५६८. ४२६, ४७६. मेरठ ५०४, ५०४, ५१४. मेरवाड़ा १, ४२१, ४२६, ४३०, ४७३, ५५३, मोइजुद्दीन जहांदारशाह ३०१-३०५. मोजुद्दीन साम गोरी ३४. मोइम्माई ( मीर सदर ) १८५. मोकलजी (महाराणा ) ६६–७२, ७४-७६, &E, १००, १०२, ११०, १११, ११४–११६, १२१, १२३, १२४, १३७, १४१, १४७, १४८, १३२, १६१, १६२, मेरुतुंग ३६. मेल्हाना २०१. मेवाड़ १, १६, २०, ५४, ६६, ६६-६१, ४६, मोकलसी ( मेहता ) १६५, मोगास १४७. मोज़िर ३३७. मोटाराजा १७१, १७२, १७४, १७५, १७७, १६६. मोटूस ६०१. मोडास ४३८. मोडी ३२६. मोडी ( जोशियां ) १७८. मोडी बड़ी १०३, ३२६. मोडी मनायां १०६. मोडी सूतड़ां १७८. मोती महल ४१७. मोतीलाल ( पंचोली ) ४८८. १६८, १७७, १८७, १८८, १३०, १४३, २०३, २१६, १४०, २४५ - २५७, २६१–२६३, २६५, २६८, २७१, २७२, २७५, २८४, २६५, २६६, ३३५, ३४७, ३६८, ३८२, ३६७, ३६६, ४०६, ४१५, ४२४, ४२८, ४४६, ४५२, ४८०, ४६३. मेवात १४१, २७, ३२२. मेवाती ३२२, ३२३. मेसन (मेजर) ४५१, ४५२. मेहता ४४८ - ४५०, ४५५-४५७, ४५६, ४६०, ४६४, ४६७, ४६६, ४७५, ४७९, ४८१, ४८२, ४८४, ४८६, ४२४, ४६८, मेहराज ५७, ५८, ६६, ६७. () हराब ख़ाँ २४४ - २६६, २४८. मेहा ( चारण ) ६८. मेहा ( रा ० मालदेवजी का पुत्र ) मैचर काउंसिल ५६६. कैज़ी (D. G. ) ५६३, ५६६. मैकूनच ( RJ . ) ५६०. मैक्फर्सन ( A. D. ) ५३४, १४७, ५५१. मैन्यारा ५८३. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat वर्णानुक्रमणिका 59-52, &&. मोकलसर २८३. HT मोतीसरा १७८. मोतीसिंह ( डकैत ) ५४७. मोतीसिंह ( बाभा किशनगढ़ ) ४५२. मोतीसिंह ( रावराजा ) ४६१, ४६६, ४८४. मोघा ३२. मोपा ४६. मोमीन ख़ाँ ३४६, ३५०. मोमीनयार ख़ाँ (मुग़ल ) ४४३. मोम्बासा ५७८, ५८४, ८८, ५६४, www.umaragyanbhandar.com Page #369 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास मोर ७. मोहम्मद आदिल खाँ २०७. मोरटजका २४५. मोहम्मद खाँ (पायंदा) १५८. मोराई १४४. मोहम्मद खाँ ( हाजी ) ( मुंशी) ४५४, ४१५. मोशि १८०,८१, ५८४. मोहम्मददीन ( नवाब ) ५६८, ४७१, ५७६. मोहकमसिंह ( चांदावत ) २५४, २५५. मोहम्मद नईम २६६. मोहकमसिंह ( चौहान ) ( सांचोर ) ३६५. मोहम्मद मखदूमबख्श ४६४. मोहकमसिंह ( जाट ) ३२२. मोहम्मद मो (मु) अज्ज़म (शाहज़ादा ) मोहकमसिंह ( जोषा) ३२६. २६६-२६६, २७३, २८५, २६३. मोहकमसिंह ( नागोर ) २८९--२६१, २६८, मोहम्मदशाह (अमीर खाँ का नायब ) ४१६. ३.५-३.५. मोहम्मदशाह (गाज़ी ) ( बादशाह ) १९२, मोहकमसिंह (पातावत ) ३८४. ३०६, ३१७, ३१६, ६५६. मोहकमसिंह ( मेड़तिया ) २७६, २७७, २८१, | मोहम्मदशाह ( तातार खाँ) ६३. २६१. मोहम्मद हाशम २२३. मोहकमसिंह (राजा) ३०६. मोहम्मदीराज २५८, २७०, २८०. मोहकमसिंह (शाही अमीर ) २६२, २८१ मोहरें ६४२. २८३. मोहि (य) ल ५७, ६३,६४, ६६, १७, १००, मोहन २७६. १०२. मोहनदास (रा. उदयसिंहनी का पुत्र ) १८०. मोहनसिंह २२३. मोहिलवाटी १... मोहनसिंह (प्रोसियां ) ५८८. मोही १८७. मौर्यवंशी ४, ७. मोहनसिंह (चांदेलाव) ३८.. मोहनसिंह ( नागोर) ३.६. मौसर ५२२. मोहनसिंह (शाहपुरा) ४.५. म्यूजियम ५१२, ५२५. म्यूनिसिपल कमेटी ४७८, ६२५. मोहन्वतसिंह (रिसाला) ५६६. मोहब्बतसिंहजी ( महाराज ) ४५४, ४६१. मोहम्मद (अली) (सैयद ) २७६, २७७, २८1. यंग (जे० डब्ल्यू.) १४६, १५, ५६०, मो (मु) हम्मद अकबर (शाहज़ादा) २४६, ५६४-५६५, ६.१. २१६, २६०-२७३, २६, २७८, २७६, २८३-२८६, ३१६, ३१७. यति ४४०. मो (मु) हम्मद अज़ीम (शाहज़ादा ) ३७३, यदु. ३७४, ३८६. य (ज) दुनाय सरकार २५१, २१४, २१५, मोहम्मद अमीन २८१. २५८. मो (म) हम्मद अमीन खाँ २२९, २१०, २३८. यप्रे ५६५. मो (मु) हम्मद आज़म (शाहजादा) २६२, यमीनुद्दौला २०७. २६४, २०२, २७३, २८८, २८६, २६३. यमुना २०८. २२०, २५७, ६६४. ७५० Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #370 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यवन १६१, १६२, २५३, २५८, २६१, २६२, २६५, २७५–२७७, २७६, २८२, २८४, २६०, २६२, २६३, २६६, ३०३, ३०८, ३२४, ३२६, ३२८, ३३६, ३६१, ३८१. यशवन्तयशोभूषण २५, ४४१. यशोधर्मा ६. यादव ४८. याव्हा ख़ाँ ४८८. यारमुहम्मद ३०२. युद्धज्वर ( इन्फ्लुएंजा ) ५२८. युनाइटेड प्रोविंसेज़ ५५६, ४६०, ५६३, ६१५. । यू० पी० ५६७. यूरोप ४४२, ५०३, ५१६, ५३१, ५७१. यूरोपियन ४०३. यूरोपीय महायुद्ध ५२३, ५२६, ५६२, ५१, ५६४, ५६५. योगितोषिणी ( विवेकमार्तण्ड की टीका ) २४. यौधेय ११, ५५० र रंगराय १३६. रंगसाल ३२४. रंगोजी ३४६. रघुनाथ ( भंडारी ) ३२०, ३२४, ३२७, ३३२, ३५२, ३५३. रघुनाथ (राय) ३०५. रघुनाथजी के कवित्त २४. रघुनाथराव ३७५. रघुनाथ सिंह (चांपावत ) २६८. रघुनाथसिंह ( भाटी ) २४१, २५०, २५२, २५७, २५८. रघुनाथसिंह ( मकराना ) ५५७. रघुनाथसिंह ( मेड़तिया ) १३. रघुनाथसिंह (राठोड़ ) ३४८. रघुवंशनारायण ( बाबू ) ५१० . Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat वर्णानुक्रमणिका रघुवरस्नेहलीला २४. रघुवीरसिंहजी ( बूँदी - नरेश ) ५४६, ५४५. रजत जुबिली ५६४. रजलानी ११७. रजवाड़ा ३७०. रजिस्ट्रेशन ( रजिस्ट्री ) ४६६, ५१२, ६१०. रठड़ा ४०. | रणछोड़ कुँवरी ( बघेल ) २५. रणछोड़जी का मंदिर १७८, ३२६, ३६५. रणछोड़दास ( जोधा ) २४१, २५८. रणजीत सिंह ( डकैत ) ५५२, ५५४. रणजीतसिंह ( सोभावत ) ४८०. रणजीत सिंहजी ( कुचामन ) ४२८, ४३६. रणजीत सिंहजी ( जाम साहब ) ५२६, ५४१, | 45. रणजीत सिंहजी ( महाराज जोधपुर ) ४६ १. रणथंभोर १२३, १३०, १३२, २०४, २६२. रणधीर ६६, ६६, ७३. रमल ( राव ईडर ) ६३. रणमल्लजी (रिमलजी राव ) १०. १५, ६६ - ८४, ८६, ८७, ६४, ६६, ११०, १८२० रावत १६१. रणवीरदेव ५१. रासी ( तँवर) १०७. रासीसर १६७. रतन (न) कुँवरिजी (भटियाणीजी ईडर) २४, २५. रतन (न) पुर १०, ३६, २७६. रतनलाल ( अटल ) ( पंडित ) ४८८. रतन (न) सिंहजी ( महाराज ) ४६६, ५२८. रतनसी ( ऊदावत ) १३८. रतनसी (राठोड़) १३३, १३४. रतलाम ४२, १७६, २२२, ३२०, ३२१, ४८k, ४६३, ५१५, ५३४, ५३६. रत्नसिंह (प्रसरलाई ) १५१. ७५१ www.umaragyanbhandar.com Page #371 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहाल रत्नसिंह (ग्रासोतरा ) ४३६. रत्नसिंह (म• अजितसिंहजी का पुत्र ) ३२८. रत्नसिंह ( महाराणा राजसिंहजी का पुत्र ) ३८२. रत्नसिंह ( मेड़तिया ) २०, १०३. रत्नसिंह ( रत्नसी ) ( भंडारी ) ३४१, ३४६, राजगढ़ ( अजमेर) २२२, ३०३, ३५१, ३५३, ३५५. राजगढ़ (दक्षिण) २३४. : राजगियावास खुर्द २०६. राजघर ( रा० चूंडाजी का पुत्र ) ६६. राजघर ( सोनगरा ) १०. राजनगरिया ४४०. राजपीपला १७२, २७१. ३४६, ३५०, ३५५. रत्नसिंह (रा. मालदेवजी का पुत्र ) १४४. रत्नसिंह ( राठोड़ राम का पिता ) १७४, १८३. रत्नसिंह (रा• वीरमदेवजी का भाई ) ११२. रत्नसिंहजी (द्वितीय ) ( महाराणा ) ११४. रत्नसिंहजी ( रतलाम ) १७८, १७६, २१६, २२२, २२३. रफी उद्दरजात ३१४-३१६, ३२८. रफीउद्दौला ३१६, ३१७. रफी उश्थान ३१४. रजतली ५७. रनावास १४४. रवाड़ा आसियां ६००. वाड़ा बारां १४४. वाड़ा मयां १४४. राँची ५५१. रांगावास ६००. खासर ६००. रांदा ४६. राईका बाग़ २४४, ३०७, ४१८, ४३८, ४६३. ५५८, ६०३, ६१४. राउण्डटेबल ( कॉन्फ्रेंस ) ५६४, ५६५. राखीसिंह २६५. रागसागर २३. रागां रो नौलो २३. राघवदेव (पुरोहित) १२१. राघवदेव ( रा• चुँडानी का पौत्र ) ८५,८७, ८८. राघवदेव (रा. घूँडाजी का भाई ) ७, ८२. राघोदास (पंचोली ) २०२. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat राजकीय काउंसिल ५५०, ५६३, ५६४, ५७६. राजकुमार - कॉलिज ५३३. राजकुमार- प्रबोध २४. राजकोट ५३३. राजपुरा ३२६. राजपूत १२८, १३०, १३१, १४०, १५६, १८२, २०५, २१५, २२२, २२४, २२५, २३१, २३८, २५७, २५८, २६६, २६७, २६६, २७७, २७६, २०, २३७, २६८, ३०२, ३६२, ३६३, ३६५, ३७०, ३८४-३८६, ४६०, ४३५, ४३६, ५२२, ५६७, ६१०, ६२७, ६५२. राजपूत नोबल्स ( हाइ) स्कूल ५१५, ५२२, ५३१, ५५०, ५६०. राजपूताना १, ४, ५, १८, २६, ३५, १६०, १६४, २०८, ३०१, ३६१, ३७५, ३६०, ४२८, ४३१, ४४६, ४४८, ४५२, ४५५, ४५६, ४७४, ४७६, ४८४, ४५७, ४८, ५०३, ५०६, ५१० ५२३, ५४६, ५६४, ५६६,५६७,५६६, ५७३, ६१०, ६३५. राजपूताना इण्डियन सोल्जर्स बोर्ड ६१०. राजपूताना मालवा रेल्वे ४६६, ४७२. राजमल ( लोढा ) ४४६, ४५०० राजमहल ४६२. राजरणछोड़ ५०७. राजराजेश्वर ३१२, ३१३, ३३२, ४२१, ६२४. राजरूपक २२. ORR www.umaragyanbhandar.com Page #372 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजरूपक ख्याल २१. राजलदे ४१. राजसमंद २७२, २८३. राजसिंह (प्रासोप) १६४, २०१, २०२, २०४, २१०, २१२, २१३, २१८, २२६. राजसिंह (म. मानसिंहजी का बाभा ) ४४१. राजसिंह (मेड़तिया ) २५६, २६०. राजसिंहजी ( किशनगढ़ - नरेश ) ३०३ - ३०६, ३५७. राजसिंहजी (द्वितीय) (महाराणा ) ३७४, ३८२. राजसिंहजी (प्रथम) (महाराणा ) २१६, २५५, २६१, २६४, २६७. राजसिंहजी (बीकानेर) ३८७. राजसिंहजी (राव देवड़ा) १८९. राजस्थान १५१, १५६, १६०, १६६, १७७, २६१, २६२, २७०, ३०२, ३४८, ३५४, ३००, ३६३, ४२८, ४४५. राजा (रा. रायपालजी का पुत्र ) ४६. राजाधिराज ३३३-३३५, ३४०, ३४१, ३४४, ३४९, ३५१, ३५२, ३५४–३५६, ३५६-३६१, ३६३-३६५, ५०५, ६५६. राजाबहादुर २१६. राजिया ६२. राजू १८३, १८४. जोसी ३०१. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat वर्णानुक्रमणिका २१६, २२२-२२६, २३१, २३६, २३६ - २४१, २४८-२५०, २५२-२५६, २६१-२६६, २६८-२७३, २७५, २७६, २७८, २८०, २८१, २८३, २८४, २६१, २६३, २६६-२६६, ३०१, ३०२, ३२२, ३३४, ३३६, ३३८-३४०, ३४८, ३५०, ३५१, ३५३, ३५४, ३६०, ३७३, ३७४, ३८२, ३८४, ३८५, ३८८, ३८६, ४११, ४३५, ५४१, ५४३, ६४७, ६४६, ६५३, ६५४. राड (ढ) घड़ा ३६, २१५. राडोद ४४४. रागदेव ५७, ५८, ६६, ६७. राणपुर ७६, ७, ८१. राणा (रा. रायपालजी का पुत्र ) ४५. राणी गांव ४४१. रातानाड़ा २४४, ३६४, ५४०, ५४१. रावनपुर १२३, १४२, २४२, ३००, ५४२. राधारासविलास १५. रानीवाड़ा ६०३. रानीसर ( फलोदी ) १०८. रानीसागर (सर) ९२, १४३, १५०, ४०६, ४४०, ४६२, ४८०, ४८२. रानोजी (सिंघिया ) ३४६. राबड़िया ४४०. रॉबर्ट्स-सर-फ्रेडरिक ( जनरल ) ४८३, ४८७. राठोड़ ६-११, १८, २०, २७, ३१, ३३,३७, ३८, ४२-४४, ४६-४८, ५२, ५७, ६३, ६४, ६८, ७३, ७५, ७६, ७, ८०, ८२-८७, ८६-६१, ६५, ६७, १०१, १०२, १०४, १०६-१०८, ११६-११६, १२१, १२२, १२४, १२६, १२६-१३१, १३३ - १३७, १३६-१४२, १४६, १४८, १५३, १४५ - १५७, १५६, १६६, १६७, १७१-१७३, १७६, १७८, १८२, १८३, १८५, १८६, १८८-१६६, २०१, २०३, २०४, २०७, २१३, २१५, ७५३ राम १७४, १८३. रामकरण (पंचोली ) ३८०. रामक (कवि ) १२. रामकिशन (पंचोली ) ३३२. रामगढ १५५. रामगुण-सागर २४. रामगोपाल ( मालानी ) ५०२. रामचन्द्र (अवतार) २, ३. रामचन्द्र (कवि ) १०. रामचन्द्र ( जयपुर ) २९७, www.umaragyanbhandar.com Page #373 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास रामचन्द्र ( जयसलमेर ) २१७, २१८. रामचन्द्र ( ढाढी) ६०, ६१. रामचन्द्र (लाला) ५५८. रामचन्द्र - नाम-महिमा २४. रामदान का बाड़िया ४६२. रामदास ( जोधा ) १६२. रामदेव ( रामसा पीर ) ६२, १०७, १०८. रामदेव (राव चुँडाजी का पुत्र ) ६७. रामनाथ ( रतनू) ७१. रामपदावली २४. रामपुर ३१, ६६. रामपुरा १५४, १६५, ३०२, ३४८. रामप्रेम-सुखसागर २४. रामविलास २३. रामसर (नागोर) ६०१. रामसर ( मल्लानी ) १२१, ३५३, ३६५, ३६७, ३८८,५५८. रामसिंहजी (महाराजा) १७, ३५७, ३५६ - ३६७ ३६६, ३७२ - ३७७, ३७६, ३८३, ३६२. रामसिंहजी (महाराव - कोटा ) ४४३. रामसुजसपचीसी २४. रामसे (सी) न १०, ३४. रामा (गांव) ५१. रामा ( श्रीमाली ) ४४६. रामानन्द ( पंचोली ) ३४४. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat रामायण २, ३. रामायण चित्रमय ४३६. रामासणी १७८. रामेश्वर महादेव २७, १६८, २४५, ४४०, रामसिंह (ओसियां ) ५७७. रायसिंह (रा. उदयसिंहजी का पुत्र) १८०. रामसिंह (राठोड़) २२८. रायमल ( मूता ) ११४. रामसिंह (बीकानेर) १५४. रायमल (मेड़तिया ) ११२. रामसिंह (भाटी ) २५०, २५२, २५६, २६०. रायमल (रा. मालदेवजी का पुत्र) ११२, १४४, १४८, १७५. रामसिंह (राठोड़ ) २२५. रामसिंह (राम) (रा. मालदेवजी का पुत्र) रायमल्ल ( रायसिंह ) ( महाराणा) १६, ८०, ६६, १००, १२४. १२१, १३२, १४४, १४८ - १५१, १५८, १६१, १७३. रामजी (ईडर) १११, ११२. रायसिंह ( काठियावाड़ ) २४०. रामसिंह ( रावणा राजपूत ) ५४२. रामसिंहजी (बेर-राजकुमार ) २१६. रामसिंहजी ( जयपुर ) ४४६, ४४७, ४५३, ४६३, ४७०. गयसिंह ( म. अजितसिंहजी का पुत्र ) ३२८, ३२६. रायसिंह (राव) (रा. अमरसिंहजी का पुत्र ) २२६, २४३, २५३, ६५५. रायसिंह ( सीसोदिया) (राजा) २२३. रायसिंहजी (बीकानेर) ३३, १३६, १५१ - १५४, १६३, १६५, १७६, १६२. रायसिंहजी (म. प्रजितसिंहजी का पुत्र) ३३२, ३३४, ३३५, ३४६. ६०१. रायगढ़ २७२, २७३. रायचंद ( जयपुर ) ४०६, ४०१, ४१२. रायण ३५६. रायधवल ६१. रायपाल (चौहान) ८. रायपाल (रा. जोधाजी का पुत्र ) ६६, १०३. रायपालजी (राव) ३३, ४८, ४६. रायपुर १०८, १०६, ११६, १३१, १४२, १४३, २७८, ३२६, ३६४, ३७६, ३८०, ३८४, ४०८, ४३६, ४५६, ४५६, ४७४. रायमल (कछवाहा ) ११६. रायमल ( जयपुर ) ३५३. ७५४ www.umaragyanbhandar.com Page #374 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वर्णानुक्रमणिका रायसिंहजी (राव) (राव चन्द्रसेनजी के पुत्र) | रीडिंग ( लेडी ) १४५, १६०, १६७-१६६, १७३, १७४, १८२, १८६. रीडिंग-रूम ६१६. रायसिना ३६३. रीयां १०६, ११६, १३६, १४३, २१४, २१८, राव ४२४. २७८, ३२६, ३१२, ३५४, ३१७, ३५६, ३६२-३६४, ३७५, ३६१, रावटी १७६. ३४८, ४३६, ४५१, ४५६, ४६४, ४७४, ४६४, रावणा राजपूत ६४३. १०४,५०६,५२१, ५२४, ५३५, ६२८. रावणेश्वरजी ( दरभंगा) ५२१. रीयां शेरसिंहजी की ३६२. रावत ६६. रीवां ४४६, ४५३, ५०५,५३६, ५३६, १४२, रावरजा बहादुर ४३६. ५४५,५४७. रावराजा ४५३. रुणेचा १२, १०७, २३१. रावल १६१. रुद्रदामा (प्रथम ). रावल ३२६. रुद्रपाल ५२. रावलपिंडी २४१, ४६५, १०८, रुपये ६४२. रावलास ४६२, ४६५. रुरूरिया ६४३. रावी १७७. रुस्तम १८, १४.. राष्ट्रकूट ८, १६, १८, ३१, ४४. रुहल्ला खा ३२४. राष्ट्रकूटों ( राठोड़ों) का इतिहास ६१६. रहल्ला खाँ २६५. रास ३६०, ३६४, ३७१, ३७७, ३७८, ३६१, रूण ८६, ६५५. ३६८, ३९६, ४०८, ४२५, ४२७, ४३१, रूपचन्द ( लोढा) ४४६. ४३२, ४३६, ४४४, ४५२, ४५६, १३५, रूपनगर ३०४, ३०५, ३६१, ३६४, ३७६, ५३६. ३८१, ३८८, ४१६. राहा ४४१. रूपनारायणजी ३२९. रिडमल (रा. जगमालजी का पुत्र ) ५५. रूपावत ३६१. रिधमल (राव ) (लोढा) ४३५, ४३६, ४३८. रूपावास २१५. रिनिया ३८४. रूपावा (व) स (पाली) २०६, ३६४, रिपन (लॉर्ड ) ४७८. रूपावास ( सोजत ) १४४. रिवाड़ी २७६, ३२५. | रूपसिंह ( किशनगढ़ ) २२६, २५७. रिवाड़ी ( ठाकुरजी का तामजाम ) ५५७. रूपसिंह ( म० अजितसिंहजी का पुत्र ) ३२६. रिवाड़ी फुलेरा रेल्वे ५०७. रूपसिंह ( रा. जोधाजी का पुत्र ) १०३. रिवेन्यू-कोर्ट्स ६२१. रूपसी १४४. रिवेन्यू-मिनिस्टर ६१५, ६२१. । रूपा ( रा. रणमलजी का पुत्र ) ८०. रीकोली १४४. रूस ४८५. रीजैसी काउंसिल ५२६, १३४, ५३५, ५३५, रे ( लॉर्ड ) ४८१. ५३६, ५४१, १४४, ५४, ५५४. | रेख ४१३, ४५७, ४६४, १४२, ४५, ६१८, रीडिंग ( लॉर्ड ) ५४३, ५४५, १६१. । ६२७, ६२६, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #375 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास रेख बाब ३८१. रेडा ११४. रेपड़ावास १०३. लंका २, ५०१. रेल्वे ( जोधपुर ) ६०३, ६०५, १.६, ६.६. लंड (द)न ४८१, ४६, १.३, ५२३, रेवड़िया २०६, ४१. ५५०, ५५१, ५५८, १६१, ५६६, १७०, रेवाड़ा ३३५. १७४. रेवासा १२३, १४२. लक्ष्मण १०३. रैदही २०१. लदमण ( लदमी ) दास ( सपट ) १२, १३, रैजीडेण्ट ४२६, ४७२, ४७४, ४७६, ४८०, १६, १२१, १२६, १३६, १४७. ४८१, ४८६, ४८, , ४१४, ४६८, लक्ष्मणसिंहजी ( रीवां) ४५४. ५०३, ५०४-१.६, १०८, ५१०, ५१२, लदमीचन्द ( भंडारी) ४३७. ५१८, १३४, १४३, ५४५, ५५१, ५५२, लक्ष्मीचन्द (मुहता) ६२८. ५५४, ५५६, ५५६, ५६०, ५६३, ५६६, लक्ष्मीनाथ ४३३, ४३७. ५६५, ५६६, ५७१, ५७३, १७.. लक्ष्मीनाथजी का मन्दिर ३६१. रैजीडैम्सी ४६३, ४६४, ५६४. लक्ष्मीनारायण ८१. रेजीडेन्सी-सर्जन ६.८. लक्सोर ५४३. रेटंडन (लॉर्ड ) ५६४. लखनऊ ३०, ४३६, ४०, ५१४, १६०, रेडक्रॉस सोसाइटी ५३०. रेण १३५, ३३३. लखधीर ( हैदा ) ३४४, ३४५. रैनाल्डस (ऐन. डब्ल्यू.)५३४, १४३, ५४५, लखबा ३६५. लखबेरा ५५, ५६. ५१६. लखम (क्ष्म ) णजी (जैसलमेर ) ४, १७, रेहनडी १९७. ७३, ७४. रोडला ५३६, १५१. लकराज (परदायत ) ४६२. रोडामन ( मुंशी) ४८८, १०८, १०१, ११२. | लच्छूसर ५७. रोय (ह) ट १८, १९, २६१, ३६८, ४२४, | जडलो ( कप्तान ) ४२५, ४३१, ४३३, ५२६, ५४२. ४३५-४३८, ४४१. रोहड़िया ४८. लपाका खेड़ा ४१२. लवाण १२३. रोहतक २१६, २७६. लवेरा १३१, १२, २१०, २७८, ३६५. रोहिंसकूप ८. लश्कर खाँ १६४. रोहिणखेड़ा २.१. लश्करी खाँ २८४. रोहीचा २.१. लांबियां ३४८, ३१६, ४०८, १०, ४५०.. रौशन अख्तर ३१७, ३१८. लॉरेंस ( लॉर्ड ) ४१. रौशन्दौला ३४१. लाइब्रेरी ( सुमेर पन्निक) ५२५, ६१९, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #376 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वर्णानुक्रमणिका लॉक (डब्ल्यू) लेफ्टिनेन्ट कर्नल) ४७४, लिटन (लॉर्ड) ४६७, ४६८. ४८५, ४८६, ४८१. लीगल एडवाइज़र ६२०, ६२२. लॉक हार्ट ( जनरल ) ४६५. लुंब ऋषि ४७, ६५. लाखड़Vब १४४. लुभा ६७. जाखणसी (रा. रायपालजी का पुत्र ) re. लुलूल शाही ६४३. लाख पसाव २०, २५, २०८, ४४०, ४४३. नुलूलिया ६३६, ६४३ लाखा (गुडारा) ३७. लूंका (खींवा का पुत्र) १०८. लाखा ( जाम) ३७. | लूंका ( रा. जगमालजो का पुत्र) ५५. लाखा (फूलानी ) ३५-३५, ३६. लूंडावास १०३. लाखा ( रा. रणमलजी का पुत्र ).. | लूणकरण ( भाटी) ५८. लाखा ( रावल भाटी ) ३७. लूणकरणजी (जैसलमेर ) १२०, १२१, लाखाजी ( महाराना ) ७०-७२, ५, ७६, लूणकर्ण ( सेतरावा) ८६. ८१. लूणा ( भंडारी) १६४. लाखानी (सिरोही-रावल )... लूणावा चारणां १०४. लाटूच (सी.बी.) ५३६. लूणावास ४४०. लाठी ४२. लूनवाड़ा ५३६. लाडणं (n) ६६,१..-१०२, १४२, १७६, लूनी ३६, १४, २७७, ३८६, ४७०, १२, ११५, २६८, ३८७, १३१, ५, ६.३, ४७३. ६२५. बाडपुरा ३५३. लूनी जंक्शन ५५३, ६०३. लाडवा ३६५. लेक ( लॉर्ड) ४०७. लाडूनाथ (प्रायस ) ४२४, ४२५. लैंकेस्टर ५६१. लॉयल ( भार० ए.) ( लै• कर्नल) ५०७, लैन्स डाउन (मार्किस् औफ) ४८५. ५३७, १४१,५४६. लोटनजी का मन्दिर ६०१. लॉ रिपोर्ट ६२३. लोटोती १८०. लाल किला ६५४. लोडेता ४२३. लालचंद (भंडारी) ४३०. लोढा ४१०, ४२४, ४३५, ४४६. लोदरवा (लोद्रवा) ४६, ५२. बानमा खुर्द ३६१. लोदियन ५६६. लाल बाबा ६४३. लालसिंह (म• मानसिंहजी का बाभा) ४४१.. लोदी पठान १२२. लोयाना ४७६, ४७७. जालसोट १४२. लोरडी (डोलियावास) १४४. लावा ४५१. लोलावास ३५७. मा वैक्केरी १६६. लोलासणी १६७. लाहौर १३, १५, १७४-१७७, १८१, २११, लोहगढ़ १४२. २१२,११४-११५, २२६,२३७, २४३, १४८, २५०, २१२,३०३-३०५, ३१३, ४६२, ६४६. | लोहापौन ३६६, ४.. लिखमीदास १४४. लोहावट १४८, १७.. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #377 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास वायली (कर्नल) ४८१, ४८६. वंशावली (१) २३. वॉयसराय ४६६, ४६८, ४८०, ४८५, ४६५, वकालत की परीक्षा ५२१. ५०१, ५०४, ५.५, ५१०, ११, १२०, बटोवड़ा ७. ५२२, ५३०, ५३४, ५३७,५३८,५४३-१४४, वणवीर (मेवाड़) १२४, ६८-१७३. वणवीर (रा. जोधाजी का पुत्र) ६६, १०१,१०३, वॉल्टर (कर्नल) ६१०. वणवीरपुर १४२. वॉल्टर राजपूत-हितकारिणी सभा ६१०, ६ १६. वणहड़ा ११६, १२३. वाल्मीकीय रामायण २, ३. वत्सराज (प्रतिहार) ८. वासुदेव ६. वनवीरदेव (सोनगरा) . वास्थानजी १७४. वरजांग ८३, ८६-८६, १.१, १०२, १०६, वाहाल (१) ३२६. विंटरटन (लॉर्ड) ५५३. वरजांगोत १३१. विढम (सी. जे.) (कर्नल) १२३, १२५ वरदायी सेन ( सैन्य) ३१, ३३, ३४. ५३४, ५५४, १५६, ५६३. वरसिंह (रा. जोधाजी का पुत्र) ५, ६६, | विंढम अस्तपाल ५६२, ५७०, ६०७, ६१४. १०३, १०५, १०६, ११६. विक्टोरिया (महारानी) ४५२, ४५६, ४६५, वरसिंहदेव (बुंदेला) २०५, २०६. ४६८, ४८१, ४६६, ४६७, १०२, ५.३, वरिया ५६. १११, ६३८, ६४७. वर्मलात ६, ७. विक्टोरिया जुबिली वाटरवर्क्स ४६६. वन ४२. विक्टोरिया-मैमोरियल ५१६. वल्लभकुल ४०४, ४४०. विक्रमादित्य (चन्द्रगुप्त द्वितीय). बल्ल मयडब ७. विक्रमादित्य (महाराना) ११६, १२४, १४६. वसन्तगढ़ ६. विक्रमादित्य (रा. मालदेवजी का पुत्र) १४४. वसन्तराय १२४. विग्रहराज चतुर्थ (वीसलदेव) १४. वांसोलिया ५७. विग्रहराज (द्वितीय). वागीराम गाडूराम २४, विजपाल ४६. वाचनालय ६१६. विजयगढ़ ३०४. वॉटरवर्क्स ६१४. विजयचन्द्र ३४. वॉडिंगटन (सी. उग्ल्य.) १३५. विजयनगर २०१. वाढेल ४४. विजयभट्टारिका .. वानर (ग. हाडाजी का पुत्र) ५२. विजयभारती ३७४, वानर (शाखा) १७. विजयमल (सिंह) मेहता ४५०, ४५५, ४१६, वॉनवर्ट (प्रार. बी.) ५२२, ५५०. ४५६, ४६०, ४६७, ४६६, ४७, ४, वायरलेस-स्टेशन ६१२. ४८१, ४८६. वायसी (एफ.वी.) १७३. विजयवाही ३६३. ७१८:. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #378 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विजयशाही पैसा ६४३. विजयशाही रुपया ६४२, ६४३, ६४७. विजयशाही सिक्का ६३७, ६३६, ६४०-६४३, ६४७. विजयसिंह (चौंपावत) २४०. विजयसिंह (जयपुर) २६३, २६४. विजयसिंह ( ठा. रीयां ) ४४४, ५०४, ५०६, वीठू ३८, ४०. ५२१, ५२४, ५३५. विजयसिंहजी (महाराज ) ५६६. विजयसिंहजी ( व्रजपाल ) ( महाराजा) २६-२८, ३०, ११५, ३६१, ३६५-३६४, ३०१-३७६, ३८१-३८३, ३८५, ३८७ - ३४४, ३६६, ३६७, ३६६, ४०१, ४३६, ४४०, ६२७, ६२, ६३०, ६३७, ६४०. विजा ( देवड़ा) १७४. विजा (रा. वीरमजी का पुत्र ) ५६. विजा ( सिवाना ) ६. विजेमल (रा. चूडाजी का पुत्र) ६७. विटिक (एच. एम. ) ५६७, ५७३, ५७४. विट्ठलदास (चांपावत ) २१८, २५०. विद्यापुर ३१७. २३. विनगेट ( आर० ई० ऐल० ) ५५२. विलर्स गौसलों ५६६. विष्णुप्रसाद कुँवरिजी ( बघेल ) २५. वीं (बी) टल्ली ११६, ३२४, ३२५. वीएना ५०३. वी० ए० स्मिथ १२३, २०२, २२१, २२२, २३८, २४२, २५७, २६६. वीक (म) पुर ६७, ८६, ६४. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat वर्णानुक्रमणिका भाजी (जाम) ४४७. वीरभाग २२. वीरम ( कलावत राठोड़ ) १६१. वीरम ( वीरमदेव ) ( बाघाजी का पुत्र ) ११०, १०५, ११०. विद्यासाल ४६२. वीरमदेव ( श्यामसिंह का पुत्र ) २४१. विद्वज्जन मनोरंजनी ( मुण्डकोपनिषद् की टीका) वीरमदेव ( सीसोदिया ) २१४. वीरमपुर ५६. वीरमायण २०, ५६. वीरा ( भाद्राजा ) ११६. ११२-११४. वीरम गांव ३४८. वीरम (देव) जी ( राव ) २०, ३३, ५३-५६, ५८, ८७. वीरमदेव ( जसोल ) १७६. वीरमदेव (मेड़तिया ) (राव) ११२, ११३, ११६-११६, १२३, १२८, १२६, १३१, १३४, १३८, १४१, १४२. वीरमदेव ( वीरम ) ( रा० सूजाजी का पुत्र ) विलायत ५४६. वीरों की मूर्तियों वाला दालान ३३०. विलिंगडन ( लॉर्ड ) ५२७, ५६३, ४६४, ५६४, | वीसलदेव ( विग्रहराज ) (द्वितीय) १२. ५६७, ६१५. वृन्दावन ३३२. बले ( प्रदर्शनी ) ५५१. विलिंगडन ( लेडी ) ५६४, ५६५, ५६७. विलिंगडन गार्डन ५७२, ६१२, ६१५. विलियम इरविन २६५, ३०६. वेदान्त पंचक २१, २४३. वेदावड़ी कलां ४४•. वेब (विलियम् विल्फर्ड ) ६३७. वे (बेरसल ) ( जैतावत ) १७४. विल्डर ( एफ ) ४२५, ४३६. विवेक विलास १०. विश्वरूप २४. वेरसल (छापर ) &६, १००० ७५९ www.umaragyanbhandar.com Page #379 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड का इतिहास वैरसल ( रा० गांगाजी का पुत्र ) ११५. वैरसल (राठोड़ ) ( दूदोड़ ) १५०. वैरखलजी (द्वितीय) ( सिरोही - राव ) ४०५, ४०६. वैरा (वैरसाल) ( रा ० रणमलजी का पुत्र) ८०, ८८. वैराट ( विराट ) ४. वैरिसाल ( भाटी ) ( कुंडल ) ५६. वैरीसाल ( रा० जगमालजी का पुत्र ) ५५. वेलिंग्टन कॉलिज ५१६, ५२२. वेलिंग्टन माउण्टैड राइफल्स ५६७. वैष्णव ३८१, ३८३, ४०४, ४२०, ४४०. वैवंशी ६. वई ५७८,५८४. व्याघ्रमुख ६, ७. व्यास ४२१, ४२३, ४३७. व्रज ३०, ४३६, ४४०. श शंकर ( भाटी ) १३१. शंकर ( रा० श्रासकरणजी का भृत्य ) १६७. शंकरनारायण ( पारनायक ) ५३८. २७६. शंभुदत्त ( जोशी ) २४, ४२६, ४२८. शंभुदान ( घाय भाई ) ४०१, ४०६, ४०४. शंभूसिंह (कंटालिया ) ४१८, ४३६. शंभूसिंह ( चाँपावत) ५४२. शंशेरसिंह ( सरदार) ५०६, ५१०, ५३६. शक्तिसिंह (सिली) ४५०. शत्रुसाल ( भाटी ) ८६. शत्रुसाल (हाडा ) २२४, २४४. शफी ख़ाँ २८१, २८२. शम्शेरुल मुल्क ११८. शम्स ख़ाँ १५, ६२-६४, ६८. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat शम्साबाद ३२, ३४, ६५, ६६. शम्सामुद्दौला ३१०, ३११, ३२०-३२३, ३४१, ३४२, ३४८. शम्सुद्दीन (अल्तमश ) ६, १५, ३२, ३३. शम्सुद्दीन (कैकुबाद का पुत्र ) ४४. शरफुद्दौला ( इरादतमंद ख़ाँ ) ३२५. शराफा बाजार ५५६. शर्फुद्दीन हुसेन (मिरजा ) १३६-१४१, १४५, १४६, १४६, १५५. २४६. शंकरलाल ५२८. शाकंभरी ६. शाकंभरीश्वर ६. शंखोद्धार ४४. शंभाजी (शंभु ) २३६, २५६, २७१ - २७३, शातकर्णी ५. शहाबुद्दीन ख़ाँ २६७, २६६, २७३. शहाबुद्दीन गोरी ६, १४, ३१, ६३६. शाइस्ता खाँ ३१६. शाइस्ता खाँ ( अमीरुल उमरा ) २२८, २३३, शामपुरा ५८८. शालमी ३८६. शाल्वदेश ४. शाह ४४६. शाहआलम (द्वितीय) ३८७, ६३७, ६३८, ६४७. शक्तावत ३०४, ३५१. शक्तिदान ( भाटी ) ४३१, ४३२. शक्तिसिंह (आसोतरा ) ४३६. शाहआलम ( मुहम्मद मुअज्जम ) २६६, २७०, २७३, ३००, ३०१, ३०३. शाहकुली २८९. शक्तिसिंह (देवड़ा) ३०८. शक्तिसिंह (रा. उदयसिंहजी का पुत्र ) १८०, शाहकुली ख़ाँ ( मरहम ) १३८, १५२, १६३, १८३. १६४. ७६० www.umaragyanbhandar.com Page #380 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वर्णानुक्रमणिका शाहजहां (बादशाह) १७८, १६, १६., १६१, | शिवनाथसिंह (म. मानसिंहजी का बाभा) ४४i. २०६-२०८, २१०, २११, २१३, २१४, | शिवनाथसिंह (रीयां) ४३६. २१७-२२०, २२३, २२६, २२७, २२६, | शिवनारायण काक (पंडित) ४५६, ४१६, २३६, २४३, २४६, ६४०,६४-६५१. ४६५, ४६६, ४७५, ४७६, ४८२, ४८६. शाहजहां (सानी) ३१६, ३१७. शिवपुराण (चित्रमय ) ४३६. शाहजहांनाबाद २७०, २६८. शिवबाड़ी ४६६. शाहजहांपुर ३२२, ३३१. शिवरहस्य (चित्रमय) ४३६ शाहनवाज खाँ २२५. शिवराज (रा. चूंडाजी का पुत्र ) ६७. शाहपुरा २६९, ३४६, ३४८,३५०,४०५-४०७, शिवराज (रा. जोधाजी का पुत्र) ६, १०३.. ५१५,५३६. शिवराजोत १३१. शाहबाज़ खाँ (जोधपुर ) ४५२. शिवलाल (पुरोहित ) ४८८. शाहबाज़ खाँ (शाही) १५६, ११७. शिवलाल ( बख्शी ) (जयपुर) ४११. शाहसफी २१४. शिवसिंह (बलूंदा) ४१०. शाहाबाद १२३. शिवसिंहजी (सिरोही-राव) ४१९, ४४५, ४५४. शिकारखाना ५४२. शिवाजी २३३-२३५, २३८, २३६. शिकारपुर ३८६. शिशुपालवध ६. शिक्षा-विभाग ६२३. शीतलदेव १५. शिखरा ५६, ६.. शीराज़ी राव घाटे ४०७. शिमला ५२६, १३.. शीलूक ५. शिमान खाँ ११४-१५६, १६३. शुंग ४. शिल्प कला विज्ञान-शिक्षक ४५. शुजा (शाह) ( शाहजादा) २२०, २२३, शिव १०२, ४७१, ४८४. २२७-२२६, ६५०, ६५१, ६५५. शिवगढ़ १३६. शुजाअत खाँ २४०. शिवचंद ( भंडारी) ६५. शुजाअत खाँ (कारतलब खाँ) २८१-२८६, २८८, शिवचंद (भंडारी) ४०२. २६७, २९१. शिवदत्त (कला) ४८६. शूरसिंह (जोधा ) १९२. शिवदास (शाही सरदार ) १५३, १६५. शूरसिंह (देवड़ा) १८६. शिवदास ( व्यास) ४२३. शूरसिंह ( म. भीमसिंहजी का चचेरा भाई) ४०४. शिवनाथ २४. शूरसिंहजी (सवाई राजा) २७, २८, १७४, शिवनाथसिंह (आसोप) ४३१, ४३६, ४५१, १७७-१८१, १८३-१८७, १८६-१९१, २०१, ४५३. ६२५, ६२६. शिवनाथसिंह (उदावत) (नीबाज) ४३२, ४३५. | श्रृंगार चौकी ३७१, ५१८. शिवनाथसिंह (कुचामन ) ४१०. शेक्सपीयर (कर्नल) ४३.. शिवनाथसिंह (बगड़ी) ४२८. शिवनाथसिंह (बेड़ा) ४८४, ४६६, ५१२, | शेख २४६, २५६, ३३६. | शेखा ( पूंगन-राव) १०. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #381 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . न . मारवारका इतिहास रोखा (रा. एजाजी का पुत्र) १.८, ११०, ११२-११४. श्रीमद् मागवत की भाषा टीका २४३. शेखा (शंकर का पुत्र) १६७. श्रीमानी ब्राह्मण ४६, ४०६. शेखावत २४४, ३०, ३७७, ४.५, ४०७. श्रीरामचन्द्र विजय २४. श्रीहर्षचरित ६. शेखावतजी का ताजाव २४४, २९०, ३६६. स्वभ्र.. शेखावाटी ११, १२६, १४२, ४४५. शेरखाँ ( बाबी) ३४२. शेरगढ़ ५८, ६६, ८६, १.३, १५८, २४५, | षट्दर्शन-प्रदानव ४६३. ३२८, ३५७. शेरचाह (शेरखों ) १६, १२०-१२३, १२६-१२८, १२-१३२, १३६, १४१, | संखवाय १.६, १९६६, १६८, १७०, १४२, १४५, ११. १६२, ६३७. १७४, १७६, १६६. शेरणाही सिक्के ६३७. संगमरमर ५५७. पेरसिंह (कुचामन ) ४८४, ४६४. संग्रामसिंह २७७. परसिंह (म. विजयसिंहजी का पुत्र) ३६०, संग्रामसिंहजी (द्वितीय) (मेवार) १५, ३६४, ४०१,४०४. ३३५. परसिंह (मेड़तिया) ३३३, ३३४, ३५५, ३६६, समादत खाँ (दचिणी) १८३. ३६२-३६४. समादत खाँ (भागरा) ३२०, ३२१. शेरसिंहजी (महाराज) (कर्नन ) ६६६. सईद बंदर ५६४. शेरों के काया-चित्र खींचना १८६, १८७. सगतसिंह ( रावराजा) १३८, ५५६, शैतानसिंह ४४०, ५६६. सगता ८०. योमितजी १३, १४. सगर ( मेवाड़) १६१. पामकरण (काखाणां)४१६. सचियाय १५६. श्यामराम २१. सज्जनसिंह (म. मानसिंहजी का बामा ) ४१. स्यामविहारी मिश्र (पंरित) १११, १२०, सज्जनसिंहनी ( महाराणा) ४७७, ४७८, ११४, ५२६, १२८. सतलज ३, २२६. श्यामसिंह (खंगार) ३२३. सचानी (यव) ६६, ६६, ७०, ७३, ८३, ६५, श्यामसिंह (चौपावत) ३८०. १०१, १०८. श्यामसिंह (मेड़तिया) २०२, २४१. सथनाणा ४०८. श्रीकृष्ण ३, ५. सदरलैंड ( जोहन ) ( कर्नल ) (A. G. G.) श्रीकृष्ण (जोशी) ४२३. ४३१-४३५, ४४, ४. श्रीकृष्ण शर्मा २३. सदानन्द ( त्रिपाठी ) २४. भीनगर ५३६. सनवाड़ ३८८. भीनापजी यदोहा २३. सनवाड़ा . Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #382 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पादल. सफदर खाँ ( बाबी ) २८८ - २६०, सफरा २६६. सीनियाँ बेगम २८६. सबलसिंह ( चांपावत ) ३७६, ३८०. सबलसिंह ( जयसलमेर ) २१७, २१८, २३१. सबलसिंह (राठोड़ ) २३१. सबलसिंह ( रा ० शूरसिंहजी का पुत्र ) १६८, १६६. समईगाँव १४२. समदड़ाउ - इरंडिया ३२०. समदड़ी २६०, ५५३, ६०३. समदोलाव कलां ६०१. समनशाह की दरगाह ३२९, ३०४. समरथराज ( सिंघी ) ४५६, ४५९. समरवाइल (डाक्टर) ५०७. समरा ८४. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat वर्णानुक्रमणिका सरदार समन्द ५१५, ५६०, ६११, सरदार सिंह ( रावराजा ) ४६१. सरदारसिंह (म० विजयसिंहजी का पुत्र ) ३४. सरदारसिंहजी (किशनगढ़ ) ३७२, ३७३. सरदारसिंहजी ( महाराजा ) २६, ८८, ४७०, ४७८, ४८३, ४८५-४८६, ४६७, ४६८, ५०२-५०५, ५१५,५१६, १८, ५२५, ५४७, ६०१, ६१५, ६३८. सरदारसिंहजी ( रूपनगर ) ३८८. सर प्रताप स्कूल ४६६. सरब (बु) लन्द ख़ाँ २५५, २६१. सर बुलन्द खाँ ( अहमदाबाद ) ३१२, ३१६, ३३२, ३३६-३४२, ३४४, सरवाद १५८, ३०५, ४०८, सरवाड़पुर २७५. सरहिन्द २८०, ३०२, ३५६. सराई (मुसलमान) ५०, ४७५. सराय अलीवर्दी ख़ाँ ३२२, ३३१. सरेचां २७१. समराखिया ४७. समावली १५१, १७०. समीरमल (सेठ ) ४७. समुद्रगुप्त ५. सरोपाव ६३२. समूगढ़ २२५. सर्वदेव २१. समेल २८२. सरखेजड़ा ४४१. सलखाजी (राव) ३३, ५२-५४. सलखावासनी ५३. सलाबत ख़ाँ (जुल्फिकार जंग ) ३६०, ३६१. सरदार इन्फैन्ट्री ४००, ६२५. सरदारपुरा ६१२, ६२६, ६३०. सरदारमल ( मेहता ) ४८६. सलाबत ख़ाँ ( बख़्शी ) ६५२, ६५१. सलामी की तोपें ४६८, ४६९, ५३७. स (सा) लावास ३३७, ३६४, ४०१. सरदारमल ( राव ) ४५६. सरदारमल ( रावराजा ) ४८४. सरदार मारकेट ३६४, ५१३. सरदार म्यूजियम ५२४, ६१४. सरदार रिसाला ४८२, ४८७, ४२७, ५०१, सलीम ( शाहज़ादा ) १७८, १८०. सीम ( सेना नायक ) ६४, ७२, ७४. सलंबर ३७४. सलेमकोट २५१. ५०४, ५०६, १०, ११७, ५२३, ५२८, ५३६,५३८, ५४०, ५४, ५५१, सवाई राजा १८५, १०६ - १२६. ५५५-५५७, ५६२, ५७०, ५७१, ५७२, सवाई राजा ( जयसिंहजी ) ३२५, ३५३. सवाईसिंह (बाज ) ४३६. ५०४, ६१४, ६२६, ६२०. ७६३ ४६२-४९४, ५०७ - ५१२, ५३३, ५३६, www.umaragyanbhandar.com Page #383 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास सवाईसिंह (पोकरण ) ३८४, ३६०-३६२, | सांभरी राज .. ३६६, ३६७, ४०२, ४०४, ४०६-४१३. सांवतराम ( जोशी ) ४३०. सवाईसिंह (रावराजा) ४६२. सांवतसिंह ( खैरवा ) ४४८. सवालख (क) ६, १४, १५, ७४. सांवतसिंह (नीबाज) ४२७. ससेनियन ( सिक्के ) ५, ६३५. सांवतसिंह ( म. विजयसिंहजी का पुत्र ) ३६४, सस्ते नाज की दूकाने ५५६. ४०४. सहजपान ८. सांवतसिंह ( रावराजा ) ४६१. सहयोग समिति ६०६, ६१६. सांवतसी ( डाभी ) ४२. सहरिया ( सराई ) १०७. सांवतसी (रा. जोधाजी का पुत्र ) १०३. सहवान ५६. सांवलदास (मेवाड़ ) २६७. सहसमल ६६, ८५. संवनदास (रीयां ) १३६. सहसा ११६. साकड़दा ३६८. सांई ४४१. साकड़ा ४७१, ४७६, ४७६ सांखला ५६, ५७, ६३, ६४, ६८, ८५, ८६, साकड़ावास १०३, १४४. ६०,१, ६४, ६८, ३४८. साजी ३२६. सांगा (ब्राह्मण) १६.. साटीका २४५. सांगा ( संग्रामसिंह ) (प्रथम ) ( महाराना ) साटी (ठी ) का कनां १०३. १६, २०, १०३, १०, ११, १२, ११५, साठीका ६८. १२०, १२६, १४६. साठोर ३०३. सांगा ( सागा ) (रा. सूजाजी का पुत्र ) १.. सांगासणी ३६५. सातल (चौहान ) १५, १२. सांगीदास (थानवी) १३६, ५३८, सातलजी (राव) ६३, ६५, १०३, १०४, साँचोर १०, १२, ३५, ३६, १२३, १४२, १०१-१०७. २००, २०१, २६२, २७०, २७१, २८६, सातलमेर १०५, १२५, १४२, १४३. ३२६, ३६५, १५६, १७३. सातनवास २५६, सांडा ८०. साथीण १०६, ४२४, ४३१, ४३२. सांडेराव २७८, ४४६. साथूणी चारणां ६२१. साँभर ६, १२, १४, १५, ३६, ६३, ६, ७४, सादड़ी १८८, १६०, ४४६. ८६, १०१,१०२, १०१, १२३, १३८, १४२, सादा ( पुरोहित ) ६५, २०४, २२६, २६४, २६५, २७३, सादा ( भाटी) ६६. २६६-३००, ३०, ३२०, ३२२, | सादा (रा० शूरसिंहजी का भृत्य ) १८६ ३२४-३२६, ३३१, ३४८, ३६१, ३५६, सादासर ६६. २६५, १६, ३७६, ३७६, ३८१-१८३, सादा सरोपाव ६३३. ३८६, ३६०, ३६६, ४०६, ४१४, ४२२, सादिक खाँ १७१. ४२६, १५, ४५, ४८, १६५, ६३५, सादी पाखी ४६८, १०२. सादुल्ला खाँ (शेड) २९ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #384 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वर्णानुक्रमणिका सादुल १८६, २०४. सादल (पावत) १५८. सादल (रा. गांगाजी का पुत्र) ११५. साबरमती ३३७-३३६. सामन्तसिंह ( सोनगरा ) १५, ५१. सामन्तसिंह ( सोनगरा ) ५१. सामन्तसिंहजी (किशनगढ़ ) ३६८, ३७२. सामलिया ( सोड) ४३. सामा ( भारी) ३५. सामेतरा ४३. सायबजी (पटेल ) ३६७. सायर ८०,६०७. सारंग खाँ १०१. सारंगदेव २... सारंगपुर ७७, ७६. सारंगवा ४४०. सारग्राहिणी ( मुण्डकोपनिषद् की टीका ) २३. सारड़ा (श्रीयुत ) ३३६, ३४२. सारण (न) ११४, १४३, १५८, १५६, १६७, १६८, १७८. सारस्वत १७२. सारूड़ा ३४७. सालमसिंह (पौकरण ) ४१, ४२०, ४२४. सालसिंह (राना) ४४६, ४७७. सालोड़ी ५४, ५८, ५६. सावर ३५१. सावो १७६. सावो के मनुष्य-भक्षक ५७६. साहिबचंद (मुहता ) ४०५, ४१६, ४२२. साह (भोसले) ६५०. साहू (राजा) ३४२, ३४३. सिंगला १६७. सिंगीड़ा ५८२. सिंगोरिये की भाकरी ३८१. सिंघण १३३, १३४. सिंघी २५३, ३७७, ३८७, ३६२, ३६७-३६६, ४०१, ४०२, ४०६, ४०६-४११, ४१३, ४१५-४१६, ४२३-४२८, ४३०, ४३५-४३५, ४४७, ४४८, ४५०, ४५१, ४५६, ४५६, ४८८, ४८६, ४४४, ४१६, ६२६, सिंध (धु ) प्रदेश ४-८, १३, ५०, ५४, ५६, १२६, १२५, १७१, २२७, ३८४, ३८६, ३८५, ४१६, ४२६, ४४३, ४४४, ४४८, ४८८, ४६८, ५.५, ५५८, ६०३, ६३६. सिंघ (नदी) ३. सिंघड़ी ६१८. सिंधिया १४४, ३४६, ३६४, ३६५, ३६७, ३७२, ३७३, ३७६, ३८०, ११, ३८७-१८९, ४०४, ४०६, ४०७, ४१०, ४११, ४२१, ४२२. सिंधी ३६४. सिंधुराज १०. सिंधुराजेश्वर १०. सिमाना ५६१. सिकन्दर खाँ ११२, १२२. सिक्के ४४२, ६०६. सिक्ख ३०१, ३०२, ३१०. सिणगार चौकी ३७१. सिणला ४७७. सिणली ४१.. सिद्धगंगा २३. सिद्धदानसिंहजी (म० मानसिंहजी के कुमार ) ४३१, ४४१. सिद्धपुर ३३५. सिद्धराज ( जयसिंह ) १२, ३७. सिद्धान्ततोषिणी (गीता की संस्कृत टीका) २४, सिद्धान्तबोध २१, २४३. सिदान्तसार २१, २४३. सिनाई ५१७. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #385 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवार का इतिहास सिनेमा घर ६११. सीपलवाटी १७॥. सिरढा ६७. सीधा ८०. सिरमूर ३०३. सीधोली ३६८, ३७१. सिरसा १२५, ६५६. सीकर २०४, ४०५, ४८५,४८०.४४४, १३०, सिरिया खाँ १०१. १३-१४,५५८. सिरियारी ८६, १६३. सीकरी १४१,३१,३१५. सिरेका कुर्ब ६३२. सीतली १४४. सि (सी) रोड़ी ४४०, ६०१. सीतामऊ ४२, १६,५११. सिरोही १, २, ६, ५१, ६३, ७७, १००, १०१, सीयादां ६६. ११३, ११५, १४२, १४७, १५८, १६८, सीलोन १०३. ११-१७५, १८२, १८९, २३१, २४४, सीविस्तान ३८६. २१३, २१४-२५६, २६५, २७०, २७१, | सीसोदनी २२४. ३३७, ४०५, ४०६, ४१५, ४१६, ४१६, सीसोदनीजी (माजी ) ५४५, १४७. ४२२, ४२६, ४३०, ४४५, ४४६, ४५४, | सीसोदरी २०६. ४५६, ४६५, ४८५, ४६४, ४६६, ५१०, सीसोदिया ७६, ८४, ८७, १२४, १३७, १३, १२५. १८८, २०४, २०५, २१५, २१६, १२३, सिलहखाना ५४३. २५६, २५६, २६१, २६२, २७२, २७६. सिल्वर जुबिली-ब्लाक ६०६. सीहमन ११. सिवा ६. सीहा ( मेड़ता) १०६. सिवानची दरवाजा ३६४. सीहाजी (राव) १६, ३१-३५, ३७-४१, ४४, सिवाना १०, ५२, १४, १५, ८६, ६६, १०१, ४६, ४७, १११. ११६, १११-१२३, १३१, १४०-१४३, सीहाराव का खेड़ा १२. १४७-१४६, १५१, १५३, १५४, १९६, सुन्दरदास (राठोड़) १६२. ११५, १६१, १६३, १६५, १७३, ११, सुन्दरदास ( सिंघी) २५३. १७६, २५०, २११, २१६, २६१, २६४, सुन्दरसेणोत २६३. २७०, २७१, २७३, २७७, २५, २८२, सुकामनाथ २४. २८३, २८६, ३२६, १३४, ३६६, ३५, सुखदेवप्रसाद ( काक) (पंडित )४८२, ४८४, ३६१, ३९२, ४३६, ४४०, ४४५, ५१४, ४८८, ४६४, ४६७, ०२, १०४, १५, १७३, ५८०,६००. ५११, १३, ५३५, ५३५, ५४१-५३, सिवानी १८०. १४१, ५४६,५५०,११,१६५. सिहाड़ २४०. सुखराज १९३. सीगण ११.. सुजानगढ़ १२, ६.1. सींगासण ४०. सुजान (ण) सिंह (चांपावत ) २८. सीधल ( जाति ) ७३, ८०, ६१, ६६, ६७, | सुजानसिंह ( जोधा ) २८२. १०१, १०८-११०, ११६, १३६, १४२, | सुजानसिंह (धवेचा) २६. १४३, १८८, २१६. सुजानसिंह (बूंदेजा ) २२१. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #386 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुजान सिंह (भाटी ) ३६५. सुजानसिंह ( सीसोदिया ) २२३. सुजानसिंहजी ( बीकानेर- नरेश ) ३४७. सुतला ४४०. सुभानकुली खाँ (तुर्क ) १५३, १६५. सुमेर-केमल कोर ५३२. सुमेर पब्लिक लाइब्रेरी ५२५, ६१४, ६१६. सुमेरपुर ५२५. सुमेरपुष्टिकर स्कूल ५२१, ५२५, ५४८. सुमेरमल ४२६. सुमेरमल (सिंधी) ४६४. सुमेर समंद ५३१, ५७६, ६११, ६१३, ६१४. सुमेर समन्द वाटर सप्लाई चैनल ५७६, ६११, ६१३, ६१४. सुमेरसिंहजी ( महाराजा ) १८, ४६७, ४६८, ५१२, ५१५, ५१८-५३५, ४६५, ५६४, ५६६,५४६, ६१५, ६३८. सुमेर ( माली ) स्कूल ४६८. सुमेल १२९, १३०, ३६८. सुरजड़ा ५८. सुरजां २७७. सुरतराम ( आसोपा ) ४४४. सुरतान ( भाटी ) ( लवेरा ) १६२. सुरतान ( महाराव, सिरोही ) १६८, १७३-१७५, १८२. १६६, सुल्तानसिंह ( रावराजा ) ४६१. सुवर्ग के सिक्के ( मोहरें ) ६४२. सुवर्ण के सिक्कों पर के कुछ लेख ६४४, ६४५. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat सुवर्णगिरि १०. सुवाप ६८. सुहराब खाँ ( मीर ) ३८५. सूंडा ४९. सूंघा ९, १०, ३६, १९५. सूमा ८७. सूडान ५७७. सूदा ३४२. सूकरलाई १४४. सूजा (चाणोद) १०९ सूजा (बालेचा) १३७ सूजा (रा. चन्द्रसेनजी का भृत्य ) १५३. सूजाजी (राव) ( सूरजमलजी ) ८६, ९७, १०३, १०५ - १११, १३२, १३३. वर्णानुक्रमणिका सूरजकुंड १९८. सूरजकुंवरी ( बाईजी ) ५३६.५४५ सूरजपौल ( नई ) ३६६. सूरजप्रकाश २२. सुरजप्रकाश (वातल ) ( पंडित ) ४८७, ५४६, सूरजबख्शसिंह ५४१. सूरजमल ( खरवा ) ३८६. सूरजमल ( खींवा का पुत्र ) १७२, १८५, १८६. सूरजमल ( गौड़ ) ३५३. सूरजमल ( चौहान ) ५२. सूरजमल ( जाट नरेश ) ३६१-३६३. सुराणी ११५. सुनतान ६३६. सुलतानसिंह (चौहटन ) ५५८. सुलतानसिंह ( नींबाज ) ४१८, ४२३. सुलतानसिंह ( बीकानेर ) १५४. सूरजमल ( सीसोदिया) २१९. सुलतानसिंह ( म ० अजितसिंहजी का पुत्र ) सूरजमलजी (ईडर ) १११. सूरजवासी १४४, ३२८. सूरजसिंहजी ( राव, बीकानेर ) १९२, २०५. सूरजमल (मुहता ) ४२३. सूरजमल (राठोड़ ) २८१. सूरजमल (सिंघी) ४०६. सूरजमल (सिंघी ) ४४. ७६७ सूरत १८६, २८४, ३०३, ३३७, ३४२, ३४५. सूरतसिंह (चपावत) ३७३. www.umaragyanbhandar.com Page #387 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास सूरतसिंहजी (बीकानेर ) २६०, ४०५, ४११, | ___३१४, ३१६-३१६, ३२१, ३२२, ४४१, ४१४-४१६. सरपानिया २०६, ३२६. सैयदबेग ( तोकबाई ) १५३, १६६. सूरपुरा (बाँध ) ५३१. सैनाना ४२, १७६. ४६५, १०, ५२१. सूरपुरा इटावा ३२६. सैशन कोर्ट १४८, ६१०, ६२३. सूरसागर १६३, १६८, २०६, २४४, २६६, सैसमन ( महारावल, सिरोही) ७७. ३५८, ४३६, ४४८, ४६३, ६०३, ६१५. सोगावास १४०, सूरा ( मांगलिया) १८३. सोजत ५१,७०, ७३, ७५, ८४,८५, ८७-t., सूराचन्द ३६, ११३, २६१. १३, ५, १०२, १०३, १०७, १०६, ११०, सूरावत १३१. ११४-११६, १४१-१४४, १४८-१०, सूर्यमल ७१, ७६. १५२, १५३, १५८, १६, १६१, १६२, सूवा १२५. १६७, १६८, १३, १८, १८०, १८३, सेंट जॉन ऐंबुलैंस १३०. १८७. १५५, १६७, २.६, २१, २२५, सेंट जॉन (एच० बी० ) ५३४. २४५, २५०, २१४, २६४, २६५, २७३, से अस्सा २१३. २७५, २७६, २८१, २८४, २०२, १०८, सेखाना ५६, ८६. ३२९, ३३३, ३४६, ३६४, ३६६, ३७५, से (शे ) खावत ११६. ३७६, ३७६, ३८०, ३०, ३६६, ४०६, सेढाऊ ४४१. ४१८, ४४०, ४४१, ४४६, ४८२, ४८४, सेणीदान २४. १.१, ६.०, ६१०, ६२५, ६३६, ६४१, सेतकवर ४०. सेतराम ३२-३४, ३६, ४०, सोजत की टकसाल ६३८, ६१, ६४२. सेतरावा ५६, ५८, ८६. सोठेलाव १८.. सेना-विमाग ६२५. सोढ़ा ४५,१०,५१, १२८, १४२, ३८४. सेपां की बासनी १०३. सोदास शामपुरा ... सेरेंगेट्टी ५८४. सोढी ६७. सेवकी ११३. सेवग ११५, ३८४. सोनग (रा. सीहाजी का पुत्र) ३४, ३६, ४१, ४३, ४७, १११. सेवस्तान २८६. सोनग (सोनिग) (चांपावत) २१०, २५३, सेवाराम ( राजा ) २२१. सेवासार २३. २५५, २५६, २५६, २६२, २६७, २७१-२७४, २७६. सेशल्स १७८. सैबरीमल ( पुरोहित ) ४४४. सोनग (सोभागसिंह) (म, अजितसिंहजी का सैटलमेन्ट ५४४, ६१७, ६१८. पुत्र ) ३२८. सैयद १३८, १४३, २०२, २५१, २७६, २८१, | सोनगढ़ ३४७. २९६-२६८, ३०६, ३०७, ३११, ३१२, । बोनगढ़ (जालोर) १४. ७६८ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #388 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वर्णानुक्रमणिका सोनगरा १०, ११, ११, ५५, ७३, ७४, ८०, | स्टांप ४६५, ६१०. १२४, १३.. स्टील ( कर्नल) ४७२. सोनगरी ६३. स्टील (कैप्टिन) ६६. सोना ६३२. स्टील ( सर जॉन ) ५६५, ५६८. सोनाई माजी १६८. स्टेट काउंसिल १२६, ५५६, ५५, ५६५, सोभ ४५. सोभड़ावास २.१. स्टेट होटन ६०४. सोभागसागर ११८. स्टेडियम ६१२. सोभावत १८२, ३७३, ४६१. स्ट्राँग ( एच० एस० ) ५५१, ५५३, १४६. सोम (चौहान) १२. स्ट्राँग (ए. डी.) (कैप्टिन ) ५१९. सोमदेव (कवि) ३६. स्ट्राँग ( मेजर ) ५६५. सोमनाथ (मंदिर) (गुजरात) १३. स्ट्रेटन (ले० कर्नल ) ५१०. सोमनाथ (सोमेश्वर, पाली ) १२, ३६. खवणी ५. सोमनदेवी (चौहान) ६३६. स्मॉन कॉज़ कोर्ट ६२१, ६२२. सोमलदेवी के सिके ६३६. स्यालकोट ६५१. सोमसिंह ११, १२, स्वरूपदेवी १४३. सोमालीलेण्ड १७७. स्वरूपसागर १४३. सोमे ५१५. स्वरूपसिंह (म० मानसिंहजी का बाभा) ४४१. सोमेश्वर (घाटी) ८४. स्वरूपों के कवित्त २३. सोमेश्वर (चौहान) ६३६. स्वरूपों के दोहे २३. सोमेश्वर (परमार) १०. स्वामी ( साधु ) १७८, २४५, ३२१, १०१. सोमेश्वर के सिके ६३६. स्वास्थ्य ( हैल्थ ) विभाग ६.७. सोरठ ३०५, १०७, ३०६, ३१७, ३१६. स्विट्ज़रलैंड ५०३. सोरों २३२. स्वेज ( नहर ) १६५, ५६८. सोलंकी ५, १०-१२, १४, ३२, ३१-४१, ५०, ५२, १२३, १८७, १८८. सोहड़ .. हंसराज (जोगी) ४५६. सोहनलान (मुंशी) ३५१. हंसाबाई ७१, ७२, ७५, ८१, ८२,८७, सोहनसिंह (म. मानसिंहजी का बामा) ४४१. | हजूरी दफ्तर ६५८. हटरी ३८६. सोहराब खाँ ३४५, ३४८, ३४६. सोहिंतरा १२.. हटीसिंह ( मेगरासर ) ३७७, सौभाग्यदेवी १६८. हड ८६. सौराष्ट्र ३६. हड़वासनी १६७. हुतडी ४४.. स्कन्दगुप्त ५. स्कॉटलैंड ५५१. हाडिया ( जाति ) ४३. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #389 -------------------------------------------------------------------------- ________________ irat का इतिहास इडिया (हसत) ( रा ० रायपालजी का पुत्र) ४६. यूँडी (गांव) १०, ४४. इनवतचन्द (भंडारी ) ४८२, ४६४. हनवन्त सिंहजी ( महाराजकुमार ) ५४६. हनूत सिंह ( रानोराजा ) ५३८, ५४२, ५६०, ५६८, ५०४, ५६६. हबश २७६. हब्शी १८४, २००. हमीदुज्जफर ख़ाँ ५०५,५०८. हमीदुल्ला खाँ (मुंशी ) ४८६, ४६४, ४६८. हम्मीर (झाला ) ६६. हम्मीर ( रा• जगमालजी का पुत्र) १०७, १०८. हम्मीर ( रा ० सूजाजी का पौत्र ) १३२, १४३. हम्मीरसर १७१. हरकचंद (यति ) ४२४. हरकरणा ( नाजर ) ६४२. हरखमन ( ढड्ढा ) ४६७. हरचन्द ६६. ४८५, ४६८,५०३. हरदास ( ऊहड़ ) ११३, ११४. हरदास ( महेशदास का पुत्र ) १८३. हरदास योगाला ( करतर ) ३५. हरद्वार २१२, ३०३, ४४८, ४६६. हरनाथ ( जोधा ) २८१. हरनाथसिंह ( मांडोत ) ३५४. ५२१. हरबोर्ड ५६६. हर जिया १७२. हरराम २२८. हरलायां १९७. हरविलास सारड़ा ७१, ११२, ३७२. हरजी ४५०. हरजीवन ( मेहता ) ४५६, ४५७, ४५८. हरिसिंह ( चांपावत) ३०८, ३१०. हरिसिंह ( मेड़तिया ) १८६. हरडक ( हरखा ) ४५. हरदयाल सिंह (मुंशी ) ४७५, ४७६, ४८१, हरिसिंहजी ( महाराजकुमार ) ५६०. हरमाड़ा १३६. हरराज (देवड़ा) १७४. हरराज जी ( रावन, जैसलमेर ) १२४, १५७. हरस ४४०. हरसोर ३२६, ३७९. हरसोलाव ३७३, ४०८, ४१३, ४१६, ४३१, ४५. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat हरा १७१. हरावास ४४०. हरि - जस गायन २४. हरिदास ६५. हरिपदावली २४. हरियाडामा ४१३. हरिराज ६, १४. हरिवंशपुराण ८. हरिश्चन्द्र ( प्रतिहार ) ७. हरिश्चन्द्र ( जयचन्द्र का पुत्र) ३१, ३३, ३४. हरिसिंह ( चांदावत ) २५४. इनवद ३१०. हवाई अड्डा ६१२, ६१३. हवाई जहाज ५४८. हरनामदास (मुंशी) ५०६, ५१३, ५१५, ५२२, हवाई जहाज़ का क्लब ५६४. हर्बर्ट ( ई० जी० ) ५७३. हर्षनाथ हर्षवर्धन ६. हलका पैसा ६४३. हवाना ६१७. हशाम ( खलीफा ) ५, १३. हसन प्रब्दाल २४१. हसनअली २६२. हसन खाँ ७५. ७७० www.umaragyanbhandar.com Page #390 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वर्णानुक्रमणिका हस्तिकुंडी ४४. हिंदुस्था (स्ता ) न ४, १६, १२६, १३१, हांसी ३०२. १४५-१४७, १६०, १६२, १८५, १६७, हांसी हिसार २३३, २४३. २२६, २३६, २४६, ३७०, ४४८, ४६६, हांसोट ८, १३. हांसोन ३३६, हिदुस्था (स्ता ) नी ४३३. हाई स्कून ४६५. हिन्दू ६५, १२५, १२८, ११२, २२६, २३५, हाकड़ा (नदी) ३. २४७, २५१, २६१, २६२, २६२, ३२७. हाकड़ा (प्रान्त) ३. हिंदू युनिवर्सिटी ( विश्वविद्यालय ) ५२१, ५२६. हाकिम ६२१, ६२१. हिम्मत खाँ २६१. हाजी खा १३६, १३७. हिम्मतसिंह ( खेजड़ला) ४५०. हाजीपुर ३०५. हिम्मतसिंह ( मुंशी) ५६०, ५६७. हाजी मोहम्मद खाँ ( मुंशी) ४१४, ४५१. हिम्मतसिंह जी ( महाराजकुमार ) ५५०. हाडा २२२-२२४, २४४, २७८, २५, २६४, हिसार १०१, १०३, ५१२. हिस्ट्री ऑफ राष्ट्रकूट्स ( राठोड्स ) ६११, हाडी १३, १२०, २४४. हींगोला (गांव ) ६५. हाडी (रा. अमरसिंहजी की रानी ) ६१४, हीरक जुबित्ती ४६६. हाडीजी ( माजी) १२७. हीरानाल (मुंशी) ४७४, ४८२, १४, हाडीपुरा १४. हीरावाही १७. हाडेचा ३२६. हीरावास ( सोजत ) २४६. हाडोती १६, २४३. हीरासिंह जी ५०८. हाथ का कुरब (4) ६३, ६३२. हुमायूं १२२, १२३, १२६-१२८, १३६, १४१, हाथी के शिकार का तरीका १८६-५६१. १४५, १४६, १५.. हाथी सरोपाव ६३२. हुएनसंग ६. हुक्म ( कम ) नामा ४५५-४५८, ५२२, ५४२, हापा ८०. हामिद खाँ २६४, २६१, २६५, २८२, २८४, ६२८, ६२६. ३३२. हुनावास ४४. हार्डिज (जनरन) ४८०. हुरड़ा ३४७. हार्डिज ( लॉर्ड) १२२, ५२६. हुन ७०, ७३. हाशिम ( सैय्यद) १५४. हुसेनअली खाँ २४६. हिंगोल (गांव) ६. हुसे ( इस ) न अ (कु) ली खाँ (सैयद ) हिंगोला ( मेवाड़ी ) ८७. ३०६, ३०५, ३१५, ३१४, ३१६, ३१५, ३१६. हिंडनबर्ग १६६. हिंडौ ( दौ)न १२३, १४१, २०७, २१७, | हुसैनकुलीबेग १४१, १६-१६१, १६१. हुसैन खाँ ( सैयद ) २१५, २९८, ३२४. हिंदाम खाँ ४०८, हुसैनपाह १६, १... Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #391 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ का इतिहास हूण ५, ६३४, ६३५. । हेनसन् ( जी. पाई. जी.) ( कैप्टिन) ५२६. हेग (मेजर) १०६,५०६. हैका १६, २०, ५२६, ५६२, ५६३, ५६७. हेनू ५१७. हैमिल्टन (कर्नल ) १३५, ५३७. हेम कवि २०. हेल्थ प्रॉफीसर ६२५. हेमचन्द्र ३६. हैसियत ११२, ६१६. हेमसिंह (ठाकुर ) १०६,५६८. होम (डब्ल्यू.) ४७२, ४७३, ५०२,५०८. हेमसिंह ( मेजर ) १७०. होम मिनिस्टर ६०७. हेमावास १५. होम्स १६८. हेजा होल्डन १६८. हेवर्ड (ई. डब्ल्यू. ) ५७७, ५८१, ५८३, होरकर ३४६, ३४८, ४.४, ४०६, ४.७. होशंग ७२. ५८८, ११२. हैदरप्रती ( मीर ) २४. हौसंबी ५६८. हैदरकुली खाँ ३०६, ३२०, ३२१, ३२३, ह्य (हीयू ) सन अस्पताल ४७४, ४८२, ५११, ३२६. एसन (एफ. टी.) ४७४, ४८.. हैदराबाद ( सिंघ ) ३८६, ४६८, ५.७. एसन गर्ल्स स्कूल ४७४. हेनरी नारस ४४६. ७७२ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #392 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयचन्द्र हरिश्चन्द्रवरदायीसेन सेतराम १ राव सीहाजी २ राव श्रासथानजी सोनगजी प्रज ३ राव धूहड़जी धांधल चाचक ४ राव रायपालजी भीम ६ राव जालणसीजी विजपाल ७ व छाडा भाकरसी डूंगरसी श्रासल 1 चन्द्रपाल बेहड़ पेथड़ जोगा खेतपाल ऊनड़ ५ राव कनपालजी सुंडा केला लाखणसी थांथी डांगी रांदा जूंझण राजा (१२) रावल जगमाल | ८ राव तीडाजी खोखर वानर सीहमले रुद्रपाल हरड़क ( हरखा) खींपसा अखैराज (१) राव कान्हडदेवजी (१०) राव त्रिभुवनसी ६ राव सलखाजी (११) रावल मल्लिनाथजी जैतमाल कूंपा जगपाल मेहा श्रड़वाल १५ राव जोधाजी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat खीमसी कानड दे पोहड़ जोपसा १४ राव रिडमलजी (रणमल्लुजी ) १३ राव संत्ताजी रणधीर हरचंद भीम १२३ १० राव वीरमजी शोभित I देवराज ११ राव चुंडा www.umaragyanbhandar.com Page #393 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारवाड़ के राठोड़-नरेशों का विस्तृत वंश पसा राजा हyडिया (हसत) राणा मूहण बूला वीकम ७७२. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #394 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शुद्धिपत्र नं० १. श्रावणादि और चैत्रादि संवतों का अन्तर । चैत्रादि संवत् ७ दिसम्बर पृष्ठ पंक्ति श्रावणादि संवत् ४०५ ५ वि० सं० १८६१ के प्राषाढ वि० सं० १८६२ के प्राषाढ (ई० स० १८०४ की जुलाई) (ई० स० १८०५ की जून-जुलाई) ४०५ १२ २ जनवरी २१ वि० सं १९११ वि० सं० १९१२ (ई० स० १८५४ की १ अप्रेल) (ई० स० १८१५ की २१ मार्च) ४६१ २१ वि० सं० १९१३ की प्राषाढ वदि ६ वि० सं० ११ १४ की प्राषाढ सुदि ६ (ई० स० १८५६ की २४ जून) (ई० स० १८५७ की २७ जून ) ११ २६ वि० सं० १९२२ की आषाढ वदि ६ वि० सं० १६१३ की आषाढ वदि १ (ई० स० १८६५ की १५ जून) (ई० स० १८६६ की २६ जून ) ४६५ १५-१६ वि० सं० १९३८ (ई० स० १८८१) वि० सं० ११३६ (ई० स० १८५२ में) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #395 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४ ४०१ ४१२ ४१७ ४२० ४२० ४२१ ४२६ ४२८. ४२८ ४२६ ४२६ ४२६ ४३० ४३६ ४४२ ૪૪૨ ४४३ पंक्ति २३ ४४८ ४५३ ૪૪ २० ७ परन्तु इन्द्रराज के स्मारक पर इस इतिहास में दी तिथि ही लिखी है । ३ वि० सं० १८५७ की फागुन सुदि ६ ( ई० स० १८०१ की २२ फरवरी ) ४ १७ वर्ष ३ गर्नमैन्ट अशुद्ध शुद्ध वैशाख सुदि १ ( ई० स० १८०३ की आश्विन सुदि १ ( ई० स० १८०३ की २२ अप्रेल ) · ६ सितंबर ) चंडावल ठाकुर चंडावल के छुटभाई ? ख्यातों में वि सं० १८७३ की चैत्र सुदि ८ लिखा है । २० शुद्धिपत्र नं० २. २१ चिट्टी १७ वि० सं० १८६० ( ६० स. १८३३) २० प्रथम भादों सुदि १४ ( २६ अगस्त ) ५ ( ई० स०१८३४ ) ६ बाहड़गेर ११ लिखा । ७ ( ई० स० १८३४ ) के अन्त कहीं कहीं वि० सं० १८५६ की फागुन सुदि ६ ( ई० स० १८०३ की २ मार्च) लिखा मिलता है । ( १५ वर्ष वि० सं० १८५६ में जन्म मानने से ) गवर्नमेन्ट चिट्ठी वि० सं० १८६१ ( ई० स० १८३४ ) भादों सुदि १४ ( १६ सितंबर ) ( ई० स० १८३५ ) बाड़मेर कुशलसिंह 98 वि० सं० १६०४ ८ वि० सं० १६०० वि० सं० १८88 १ सुदि १४ ( ई० स० १८४६ की ३१ सुदि ११ ( ई० स० १८४६ की २८ दिसंबर) प्रथम श्राषाढ (जून ) ( ई० स० १८३५ ) लिखा । यह घटना वि० सं० १८६१ की शीत ऋतु की है ।) कुशालसिंह वि० सं० १६०५ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat १-२ २२ अगस्त) जुलाई ) ४ वदि १२ ( ई० स० १८६५ की १८ सुदि १२ ( ई० स० १८६५ की २ अगस्त ) ४५४ १०-११ प्रथम जेठ वदि ११ (१० मई ) दिसंबर) द्वितीय श्राषाढ (जुलाई) सितंबर) द्वितीय जेठ वदि ११ ( 8 जून ) www.umaragyanbhandar.com Page #396 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृष्ठ ૪:૪ ४५७ ૪૨૭ ४५५२८-२६ ४५६ ××દ્ ४५८ ૪૬ ४६० ૪૦ ४६ १ ४६१ ४६४ ४६५ ४६६ ४६७ ૪૨૬ ४७२ ४७३ पंक्ति ४७७ ४८१ १३ ४८१ ११ ८ २० बना २७ रेख का पौन हिस्सा J १४ इसी वर्ष २ ४ १७ ११ ४७४ rok ४७६ ४७६ १६-१७ अशुद्ध प्रथम जेठ सुदि ५ ( १६ मई ) फुट नोट ५ चुंगी श्राधी सुदि १५ ( ई० स० १८६८ की २६ दिसंबर ) वि० सं० १६०४ ( ई० स० १८४७ की ३ सितंबर ) २४ भादों वदि २ ( ई० स० १८५७ की वि० सं० १९२७ १३ ११ ( अगस्त ) ( सितंबर ) २७ २६ १६ हिन्दुस्थान में १ वि० सं० १८३३ ७ अगस्त) पहले वि० सं० १६३७ २७ १६ दि १४ गहाराज १ २६ और १६ = ( २४ जून ) वि० सं० १९४१ के भादों ( ई० स० १८८४ के अगस्त ) इसके बाद २७ जुलाई ) वि० सं० १६७६ श्रावण सुदि १ ( २१ जुलाई ) शुद्ध द्वितीय जेठ सुदि ५ ( १७ जून ) १ तुंगी कुछ समय के लिये आधी वदि ४ ( ई० स० १८६८ की ३ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat दिसंबर ) बना रेख के हिसाब से आमदनी का पौन हिस्सा वि० सं० १९२६ ईसी वर्ष ( वि० सं० १8२७ में ) ( जुलाई ) ( अगस्त ) वि० सं० २६०५ ( ३० स० १८४८ की २३ अगस्त ) फागुन वदि २ ( ई० स० १८५८ की ३१ जनवरी ) पहले ( वि० सं० १६२५ = ई० स० १८६८ में ) वि० सं० १९३६ कलकत्ते वि० सं० १९३३ महाराज सुदि ५ (२० जून ) वि० सं० १९४२ के सावन हस्ताक्षेप हस्तक्षेप श्रावन वदि ८ ( ई० स० १८८३ की आषाढ वदि १३ ( ई० स० १८८३ की २ जुलाई ) वि० सं० १९७८ वि० सं० १६४४ की प्राषाढ वदि ३० ( २१ जून ) ( ई० स० १८८५ के अगस्त ) इसी बीच से इस यात्रा राज्य के १,१०,००० रुपये इस अवसर पर राज्य की तरफ से खर्च हुए। १,१०,००० रुपये इम्पीरियल इन्स्टि टयूट को दिए गए । www.umaragyanbhandar.com Page #397 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृष्ठ पंक्ति अशुद्ध शुद्ध ४८२ २६ वि० सं० १६४६ के प्राषाढ (ई० स० वि० सं० १६४५ के प्राषाढ (ई० स० १८८४) १८८८) ४८२ ३१ तैयार हुआ। तैयार करने का प्रबन्ध हुमा । ४८३ २६ निश्चिय निश्चय ४८३ ३०-३२ इसके बाद होती रही। इसके बाद इसमें समय-समय पर रद्दो बदल होती रही। ४८५ १६ वदि ३ ( २२ अगस्त ) वदि २ ( २१ अगस्त ) ४८६ १८ महीनेभर तीन महीने ४५६ ये लोग ये कोटा, कोल्हापुर और भावनगरवाले ४८७ २४-२५ फुटनोट १ ४८८ १७ महाराज फागुन ( ." ) में फिर बूंदी फागुन ( ... ) में बूंदी-महाराज जोघगए थे। पुर पाए। ४६. १६ २२४६ २११६ ४६११ ६ ४६१ २७-२८ वदि १४ (ई. स. १८६४ की ६ मार्च) सुदि १४ (ई. स. १८६४ की २० मार्च) ४६२ ११ भटों भाटों ४६६३ सुदि ( कहीं-कहीं ) वदि ( भी लिखा मिलता है) ५०२ २८-२९ ४ (ई. स. १९०१ की २४ जनवरी) ६ (ई० स० १६०१ की २६ जनवरी) ५.३ १३ (C. B. Beatson ) (S. B. Beatson ) ५.५ १ ११५९ १६५६ ५१३ ३ किया किया। ५१५ २२-२३ १६ वर्नाक्यूलर और वर्नाक्यूलर २ मिडल, १४ अपर प्राइमरी, २ स्कूल लोअर प्राइमरी, ४० वर्नाक्यूलर प्राइमरी स्कूल ५१५ २७ १३५ करीब १३५ ५१६ ३० दीगई। ५२० दीगई। आसोप-ठाकुर चैनसिंह को रामो बहादुर को उपाधि मिली। Fortescue पौन प्राय वि० सं० १९७३ की मंगसिर वदि १ २७ Fortescu २२ प्राय २४ कार्तिक वदि ११ १२२ ५२७ १२४ ५३० ६४ १२ (Armistic ) ३ कार्तिक (Armistice) कार्तिक के अन्त Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #398 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृष्ठ ५३४ शुद्ध पंक्ति अशुद्ध ८ सुदि २ ( ई० स० १६१८ की ७ अक्टोबर) २६ (A B. Macpherson) २७ किया गया। सुदि २ ( ई. स. १६१८ की ७ अक्टोबर ) (A. D. Macpherson) किया गया। शमशेरसिंह ई० स० १९११ के अक्टोबर में फिर इन्सपैक्टर जनरल बनाया गया था। १८ १२ २ (ई.स. १९२२ की ८ मितंबर ) पौष सुदि ५ की ३ जनवरी ५३६१ २८ ५४. २१ १३ ५४३ २५ १ (ई. स. १६२२ की ७ सितंबर ) ५४८ ३०-३१ माघ वदि ११ ५४८ ३२ की जनवरी ५४६ २१-२२ चैत्र...."जीता १६ सी. आइ. ई. २० पोलिटिकल ३ माघ सुदि ३ ( १ फरवरी) १७ १२ २४ ७ (१६ अगस्त) १३ १२ ( १६ मार्च) २८ १३ १ सुदि ४ (६ मई ) १२ १०,१०० १३ ५१,५३१ x ( बाद में हुआ था) पुलिस माघ सुदि १ ( ३० जनवरी) ११ wr a ur ५ (१४ अगस्त ) ११ ( १८ मार्च) १२ सुदि ६ ( ८ मई) १०,००० ५१,४३१ २५० १ १ ६ थे। ६ इम्पीरियल एअरवे १६ १९१२ १ प्रथम वैशख (ई. स. १६१५ की अप्रेल) ___E सरदियों थे। इम्पीरियल एअरवेज़ १९११ ज्येष्ठ ( ई. स. १९१५ की जून ) ५६३ ५६६ ५६६ सरदियों ६०८ वि. सं. १९७१ चैनल" ६१८ २२ वि. सं. १९३६ २४ चैनल" ६ बकों ३ पर-नायब ४ स्त्री-शिक्षाओं २५ कायम हुई। ६२२ बैंकों पर नायब स्त्री-शिक्षिकाओं का सुधार किया जाना तय हुआ ६२४ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #399 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अशुद्ध पृष्ठ पंक्ति ६३३ . और ८ था। ६४. १८ गई। ६४१ २४ मिलता है। ६४६ ७ ११६२ २४ ऐलानाल्स २ राठड़ १३ गाकलदास २३ स समलोत १० ७१४ गई । परन्तु वि० सं० १९९३ में यह फिर जारी की गई। मिलता है । यह टकसाल कुछ काल के लिये फिर जारी की जाकर ई . स० १८८८ में फिर बंद करदी गई । ११६४ ऐनाल्स राठोड़ गोकलदास सहसमलोत १७१४ ६६१ पृष्ट कालम पंक्ति अशुद्ध शुद्ध अजबपुरा ३६५ अजबसिंह ३४६ २४३ ४४० प्रासयानजी (राव) एअर वेज़ २३६ २४ अजबपुरा ३६५ 8 २४२ ३ ८४ ६६७ २३ आसथानजी २२ एअर वे २ २२ २४६ ३० ४४३ ७२३ ३४ ४६५ ७२६ ३५ बाx ७४. . १xx १ २७ १२६ ११२ ७४८ १ २५ मूलराल ३२ x १ १९ रायसिंह विस्तृतवंशवृक्ष पंक्ति ११ राव त्रिभुवनसी ४२३ ४५६ बाब १२३ १२९-१५२ मूलराज रामसिंह राव त्रिभुवनसीजी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #400 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #401 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #402 -------------------------------------------------------------------------- ________________ REVIEWS AND OPINIONS ON MARWAR-KA-ITIHAS VOLUME I. Indian Culture, Calcutta. This is a history of Marwar written by Pandit Bisheshwar Nath Reu, a reputed scholar and historian from Jodhpur. It has surpassed, so far as we know, many publications dealing with the vernacular histories of the different States in India. Pandit Reu has thrown sufficient light on the repeated help given by Rao Ganga, Maldev, Maharaja Ajit Singh, Bijayasingh, etc. of Marwar to the rulers of Mewar, which has either been misunderstood or neglected even by Dr. Gaurishankar Ojha in his History of Rajputana. He has similarly refuted on the basis of good arguments a number of statemenls advanced by previous and modern scholars about Rao Maldev, Chandrasena, Maharaja Jaswantsingh and Ajit Singh of Marwar and has brought to light numerous hitherto unknown facts as the result of his own scholarly researches. Mr. Reu has ably criticized Dr. Ojha's charge of treachery against Rao Ranmal and has proved his own statement regarding the conquest of Mandor by Rao Jodha, as this campaign also has been misrepresented or misunderstood in Rajputane-Ka-Itihas. The author of this volume has also given at the beginning of his book a brief history of Marwar of the pre-Rathor period. Pandit Reu's sound judgment and excellent mode of refuting the statements of other scholars is praiseworthy. We congratulate the Jodhpur Darbar and the Jodhpur Archaeological Department for bringing out such an authentic and valuable work which will be helpful to the students of Indian history and will also serve as a model history for other enlightened Indian State. Vol. VI No. 2 DR. D. R. BHANDARKAR. October 1939. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #403 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 2 ) Journal of the Indian History, Madras. Marwar-ka-Itihas written by Pandit Bisheshwar Nath Reu, the Superintendent, Archaeological Department, Jodhpur, is an authentic and detailed history of the Jodhpur State. The author has taken great pains in exploiting different sources and consulting many books to get the material for his book. He has also brought out with success many new facts, which uptil now, lay hidden and has succeeded in dispelling a number of false ideas prevailing in regard to the Rathor rulers of Marwar among old and present scholars. The large number of footnotes added to this volume enhances the value of this scholarly work. Beginning with a short sketch of the previous ruling dynasties of Marwar, this volume contains the history of the Rathor rulers of Marwar from about the beginning of the 13th century to the end of the 18th century A. D. The work is scholarly and carefully compiled and will prove a valuable handbook to scholars. Vol. XVIII Part 3 DR. S. K. AIYANGAR. DIWAN BAHADUR. December 1939. Journal of the Bihar & Orissa Research Society, Patna. ............ In 1933 was published the History of Rashtrakutas (Rathodas) with its Hindi version in 1934 (by Mr. Reu). It brought the story up to the advent of Rao Sihaji in Marwar, following an account of the Rastrakutas in Gujerat and Kanauj. The present history continues the narrative from Rao Sihaji in Marwar to the present day - about 800 years of Rajput achievements and Rajput strivings, forming an illuminating background of the history of India. The chronicles of Marwar are always a difficult theme. They stir a chord in every Indian heart reflecting romance in history. Great courage and even greater discipline are necessary to subject the glories of Marwar Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #404 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 3 ) to a dispassionate and scientific appraisement. Mr. Reu has discharged his duties well. He has combined careful research with sober judgment and has produced an eminently readable book. Hindi literature will be richer for it and the much needed study of local history will receive an assuring impetus. Vol. XXV Sept. & Dec, 1939. DR, A, BANERJI SHASTRI, ...... The work (Marwar-ka-Itihas) is indeed well brought out, and I am sure you will be able to bring it to completion before long. Your work is a mine of information, and length and number of footnotes indicate what a variety of sources you have pressed into the service of history. ...... The present volume brings out so well the thread of political history on really authentic materials. K. N. DIKSHIT RAO BAHADUR, Director General of Archaeology in India. (1-9-1939. ) I have read it through and write to express my deep appreciation of the value of your great work. It is full of important matter and is written throughout in a truly scientific spirit. I hope you will continue the work and place all students of Rajput history under a deep debt of gratitude. (21-5-1940) AMARNATH JHA, VICE CHANCELLOR Allahabad University, The Hindi History of Marwar, Vol. I, by Pandit Bisheshwar Nath Reu, is a work which appears to have involved much research, and should prove a valuable contribution to historical study. L. GILES, KEEPER, Oriental Books, British Museum, London, (15-2-1940) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #405 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 4 ) This valuable and well illustrated account of the ruling family of Jodhpur is a most welcome addition to our collection of Hindi books, and I shall look forward with interest to the completion of the work. (18-10-39.) इस ग्रन्थ ( मारवाड़ के इतिहास ) के लिखने में रेउजी ने यथा साध्य सब प्रकाशित ग्रन्थों एवं जोधपुर राज्य की अप्रकाशित ख्यातों तथा शिलालेखों आदि का भूरि २ उपयोग किया है और इस ग्रन्थ को प्रमाणिक बनाने का भी यथा सम्भव प्रयत्न किया है। लेखक ने टिप्पणियों में ख्यातों में पाई जानेवाली महत्वपूर्ण दन्तकथाओं का उल्लेख कर भावी इतिहासकारों के लिए भी पर्याप्त सामग्री उपस्थित करदी LIBRARIAN, INDIA OFFICE, किसी राज्य का ठीक ठीक इतिहास लिखना एवं वह भी उसी राज्य के प्रश्रय में रहकर पूर्णतया निष्पक्षता से लिखना और उस घराने की त्रुटियों या कमजोरियों का स्पष्ट चित्रण करना एक कठिन काम है; तथापि रेउजी ने इस ओर प्रयत्न किया है जिससे वे बधाई के पात्र हैं । London. रेजी ने राठोड़ नरेशों के प्रताप, कला-कौशल- प्रेम, विद्या-प्रेम, और दानशीलता आदि पर भी प्रकाश डालने का प्रयत्न किया है। जिससे तत्सम्बन्धी अधिक बातें जानने की चाह होती है 1 14 अन्तमें मैं इस इतिहास की रचना के लिए मारवाड़ गवर्नमैएट को भी बधाई देता हूँ । ता० २४-१०-३६. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat डा० रघुबीरसिंह, महाराज कुमार, सीतामउ राज्य. www.umaragyanbhandar.com Page #406 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com