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मारवाड़ का इतिहास को आगे से उनके अन्तरंग मामलों में गवर्नमैन्ट के हस्तक्षेप न करने का विश्वास देदियो ।
उन दिनों राज्य में नाथों का प्रभाव बढ़ा हुआ होने से नित्य नए दीवान बदले जाते थे और राज-कार्य का प्रबन्ध शिथिल हो रहा था । इससे मेरवाड़े की तरफ़ के मेर और मीणे इधर-उधर लूट-मार कर उपद्रव करने लगे । जब राज्य की तरफ़ से इसका प्रबन्ध ठीक तौर से न होसका, तब गवर्नमैन्ट ने जोधपुर की सेना की सहायता से वहां के बागियों को कैद कर इस उपद्रव को शान्त किया।
वि० सं० १८८० की फागुन सुदि ५ ( ई० स० १८२४ की ५ मार्च) को उक्त प्रदेश के २१ गांव, जो चांग और कोट किराना परगने में थे, और जिन पर जोधपुर-महाराज का अधिकार था, आठ वर्ष के लिये, गवर्नमैन्ट ने अपने अधिकार में ले लिए और उनके प्रबन्ध के खर्च के लिए १५,००० रुपये सालाना भी राज्य से लेना तय किया । परन्तु इसके साथ एक शर्त यह भी की गई कि इन गांवों की आमदनी के रुपये इन रुपयों में से बाद देदिए जायेंगे।
इन्हीं दिनों सिरोही की सरहद से मिलते हुए जालोर आदि के प्रदेशों के उपद्रव को दबाने का भी प्रबन्ध किया गया ।
वि० सं० १००१ ( ई० स० १८२४ ) में भंडारी भानीराम ने आपस की शत्रुता के कारण सिंघी तैराज के विरुद्ध एक षड्यंत्र रचा और उसकी तरफ से लिखा गया धौंकलसिंह के नाम का एक जाली पत्र बनवाकर महाराज के सामने पेश किया । इस पर महाराज ने वि० सं० १८८२ के प्रारम्भ में तैराज और उसके भाई-बन्धुओं को कैद कर उसका दीवानी का काम भानीराम को देदिया । कुछ दिन बाद ही उस (भानीराम ) ने महाराज के हस्ताक्षर की एक जाली चिट्टी बनवाकर रुपये वसूल करने की कोशिश की। परंतु इसमें वह पकड़ा गया । इससे सारा भेद
१. ए कलैक्शन ऑफ ट्रीटीज़ ऐंगेजमैंट्स एण्ड सनद्स, भा० ३, पृ० १३०-१३१ । २. ए कलैक्शन ऑफ ट्रीटीज़ ऐंगेजमैट्स एण्ड सनद्स, भा० ३, पृ० १३१-१३२ । ३. परन्तु साथ ही सिंघी फौजराज को, जिसकी अवस्था केवल १४ वर्ष की थी, इस काम में
उसके साथ कर दिया । वि० सं० १८८२ ( ई० स० १८२५) में जोशी शंभुदत्त को फौजराज के साथ काम करने के लिये नियत किया। इसके बाद कुछ काल तक शम्भुदत्त ने अकेले ही दीवानी का काम किया ।
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