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महाराजा मानसिंहजी आजीविका दी । परन्तु फिर भी उनका झगड़ा शान्त न हुआ। उलटा उनके कारण राज-कर्मचारियों के भी दो दल होगए । सिंघी फ़तैराज और भाटी गजसिंह लाडूनाथ के पक्ष में हुए और धांधल गोरधन और नाज़िर इमरतराम भीमनाथ के पक्ष में । इस प्रकार दलबंदी होने पर एक पक्ष के कर्मचारी दूसरे पक्ष की रिशवत की शिकायतें करने लगे । इस पर जिस-जिस पर जितना-जितना रिशवत का अभियोग सिद्ध होता गया, उस-उससे महाराज ने उतने-उतने रुपये वसूल करलिए।
वि० सं० १८८० के भादों (ई० स० १८२३ के सितम्बर ) में उन सरदारों के वकीलों ने, जिनको जागीरें महाराज ने जब्त करली थीं, अजमेर जाकर पोलिटिकल एजैण्ट मिस्टर एफ. विल्डर से महाराज के विरुद्ध शिकायत की । परन्तु उसने उन्हें महाराज के पास जाकर फैसला करवाने की सलाह दी । इसी के अनुसार जब वे लोग मारवाड़ के चौपड़ा गांव में पहुंचे, तब महाराज ने उन्हें पकड़वा कर जोधपुर के किले में कैद करवा दिया । परन्तु आउवे का वकील पंचोली कॉनकरण बचकर निकल गया। जब उसने अजमेर पहुँच मिस्टर विल्डर को सारा हाल कहा, तब उसने अजमेरस्थित महाराज के वकील को कहकर उन सबको छुड़वा दिया, और महाराज को उन सरदारों पर दया करने की सिफारिश लिखी। इस पर ( ई० स० १८२४ के प्रारम्भ में ) महाराज ने भी कुछ सरदारों की जागीरें लौटा देने की आज्ञा देदी । परन्तु सरदारों के जिलेवालों और छुट-भाइयों की जागीरें लौटाने का हुक्म नहीं दिया । मिस्टर विल्डर ने जब महाराज को फिर इस मामले पर विचार करने का लिखा, तब महाराज ने उसे वापस लिख भेजा कि बूडसू और चंडावल के ठाकुर तो सिफ़ारिश करवाना और दया प्राप्त करना चाहते ही नहीं हैं । हां, आउवा, आसोप, नींबाज
और रास के ठाकुरों को, यद्यपि वे दया के पात्र नहीं हैं, तथापि ब्रिटिश-गवर्नमैन्ट के कहने से वे जागीरें, जो महाराजा बखतसिंहजी के समय उनके पास थीं, ६ महीने में लौटा दी जायँगी । इसके बाद यदि वे हमारी आज्ञानुसार चलेंगे तो उन पर और भी कृपा की जायगी । इनके अलावा अन्य छोटे जागीरदार भी यदि ब्रिटिश-गवर्नमैन्ट की मदद प्राप्त करने की कोशिश न कर हमैं प्रसन्न करने की कोशिश करेंगे तो उनकी जागीरें भी लौटा दी जायँगी । इस पर पोलिटिकल एजैंट एफ. विल्डर ने भी महाराज
१. इनमें बासनी, आसोप, आउवा, चंडावल, नींबाज आदि के वकील थे।
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