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महाराजा मानसिंहजी खुल गया। तहकीकात के बाद जाली पत्रों के लिखनेवाले बागा जालोरी का हाथ कटवाकर उसे देश से बाहर निकाला गया और भंडारी भानीराम कैद किया गया।
वि० सं० १८८४ ( ई० स० १८२७ ) में राज्य का प्रबन्ध नाथजी के मुसाहिब मुहता उत्तमचंद और मुहता जसंरूप के हाथ में था । इसी से इस वर्ष के सावन ( जुलाई ) में उन्होंने आउवे पर अधिकार करने के लिये एक सेना खाना की। यह देख इधर तो वहां के ठाकुर ने दृढ़ता से उसका सामना किया, और उधर नींबाज और रास आदि के ठाकुरों के साथ धौंकलसिंह से मिलकर डीडवाने पर उस (धौंकलसिंह ) का अधिकार करवादिया । इस पर महाराज ने सिंघी फ़ौजराज को फौज लेकर उधर जाने की आज्ञा दी । उसने वहां पहुँच नींबाज के ठाकुर सांवतसिंह
और रास के ठाकुर भीमसिंह को अपनी तरफ़ मिला लिया, और आउवे पर आक्रमण करनेवाली सेना को भी वापस बुलवालिया । इस पर नींबाज और रास के ठाकुर धौंकलसिंह को छोड़ जोधपुर चले आए और ठाकुर बखतावरसिंह आउवे लौट गया। इसलिये डीडवाना फिर महाराज के अधिकार में आगया ।
इसी वर्ष नागपुर का राजा मधुराजदेव भोंसले अंग्रेज़ों से हारकर जोधपुर आया। महाराज ने शरणागत की रक्षा करना क्षत्रिय का धर्म समझ उसे महामन्दिर में ठहरा दिया । अन्त में जब गवर्नमैन्ट ने उसे अपने हवाले कर देने को लिखा, तब महाराज ने उसे वापस लिख दिया कि यदि आप हमें अपना मित्र समझते हैं तो भोंसले चाहे
आपकी निगरानी में रहे चाहे हमारी । इसमें कुछ विशेष अन्तर नहीं है। इसके अलावा यदि यह किसी प्रकार का उपद्रव करेगा तो उसकी ज़िम्मेदारी हम पर होगी। यह उत्तर पा गवर्नमैन्ट चुप हो रही । कई वर्ष बाद यह भोंसले यहीं मर गया ।
इसी वर्ष फिर एकवार धौंकलसिंह के पक्षवालों ने जयपुर में सेना इकट्ठी कर जोधपुर पर चढ़ाई करने का इरादा किया । यह देख महाराज ने इस विषय में गवर्नमैन्ट से सहायता मांगी । इसकी सूचना मिलते ही उसने जयपुर-नरेश को धमका कर इस चढ़ाई को रुकवा दिया । इस पर धौंकलसिंह को फिर जज्झर की तरफ जाना १. परन्तु वि० सं० १८६७ के ज्येष्ठ ( ई० स० १८४० के जून ) में इसे, मिस्टर लडलो के
लिखने से, महामन्दिर छोड़ कर, जोधपुर से बाहर चला जाना पड़ा। २. इसपर धौंकलसिंह जज्मर की तरफ चला गया ।
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