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मारवाड़ का इतिहास पड़ा । इसी के साथ गवर्नमैन्ट ने महाराजा मानसिंहजी को अपने घरका झगड़ा मिटाकर राज्य व्यवस्था को ठीक करने का भी लिखा ।
वि० सं० १८८५ ( ई० स० १८२८) में किशनगढ़ में भी सरदारों का उपद्रव उठ खड़ा हुआ । इस पर उस वर्ष के भादों ( सितम्बर ) में किशनगढ-नरेश कल्याणसिंहजी कुछ दिन के लिये जोधपुर चले आए । महाराज ने उनका सत्कार करने में किसी प्रकार की कसर नहीं रक्खी ।
वि० सं० १८८८ ( ई० स० १८३१ ) में राजपूताने के पोलिटिकल एजैन्ट ने राजस्थान के अन्य नरेशों के साथ ही महाराज को भी अजमेर आकर गवर्नर-जनरल से मिलने का लिखा । इस पर पहले तो महाराज ने वहां जाने की तैयारी की, परन्तु अन्त में यह विचार त्याग दिया । यह देख यद्यपि गवर्नमैन्ट ने प्रकट रूप से तो कुछ नहीं कहा, तथापि यह बात उसे बुरी लगी।
इसी वर्ष बगड़ी के ठाकुर शिवनाथसिंह ने बगावत की और बूडसू वालों ने भी, जो वि० सं० १८८५ (ई० स० १८२८) से बागी थे, उसका साथ दिया । वि० सं० १८८६ ( ई० स० १८३२ ) में जब उन लोगों ने जैतारन को लूट लिया, तब महाराज ने सिंघी कुशलराज को उन्हें दण्ड देने की आज्ञा दी। उसने वहां पहुँच उन्हें मेवाड़ की तरफ़ भगा दिया ।
वि० सं० १८९० ( ई० स० १८३३ ) में पोलिटिकल एजैन्ट ने महाराज को सन्धि के अनुसार करके रुपये भेजने की ताकीद लिखी और यह भी लिखा कि यदि शीघ्र ही इसका प्रबन्ध न हुआ तो गवर्नमैन्ट को सेना भेजनी पड़ेगी। इस पर महाराज ने प्रथम भादों सुदि १४ (२६ अगस्त) को अपने कुछ कर्मचारियों को अजमेर मेज कर मामला निपटा दियो । परन्तु फिर भी नाथों के कारण राज्य-प्रबन्ध ठीक
१. इसी वर्ष उससे बगड़ी छीन ली गई थी। २. इस मामले को तय करने को निम्नलिखित पुरुष भेजे गए थे:-- (१) जोशी शम्भुदत्त, (२) सिंघी फौजराज, (३) भंडारी लक्ष्मीचंद, (४) सिंघी
कुशलराज,. (५) कुचामन-ठाकुर रणजीतसिंह, (६) भाद्राजन-ठाकुर बखतावरसिंह और (७) धांधल केसरीसिंह । ( उस समय सरदारों में कुचामन और भाद्राजन के ठाकुर ही महाराज के विश्वासपात्र थे।)
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