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परिशिष्ट-३ यूरोपीय महासमर और जोधपुर का सरदार रिसाला। यूरोपीय महायुद्ध के प्रारम्भ होते ही, वि० सं० १९७१ के भादों ( ई० स० १९१४ के अगस्त ) में, जोधपुर के 'सरदार-रिसाले' की पहली रैजीमैंट और उसकी दूसरी रैजीमैंट का कुछ भाग, युद्धस्थल के लिये भेजा गया। इसके कुछ दिन बाद ही जोधपुर-राज्य के उस समय के निरीक्षक ( रीसेंट ) वयोवृद्ध महाराजा सर प्रतापसिंहजी
और नवयुवक-नरेश महाराजा सुमेरसिंहजी भी युद्धस्थल की तरफ़ रवाना हुए। पहले इस रिसाले को स्वेज नहर की रक्षा का भार सौंपना निश्चित हुआ था। परन्तु वहां पहुंचने पर इसे मार्सलीज़ (Marseilles) जाने की आज्ञा मिली। इसके बाद, कार्तिक वदि ८ ( १२ अक्टोबर ) को जब यह रिसाला वहां पहुंचा, तब रेल-द्वारा ओरलीन्स (Orleans) भेजा जाकर सिकन्दराबाद रिसाले के साथ कर दिया गया।
मँगसिर ( नवम्बर ) के प्रारम्भ में इसने मैरविल्ले (Merville) की तरफ़ जाकर आर्मेण्टीए (Armentieres) और गिवेंची (Givenchy) के बीच की सैन्यपङ्क्ति की रक्षा के कठिन कार्य में भाग लिया । इस प्रकार उस महीने के अन्त तक यह यप्रे (Ypres) के प्रथम युद्ध में लगा रहा । परन्तु पौष ( दिसंबर ) में इसने फैस्टुबिया (Festubert)
और गिवेंची (Givenchy) के आस-पास के घमसान युद्ध में योग दिया। इस वार की मुठभेड़ में अन्य हताहतों के साथ ही इस रिसाले का स्पेशल सर्विस ऑफीसर' मेजर स्ट्राँग भी घायल हुआ।
इसके बाद यह रिसाला अगले दो वर्षों ( ई० स० १९१५ और १९१६ ) में अधिकतर, भारत के अन्य रिसालों के साथ मिलकर, युद्ध-स्थल के पीछे दी जानेवाली युद्ध कला की शिक्षा में, उपयुक्त भू-भागों को तारों से घेरने में, युद्धोपयोगी छोटी रेलों की लाइनें तैयार करवाने में और शत्रु की आत्म-रक्षार्थ तैयार की हुई रुकावट के टूटने पर अपनी तरफ के रिसाले के धावे के लिये मार्ग तैयार करने में लगा रहा, परन्तु साथ ही इसने कुछ खाइयों की और कुछ सोमे (Somme) के पास की छोटी-छोटी मुठभेड़ों में भी, जो इस समय के बीच हुई, भाग लिया।
१. जानेवाले कुल जवानों की संख्या १३५६ थी।
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