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मारवाड़-राज्य के कुछ मुख्य-मुख्य महकमों का हाल इसके बाद वि० सं० १९७२ (ई० स० १९१६) में भारत गवर्नमैन्ट ने इसका नाम स्वीकृत (recognized) अजायबघरों की सूची में दर्ज कर लिया। फिर वि० सं० १९७३ (ई० स० १९१७ ) में इसका नाम बदला जाकर स्वर्गवासी महाराजा सरदारसिंहजी के नाम पर 'सरदार-म्यूजियम' रखा गया । वि० सं० १९७२ (ई० स० १९१५ ) में इसके साथ ही एक पब्लिक लाइब्रेरी की स्थापना की गई और अगले वर्ष इसका नाम बदल कर महाराजा सुमेरसिंहजी के नाम पर सुमेर पब्लिक लाइब्रेरी कर दिया गया। पहले ये दोनों महकमे सूरसागर के बगीचे में थे । परन्तु उस स्थान के शहर से दूर होने के कारण वि० सं० १९८३ (ई० स० १९२६) में इन्हें शहर से नजदीक लाया गया । इसी वर्ष जोधपुर-दरबार ने यहां पर पुरातत्त्व-विभाग (आर्कियाँ लॉजीकल डिपार्टमैंट) की स्थापना की और (१) अजायबघर (२) इतिहास-कार्यालय (३) पुस्तक-प्रकाश ( Manuscript Library ) और (४) चण्डू-पञ्चाङ्ग के महकमे उसमें मिला दिए।
वि० सं० १९१२ की चैत्र वदि १ (ई० स० १६३६ की १७ मार्च ) को तत्कालीन वायसराय लॉर्ड विलिंग्डन ने अजायबघर और 'लाइब्रेरी' (पुस्तकालय) के नए भवन का उद्घाटन किया । यह भवन 'विलिंग्डन गार्डन' में बनाया गया है
और भीतर से बड़ा ही सुन्दर है । इसी से 'ऐम्पायर-म्यूज़ियम्स-ऐसोसियेशन' के सैक्रेटरी ने भी अपनी रिपोर्ट में इसकी प्रशंसा की है ।
गत वर्ष इस अजायबघर में आनेवाले दर्शकों की संख्या २,५०,००० के करीब पहुँच गई।
इसके अलावा इसे देखने को आनेवाले स्कूलों और कॉलिज के विद्यार्थियों को समय-समय पर पुरानी मुद्राएं आदि दिखला कर उनके इतिहास ज्ञान में भी सहायता दी जाती है।
वि० सं० १९८५ (ई० स० १६२६) में मिस्टर ड्रेक ब्रोकमैन के मारवाड़-दरबार की सेवा का काल समाप्तकर युनाइटेड प्रौविसेज़ में लौटने के समय दिए विदाई के भोज में स्वयं महाराजा साहब ने फरमाया थाः“We owe the inception of the state Archaeological Department, which has through his zeal and guidance I am glad to say, already justified its existence in a very short period.” अर्थात्-हमको यह प्रकट करते हुए प्रसन्नता होती है कि, उस राजकीय पुरातत्व विभाग ने, जिसको मिस्टर ड्रेक ब्रोकमैन की प्रेरणा से खोला गया था, उसके उत्साह और तत्त्वावधान में कार्य कर, बहुत थोड़े समय में ही अपनी सार्थकता सिद्ध करदी है।
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