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मारवाड़ का इतिहास
वि० सं० १९२५ ( ई० स० १८६८) में गवर्नर जनरल के एजैंट ने जोधपुर आकर महाराज से सरदारों का फैसला करने और उनकी जागीरें लौटा देने के लिये कहा । इस पर महाराज ने दो महीने में उनका निर्णय कर देने का वादा करलिया । परन्तु यह झगड़ा शान्त न होसका । इससे पौकरन, कुचामन वगैरा के सरदार भी आउवा, आसोप, नींबाज, रायपुर, रास, खेजडला और चंडावल के सरदारों से मिल गए। ___ इसी वर्ष के कार्तिक ( अक्टोबर ) में महाराज ने, गवर्नमैन्ट के कहने से, व्यापार की सुविधा के लिये नाज पर की चुंगी आधी करदी। इसी बीच मौके की ताक में लगे बहुत से सरदारों ने, महाराज की आज्ञा प्राप्त किए विना ही, अपने ज़ब्त हुए गांवों और कुछ इधर-उधर के गांवों पर अधिकार करलिया । ___ वि० सं० १९२५ की पौष सुद १५ (ई० स० १८६८ की २६ दिसम्बर) को लेफ्टिनेंट कर्नल कीटिंग (राजपूताने के ए. जी. जी.) ने जोधपुर आकर महाराज के और गवर्नमेन्ट के बीच एक नया अहदनामा तैयार किया। इसके अनुसार जोशी हंसराज (दीवान ), मेहता विजयसिंह (हाकिम फ़ौजदारी अदालत ), पण्डित शिवनारायण, मेहता हरजीवन (हाकिम महकमा माल) और सिंघी समरथराज ( हाकिम दीवानी अदालत ) की एक पंचायत नियुक्त कर राज्य-कार्य के संचालन का भार उसे सौंपा, और साथ ही उसे रियासत के इन्तिजाम के खर्च के लिये १५,००,००० रुपये देना निश्चित किया । खालसे के गांवों का पूरा-पूरा प्रबन्ध करने और दीवानी और फ़ौजदारी मामलों का निर्णय करने का अधिकार भी इसी पंचायत को दिया गया । महाराज ने अपना व्यक्तिगत खर्च कम करने और महाराज-कुमारों के खर्च का प्रबन्ध करने का निश्चय किया । जागीरदारों पर लगनेवाले हुक्मनामे (नए जागीरदारों के गद्दी पर बैठने के समय लिए जानेवाले दरबार के नज़राने ) का तथा राज्य के और आउवा, आसोप, गूलर, आलणियावास और बाजावस के जागीरदारों के बीच के झगड़ों का निर्णय पोलिटिकल एजैंट पर छोड़ा गया । यह सन्धि चार वर्षों के लिये की गई थी। इससे यहां का बहुत कुछ झगड़ा शान्त होगया ।
१. ए कलैक्शन ऑफ़ ट्रीटीज़ ऐंगेजमैंट्स ऐण्ड सनद्स, भा० ३, पृ० १४१-१४४ । २. इस संधि के अनुसार महाराज के खर्च के लिये सालाना १,८०,००० से २,५०,०००
रुपये तक नियत किए गए; और राज्य की आय का पूरा-पूरा हिसाब रखने का हुक्म दिया गया।
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