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मारवाड़ का इतिहास
इसके अनुसार बाहरी आक्रमणों से जोधपुर की रक्षा करने का भार उक्त कम्पनी ने अपने ऊपर लेलिया और इसकी एवज में युवराज छत्रसिंहजी ने सिंधिया को जो कर दिया जाता था वह (१,०८,००० रुपये ) कम्पनी को देना अङ्गीकार करलिया । इसी सन्धि के बाद मारवाड़ के नाँवा, सांभर आदि प्रान्तों पर से अमीरखाँ का दखल उठ गया ।
'सिरोही के इतिहास' से ज्ञात होता है कि महाराजा मानसिंहजी की आज्ञा से, वि० सं० १८७४ की माघ वदि ८ (ई० स० १८१८ की ३० जनवरी) को, मुहता साहिबचंद ने फिर सिरोही पर हमला किया । इस पर महाराव उदयभाणजी तो शहर छोड़ कर भाग गए और साहिबचन्द ने वहां के दफ्तर आदि जलाकर १० दिन तक नगर को लूटा । इस लूट में ढाई लाख रुपये उसके हाथ लगे । इसके बाद सिरोही के महाराव ने जोधपुर-महाराज को, उनके द्वारा मांगे गए, दण्ड के रुपये देने के लिये इधर-उधर से रुपया वसूल करना शुरू किया ।
वि० सं० १८७४ की चैत्र वदि ४ ( ई० स० १८१८ की २६ मार्च ) को युवराज छत्रसिंहजी का स्वर्गवास हो गया । इस पर सरदार और मुत्सद्दी मिलकर राजकार्य चलाने और किसी को ईडर से लाकर गोद बिठाने का विचार करने लगे।
ऐसे समय महाराज ने और भी उदासीनता प्रदर्शित की । परन्तु इसके पूर्व गवर्नमैन्ट से सन्धि हो चुकी थी । इसलिये जैसे ही इन घटनाओं की सूचना उसे मिली, वैसे ही उसने मुंशी बरकतअली को यहां का असली हाल जानने के लिये रवाना किया । वि० सं० १८७५ के आश्विन (ई० स० १८१८ के सितम्बर ) में वह जोधपुर आया और सरदारों के साथ जाकर महाराज से मिला । सरदारों को साथ देख महाराज उदासीन ही बने रहे । परन्तु जब दूसरी वार वह इनसे अकेले में मिला, तब महाराज ने आदि से अन्त तक का सारा वृत्तान्त उसे कह सुनाया । इस पर उसने महाराज को सान्त्वना दी और लौट कर सारा हाल गवर्नर-जनरल के एजैन्ट से कहा । यह सुन उसने गवर्नमैन्ट की तरफ़ से महाराज को एक खरीता भिजवा दिया । उसमें लिखा था कि आपके, राज्य-प्रबन्ध फिर से अपने हाथ में लेलेने पर, राज्य के भीतरी मामलों में कम्पनी किसी प्रकार का हस्तक्षेप न करेगी। इससे
१. पृ० २८१ ।
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