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मारवाड़ का इतिहास १७३५ ( ई० स० १६७८ ) में, जब महाराजा जसवन्तसिंहजी का स्वर्गवास हो गया, तब कुछ काल बाद एक बार फिर बादशाह ने, महाराज के साथ के पुराने वैर को यादकर, इन्द्रसिंह को 'राजा' के ख़िताब के साथ जोधपुर का शासन-भार सौंप दिया । परन्तु इस बार भी स्वर्गवासी महाराज के स्वामि-भक्त सरदारों के आगे इन दोनों की एक न चली।
इन्द्रसिंह का मनसब शायद पाँच हजारी जात और दो हजार सवारों तक पहुंचा था।
_इसके बाद वि० सं० १७७३ ( ई० म० १७१६) में महाराजा अजितसिंहजी ने इन्द्रसिंह से नागौर छीन लिया, लेकिन वि० सं० १७८० ( ई० स० १७२३ ) में बादशाह मोहम्मदशाह ने महाराज से नाराज होकर नागौर का अधिकार फिर उसे लौटा दिया । अन्त में वि० सं० १७८२ (ई० स० १७२६ के मार्च) में, महाराजा अभयसिंहजी ने उक्त नगर पर अन्तिम बार अधिकार कर वह प्रान्त अपने छोटे भाता राजाधिराज बख़तसिंहजी को दे दिया।
वि० सं० १७८६ (ई० स० १७३२) में जिस समय दिल्ली में इन्द्रसिंह का देहान्त हुआ, उस समय बादशाह की तरफ से सिरसा, भटनेर, पनिया और बैहणीवाल के परगने उसकी जागीर में थे।
१. मासिरे आलमगीरी, पृ० १७५.१७६ । २. ये बातें नागौर के शासक बखतसिंहजी के मंत्री द्वारा, वि. सं. १७८९ की कात्तिक वदि
१२ को नागौर से लिखे, महाराजा अभयसिंहजी के शाही दरबार में रहनेवाले वकील के नाम के, पत्र से प्रकट होती हैं।
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