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________________ परिशिष्ट - राव अमरसिंहजी | यह जोधपुर-नरेश राजा गजसिंहजी के ज्येष्ठ पुत्र थे और इनका जन्म वि० सं० १६७० की पौष सुदि ११ ( ई० स० १६१३ की १२ दिसम्बर) को हुआ था । इनकी प्रकृति में, प्रारम्भ से ही, स्वतन्त्रता की मात्रा अत्यधिक होने से इनके पिता ने इनके छोटे भ्राता जसवन्तसिंहजी को अपना उत्तराधिकारी मनोनीत कर लिया था । इसपर यह जोधपुर-राज्य की आशा छोड़, वि० सं० १६८५ ( ई० स० १६२८ ) में, कुछ चुने हुए राठोड़ सरदारों के साथ, बादशाह शाहजहाँ के पास चले गए । बादशाह ने, इनकी वीर और स्वतन्त्र प्रकृति से प्रसन्न होकर, इन्हें बड़े आदर और मान के साथ अपने पास रख लिया और साथ ही सवारी के लिये एक हाथी भी दिया। इसके बाद यह शाही सेना के साथ रहकर युद्धों में बराबर भाग लेने लगे । इनकी रणाङ्गण में प्रदर्शित वीरता और निर्भीकता को देखकर, वि० सं० १६८६ की पौष सुदि १ ( ई० स० १६२१ की १४ दिसम्बर) को, बादशाह ने इन्हें दो हजारी जात और १३०० सवारों का मनसब दिया । इसके करीब चार वर्ष बाद वि० सं० १६९१ की पौष वदि ३० ( ई० स० १६३४ की १० दिसम्बर) को यह अपने अपूर्व साहस के कारण दाई-हजारी जात और डेढ़ हजार सवारों के मनसब पर पहुँच गए । इसके साथ ही बादशाह ने इन्हें एक हाथी, एक घोड़ा और एक झंडा देकर इनका मान बढ़ाय । १. कहीं कहीं वैशाख सुदि ७ भी लिखा मिलता है ( ? ) २. बादशाहनामा, भा० १, दौर १, पृ० २२७ । ३. बादशाहनामा, भा० १, दौर १, पृ० २६१ | ४. बादशाहनामा, भा० १, दौर २ पृ० ६५ । ख्यातों में इनका महाराजा गजसिंहजी के बुलाने पर वि० सं० १६०१ की पौष वदि 8 को, पहले-पहल लाहौर में बादशाह से मिलना और उसका इन्हें वहीं पर ढाई हज़ारी जात और डेढ़ हजार सवारों का मनसब तथा पाँच परगनों की जागीर देना लिखा है । परन्तु टॉडने इस घटना का वि० सं• १६६० ( ई॰ स० १६३४ ) में होना माना है । ( देखो, राजस्थान का इतिहास ( क्रुक संपादित ) मा० २, १०६७६ ) । te Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034554
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1940
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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