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मारवाड़ का इतिहास
सुवर्ण के सिक्के (मोहरें )
जोधपुर की अशर्फी (मोहर) शुद्ध सुवर्ण की बनती है और इसका तोल १६६.६ ग्रेन ( १ मोशे और ६ रती ) होता है । यह भी कहा जाता है कि ये सिक्के पहलेपहल वि० सं० १८३८ ( ई० स० १७८१ ) में विजयशाही रुपये के वि० सं० १८१८ ( ई० स० १७६१ ) के ठप्पे से छापे गए थे । परन्तु इसके बाद मोहरों के लिये जुदा ठप्पे ( बाला और पाई ) तैयार किए जाने लगे । आवश्यकता होने पर इन्हीं ठप्पों से तोल के हिसाब से श्राघी, पाव और दो नो मोहरें भी छाप ली जाती हैं । मोहरें बनाने का काम केवल जोधपुर की टकसाल में ही होता है ।
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चांदी के सिक्के (रुपये)
जोधपुर का विजयशाही रुपया तोल में १७६ ४ ग्रेन ( १० माशे ३ रती ) होता
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था । इसमें १६१·१ ग्रेन ( १ माशे ५ रत्ती ) शुद्ध चांदी और ६.५ ग्रेन (३३ रत्ती ) तांबा (Alloy ) रहता था। जिस समय इस रुपये का चलन था, उस समय इसी के ठप्पे (वाला और पाई) से तोल के अनुसार अठन्नी, चवन्नी और दो अनी बना ली जाती थी ।
वि० सं० १९१६ ( ई० स० १८५६ ) में महाराजा तखतसिंहजी के समय नाजर हरकरण ने सोजत की टकसाल में करीब एक लाख विजयशाही रुपये ऐसे छापे थे, जिनका तोल १७५ प्रेन ( १० माशा ) था और इनमें खाद ( alloy ) का भाग
१. वास्तव में यह ६६ टंच की होती है ।
२. मारवाड़ में माशा ८ रत्ती का माना जाता है ।
३. परन्तु वि० सं० १६१४ ( ई० स० १८६२ ) के पूर्व का 'ग' चिह्न वाला जोधपुर की टकसाल का बना रुपया तोल में १७६ ग्रेन ( १० माशे ) था ।
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४. कुछ लोग इसमें खाद (Alloy ) होना मानते हैं । पाली की टकसाल का बना रूपया तोल में १६० ग्रेन ( १० माशे ७ रत्ती ) होता था और उसमें १० माशे ४ रत्ती चांदी और २ रत्ती तांबा रहता था ।
नागोर का रुपया तोल में ६ माशे ६ रत्ती ( १६६६ ग्रेन ) होता था और उसमें ६ माशे ४ रत्ती चांदी और १३ रत्ती तांत्रा रहता था ।
सोजत के रुपये में प्रतिशत ६५ चांदी और ४ तांबा होता था ।
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