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मारवाड़ के सिक्के टकसालों में विजयशाही रुपया बनना बंद हो गया। इसके बाद वि० सं० १९७१ ( ई० स० १९१४ ) में यहां पर तांबे का सिक्का बनना भी बंद हो गया था, परन्तु वि० सं० १९९३ ( ई० स० १९३६ ) से यह फिर से बनाया जाने लगा है।
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पाली की टकसाल - यह टकसाल वि० सं० १८४५ ( ई० स० १७८८ ) में खोली गई थी । यहां के रुपयों पर एक तरफ दारोगा का निशान और दूसरी तरफ 'श्रीमाताजी' लिखा रहता है । तथा इसी लेख के नीचे तलवार और उसके पास ही में झाड़ बना होता है ।
मारवाड़ - नरेश महाराजा भीमसिंहजी के समय तक पाली के बने सिक्कों पर भाले का निशान रहता था, परन्तु महाराजा मानसिंहजी ने भाले के स्थान पर तलवार का निशान बनवाना प्रारम्भ किया ।
यह टकसाल भी कुछ काल से बंद कर दी गई है ।
सोजत की टकसाल- -यह टकसाल वि० सं० १८६४ ( ई० स० १८०७ ) में खोली गई थी । यहां के बने कुछ रुपयों पर कटार का चिह्न बना होता है और कुछ पर नागरी अक्षरों में 'श्री महादेवजी ' भी लिखा रहता है । इनमें टकसाल के दारोगा का निशान झाड़ के पास बना रहता है ।
यह टकसाल वि० सं० १९४५ ( ई० स० १८८८ ) में बंद कर दी गई थी ।
मेड़ता की टकसाल — यहां की टकसाल के बने रुपये पर हिजरी सन् ११८८ का निशान होने से वह रुपया 'ट्यासिया' कहलाता था । यह टकसाल वि० सं० १८९० ( ई० स० १८३३ ) में बंद होगई थी । परन्तु वि० सं० १९२१ ( ई० स० १८६४ ) में फिर से जारी की गई । उस समय के रुपये पर चांद का चिह्न बना होने से वह ' चांदशाही' के नाम से प्रसिद्ध हुआ ।
वि० सं० १९२८ ( ई० स० १८७१) में यहां की टकसाल फिर बंद कर दी गई ।
इस टकसाल के बने कुछ पुराने पैसों पर केवल सन् १२०२ ही लिखा मिलता है ।
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