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महाराजा मानसिंहजी ( ई० स० १८०३ की २२ दिसम्बर ) को मानसिंहजी के और 'ईस्ट इण्डिया कंपनी' के बीच एक सन्धि हुई । उसकी मुख्य शर्ते इस प्रकार थीं':१. इंगलिश-कंपनी के और महाराजा मानसिंहजी व उनके वंशजों के बीच
स्थायी मित्रता की जाती है। २. आपस की मित्रता के कारण दोनों एक दूसरे के शत्रु और मित्र को बराबर
अपना शत्रु और मित्र समझेंगे। ३. महाराज के वर्तमान राज्य-प्रबंध में कंपनी न तो किसी प्रकार का हस्ताक्षेप
ही करेगी, न उनसे कर ही मांगेगी । ४. कंपनी के अाज तक के अधिकृत भारतीय प्रदेशों पर यदि कोई आक्रमण
करेगा तो महाराज अपनी पूर्ण-शक्ति से कंपनी की सहायता कर मैत्री का
परिचय देंगे। ५. कंपनी भी महाराज की राज्य-रक्षा का जिम्मा लेती है । यदि किसी अन्य
राज्य के और महाराज के बीच किसी कारण विवाद खड़ा होगा तो पहले वह मामला आपस में निपटा देने के लिये कंपनी को सौंपा जायगा । परंतु यदि विपक्षी हट के कारण कंपनी का समझोता नहीं मानेगा तो खर्चा देने
पर कंपनी की फौज महाराज की सहायता करेगी। ६. अपनी सेना के संचालन में स्वतंत्र होते हुए भी युद्ध के समय महाराज को
साथ वाले अंगरेज़-सेनापति की सलाह से काम करना होगा । ७. महाराज कंपनी की समिति के विना न तो किसी 'यूरोपियन' को नौकर ही
रक्खेंगे न अपने राज्य में प्रवेश ही करने देंगे । परंतु मानसिंहजी ने इस संधि को स्वीकार करने से इनकार कर दिया और इसमें कुछ काट-छाँट कर दूसरी संधि करने का प्रस्ताव किया ।
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१. ग्रांट डफ् की हिस्ट्री ऑफ मरहटाज़, भा. २, पृ. ३६३ और ए कलैक्शन ऑफ ट्रीटीज़
ऐंगेजमैंट्स एण्ड सनद्स भा. ३ पृ. १२६-१२७ । इस सन्धि के समय कंपनी के मरहटों के साथ के युद्ध मे फँसे होने से मारवाड़ पर किसी प्रकार का कर आदि नहीं लगाया गया था । परन्तु दूसरी सन्धि के समय अवस्था में परिवर्तन हो चुका था।
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